Monday, December 8, 2014

जागो ; विचारों; देश की सम्पन्नता बचाओ.

राजनीति की विचित्रता ,
आम लोगों की लापरवाही ,
भारतौन्नती  तो यंत्रीकरण  मानना 
यह तो  ठीक नहीं ,
भारत तो देश किसानों का,
समृद्ध भूमि,
दस रूपये के बीज में 

हरियाली छा जाती हैं ,

विदेशों -सा अनुपयोगी पेड़ नहीं 

हर पेड़ में इलाज की शक्ति ;

पीपल का पेड़ हो या बरगद ,
नीम का पेड़ हो या इमली का 
हर पेड़ में नीरोग के गुण .

चन्दन के पेड़ ,मिर्च -इलायची के गुण अनेक.

अब स्वार्थ राजनीति तो कृषी का गला घोंट,
काले धन के बल चुनाव जीतने ,
कारखाने के मोह दिखाकर 
समृद्ध भूमि को विषैली भूमि बना रही है;

खेतों को नष्ट कर ,आवास बनाने से 
भविष्य में दाने -दाने के लिए तरसेगी जनता;
भव्य महल,कारखानें की धुएँ ,सुन्दर इमारतें 

धन-संपत्ति ,आधुनिक सुख -सुविधाएं 
धान्य न देगी,शिष्टाचार न देगी;
धन तो केवल रहेगी भोग  की  वस्तु;
योग की वस्तु तो प्रढूषित.
जगना है ,जगाना है आम लोगों को;
कृषी भूमि को छुडाना है इन स्वार्थी 
राजनैतिक ,लोभी  लोगों से .
जागो जनता,बचाओ भूमि को.
नदियों के प्रदूषण  को  ;
तत्काल के सुख है धन ;
सदा के सुख है धान्य
जागो ; विचारों; देश की सम्पन्नता बचाओ.

Sunday, December 7, 2014

बगैर मिथ्याडम्भर के।

प्राकृतिक  विश्राम और आनंद ,

कृत्रिम में  नहीं ,वह तो धनियों का आनंद.

प्राकृतिक  सुख  सब को बराबर,

वह नहीं देखता ,अमीरी -गरीबी ,

जन्म -मरण  तो सब के पीड़ादायक। 

माँ  की प्रसव वेदना  अमीर -गरीब में बराबर.

आदमी की मृत्यु वेदना  बराबर.

बीच  का जीवन कृत्रुम ,

उसमे कितना सघर्ष.

कितना मेहनत। 

कितना षड्यंत्र। 

आध्यात्मिकता में कितना 

धोखा  बाज। 

सोचो !तो  ईश्वर की आराधना हो 


बगैर  मिथ्याडम्भर  के। 

जप हो ,तप हो ,यज्ञ -हवं हो 

ठगने नहीं ,देश हित के लिए हो.
न हो  धन लूटने;
वह हो दान -धर्म के लिए;
काले धन जोड़ने नहीं ,
खाली  पेट भरने के  लिए.
दरिद्र नारायण  की सेवा  के लिए.
उसी में प्राकृतिक आनंद.
उसी में प्राकृतिक संतोष। 
उसी में शान्ति.
ॐ  शान्ति !शांति!शान्तिः!!1






Saturday, December 6, 2014

main hoon bharateey मैं हूँ भारतीय

मैं  न हिन्दू ,न मुस्लिम ,न ईसाई ,

इन सब के पहले  

मैं हूँ भारतीय.

साहित्य पढ़ा.

इतिहास  पढ़ा.

साहित्य के शुरुआत में 

लड़ते थे  राजा एक लडकी के लिए.

राष्ट्र की नहीं  चिंता;

न समाज और  जातियों की .

जिसका खाना,उसी का गाना.

वही आज  फिर पट-कथाएं दोहरा रहीं  हैं. 

