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Saturday, July 30, 2016

सावधान ढोंगियों से

आश्रम

आज एक खबर ,
रोज एक खबर ,
ठगों की दुनिया में
किसी को ईश्वर पर
पूरा भरोसा नहीं।
तन मन नहीं लगाते
भगवान पर।
बालक ध्रुव ,प्रह्लाद
वालमीकि , तुलसी ,
कालिदास  सब के सब
रैदास किसी से मिले नहीं
कबीर दास तो एक कदम आगे,
उनके भगावान की भुजाएँ अनंत।
इतने महान भक्तों  का
केवल भगवान पर आत्म समर्पण ।
   मीरा , आंडाल जैसे भक्त
इतने आदर्श उदाहरण के बाद भी,
लोग मिथ्या साधु - संतों  के पास जाते है्,
एक दंपति एक  आश्रम  गए,
उनके  बच्चे  नहीं,  साधु मिथ्या -ठग।
कहा - मेरे सामने संभोग कर ,
तभी होगा बच्चा।
फिर  खुद बलात्कार में लग गया।

तभी  ढोंगी का पता चला।
भगवान  से सीधे करो विनती।
सद्यः फल की आशा  ,
मनुष्य को बना रहा है,
अंधा।!
सोचो, सीधे करो , ईश्वर से कामना।

Posted by ananthako at 4:03 PM No comments:
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Thursday, July 28, 2016

लौकिकता



श्री गणेश के नाम से ,

काम श्रीगणेश करो ,

निर्विघ्न चलेगा काम.

लौकिकता में डुबो जवानो,

पर दो या चार मिनट सोचो

अलौकिकता की बातें. 

जीवन अपने आप 

अनुशासित हो जाएगा.

जवानी में इश्क क्षेत्र 

केवल चालीस साल तक ,

बाकी जीवन तो और दस साल बढ़सकता है;

पूर्वजों की बात मानो , 

संयम सीखो ;

भारतीय  प्रणाली   आदर्श मय ,

 अच्छीसच्ची ,

भले ही   जिओ

आधुनिक जीवन.

वस्त्रों की कमी ,

जानो खींच  लेती बलात्कार.

सामूहिक मिलन तो ठीक ,

पर खतरों से नहीं खाली.

हर नजर अनुशासित नहीं होती, 

देखो दैनिक खबरें.

बुद्धी दी है ईश्वर ने 

सोचो-विचारों आगे बढ़ो.

चित्रपट के नायक- नायिका न मानो अपने को;

आज कल के नायक भी 

प्रारम्भिक  अवस्था  में है बदमाशी.

सोचो, समझो , जागो आगे बढ़ो.

नर हो, नरोचित मनुष्यता मानो;

जिओ चैन से , बेचैनी की बात समझो.
 

संयम  सीखो , आगे बढ़ो .
Posted by ananthako at 2:13 PM No comments:
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मनुष्यता निभाओ।

खारा  पानी  भाप बनने को किसी ने न देखा।
ऐसे कर वसूलना उत्तम प्रशासन कवि ने कहा।
हँसता -मुस्कुराता  चेहरा, नीर बिन नयन।
प्रेम  सूर्य   ,कमल खिले दिल सुखा देता।
मीठे पानी के बदले खारा पानी निकाल देता।
वेदना के  जीव - नदी बहा  देता।
तनाव  में इतनी गर्मी  मनुष्य को दीवाना बना देता।
एक क्षण के पागलपन प्रेम का ,
इतना  अन्याय, हत्यारे बना दैता,
अपराधी या खदखुशी।
आजीवन कष्ट।
यह माया प्रेम  आत्मा से नहीं ,
बाह्य रूप आकर्षण, शैतानियत।
हृदय की गहराई का प्रेम ,प्रेमिका के प्रति
या प्रेमी के प्रति  भलाई चाहता।
तेजाब न छिडकाता।
  मजहबी प्रेम ,जातीय प्रेम का संक्रामक रोग,
  विषैला वातावरण, रूढिगत आत्मनियंत्रण ,
आत्म संयम , शांति प्रद, त्यागमय जीवन।
चित्रपट दिखाता बदमाशी प्रेम।
चित्त मनुष्य  का हो जाता ,घोर।
प्रेम  की कहानियाँ अलग।
अबला नारी का अपहरण अलग।
रावण ने किया, रावण तो मर्यादा रखा।
भीष्म ने तो तीन राजकुमारियों को
जबर्दस्त लाया, उसके लिए
जो वैवाहिक जीवन बिताने लायक नहीं।
कहते हैं भीष्म प्रतिग्ञा ।
उनमें न दया, न मनुष्यता।
प्रेम रूपाकर्षण अति भयंकर।
जागो युवकों, आजीवन के
खारे अश्रु बहाने से बचो।
संयम सीखो, मनिष्यता निभाओ।

