Thursday, June 27, 2013

मौन अर्थशास्त्री,शोर मचाती महंगाई' खामोश जनता; जहाँ देखो, वहां नेता हैं भ्रष्टाचारी; आम जनता है मजबूरी; लाचारी -बेचारी सहती हैं सब-कुछ ; जो ज़ोर से बोलने लगते हैं आम तौर से वे भी काले धन के अधिकारी; माया है,ममता है न देश-भक्ति कहीं नहीं; जो देश पर अधिक बोलता हैं , उसका लापता हो जाता है; भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलनेवाले भ्रष्टाचारी दोनों ही संभालते कुर्सी;यही मतदाताओं की मर्जी.

मौन अर्थशास्त्री,शोर मचाती महंगाई'
खामोश  जनता;
जहाँ देखो,
वहां नेता हैं भ्रष्टाचारी;
आम जनता है मजबूरी;
लाचारी -बेचारी सहती हैं
सब-कुछ ;
जो ज़ोर से बोलने लगते हैं
आम तौर  से  वे भी काले धन के अधिकारी;

माया है,ममता है  न देश-भक्ति कहीं नहीं;
जो देश पर अधिक बोलता हैं ,
उसका लापता हो जाता है;
भ्रष्टाचार के विरुद्ध  बोलनेवाले भ्रष्टाचारी
दोनों ही संभालते कुर्सी;
मौन अर्थशास्त्री,शोर मचाती महंगाई'
खामोश  जनता;
जहाँ देखो,
वहां नेता हैं भ्रष्टाचारी;
आम जनता है मजबूरी;
लाचारी -बेचारी सहती हैं
सब-कुछ ;
जो ज़ोर से बोलने लगते हैं
आम तौर  से  वे भी काले धन के अधिकारी;

माया है,ममता है  न देश-भक्ति कहीं नहीं;
जो देश पर अधिक बोलता हैं ,
उसका लापता हो जाता है;
भ्रष्टाचार के विरुद्ध  बोलनेवाले भ्रष्टाचारी
दोनों ही संभालते कुर्सी;यही मतदाताओं की मर्जी.

Tuesday, November 13, 2012

satya ka mahatv

मनुष्य    और जानवर  में कोई फर्क नहीं है। पर मनुष्य बहुत सोचता है। वर्तमान से उसको भविष्य की चिंता सताती  है। जो कुछ  उसको मिलता है, उससे संतुष्ट  नहीं  होता।  इसी प्रवृत्ति के कारण वह सभ्य बनता जा रहा है;
सभ्य मनुष्य  असभ्य मनुष्य  से ज्यादा दुखी है। वह कम्  परिश्रम पर  ज्यादा से  ज्यादा  सुख  अनुभव करना चाहता ही रहता है।उसकी कल्पनाएँ साकार होती  जा रही है।उन सुखों को भोगना सब के वश  में नहीं है।उसके लिए धन की जरूरत होती है।क्या धन काफी  है। नहीं।स्वास्थ्य की जरूरत है।क्या स्वस्थ्य ठीक होना पर्याप्त है। नहीं।फिर,ज्ञान की खोज में लगता है। बेवकूफ भी धन और बल प्राप्त  कर सकता है; पर ज्ञान। तभी समस्या उठती है।
मनुष्य में भेद-भाव उत्पन्न होते है।धन -बल का सहीप्रयोग  बुद्धि  के आधार पर ही होता है। धन और बल आसुरी प्रवृत्ति है। वह अशाश्वत संसार को शाश्वत मानती है।बड़ेबड़े ज्ञानि  को भी  धन और बल के बिना जीना दुश्वार हो जाता है।  पहले भूख की समस्या।फिर  कपडे ;फिर मकान। आहार तो आकार बढाने के लिए नहीं,जिन्दा रहने  के लिए आवश्यक है।वह प्राकृतिक है।  सूक्ष्मता से सोचने पर व्यस्त आदमी पेट की चिंता नहीं करता;वह काममें ही लगा  रहता है।जब आराम मिलता है,तब थोडा  खालेता है।  खाने-पीने की चिंता रखनेवालों से दुनिया बनती नहीं है।  जितने भी संत  शाश्वत सत्य छोड़कर गए हैं, वे तपस्वी हैं। वे खान-पान छोड़कर  विश्व हित के  ज्ञान -कोष 
छोड़ गए  है। उस ज्ञान कोष की आलोचना  और प्रति आलोचना  करके स्नातक बन्ने वाले  ,धन जोड़नेवाले लालच में  पड़कर  मनुष्य  में फूट डालकर आपस में  लडवाकर  अपने को अगुवा  अगुवा स्थापित करके अपने ही स्वार्थ लाभ के तरीके में संसारको  अलग अलग कर लेते  है।इसी को  सभ्य मानते है।  बुद्धिबल मानते हैं।  दूसरों को भिडाकर,दूसरों को बलि देकर  जीनेवाले अहंकारी के कारण  इंसानियत  नष्ट हो जाता है।कई सम्प्रदाय,कई राजनैतिक दल,लडाई -झगडा
के मूल में सिवा स्वार्थ के  अहम् के कुछ नहीं है। इसे सोचकर आम जनता चलेगी तो स्वार्थ,लोभी  नेता चमक नहीं सकते। एक नेता के जीने के लिए  हज़ारों मरते है;नेता अच्छे ,ईमानदार हो तो ठीक हैं,आजकल भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए  ईमानदारी अधिकारियों को  ही सजा मिलती है।यहाँ तक कि  अपने हत्याचार  और भ्रष्टाचार छिपाने हत्याएं भे करते हैं।ऐसे स्वार्थ नेता  या अधिकारी  के मानसिक परिवर्तन और जन हित के कार्य में लगाने -लगवाने के लिए ही मृत्यु है।रोग है।सत्य एक न एक दिन प्रकट होगा ही।