इतिहास  में तो देश द्रोही ,

विदेशियों  के हाथ पकडे ,
उनको दे निमंत्रण,
बनाया देश को गुलाम.
भारतीय मंदिर ,सम्पत्ति ,प्राकृतिक 
समृद्धि , देख-सुन  विदेशी

लुटेरे आये ,तोड़े  मंदिर ,लूटे ,
खूब-धन .
वे  तो नहीं कलाप्रिय,

मन्दिर की सुन्दर मूर्तियाँ तोड़े 
निर्दयी ,लाखों के प्राण लिए ,
अपने लिए अलग देश माँग हटे;
उदार भारत के नेताओं  ने 
अन्य  धर्मों  को भी मिलाकर 
धर्म निरपेक्ष्य शासन स्थापित किया;
संविधान के सामने सब बराबर.

हिन्दू ,मुस्लिम ,सिक्ख ,ईसाई 
आपस  में रहे भाई -भाई;

आज  देखता हूँ  फिर भारत में 

स्वार्थ नेता,धार्मिक  अपने निज 
लाभ के लिए ,

जातिवाद  बढ़ा रहे हैं ,
धर्म के नाम लड़ा रहे हैं ,
सांसद ओवासी  भटका रहा है 
दो  पंद्रह  मिनट ,

सब भारतीय हिन्दुओं को 

मिट्टी में मिला  दूँगा;

भारतीय संविधान ने दिया है ,

इतना बड़ा अधिकार;

यदि  ऐसी बात कोई हिन्दू कह सकता है ?

न  कहेगा वह तो उदार ;
रूप -अरूप  माननेवाला.

आम लोगों में नहीं भेद-भाव.
स्वार्थी नेता जी रहें हैं 
फूट को बना आधार.
जागो! भारतीयों ,
न लड़ो धर्म के नाम.
ईश्वर एक पहुँचने का मार्ग अनेक.

कोई बच्चा पैदा नहीं होता 
हिन्दू ,मुस्लिम ,ईसाई मुहर लगाकर ,

ये सब स्वार्थी  धार्मिकों  का अधर्म काम,

इंसानियत  समझो,
इंसानियत निभाओ .

भारतीय बनो .
करो रक्षा देश की .
मैं हूँ पहले भारतीय .

बाद में हूँ धार्मिक .

मैं हूँ पहले भारतीय.







बरगद का पेड़ मैं हूँ अद्भुत.கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

 वटवृक्ष 

  जैसे अणु में जो ऊर्जा है 
,
वैसे ही छोटे बीज में दबे रहे

 विश्वरूप हूँ  मैं.

.वटवृक्ष  हूँ   मैं, एक 

अद्भुत वृक्ष  हूँ मैं.


शहीदों के 

 खून के कीचड   में 

उगकर

युगों के  प्यासों  के 

आंसुओं की बूंदों से

बड़ा हुआ  वृक्ष मैं.

मेरी   शाखाएं  

विंध्य हिमाचल की  चोटी   से

कुमारी अंतरीप के महासागर  तक

 लम्बी  बड़ी  हुई  हैं .

   मेरा मन  अपरिवर्तित 

 हरियाली -सा ,

दूध सा श्वेत  ,

सूखापन सहकर

 बडा हुआ वृक्ष हूँ  मैं.


मेरे  विशाल  छाया के लिए

फल के स्वाद  के लिए

प्रेम  वश आये पक्षियों का

  आश्रय स्थल हूँ मैं.

रंगबिरंगे

 भिन्न  भिन्न 

 पक्षी वर्गों की भाषाएँ  तो
 अलग.

लेकिन गाने के गीतों के

विचार तो एक.

\मैं  तो परिश्रमी 

पक्षियों  को 

प्रोत्साहित करने वाला

 तम्बू.


उनके हर उत्सव

 मेरी शाखाओं में

 रंग बने .

सत्य मेरा नित्य वेद.

प्रेम और शान्ति स्थिर

अपरिवर्तित  पाठ.

इसीलिये 

 बाजों और उल्लुओं को

मेरे स्वाभिमान 

 कोंपल रोक देती हैं .

केवल घोंसले  बनाने  के लिए 

 ही  नहीं ,

बैठने के लिए भी

 मेरी   शाखाएँ जो 

सैद्धांतिक   हैं 

स्थान नहीं देती.

शुल्क अदा करने पर भी

अनुमति नहीं,

 इसी में दृढ़ हूँ मैं.

समय के भंवर  में

मेरे दुःख और जाँच तो 

वर्णनातीत है.

 इतिहास  में 

 मैं पेड़ हूँ 

साधक.

