Sunday, January 31, 2016

உலகியலும் உலகநாதனும்

அறிவியல்  வளர்ச்சி
ஆன்மீகத்தில் வளர்ச்சி.
வலைதளம் யூட்யூப் அனைத்திலும்
ஆன்மீக இறைவழிபாடு.
இந்த வளரச்சி இருந்தாலும்
உலகியலுக்கென கவர்ச்சி
உலகியல் கவர்ச்சியில்
உலகநாதனின் கவர்ச்சி
ஆடம்பரமான நிலை.
தெய்வீக பக்தி என்பது
தெய்வீகப்பணிகளுக்கு நன்கொடை என்பதிலேயே
ஆத்ம திருப்தி
  அரிய படைப்புகள் அதிசயப்படைப்புகள்
ஆண்டவனின் படைப்புகள்.
அதை மறக்கச்செய்யும்
அறிவியல் படைப்புகள்
உலகியல் இன்பமே முந்துவது
பணம் பணம் ஆடம்பரம் .
இந்த ஆடம்பரம்  உண்மை
நிலை மறக்காமல்
உலகநாதனை நினைக்கவே
இயற்கை மாற்றங்கள் சீற்றங்கள்
சந்திரனில் காலடி வைத்தாலும்
சங்கடமில்லா பயண வெற்றிக்கு
அவனைத் தொழும் நிலை.
உலகியல் இன்பங்கள்  தற்காலிகமானவை என்பதற்கே
அறிவியல்  ஆற்றல் மீறிய நிகழ்ச்சிகள்
மனிதனுக்கு புலப்படாத விசித்திரங்கள் .
உலகநாதனைத் தொழவைக்கும் .
அங்குதான் ஆண்டவனின் அளப்பறிய ஆற்றல்.
ஒவ்வொரு முன்னேற்றத்திற்குப் பின்னும்  இறைவனின் சக்தி.
அன்பு அடக்கம் உண்மைகடமைநேர்மை
இதைவையகத்தில்  நிலைக்கச்செய்கிறது.

अनुपयोगी बातें न करना १९१ से २०० तक.

अनुपयोगी  बातें न   करना  १९१ से २०० तक. 
  1. घृणित शब्द  बोलनेवाले अपयश  का पात्र बन जाते. 
  2. सब के सामने  बेकार बातें  करना दोस्ती के वृद्ध बोलने से  बढ़कर हानीकारक है। 
  3. बेकार बातें जो बोलता रहता है ,वही उसे बेकार कर देगा। 
  4. अनुपयोगी ,गुणहीन  बातें सब के सामने करें तो बुराई और अप्रसन्नता ही बचेगी। 
  5. गुणी भी अनुपयोगी बातें  करें तो उनका आदर घट जाएगा.मिट भी जाएगा।
  6. बेकार बातें  करनेवाले को मनुष्य नहीं कहकर उसे मनुष्यों में नालायक मनुष्य कहना ही बेहतर  है. 
  7. गुणी  का  कटुवचन  बोलना स्वीकार्य है ,पर अनुपयोगी  न  बोलने में  ही भला है. 
  8. सुफल  खोजकर्ता ज्ञानी कभी अनुपयोगी बात नहीं  करता.
  9. निर्दोष  गुणी सज्जन कभी बेकार बातें नहीं करेगा.
  10. अनुपयोगी बातें करना तजकर उपयोगी लाभप्रद  बातों को ही  बोलना चाहिए. 



पीछे से बोलना --तिरुक्कुरल --१८१ से १९०

पीछे से बोलना --तिरुक्कुरल --१८१  से १९० 
  1. धर्म पथ पर न जानेवाले ,धर्म की प्रशंसा  न करनेवाले   , दूसरों  के बारे में पीछे से बोलना छोड़ दें  तो भला होगा. 
  2. प्रत्यक्ष  एक व्यक्ति की प्रशंसा और पीछे से निंदा करना अति पाप  और बुराई बर्ताव है ;अधर्म करने से बढ़कर पाप कार्य है. 
  3. आमने -सामने प्रशंसा और पीछे से उसकी निंदा करके  जीने से मरना भला है.
  4. एक आदमी के सामने प्रत्यक्ष रूप निंदा करन सही व्यवहार हैं ; पीछे से गाली देने  पर बुरा प्रभाव पडेगा,वह व्यवहार निंदनीय है. 
  5. दूसरों की निंदा पीछे से करनेवालों को देखते ही पता चल जाएगा कि वह अधर्मी है.
  6. पीछे से बुराई कहनेवाले की बातों की याद करके बोलनेवालों  पर कठोर शब्द उसके शब्दों से बढ़कर बोलेंगे। 
  7. जो मधुर बोली से मित्रता निभा नहीं सकते ,वे पीछे से बोलकर  सभी मित्रों को खो बैठेंगे।
  8. निकट संपर्क के दोस्तों  के बारे में पीछे से बोलनेवाले  अन्य अपरिचोतों के बारे में बहुत बोलेंगे. 
  9. दूसरों  के बारे में पीछे से  बोलनेवाले के शरीर को धरती इसलिए धोती है  कि  धर्म देवता उसके कर्म को सहती है. 
  10. दूसरों के दोषों के बारे में सोचनेवाले अपने दोषों पर ध्यान देंगे तो पीछे से निंदा नहीं करेंगे. 



