श्री कार्तिकेय के स्मरण से होगा दुःख दूर.
पीड़ा हर ,कर्म फल के पाप हर
विजय मिलने , कार्तिक के यशोगान करने
पाषाण दिलपिघलने के श्रेष्ठ शब्दों में
श्री कवच श्रेष्ठ बनने,
वल्लभ विनायक
तेरे शरण पर वंदना.
समर्पण
करुणासागर ,सुन्दराकार
अपूर्व रूप ,अति सुन्दर
अति मधुर तप मुनि यशश्वी
अरुणगिरी मार्ग के पामबन स्वामी
अनेकों को इस सुअवसर पर
गुरु वंदना समर्पण.
गुरु पद चरण श्रीपाद चरण.
सतगुरु श्रीमद दुर्गादास स्वामीजी के पदकमल में शुभाशीष के साथ
गुह वीर श्रीमद वेंकटाचल शास्त्री जी के सुआशीष सहित
कनी भारती स्वामीजी रचित कुमार कवच.
कार्तिकेय कवच.
आकार आदियंत ज्योति स्वरुप
इहपर ईश्वर के सुपुत्र
उकार षट देव गति स्वरुप
अमारषटतेयु विधि रूप
मकार षटभव षष्टि कुमार षट कव निष्ट
षकार आदि षटाक्षर नाम मेरे कपाल की करे रक्षा.
आदि पुत्र सुन्दर शूल मेरे सर की सुविशेष करें रक्षा।
भूति पर मन्त्र शूल मेरे प्राण प्रिय से करें रक्षा.
ज्योति कर यंत्र शूल मेरे ज्ञान भरे माथा की करें रक्षा.
वेदतंत्र शूल मेरे दो नेत्रों को सहज करें रक्षा।
इतिहास दयाशूल मेरे दो भौंहों की करें दया सहित रक्षा.
किरणेश पवित्र शूल मेरे नाक की करें पुनीत रक्षा।
स्तुतिवास लयशूल मेरे बढ़ती शिखा की करें रक्षा।
पति प्रिय जयशूल मेरे श्रवणेन्द्रियों की करें मधुर रक्षा.
इसपति के भू शूल मेरे श्री मुख की शक्ति की करें रक्षा.
भूपति भाव शूल मेरे जिह्वा की करें रक्षा.
विभूति भरे शूल मेरे चिबुक की करें रक्षा.
सीपति तप शूल मेरे बत्तीस दांत की करें रक्षा.
रूप शक्तिशूल मेरे सम्पूर्ण अग्र भाग की करें रक्षा.
अरूप मुक्ति शूल मेरे पिछड़े भाग की करें रक्षा.
मरुप सिद्धि शूल मेरे दाए कंधे कीबल देकर करें रक्षा।
वरूप बुद्धि शूल मेरे बाएं कंधे की जुटकर रक्षा करें।
ऊलव सत्य शूल मेरे श्री छाती की कुशलता पूर्वक करें रक्षा.
जग नित्य शूल मेरे दाए हस्त जोड़ की करें प्रेप पूर्ण रक्षा.
बाल विद्या शूल मेरे दायें कलाई की करे रक्षा।
काल मध्य शूल मेरे दाए हाथ की पांच उँगलियों की करें रक्षा.
सरल दानी शूल मेरे दाए जोड़ की करें रक्षा.
स्पष्ट उन्नत शूल मेरे दाए कलाई की करें रक्षा.
सत्य के शूल मेरे दायें हस्त उंगलियाँ की करें रक्षा.
आनंद खुशामद शूल मेरे दो पृष्ठ कर की करें रक्षा.
सीढ़ी सा ऊँचा चढ़ाने सहायक शूल मेरे दो कंधे की करें रक्षा.
सब्र मोती शूल मेरी पीठ की करें रक्षा.
साहस के बीज-शूल मेरे श्री वक्ष की करें रक्षा.
विनम्र सिद्धि शूल मेरे श्री पेट की करें रक्षा.
नैमित्तिक अमर शूल मेरे कमर की करें रक्षा.
वैदिक कुमार शूल मेरे कमर की करें रक्षा .
पोतिक पर्वत मकर्शूल मेरे दो अंश कण की करें रक्षा.
नैतिक मधुर शूल हमेशा नर-नारी गुप्तांग की करें रक्षा.
