Tuesday, November 13, 2012

satya ka mahatv

मनुष्य    और जानवर  में कोई फर्क नहीं है। पर मनुष्य बहुत सोचता है। वर्तमान से उसको भविष्य की चिंता सताती  है। जो कुछ  उसको मिलता है, उससे संतुष्ट  नहीं  होता।  इसी प्रवृत्ति के कारण वह सभ्य बनता जा रहा है;
सभ्य मनुष्य  असभ्य मनुष्य  से ज्यादा दुखी है। वह कम्  परिश्रम पर  ज्यादा से  ज्यादा  सुख  अनुभव करना चाहता ही रहता है।उसकी कल्पनाएँ साकार होती  जा रही है।उन सुखों को भोगना सब के वश  में नहीं है।उसके लिए धन की जरूरत होती है।क्या धन काफी  है। नहीं।स्वास्थ्य की जरूरत है।क्या स्वस्थ्य ठीक होना पर्याप्त है। नहीं।फिर,ज्ञान की खोज में लगता है। बेवकूफ भी धन और बल प्राप्त  कर सकता है; पर ज्ञान। तभी समस्या उठती है।
मनुष्य में भेद-भाव उत्पन्न होते है।धन -बल का सहीप्रयोग  बुद्धि  के आधार पर ही होता है। धन और बल आसुरी प्रवृत्ति है। वह अशाश्वत संसार को शाश्वत मानती है।बड़ेबड़े ज्ञानि  को भी  धन और बल के बिना जीना दुश्वार हो जाता है।  पहले भूख की समस्या।फिर  कपडे ;फिर मकान। आहार तो आकार बढाने के लिए नहीं,जिन्दा रहने  के लिए आवश्यक है।वह प्राकृतिक है।  सूक्ष्मता से सोचने पर व्यस्त आदमी पेट की चिंता नहीं करता;वह काममें ही लगा  रहता है।जब आराम मिलता है,तब थोडा  खालेता है।  खाने-पीने की चिंता रखनेवालों से दुनिया बनती नहीं है।  जितने भी संत  शाश्वत सत्य छोड़कर गए हैं, वे तपस्वी हैं। वे खान-पान छोड़कर  विश्व हित के  ज्ञान -कोष 
छोड़ गए  है। उस ज्ञान कोष की आलोचना  और प्रति आलोचना  करके स्नातक बन्ने वाले  ,धन जोड़नेवाले लालच में  पड़कर  मनुष्य  में फूट डालकर आपस में  लडवाकर  अपने को अगुवा  अगुवा स्थापित करके अपने ही स्वार्थ लाभ के तरीके में संसारको  अलग अलग कर लेते  है।इसी को  सभ्य मानते है।  बुद्धिबल मानते हैं।  दूसरों को भिडाकर,दूसरों को बलि देकर  जीनेवाले अहंकारी के कारण  इंसानियत  नष्ट हो जाता है।कई सम्प्रदाय,कई राजनैतिक दल,लडाई -झगडा
के मूल में सिवा स्वार्थ के  अहम् के कुछ नहीं है। इसे सोचकर आम जनता चलेगी तो स्वार्थ,लोभी  नेता चमक नहीं सकते। एक नेता के जीने के लिए  हज़ारों मरते है;नेता अच्छे ,ईमानदार हो तो ठीक हैं,आजकल भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए  ईमानदारी अधिकारियों को  ही सजा मिलती है।यहाँ तक कि  अपने हत्याचार  और भ्रष्टाचार छिपाने हत्याएं भे करते हैं।ऐसे स्वार्थ नेता  या अधिकारी  के मानसिक परिवर्तन और जन हित के कार्य में लगाने -लगवाने के लिए ही मृत्यु है।रोग है।सत्य एक न एक दिन प्रकट होगा ही।


Sunday, July 22, 2012

तिरुवल्लुवर  में बड़ी कौशल  थी।उनके  हर कुरल  को पढ़ते समय  जो आनंद मिलता  है ,वह वर्णनातीत है।संघ काल के कवियों  से लेकर आज के कवी पावेंदर तक  सभी कवियों ने उनकी तारीफ  की थी।हर कुरल के अध्ययन से उनकी तारीफ  की सार्थकता  का पताचलेगा .

क्या एक कार्य के करते समय दूसरे  कार्य  को कर सकते हैं? औसत  बुद्धिवाले इस का जवाब नकारात्मक देंगे। वास्तव में ऐसे  करनेवाले संसार में रहते हैं।वल्लुवर  कहते है  कि   जैसे हम एक हाथी की सहायता से दुसरे हाथी को  पकड़ते  हैं, वैसे ही  एक कार्य  करते समय दूसरे  कार्य को भी  कर सकते हैं।ऐसे करनेवालों के लिए हार का सामना नहीं करना पडेगा।

रत्नकुमार:--once a project succesfully completed  use it to win new contracts  like capturing wild elephants by using  a trained elephnt one that is on  heat.

G.U.POPE:-TO MAKE ONE UNDERTAKING THE MEANS OF ACCOMPLISHING ANOTHER

IS  LIKE MAKING ONE RUTTING ELEPHANT THE MEANS OF CAPTURING ANOTHER.

वल्लुवर का उद्देश्य  कार्य को ठीक -ठीक करना चाहिए। आज के युग  में जीवन सघर्षमय  हो गया।पति -पत्नी  दोनों को कमाना पड़ता है।पत्नी  दफ्टर से आते समय  तरकारियाँ ले आती है;पति  सबेरे पैदा चलने जाता है  तो वापस  आते  समय   दूध  लाता  है। एक कार्य  करते समय दूसरा कार्य करते हैं। इसे ही वल्लुवर कुमुकी  हाथी  के द्वार जंगली हाथी  पकड़ना  कहते  हैं।इक्कीसवीं  सदी की बातों  को वल्लुवर ने दूसरी सदी में ही बताया है।

वल्लुवर के कुरल सचमुच  अद्भुत   और ज्ञानप्रद  है। उनका  शब्द प्रयोग  बड़ा ही शक्तिशाली  है।
शासक  और उनके   सहायक मंत्री  दोनों  को कार्रवाई  के दौरान क्या  करना चाहिए? इस की सीख  कार्रवाई
के   अधिकारं में मिलती  है।  एक प्रशासन  सठीक  चलने-चलाने  के सभी लक्षण इस अधिकारम  में मिलते हैं।
मुडिवुम   इडैयुरुम   मुत्ट्रीयांगू   एय्तुम  पडू पयनुम   पार्तुच  चेयल।


एक शासक को एक कार्य शरू करते ही उसे पूरा करने  के लिए सारा  प्रयत्न  करना  चाहिए।उस कार्य को  करने में  आनेवाली  बाधाओं  को  दूर  करके  कार्य की सफलता  होने पर  आनेवाले  लाभ पर ध्यान देना चाहिए।

जिस काम में अधिक लाभ  होता है ,वही करने  की कोशोश  करनी चाहिए।बधावों का सामना करना चाहिए।
रत्नकुमार इसे  अंग्रेजी में ' course  of   action ' कहते है।

the benefits the constraints and the resource  requirements  of a task must be identified   before starting to work on it.

g.u.pope:--the method of acting.

AN ACTING IS TO BE PERFORMED  AFTER CONSIDERING  THE EXERTION REQUIRED THE
OBSTACLES  TO THE ENCOUNTERED  AND THE GREAT PROFIT TO BE GAINED.



वल्लुवर  बहुत बड़े  ज्ञानी  थे।अर्थ  के महत्व  को बताते हुए  उन्होंने  कहा  है  कि  अतिथिसत्कार और परोपकार

करते समय  अपनी आर्थिक दशा  पर भी ध्यान  रखना  चाहिए।अगर अपनी  आय के विपरीत दान या अथिति  सत्कार   में लगें  तो धन  का विनाश  जल्दी  हो जाएगा।  यही वल्लुवर  ने कहा कि  अतिथि  सत्कार   में कोई  हानि होगी तो उसकी  बिना परवाह  किये  घाटा  सहकर अतिथि  सत्कार को प्रधानता  देनी चाहिए।

यह  तो  वैचारिक भेद  नहीं  है,  वल्लुवर  इसमें एक सतर्कता  आर्थिक  विषमता  पर ध्यान रखकर देते  हैं।यह उनके अनुभव ज्ञान  की सूक्ष्मता  का सूचक है।

रत्नकुमार:-IF ONE GIVES MORE HIS INCOME HIS WEALTH WILL SOON DEMINISH.

G.U.POPE:  THE MEASURE OF HIS WEALTH WILL QUICKLY  PERISH WHOSE LIBERALITY WEIGHS NOT THE MEASURE OF HIS PROPERTY.

Saturday, July 21, 2012

 


  शत्रुओं  से देश और प्रजा  की रक्षा  करना ही राजा का प्रधान कर्तव्य होता हैं।इस के लिए धन बढाना  आवश्यक है।दुश्मनों  के अहंकार दूर  करने  के लिए  ही अधिक धन  चाहिए। अतः वल्लुवर धन जोड़ने की सलाह और उपदेश देते है।
धन ही अधिक शक्ति शाली  अस्त्र -शस्त्र   होता  है।

कुरल:       सेयक  पोरुलै  ,सेरुनर सेरुक्करुक्कुम   एह्कू अतनिं कूरियतु इल।

अंग्रेजी  अनुवाद:- ONE MUST CREATE WEALTH  FOR IT  IS  THE MOST POWERFUL  WEAPON TO QUELL THE ENEMIES'  ARROGANCE.

G.U.POPE:-ACCUMULATE WEALTH;IT  WILL DESTROY THE ARROGANCE OF FOES;THERE IS NO WEAPON SHARPER THAN  IT.

  वल्लुवर  के कुरल के तीन भाग हैं--धर्म,अर्थ,काम;  इन तीन भागों में बीच  का अर्थ हक के पास इकठ्ठा  हो  जाए , तो  पहला  और तीसरा  भाग अपने आप आकर दोनों ओर  चिपक जाएगा।
अर्थ  नहीं तो धर्म  और  काम दोनों निरर्थक  हो जायेंगे।यही वास्तविकता युग-युगान्तरों से चली आ रही  है।

एक राजा  आर्थिक -बल और  सैनिक बल आदि   बढाने  के बाद  शत्रुओं को अपने अधीन ले आने की कोशिश में लगता है। पहले साम,भेद,दान  आदि तीन अस्त्रों  का  प्रयोग करता है। इन तीनो से शत्रु  न दबने पर चौथा अस्त्र  "दंड" का प्रयोग करने में विवश हो जाता है।तब वह अपने बल को अपने आप मूल्यांकन करता है।
यही  बल-जानना   अधिकारं है।अपने  कार्य की शक्ति,अपने बल,अपने शत्रु  का बल,अपने पक्षधारी का बल,
विपक्ष्धारी का बल सहायकों का बल  आदि   गहराई से छानकर  पहचानना ही बल-जानना  अधिकारं है।

कुरल:  अमैन्दान्गु  ओलुकान  अलवु   अरियान   तन्नै     वियनदान   विरैधू केदुम।

जो राजा अपने और दुश्मनों के  बल  को ठीक नहीं जान लेता ,उसका विनाश  ही होगा।

रत्नकुमार:  HE WHO IS DISRESPECTFUL  OF OTHERS BOASTFUL OF HIMSELF AND OVER ESTIMATES HIS CAPABILITY  IS VULNERABLE  AND HE WILL RUIN HIS LIFE.

G.U.POPE:
HE WILL QUICKLY PERISH WHO IGNORANT  OF HIS OWN RESOURCES   FLATTERS HIMSELF OF HIS GREATNESS  AND DOES NOT  LIVE IN PEACE WITH HIS NEIGHBURS.





वल्लुवर  आगे  "अर्थ"  के  महत्व  के बारे  में कहते  हैं।अर्थ  अर्थात  धन  रंक और राजा दोनों के लिए आवश्यक  हैं।   गाडी  के चक्र सही रूप से घूमने  के   लिए   ग्रीज़  की जरूरत है, वैसे ही जीवन चक्र  बिना घिसे चलने  के लिए  धन  रुपी  ग्रीज़  की जरूरत है। वल्लुवर महोदय  धन  का बड़ा आदर देते हैं।
सांसारिक  जीवन  जीने  के लिए  भोजन   के  लिए संग्राम  करना पड़ता  है।भोजन  के  लिए धन की ज़रुरत है। राजा को देश  के शासन  के लिए धन चाहिए।अकेले  आदमी को  अपने परिवार  के लिए धन  चाहिए।
अर्थ के बिना जीवन निरर्थतक  हो जाएगा।

राजा और मंत्री दोनों आपस  में सलाह-मशविरा  करके देश की आमदनी बढ़ने की योजनायें बनाते हैं।इन में मुख्या  है  जनता से कर वसूल करना;शत्रुओं  और दोस्तों से धन   जमा करने का मार्ग ढूँढना ;इसमें  राजा को अपने प्रजा की आय का भी योजनाएँ  तैयार करनी पड़ेगी।राजा की सुरक्षा के अधीन कई उद्योग -धंधे शुरू करके आमदनी का प्रबंध करना भी सम्मिलित है।

अर्थ -खोज  अधिकारम  के  दस कुरलों   में वल्लुवर ने चौदह  बार अर्थ शब्द  का प्रयोग  किया है।कुरल के तीन भागों  में वल्लुवर ने "अर्थ" भाग को अधिक प्रधानता  दी है।वैसे ही अर्थ-खोज  अधिकार को भी अधिक महत्व  दिया है। यह तो सोचने का विषय बन गया।
अर्थ-खोज  का पहला कुरल:-
 पोरुल  अल्लवरैप   पोरुलाकच  चेय्युम   पारुल  अल्लतु  इल्लै   पोरुल .

