अर्थ भाग --राजनीती --स्थान पहचान --४९१-से -५०० --तिरुक्कुरल
१. शत्रुओं का सामना उचित मैदान चुनकर करना है;शत्रुओं को दुर्बल समझकर कभी उदासीन दृष्टी से देखना न चाहिए.
२. दुश्मनों से अधिक ताकतवर होने पर भी सुरक्षित स्थान में रहना ही ठीक है और बुद्धिमानी भी.
३. दुर्बल भी तभी बलवान बनेंगे जब वे सुरक्षित स्थान में रहकर शत्रु का सामना करते हैं।
४. उचित रण-क्षेत्र चुनकर शत्रु का सामना करें तो विजय निश्चित है.
5. जब तक पानी में रहेगा तब तक मगर मच्छ को बल है;पानी छोड़कर बाहर आने पर दुर्बल पशु भी उसे हरा देगा.
६. बड़े जहाज जमीन पर नहीं चलेगा .सदृढ़ चक्र के रथ समुद्र पर चल नहीं सकता .हर एक को अपने अपने स्थान में ही बल है.
७.एक कर्म करने के लिए निडर रहना आवश्यक है.
८. छोटी सेना भी अपने उचित स्थान में रहेगी तो जीतेगी ही.
९. सुरक्षित दुर्ग के बिना ,सबल सेना के बिना शत्रु के यहाँ जाकर आक्रमण करना नामुमकिन है.
5. जब तक पानी में रहेगा तब तक मगर मच्छ को बल है;पानी छोड़कर बाहर आने पर दुर्बल पशु भी उसे हरा देगा.
६. बड़े जहाज जमीन पर नहीं चलेगा .सदृढ़ चक्र के रथ समुद्र पर चल नहीं सकता .हर एक को अपने अपने स्थान में ही बल है.
७.एक कर्म करने के लिए निडर रहना आवश्यक है.
८. छोटी सेना भी अपने उचित स्थान में रहेगी तो जीतेगी ही.
९. सुरक्षित दुर्ग के बिना ,सबल सेना के बिना शत्रु के यहाँ जाकर आक्रमण करना नामुमकिन है.