Sunday, January 10, 2016

निराली

भारत निराली
भारतीय ता निराली
भारतीय भाषा भेद निराले
भारतीय  आध्यात्मिक सिदःधांत निराले।
भारतीय भक्ति धारा निराली।
भारतीय पतिव्रतता निराली।
जवहर व्रत सति प्रथा निराली।
  वेद गीता उपनिषद ग्रंथ निराले।
दिगंबर महावीर निराले।
  राजा के मन पसंद राजकुमारी लाने
मरने वाले  वीरों का त्याग निराले।
धन को तुच्छ समझने के साधु संग निराले।
आचार्यो के आश्रम में स्वरण सिंहासन निराले।
हमारी तो बातें ही निराली।
ईश्वरों के सहस्र नाम निराले।
जाति '-धर्म.संप्रदाय भेद निराले
भक्तों के विभिन्न तिलक निराले।
मंदिर निराले, मंदिरों के निर्माण निराले।
ईवशवरीय आभूषण  निराले।
सभी बातें निराली।
विदेशी पूँजी भारतीयों  की  मेहनत बाते निराली।
यथार्थवादी बहुजन विरोधी।
वसुदैव कुटुंबकम् ।
सकल जगताम सुखिनो भवंतु।
जागो ! भारतीयो के व्यवहार निराले।

Thursday, November 26, 2015

जागो

अगजग देखो,
जागकर देखो
जहा अच्छा है या बुरा।
ईशवर की रीतिनीति देखो।
इस जग को देखो।
हिरन सा साधु।
साँप सा विषैला।
बडी मछलियाँ
छोटी मछलियाँ
मकडियाँ
छिपकलियाँ
जोंघु
न जाने
विषैली पेड पौधे
आरोग्यप्रद जटिबूटियाँ.
इन सबों को मिलाकर
ईश्वर ने बनाया
अहं ब्रह्मास्मि का
अहंकारी मनुष्य।
दंड मृत्यु दंड तय करके।
मरता है.मारता है।
जो भी भला बुरा करता है
नाटक का मंच
दृश्य बदलता रहता है।

Wednesday, November 18, 2015

परेशानी ही होगी परेशानी.

विश्व के व्यवहार देखो ;

धन  ही धन  जीनेवाले ,

निर्धनी सा सुखी नहीं ;

निर्धनी का विचार है 

धनी ही सुखी. 

धन जोड़कर देखो ;
धनी बनकर सुखी बनो ;

बाह्याडम्बर  के चक्कर में 

आधुनिक सुख सुविधाओं ओ भोगकर देखो ;

पैदल चलना भारी हो जाएगा;

ज़रा सा सर्दी ,ज़रा सी गर्मी सहना मुश्किल 
हो जाएगा; 
बिजली का पंखा ,
वातानुकूल कमरा 
सुख झेलकर एक दिन भी 
उनके बिना मीठी नींद सोना 
दुर्लभ हो जाएगा। 

कृत्रिम वातावरण में पलने से शरीर 
साथ न देगा ;
पानी तक फूँक फूंककर पीना पडेगा;
साँस  लेना दुर्लभ हो जाएगा;

रोग रहित गोली रहित सुविधा रहित जीवन 

नरक तुल्य बन जाएगा;

निर्धनी सा मीठी नींद ,
निर्मल हँसी  ,
मिलना जुलना असंभव हो जाएगा;
नौकर चाकर का आदर मिलेगा;
दिली मुहब्बत मिलना दूभर हो जाएगा;
नाते रिश्ते भी 
ऐंठकर रहेंगे;
ऊँचे  पर पहुँच जाओ 
सुरक्षा दल  के बिना चलना बाज़ार में 
बेचैन हो जाएगा. 
चाय की दूकान  से प्रधान बने मोदीजी ,
स्वयं सेवक मोदीजी ,
अभिनेता कंडक्टर से बने रजिनी जी 
तब जैसे आम जगहों में स्वच्छंद घुमते ,
अब सुरक्षा दल सहित चलना पड़ता है;

धनी और उच्च पद पर देखो 
बेचैनी ही बचेगी ज्यादा;
हर शब्द हर चाल में ज़रा सी असावधानी 
चर्चा बन जाएगी;
कपडे पहनो उसके दाम की चर्चा;

लड़की से हाथ मिलाओ चर्चा ;
चर्च जाओ चर्चा ;मस्जिद जाओ चर्चा ;
न जाओ तो नास्तिक;
जाओ तो धार्मिक ;
अमुक धर्म का अनुयायी ;
अमुक धर्म से फिसलकर विधर्मी का समर्थक;
जो  करो अखबार में आलोचना;
धनि और उच्च पद पर पहुंचकर देखो 
परेशानी ही होगी परेशानी. 