 पोरुल  तमिल  शब्द  का  हिंदी "अर्थ" शब्द  के सामान दो अर्थ होते   हैं।।1.धन .मतलब

अर्थहीन मनुष्य  जीवन को सार्थक  बनाकर प्रधान  बनाने की शक्ति धन को है।वैसे  ही सार्थक मनुष्य को निरर्थक   बनाकर  अप्रधान  बनाने  की शक्ति  अर्थहीनता में   है।

अंग्रेजी  अनुवादक इस अधिकारं  का नाम "wealth '" रखा है।
कुरल का अंग्रेजी  अर्थ:-- IT IS ONLY WEALTH THAT CAN ENHANCE THE STATUS OF A WORTHLESS PERSON.

G.U.POPE:-  BESIDES WEALTH THERE IS NOTHING  THAT CAN CHANGE PEOPLE OF NO IMPORTANCE  IN TO THOSE OF IMPORTANCE.





अमिल  


सैनिक  महत्व  को अंग्रेजी  में "warriors " कहा गया  है।
only warriors with the right potential   energy will be able to fight courageously under  dire  conditions.

g.u.pope:-ancient  army  can alone  have  the valour  which makes it stand  by its king at the time of defeat  fearless of wounds and unmindful   of  its reduced strength.

एक सैनिक शक्ति को परेड  ही ही दूसरों को डराता  है;सेना का अग्रसर  लोगों को डराता  है।एक वीर सेना की  निशानी उसके परेड  और अग्रसर होने में  ही है।

सेना की सुन्दर  बनावट    और सजावट को देखने मात्र  से  ही  शत्रु   काँपने लगेगा।सेना में शत्रु को हारने का बल  न होने पर भी दिखावट शत्रु  (  सजावट और  दिखावट का अपना विशेष महत्त्व होता  ही है। कम से कम वह   शत्रु   के मन में भय उत्पन्न  करेगा ही। ।  

कुरल:-अडल   तकैयूम   आत्रलुम इल एनिनुम  तानै    पडैत्तकैयाल  पाडू पेरुम।

सुसज्जित सेना गंभीर  और वीरता  के लक्षण होता  है।सुसज्जित रथ सेना,मुख-पट लगाए गज-सेना,सज्जित अश्व- सेना  छाता,झंडा,पताकाएं,धोल्नागादा की गूँज  आदि शत्रु -पक्ष में भय उत्पन्न  करेगा ही। 
आजकल  जब शहरों में  दंगा ,  कानून्  व्यवस्थता  का भंग,  आतंकवादी यों और शत्रुवों का छेड़-छाड़ होता  है,तब सेना या पुलिस विभाग का परेड होता है।यह सजतज  का जुलुस  आम लोगों में भय दूर करके शांति का विशवास पैदा  करता है।  
वल्लुवर ने  सेना के लक्षण  और महत्व   का अधिकारम  इसी के लिए  लिखा है।
ratnakumaar:-
EVEN  IF AN ARMY IS NOT POWERFUL,IT IS IMPORTANT THAT IT PARTS ON A SHOE TO PSYCHOLOGICALLY     WEAKEN THE ENEMY.


G.U.POPE;--
THOUGH  DESTITUTE  OF COURAGE TO FIGHT AND STRENGTH (TO ENDURE)AN ARMY MAY YET GAIN RENOWN BY THE SPLENDOUR OF ITS APPEARANCE.


  आगे  वल्लुवर ने बताया है कि  बड़ों  को सहायक  बना लेना राजा के लिए अत्यंत  आवश्यक है। यह केवल राजा  के लिए मात्र   नहीं ,बल्कि  सब केलिए लागू होगा। 
राजा  को  अपने लिए  बड़े  मनुष्य को मंत्री बना लेना चाहिए। मंत्री को   उम्र  में  और अनुभव में ,बुद्धि बल में,
चतुराई  में,    कार्य-कौशल में अति सूक्ष्म  होना  चाहिए।ऐसे बड़े मंत्री के मिलने के बाद  राजा को उनकी सलाह माननी चाहिए।


एक राजा केलिए योग्य  मंत्री मिलना अति दुर्लभ  होता है। अव्वैयार  ने कहा कि  मनुष्य जन्म  दुर्लभ है।


वल्लुवर दुर्लभों  से  दुर्लभ  कहा  है।  


एक को चतुर  और आवश्यक है , कहने  का   मतलब  यह नहीं कि  बाकी महत्वहीन है।इन सब का पालन  और अनुसरण  करने की  प्रेरणा  देने  के लिए  ही वल्लुवर ने एक-एक  विषय   पर जोर दिया  है। कहते हैं कि  
यह कवियों  का  रूढिगत स्वभाव है।  


कुरल;- अरियवटरुल   एल्लाम  अरिते  पेरियारैप   पेणित  तमराक कोलल।


एक   सुयोग्य  मंत्री  मिलना  भाग्य  की बात है।
रत्ना कुमार  ने अंग्रेजी  में कहा है कि  'SUPPORT OF MATURE PEOPLE.
  EARNING THE RESPECT AND SUPPORT OF MATURE PEOPLE IS A RARE OPPORTUNITY  NOT BE MISSED.
वल्लुवर ने जोर  देकर  कहा  कि  एक सद्गुणी बड़े आदमी का समर्थन छोड़ना  कई शत्रुवों  से दस गुना बड़ा खतरनाक है।  


कुरल:--पल्लार  पकै  कोललिन  पत्तडु त्त  तीमैत्ते    नाल्लर तोडर  कै  विडल।


रत्नकुमार:--BREAKING OFF THE FRIENDSHIP WITH A MATURE PERSON IS WORSE THAN CREATING  MANY ENEMIES.
G.U.POPE:-- IT  IS  TENFOLD  MORE  INJURIOUS  TO  ABANDON  THE  FRIENDSHIP  OF THE GOOD, THAN TO INCUR THE HATRED OF THE MANY.












  वल्लुवर  सुमंत्री के लक्षण और उनके कर्तव्य  और जिम्मेदारियों   के महत्व बताने के बाद  उनके अधीन के कर्मचारी   सेनापति  के लक्षण  का जिक्र  करते हैं।
उनके कुरल -ग्रन्थ  में सैनिक-महत्व्  के अधिकारं  सतहत्तरवाँ  है।  सत्तास्वाँ   अधिकारं है  शत्रु-लक्षण।
इन दोनों अधिकारमों के भेद  पर पहले जान्ने का बाद  सैनिक -महत्व्  पर विचार  करेंगे।

 बेवकूफी,मित्रता  न  निभाना, रिश्ता छोड़ना,निस्सहायता  आदि कमी-पेशियों से शत्रुता के लक्षण बताना  शत्रु-का महत्व  अधिकारं है। थोड़े  में कहें तो  शत्रु-पर आक्रमण करके  शत्रु-नाश करना शत्रु-विशेषता है।
सैनिक महत्व्    तो चढाई के बाद  जान को तुच्छ  मानकर  अंत  तक लड़-मरना।

राजा के सुमार्ग की कमाई  की सुरक्षा  करना  और दुश्मनों से देश को बचाना  सैनिक-विशेषता होती है।

इस अधिकारं  में एक कुरल को छोड़कर  बाकी  नौ  , कुरलों  में "पडै "(सेना) शब्द  का प्रयोग हुआ है।यही कुरल की विशेषता  है।

एक राजा की रक्षा के लिए  अंत तक  लड़कर , पीठ  न दिखाकर वीर गति प्राप्त करने की सेना  मूल-सेना है।
क्या सेना में भी भेद हैं?  हाँ, सेनायें  छे  प्रकार की होती  हैं।1.कूली सेना,देश सेना,जंगली सेना,सहायक सेना,दुश्मनी-सेना आदि। इनमें  मूल-सेना का ही महत्व  अधिक है। युद्ध  काल में ही जो सेना तैयार  की जाती है,वह कुली सेना है।दुश्मनों से किसी मानसिक-कटुता के कारण आ मिले हैं,व शत्रु-सेना है।




Friday, July 20, 2012

राजा के पदाधिकारियों में  मुख्यमंत्री  की जिम्मेदारी  सर्वाधिक होती है।


  कुरल:  वारिप  पेरुक्की वलं  पदुत्तु  उट्रवै   आराय्वान  सेयक  विनै .


छान-बीनकर  चुने  मंत्री  को खोज करने का दिलचस्प  चाहिए।
उनका प्रधान कार्य  है  आय बढ़ाना।  
आय बढाने  के लिए   कर वसूल करना,दंड-शुल्क वसूल करना,गाढे हुए धन-दौलत का पता  लगाना,कृषी  बढ़ाना,कुटिर -उद्योग ,व्यापार  आदि  के द्वारा  आय बढ़ाना   मुख्य-मंत्री  का  काम होता है।
इसके अलावा बढती आमदनी सदुपयोग  करना चाहिए।दौलत का खर्च  राजा और प्रजा के सुख-सुविधा केलिए  करना चाहिए।
देश की  प्रगति की बाधाओं को  हटाना चाहिए। 
राजनीतिज्ञ ,राजा के रिश्ते-नाते,दुश्मन,चोर-डाकू आदि देश की शांति और तरक्की में अडचनें करेंगे।उनसे राजा  और राज्य  को बचने का काम भी मंत्री के जिम्मे में है।
प्राकृतिक -कोप,जंगली जानवर,कीड़े-मकोड़े आदि के कारण होनेवाली हानियों से भी लोगों को रक्षा करने का भार  और  क्षति -पूर्ती  करने का दायित्व भी है।
प्राकृतिक दुःख हैं बाढ़,आंधी-तूफान, संक्रामक रोग,अकाल  आदि।


इन सब का सामना करने की शक्ति और कौशल   जिसमें है,वही मंत्री है।


अंग्रेजी विद्वानों ने इस अधिकारं का  नाम "delegation " रखा है।
one who knows how to increase revenue reduce costs and over come constraints is the right person to be delegated with authority.
g.u.pope:-
let him do (the kings)work who can enlarge the sources (of revenue)increase wealth and considerately prevent the accidents (which would destroy it).

इस अधिकारं  के सभी कुरल  खोज  की योग्यता रखता है।


रजा को मंत्री की नियुक्ति  कौशल देख-जानकर करना है,जो दुखों को सहकर कार्य करा रहें।  प्रेम में वशीबूत  होकर   एक  अयोग्य  व्यक्ति  की नियुक्ति करने  पर  विनाश ही होगा।
कुरल:-


अरिंदु  आट्री  सेय्किर्पार्कू  अल्लाल विनैतान   सिरंतान  एन्रु  एवार्पाट्रंरु।
अंग्रेजी अनुवाद :

authority must be delegated only to people who have the right knowledge and skills;delegation should not be done on the basis of 
whim and fancy. 

G.U.POPE:
(A KINGS) WORK CAN THEY BE ACCOMPLISHED BY A MAN  OF WISDOM AND PATIENT ENDURANCE;IT IS NOT A NATURE TO BE GIVEN TO ONE FROM MORE PERSONAL ATTACHMENT




















राजा  के  लिए अत्यंत  आवश्यक  कौशलों  में एक है   जानकर स्पष्ट  निर्णय लेना।जानकर   और  जानकारी  दोनों  में  स्पष्ट  शब्द को वल्लुवर जोर  देते  हैं।अपने इस अधिकारं में  सात कुरलों में वल्लुवर  ने
स्पष्ट  शब्द  का प्रयोग किया  है।

एक राजा अपने सुशासन के लिए सभी कार्यों को सुचारू  रूप से करने के लिए मंत्री,सेनापति,दूत  आदि

पदाधिकारियों की नियुक्ति  करता हैं।उनकी नियुक्ति में उनके सम्बन्ध  की जानकारी मात्र काफी नहीं है;पदाधिकारियों की कुलीनता,ज्ञान,कार्य-कौशल  आदि का दृश्य ,सैंद्धांतिक  पक्ष की खोज  करके स्पष्ट निर्णय लेना है।इन सब की नियुक्ति में कोई कमी हो जाए  तो राज पद खतरे में पड  जाएगा।  

कुरल:  अरियकटरू   आसू अटरार   कन्नुम तेरियुन्ग्काल    इनमै   अरिते  वेलिरू।

 अच्छे   ग्रंथों  के ज्ञाता  में भी कोई न कोई    अज्ञानता  तिल पर भी हो सकता है।अतः  वल्लुवर महोदय चेतावनी देते  है कि  किसीको अपनाना है तो अन्वेषण-अनुशीलन  की आवश्यकता है।

तेरिन्तु   तेलितल    अर्थात  जानकर स्पष्ट  होना   शब्द   को खूब  समझकर  रत्ना कुमार  ने  उसका अंग्रेजी 

अनुवाद  किया है  "an executive"(कार्यकारी)

 even a person who is acknowledged  as being learned  may not be  completely  free of ignorance.