Saturday, January 30, 2016

अपहरण _---तिरुक्कुरल --१७१ से १८०

अपहरण  _---तिरुक्कुरल --१७१ से १८० 
  1. दूसरे की वस्तुओं  को जबरदस्त अपहरण के  चाहक  के  पारिवारिक जीवन   बर्बाद हो जाएगा और अपयश भी होगा.
  2. तटस्थता  छोड़ना लज्जाजनक है; जो इसे जानते हैं वे ऐसे कार्य न  करेंगे जिससे तटस्थता का भंग हो .
  3. जो धर्म पथ के शाश्वत फल चाहते हैं ,वे छोटे सुख के लिए अधर्म काम  न करेंगे.
  4. पवित्र जितेंद्रवाले दीनावस्था में भी दूसरों की चीज को अपनाना नहीं चाहेंगे.
  5. दूसरों की चीज को  अधर्म से अपहरण के चाहक ,भले ही सूक्ष्म ज्ञानी हो ,उससे  कोई लाभ नहीं मिलेगा . वह ज्ञान किसी काम का नहीं .
  6. धर्म  के अनुयायी  अधर्म  से  दू सरे की चीज को अपहरण करना चाहेगा तो  उसका  सर्वनाश होगा .
  7. दुसरे  की  चीजों को अपहरण करके सम्पन्न जीवन बिताने के चाहक बिलकुल बरबाद हो जाएगा .
  8. अपनी संपत्ति  की सुरक्षा के चाहक को  दूसरों की चीजो के अपहरण की चाह छोड़ देनी चाहिए. 
  9. धर्म के चाहक जो दूसरें की चीजों के  अपहरण  की इच्छा  नहीं रखता ,उस पर लक्ष्मी देवी की बड़ी कृपा होगी.
  10. परिणाम की सोच -विचार  न करके दूसरों की चीजों  के इच्छुक  का सर्वनाश होगा.जो अपहरण की चाह नहीं रखता ,उसकी सफलता होगी.

ईर्ष्या --तिरुक्कुरल १६१ से १७०

ईर्ष्या --तिरुक्कुरल  १६१ से १७० 
  1. ईर्ष्या  न करने को अनुशासन मानकर  जीना चाहिए.
  2. ईर्ष्या रहित जीने के गुण जिसमें है वही भाग्यवान है. 
  3. धर्म  मार्ग और दौलत  न चाहनेवाले ही दूसरों के दौलत देखकर  जलेंगे .
  4. जो जानते हैं कि बुरे मार्ग पर चलने से हानी होगी ,वे ईर्ष्यावश बुरे कार्य नहीं  करेंगे. 
  5. ईर्ष्यालु की दुश्मनी उनकी ईर्ष्या ही है ;वही ईर्ष्या उसका वध करेगी.
  6. दूसरों  की मदद के लिए दी जानेवाली वस्तुओं को देखकर जलनेवाले खुद कष्ट भोगेंगे और उसके नाते -रिश्ते भी. अंत में ईर्ष्यालु को भोजन तक न मिलेगा.
  7. ईर्ष्यालु से लक्ष्मीदेवी हट जायेगी ; और अपनी बड़ी बहन ज्येष्ठा देवी की कृपा का संकेत कर देगी.
  8. ईर्ष्या  एक पापी है ; वह ईर्ष्यालु की संपत्ति नष्ट कर देगी   और उसे बुरे मार्ग पर ले जायेगी.
  9. ईर्ष्यालु के घर के कष्ट  और अच्छों के सुख -समृद्धि दोनों ही शोध की चीज है.
  10. ईर्ष्यालु कभी यशश्वी  नहीं बन सकता;ईर्ष्या  रहित जीनेवाला कभी अपयश का पात्र नहीं बना.

सहनशीलता --तिरुवल्लुवर ---१५१ से १६०

सहनशीलता --तिरुवल्लुवर ---१५१  से
  1.   .खोदते हैं गड्ढे   सहती है भूमि. 

उसको भी जीने का आधार है भूमि.
वैसे ही अहित -  हानी पहुँचानेवाले  के प्रति भी  सहनशीलता दिखाने में ही मानव का बड़प्पन है.
२. किसी की असीम हानियों को सहने के बजाय उन्हें भूल जाना ही गुणी  का  लक्षण है.
३.अतिथि सेवा करने की दरिद्रता अति दुःख की बात है.वैसे ही अज्ञानियों की भूलें सह्लेना अति सबलता  है.
४. अत्यधिक सहनशीलता ही ज्ञानियों  के लिए  प्रसिद्धिप्रद  है.अतः किसी भी हालत में असहनीय बनना ज्ञानियों को भी अज्ञानी बना  देगा .सहनशीलता ही ज्ञान का लक्षण  है.
५.सहनशील लोगों की इज्जत शाश्वत है.असहनशील होकर दंड देनेवालों का आदर घट जाएगा .संसार असब्र लोगों की इज्जत नहीं करेगा.
६.हानी पहुंचाने वालों को जो दंड देता है ,उसी को एक दिन ही सुख मिलेगा . हानी सहकर के क्षमा करने वाला  आजीवन  सुखी रहेगा .
७.दूसरों के दुखों को  न सहकर ,वैसे ही दुखप्रद कार्य करके  बदला  न लेकर  सहनशील रहना  ही आदर्श है.
८.अहंकारियों के  हानिप्रद कार्यों को सहते सहते जीत सकते हैं . 
९.  अति कतुवचनों को सुनकर भी  सब्रता दिखानेवाले  ही सर्वश्रेष्ठ साधू -संत   हैं 
१० . कठिन  उपवास करके साधना करने वाले  और   अति क्रोधी के वचन  सह्नेवाले ,  दोनों की तुलना में सहनशील  मानव  ही  श्रेष्ठ  मानव  है..

