मन मानता है या नहीं
अपनों के लिए
अपने खून के रिश्तों केलिए
अपनी दोस्ती निभाने के लिए
अपने प्यार के लिए
अपने स्वार्थ साधनके लिए
मानव भले बुरे कार्य में लग जाते हैं
भले अनुयायी भले मार्ग के प्रचार में।
बुरे अनुयायी बुराई के प्रचार में
ऐसे भी है कुछ पिछलग्गु
भले बुरे के मिश्रित प्रचार में।
तीसरों के कारण बनता बिगडता संसार।
Monday, January 11, 2016
मन में कुछ नहीं
निराला
भारत निराली
भारतीय ता निराली
भारतीय भाषा भेद निराले
भारतीय आध्यात्मिक सिदःधांत निराले।
भारतीय भक्ति धारा निराली।
भारतीय पतिव्रतता निराली।
जवहर व्रत सति प्रथा निराली।
वेद गीता उपनिषद ग्रंथ निराले।
दिगंबर महावीर निराले।
राजा के मन पसंद राजकुमारी लाने
मरने वाले वीरों का त्याग निराले।
धन को तुच्छ समझने के साधु संग निराले।
आचार्यो के आश्रम में स्वरण सिंहासन निराले।
हमारी तो बातें ही निराली।
ईश्वरों के सहस्र नाम निराले।
जाति '-धर्म.संप्रदाय भेद निराले
भक्तों के विभिन्न तिलक निराले।
मंदिर निराले, मंदिरों के निर्माण निराले।
ईवशवरीय आभूषण निराले।
सभी बातें निराली।
विदेशी पूँजी भारतीयों की बाते ंनिराली।
मतवाला
मैं हूँ मतवाला
मत देने तैयार नहीं
चंद चाँदी के टुकडों के लिए।
भ्रष्टाचारियों का खुशामद नहीं करता।
रिश्वत का विरोध करता हूँ।
सत पथ पर चलता हूँ।
दोस्तों के साथ चला। छला।
अब पछताता हूँ।
सुधर गया।
एकांत में ईश्वर भजन में लगा रहता हूँ।
नाते -रिश्ते कहते हैं मैं हूँ मतवाला ।
मत मेरे समझते नहीं ,मैं हूँ मतवाला।
सत्य का, धर्म का, दान का।
विश्वास
हमें.विश्वास है , जग की अनित्यता पर।
विश्वास है जन्म मरण की शाश्वत पर।
जवानी बुढापा रोग मृत्यु पर।
फिर भी आश्चर्य मनष्य को
सांसारिक चाहे सताती है।
लोभ स्वार्थ भ्रष्टाचार बलात्कार
मिटाने कितने साधु कितने फकीर
कितने देवदूत चीख-चिल्लाकर
वेद उपनिषद कुरान बाइबिल
पढनेवाले भी करते है
अत्याचार अन्याय भ्रष्टाचार काले धन
इसका अंत आगे होगा वायु,जल,भूकंप,प्रदूषण से।
Sunday, January 10, 2016
निराली
भारत निराली
भारतीय ता निराली
भारतीय भाषा भेद निराले
भारतीय आध्यात्मिक सिदःधांत निराले।
भारतीय भक्ति धारा निराली।
भारतीय पतिव्रतता निराली।
जवहर व्रत सति प्रथा निराली।
वेद गीता उपनिषद ग्रंथ निराले।
दिगंबर महावीर निराले।
राजा के मन पसंद राजकुमारी लाने
मरने वाले वीरों का त्याग निराले।
धन को तुच्छ समझने के साधु संग निराले।
आचार्यो के आश्रम में स्वरण सिंहासन निराले।
हमारी तो बातें ही निराली।
ईश्वरों के सहस्र नाम निराले।
जाति '-धर्म.संप्रदाय भेद निराले
भक्तों के विभिन्न तिलक निराले।
मंदिर निराले, मंदिरों के निर्माण निराले।
ईवशवरीय आभूषण निराले।
सभी बातें निराली।
विदेशी पूँजी भारतीयों की मेहनत बाते निराली।
यथार्थवादी बहुजन विरोधी।
वसुदैव कुटुंबकम् ।
सकल जगताम सुखिनो भवंतु।
जागो ! भारतीयो के व्यवहार निराले।
Thursday, November 26, 2015
जागो
अगजग देखो,
जागकर देखो
जहा अच्छा है या बुरा।
ईशवर की रीतिनीति देखो।
इस जग को देखो।
हिरन सा साधु।
साँप सा विषैला।
बडी मछलियाँ
छोटी मछलियाँ
मकडियाँ
छिपकलियाँ
जोंघु
न जाने
विषैली पेड पौधे
आरोग्यप्रद जटिबूटियाँ.
इन सबों को मिलाकर
ईश्वर ने बनाया
अहं ब्रह्मास्मि का
अहंकारी मनुष्य।
दंड मृत्यु दंड तय करके।
मरता है.मारता है।
जो भी भला बुरा करता है
नाटक का मंच
दृश्य बदलता रहता है।