G.U.POPE:-

WHEN EVEN  MEN , WHO  HAVE STUDIED THE MOST DIFFICULT WORKS  AND WHO ARE  FREE FROM  FAULTS ARE EXAMINED  IT IS A RARE  THING TO FIND THEM WITHOUT  IGNORANCE.

और  खूब-जान पहचान  और छान-बीन  करके  नियुक्ति करने के बाद    उन पर भरोसा ही रखना  चाहिए;यदि राजा  उसपर शक करें  तो  आजीवन दुःख ही झेलना  पडेगा।

कुरल:  तेरान  तेलिवुम  तेलिन्थान कण ऐयुरवुम    तीरा  इदुम्बाई तरुम।

इसकी आलोचना और व्याख्या इसी अधिकारं के सातवें कुरल में  मिलती  है।

वह कुरल है----कातंमै  कंता  अरिवु  अरियार्ट तेरुतल  बेदमै  एल्लम  तरुम।

जानकर स्पष्ट  होना  एक राजा के दिल और दिमाग  को काम देने का अधिकारं है।क्रिया किस्म  जानकर,फिर एक स्पष्ट निर्णय पर पहुंचकर  कार्य रूप देना एक राजा की बडी  जिम्मेदारी होती है।

तीसरा अधिकार है एक व्यक्ति की योग्यता और क्षमता जानकार उनसे काम लेना।

  



शासकों की जिम्मेदारियाँ    असीम  होती  हैं।उनकी सेवायें सब  आम जनता  केलिए हैं। उनके कर्तव्य  निभाने के लिए  वल्लुवर ने तीन अधिकारं लिखे हैं।उनमें  तीस  कुरल हैं।
वे हैं--1.सोच-समझकर  कार्य करना,2.जानकर  स्पष्ट  होना 3.जानकर  कार्रवाई लेना।
वल्लुवर ने जानका शब्द का प्रयोग किया है।यहाँ जानने का मतलब ज़रा  गहरा है।खोजकर जानना।
जानकर कार्य करने का अर्थ है :

कुरल:  अलिवतुवुम  आवतुवुम  आकिवालिपयक्कुम   ऊतियामुम सूल्न्तु सेयल .

 एक कार्य करके पूरा  करने केलिए उस समय  का   खर्च,   उत्पत्ति , फिर  काम पूरा होने के बाद होनेवाले लाभ  आदि  तीनों  को  छान-बीन  करके समझकर ही  कार्य करना चाहिए।आमदनी कम,खर्च ज्यादा ऐसी योजना से राजा का नाम  बद नाम   हो जाएगा।
ACT ONLY  AFTER KNOWING THE BENEFITS AND COSTS OF YOUR ACTION.--RATNAKUMAR..  THINKING BEFORE ACTING.

G.U.POPE:- ACTING AFTER DUE CONSIDERATION.
LET A MAN REFLECT ON WHAT WILL BE LOST WHAT WILL  BE  ACQUIRED  AND (FROM THESE)  WHAT WILL BE HIS ULTIMATE GAIN AND ACT.

KURAL:   सेय्तक्क  अल्ला सेयाक्केदुम ;  सेय्तक्क   सेय्यामै  यानुम केदुम।

जो करने नालायक है उसे करने से सब कुछ बिगड़  जाएगा।  जो करना है ,उसे न करने से सब कुछ बिगड़ जाएगा।
जो करना है उसे करना चाहिए; जो न  करना है ,उसे छोड़ देना चाहिए।नहीं तो अर्थ विनाश के कारण जीवन अर्थहीन हो जाएगा।ज्ञान,पौरुष,बड़प्पन तीनो मिट जायेंगे और दुश्मन आसानी से पराजित कर लेगा।
 RATNA KUMAR;   failing to do what is right is as ruinous as doing  the wrong thing.

G.U.POPE:-HE WILL PERISH  WHO DOES NOT WHAT IS NOT FIT TO DO;
AND HE ALSO WILL PERISH WHO DOES NOT DO WHAT IT IS FIT TO DO.

FORT

एक  शासक  के कार्य  
दुर्ग (सुरक्षा)  अधिकार का  पहला अधिकार है देश।देश का एक अंग है दुर्ग।

कुरल:-  इरु पुनलुम   वाय न्त  मलैयुम  वरुपुनलुम   वल्लारनुम    नाट्टीर्क्कुरुपपू ।

एक देश के अंग  दुर्ग  की  अत्यंत आवश्यकता  को ध्यान में रखकर
वल्लुवर ने  "दुर्ग" संबंधी  एक  अध्याय  लिखा  है।
ज्ञान   अध्याय के दस कुरलों में ज्ञान शब्द का प्रयोग है।
वैसे  ही "दुर्ग" सम्बन्धी  दस कुरलों  में 

दुर्ग (अरण) शब्द का प्रयोग है।

इससे ही पता लगेगा  कि  "अरण" का कितना महत्त्व है।

कुरल:  उयर्वु   अकलम  तिनमै  अरुमै  इन्नान्गिन  अमैवु  अरण एन्रू उरैक्कुम नूल।

उपर्युक्त  कुरल से   वल्लुवर  महोदय की  महानता  का पता चलता  है।

इस कुरल में उन्होंने जो कुछ दुर्ग के बारे में बताया है,
वह अन्य ग्रांटों से मिला ज्ञान है।
उन्होंने अपना  न कहकर अन्य ग्रन्थों   के शब्द का प्रयोग किया है।
उनकी महानता का द्योधक  है यह कुरल।

दुर्ग  की चौडाई और ऊंचाई ,
पत्थर और ईंटों से बनी दीवार  दुश्मन  के लिए
 प्रवेश करना  दुश्वार है।
किले की टिकाऊ  अति मज़बूत  है,
उसे  कोई औजार तोड़ नहीं सकता।
इस कुरल  में  तमिल के प्रसिद्ध   ग्रन्थ  कलिथथोकै ,
जीवक चिन्तामनी ,पुरानानूरू, कंबरामायण
शिलाप्पधिकरम आदि  में वर्णित  दुर्गों -सा
वल्लुवर ने किले  की  बनावट का जिक्र किया है।

तमिल के अति प्राचीन कुरल में
जो कुछ  किले के बारे में उल्लिखित है,
उसके बाद में रचित  ग्रंथों में 
उसी प्रकार का उल्लेख
 वल्लुवर  की कीर्ति पर चार चाँद लगा देते हैं।

भारतीदासन  ने कहा है  कि
वल्लुवर ने ईख  का रस निचोड़कर दिया है।
उसे  पीने केलिए भी  कष्ट का अनुभव 
करना  उचित है  क्या?

दुर्ग  सम्बन्धी   अंग्रेजी अनुवाद:-a fort must be tall  broad  and unique to ward off enemies.
G.U.POPE:-
THE LEARNED SAY THAT A FORTRESS  IS AN ENCLOSURE HAVING  THESE FOUR VIZ; BREADTH,HEIGHT,STRENGTH  AND IN ACCESSIBILITY..

एक दुर्ग की पक्की इमारत की सुरक्षा  मात्र काफी  नहीं है;
पर्याप्त  विश्वसनीय लोगों की भी ज़रुरत  है।
जो वीर  राजा के हैं ,वे  लोहे के दुर्ग  के समान
 राजा की रक्षा  के लिए दृढ़  रहना है तो
उनके दिल में राजा के प्रति प्यार होना चाहिए।
 इस केलिए  राजा  का व्यवहार
देशप्रेम से  भरे रहने की जरूरत है।
किले के अन्दर  लोगों के लिए आवश्यक  खाद्य -पदार्थ ,
सुवीरों की भीड़,मान-मर्यादा  की रक्षा का जोश  आदि होने  से  ही
किले की रक्षा  कर सकते हैं।
तभी वह किला सुरक्षित कहा जा सकता है।
अंग्रेजी अनुवाद:- A  fort must be self contained with  all essentials  and safe-guarded by a strong garrison.
G.U.POP:-  A FORT IS THAT WHICH HAS ALL (NEEDFUL) THINGS AND EXCELLENT HEROES THAT CAN HELP IT AGAINST DESTRUCTION  (BY FOES).





VINAMRATA

"
                                                                                     नम्रता "

   नम्रता   और    कुलीनता  :-

    कुरल   : आट्रूवार   आट्रल  पनितल;   अतु  सान्रोर  माटरारै   माट्रुम  पडै ।
             
                एल्लोरुक्कुम नन्राम पनितल ; अवरुल्लुम   सेल्वर्क्के   सेलवम  तकैत्तु .

                   
उपर्युक्त   दोनों कुरल  तमिल में तुलना करने पर साहित्यानंद  मिलेगा। जो विनम्र है,वे दूसरों के गुणों को

बदल देंगे।  सब   के  लिए  आवश्यक गुण  ही विनम्रता  है। यह विनम्रता  धान्यों का धनी है।दुश्मनों को  भी

दोस्ती  में  परिवरतित  करने की शक्ति  विनम्रता में हैं।  विनम्रता असंभव  को संभव बना देगा।

अंग्रेजी  अनुवाद :_-   HUMILITY  IS A CHARACTERISTIC  OF ALL ABLE   PEOPLE  IT IS ALSO
A NOBLE  MEANS  TO TRANSFORM ENMITY INTO FRIENDSHIP.

G.U.POPE:--   STOOPING (TO INFERIORS )  IS THE STRENGTH  OF THOSE  WHO CAN ACCOMPLISH  (AN UNDERTAKING )  AND THAT  IS  THE WEAPON WITH WHICH THE GREAT  AVERT    THEIR  FOES.

विनम्रता  और कुलीनता  के सम्बन्ध  बताने  का बाद  वल्लुवर ने  दरिद्रता  और कुलीनता  के बारे में कहते

 हैं।  जिसमें  कुलीनता  होती है ,उसको  धन का अभाव नहीं है  और धन  का भी।

कुरल:-इन्मैयोरुवर्कू  इलिवु  अन्रू;  सल्बू  एनुम  तिनमै  उन्डाकप्पेरिन।

राजा  के   कुलीन होने  पर  ,उसको  धन,ज्ञान,और  गुण  का अभाव  नहीं  होगा।

उत्कृष्ट  लोगों का बल  यही  है कि  दरिद्रता उसका अपराध नहीं  होगा।गरीबी में भी वह अपना आदर्श निभाएगा।

अंग्रेजी  अनुवाद:POVERTY  IS NO DISGRACE TO A NOBLE PERSON.

G.U.POPE;--POVERTY IS NO DISGRACE TO ONE WHO ABOUNDS IN GOOD QUALITIES.















Thursday, July 19, 2012

samay

       एक बढ़िया  प्रशासक को समय की पहचान आवश्यक  है।स्थान पहचान से काल-पहचान अति आवश्यक  है।  अंग्रेजी में समय-ज्ञान  को right  timing, KNOWING THE FITTING TIME   कहते हैं।

तिरुवल्लुवर  कहते  हैं   कि   अच्छे  औजारों के साथ समय  पहचानकर  एक कार्य शुरू  करें तो  कार्य जो भी हो ,पूरा कर  सकते हैं।  क्या नहीं?

कुरल;-अरुविनै   एन्ब  उलवो करुवियान ,  कालम  अरिन्तु  सेयिन?

उनहोंने सवाल किया है?   जवाब तो नहीं  शब्द  है। और कोई जवाब नहीं है।

इस कुरल का अंग्रेजी  अनुवाद  है----
NO TASK IS IMPOSSIBLE  FOR  ONE  WHO  HAS THE  RIGHT  MEANS   AND CHOOSES  THE  MOST APPROPRIATE   TIME. इस अनुवाद में 'MOST APPROPRIATE  TIME 'शब्द पर ध्यान देना चाहिए।
जी।यू।पोप  : IS THERE ANYTHING DIFFICULT  FOR HIM TO DO ,WHO ACTS WITH (THE RIGHT) INSTRUMENT  AT RIGHT TIME?