चंद चिड़ियाएँ

 कहीं से आकर

मेरे फल  को चखकर

मेरे ऊपर ही छाछ करते हैं.

 चंद यहाँ फल  चखकर

 कहीं जाकर  बीज डालते हैं.

चंद पक्षी

चिडिया -शावकों को

पंखों के उगने के पहले

उनकी बोली में

भूलें निकालकर

उनकी बढ़ती 

रोकने में

लगे हुए हैं.

मुझमें  केवल

कठफोड़वा को

माफ करने का मन नहीं  है.

वे मेरी पोशाकें उतारकर

अपमानित करने में ही तो

आनंद पाते  हैं.

मुझमें छेद  बनाकर

सांप के बिल बनाने

देते हैं साथ.

मेरे बीज तो कडुवे है तो भी

मेरे फल हैं मीठे.

मेरे सर से जड़ तक कई

हज़ारों अवस्थाएं.


मेरी भूमि में कहीं इधर ,

कही उधर के बारूद के

 आंसू के रिसाव  पर

क्या आपने  ध्यान दिया है.?

मैं तो एक गरीब पेड़

गानेवाली चिड़ियाओं  को मात्र

खिलाता हूँ फल..

मुझमें  केवल

कठफोड़वा को

माफ करने का मन नहीं  है.

वे मेरी पोशाकें उतारकर

अपमानित करने में ही तो

आनंद पाते  हैं.

मुझमें छेद  बनाकर

सांप के बिल बनाने

देते हैं साथ.

मैंने  तो केले  की तरह 

 झुकने  की शक्ति तो

 नहीं पायी.

मुझे गिराने -गिरवाने की शक्ति

आंधी -तूफानों में नहीं
.
वे विलापकर चले जाते हैं.

मुझे तो वायु की चिंता नहीं.

मेरी घनी जड़ें बाहर  प्रकट

प्रकाशमान है;

बरगद का पेड़

मैं हूँ अद्भुत.

जिन्दगी கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

   जिन्दगी 


हम नहीं कह सकते   कि
जिन्दगी    जैसा भी हो
बुरा है   अवश्य .

जिन्दगी  में जीने का कोई मार्ग नहीं.
 यों
जिन्दगी में  दुखी होने से क्या लाभ?

ग्रन्थ के बारे में तेरे विचार 
 प्रशंसा से भले ही भरे हो,
लेकिन  ग्रन्थ तो पढ़ा ही नहीं  है

यदि तुम दोस्ती निभाने वाले
दोस्त हो तो कोईभी
कसर देखना  या  कहना नहीं चाहिए.
ऐसी मित्रता मैं नहीं मानता ,
जो टुकड़े टुकड़े होकर बिखरती हो.

ईश्वर तो असंख्य ,
पर दर्शन तो नहीं मिले.
मैं हूँ बहुत थका -मांदा.
मुझे  तो  सच्चे दर्शन 
ईश्वर के कभी नहीं मिले.

सभी चेहरे  झूठे ,
मुखौटे  पहने हुए.
मुखौटे मात्र बचे हैं,
मनुष्य सब के सब 
 नौ-दो ग्यारह हो गए.

मेरे शब्द तुझपर चोट पहुंचाएगा.
मेरे शब्दों की  परवाह न करना.
साथ रहे मनुष्यों में ,
उनके दिलों में
गहरे प्रेम  न होने पर ,
ईश्वर से दया की प्रतीक्षा 
  कर सकते हैं. कैसे?

वातावरण  तो  सब के सब  अच्छे हैं,
सिर्फ  मैं दुखी हूँ.

रोशनी के आवरण में
एक विचित्र अन्धकार को ही
मैंने देखा है.
मेरे ऊँचे विचारों के लिए
स्वर्ग  इंतज़ार कर रहा है.
लेकिन
थकावट साथ आ रही है.
हम आसपास के घरों में  रहने पर भी
लम्बे काल के बाद ही बोलने लगे हैं.
वे ही  प्यार के पताका उठाकर 
खड़े रहते हैं
जिनको आवास नहीं ,वस्त्र नहीं..

   जिन्दगी  की रोशनी और परछाई  के
 वार्तालाप को ही
मैंने लिखा है.
लेकिन  सिर्फ उन यादों को ही
 समझ न सका.