Friday, January 29, 2016

पर पत्नी प्यार न करना -- तिरुक्कुरल १४० -१५०

पर पत्नी प्यार न करना --  तिरुक्कुरल १४० -१५० 
  1. संसार में   धर्म ग्रंथों के अति  शिक्षित लोग पर-नारी से प्यार नहीं करते।यह पर -नारी प्रेम  की बेवकूफी कभी नहीं करेंगे।
  2. धर्म मार्ग  छोड़कर  पर-नारी से प्रेम करनेवाले के सामान  अति मूर्ख  संसार में और कोई नहीं है। 
  3. जो लोग  विश्वसनीय  मानकर दोस्ती निभाते हैं ,उन्कीपत्नी से गलत सम्बन्ध रखनेवाले  लाश के सामान है। 
  4. भूल जानकर भी पर नारी से जबरदस्त करने वाले  कितने भी बड़े हो  वे अति नीच ही माने  जायेंगे.। 
  5. आसानी से पर -नारी से जबरदस्त  संबंध के विचार से गलती करनेवाले  स्थाईअपयश के पात्र बनेंगे। 
  6. दूसरों की पत्नी से जबरदस्त करने वाले स्थाई दुश्मनी मोल लेंगे। उनसे स्थाई भय ,स्थाई अपयश  छूटेंगे नहीं। 
  7. वही धार्मिक गृहस्थ है जो दूसरे की पत्नी के मोह में गलती नहीं करता।
  8. दुसरे की पत्नी को कामेच्छा से न देखनेवाला ही धर्म पुरुष और आदर्श गृहस्थ है। 
  9. समुद्र से घेरे इस संसार में वही श्रेष्ठ है ,जो  दुसरे की पत्नी को स्पर्श तक नहीं  करता।
  10. भले ही अधर्मी हो ,पर दुसरे की पत्नी की चाह न करना ही अच्छा है.


अनुशासन --तिरुक्कुरल --१२० से १३० तक जीवन में अनुशान

अनुशासन --तिरुक्कुरल --१२० से १३० तक 
  1. एक व्यक्ति का बड़प्पन उसके अनुशासन पर निर्भर है ; अतः अनुशासन  प्राण से बढकर सुरक्षित रखने की चीज़ है। 
  2. जीवन के सहायक अनुशासन ही है। जीवन मार्ग की खोज के बाद यही निष्कर्ष पर पहुँच चुके हैं। अतः अनुशान पर दृढ़ रहना चाहिए।
  3. उच्चा कुल का आदर्श अनुशासन ही है ;अनुशासन हीन लोग निम्न कुल के हैं। 
  4. वेद को भूलना भूल नहीं हैं ;वेद को फिर याद कर सकते है। पर अनुशासन की भूलचूक बड़ा कलंक लगा देगा। 
  5. ईर्ष्यालु और अनुशासनहीन  लोग दोनों को जीवन में चैन नहीं मिलेगा। दोनों को जीवन में प्रगति नहीं होगी। 
  6. अनुशासन छोड़ना बड़ा अपराध जाननेवाले सज्जन सदा सतर्कता से दृढ़ चित्त से अनुशासन का पालन करेंगे। 
  7. अनुशान से बड़ी प्रगति होगी ;अनुशासनहीनता से अतःपतन और दुर्गति होगी.
  8. जीवन में अनुशासन प्रगति का बीज बनेगा। अनुशासन हीनता असाध्य दुःख देगी.
  9. अनुशासन में दृढ़ लोग भूलकर भी अपशब्द या बुरे शब्द नहीं बोलेंगे।
  10. अनुशासन न सीखनेवाले  बड़े विद्वान होने पर भी मूर्ख ही है। 

आत्मनियंत्रण --तिरुक्कुरल १२१ से १३० तक

आत्मनियंत्रण --तिरुक्कुरल १२१ से १३० तक 

  1. आत्मनियंत्रण  ईश्वर से मिलाएगा। नियंत्रण न हो तो जीवन अन्धकारमय  हो जाएगा।
  2. अधिक दृढ़ता से आत्मा नियंत्रण  संपत्ति  की सुरक्षा से बढ़कर कोई संपत्ति नहीं है.
  3. जानने  की बातें सीखकर आत्म नियंत्रण से जीनेवाले  प्रशंसा के पात्र बनेंगे।
  4. अपनी स्थिति से न हटकर मानसिक नियंत्रण और अनुशासन से जीनेवालों की प्रसिद्धि और प्रगति पहाड़ से ऊँची होगी।
  5. विनम्रता सब के लिए आवश्यक है;अमीरों को नम्रता और एक ख़ास संपत्ति है। 
  6. एक जन्म में कछुए के समान पंचेंद्रियों को नियंत्रित रखें तो उसका फल कई जन्मों  तक   उसका कवच बन जाएगा ।
  7. पंचेंद्रियों  में जिह्वा नियंत्रण अति आवश्यक हैं। बोली में नियंत्रण न हो तो वही उसके दुःख का कारण बन जाएगा। 
  8. अपने विचारों की अभिव्यक्ति  में एक शब्द गलत होने पर  अपने  भाषण की सभी अच्छाइयाँ बुरी हो जायेंगी।  अपने सभी धर्म कार्य भी अधर्म हो जायेंगे,
  9. आग से लगी चोट भर जायेगी; दाग मात्र रहेगा। पर जीभ के शब्द से मन में लगी चोट कभी न भरेगी; हमेशा हरी रहेगी.
  10. ज्ञानार्जन करके क्रोध को  नियंत्रण में  रखे व्यक्ति की प्रतीक्षा में  धर्म देवता रहेगी। 