Sunday, July 22, 2012

तिरुवल्लुवर  में बड़ी कौशल  थी।उनके  हर कुरल  को पढ़ते समय  जो आनंद मिलता  है ,वह वर्णनातीत है।संघ काल के कवियों  से लेकर आज के कवी पावेंदर तक  सभी कवियों ने उनकी तारीफ  की थी।हर कुरल के अध्ययन से उनकी तारीफ  की सार्थकता  का पताचलेगा .

क्या एक कार्य के करते समय दूसरे  कार्य  को कर सकते हैं? औसत  बुद्धिवाले इस का जवाब नकारात्मक देंगे। वास्तव में ऐसे  करनेवाले संसार में रहते हैं।वल्लुवर  कहते है  कि   जैसे हम एक हाथी की सहायता से दुसरे हाथी को  पकड़ते  हैं, वैसे ही  एक कार्य  करते समय दूसरे  कार्य को भी  कर सकते हैं।ऐसे करनेवालों के लिए हार का सामना नहीं करना पडेगा।

रत्नकुमार:--once a project succesfully completed  use it to win new contracts  like capturing wild elephants by using  a trained elephnt one that is on  heat.

G.U.POPE:-TO MAKE ONE UNDERTAKING THE MEANS OF ACCOMPLISHING ANOTHER

IS  LIKE MAKING ONE RUTTING ELEPHANT THE MEANS OF CAPTURING ANOTHER.

वल्लुवर का उद्देश्य  कार्य को ठीक -ठीक करना चाहिए। आज के युग  में जीवन सघर्षमय  हो गया।पति -पत्नी  दोनों को कमाना पड़ता है।पत्नी  दफ्टर से आते समय  तरकारियाँ ले आती है;पति  सबेरे पैदा चलने जाता है  तो वापस  आते  समय   दूध  लाता  है। एक कार्य  करते समय दूसरा कार्य करते हैं। इसे ही वल्लुवर कुमुकी  हाथी  के द्वार जंगली हाथी  पकड़ना  कहते  हैं।इक्कीसवीं  सदी की बातों  को वल्लुवर ने दूसरी सदी में ही बताया है।

वल्लुवर के कुरल सचमुच  अद्भुत   और ज्ञानप्रद  है। उनका  शब्द प्रयोग  बड़ा ही शक्तिशाली  है।
शासक  और उनके   सहायक मंत्री  दोनों  को कार्रवाई  के दौरान क्या  करना चाहिए? इस की सीख  कार्रवाई
के   अधिकारं में मिलती  है।  एक प्रशासन  सठीक  चलने-चलाने  के सभी लक्षण इस अधिकारम  में मिलते हैं।
मुडिवुम   इडैयुरुम   मुत्ट्रीयांगू   एय्तुम  पडू पयनुम   पार्तुच  चेयल।