Posted by ananthako at 7:33 AM No comments:
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Wednesday, July 27, 2016

जीव वध

संजीव वर्मा सलील से प्रेरित
मेरे बकवास
मतलबी दुनिया में बेमतलब बातें सहज।
सलीलजी ।  अपना थूका न चाटेंगे।
परायों को सह पोंछ लेंगे।
भले ही जवान की जान चलें,
आतंकवादी को चोट न पहुँचे,
ऐसी थूक सह लेंगे।
बकरी काटने पर चुप रहेंगे।
तोते पाल ज्योतिष धंधा,
पक्षी तंग कह रोकेंगे।
वह तो  तोते पाल सुरक्षित रखता।
वह उसका जीविकोपार्जन के साधन ।
बंदर नाच दिखा पेट भरता ,
वह तो जीव -हिंसा।
ऊँट मार खाने पर हमारे नेता हाथ बँटाता।
कितना स्वार्थ।
तोता ज्योतिष को ब्लू क्रास
विरोध करता।
आया ,आया, भालू वाला,
लिए हाथ में भालू काला।
कलाकार क़े पेट पर मार
मुर्गा, बकरी, ऊँट ,गाय माँस खाना हक ।
जानवर रख तमाशा दिखाना,
सर्प रख तमाशा दिखाना जीवध।
जीव हिंसा रोकने वालों!
मेनकाजी। ऊँट बली के
विरोध बोल सकती है।
थूकेंके ऐसे वोट के लिए
एक धर्म का समर्थक।
दूसरे बहुमत धर्मियों का अपमान।
Posted by ananthako at 12:39 AM No comments:
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Tuesday, July 26, 2016

मैं हूँ साधारण वैधानिक - सांसद

मंच में स्थान पाने ,भटक रहा है मनुष्य ।
एक दोस्त आया, शाल दिया,
कहा, मंच पर चढूँगा,
मेरे नाम कह शाल ओढा देना।
पचास रुपया दूँगा।
आहा! मेरे दोनों हाथों में लड्डू।
मैं तो माला ,नाम मात्र कहकर नहीं,
विशेषण भी जोड दिया।
  हमाारे दायरे के दाता,दादा,
आदरणीय दयाराम  को
मेरा छोटा -सम्मान।
बस  बार -बार मंच मिला।
शाल ओढाने का काम मिला।
दयाराम से सुपरिचित ,
मुझसे मिलने लगे।
बार - बार शाल ओढाना।
मंच पर चढता -उतरता
धीरे -धीरे  एक शाल एक
बडे नेता ने पहनाया मुझे।
ऐसे सेवक मिलना दुर्लभ।
   मुझे मंच मिल गया।
भाग्य चमका।
नेता के खुशामद में ,
शब्द निकला-
बर्नाटशा सुना है, अब देखता हूँ,
लेनिन नाम सुना , अब देखता हूँ।
ईश्वर सद्यः -फल देते नहीं,
नेता प्रत्यक्ष देवता।
मिलो ,सद्यः फल मिलेगा।
ईश्वर तुल्य नेता को साष्टांग प्रणाम।
फिर  किया, नेता के पास खडा रहा करता।
मंच मिल गया।
   मैं जो बोलता हूँ ,खुद नहीं जानता।
बना  वैधानिक। बना सांसद।
न जानता देश प्रेम, न जानता सेवा।
लोग मुझे नहीं जानते, मैं  नहीं जानता जनता को।
नेता की जय घोषणा जानता।
चुनाव क्षेत्र और मेरा कोई तालुक नहीं,
मतदाता अति चतुर , मैं जीत जाता ।
मेरे  एक मंदिर,एक कालेज, बस मालामाल हे गया।
अब काले धन मुझे ओट ,
नोट से वोट, मेरे चाटुकार मुझे हारने न देते।
कमाते बहुत , विसा ,पास पोर्ट,
विदेशी बैंक,विदेशी यात्रा।
अच्छे अधिकारी, कुछ देशोन्नति  काम करते।
ठेकेदार पुल बनाते,
खासकर नेता की मूर्ती स्थापित करते ।
सडक बनाते तीन महीने में दरारे पड जाती।
फिर ठेका फिर सडक।
हर देश हित योजना,
पैसे बिना माँगे मिल जाते
चुनाव में खरच करना है,