तटस्थता -- तिरुक्कुरल -१११ से १२०

तटस्थता 
तिरुक्कुरल --११० से १२० 
  1. नाते -रिश्ते ,  दोस्त -दुश्मन ,अपने पराये आदि में किसी के पक्ष में न रहकर निष्पक्ष रहना ही तटस्थता  है .
  2. तटस्थता की संपत्ति नहीं घटेगी;वह  पीढ़ी तर पीढ़ी  काम आती रहे गी .
  3. पक्ष्वादी बनने से लाभ मिलने पर भी निष्पक्ष रहने में ही  भलाई है. तटस्थ रहना ही उत्तम गुण है.
  4. किसी की मृत्यु के बाद के यश -अपयश से ही पता चलेगा कि वह पक्षवादी  था  या निष्पक्ष वादी.अर्थात तटस्थ रहा कि नहीं .
  5. मनुष्य जीवन में उन्नति अवन्नती तो प्राकृतिक है.उन दोनों स्थितियों में तटस्थता निभाने में ही सज्जनता  और बड़प्पन है.
  6. तटस्थता छोड़कर  पक्षवादी बनने के विचार के आते ही समझना चाहिए कि संकटकाल आनेवाला है. 
  7.  भले ही तटस्थता  के कारण व्यक्ति गरीबी के गड्ढे में  गिरे,फिर भी लोग उसकी प्रशंसा ही करेंगे.
  8.   तराजू के काँटे की तरह  तटस्थ रहने में ही तटस्थता शोभायमान होती है.
  9. ईमानदारी और मानसिक दृढ़ता जिसमें  हैं ,उनकी वाणी से नीति -न्याय के शब्द निकालेंगे . वही तटस्थता है.
  10. व्यापारी को व्यापार की चीजों को अपनी चीज समझकर व्यापार करने में ही तटस्थता है. वही वाणिज्य नीति  है. 

Thursday, January 28, 2016

कृतज्ञता --तिरुक्कुरल १०० से 110

तिरुक्कुरल 
कृतज्ञता --१०० से ११० 
  1. हम ने किसीकी मदद नहीं की;ऐसी हालत में हमारी सहायता करनेवाले की मदद के  ऋण चुकाने के लिए  आकाश और भूमि  को देना भी पर्याप्त  नहीं है .
  2. आवश्यकता के समय की गयी मदद  भले ही छोटी सी हो ,पर संसार से बड़ी है.
  3. प्रतिउपकार  ,प्रति फल की प्रतीक्षा के बिना प्रेम के कारण  की गयी मदद  सागर से बड़ी है .
  4. तिल बराबर की मदद  के फल को सोचनेवाले  उसे   ताड़  के पेड़  सम  मानकर प्रशंसा करेंगे.
  5. मदद की विशेषता परिमाण पर निर्भर नहीं है,उसे प्राप्त करनेवाले के गुण से महत्त्व पाता है.
  6. निर्दोषियों के रिश्ते को  कभी छोड़ना या भूलना  नहीं चाहिए .वैसे ही दुःख के समय के मददगारों की दोस्ती को कभी भूलना नहीं चाहिए .
  7. अपने संकट के समय  जिन्होंने मदद की उनकी प्रशंसा सज्जन लोग जन्म जन्म पर करते रहेंगे.
  8. कृतज्ञता भूलने में भला नहीं है,कृतघ्नता भूलने में भला है.
  9. जिसने हमारी मदद की है ,उसीने हमें भले ही मृत्यु जैसे   कष्ट दे , वह  उसकी की गयी  मदद   की सोच में मिट  जाएगा.
  10. जितने भी अधर्म करो ,उनसे मुक्ति मिल जायेगी ,पर कृतघ्नता  करें तो  मुक्ति कभी नहीं होगी.

तिरुक्कुरल --मीठीबोली बोलना --९१ से १००

       तिरुक्कुरल --मीठी बोली बोलना ---९१ से १०० 
  1.  जिसके  मुख से प्रेम मिश्रित सत्य भरे धोखा रहित शब्द निकलते है, वे ही मीठी बोली है। 
  2. प्रफुल्ल मन से  मीठी बोली बोलना , प्रफुल्ल मन से दान देने से श्रेष्ठ है। 
  3. प्रफुल्ल  मन से  मुख देखकर मीठी बोली बोलना ही धर्म  है। 
  4. मीठी बोली बोलकर मित्रता निभानेवाले को कभी दोस्ती का अभाव न होगा।
  5. विनम्रता ,अनुशान और मधुर वचन ही एक व्यक्ति का आभूषण  हैं ;बाकी बाह्य आभूषण आभूषण  नहीं।
  6. बुराई हटाकर धर्म स्थापित करना है तो मधुर वचन से मार्गदर्शक बनने में  ही संभव है। 
  7. दूसरों के कल्याण और लाभप्रद शब्द  और सद्गुणों से युक्त मधुर वचन बोलनेवाले को भी सुख और कल्याण होगा।
  8. हानी हीन मधुर शब्द बोलनेवाले ज़िंदा रहते समय और मृत्यु के बाद भी यश प्राप्त करेंगे।
  9. मधुर शब्द ही सुखप्रद है ,यह जानकार भी कटु शब्द बोलना ठीक नहीं हैं। क्यों कठोर शब्द बोलना हैं ?
  10. मधुर शब्द के रहते कठोर शब्द बोलना फल रहते कच्चे फल तोड़कर खाने के सामान है।  