एक शासक को एक कार्य शरू करते ही उसे पूरा करने  के लिए सारा  प्रयत्न  करना  चाहिए।उस कार्य को  करने में  आनेवाली  बाधाओं  को  दूर  करके  कार्य की सफलता  होने पर  आनेवाले  लाभ पर ध्यान देना चाहिए।

जिस काम में अधिक लाभ  होता है ,वही करने  की कोशोश  करनी चाहिए।बधावों का सामना करना चाहिए।
रत्नकुमार इसे  अंग्रेजी में ' course  of   action ' कहते है।

the benefits the constraints and the resource  requirements  of a task must be identified   before starting to work on it.

g.u.pope:--the method of acting.

AN ACTING IS TO BE PERFORMED  AFTER CONSIDERING  THE EXERTION REQUIRED THE
OBSTACLES  TO THE ENCOUNTERED  AND THE GREAT PROFIT TO BE GAINED.



वल्लुवर  बहुत बड़े  ज्ञानी  थे।अर्थ  के महत्व  को बताते हुए  उन्होंने  कहा  है  कि  अतिथिसत्कार और परोपकार

करते समय  अपनी आर्थिक दशा  पर भी ध्यान  रखना  चाहिए।अगर अपनी  आय के विपरीत दान या अथिति  सत्कार   में लगें  तो धन  का विनाश  जल्दी  हो जाएगा।  यही वल्लुवर  ने कहा कि  अतिथि  सत्कार   में कोई  हानि होगी तो उसकी  बिना परवाह  किये  घाटा  सहकर अतिथि  सत्कार को प्रधानता  देनी चाहिए।

यह  तो  वैचारिक भेद  नहीं  है,  वल्लुवर  इसमें एक सतर्कता  आर्थिक  विषमता  पर ध्यान रखकर देते  हैं।यह उनके अनुभव ज्ञान  की सूक्ष्मता  का सूचक है।

रत्नकुमार:-IF ONE GIVES MORE HIS INCOME HIS WEALTH WILL SOON DEMINISH.

G.U.POPE:  THE MEASURE OF HIS WEALTH WILL QUICKLY  PERISH WHOSE LIBERALITY WEIGHS NOT THE MEASURE OF HIS PROPERTY.

Saturday, July 21, 2012

 


  शत्रुओं  से देश और प्रजा  की रक्षा  करना ही राजा का प्रधान कर्तव्य होता हैं।इस के लिए धन बढाना  आवश्यक है।दुश्मनों  के अहंकार दूर  करने  के लिए  ही अधिक धन  चाहिए। अतः वल्लुवर धन जोड़ने की सलाह और उपदेश देते है।
धन ही अधिक शक्ति शाली  अस्त्र -शस्त्र   होता  है।

कुरल:       सेयक  पोरुलै  ,सेरुनर सेरुक्करुक्कुम   एह्कू अतनिं कूरियतु इल।

अंग्रेजी  अनुवाद:- ONE MUST CREATE WEALTH  FOR IT  IS  THE MOST POWERFUL  WEAPON TO QUELL THE ENEMIES'  ARROGANCE.

G.U.POPE:-ACCUMULATE WEALTH;IT  WILL DESTROY THE ARROGANCE OF FOES;THERE IS NO WEAPON SHARPER THAN  IT.

  वल्लुवर  के कुरल के तीन भाग हैं--धर्म,अर्थ,काम;  इन तीन भागों में बीच  का अर्थ हक के पास इकठ्ठा  हो  जाए , तो  पहला  और तीसरा  भाग अपने आप आकर दोनों ओर  चिपक जाएगा।
अर्थ  नहीं तो धर्म  और  काम दोनों निरर्थक  हो जायेंगे।यही वास्तविकता युग-युगान्तरों से चली आ रही  है।