हम तो छोटी -छोटी  बातो के लिए भी दुखी होते हैं  कि यह हम नहीं  कर सके ;लेकिन संसार को ही अपने अधिकार में लाने की योग्यता  रखनेवाले एक व्यक्ति का वल्लुवर परिचित कराते  हैं;वह आदमी निष्कलंकित
और निश्चित  दृढ़ता  से उचित काल की प्रतीक्षा  में सहशील होकर रहनेवाला है।

  कुरल:    "कालम  करुति  इरुप्पवर   कलंकातु   ग्यालम  करुतुपवर।

राजा के छे प्रकार  की क्रियाएं  हैं:--
1.मित्र बनाना,  2. विरोधी  बनाना   3.   अलग करना  4.बढ़ाना,5.  आगे बढना  6.  प्रतीक्षा  करना।
उनकी प्रतीक्षा  समय की है। उनका विशवास है   , समय जो नहीं करता,वह संसार नहीं कर सकता।

अंग्रेजी  अनुवाद: NO  ONE WHO  HAS  AN EXTRA ORDINARY  PLAN  WILL  WAIT  PATIENTLY  WILL THE  TIME  IS APPROPRIATE  TO  IMPLEMENT  IT.

G.U.POE:-   THEY  WHO THOUGHTFULLY CONSIDER  AND WAIT  FOR THE RIGHT TIME FOR ACTION ,MAY SUCCESSFULLY MEDIATE THE CONQUEST  OF THE WORLD.

जीवन की सूक्ष्मता ,टेढ़े-मेढे  रास्ते,उस पर जीवन चलाने का मार्ग  सिवा वल्लुवर के और कौन सिखा सकते है?

दुश्मन के विरुद्ध  कब शान्ति का व्यवहार करना चाहिए?कब उसपर क्रोधावेश  में   आक्रमण  सकते  हैं?

दैनिक जीवन में उनका साथ कैसे देना है?  इन सबका पथ -प्रदर्शक  वल्लुवर ही हैं।

तुम दुश्मन के कार्यों को कब तक सहते  रहोगे?  उनके अंतिम काल तक।उसके  काल आते ही, उसका  विनाश
 तत्काल  हो जाएगा।

कुरल;-  चेरू नरैक  कानिन   सुमक्क;  इरुवरै   कानीं किलक्काम   तलै .
 यहाँ   "सुमक्क" मतलब है  भार  ढोना ; शत्रु  की प्रशंसा भी एक तरह  का भार  ढोना  है।यह भार ढोना
काल की प्रतीक्षा में अपवाद ही है।

रत्नकुमार:-  A WEAKER PERSON  MUST  WAIT TILL  HIS ENEMY LOSES  THE  POWER  FOR  THAT  IS THE  RIGHT  MOMENT FOR HIM  TO ACT.
G.U.POPE:-
  IT  ONE MEETS  HIS ENEMY LET HIM  SHOW  HIM  ALL RESPECT UNTIL THE  TIME  FOR HIS DESTRUCTION  IS COME;  WHEN  THAT  IS COME  HIS HEAD  WILL HE EASILY  BROUGHT LOW.

एक  राजा  या  एक  नेता  के लिए  आवश्यक गुण है  उत्कृष्टता।  वह गुण होने पर स्वर्ण फूल का सुवास हो जाएगा।
एक शासक  को सबसे बड़ा बल है उत्कुष्टता।
कुलीनता  का  शासक  उत्कृष्टता ;इस अधिकारं में  वल्लुवर ने "कुलीनता "शब्द  को पाँच  कुरालों में प्रयोग किया है।
वल्लुवर   की स्तुति  में लिखा है  भारती  दासन   ने :-


वल्लुवर के कुरल ,किसान और राजा , दोनों  एक मनोभाव से साथ जीने का मार्गदर्शक ग्रन्थ  है।


कुरल:-


कोल्ला नलत्ततु   नोनमै ; पिरर   तीमै   सोल्ला  नलत्ततू   साल्बू।


उत्कृष्टता   के  लक्षण  इस कुरल  में स्पस्ट  हो  जाता  है।   तपस्या  से बढ़िया  है  कुलीनता।
अनुवादक इसे "NOBILITY"  कहते  हैं।


A NOBLE PERSON WILL NOT GLOAT OVER ANOTHER'S WEAKNESS JUST  LIKE  AN  ASCETIC   WILL  NOT  KILL.


पोप  उत्कृष्टता  को "PERFECTNESS " कहते हैं।
G.YOU.POPE:-
   PENANCE  CONSISTS IN THE  GOODNESS THAT  KILLS  NOT  AND  PERCEPTION IN THE GOODNESS  THAT  TELLS  NOT  OTHERS  FAULTS.







  








पतित।-2

वल्लुवर  क्रोधावेश  में कहते  हैं   कि   पतित

 ईख  के सामान  कुचला जाने  योग्य  होते हैं।

बड़े लोग दरिद्र  की माँग  तरंत  पूरी करेंगे।

 नीच या पतित ईख  के सामान कुचलने  पर ही अपनी वस्तु  देंगे।

कुरल;-- सोल्लपयन्पदुओर  चान्रोर;करुम्बू  पोल  कोल्लाप्पयांपदुम  कील।

इंग्लिश अनुवाद:--mature people do honorable  deeds based on reasoning  while the degenerate will do so only it they are physically intimated like crushing   the  sugarcane  to extract the juice.

G.U.POPE:--THE GREAT BESTOW (THEIR ALMS)AS SOON AS THEY ARE  INFORMED;BUT THE MEAN ,LIKE THE SUGARCANE ONLY  WHEN THEY ARE TORTURED TO DEATH.

वल्लुवर   का  पक्का   निर्णय  है  कि  पतित

 नीच अपनी आर्थिक  मांग या  अपने पद की सुरक्षा के लिए

अपने को ही बेच  देंगे।

प्राचीन विवेचन है कि  पतित अपने दुःख से बचने  के लिए

अपनी संतान,अपनी बीबी और अपने को भी बेच देंगे।

 यही  पतितों का बड़ा अत्याचार है।

RATNA KUMAR:-  THE DEGENERATE ARE GOOD FOR  NOTHING  THEY CAN BE  BOUGHT EASILY.

G.U.POPE:--  THE BASE WILL HASTEN TO SELL THEMSELVES AS SOON AS A  CALAMITY HAS BE  FALLEN  THEM.   FOR  WHAT ELSE ARE THEY FITTED./???




पतित।

गुप्त्चर    के बाद   का अधिकारं है  वल्लुवर  का "कयमै " अर्थात  नीचता  या पतित।

पतितों के बारे में वल्लुवर कहते समय  पंचम -पातक अपराध के दंड-निर्णायक  हैं  राजा।

उस राजा को भी न डरनेवाला है  पतित व्यक्ति।

वह मनुष्यों में अंतिम जाती का व्यक्ति है।

अर्थ  भाग के अंतिम कोने में वल्ल्वर ने पतितों के बारे में बताया है।

वल्लुवर का कहना  है कि  वहीं पतित है जो अपनी सुनी बात को

सारे शहर  भर में ढिंढोरा पीटता रहता है।

 कुरल;-  अरे परे यन्नर   कयवर    तान  केट्ट   मारे पिरार्क्कुय्तुरैक्क लान।

रत्नकुमार: "THE DEGENERATE"

A DEGENERATE IS LIKE A DRUM-HE AMPLIFIES WHAT HE RECEIVES FOR HE CANNOT KEEP A SECRET.

G.U.POPE;- BASENESS;

THE  BASE ARE LIKE A DRUM THAT IS BEATEN FOR THEY UNBURDEN TO OTHERS THE SECRETS THEY HAVE HEARD.

पतितों के मुख  को किसीने नगाड़ा  कहा है तो किसीने  ढोल।

ऐसे लोगों को  दंड  देना   शासक का प्रथम -पेशा है।




RULER15

kural:-  काल  आल्कलरिल  नरी  अडुम  कण  अनजा  वेलाल मुकत्त  कलिरू।
 अंग्रजी  अनुवाद:- A  STRONG  AND COURAGEOUS  ELEPHANT  WILL BECOME AN EASY PREY TO A FOX  WHEN  IT IS IN A MARSHLAND.

सब से बड़ा,सब से अधिक बलवान नर-हाथी  छोटे सियार के लिए आहार  बन गया। इससे क्षेत्र -पहचान का मुख्यत्व  मालूम  होता है।
G.U.POPE;--A FOX CAN KILL A FEARLESS, WARRIOR  FACED ELEPHANT  IF IT GO IN TO MUD IN WHICH ITS LEGS IN DOWN.

आगे  राजा और शासक  के लिए अत्यंत  आवश्यक   है  जासूस;  जासूस का काम है  गुप्त रूप में किसी बात को जानकर -समझकर  कहनेवाला।(KNOWING SECRETLY BY ESPIONAGE).हिदी शब्द  गुप्तचर  है।
राजा  अपने देश में और विदेश  में  अपने दोस्त,दुश्मन और तटस्थ  (जो दुश्मन भी नहीं और दोस्त भी  नहीं)
सब के बारे में जान्ने-समझने के लिए  और वहां होनेवाली घटनाएँ ,वेदेष के सैनिक और आर्थिक बल का पता लगाने  गुत्चार की नियुक्ति करता है।गुप्त रूप में विषयों को चरकर बतानेवाला है वह।
वह छद्म  वेश में विदेशी राजा के दुर्ग  में भी प्रवेश कर भेद  जान्ने का कौशल  रखनेवाला है।उसकी चाल  किसीको किसी प्रकार का संदेह उत्पन्न  न करेगा।यदि वह  दुश्मन  के  हाथ पड  गया तो भी भूलकर भी सत्य  प्रकट नहीं करेगा। वह कठोर दंड भोगकर भी विदेशी खबरों को तुरंत  अपने राजा से गुप्त रूप में  कहता रहेगा।
इस काम को कौशल पूर्वक  करने में वह जासूस या गुप्तचर पटु  होता है।
जासूसी  एक शासन का अत्यंत आवश्यक  काम है।आज कल इसे "खुफिया पुलिस विभाग" कहते हैं।
जो गुत्चर   होते हैं ,उनको स्थान विशेष  की पहचान  अत्यंत महत्व पूर्ण  बात है। एक शासक को  सब कुछ ,सब कालों में तुरत  जानना  एक धंधा है।
तिरुक्कुरल :--

एल्लार्क्कुम  एल्लाम निकल्बवै  एग्यांरुम  वल्लारितल   वेन्दन  तोलिल।

अनुवाद: SECRET AGENT. ONE OF THE ESSENTIAL DUTIES OF A RULER IS TO GATHER TIMELY INFORMATION ON FRIENDS AS WELL AS FOES.

G.U.POPE:-  IT IS THE DUTY OF A KING TO KNOW QUICKLY (BY A SPY) WHAT ALL HAPPENS DAILY AMONGST ALL MEN.

स्थान -पहचान अधिकार  में दुश्मनों को अप्रशंसक (निन्दक)कहनेवाले  वल्लुवर गुत्चार अधिकारं  में नापसंद वाले  का संबोधन किया है शत्रु को।गुप्तचर का काम है  पसंद-नापसंद  लोगों के बारे में तट स्थता  पूर्वक विषय या घटना जानकर   बताना।गुप्तचर के काम को वल्लुवर ने अनुसंधान  का काम  कहा है।दो कुरालों में अनुसंधान शब्द का ही प्रयोग किया है।

गुट चार का कर्तव्य  तीनों लोगों का अनुसंधान करना;---1.रिश्तेदार,2.दुश्मन 3.नौकर-चाकर।गुत्चार की खोज में कोई नहीं बच  सकता।
A SECRET AGENT IS ONE WHO CAN INVESTIGATE WITHOUT BIAS,FOES AS WELL AS FRIENDS  OF THE RULER.

G.U.POPE;--
HE IS A SPY WHO WATCHES  ALL MEN TO WIT THOSE WHO ARE IN THE KING'S EMPLOYMENT HIS RELATIVES AND HIS ENEMIES.

वल्लुवर ने इस कुरल  के अधिकारं  का शीर्षक  "ओट्रादल "रखा है।इसका मतलंब  अति सूक्ष्म है।ओट्रू  का अर्थ

है साथ देकर ; कभी-कभी गुत्चार शत्रु  का साथी बनकर गलत सन्देश दे सकता है।अतः एक ही गुत्चार की बात न स्वीकार करके कई गुप्तचरों के सन्देश को  अलह-अलग गुप्त रूप में  सुनकर,फिर वास्तविकता पहचानकर ही विशवास करना चाहिए। यही गुत्चरों पर का  प्रशासन   है।

कुरल:-"-ओट्रू   ओट्रित  ताँता पोरुलैयुम  मात्रुमोर ओट्रिनाल  ओत्रिक कोलल।"

अनुवाद:-
रत्नकुमार :-  THE INFORMATION PROVIDED BY A SECRET AGENT WILL BE GOOD ONLY IF IT CAN BE CONFIRMED BY A SECOND INDEPENDENT AGENT.
G.U.POPE;--

IN ALL THAT  A KING THINKS OF LET HIM THINK OF HIS GREATNESS;  AND SHOULD BE THRUST FROM HIM BY FATE IT WILL HAVE THE NATURE OF NOT BEING THRUST FROM HIM.