दंड प्रद अभय शूल मेरे दाए जांघ की करें रक्षा.
हानि हर उभय शूल मेरे दाए पैर जोड़ की करें रक्षा.
कष्ट अभय शूल मेरे जांघ की सहज करें रक्षा.
सहन शक्ति धर्म शूल मेरे बाए पैर जोड़ की करें रक्षा.
षट किरण शूल मेरे घुटने की करें रक्षा.
दो षट बारह चतुर्शूल मेरे टखनों की करें रक्षा.
सविशेष समझके दूर शूल मेरे एड़ियों की करें रक्षा.
श्रेष्ठ षट शूल मेरे पाद की दसों उँगलियों की करें रक्षा.
औषक अस्त्र शूल मेरे दो चरणों को चलने की शक्ति देकर करें रक्षा.
औषध शस्त्र शूल मेरे सारे शरीर की करें रक्षा.
औटक षष्टि शूल साफ मन स्मरण देकर करें रक्षा.
औषध निष्ट शूल इह-पर सुख देकर करें रक्षा.
कार्तिक मॉस में कभी दुर्सप्न डरावना सपना न आयें;
दुखप्रद बुरा सपना ,भूत -पिशाच
अघोर रक्त राक्षस डाइन न आवें तंग करने.
पृथ्वी राजशूल मनको स्पष्ट ज्ञान देकर करें रक्षा.
जिह्वा में कटु शब्द और कार्य में बाद-कर्म
पर हानी कारक सांप ,पिल्ली -शून्य दृष्टि दोष
अहित्कारक दुखप्रद पीडाप्रद आदि से
अभय हस्त के स्कन्द शूल मेरी रक्षा करें.
चौ शरवण भवाय नमः ॐ षट भव नमो नमः .
कौ वर गुण कवाया नमः ॐ षटकव पधारो;पधारो ;
क्रौ नरगण देवाय नमः
संयम देकर शक्तिशूल करें मेरी रक्षा.
ज्ञान मोक्ष सद्गति प्राप्त करने रोड़े हैं
स्त्री सुख की कामेच्छा -अंत में बचेगा कुछ नहीं,
अनासक्त ईश्वर पर आसक्त होने जयवेल करें मेरी रक्षा.
अस्त्र-शस्त्र नाना प्रकार के लेकर ,
अत्यंत क्रोधांगिनी से मेरे शत्रु घेरें तो आक्रमण के लिए
बिना कोई हानी के पुलु तिवक्कम में बसे
लोकपति -लोकशासक आपके दयाशूल करें मेरी रक्षा।
णभव शरवतत्पुरुष शिवजी तुरत पधारिये!
लप टूट पड़नेवाले गुस्सैल वानर,कौए, उल्लू और अनेक
अचानक आक्रमण करनेवाले शेर-सिंह भालू आदि के आक्रमण से
तपवास शरवण भव तुरत करें मेरी रक्षा।
त्रिकाल ज्ञान शूल अष्ट दिशाओं में वीर शैव धर्म बढने की करें रक्षा.
गिरी बालक के वज्र शूल अष्ट दिकों में मायाजाल के बल पूर्ण
बुराइयों की वीर्य से मुझे न हो दुख.
मेरे दिल को वज्र -सा बल देकर कार्तिकेय करें मेरी रक्षा.
नृपति कर्मपति धर्मपति स्कन्द किरण शूल
गुरुपर गुह नकहर अक हर कार्तिकेय
मेरे आभ्यांतर और बाह्य रूप -गुणों को सर्वत्र करें रक्षा.
अली -बिच्छु -रेंगनेवाले विषैली जंतु ,उडनेवाले विष पक्षी
सब से कार्तिकेय करें मेरी रक्षा.
प्राण -भय देनेवाले पंच भूतों से
अर्थात आकाश ,अग्नि ,वायु,पृथ्वी ,क्षेत्र
आदि प्राकृतिक भय से कार्तिक के शूल करें मेरी रक्षा.
मैं तो अज्ञानी कार्य कारण नहीं जानता;
हजारों गज घेरकर प्राकृतिक कोपों से
कार्तिक का शूल करें मेरी रक्षा.
नव ग्रहों के पकड़ से कार्तिक करे मेरी रक्षा.
जिससे मैं यशोगान कार्तिक के कर सकूँ।
सर्वत्र विद्यमान कार्तिक के नामी शूल ,
मुझे सभी बीमारियों से करें मेरी रक्षा.
पित्त-वाद रक्त -शोक ,मधुमेह ,फीलपाव ,
नवद्वार के रोग इनमें से कोई मुझे पीड़ित न करें,
जन्म लेने पर जवानी ,बुढापा आदि में भी
कोई भयंकर रोग न हो मुझे.
ह्रदय रोग,नासूर,खाज खुजली
सन्निपात ज्वर आदि न हो;के
कार्तिक के चरण वंदना करता हूँ
ईश्वर करें मेरी रक्षा.
कार्तिकेय जग के मूल -प्रधान
तिरुप्परंगुन्रम के क्षेत्र -नाथ ,
दयावान कार्तिकेय के षट्चक्र स्थल तिरुप्परंगुन्रम।
मूलाधार चक्र स्थल क्षेत्र।
तरंगों के तट क्षेत्र तिरुच्चेंदुर ,
स्वादिष्ठान् चक्र क्षेत्र है द्वितीय।
वस्त्र हीन कौपीन से सज्जित
फल के न मिलने से क्रोध से आ बसी
ज्ञान क्षेत्र है तिरुआइनन्कुडि।
यह है मणिपूरक क्षेत्र।
गुरु उपदेश अपने पिता को ही दिए
अनाकत क्षेत्र हैं स्वामी मलै.
धर्म क्षेत्र पंचभूत बाहारी आतंरिक सब को
जितेन्द्र बने विशुद्धि चक्र स्थल है तिरुत्तनी।
आज्ञा चक्र क्षेत्र है पलामुदिर्च्चोलै जहाँ
कार्तिकेय के रूप वहाँ,हज़ारों सूर्य प्रकाश सम
ज्योतिर्मय स्वरुप अति अपूर्व.
ये षट चक्र के षन्मुख मुझे मेरी रक्षा करें.
सभी मेरे कार्य में जय प्राप्त होने दें.
हे कार्तिक! तू मेरे गुरु बन;
मेरे माँ बन ,मेरे पिता बन,
मेरे अपने सुपुत्र मान ,
मेरी भूलों को करें क्षमा.
करें मेरी रक्षा.
गुरु पद प्रणाम ;गुरु करें मेरी रक्षा.
पीड़ा हर ,कर्म फल के पाप हर
विजय मिलने , कार्तिक के यशोगान करने
पाषाण दिलपिघलने के श्रेष्ठ शब्दों में
श्री कवच श्रेष्ठ बनने,
वल्लभ विनायक
तेरे शरण पर वंदना.
समर्पण
करुणासागर ,सुन्दराकार
अपूर्व रूप ,अति सुन्दर
अति मधुर तप मुनि यशश्वी
अरुणगिरी मार्ग के पामबन स्वामी
अनेकों को इस सुअवसर पर
गुरु वंदना समर्पण.
गुरु पद चरण श्रीपाद चरण.
सतगुरु श्रीमद दुर्गादास स्वामीजी के पदकमल में शुभाशीष के साथ
गुह वीर श्रीमद वेंकटाचल शास्त्री जी के सुआशीष सहित
कनी भारती स्वामीजी रचित कुमार कवच.
कार्तिकेय कवच.
आकार आदियंत ज्योति स्वरुप
इहपर ईश्वर के सुपुत्र
उकार षट देव गति स्वरुप
अमारषटतेयु विधि रूप
मकार षटभव षष्टि कुमार षट कव निष्ट
षकार आदि षटाक्षर नाम मेरे कपाल की करे रक्षा.
आदि पुत्र सुन्दर शूल मेरे सर की सुविशेष करें रक्षा।
भूति पर मन्त्र शूल मेरे प्राण प्रिय से करें रक्षा.
ज्योति कर यंत्र शूल मेरे ज्ञान भरे माथा की करें रक्षा.
वेदतंत्र शूल मेरे दो नेत्रों को सहज करें रक्षा।
इतिहास दयाशूल मेरे दो भौंहों की करें दया सहित रक्षा.
किरणेश पवित्र शूल मेरे नाक की करें पुनीत रक्षा।
स्तुतिवास लयशूल मेरे बढ़ती शिखा की करें रक्षा।
पति प्रिय जयशूल मेरे श्रवणेन्द्रियों की करें मधुर रक्षा.
इसपति के भू शूल मेरे श्री मुख की शक्ति की करें रक्षा.
भूपति भाव शूल मेरे जिह्वा की करें रक्षा.
विभूति भरे शूल मेरे चिबुक की करें रक्षा.
सीपति तप शूल मेरे बत्तीस दांत की करें रक्षा.
रूप शक्तिशूल मेरे सम्पूर्ण अग्र भाग की करें रक्षा.
अरूप मुक्ति शूल मेरे पिछड़े भाग की करें रक्षा.
मरुप सिद्धि शूल मेरे दाए कंधे कीबल देकर करें रक्षा।
वरूप बुद्धि शूल मेरे बाएं कंधे की जुटकर रक्षा करें।
ऊलव सत्य शूल मेरे श्री छाती की कुशलता पूर्वक करें रक्षा.
जग नित्य शूल मेरे दाए हस्त जोड़ की करें प्रेप पूर्ण रक्षा.
बाल विद्या शूल मेरे दायें कलाई की करे रक्षा।
काल मध्य शूल मेरे दाए हाथ की पांच उँगलियों की करें रक्षा.
सरल दानी शूल मेरे दाए जोड़ की करें रक्षा.
स्पष्ट उन्नत शूल मेरे दाए कलाई की करें रक्षा.
सत्य के शूल मेरे दायें हस्त उंगलियाँ की करें रक्षा.
आनंद खुशामद शूल मेरे दो पृष्ठ कर की करें रक्षा.
सीढ़ी सा ऊँचा चढ़ाने सहायक शूल मेरे दो कंधे की करें रक्षा.
सब्र मोती शूल मेरी पीठ की करें रक्षा.
साहस के बीज-शूल मेरे श्री वक्ष की करें रक्षा.
विनम्र सिद्धि शूल मेरे श्री पेट की करें रक्षा.
नैमित्तिक अमर शूल मेरे कमर की करें रक्षा.
वैदिक कुमार शूल मेरे कमर की करें रक्षा .
पोतिक पर्वत मकर्शूल मेरे दो अंश कण की करें रक्षा.
नैतिक मधुर शूल हमेशा नर-नारी गुप्तांग की करें रक्षा.
दंड प्रद अभय शूल मेरे दाए जांघ की करें रक्षा.
हानि हर उभय शूल मेरे दाए पैर जोड़ की करें रक्षा.
कष्ट अभय शूल मेरे जांघ की सहज करें रक्षा.
सहन शक्ति धर्म शूल मेरे बाए पैर जोड़ की करें रक्षा.
षट किरण शूल मेरे घुटने की करें रक्षा.
दो षट बारह चतुर्शूल मेरे टखनों की करें रक्षा.
सविशेष समझके दूर शूल मेरे एड़ियों की करें रक्षा.
श्रेष्ठ षट शूल मेरे पाद की दसों उँगलियों की करें रक्षा.
औषक अस्त्र शूल मेरे दो चरणों को चलने की शक्ति देकर करें रक्षा.
औषध शस्त्र शूल मेरे सारे शरीर की करें रक्षा.
औटक षष्टि शूल साफ मन स्मरण देकर करें रक्षा.
औषध निष्ट शूल इह-पर सुख देकर करें रक्षा.
कार्तिक मॉस में कभी दुर्सप्न डरावना सपना न आयें;
दुखप्रद बुरा सपना ,भूत -पिशाच
अघोर रक्त राक्षस डाइन न आवें तंग करने.
पृथ्वी राजशूल मनको स्पष्ट ज्ञान देकर करें रक्षा.
जिह्वा में कटु शब्द और कार्य में बाद-कर्म
पर हानी कारक सांप ,पिल्ली -शून्य दृष्टि दोष
अहित्कारक दुखप्रद पीडाप्रद आदि से
अभय हस्त के स्कन्द शूल मेरी रक्षा करें.
चौ शरवण भवाय नमः ॐ षट भव नमो नमः .
कौ वर गुण कवाया नमः ॐ षटकव पधारो;पधारो ;
क्रौ नरगण देवाय नमः
संयम देकर शक्तिशूल करें मेरी रक्षा.
ज्ञान मोक्ष सद्गति प्राप्त करने रोड़े हैं
स्त्री सुख की कामेच्छा -अंत में बचेगा कुछ नहीं,
अनासक्त ईश्वर पर आसक्त होने जयवेल करें मेरी रक्षा.
अस्त्र-शस्त्र नाना प्रकार के लेकर ,
अत्यंत क्रोधांगिनी से मेरे शत्रु घेरें तो आक्रमण के लिए
बिना कोई हानी के पुलु तिवक्कम में बसे
लोकपति -लोकशासक आपके दयाशूल करें मेरी रक्षा।
णभव शरवतत्पुरुष शिवजी तुरत पधारिये!
लप टूट पड़नेवाले गुस्सैल वानर,कौए, उल्लू और अनेक
अचानक आक्रमण करनेवाले शेर-सिंह भालू आदि के आक्रमण से
तपवास शरवण भव तुरत करें मेरी रक्षा।
त्रिकाल ज्ञान शूल अष्ट दिशाओं में वीर शैव धर्म बढने की करें रक्षा.
गिरी बालक के वज्र शूल अष्ट दिकों में मायाजाल के बल पूर्ण
बुराइयों की वीर्य से मुझे न हो दुख.
मेरे दिल को वज्र -सा बल देकर कार्तिकेय करें मेरी रक्षा.
नृपति कर्मपति धर्मपति स्कन्द किरण शूल
गुरुपर गुह नकहर अक हर कार्तिकेय
मेरे आभ्यांतर और बाह्य रूप -गुणों को सर्वत्र करें रक्षा.
अली -बिच्छु -रेंगनेवाले विषैली जंतु ,उडनेवाले विष पक्षी
सब से कार्तिकेय करें मेरी रक्षा.
प्राण -भय देनेवाले पंच भूतों से
अर्थात आकाश ,अग्नि ,वायु,पृथ्वी ,क्षेत्र
आदि प्राकृतिक भय से कार्तिक के शूल करें मेरी रक्षा.
मैं तो अज्ञानी कार्य कारण नहीं जानता;
हजारों गज घेरकर प्राकृतिक कोपों से
कार्तिक का शूल करें मेरी रक्षा.
नव ग्रहों के पकड़ से कार्तिक करे मेरी रक्षा.
जिससे मैं यशोगान कार्तिक के कर सकूँ।
सर्वत्र विद्यमान कार्तिक के नामी शूल ,
मुझे सभी बीमारियों से करें मेरी रक्षा.
पित्त-वाद रक्त -शोक ,मधुमेह ,फीलपाव ,
नवद्वार के रोग इनमें से कोई मुझे पीड़ित न करें,
जन्म लेने पर जवानी ,बुढापा आदि में भी
कोई भयंकर रोग न हो मुझे.
ह्रदय रोग,नासूर,खाज खुजली
सन्निपात ज्वर आदि न हो;के
कार्तिक के चरण वंदना करता हूँ
ईश्वर करें मेरी रक्षा.
कार्तिकेय जग के मूल -प्रधान
तिरुप्परंगुन्रम के क्षेत्र -नाथ ,
दयावान कार्तिकेय के षट्चक्र स्थल तिरुप्परंगुन्रम।
मूलाधार चक्र स्थल क्षेत्र।
तरंगों के तट क्षेत्र तिरुच्चेंदुर ,
स्वादिष्ठान् चक्र क्षेत्र है द्वितीय।
वस्त्र हीन कौपीन से सज्जित
फल के न मिलने से क्रोध से आ बसी
ज्ञान क्षेत्र है तिरुआइनन्कुडि।
यह है मणिपूरक क्षेत्र।
गुरु उपदेश अपने पिता को ही दिए
अनाकत क्षेत्र हैं स्वामी मलै.
धर्म क्षेत्र पंचभूत बाहारी आतंरिक सब को
जितेन्द्र बने विशुद्धि चक्र स्थल है तिरुत्तनी।
आज्ञा चक्र क्षेत्र है पलामुदिर्च्चोलै जहाँ
कार्तिकेय के रूप वहाँ,हज़ारों सूर्य प्रकाश सम
ज्योतिर्मय स्वरुप अति अपूर्व.
ये षट चक्र के षन्मुख मुझे मेरी रक्षा करें.
सभी मेरे कार्य में जय प्राप्त होने दें.
हे कार्तिक! तू मेरे गुरु बन;
मेरे माँ बन ,मेरे पिता बन,
मेरे अपने सुपुत्र मान ,
मेरी भूलों को करें क्षमा.
करें मेरी रक्षा.
गुरु पद प्रणाम ;गुरु करें मेरी रक्षा.