एक राजा  आर्थिक -बल और  सैनिक बल आदि   बढाने  के बाद  शत्रुओं को अपने अधीन ले आने की कोशिश में लगता है। पहले साम,भेद,दान  आदि तीन अस्त्रों  का  प्रयोग करता है। इन तीनो से शत्रु  न दबने पर चौथा अस्त्र  "दंड" का प्रयोग करने में विवश हो जाता है।तब वह अपने बल को अपने आप मूल्यांकन करता है।
यही  बल-जानना   अधिकारं है।अपने  कार्य की शक्ति,अपने बल,अपने शत्रु  का बल,अपने पक्षधारी का बल,
विपक्ष्धारी का बल सहायकों का बल  आदि   गहराई से छानकर  पहचानना ही बल-जानना  अधिकारं है।

कुरल:  अमैन्दान्गु  ओलुकान  अलवु   अरियान   तन्नै     वियनदान   विरैधू केदुम।

जो राजा अपने और दुश्मनों के  बल  को ठीक नहीं जान लेता ,उसका विनाश  ही होगा।

रत्नकुमार:  HE WHO IS DISRESPECTFUL  OF OTHERS BOASTFUL OF HIMSELF AND OVER ESTIMATES HIS CAPABILITY  IS VULNERABLE  AND HE WILL RUIN HIS LIFE.

G.U.POPE:
HE WILL QUICKLY PERISH WHO IGNORANT  OF HIS OWN RESOURCES   FLATTERS HIMSELF OF HIS GREATNESS  AND DOES NOT  LIVE IN PEACE WITH HIS NEIGHBURS.





वल्लुवर  आगे  "अर्थ"  के  महत्व  के बारे  में कहते  हैं।अर्थ  अर्थात  धन  रंक और राजा दोनों के लिए आवश्यक  हैं।   गाडी  के चक्र सही रूप से घूमने  के   लिए   ग्रीज़  की जरूरत है, वैसे ही जीवन चक्र  बिना घिसे चलने  के लिए  धन  रुपी  ग्रीज़  की जरूरत है। वल्लुवर महोदय  धन  का बड़ा आदर देते हैं।
सांसारिक  जीवन  जीने  के लिए  भोजन   के  लिए संग्राम  करना पड़ता  है।भोजन  के  लिए धन की ज़रुरत है। राजा को देश  के शासन  के लिए धन चाहिए।अकेले  आदमी को  अपने परिवार  के लिए धन  चाहिए।
अर्थ के बिना जीवन निरर्थतक  हो जाएगा।

राजा और मंत्री दोनों आपस  में सलाह-मशविरा  करके देश की आमदनी बढ़ने की योजनायें बनाते हैं।इन में मुख्या  है  जनता से कर वसूल करना;शत्रुओं  और दोस्तों से धन   जमा करने का मार्ग ढूँढना ;इसमें  राजा को अपने प्रजा की आय का भी योजनाएँ  तैयार करनी पड़ेगी।राजा की सुरक्षा के अधीन कई उद्योग -धंधे शुरू करके आमदनी का प्रबंध करना भी सम्मिलित है।

अर्थ -खोज  अधिकारम  के  दस कुरलों   में वल्लुवर ने चौदह  बार अर्थ शब्द  का प्रयोग  किया है।कुरल के तीन भागों  में वल्लुवर ने "अर्थ" भाग को अधिक प्रधानता  दी है।वैसे ही अर्थ-खोज  अधिकार को भी अधिक महत्व  दिया है। यह तो सोचने का विषय बन गया।
अर्थ-खोज  का पहला कुरल:-
 पोरुल  अल्लवरैप   पोरुलाकच  चेय्युम   पारुल  अल्लतु  इल्लै   पोरुल .

 पोरुल  तमिल  शब्द  का  हिंदी "अर्थ" शब्द  के सामान दो अर्थ होते   हैं।।1.धन .मतलब

अर्थहीन मनुष्य  जीवन को सार्थक  बनाकर प्रधान  बनाने की शक्ति धन को है।वैसे  ही सार्थक मनुष्य को निरर्थक   बनाकर  अप्रधान  बनाने  की शक्ति  अर्थहीनता में   है।

अंग्रेजी  अनुवादक इस अधिकारं  का नाम "wealth '" रखा है।
कुरल का अंग्रेजी  अर्थ:-- IT IS ONLY WEALTH THAT CAN ENHANCE THE STATUS OF A WORTHLESS PERSON.

G.U.POPE:-  BESIDES WEALTH THERE IS NOTHING  THAT CAN CHANGE PEOPLE OF NO IMPORTANCE  IN TO THOSE OF IMPORTANCE.





अमिल