जिंदगी में सिखी कौन ?
धनी ? निर्धनी?स्वस्थ और स्वस्थ मन वाले?
धनी चिंतित अपने धन बढानै !
निर्धनी चिंतित अपने पेट भरने।
धनि चिंतित नव सभ्य के अनुसार
पोशाक पहनने, वाहन बदलने।
निर्धन चिंतित तन ढकने, वाहन देखने।
धनी निर्दयी वाहन पर तेज चलता
निर्धनी धनी की दुर्घटना में मदद करता।
धनी के आलीशान मकान निर्धनी के परिश्रम से।
पेट भरने मामूली पोशाक से संतुष्ट निर्धनी।
अपच पौष्टिक संतुलित भोजन के धनी
न उठा सकता बोझ। न चल सकता चार कदम।
न चैन की नींद। हमेशा अमीरी चिंतन।
गौरव -सम्मान का चिंतन।
स्वस्थ तन - मन व्यक्ति को न चिंता।
चंचल मन वाले होते अधीर।
उनका मन न घर का न घाट का।
मन की एकाग्रता उनकी होती
जो स्वस्थ हो, देव पुरुष हो।
अतः मन की स्वस्थता ध्यान पर निर्भर।
सिद्धार्थ ,महावीर राजसुखों से दुखी,
ईश्वर की तलाश में सुखी।
राजा हो तो सीमित कीरती।
बुद्ध बने ,जैन बने बने विश्व वंद्य गुरु।
राजसुख से ईश्वरीय सुख श्रेष्ठ।
भोग में सुख नहीं है, त्याग में ही है सुख।
सोचो, हमारे पूर्वज , र्रिषि मुनियों को सम्मान देते।
वे रहते जंगलों की कुटिरों में।
राम को शांति नहीं, पर शांत थे मुनि - संन्यास ।
पूरवजों का मार्ग त्याग,वही सनातन मार्ग।
भोग का मार्ग अंग्रेज - अंग्रेजी शिक्षा।
स्नातक - स्नातकोत्तर दंपतियों में है,
तलाक, मन मुटाव, असहन शीलता।
सोचो,समझो, मन की स्वस्थता
दान -धर्म - त्याग पर दो ध्यान ।।
मोदकप्रिय विघ्नेश.
पंचामृतप्रिय पलानीश्वर.
प्रियअलगअलग तभीहोतोआनंद.
तुलसीप्रिय विष्णु.
बिल्वप्रिय शिव.
जन रक्षक राम
जनरंचक कृष्ण.
शालीन मेंअशालीनक्या?
सोचा साहित्यमेंश्रुंकार को
क्यों कहते हैं रसराज.
विद्यावती काविपरीतरति,
कामायनीका अधखुला अंक
नीलपरिधान बीच
इसकाहैअपनाविशेषअलग.
विचारप्रकट करनेमें नरोक
अश्लीलता हटाने-मिटाने
हर एक का अपना अधिकार.
मनुष्य है,पशुनहीं
कुत्तोंसागलीमें पीछा करने.
साहित्य हैसंयम सिखाने.
साहित्यहैं अनुशासन सिखाने.
साहित्य हैइश्कसिखाने.
साहित्यहै दान-धर्म सिखाने.
सुखान्तहै साहित्य.
मोहान्ध मिटाने साहित्य.
अहंकारमिटाने साहित्य.
आनंद देने साहित्य.
काम-क्रोध-लोभमिटानेसाहित्य.
नश्वरजगतमेंअनश्वर दिखानासाहित्य.
दानव कोमानवबनानासाहित्य.
इनसबका महत्त्व जनकहैं साहित्यकार.
लौकिकता मेंअलौकिकतालाना
साहित्योद्देश्य.
सुप्तगँवार जनताको
जगाता आदर्श साहित्य.
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