अतिथि सत्कार -तिरुक्कुरल --८१---९०

अतिथि सत्कार 
तिरुक्कुरल ८१ से ८० तक 

  1. गृहस्थ  जीवन   जीने का उद्देश्य ही अतिथि सेवा  करना  है ; उसी में ही गृहस्थ की प्रसिद्धि है.
  2. अतिथियों के रहते उनको खिलाना -पिलाना छोड़कर  खुद खाना ,भले ही अमृत हो खाना सही नहीं है.
  3. अपने यहाँ हर रोज़ आनेवाले अतिथियों की सेवा करके   जो खुश होता है ,वह  कभी दुखी नहीं होगा.
  4. प्रफुल्ल चित्त से अतिथि सत्कार करनेवालों के घर में लक्ष्मी निवास करेगी . 
  5. अतिथि सत्कार करके उनको खिला-पिलाकर शेष जो बचा है  उसे खानेवाले के खेत में बीज  बोना है क्या ?  अपने आप खेती होगी.
  6. आये अतिथि को खूब आदर सत्कार करके सादर भेजकर ,आनेवाले अतिथि की प्रतीक्षा में जो रहते हैं उनको  देवलोक के  देव  अपने अतिथि  बनाने  की प्रतीक्षा  में रहेंगे।
  7. अतिथि की योग्यता के अनुसार  अतिथि सत्कार के यज्ञ  का फल मिलेगा। 
  8. बचाए धन को खो देने के बाद लोग पछतायेंगे  कि हम  ने अतिथिसत्कार  क्यों  नहीं किया है। 
  9. अमीरों की दरिद्रता अतिथि सत्कार न करने से  ही है। वह अज्ञानता के कारण ही है। 
  10. अनिच्छा नामक एक फूल हैं। उसको सूँघते ही सूख जायेगी; वैसे ही अतिथि सत्कार में चेहरे में उदासी देखें तो अतिथि दुखी होंगे। 

प्रेम -संपत्ति --तिरुक्कुरल ७१--८०

तिरुक्कुरल 
प्रेम -संपत्ति --७१ से ८० तक.
  1. प्यार या प्रेम को बंद कर रखने  की कोई ताला  या कुंडी नहीं है; अपने प्रियजनों के दुःख देख आंसू अपने आप  प्यार प्रकट होगा ।
  2. जिनमें प्रेम नहीं है ,वे ही सब कुछ  मेरे कहेंगे। जिनमें प्रेम है वे अपनी हड्डी को भी पराये कहेंगे.अर्थात सर्वस्व तजने तैयार रहेंगे.
  3. प्राण पाना दुर्लभ हैं ; उसका बड़प्पन शरीर में रहने में है. शरीर से छूटने पर प्राण का महत्त्व नहीं ;वैसे ही प्यार की दशा हैं। 
  4. प्यार ही संसार  से आसक्त रहने का साधन है, प्यार भरा मन ही मित्रता निभा सकता है ;बड़ा सकता है.
  5. प्यार भरे दिलवाले ही संसार में  सानंद जी सकते हैं.
  6. प्यार वीरता का भी साथी हैं ,जो इस बात को नहीं समझते ,वे ही कहेंगे प्रेम केवल शर्म से सम्बंधित है.
  7. जिस में प्रेम नहीं हैं उसको धर्म ऐसे मारेगा जैसे हड्डी हीन जीवों को धुप जला देता है;
  8. प्रेम हीन जीवन मरुभूमि के सूखे वृक्ष के सामान है.
  9. आतंरिक दिल में प्रेम न होकर बाहरी अंगों की सुन्दरता व्यर्थ है। 
  10. प्रेम युक्त शरीर ही प्राण युक्त शरीर है;प्रेमविहीन शरीर  केवल चमड़े से ढके हड्डियों का ढांचा है.

संतान प्राप्ति --तिरुक्कुरल ६१ से ७० तक,

संतान प्राप्ति 
तिरुक्कुरल --६१ से ७० तक 

  1. गृहस्थ जीवन में चतुर होनहार  होशियार पुत्रों का पैदा होना ही सैव्श्रेष्ठ आनंद है। 
  2. जन्मे बच्चे सदाचार सद्गुणी हो जाते तो सातों परम्पराओं को कल्याण होगा  और कोई बुराई नहीं होगी। 
  3. मनुष्य जीवन में  संतान ही संपत्ति है;पर उन संतानों की संपत्ति उनके कर्म पर आधारित.
  4. कहते हैं अमृत ही श्रेष्ठतम है;पर अपनी संतान के नन्ही नन्ही उँगलियों से स्पर्शित  मिश्रित रोटी या भात उस अमृत से श्रेष्ठ है। 
  5. अपनी संतानों से गले लगाकर खुश होना मन और तन को आनंदप्रद है और उनकी तुतली बोली सुनना श्रवण सुख है.
  6. जिन लोगों ने अपनी संतान की तुतली बोली नहीं सुनी वे ही कहेंगे मुरली मधुर और वीणा मधुर।
  7. एक अभिभावक को अपनी संतान के लिए वही बड़ी सहायता है,जिनसे संतान भरी  विद्वत सभा में निर्भयता से अपने विचार प्रकट कर सके। 
  8. माता-पिता से बढ़कर कोई संतान ज्ञानी हो तो केवल माता -पिता  ही नहीं बल्कि सारा संसार खुश होगा।
  9. अपने बेटे को ज्ञानी होने की प्रशंसा सुनकर माता  उसके जन्म की खुशी  से बढ़कर अधिक खुशी का अनुभव करेगी। 
  10. एक संतान को अपने कर्म और ज्ञान द्वारा अग जग में नाम पाने से लोगों को कहना चाहिए  कि ऐसे पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए उसके माता पिता ने बड़ी तपस्या की है. यही उस पुत्र को अपने माता पिता के प्रति उपहार है।