Wednesday, July 18, 2012

SHAASAK-14

उपर्युक्त  दोनों अनुवादक  "even" शब्द का जो प्रयोग किया है,वह ध्यान देने योग्य है।पोप ने अपने अनुवाद में "field " शब्द  का प्रयोग किया है।स्थान  के लिए "field " का प्रयोग दुश्मनों के विरुद्ध लड़ने की रण -भूमि के अर्थ में भी ले सकते है।

कोई हम से प्रश्न करता है  कि  क्या दुर्बल  सबल से लड़कर विजय प्राप्त कर सकता है?
तुरन हम कहेंगे  कि  नहीं जीत सकता।
यही सवाल वल्लुवर से करें तो वे कहते  जरूर जीत सकता है।कैसे?स्थान  देखकर लड़ने से जीत सकता है।केवल सैनिक बल से जीतना असंभव है।
सिरुपडैयान  सेल्लिडम   सेरिन  उरुपडैयान   ऊक्कम अलिन्तु  विडुम।

भारत 1841 में पहले आफ्कान के युद्ध में  अपने सैनिक बल पर  विशवास रखकर लड़ा था।उसने स्थान पर अर्थात युद्ध क्षेत्र  पर  ध्यान नहीं दिया ;परिणामस्वरूप  हार गया।तमाम  भारतीय सेना कैबर दर्रे में बन्दूक  की गोलियों का शिकार होगई ;इतिहास के पन्नों को पलटने पर यह सत्य-कथा मालूम होगी।दुश्मन लोग स्थान -पहचान को जाते थे।हमने  तो केवल सैनिक बल पर भरोसा रखा;स्थान पर विशेष ध्यान नहीं दिया।हम हार गए।

एक विद्वान्  ने  स्थान-पहचान  को "right place 'कहा।
even the strongest army will be defeated  by the weakest if the place of confrontation is not to their advantage.

G.U.POPE:---THE POWER OF ONE WHO HAS A LARGE ARMY WILL PERISH IF HE GOES IN TO GROUND WHERE ONLY SMALL  ARMY CAN ACT.

वल्लुवर स्थान पहचान को अधिक महत्व्  समझाने के लिए दूसरा उदाहरण देते हैं।

मैदान में जिस हाथी ने सैनिकों को गेंद -जैसे उठाकर फेंका था,वाहे हाथी कीचड में फँस गया तो साधारण सियारों ने उसे मार गिराया।


Shasak 13

सूक्ष्म से सूक्ष्म  विषयों को भी देने वाले है तिरुवल्लुवर.  तिरुवल्लुवर के बारे मैं पेरुन्तोके   के लेखक ने कहा है कि धर्मं, अर्थ, काम आदि. तीन भाग को पढने के बाद और कोई   ग्रन्थ  पढने  की जरूरत नहीं हैं। वह तो ज्ञान -पुष्टि दे देता है।तमिल में जो लिखा गया है ,उसका अर्थ कोष्टक में दिया है।भाषानुवाद में मूल-भाषा जैसे रसास्वादन करना असंभव ही है।

(भाग  को तमिल में "पाल " कहते हैं।'पाल ' शब्द  का दूसरा  अर्थ  है दूध।तिरुक्कुरल के तीन भाग को तमिल में मुप्पाल  कहतेहैं;  यहाँ  कवि  कहते हैं कि  तिरुक्कुरल  के मुप्पाल  को पीने के बाद  माँ  के मुलैप्पाल (माँ के स्तन दूध)  पीने की जरूरत नहीं है।)माँ  का दूध निर्मल है।वही प्राण दाता है;कवि
के लिए उपमान के लिए स्तन दूध ही मिला है;क्या वे पागल हैं।ऐसी बात नहीं है।वे तिरुक्कुरल के अध्ययन  के बाद ,उस ग्रन्थ के गंभीर विषय  के बाद तुलना  या उपमान के लिए माँ का स्तन-दूध ही मिला है।


तिरुवल्लुवर ने   दुश्मन के लिए  एक  नए शब्द  दिया है।वह  शब्द  हैं  अप्रशंसक (निंदक).
 जो हमको  नहीं चाहते,वे हमको मानेंगे नहीं।अतः हमारे विरोधी  को वे  अति सुन्दरता से अप्रशंसक  कहते  हैं।
तिरुक्कुरल  के समय के अधिकांश  ग्रन्थ तिरुक्कुरल के आलोचनात्मक ग्रंथ ही रहे।वे मुक्तक भले ही हो या तिरुवल्लुवर माला हो।वे सब ग्रन्थ वल्लुवर की स्तुति ही कर रहे हैं।शहद  को मीठा  ही  कह सकते  हैं।

वल्लुवर ने  जो 'स्थान" शब्द का उल्लेख किया है ,उसे रत्नकुमार ने advantaged position  कहा है।
even the weak will defeat the powerful if they attach from an advantaged position.

g.u.pope;-
EVEN  THE POWERLESS WILL BECOME  POWERFUL AND CONQUER IF THEY SELECT A PROPER FIELD OF ACTION AND GUARD THEMSELVES,WHILE THEY MAKE WAR ON THEIR ENEMIES.

SHAASAK 12

संसार   के  लोग  कहाँ    ठहरेंगे?  इस सवाल  का  जवाब  वल्लुवर  महोदय  ने   दिया  है।

 जो हमेशा दूसरों   पर  इल्जाम  लगाते  रहते हैं,
उनकी  बातें   सहकर,
वे  अपने हद  से  ज्यादा कहने  पर

निर्भय बोलनेवाले  साहसी मंत्री  की बातें सुननेवाले

राजा के  शासन अधीन   संसार  ठहरेगा।

"सेविकैप्पच   चोर्पोरुक्कुम   पंणपुडै वेंदन   कविकैक  कील्त्तंगु  मुलकू।"

रत्नकुमार:--the people will respect a  ruler who tolerate critics.

G.U.POPE:  THE WHOLE WORLD WILL  DWELL UNDER  THE  UMBERELLA OF  THE  KING  ,WHO CAN BEAR  THAT EMBITTER  THE YEAR.

क्या  एक  राजा  के  लिए  राजा  के   गुण  मात्र   काफी  है?

 वल्लुवर  के  लिए  काफी  नहीं  है।

क्षेत्र  की  जानकारी  भी   आवश्यक  है।

 पक्के  स्थान को  पकड़ लें  तो समय  के  साथ

 अन्य   सब  बातों  को  पकड़  सकते  हैं।

 वह  क्षेत्र  भी  हो  सकता  है   या दुर्ग .

अपनी ताकत और दुशमन  की ताकत  जानना भी  आवश्यक  है।
  साथ  ही  समय  का  निर्धारण  भी  आवश्यक  है।

 इनके  जैसे  ही   स्थान  की  ज़रुरत  है।

"आट्रारुम   आट्री    अडुप  इडन   अरिन्तु     पोट्रार   कण  पोटरी   चेयीं।"

हम से   जो   भिन्न  हैं,उनको  हम दुश्मन  जानते  हैं;

और  अधिक सोचें  तो वह विरोधी  लगेगा।


SHAASAK11

इरैमाट्सी -तमिल  शब्द है,जिसका अर्थ है ,सर्वत्र विद्यमान  शासक की महत्ता। ईश्वर  ही सब  जगह  विद्यमान   होता  है।तमिल में  इरैमाटसी  क्रियात्मक  सज्ञा  है;यह नाम   ईश्वर -तुल्य  राजा  केलिए राजतन्त्र   शासन -काल   में  उपयोग  किया जाता था।

राजा   के लिए प्रथम  आवश्यक  गुण  विलम्ब  न  करना।  द्वितीय  गुण  है शिक्षा; उसके   बाद   साहस।
धर्म,अर्थ,काम  आदि तीनों   के रचयिता  वल्लुवर  ने राजा के आवश्यक  तीन  गुणों को शूल,धनुष और कवच बताये  हैं।

तून्गामै ,कलवी,  तुनिवुडमै  इम्मून्रुम  नींगा  निलन  आल्पवर्क्कू।(कुरल )

दूसरे   शब्दों  में  इन  तीनों  को  निरालासी ,शिक्षा  और  पौरुष   कह  सकते  हैं।

अंग्रेजी  में  इरैमाट सी   शब्द   को  "the ruler"  कहकर  अनुवाद  हुआ  है। तब इस कुरल का अंग्रेजी अनुवाद दिया  गया  है ---knowledge,courage and ability to do the  right things at  right  times are the three important qualities  that determine  the  greatness  of a ruler.

g.u. pope:-THESE  THREE  THINGS  VIZ  VIGILANCE,LEARNING  AND BRAVERY SHOULD NEVER BE WANTING IN THE RULER OF A COUNTRY.
यह  .जी।यू।पोप  का संक्षिप्त  अनुवाद  है। 

राजा  के शरीर  में  वीरता  का रक्त -संचार  होता रहता है।उसमें  कायरता  का प्रदूषण  मिलने  देने  से  बचना चाहिए।उसको भूलना  नहीं  चाहिए  कि  'शरीर 'वीर  है  तो "प्राण"मान  है।वल्लुवर का यह  कुरल  देखिये:-
अरन  इलुक्कातु  अल्लवै  नीक्की  मरन इलुक्का    मानम  उडैयतु   अरसु।

वल्लुवर के उपर्युक्त  राजा   के   गुणों  को  कवि  मरुतैलानागानार  ने  पांडियन  इलवंतिकै  पल्लित्तुन्जिय
नन्मारण  को नीति की हिक्षा देने के लिए  लिखा है। (
(पुरम 55 कविता।)

अरनेरी  मुतट्रे   अरसिन  कोटरम    अतनाल   तम्रेनक कोल कोडातु
पिररेनक  गुणन्कोल्लातु   ग्नायित्रेन्न  वेंनिर लान्मै यूँ
तिन्गलेन्न   तन पेरुन्चायालुम
वानत्तन्न   वन्मैयु  मूंरुम
उडैयेयाकी --
इसका क अनुवाद है--JUSTICE,BRAVERY,OF PRIDE AND THE ABILITY  TO WEED OUT INJUSTICE   DESCRIBE A GOOD RULER.
G.U.POPE;--HE IS A KING  WHO WITH MANLY MODESTY,SWERVES NOT FROM VIRTUE
AND REFRAINS FROM VICE.




  
वल्लुवर  ने अध्यवसाय  के महत्व्  पर एक अधिकार  लिखा है।  क्यों?

कुछ  लोगों का  कहना है  कि मेरा भाग्य ठीक नहीं है;

मैं दुःख को ही   अपने  जीवन में भोग  रहा हूँ।

 लेकिन वे अपने दुःख दूर करने के प्रयत्न  में नहीं लगते।

उनसे कोई  पूछेंगे   तो यहीं कहेगा   कि  मैंने कोई प्रयत्न नहीं किया .

वैसे  लोगों के लिए ही  वल्लुवर ने   "लगातार प्रयत्न "नामक अधिकार  लिखा है।

सुअवसर न मिलने पर भी ,

हतोत्साहित होकर बैठना ठीक नहीं है;

 हमें अपने दुःख पहचानकर
  उसे दूर करने के प्रयत्न  में लगना चाहिए।

वैसा प्रयत्न  न करना ही व्यक्ति का दोष  होता है।

किस्मत या सिरों रेखा  कहकर आरोप लगाना उचित नहीं है।

सब कुछ प्रकृति  ही   दे देता है  तो मनुष्य जन्म की जरूरत ही  क्यों? 

किसलिए?

"पोरी इनमै  यार्क्कुम  पलियनरु  अरिवु अरिन्तु   आल्विने  इनमै  पली।"

अंग्रेजी  अनुवाद :a person's physical deformity is not the real flaw  unlike the lack of willingness to persevere in seeking knowledge.
 g.u.pope;- adverse fate.
ADVERSE FATE IS NO DISGRACE TO ANYONE;TO BE WITHOUT EXERTION AND WITHOUT KNOWING WHAT SHOULD BE KNOWN IS GRACE.

"ARISTOCRACY "  शरीफों  का सुशासन था;

वही  आज लोकतंत्र बन गया। 
एक राजनीति संस्था  या दल स्थायी रूप में रहना है तो 

उस सरकार के सभी भागों में 

सरकारी अधिकारों की सुरक्षा की चाह होनी चाहिए।

      प्लेटो का सिद्धांत  है   कि लोकतंत्र  सब से नीच   है; लेकिन नीचताओं    में बढ़िया है।  

इस लोकतंत्र  सरकार बनाकर ही  हम जी रहे हैं।

सिद्धांत  या अवधारणा  जो भी हो शासकों को देशवासियों की भलाई के लिए शासन करना चाहिए।

जो भी करें ,
सही ढंग से करना चाहिए।

यही तिरुवल्लुवर महाशय की  शुभेच्छा   थी।

तिरुवल्लुवर ने इसी उद्देश्य  को लेकर ही "अर्थ'भाग लिखा था।

 वही सरकार  है,जो धर्म ,काम ,उपभोग वस्तू जीने केलिए 

आवास  आदि प्रदान करें;

और सुखी जीवन बिताने सभी प्रकार से साथ दें।

सरकार का मतलब ही सुरक्षा  होता है।अच्छी  सरकार के लक्षण भी यही है.

वल्लुवर के कुरल का पहला अधिकारं राजनीति के सम्बन्ध में सुशासन-सम्बन्धी ही है।

शासन करनेवाले नेता की श्रेष्ठता  है, ज्ञान-कौशल,सद्गुण,सद्कर्म आदि.










SHAASAK-10

वल्लुवर  मंत्री  को  व्यवहारिक  ज्ञान   के  बारे  में  कहते  हैं:-

सेयर्के  अरिन्तक  कडैत्तुम  उलकत्तु   इयारकै  अरिन्तु  सेयल .

कृत्रिम  ज्ञान सिद्धान्तिक  ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी प्राकृतिक ज्ञान का ही एक मंत्री को प्रयोग करना चाहिए।

इसकी व्याख्या  में वल्लुवर खुद  कहते हैं  कि

उलकत्तोडोट ट  ओलुकल  पलकट्रुंग  कल्ला रारिविलातार .

संसार के व्यवहार के अनुसार जो व्यवहार  नहीं करता ,वह शिक्षित  होने पर भी अशिक्षित ही  होता है।

ratnakumar:- A MINISTER,EVEN IF HE HAS THE KNOWLEDGE TO PERFORM MUST BE PRACTICAL.
G.U.POP:-THOUGH YOU ARE ACQUAINTED WITH THE THEORETICAL METHODS OF PERFORMING AN ACT UNDERSTAND THE WAYS OF THE WORLD AND ACT ACCORDINGLY.

वल्लुवर  महोदय कहते हैं कि

 एक मंत्री गलती  करता है  या

 एक अयोग्य अपराधी को पास रखने से
एक दुश्मन  को पास रखने में  भला हो  सकता है।

एक  नहीं, सत्तर करोड़ दुश्मनों को पास रख लो;

लेकिन एक अयोग्य  की नियुक्ति ,सर्वनाश की नियुक्ति।

तुला  के एक ओर  योग्य मंत्री बिठाओ ;

दूसरी ओर सत्तर करोड़ दुश्मन बिठाओ;

एक बुरे विचारवाले मंत्री सत्तर करोड़ दुश्मन के बराबर होगा।

एक आतंरिक दुश्मन हैं;

बाह्य  दुश्मन सत्तर करोड़;

दोनों से हम लडें  तो आतंरिक शत्रु मंत्री  विजयी होगा।

इसलिए राजा का पहला  काम है

बुरे मंत्री को पद से हटा देना।

तिरुक्कुरल देखिये:
पलुतु एन्नुम मंतिरिइन पक्कात्तुल तेव्वोर  एलुपतु कोडी उरुम।

इस अधिकारं का शीर्षक  वल्लुवर ने "अमैच्चु " तमिल शब्द रखा था।

पर बुरे मंत्री के ऊपर के क्रोधावेश  के कारण कुरल  में  "मंत्री " संस्कृत  शब्द का प्रयोग  कर दिया।

गुण के शिखर  के वल्लुवर के मुख से क्रोध के कारण तमिल शब्द  सूझा नहीं हैं।


रत्नकुमार:-THE HYPOCRISY OF A MINISTER IS MORE DANGEROUS TO THE RULER THAN THE COMBINED HOSTILITY  OF MANY ENEMIES FROM OUTSIDE.
G.U.POPE:-
FAR  BETTER ARE SEVENTY CRORES OF ENEMIES FOR A KING THAN A MINISTER AT HIS SIDE WHO INTENDS HIS RUIN.

राजा हो या मंत्री हो या  प्रजा

  तीनों को अध्यवसाय की ज़रुरत है।

जो मनुष्य अपने प्रयत्न को छोड़ देता है,

उसे संसार छोड़ देगा।

वल्लुवर   का तमिल कुरल:-

विनैक्कन  विने केदल ओम्बल विनैक्कुरै  थीर्न्तारिन  तीर्न्दंरू उलगु।

मतलब है अपने कार्य के प्रयत्न को बीच में ही छोड़ना ठीक  नहीं है;
लगातार कोशिश करके अपने काम को पूर्ण करना चाहिए।
RATNA KUMAAR;-AS THE WORLD WILL GIVE UP ON A PERSON WHO LACKS THE WILL POWER TO PERSEVERE ONE SHOULD GET RID OF THIS NEGATIVE ATTITUDE.

G.U.POPE;-TAKE CARE  NOT TO  GIVE UP EXERTION  IN THE  MIDST OF A WORK;THE WORLD WILL ABANDON THOSE THEIR UNFINISHED WORK..


Tuesday, July 17, 2012

SHAASAK-9


तिरुवल्लुवर इस कुरल में जो "कुड़ी "शब्द का प्रयोग किया है,उसे विद्वान "किसान " कहते हैं।
अव्वैयार  का मुक्त-गीत का भी उल्लख करते हैं।

नूलेनिलो कोल्सायुम नुन्दमरेल वेंचमराम
कोलेनिलो  वानगे  कुडीसायुम---नूलावान
मंत्रियुमावान  वलिक्कुत्तुनैयावान अन्तअरसे  अरसु।

इसमें  कवयित्री  ने कहा है कि  बिना सलाह के राजा का पतन होगा;उनका शासन ठीक नहीं है तो किसान /प्रजा का कष्ट  होगा। वही सरकार  सरकार है जो अच्छी सलाह दें;मार्ग का सहायक बने;मंत्री बने।

ratna kumaar :A MINISTER IS ONE WHO IS BRAVE,ABLE TO TAKE CARE OF THE PEOPLE,EAGER TO LEARN ETHICS OF POLITICS,ABLE TO DO RIGHT THINGS AND IS WILLING TO PERSEVERE.  यह रत्नकुमार  का हिंदी अनुवाद है  तिरुक्कुरल  का।

जी।यू।पोप  का  अनुवाद:----

THE  MINISTER  IS ONE WHO IS ADDITION  TO THE AFORESAID FIVE THINGS EXCELS IN THE POSSESSION OF FIRMNESS,PROTECTION OF SUBJECTS,CLEARNESS BY LEARNING AND PERSEVERANCE. पोप  ने इसका शीर्षक भी दिया है:-THE OFFICE OF MINISTER OF STATE.
मंत्री  के बारे में बोलते समय  मंत्री  के स्वभाव,गुण,कार्य आदि पर भी ध्यान देना चाहिए।उसको पंचेद्रियों का नियंत्रण और पवित्रता की भी जरूरत है।एक कहावत है कि  किताब की लौकी ,पकाने  का काम नहीं आयेगा। अर्थात  एक मंत्री के लिए  ग्रंथों  का ज्ञान  मात्र काफी  नहीं  है;सांसारिक ज्ञान की भी जरूरत  है।
  

SHAASAK-8

कुरल  का तो नाम के  अनुसार रूप छोटा ही है;

पर  कुरल अर्थ तो संसार-सा विस्तार होता है।

सारा संसार उसके अंतर्गत  ही है।

 हम जानते  हैं कि नक्कीरर ,शेक्किलार,कंबर जैसे संघ काल के  कवि

अपने-अपने ग्रंथों को जग  के नाम से ही शुरू किया हैं।

लेकिन वल्लुवरने   तमिलादु में तमिल में  लिखा है;

लेकिन उनकी दृष्टी सारे मनुष्य समाज पर थी।

सारा संसा ही उनकी सीमा है।

उनके एक हजार तीन सौ तीस  कुरलों  में

 अधिकांश  कुरल संसार शब्द  को लेकर  या संसार के अर्थ लेकर ही दीख  पड़ते हैं।

तिरुक्कुरल:-एव्वतु  उरैवतु  उलकम  उलकत्तोडु   अव्वतु  उरैवतु   अरिवु।

इस कुरल में वल्लुवर महाशय  कहते  है  कि

 हर एक आदमी को अपने व्यक्तिगत जीवन को संसार के व्यवहार के अनुसार  चलाना है।

वल्लुवर एक ज्ञानी हैं।एक कवि  है;वही तमिल के ज्ञाता है।

पेरुन्तोकै  नामक ग्रन्थ  के लेखक  कहते हैं: 

अवने  पुलवन। अवने  ज्ञानी ;अवने तमिलारिन्तोन .

वल्लुवर जिस  जग  के बारे में कहते हैं,वह ऊँचे  लोगों का जग है।

ऊँचे  लोगों  के अनुसरण करने पर  सामान्य जनता का अनुशासन ऊँचा  रहेगा।

जो शासक है उनका यश फैलेगा;उनका पद  सुरक्षित रहेगा।

ratnakumar:-IT IS THE ABILITY TO THINK REASON AND UNDERSTAND THAT HELPS ONE TO PROGRESS WITH THE WORLD.
G.U.POPE :-  TO LIVE AS THE WORLD LIVES IS WISDOM.

ज्ञान की आवश्यकता  समझाने के बाद वल्लुवर महोदय  "मंत्रित्व" पर विचार करने को प्रेरित  करते हैं।

मंत्री वही है जिसमें मंत्री के गुण भरे रहते हैं।

वह एक सुशासन के लिए अत्यंत  आवश्यक सहारा  है।

राजा की दूरी स्थिति में मंत्री का स्थान होता हैं।

वल्लुवर  ने मंत्री-शास्त्र पर एक सौ कुरालों की रचना कर

 मंत्री के गुण,कार्य की व्याख्या की है।

पहले दस कुरल में मंत्री के लक्षण की व्याख्या मिलती है।

वन्कन  कुडि कात्तल  कटररितल  आल्विनैयोडू   ऐंतुडन  मान्दत्हू अरसु।

मंत्री के गुण पाँच  होते हैं:-वीरता,श्रेष्ठ -कुल,शिक्षा-दीक्षा नागरिकों की रक्षा में कौशल,अध्यवसाय आदि.


मंत्री के ज्ञान के बारे में कहते समय वल्लुवर ने सीखा  ज्ञान कहा है।

वल्लुवर किसीको शिक्षित आदमी का संबोधन नहीं करेंगे।

सीखा -ज्ञानी ही संबोधित करेंगे।क्योंकि स्नातकों में कोई ज्ञान नहीं रहेगा।

सीखकर ज्ञान प्राप्त लोगों में  ही सही रूप में समझने की शक्ति रहेगी।



शासक-7

एक शासक के चिंतन  केलिए।


जी में प्रकाश  होने पर बोली में मिठास होगी। उसके बाद  कर्म में दृढ़ता होगी। सब को बल देते हैं कि  सोचकर काम करो।वल्लुवर ने मार्ग दिखाया हैं कि  सोचकर  काम में साहस  दिखाओ.


पोक्कियार  नामक कवि  ने  लिखा है :-

अरसियल ऐऐंदु  अमैच्चियल ईरैन्तु 

उरुवल्लरनइरंडु   ओंरू ओण   कूल-उरुवियल 
तिण प् डै   नत्पुपथिनेलु कुड़ी पतिं  मूंरू 

एन्पोरुल एलाम  इवै .

उपर्युक्त  तमिल  कविता  का भावार्थ  :-

अर्थ -भाग में राजनीती के लिए पच्चीस अधिकार,मंत्रित्व  के लिए दस अधिकारं दूर सुरक्षा के लिए दो अधिकारं,अर्थ-शास्त्र के लिए एक अधिकार,सैनिक -शास्त्र के लिए दो अधिकारं,मित्रता  के लिए सत्रह अधिकारं 
आदि  कुल मिलाकर  सत्तर अधिकारं  तिरुक्कुरल में हैं।
पोक्कियार  के आधार पर पहले  विचार करने का अधिकार  है  राजनीति का ज्ञान.
इस अधिकार  में प्रवेश होने के पहले ,साक्रतिस  का एक विचार ,जो अरिस्तातिल अपनी राजनीति में नामक ग्रन्थ के दूसरे भाग में  लिखा  है, उसे उल्लेख करना उपयुक्त  होगा।

ताने -बाने  के ऊन के सूत  अलग-अलग ऊन  के सूत से बनाए जाते हैं।फिर एक हो जाते हैं।वैसे ही शासक और शासितों का सम्बन्ध होना चाहिए।तभी शासक और शासित  मानसिक संतोष से जी सकते हैं।
उसके लिए बड़े होशियार,अभ्यस्त  और ज्ञानी  की आवश्यकता है।ऐसे व्यक्ति को प्रदान करने के लिए 
तिरुवल्लुवर महोदय  ज्ञान  अधिकारम  के साथ तैयार खड़े हैं।
सरकार  राजनीती के अंतिम सर्वोच्च  अधिकारं है।इसे समझने के लिए ज्ञान की जरूरत है।
तिरुक्कुरल :- 
अरिवु अटरम  काक्कुम  करुवी सेरुवार्क्कुम 
उल्लालिक्कल आका अरण।
ज्ञान  एक ऐसा  अधिकार है,वह शासक को मात्र नहीं बचाता;वह दुश्मन से भी बचानेवाला एक सुरक्षित दुर्ग है।
ज्ञान क्या है?
जानना (PERCEPTION,KNOWING,UNDERSTANDING)
जाना हुआ  समाचार (KNOWLEDGE)
ज्ञान  की सूक्ष्मता (WISDOM)
बुद्धि (INTELLIGENCE)
इन चारों का एकत्रित रूप ही ज्ञान हैं।हमें यह सोचना चाहिए कि ज्ञान को वल्लुवर महोदय ने अत्यंत आवश्यक मानकर ही  उस अधिकारं को इतना महत्त्व दिया है।इस अधिकार के दस कुरलों में ज्ञान के अर्थ के शब्द का प्रयोग किया है।
A PERSON 'S ABILITY TO THINK ,REASON,AND UNDERSTAND PROTECTS HIM LIKE THE FORTRESS  TO A GARRISON FROM SURPRISES. --S.RATNAKUMAAR.

G.U.POPE:--WISDOM  IS A WEAPON TO WARD OFF DISTRUCTION;IT IS AN INNER FORTRESS WHICH ENEMIES CANNOT DESTROY.
इससे ज्ञान की शक्ति   समझ में आती है।



शासक-6

शासक  जो भी हो,सब के लिए लाभप्रद  बातें  अर्थ  अधिकार देते हैं।फिर भी अठारह अधिकारम  100% एक शासक  या प्रशासक के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।उनमें अठारह अधिकारं में नौ  अधिकारं शासकों को सोचने-समझने के लिए हैं ,और  नौ अधिकारं  कार्यान्वित करने केलिए  हैं।
सोचने-समझने  के अधिकार  हैं---ज्ञान,मंत्रीत्व,व्यक्तित्व,शासन,स्थान-पहचान,जासूसी,नीचता,समय-पहचान,उत्कृष्टता   आदि ।

कार्यान्वित करने के अधिकारं  हैं---दुर्ग-सुरक्षा,जान-समझकर कार्य करने का मार्ग,जानकर -स्पष्ट  होना,जानकर  कर्म करना,सेना-संचालन,बड़ों की सलाह और सहायक  लेना,अर्थों के कार्यान्वयन का मार्ग,बल-जानना,कर्म करने के तरीके  आदि।


शासक-6

शासक  जो भी हो,सब के लिए लाभप्रद  बातें  अर्थ  अधिकार देते हैं।फिर भी अठारह अधिकारम  100% एक शासक  या प्रशासक के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।उनमें अठारह अधिकारं में नौ  अधिकारं शासकों को सोचने-समझने के लिए हैं ,और  नौ अधिकारं  कार्यान्वित करने केलिए  हैं।
सोचने-समझने  के अधिकार  हैं---ज्ञान,मंत्रीत्व,व्यक्तित्व,शासन,स्थान-पहचान,जासूसी,नीचता,समय-पहचान,उत्कृष्टता   आदि ।

कार्यान्वित करने के अधिकारं  हैं---दुर्ग-सुरक्षा,जान-समझकर कार्य करने का मार्ग,जानकर -स्पष्ट  होना,जानकर  कर्म करना,सेना-संचालन,बड़ों की सलाह और सहायक  लेना,अर्थों के कार्यान्वयन का मार्ग,बल-जानना,कर्म करने के तरीके  आदि।


शासक-5

शासक-5

           आज जैसे केंद्र  सरकार  और राज्य -सरकार  आदि  विभाजन हैं ,वैसे ही वलूवर के जमाने  में और उनके बाद  साम्राज्य  राज्य और छोटे-छोटे राज्य  थे;जिसके शासक सम्राट,राजा होते थे।

वल्लुवर ने अपने "अर्थ " भाग में केंद्र और राज्य सरकार के दायित्व ,अधिकार आदि की व्याख्या की हैं।
विशेष रूप में कहें  तो अर्थ  भाग  में  केवल  केंद्र   सरकार  के बारे  में  ही वल्लुवर ने बताया है।प्रांतीय सरकार का उल्लेख  उन्होंने  नहीं की है।लेकिन उनकी व्याख्या  में केंद्र सरकार की जिम्मेदारियों  को बताने से   यह स्पष्ट  हो जाता  है  कि अन्य जिम्मेदारियाँ  राज्य-सरकार पर निर्भर हैं।यही वल्लुवर का प्राकृतिक -शक्ति और कौशल है।
राजा और सरकार की व्याख्या में सम्प्रभुतता   की  जो व्याख्या की है,वह तो ठीक है।लेकिन तानाशाह  की व्याख्या क्यों की है?
हमें  यह महसूस करना गलत  नहीं  है कि  वल्लुवर ने यह समझाने  के लिए ही लिखा होगा कि  राजा भी भूल करनेवाला  है;अपराध करनेवाला है।

उपर्युक्त  लगभग छत्तीस  किस्म  के शासन प्रणालियों में , आज सारे संसार  में दो तरह के शासन ही होते हैं। वे अधिकांश  राजतंत्र  और लोकतंत्र  शासन हैं।

वल्लुवर  ने अपने ग्रन्थ में  प्रजातंत्र और लोकतंत्र  दोनों के लिए उपयुक्त  आम  सिद्धांतों  के लिए एक बड़े भाग  की रचना की है।
अरिसिल किलार ने कहा है कि  अर्थ-शास्त्र को बड़ी गहराई से अध्ययन करने  से पता चलता है  कि  संक्षेप में बताकर  विस्तार पूर्ण व्याख्या करने में वल्लुवर -सम  कोई नहीं हो सकते।

Monday, July 16, 2012

shaasak-4


शैव मत के अटल भक्त मानिक्कावासकर ने तिरुवेम्बावै   में 

एक पद्य शिव -स्तुति में लिखा  है ---

प्राचीनतम आदिकाल के वस्तुओं में तू  आदी   हो! 

तमिल :- मुन्नैप पलम  पोरुटकुम मुन्नैप पलम पोरुले !

आगे उत्पन्न  होनेवाले नए सृजन में तू नए हो!!   

               पिन्नाप्पुतुमैक्कुम  पेर्तुतुम अप्पेट्रीयने !

आदी काल  के  प्राचीनतम  चीज़ों  में  अति आदी हो।

भविष्य में पैदा होनेवाली नई चीज़ों में प्राचीन हो ;

हे शिव तू आदि -अंत हो।

इस सन्दर्भ  में लेखक  कहते है कि  शिव के बदले तिरुवल्लुवर का नाम लिखने  से ,

नए आम-वेद के रचयिता की प्रशंसा होगी ;तिरुक्कुरल ऐसा  ही ग्रन्थ  है।

उपयोगी दानों के पौधों के बीच अनुपयोगी  नालायक  पौधे  भी उगते हैं।

लेकिन किसान नालायक. पोधों को जड़-मूल उखाड़ फेंककर 

 उपयोगी पौधों की रक्षा  करता है।

माँ।पो।शिवज्ञानम   ने लिखा है कि  तिरुवल्लुवर के जमाने में अच्छे  लोगों के  बीच

 कुछ विषैले पोधों के समान बुरे लोग  रहे होंगे; 

उन बुरे लोगों की संख्या बढाने से रोकने के लिए  ही

 तिरुवल्लुवर ने तिरुक्कुरल  लिखा होगा।


वल्लुवर के जमाने में ही तमिल रीति-रिवाजों  के उलटे रीति-रिवाज के 

उत्तर भारत की आदतें तमिल प्रांत में प्रवेश हो रही थीं।

अब हम अंदाजा लगा सकते हैं कि  तमिल लोगों को अपने ही रीति-रिवाजों  के पालन में

 दृढ़ रहने के लिए वल्लुवर  ने कुरल लिखा होगा।

पुलवर कुलन्तै ने अपने तिरुक्कुरल के मूल्यांकन में लिखा है 

  तिरुक्कुरल तमिल लोगों के जीवन का  कानून ग्रन्थ  है।

तमिल लोगों की सुरक्षा-सेना है।

वह तमिल-संस्कृति  का भण्डार-गृह है।

शासक -3





                                                                                         शासक -3

   तमिल  कविवल्लुवर  के विचारों को ध्यान से अध्ययन करने पर पता  चलता है  कि  संसार आज एक परिवार -सा मित्रता रखना  चाहता  है तो वल्लुवर के बताए  "मित्र" का मार्ग ही है। आज अमेरिका ऐक्य देश और रूस  दोनों  मित्रता  को एक आदर्श समझ रहा है जिससे  संसार एक  दूसरे  के निकट संपर्क में आ रहा है।

सरकार ,शासन आदि शब्द  राजनीती -शाश्त्र से  प्रयोग में आये  हैं।इसको संप्रभुता ,शासन प्रणाली आदि अर्थ  होते हैं।
राजा-सिंहासन ,राज-सभा आदि शब्दों से राजा के लक्षण बनाए गए हैं।

सरकार के मतलब  राजा के गुण ,राजा,राज्य ,नेतृत्व   आदि बताये गए हैं।"राज्य करना "शब्द प्रशासन हैं ;और सरकार के छे अंगों से सम्बंधित  है।

राजा को अंगरेजी में "king " कहना रूढ़  शब्द  है;राजा परम्पराधिकार का शासक होता है।राजा शब्द जातिवाचक सज्ञा  है तो मतलब है देश का शासक।  वही क्रिया है तो शासन करो के अर्थ देता है।
इसमें  "king  stroke " का मतलब है  तानाशाह;"किंग क्राफ्ट "का मतलब है  सप्रभुत्व  शासन।
किंग्डम   का मतलब है ---राजतंत्र  देश;राजा के अधीन का राज्य ;शासित भाग;क्षेत्र; आदि।

किंगडम  शब्द  से किन्ग्शिप  शब्द  बना;मतलब है  राजपद;राज्स्थिति;राजा का मूल्य ;आदि ।

उपर्युक्त शब्दों से ही "शासन" शब्द  बना। इस शब्द का मतलब है शासन करना ,शासनाधिकार आदि।जो उपर्युक्त अधिकार प्राप्त है ,वही शासक   बनता  है।














शासक --2

शासक -2

सम्प्रभूति  के राजा धर्म,अर्थ,काम, प्राण -भय   आदि  गुणों से  युक्त
 मंत्री,सेनापति,दूत,चर आदि चार प्रकार के  पटु लोगों  को
  चुनकर   नियुक्त  करता  था ।उनके द्वारा देश को समृद्ध बनाता था।

 और देश की आय बढाता  था ।
जो आमदनी मिलती थी ,उन सब को धर्म अर्थ और काम
 कार्यों  में   व्यय करता था ।
वह देखने में सरल  और  व्यवहार  में मधुरभाषी  था।
 वे अपराधियों को दंड देते थे।
निम्न लोगों के संग में नहीं रहते।
बड़े लोगों के संग में रहकर  नाते-रिश्तों  से  गले लगाकर ,
अपराध सहकर  शासन  करते थे।

वे चार प्रकार  की  सेना रखते थे।
दुसरे राजाओं से मिलनसार  होते थे।
उनमें स्त्री -मोह न था।
वेश्या-गमन  न था।
मधु  नहीं  पीते।
वे  जुआ नहीं खेलते;
संतुलित भोजन  करते थे।
 अपने शरीर  को स्वस्थ रखते थे।
नागरिकों के दुःख दूर करते   थे।
मंत्री और सेनापति  का बड़ा सम्मान  करते थे।
 संक्षेप में कहें तो   नागरिकों को पांच प्रकार्  के दुखों से रक्षा  करना  ही तिरुवललुवर  की राजनीती  थी।






शासक प्रशासक--1

शासक
प्रशासक

 पहले  ही हमने  उल्लेख  किया  कि सारी  नदियाँ   सागर  में  ही  संगमित  होती  है। वैसे ही मानव  समाज  की सभी  घटनाएँ  न्याय  में संगमित होकर  परिवर्तन    हो जायेंगी। अब वह न्याय भी संगम होने का स्थान  सरकार है।