Tuesday, November 17, 2015

पाप।

ईश्वर  की करुणा अपूर्व।
बचपन  जवानी बुढापा मृत्यु
रीति बनाई।
अवनी को नश्वर बनाया।
फिर भी मनुष्य कर रहा है
अन्याय।भ्रष्टाचार। रिश्वतखोर।
चुनाव में मनमाना।करोडों का खर्च ।
खर्च कमाने मनमाना।

देशद्रोह। कलंकित पापी आत्मा।
न पुण्य न धर्म न पाप।
न भय ईश्वर का।
न भय नरक का।
मारने मरवाने मजदूरी सेना।
धर्म के नाम वध करने की सेना।
आत्म हत्या की सेना।
न जाने मनुष्यता कहाँ गईः

Saturday, October 31, 2015

तिरुक्कुरल

குறள் 280:
    மழித்தலும் நீட்டலும் வேண்டா உலகம்
    பழித்தது ஒழித்து விடின்.
अगजग की निंदा के कर्म न कर।
यही अनुशासन ईशवर प्रिय।
दाडी जटा बढाना बाह्याडंबर।
  अपयश के कर्म  न करना।
ऐसा रहें तो सर मुंडन या दाडी जटा बढाने की जरूरत नहीं।

Tuesday, October 20, 2015

राष्ट्रहित की योजना

मैं  बहुत सोचता रहता हूँ  कि  जग भला है  या बुरा ?
जग तो भला ही है।

पर रोज़ दैनिक समाचार पत्रों में अच्छी खबरों को छोटे अक्षरों में कहीं कोने में

बुरी खबरों को चोरी डकैती हत्या बलात्कार भ्रष्टाचार आदि ख़बरों को बड़े अक्षरों में छापते हैं;

अभिनेता और अभिनेत्री सम्बन्धी खबरे भी मोटे अक्षरों में;
न जाने संसार की भलाई करने वालों को जल्दी दंड
बुराई करनेवालों के पक्ष में बड़े बड़े लोग

उनकी रिहाई के लिए तैयार;
हाल ही में एक  किताब पढ़ी है ;
 संसार को बुराई की ओर  धकेलनेवाले केवल बीस परिवार है;
उनके ही निर्देशों के कारण बुरी खबरों को प्रधानता दी जाती हैं ;

भारत में तो कई हज़ारों सालों के पहले ही असुरों- दानवों  का ही शासन था;
उनके अत्याचारों से देव भी डरते थे;
 संसार  संकट  से कभी बचकर नहीं रहा;
सुशासक तो त्यागी रहे; राम राज्य बोलते हैं ; तो खुद राम को कष्ट झेलना पड़ा;
पत्नी की तलाश में जाना पड़ा ; भयंकर संग्राम के बाद लाई पत्नी को जंगल में छोड़ना पड़ा;
धनियों  के संतान नहीं थे ; राजा एक राजकुमारी के लिए हज़ारों को पतिहीन बनाकर अंतपुर भर रहे थे;
शिवाजी को छिपकर ही वार करना पड़ा;
मुगलों की निर्दयता और नादिरशाह का कत्ले आम तो जगविदित  कहानी है;

संक्षेप में कहें तो जनकल्याण चाहक शासक कम थे ;

वे सार्वजनिक  भलाई ,गरीबों की भलाई से यादगारों में अधिक खर्च करते थे;कर रहे हैं ;

पटेल की शिला  ठीक हैं तो उनसे राष्ट्र की भलाई करने की योजना  नदियों का राष्ट्रीयकरण उससे बढ़कर प्राथमिकता देने का विषय है;
ऐसे राष्ट्रहित की योजना में ध्यान देंगे तो भारत विश्व  आगे बढ़ेगा;




आध्यात्मिक भारत कैसा है?

हम बहुत सोचते है।
ईश्वर के बारे में।
क्या हमने ईश्वर को सही ढंग से
जाना पहचाना।
पहचानने की सूक्ष्मता सचमुच हममें है

है तो पूजा अर्चना के बाह्याडंबर को हम
बिलकुल तोड देंगे।
पर  दिन ब दिन बाह्याडंबर बढ रहा  है।
मानव मन में यह बात बस गयी  कि
बिना धन के ईश्वर संतुष्ट न होंगे।
ऐसे विचार बढते रहेंगे तो
आध्यात्मिकता केवल धनियों की हो जाएगी जैसै आदी काल से चालू है। भक्ति एक खास व्यक्ति या खास जाति की ही हो जाएगी।