Wednesday, January 27, 2016

तिरुक्कुरल ---अर्द्धन्गिनी --५१--६०

तिरुक्कुरल ---अर्द्धन्गिनी --५१--६० 


  1. आदर्श अर्द्धांगिनी वह है जो  सद्गुणों  से भरी  है  और पति की आमदनी के अनुसार गृह संभालती हैं.
  2. सद्गुणों से युक्त पत्नी न मिली तो उस गृहस्थ का कोई विशेष महत्त्व नहीं रहता. 
  3. सद्गुणों से युक्त  अर्द्धांगिनी  मिलने पर वह सौभाग्यवान  और सब कुछ प्राप्त गृहस्थ होगा.सद्गुण  न  होने पर सब कुछ होकर भी सब कुछ  खोया हुआ गृहस्थ है.
  4. स्त्रीयों में दृढ़ पतिव्रता  हो तो उससे बढ़कर पत्नी की  और कोई विशेष  बात  की आवश्यकता नहीं  है .
  5. .पत्नी जो सिवा पति के अन्य देवताओं  की प्रार्थना में नहीं लगती ,उसकी आज्ञा से वर्षा होगी .
  6. वही औरत है जो खुद पतिव्रता धर्म निभाती हैं और पति को भी निभाने में समर्थ होती है .
  7. सद्गुणों से अपने को रक्षा करके जीनेवाली  औरत को सताना अज्ञानता होगी. 
  8. पति का यशोगान करते हुए गृहस्थ निभानेवाली औरत स्वर्ग प्राप्त करेगी .
  9. सद्गुणी और सदाचारी पुरुष मिलनेपर औरत को गृहस्थ जीवन आनंद से भरा रहे गा, 
  10. पत्नी  अपने पति से प्यार करके तारीफ न करेगी तो  पति सर ऊंचा करके बैल सा नहीं चल सकता.
  11. पत्नी के सद्गुण ही  आदर्श  गृहस्थ  जीवन  है;गृहस्थ जीवन के आभूषण सदाचार पुत्र को जन्म लेने में हैं .

Tuesday, January 26, 2016

गृहस्थ जीवन तिरुक्कुरल ४१ से ५० तक.

गृहस्थ   ---तिरुक्कुरल ४१ से ५० तक. 

  1.   गृहस्थ  वही  है ,जो अपने परिवार के सभी नाते -रिश्ते का  पालन -पोषण सही ढंग से करता है. परिवार का सहायक है.
  2. गृहस्थ जो सपरिवार रहता है ,उसको साधू- संत ,दीन -दुखियों और अपने यहाँ मरनेवालों की अंतिम क्रियाएं करनी  चाहिए. वही गृहस्थ धर्म है.
  3. गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता उसी में हैं ,जिनकी कमाई ईमानदारी हो; अपयश से संपत्ति न जोड़े. निंदा कर्म की संपत्ति से डरें. गृहस्थ  का सार्थक जीवन  अनुशान में है.अनुशासित कमाई के वितरण में गृहस्थ की सफलता है.
  4. गृहस्थ जीवन  की सार्थकता प्रेम पूर्ण व्यवहार में है और अनुशासन पूर्ण कर्म में है.
  5. धर्म और अनुशान के गृहस्थ में जो फल मिलते हैं ,उससे बढ़कर सुफल अन्य कर्म में नहीं मिलेगा.
  6. वही गृहस्थ श्रेष्ठ  हैं ,जिसमें  ईश्वर से मिलने ,सहज रूप में धर्म पालन करने का प्रयत्न हो.और सपरिवार जीता हो.
  7. तपस्वी के जीवन से अति श्रेष्ठ जीवन  गृहस्थ जीवन है  जो धर्म पथ पर चलता हैं और अन्यों को भी धर्म पथ से हटने नहीं देता.
  8. धर्म  का पर्यायी ही गृहस्थ जीवन हैं ,उसमें अपयश या निंदा का स्थान  न रहें तो अति श्रेष्ठ और उत्तम है.
  9. गृहस्थ जीवन के नियमों को जानसमझकर  खुद पालन करके ,दूसरों से कराने करवाने वाले गृहस्थ जीवन श्रेष्ठ है.
  10. इस संसार में रहते हुए धार्मिक अनुशासित जीवन पर चलनेवाले गृहस्थ का जीवन ईश्वर-तुल्य जीवन  है.

Friday, January 22, 2016

तिरुक्कुरल धर्म पर जोर --३१ से ४० तक.



