Sunday, February 22, 2015

तमिल साहित्य -एक परिचय --सुमार्ग --अव्वैयार ;

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Sethuraman Anandakrishnan

Shared publicly  -  10:45 AM



Sethuraman Anandakrishnan

Discussion  -  10:44 AM
मातृभाषा दिवस  के सन्दर्भ  में ,अव्वैयार ,तमिल कवयित्री के चालीस पद्य का गद्यानुवाद का  प्रयत्न किया गया है. आशा है ,हिन्दी भाषी इसका स्वागत करके अपनी रायें प्रकट करेंगे ; इनमें खूबी है तो  प्राचीन तमिल साहित्य का रसास्वाद कीजिये;


अनुवाद में भूलें हो तो समझाइये; टिप्पणी  आलोचना कीजिये जिससे मैं अपनी हिन्दी के भूलें समझ सकूँ. मेरे गुरु  प्रचारक प्रशिक्षण में ही मिले ;श्री गणेश मेरे माताजी गोमती ने और मामाजी ने किया;  आशा है हिन्दी भाषी भूलें हो तो समझायेंगे और मैं बुढ़ापे में  सुधर सकता हूँ. आज तक किसीने मेरी गलती नहीं बतायी हैं 
मेरे प्रचारक विद्यालय के गुरुवार राम्चान्द्रशाह ,ई.तंगप्पन जी ,श्री के.मीनाक्षीजी ,श्रीसुमातींद्र ,आदि के प्रति मैं आजीवन  आभारी हूँ.

    अव्वैयार --नल  वलि ----सुमार्ग --संघ-काल  ईस्वी पूर्व  दूसरी शताब्दी 

प्रार्थना गीत 
  गजवदन ! तेरे नैवेद्य के रूप में  ,
 दूध ,शुद्ध दही ,गुड-रस ,दाल  आदि मिश्रित 
पकवान दूंगी मैं;बदले में देना त्रि -तमिल
भौतिक ,संगीत और नाटक आदि तमिल भाषा ज्ञान देना.
   वर स्वरुप '"तमिल भाषा ज्ञान माँगना कवयित्री  के भाषा -प्रेम कीझलक है.

१. पुण्य-कर्म से मिलेगा सुख ,संपत्ति ;
   पाप  कर्म से होगा सर्वनाश;
  भू में जन्म लेनेवालों का खजाना तो 
  उनके पूर्व जन्म  के पाप-पुण्य कर्म फल ही;
 सोचकर अन्वेषण अनुशीलन करें तो ये ही सत्य है.
  बुराई तज,भला कीजिये .यही है जीवन के सुख की कुंजी.
२. संसार  में जातियां तो दो ही है;
एक  जो परोपकार ,दान -धर्म  और न्याय मार्ग  चलते हैं वे  ही 
उच्च जाति के मनुष्य  है;
जो  परोपकार  नहीं करते ,वे हैं निम्न जाति के लोग;
नीति ग्रंथों में यही बात हैं.
3. यह शरीर मिथ्या है,यह तो  वह थैली है ,
जिसमें स्वादिस्ट सामग्रीयां अन्दर सड़कर
 बदबू केरूप में निकलती है;
यह शरीर तो अशाश्वत है;
इसे स्थायी मत मानो ;समझो;
अतः  जो कुछ मिलते हैं 
उन्हें दान और परोपकार में फोरन लगा दो;
धर्म्-वानों को जल्दी मिलेगी  मुक्ति;
4.कार्य जो भी हो ,कामयाबी के लिए 
   भाग्य साथ देता हैं;
 जितना भी सोचो ; करो ;
 कामयाबी वक्त  और पुण्य कर्म पर निर्भर है;
इसे  न  समझकर प्रयत्न करना ,
उस अंधे के कार्य के समान हैं जो 
आम तोड़ने अपनी लकड़ी फेंकता है;

5.जिनता भी प्रयत्न करो,
   मांगो ,बुलाओ;चीखो ;चिल्लाओ ;
तेरी चाहों की वस्तुएं  न मिलने का सिरों rekha  है  तो 
कभी नहीं  मिलेंगी ;
जो चीज़ें नहीं चाहिए ,वे मिलना सहज है.
यह वास्तविकता न जान -समझकर दुखी होना ही 
अति दीर्घ काल से मानव -कर्म हो गया है.