Friday, December 5, 2014

नदी की आवाज़ கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

एक नदी का स्वर 

मैं  हूँ  एक  जल कथा,

कुदरत की लिखी.

मिट्टी  के मानसिक

स्वर  के

 द्रव-अंकित.

भूगोल के नवीन युगों को  पारकर

खड़े रहनेवाली   जग  की जीवन रेखा.


बाह्य -चलन  का  उज्जवल निधि

उठने तड़पने  की मेरी लहरें

ठण्ड ज्वालायें.

जब भूमि प्रसव देने

गर्भ -धारण करती है,

तब मैं जीवाणुओं के लिए

 माता  के   दूध  स्त्रोत .



जो कुछ मैं अपने प्रपंच भाषा में  बोला ,

आप न समझ पाए

इसलिए मैं उन्हें स्थानीय बोली में

कहने आयी हूँ.

जीव की नाड़ियों-सा चलने तड़पकर

वन-नदी -सी जीवन बिता थी.

मेरे पहरे के लिए दो किनारे बनवाये .

मुझे  घमंड  हुआ ,गौरव मिला है. पर


मुझे इत्र-तत्र बाँध  बनवाकर ,

कारावास में डाल दिया है.

मेरी  सारी  दृष्टियाँ ,निचली  सतह  की ओर

ऊपरी सतह से आतंकित मैं  बनती हूँ  जलप्रपात.

बहनेवाले मार्ग भर  हरा शय्या  फैलाता हूँ.

आपके    पैरों  को गले लगाने

पुष्पों   का पुरस्कार ढोकर आती हूँ.

आप तो  काँटों को ही ,मेरे  चेहरे पर फेंकते हैं.

मैं तो आती हूँ आपकी गन्दगी  मिटाने ,

आप तो अपने मल-मूत्र  मैलों से  गन्दगी कर चुके हैं.

मैं अपने  सहोदरों  से अपनी राम कहानी सुनाकर

रोती  हूँ तो मेरे आंसू  ही समुद्र में भरकर खारा बनता है.

 समुद्र संगम के संकल्प  में

समरस को मानती नहीं हूँ .

अपने लक्ष्यों को गिरवी रखकर

दमन प्रणाली के लिए नत्मस्तक होती नहीं.

विलम्ब हो सकता है, लेकिन छूट नहीं मिलेगी 

हमें  सूरज का ताप  जलाता है.

मेघों के पंख  बांधकर

ऊपर उड़कर  दुबारा वर्षा की बूंदों के रूप में

जन्म लेते हैं हम.

मैं अपने क्रोध दिखाने  समय-समय पर उमड़ पड़ती हूँ.

आप तो न्याय को मिटा देते हैं.

मैं तो जमीन के साथ जमीन बनकर

घुटने के बल  चलकर  आपसे  कुछ माँगे  रखती हूँ;

इस जल की मांगें ठुकरायेंगे तो

मुझे  एक दिन आग की ज्वाला बनकर सीधी खडी होनी पड़ेगी.

கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

                                    मैं  और  कविता 

    भले ही मैं सूर्य न   बन सकूँ,
      फिर  भी 

    सड़क  के किनारे  के  गली-  दीप तो 
      बन  सकता हूँ  न ?

  भले ही मैं  बादल नहीं  बन सकता ,
  फिर भी प्यास से तडपनेवाली 
  गवैया चिड़िया के जीभ को 
  भिगाने की बूँद के रूप में  
   बदल  सकता हूँ  न ?
 भले ही करोड़ों फूलों का नन्दवन
 तो नहीं  बन  सकता ,
 फिर  भी सड़क के किनारे 
  पैदल चलनेवाले  के लिए 
  दिल बहलानेवाले  एक फूल बन 
  सुगंध फैला सकता हूँ  न ?
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  दोपहर  का शपथ 
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मेरा नंगापन 
मुझे ही शर्माता है.
आप तो इसे क्यों 
एहसास  नहीं करते.
क्या आपकी 
आँखों की रोशनी मंद पद गयी ?