तिरुक्कुरल --३०  से ४० 

धर्म की विशिष्टता 

  1. धर्म   से  बढ़कर  बड़ी संपत्ति और विशेषता प्रदान करनेवाला और कोई नहीं  है,
  2. धर्म भालइयों  की खेती है; जीवन की समृद्धि का आधार है. धर्म  को भूलने से बढ़कर और कोई बुराई नहीं  हैं. 
  3. जो भी कर्म करना हैं ,उन सब को धर्म मार्ग पर ही करना है. 
  4. मानसिक पवित्रता ही धर्म है; बिन मन की पवित्रता के जो भी करते हैं वे सब मिथ्याचरण है और बाह्याडम्बर है.
  5. धर्म मार्ग में ईर्ष्या ,लोभ,क्रोध और अश्लीली और चोट पहुंचनेवाले शब्द बाधाएं हैं.
  6. धर्म कर्म को स्थगित न करके तुरंत करना चाहिए; ऐसे धर्म कर्म मृत्यु के बाद भी यशोगान के योग्य बने अमर यश बन जाएगा.
  7. पालकी के अन्दर बैठने वाले और उस पालकी को ढोनेवालों से धर्म के महत्व कहने की आवश्यकता नहीं हैं .  खुद समझ लेंगे.
  8. धर्म को लगातार सुचारू रूप से करनेवालों को पुनर्जन्म  नहीं है;वह स्वर्ग में ही ठहरेगा.
  9. धर्म कर्म से जो कुछ मिलेगा वही सुखी हैं ;अधर्म से मिलनेवाले सब दुखी है.
  10. अति प्रयत्न से करने एक काम जग में है तो वह धर्म कर्म है. अपयश या निंदा का काम न करना है.






Monday, January 18, 2016

तिरुक्कुरल धर्म बड़प्पन अनासक्तियों का। २१ से ३० तक



तिरुक्कुरल धर्म 

बड़प्पन  अनासक्तियों  का। 




१. ग्रंथों का  साहस  उसी में हैं ,जिनमें चालचलन और चरित्र में अटल अनासक्त लोगों के वर्णन  हो। 


२.  अनासक्त लोगों की प्रशंसा करना उस परिमाण सम  है   ,आज तक संसार में जन्मे -मरें    लोगों की संख्याएँ। 


३. जन्म -मुक्ति  जैसे जितनी  बातें  दो -दो  हैं उनके भेदों  को जानकर  शोध करके धर्म को अपनाने वालों के यश ही  संसार में  बड़ा  हैं. 


४. पंचेंद्रियों को वश  में करके दृढ़ मन से जीनेवालों का जीवन ही संन्यास  खेत का बीज बनेगा. 


५. पंचेंद्रियों की इच्छाओं के दमन का  बल  ही देवेन्द्र   बल  के   समान बल  है। 

६.     असाध्य कर्मों को साध्य करनेवाले ही  महान  हैं, 
 जहा  में. 
         साध्य को भी न  सकनेवाले  जहां  में छोटे  है. 

७. संसार  उसके  हाथ में  है  जो   स्वाद ,प्रकाश ,ध्वनि ,गंध ,  बाधाएं  शोध करके समझ सकते हैं। 

८. बड़े महानों के बड़प्पन को उनके वेद ग्रंथों की भाषा की शैली और भाव बता देगा. 

९.  गुणी ,सदाचारी  का क्रोध क्षण भर में  मिट जाएगा।

१०. सभी लोगों से दया दिखानेवाले धार्मिक महान ही विप्र  है.


Sunday, January 17, 2016

तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा की विशेषता। ११से २० तक

तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा  की विशेषता। 


  १, वर्षा के होने  से संसार जी रहा है; अतः वर्षा अमृत-सम है;

२.  वर्षा अनाज और अन्य खाद्य -पदार्थों की उत्पत्ति करती है; प्यासे का प्यास बुझाती है। 
३. वर्षा न होने पर समुद्र से घेरे इस संसार के लोग भूखे रहेंगे। 

४. वर्षा  न हुयी तो किसान हल लेकर खेत  न जोतेंगे।. (परिणाम संकट में लोग. महंगाई )

५. बिना बरसे बिगाड़ेगी वर्षा  जन  जीवन को; यो ही बरसकर सुखीबनायेगी वर्षा।

६.. वर्षा की बूँदें आसमान से न गिरेंगी तो घास तक न पनपेगा ; न होगी हरियाली।

७. मेघ  समुन्दर के पानी लेकर भाप बनाकर न बरसेगा  तो समुद्र भी सूख जाएगा।

८. वर्षा न होगी तो  ईश्वर की पूजा आराधना ,मेला उत्सव ,दैनिक पूजा पाठ सब बंद हो जाएंगे. 

९. वर्षा न होगीतो  संसार में दान -धर्म काम भी न चलेगा।  

१०. बड़े बादशाह हो अर्थात सम्राट हो ,जितना भी महान हो ,पर  वर्षा न होने पर जीना दुश्वार हो जाएगा। अनुशासन न रहेगा।  सभी दुष्कर्म होने लगेगा। 





तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा  की विशेषता। 


  १, वर्षा के होने  से संसार जी रहा है; अतः वर्षा अमृत-सम है;

२.  वर्षा अनाज और अन्य खाद्य -पदार्थों की उत्पत्ति करती है; प्यासे का प्यास बुझाती है। 
३. वर्षा न होने पर समुद्र से घेरे इस संसार के लोग भूखे रहेंगे। 

४. वर्षा  न हुयी तो किसान हल लेकर खेत  न जोतेंगे।. (परिणाम संकट में लोग. महंगाई )

५. बिना बरसे बिगाड़ेगी वर्षा  जन  जीवन को; यो ही बरसकर सुखीबनायेगी वर्षा।

६.. वर्षा की बूँदें आसमान से न गिरेंगी तो घास तक न पनपेगा ; न होगी हरियाली।

७. मेघ  समुन्दर के पानी लेकर भाप बनाकर न बरसेगा  तो समुद्र भी सूख जाएगा।

८. वर्षा न होगी तो  ईश्वर की पूजा आराधना ,मेला उत्सव ,दैनिक पूजा पाठ सब बंद हो जाएंगे. 