क्रमश चालीस सुमार्ग अव्वैयार के सात दिन आयेंगे. 
आशा है हिन्दी जानकारी रखने वालों के लिए उपयोगी रहेगा 
तमिल  संघ साहित्य की जानकारी के लिए;

Friday, February 20, 2015

think and decide

we  are a leading a  life ,
which is a life of ignorance.

we don't know  the purpose of life.

wind blows  we are  throwing somewhere.

once people  said --this is my native land of  my  ancestors .

the house which we are living is our fore father's.

we lived together ,nearly twenty five members 

father ,younger-father ,small younger-father ,
uncle ,aunty ,and so on.
now my grand son or daughter are saying 
we don't know our native place or native town.
we born in  u.s.,my  father shifted to newyork,
i  am in caifonia, my mother is  in  london ,

my uncle is in singapore ,

totally  in  the world ,  there are full of relations .
my cousin married a north indian ,
there are many inter state ,
inter country inter language  relations
throughout india, throughout the world.
when such a mass group is forgetting religion ,country ,language ,thinking  they are one ,
another group which has selfish-mind ,
always splitting the people
in the name of caste ,religion , money language ,
this group is a problem to make peace and law and order.

modern world there is no pure ,
all are  having loveaffairs crossing the border.
it is a good sign made by God,

through modern inventions .
So ,I pray Almighty to give good sense among 
religious  leaders ,
don't split human beings in in the name of God.
God is one.

you go temple ,

you go mosque ,

you go church ,

what is your prayer ,

peace of mind.
sound  health,
sound body 
sound mind 
but when you want
to destroy one religion ,

automatically you will loose every thing ,

peace  of mind .
think and decide.

Saturday, February 14, 2015

हिन्दू धर्म --अंधविश्वास पर लूटते हैं ?

हिन्दू धर्म सम  अर्थात सनातन धर्म समान 

सत-मार्ग ,त्याग , दान -पुण्य आदि सिखानेवाला 

कोई और अति प्राचीन शिष्ट मार्ग और कोई नहीं है.

बड़ी भूल हमारे पूर्वजों ने जो की है  वही तो 


उदार धर्म को संकीर्ण बना दिया.

ज्ञान के भण्डार वेद -उपनिषद् आदि को 

सार्वजनिक न बनाकर एक अमुक वर्ग की सीमा में बांधकर रखा.

संस्कृत उन्नत भाषा को अन्ग्रेजी जैसे   सार्वजनिक न बनाकर 

उनको एक चौथायीभाषा  बनायी.

शिक्षा सब को देना मना कर दिया;

आदर्श  साधू -संतों के शिष्य  स्वार्थ बने ,

तरु तले बैठकर करतले भिक्षा ,तरु तले वासा  छोड़ 

धार्मिक क्षेत्रों में भी बाह्याडम्बर तथा अंधविश्वास  ,

सोना -चाँदी हीरे -जवाहरात  को प्रधानता देने  लगे;

मठाधिपति  की धोखे की कहानियाँ बाहर आयी ;

पुण्य -क्षेत्र व्यापारिक केंद्र बनने  राजनीति साथ देने लगी;

तीर्थ स्थानों में जो ठगते हैं ,
उन्हें ठग की संज्ञा का अर्थ यों कहने लगे 

भगवान् की परीक्षा;
इन व्यापारिक केंद्र जो हज़ारों  दिन ब दिन 

प्रसिदध  मंदिरों में बढ़ रहे हैं ,

उनके ठग के साथ देने वाले क़ानून के भक्षक.
इन   ठगों  को बढाने में साथ दे रहे हैं;
नकली रुद्राक्ष ,नकली चन्दन ,कितनी नकली चीज़ें 

एक सौ की चीज़ को काम घटाकर चतुर बीस रूपये में लेता हैं तो 

उस बीस की चीज़ को अन्धविश्वासी सौ रूपये में ही लेता है;
उनसे पूछें तो कहते हैं पुण्य क्षेत्र में धोखा खाना भी पुण्य है.

सबको पता है तिलक -चन्दन आदि लगाकर लूटते हैं ,

पुलिस को ही पता हैं ,

तिलक लगाकर लूटता हैं ,

फिर भी चुप रहते हैं .

ऐसे कदम कदम पर धोखा --

जब तक इसको नहीं रोकते तब तक 

हिन्दू धर्म पर हिन्दू ही दोषारोपण करता रहेगा.

तब हिन्दू धर्म में एक ही आवाज नहीं उठेगी.



Thursday, February 12, 2015

हाथी के दांत

  हम मनुष्य   है,नासमझ; 


 पर  चलते  हैं  या चलना पड़ता है ,

समझधारी  में अति मेधावी;

जीना  है  तो  सत्य का साथ देकर ही जीना है;

मरना है तो वैसे ही ;
पर यह तो केवल सैद्धांतिक .