मंच मिल गया, जय हो
भारतीय लोक तंत्र।

नेता के खुशामद में  जी रहा हूँ।
जय हिंद। वंदेमातरम्।

Posted by ananthako at 10:47 PM No comments:
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जय हिन्द

देश की एकता में
धर्म और जातियों के -भेद की बाधाएं क्यों?
भारतीय वर्ण व्यवस्था आदि काल से
पढ़े -लिखे सभ्य वर्ग ,
मेहनती वर्ग
शासक वर्ग
वैश्य
कालान्तर में छूत=अछूत के भेद;
विदेशी आक्रमण
अंतरराष्ट्रीय वैवाहिक,
कानूनी-गैर कानूनी सम्बन्ध
सनातन धर्म में आकार-निराकार -की मान्यता,
मूल हिन्दू अपनी इच्छा से धर्म बदलना
भय -दंड व्यवस्था के कारण
प्रलोभन के कारण धर्म बदलना
प्रेम के कारण
जो भी हो ,
भारतीयता धार्मिक परिवर्तन के साथ
खून से जुडा हुआ है.
यही बुनियाद पर्याप्त है,
विभिन्न रंगों और ढांचों
कमरों के भारतीय देश की इमारत
पक्की रहने के लिए.
इस बुनियाद में छिपी राष्ट्रीय एकता की भावना को
जगना,जगाना ,जगवाना
भेद भाव भुलाने में जागृति लाना
निस्वार्थ देश प्रेमी भक्तों का
लक्ष्य होना चाहिए.
स्वार्थ लोग
लोगों की भारतीय एकता
बिगाड़कर
अपने स्वार्थ सिद्ध करना चाहेंगे ही.
इनको समझना -समझाना भी
एक उद्देश्य होना चाहिए.
भारत के मुसलमान -ईसाई के पूर्वज हिन्दू थे
प्रसिद्ध संगीतकार ये .आर. रहमान ,
येसुदास के भक्ति गीत
धार्मिक एकता के जीता जागता उदाहरण.
भारतीयों जागो;
देश को सोचो;
अपने अपने धर्म पथ अलग
मनुष्यता की सेवा भावना एक.
इंसानियत निभाने
धर्म की जरूरत है
पर स्वार्थवश लड़ना- झगड़ना
अल्ला को या विश्वनाथ को या ईसामसीह को
स्वीकार्य नहीं ;
समझो ;जानो; ज्ञान मिलें;
मनुष्यता से रहो;
बचाना मनुष्यता ;
जान लेना पशुत्व;
बुद्धि से काम करो;
देश की एकता प्रधान है;
देशवासियों की एकता प्रधान है;
बुनियाद मज़बूत करो;
अपनी इमारत में सानंद रहो.
जय हिन्द! वन्देमातरम

Anandakrishnan Sethuraman's photo.
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Posted by ananthako at 1:34 PM No comments:
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मनुष्य गुण

है ?

क्या मन और दिमाग

दोनों एक ही बात सोचता है?

दिमाग कहता है

तो मन दौड़ता है

मन भागता है

मन लहराता है

अस्थिर मन के मूल में

आँखें प्रधान हैं

कान गौण हैं .

आसपास की घटनाएं

नाते रिश्ते दोस्तों की बातें

संगीत ,न जाने जड़ जंतुएँ

पालतू -जंगली जानवर .

छिपकली देखा,

उसकी निर्दय व्यवहार

मकड़ी देखी

इसका बेहरमीबर्ताव,

बाघ हिरन का शिकार

बड़ी छोटी मछली का व्यवहार

बिल्ली चूहा सबंध

ईश्ववर की सृष्टियों में

कोमल --निर्बल जानवर.

कीड़े मकोड़े

निर्मम ,निर्दय असहानुभूति

हमदर्द हीन.

पर मनुष्य

क्या करेगा ?किसको पता?

वह ओ काटेगा, चाटेगा,
दान करेगा, हत्या करेगा,
सहानुभूति दिखाएगा,
ईश्वर की आराधना करेगा.
ईश्वर की निंदा करेगा.
दैविक किताब,
मजहब जाति के नाम पर,
निर्दयी हत्याएं करेगा.
उसकी निश्चित बुद्धि नहीं है.
यही मानव का गुण ,
स्थापित करना ही मुश्किल.
भरोसा ? !!
Posted by ananthako at 1:29 PM No comments:
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