९. वर्षा न होगीतो  संसार में दान -धर्म काम भी न चलेगा।  

१०. बड़े बादशाह हो अर्थात सम्राट हो ,जितना भी महान हो ,पर  वर्षा न होने पर जीना दुश्वार हो जाएगा। अनुशासन न रहेगा।  सभी दुष्कर्म होने लगेगा। 













Friday, January 15, 2016

तिरुक्कुरल --प्रार्थना ७ to १०।

तिरुक्कुरल --प्रार्थना ७ to १०। 


७. 

तनक्कूवमै  इल्लातान ताल सेरंतार्ककल्लाळ 

मनक्कवलै  माट्रल  अरितु। 

मनुष्य   से  श्रेष्ठ  ईश्वर जिनका उपमेय उपमान नहीं हैं ,
उनके पादों के चरण  स्पर्श कर उनकी ही याद में 

रहनेवाले ही निश्चिन्त रह सकते है; उनका स्मरण न तो 
पीड़ा दूर होना  असंभव है. 

८. 
अरवाली  अंदणन ताल सेरन्तारक्कल्लाल   
पिरवाली नीत्तल अरितु। 

वे ही सुखी और धनी हैं जो  धर्माधिकारी ईश्वर के स्मरण में जीते हैं. 
उनका ही जीवन बनेगा सार्थक। दूसरोंको आर्थिक और अन्य सुख नहीं मिलेगा. 
९. 
कोलिल पोरियिन गुणमिलवे एण गुणत्तान 
तालै वनंगात तलै। 
पंचेन्द्रिय काम नहीं करता तो जो  बुरी दशा सिर  को होगी. 
वैसी ही दशा उनकी  होगी  जो ईश्वर  का ध्यान नहीं करता। 

१०. 
पिरविप्पेरुंगडल  निन्तुवर नींतार  
इरैवण आदि सेरातार। 
जो ईश्वर के चरणों में शरणार्थी बनते हैं  ,उनका जन्म ही सार्थक होगा. 
वे सांसारिक सागर पार करने में विजयी होंगे. अन्य नहीं पार कर सकते. 

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 









२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 


 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 



















Tuesday, January 12, 2016

तिरुक्कुरल --1 to 6-- praarthnaa प्रार्थना

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 









२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 


 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 









२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 


 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 







तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा  की विशेषता। 


  १, वर्षा के होने  से संसार जी रहा है; अतः वर्षा अमृत-सम है;

२.  वर्षा अनाज और अन्य खाद्य -पदार्थों की उत्पत्ति करती है; प्यासे का प्यास बुझाती है। 
३. वर्षा न होने पर समुद्र से घेरे इस संसार के लोग भूखे रहेंगे। 

४. वर्षा  न हुयी तो किसान हल लेकर खेत  न जोतेंगे।. (परिणाम संकट में लोग. महंगाई )

५. बिना बरसे बिगाड़ेगी वर्षा  जन  जीवन को; यो ही बरसकर सुखीबनायेगी वर्षा।

६.. वर्षा की बूँदें आसमान से न गिरेंगी तो घास तक न पनपेगा ; न होगी हरियाली।

७. मेघ  समुन्दर के पानी लेकर भाप बनाकर न बरसेगा  तो समुद्र भी सूख जाएगा।

८. वर्षा न होगी तो  ईश्वर की पूजा आराधना ,मेला उत्सव ,दैनिक पूजा पाठ सब बंद हो जाएंगे. 

९. वर्षा न होगीतो  संसार में दान -धर्म काम भी न चलेगा।  

१०. बड़े बादशाह हो अर्थात सम्राट हो ,जितना भी महान हो ,पर  वर्षा न होने पर जीना दुश्वार हो जाएगा। अनुशासन न रहेगा।  सभी दुष्कर्म होने लगेगा। 




तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा  की विशेषता। 


  १, वर्षा के होने  से संसार जी रहा है; अतः वर्षा अमृत-सम है;

२.  वर्षा अनाज और अन्य खाद्य -पदार्थों की उत्पत्ति करती है; प्यासे का प्यास बुझाती है। 
३. वर्षा न होने पर समुद्र से घेरे इस संसार के लोग भूखे रहेंगे। 

४. वर्षा  न हुयी तो किसान हल लेकर खेत  न जोतेंगे।. (परिणाम संकट में लोग. महंगाई )

५. बिना बरसे बिगाड़ेगी वर्षा  जन  जीवन को; यो ही बरसकर सुखीबनायेगी वर्षा।

६.. वर्षा की बूँदें आसमान से न गिरेंगी तो घास तक न पनपेगा ; न होगी हरियाली।

७. मेघ  समुन्दर के पानी लेकर भाप बनाकर न बरसेगा  तो समुद्र भी सूख जाएगा।

८. वर्षा न होगी तो  ईश्वर की पूजा आराधना ,मेला उत्सव ,दैनिक पूजा पाठ सब बंद हो जाएंगे. 

९. वर्षा न होगीतो  संसार में दान -धर्म काम भी न चलेगा।  

१०. बड़े बादशाह हो अर्थात सम्राट हो ,जितना भी महान हो ,पर  वर्षा न होने पर जीना दुश्वार हो जाएगा। अनुशासन न रहेगा।  सभी दुष्कर्म होने लगेगा।