सत्य  के  साथ चलना व्यवहार में चलना,

 कंटीले ,कंकरीले और पत्थरीला मार्ग;

अवश्य घाटा उठाना पड़ेगा;

साथी खोना पड़ेगा;

बंधन तोडना पड़ेगा ;

सत्य तो एक परीक्षा ;

कितने लोग उत्तीर्ण हुए पता नहीं;

लेते  हैं केवल   हरिश्चंद्र   का   नाम;

पर उनका जीवन चरित्र पालन तो 

भगवान कृष्ण भी न कर सके  पालन;
सत्य का साथ देना तो अति दूर,

धर्म युद्ध तो केवल मात्र कहने ;

अधर्म की छाया में तो   पांडवों  की  गर्मी मिटी;

यही मिथ्या जगत ,धन की महीमा;

निर्धनी ही केवल धन की महीमा ,

गा -गाकर  जगत बचाते;

लुटेरा  रत्नाकर ,बना वाल्मीकी  तो 

स्त्री लोलुप   तुलसी बना   तुलसी दास ;

जन्म से कलंकित ,

द्विधर्म ज्ञानी  कबीर   बना कबीरदास ;

उनके पूर्व -भाग तो  व्यवहारिक;

दास   बनने के बाद का जीवन तो

 केवल सैद्धांतिक;

जग चलता हैं यो ही 

सैद्धांतिक और व्यवहारिक दोनों को लेकर  जैसे 

हाथी के दांत  खाने के और ,और दिखाने के और;

अब विदित हो गया होगा ,

 खाने  के  दांत  ही व्यवहारिक ;

जीने के दांत तो सैद्धांतिक ;

यों ही चलती हैं राजनीति ,धर्म -नीति ,अर्थ नीति.















Wednesday, February 11, 2015

मैं हूँ प्रचारक. हिंदी का





मैं हूँ भाग्यशाली ,क्यों ?


   मैं हूँ एक भाग्यवान --कैसे ?क्यों ?कहते हो ;


पूछेगा कोई तो मेरे  उत्तर निकलेगा   यों ही ---

मैं हूँ तमिलनाडु का एक हिंदी प्रचारक;


मेरी माँ  गोमतिजी एक हिंदी प्रचारिका.

हम है प्रचारक तीव्र उस समय के ,

तब हिन्दी विरोध के कारण  जल रही थी गाड़ियाँ;

राजनैतिक चाल-छल में ,

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की नींव हिल रही थी;

तब  मेरे हिंदी क्षेत्र प्रवेश;

 महात्मा मोहनदास करमचंद गांधीजी की 

दूरदर्शिता  महान विभूति कीआस्था  में 

हम भी गिलहरियों  के समान हिलते नींव को 

मज़बूत बनाने में सैकड़ों छात्रों के कंकट जोड़ डाल रहे थे;

मेवा मिले या न मिले सेवा करें तो मिलेगा  संतोष;

मेरी नियुक्ति भी एक स्कूल में हुई ,

आन्दोलन के उस भयानक स्थिति में ,

हिन्दी अध्यापक के रूप में ,

जब मेरे अन्य  सहपाठी थे बेकार;

हिंदी  द्वि भाषा सूत्र के कारण  ,

पाठशालाओं से तो चली ,

पर  मेरे घर में तो छात्र संख्या बड़ी;

सेवा तो शर्त के अनुसार बिलकुल मुफ्त ;

एकसाल -दो साल में मिलती एक अध्यापक विद्यालय अनुदान;

मैं और माँ  भूखा -प्यासा प्रचार में लगे तो 

एक आत्म -संतोष; आत्म -शान्ति -आत्म -सम्मान;

जहां भी शहर में जाए कोई न कोई कहता "नमस्ते जी;


उस समय का वह आनंद ब्रह्मानंद सा लगता;


प्रचार छोड़ चेन्नई में वेस्ली स्कूल में ,

हिन्दी अध्यापक की नौकरी मिली 


मेवा तो मिला ,सेवा सम्मान तो प्रचारक के रूप में ;


इसीलिये  तो  मैं भाग्यवान हूँ 


सत्याग्रही  आचार्य जो मद्रास सभा के  प्रबंधक  थे 

उनके द्वारा  सूचना मिली  वेस्ली स्कूल  चेन्नई में 

हिन्दी अध्यापक पद  खाली है ;जाइए ;मिलिए ;

पांडिच्चेरी  सभा  शाखा में हुई मेरी नियुक्ति;