  " सत्य -वचन "  कहकर  ज्ञानियों  से प्रशंसा  प्राप्त  तिरुक्कुरल  वेद  में  बीच के सत्तर  अधिकार  राज-शासन, प्रशासन ,राजा और प्रशासक के लिए  साथ देनेवाले चिंतन ,बुद्धिपूर्ण  उपदेश  आदि बातें ही
 व्यापक रूप में  मिलते हैं।

राज्य-शासन  के लिए लाभ  देनेवाले  ज्ञान ,मंत्री,व्यक्तित्व,राज्य-महत्ता ,क्षेत्र -पहचान,गुप्तचर,अत्याचार(नीचता),समय-ज्ञान,उत्कृष्टता,रक्षा,जान-समझकर काम करना,जान-समझकर ज्ञान प्राप्त करना, शोधकर कार्रवाई लेना,सैनिक महत्त्व,बड़ों के साथ चलना ,कार्य -प्रणालियाँ,आदि अधिकारों  का सृजन वल्लुवर ने किया है।
 यूनान के  ज्ञानी  प्लेटो  ने  बढ़ती  सरकार  के बारे में  कहते  हैं-----
अच्छों  के शासन या  उच्च  लोकतंत्र बनाना  जो चाहते हैं ,वे एक गलती  करते हैं।वे  अमीरों को अधिक अधिकार देते हैं।चालाकी से लोगों को ठगने की कोशिश  में गलती करते हैं।झूठी भलाई से झूठी बुराई का  एक समय  आ  जाता  है।क्योंकि  अमीरों का अधिक स्थान  लेना ,आम जनता  के असीमित कार्यों के कारण, सरकार के पतन निश्चित   हो जाते  हैं।

कई प्रकार की शासन प्रणालियों की सूची देकर,वल्लुवर के कुरलों  की सहायता से शासकों के बारे में कुरल जो कहता है,उसपर  विचार करने से  शासन के बारे में, वल्लुवर के जो  गहरे  चिंतन  है,उसका पता चलेगा।
देखिये, शासन  प्रणालियों की सूची:-
मातृसत्तात्मक (matriarchy)

पितृसत्तात्मक(patriarchy

नगर-शासन(city state)

धर्म-तंत्र (theocracy)

राजतंत्र (monarchy)

निरंकुशता(Autocracy)

तानाशाह(dictatorship)

सीमित राजतंत्र (limited monarchy)

 संसदीय राजतन्त्र  (parliamentary monarchy)


 द्विशासन प्रणालियाँ :

  1. धर्म-गुरुतंत्र।
    (hicrocracy)
  2. अभिजात वर्ग तंत्र
    (aristocracy)

  3. अल्प-सूत्र  शासन (oligarhy)

  4. बहुसूत्र शासन(polyarchy)

  5. धनिक्शासन(plutocracy)

  6. फौजिहुकूमत  आदि।(stratocracy)

  7. लोकतंत्र  के विभाजन
  8. गणतंत्र(Republic)

  9. एकात्मक सरकार(unitary government)

  10. संघीय सरकार(federal government)

  11. समाजवाद(socialism)

  12. साम्यवाद(communism)

  13. फाज़िज़म (बंधयुक्त

  14. मज्दूर्शाही(ergatocracy)

  15. हुल्लडी बाज़ी(mobocracy ochlacracy)
    16.    सर्वतंत्र (partisocracy) आदि.

 व्यवहार में  उपर्युक्त  शासन दो  तरह के होते हैं।1.सम्प्रभुत्व शासन (benign government)  2.निरंकुश(despotic government}

होमरूल ,गृह-शासन

अन्य -शासन (xenocracy)

एकतंत्र (monocracy)

बहुतंत्र( polyarchy)

 साम्राज्य(imperialism)

राज्य(Feudalism)

संसदीय  सरकार(parliamentary)

असंसदीय सरकार(nonparliamentary)

नर-सत्ता(androcracy)

नारी-सत्ता(gynecrocracy)

पूंजीपति-सरकार(capitalistic government)

मजदूर-शाह
आदि।


तिरुवल्लुवर के जमाने  में  राजतंत्र   मात्र  था। उसके अंग  थे ---नागरिक,अर्थ,सेना,दुर्ग ,मंत्री,मित्र   आदि।

शासन  एक अमुक  क्षेत्र के अंतर्गत  था। ;   राजतंत्र  सम्प्रभुत्व  या निरंकुश  होता है।

















Sunday, July 15, 2012

संप्रभुता-3

संप्रभुता -3

कोई राजा अपने राज्य में न्यायपूर्ण शासन  करता है ,तो संसार के लोग उसके चरण स्फर्श  करेंगे।उसके
 सुशासन का  बल अधिक  होता  है।

वल्लुवर की तुलना यूनान  के कवि   पोकिलैटिस   के साथ  करना चाहता  है। उनका  जीवन-काल ई.पूर्व छठवाँ  शताब्दी  है। उनके बारे में  अरस्तु ने  अपने "राजनीती"नामक  ग्रन्थ  में लिखा  है।पोकिलैटिश  यूनान के मैलिटास  नामक स्थान  में रहते  थे।उनके पद भी  कुरल -सा दो चरणवाले होते हैं।  उनमें धार्मिक अनुशासन के  सिद्धांत  होते  हैं।

 अपनी कविताओं के बारे में  उन्होंने  लिखा  है--"विषय जो भी हो,अपनी तटस्थता   के कारण अमर रहेगा।
मैं  भी  अपने शहर  में  तटस्थ  रहना चाहता हूँ।
वल्लुवर के कुरल भी  दो चरण के हैं। वल्लुवर का उद्देश्य  यह हैं  कि  न्याय  की स्थापना  में न्यायाधीश  को
तटस्थ  रहना चाहिए। उसके लिए उन्होंने जो औजार दिखाया  है  वह "तुला"है।
काल के अनुसार पोकिलैटिश   वलूवर के  पहले जमाने में रहते थे।फिर भी तटस्थता  के चिंतन में दोनों
बराबर  हो जाते  हैं।

संप्रभुता  के लक्षण  हे क्या है?
प्रजा की चाह  राजा होनी चाहिए;राजा की चाह प्रजा होनी चाहिए।

प्रजा की भलाई में राजा प्रजा को गले लगाकर चलेगा तो प्रजा राजा के गले लगाकर चलेगी।


      कुड़ी तलियीक  कोल ओच्चुम  मानिल  मन्नन   अडितलीयी   निर्कुम  उलकू।

 the world takes heed of the advice of a ruler who treats  his people fairly and justly.


लोगों से गले मिलने का मतलब होता है ---लोगों की जरूरतें  पूरी  करना।मधुरता से लोगों की बातें सुनना और सुनाना, लगान न मांगना, आदि।राज्य को अति ध्यान देकर  शासन करना;देश की प्रगति करना आदि।वल्लुवर के इस कुरल का अनुवाद पोप ने यों क्या  है:-
 the world  will constantly embrace the feet of the great king who rules over his subjects with love.

न्यायाधिपति  वल्लुवर  कसम खाकर कहते हैं  कि  न्यायानुसार शासन करनेवाले राजा की रक्षा न्याय ही करेगी।

  इरै  काक्कुम वैयकम  एल्लाम  अवनै   मुरै   काक्कुम  मुटटाच चेयिन .


कोवलन के अपराध  की  पूछ -ताछ  न करके  पांडिय राजा नेदुन्चेलियन  ने वध करने की सजा दी;
सत्यता प्रकट हुयी तो खुद अपनी जान दे दीं।अनजान  से  गलती हो गयी ;फिर भी उन्होंने   अपनी गलती मान ली; सुशासन उनकी रक्षा करने से नहीं फिसलेगा।

 if the ruler takes care of his people fairly and justly the rule of law  will safguard him.

g.u.pope:--
THE KING DEFENDS THE WHOLE WORLD;AND JUSTICE WHEN ADMINISTERD WITHOUT DEFECT,DEFENDS THE KING.

एक   राजा  तमिल वेद    के  लेखक और नयायाधिपति   वल्लुवर  के कथनानुसार सुशासन  न करेगा  तो उसका पतन निश्चित है।
 राजा  जो सुशासन  नहीं करता, उसका  पतन  तुरंत  न होगा।उन्नति  और -पतन दोनों के  बीच  संघर्ष करके,
अपमानित  होकर खुद विनाश हो आयेगा।

कुरल: एनपतततान  ओरा  मुरै   सेय्य़ा  मन्नन   तन्पतंतान   ताने  केडुम।


हाथी  अपने सर और शरीर  पर अपनी सूंड से मिट्टी  डाल  देता है,वैसे  ही वह राजा धूल  लेकर अपने सर पर डाल  लेगा।
THE RULER WHO IS UNAPPROACABLE  AND HAS NO SENSE OF ORDER OR FAIRNESS WILL SOON LOSE HIS STATUS AND DESTROY HIMSELF.
G.U.POPE:--
THE  KING WHO GIVES NOT FACILE AUDIENCE (TO THOSE WHO APPROACH HIM)
AND WHO DOES NOT EXAMINE AND PASS JUDGEMENT (ON THEIR COMPLAINTS)
WILL PERISH IN DISGRACE.


अपनी  प्रजाओं  में कुछ लोग  अज्ञानता  के कारण अपराध  करें  तो उन अपराधों के कारण खुद  को
और अपने परिवार -सी  रह्नेवाली भोले भाले  जनता  को होनेवाले कष्टों से बचाना चाहिए।अपराधी को दंड
देना चाहिए। वही राजा का धंधा  है। अपराधी को दंड देने  से  अपयश नहीं  होगा।

राजा  अपने  देश  के अपराधियों को दंड दे ने की तीन प्रणालियों का उल्लेख करते हैं वल्लुवर महोदय।
वे हैं;-1. दंड-शुल्क 2.शारीरिक दंड।3.फांसी की सजा।
हम तो तीनों को अपराध कहते हैं। वह तो गलत हैं।

अपराध:-अपराध के दंड हैं, मंदिरों में दीप जलाना;भक्तों के जूतों  को  धोना, आदि। ये दंड तो स्थान और देश के अनुसार  दिए जाते हैं।
शारीरिक दंड ही कठोर दंड है।
अपराधियों के अपराध के अनुसार दंड  देने पर ,वह उस अपराध को पुनः करने में संकोच करेगा या डरेगा।

उसको अपने को सुधारने  का अवसर मिल जाता है।अपराधी को राजा जो दंड देता है ,उसके फल स्वरुप वह अपराध फिर नहीं होना चाहिए।यह दंड न्याय  राजा का है।

ह्त्या करनेवालों में भी अत्यंत  पापी  कौन होता है? देखिये, पापियों की सूची:-

हत्यारे
आग लगानेवाले,
पेय-जल में विष उन्डेल्नेवाले,
डाकू,उचक्के,
देवालय संपत्ति को चुरानेवाले,
दूसरों के घर -चाहनेवाले
राजा से न  डरनेवाले
 इन सब दुष्टों  को मारकर  अच्छे लोगों की रक्षा करने से बढ़कर  राजा के लिए  और  कोई काम नहीं है।यही राजा का पहला कर्तव्य  है।
विदेशी शत्रुओं  से लड़ना,अपने देश की सीमा बढ़ाना आदि  राजा के लिए द्वितीय काम ही है।

राजा तो यहाँ विष पौधे और  अनावश्यक  पौधों को निराई  करनेवाला माली  है।

 A RULER LIKE A GARDNER WEEDING THE GARDEN MUST REMOVE THE MURDERERS IN ORDER TO PROTECT INNOCENT.

G.U.POPE:-FOR A KING TO PUNISH CRIMINALS WITH DEATH IS LIKE PULLING UP THE WEEDS IN THE GREEN CORN.
 प्राध्यापक पूर्नालिंगम पिल्लै  ने अपने तिरुक्कुरल के अनुसंधान में सम्प्रभूत्व का रस निछोडकर  वल्लुवर
महोदय  को सब न्यायाधीशों के न्यायाधिपति  कहकर ढिढोरा पीटा  है।

"A GOOD KING WILL BE JUST AND IMPARTIAL TAKE ADVICE AND ACT.HE WILL BE HELD DEAR  RAIN DROPS.HE WILL PROMOTE LEARNING AND SAGELY VIRTUE.
HE WILL WIN THE HEARTS OF THE SUBJECTS WHO WILL EMRACE HIS FEET.
THE LAND OF A KING WHO RULES BY JUST LAWS WILL BLESSED WITH SHOWERS AND WILL HAVE ABUNDANCE.EQUITABLE RULE NOT LANCE GAINS VICTORY FOR THE KING.IF THE KING GUARDS HIS REALM JUSTICE GUARDS HIM.THE KING WHO HEARS NO GRIEVANCES AND HEARING DOES NOT EXAMINE EVIDENCE AND PASS
JUDGEMENT WILL GO TO RAIN.TO PUNISH THE WICKED WITH DEATH WILL BE TO WEED OUT THE FIELS OF CORN.