क्या इज्जत का भाव 
जम गया  है ? या 
चल बसा है.
पशु भी अपने पैरों के बीच 
अपने मर्म अंगों  के नंगेपनको 
छिपाकर  सुरक्षित  रखता  है.
पक्षी भी पंखों से अपने अंगों को 
छिपाकर रखता है.

मन को निकालकर रखे 
मनुष्य आप  को 
 मान -मर्यादा की मृत्यु होने से 
कपडे उतारते देख 
दुखी न  हो सकता.

मुझमें  नए 
पंखें उगेंगे .
जलनेवाली अग्नि को भी ,
जलाएँगे मेरी अग्नि पंखें.
मेरे  लिए निर्धारित सीमा   को भी 
छू न सकने वाले  रंग लेपित 

पैरो से गुप्त प्रदेश के दर्शन काफी है.
आगे ,खुले आसमान में 
आजादी की खोज में  उड़ेंगी 
मेरी नयी पंख.
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kab aap mujhe bolne denge 

कब मुझे आप बोलने देंगे?

  कई युगों से आपने किया है बलात्कार.
मुझे कितना अपमान सहना पड़ा?
 मेरी इज्जत लूटने नंगा किया  गया.
मुझे नहीं पता ,संख्याएँ  कितनी?
 जितनी बातें प्रकट हुई, उनसे अधिक  बातें अप्रकटित.

जितनी पीडाएं कह चुकी हूँ,
उतनी से अधिक जो मैं प्रकट नहीं कर सकती.

आप ने मुझे कब बोलने  दिया?
लम्बे समय से प्रतीक्षा में थी.
मेरे चोटों के दर्द,
मेरी अपने अनुभव,
मेरी    अपनी भाषा में 
मेरे अपने शब्दों में कब आपने कहने दिया?
दुपहर की गली में 
चित्रपट में ,छोटे पट याने  टी ,वि, में 
पत्र-पत्रिकाओं में 
कितनी बार  आपने  मन भंग किया था ?
हस्तिनापुर का द्रौपती  मैं ,
जहाँ जहाँ  मैं  जाती हूँ,वहाँ वहाँ उतने  ही अवतार.
आपकी duniya में 
आपकी आँखों  ने  
आपको  जानकारी नहीं दी?
हमारे संसार को 
हमारी आँखों से  ध्यान से देखिये.
गौरव खोकर 
कौरवों ने मेरी साड़ी खींचकर 
अपमानित किया था?
तब श्री कृष्ण ने 
मेरी  साड़ी लम्बी की थी.
यह कहानी तो सब के सब  जानते हैं.
मेरे  अंग के कण -कण  में,
मेरे  पुष्ट शरीर के अंगों के 
अपमान का व्यास  कैसे  विस्तार से लिखेगा?
स्त्रीत्व का जोश  वीर्य बना ,
उसकी वीरता शिथिल हुई 
व्यास कैसे लिखेगा?
आप ने  कोमल फूल ,
आकाश के चाँद ,
भूमि की नदी 
शहर शहर में एक देवी .
यों ही कितने नाम दिए थे?
जड़ वस्तुओं के नाम देकर ,
भूल गए कि मैं एक मनुषी हूँ.
सुन्दरता के तेज़   कहकर 
ताज  पहनाकर 
हमारी बुद्धि को मंद बना दिया.
सुन्दरता  के शिखर  के रूप में 
पालकर .मेरे चिंतन को
 तेजहीन बना दिया.
मुझे तो पुनीत बाताया  ,लेकिन 
मनुष्यता को भूल गए.
सब कुछ यहाँ नारी होने से 
खुद अपने को पहचान  न सका.
आपने मुझे  कब बोलने दिया?
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स्वागत २००२

सहस्रों   नये नये  ख़्वाब मिटाए ,
पिछले साल की यादें हटाकर 

निर्मल आकाश के किरणें बनकर आना.

अन्धकार में  फँसकर तड़पे 
हृदय  में  ताजे लौ  बनकर आना.
वैज्ञानिकता के अति विकास में ,
धुएँ और धूल से लेपित 
भू ग्रह  में ,प्राण द्रव लगाकर 
स्वच्छ कर देना.
प्रपंच ग्रहों में  मानव को 
पीड़ित रोगों को 
चंगाकर 
नए युग  सृजन करने आना.