संगठक थे कर्तव्य परायण आर.के. नरसिम्हन जी;

सचिव थे श्री एम् .सुब्रह्मणयम जी ; ई.तंगप्पनजी

आठ महीने की नौकरी इस्तीफा करके चला ;

मेरे शहर पलनी को ;

भगवान ने भागीरथ प्रयत्न करने  पर भी भगा दिया चेन्नई को;



वेस्ली स्कूल के चार साल की नौकरी आराम से बीता;


स्कूल जाता; छात्र बंद; स्कूल बंद ; वेतन पक्का ;


तब से  श्री वेंकटेश्वर जी ,

तिरुमलै बालाजी की पूरी कृपा मुझपर लग गयी;



वेस्ली के शेल्वादास  जो बी;टी ;विज्ञान के  अध्यापक थे 

मुझे एम् .ए;पढने की प्रेरणा दी;

सौ रूपये छूट परीक्षा शुल्क सहित ,

दो सौ रूपये में एम् .ए;

मेहनत करने की शक्ति ,बुद्धी दोनों  दीं  

भगवान गोविन्दजी ने;

तभी स्कूल में हायर सेकंडरी का परिचय;

एम्.ए के  परीक्षा फल के  आते ही  हिन्दू स्कूल में 


स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक;

फिर क्या एक भाग्यवान प्रचारक  केलिए;


मैं जितना हो सके .उतना सत्य का पालन किया .


भले ही लौकिकता के कारण कुछ झूठों को साथ देना पड़ा;


हिन्दू एजुकेशनल आर्गेनाईजेशन 


 एक मामूली संगठन नहीं,


बड़े तीव्र मेधावी अटर्नी जनरल परासरण  समान दिग्गज 


 न केवल ज्ञान के बल्कि 

लक्ष्मी के वर-पुत्र ;

सत्कैंकर्य शिरोमणि एन.सी राघवाचार्य ,

प्रतिभाशाली वकील अध्यक्ष थे 

.
प्रसिद्ध ऐ. ए.एस/  ऐ.पि. एस.  सदस्य सचिवगण;


अध्यापक सघ की ओर से हर साल बालाजी दर्शन;

मेरे सह -अध्यापक कितने मिलनसार ,

कितने सहृदय दानी ,मित्रता के प्रतीक 

उस संस्था  ने मुझे प्रधान अध्यापक पद पर भी  बिठा दिया;

हम मद्रास शहर के दो प्रचारक पि.एस .चंद्रशेखर ,सनातन धर्म स्कूल के 


और मैं हिन्दू हायर सेकंडरी के 

दोनों को अपने दायरे में उच्च पद मिला;

हिन्दी प्रचारक --हेडमास्टर    सम्मान  ;

फिर भी मैं भाग्यवान -सभा ने सम्मान दिया;

मद्रास प्रचारक संघ ने दिया; भले ही मैं  दूर रहा.

बेस्ट हेड मास्टर का साम्मान दो संस्थाओं से 

उनमे एक चेन्तमिल  विरुम्बिकल मामन्रम ;

अब कहिए-- मैं भाग्यवान इसलिए हूँ -

मैं एक हिंदी प्रचारक मामूली.

अब अवकाश प्राप्त 30 हज़ार का सरकारी पेंशनर .


धन्य पूज्य मोहनदास महात्मा राष्ट्रपिता 

जिनकी दूरदर्शिता ने हज़ारों प्रचारकों को सक्रीय बनाया है.


ई. तागाप्पंजी ,टी.पि.वीराराघवन जी ,एम्; सुब्रह्मनियम जी .

आर.के. नरसिम्हन जी,श्री सुमतींद्रजी ,श्री श्रद्धेय वि.एस .राधाकृष्णन जी 

आदि सभा के सचिवगण
 ,
जिन्होंने सभा को मज़बूत बनाने में 

प्रचारकों को हिंदी विरोध की मरणावस्था  में प्रोत्साहित किया;

सभा को मज़बूत किया.

केंद्र सभा से परिचित नहीं  था  उस समय ;

.
धन्य है १९६५-से ७५ तक के सचिव 

,संगठक ,प्रधान सचिव ,परीक्षा सचिव ,

अन्य कार्य कर्ता,प्रचारक 

जिनके अथक प्रयत्न से 

साथ ही  कार्यकारिणी समिति की योजना से 


आज तमिलनाडु में  एक मात्र संस्था सभा ;

देश का श्रेष्ठ  काम;  मूक साधना का प्रतीक 

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा.