Wednesday, March 11, 2015

संसार तो दुरंगी

जग  में  तूफान -आंधी -सुनामी  होता है,भूकंप  भी ;

नहीं कह सकते मनुष्य 

मन ,दयालु के बीच एक निर्दयी है काफी 


एक घड़े भर की भात में ,एक बूँद विष भी काफी;

प्यार भरा संसार है तो घृणा की बात क्यों;

सत्य भरा  संसार हो तो असत्य  का अस्तितिव क्यों?


सुख मय  संसार्  है  तो दुःख कीबात  क्यों?

फूल ही फूल है तो कांटे भी तो है साथ ही;

मृदु रेत है तो उसमें कंकट  भी  मिश्रित है.


बिजली की रोशनी  है तो उसमें धक्का भी साथ है;

अग्नि मिटाती सर्दीतो  जलन  की क्रिया भी;

धूप ही धूप में छाया भी है जगत में;

पतझड़ है तो वसंत भी ;

संसार है अति विस्तार ,

संसार  है अति निराली 


जानना -पहचानना अति दुर्लभ;दुश्वार.

Thursday, March 5, 2015

चुप --छिप -स्वार्थ.


सबेरे उठा;न जाने  कुछ भी लिखने को न सूझा

राजनीति ---

धर्मनीति -

लोकनीति 

सब में भलाई . सब में बुराई .

सकल  जगत में फूल -काँटा 

विष -अमृत 

द्वित्व . 

दया-निर्दया ;

निर्दयता देख निर्दयी की आँखों में भी  अश्रु.

चोरी देख चोर को भी गुस्सा .

भ्रष्टाचारी देख भ्रष्टाचार भी निंदा ;

सत्यवान की प्रशंसा असत्य का काम 

यह्दुनिया ही  दुरंगी;

द्वि जीभ ; द्विआचरण ;

हाथी के दांत खाने के और 

दिखाने के और;

मगर मच्छ आँसू;

क्या लिखूँ ?क्या  छोडूँ?

गुरु का उपदेश --चुप रह.

चुप.छुप.-वे तो ज्ञानी ;

मैं तो अधजल गगरी छलकत जाय.

मेंढक सा टर-टर --

फँस जाता साँप के मुँह में.

चुप -चुप- चुप 

जो बोलता है उसकी चाल --चुप --छिप -स्वार्थ.