हर व्यक्ति कीअभिव्यक्ति शालीन मानकर हीप्रकटहोतीहै;
चाहें अनेक ,लड्डूप्रिय, अलख बालाजी.
मोदकप्रिय विघ्नेश.
पंचामृतप्रिय पलानीश्वर.
प्रियअलगअलग तभीहोतोआनंद.
तुलसीप्रिय विष्णु.
बिल्वप्रिय शिव.
जन रक्षक राम
जनरंचक कृष्ण.
शालीन मेंअशालीनक्या?
सोचा साहित्यमेंश्रुंकार को
क्यों कहते हैं रसराज.
विद्यावती काविपरीतरति,
कामायनीका अधखुला अंक
नीलपरिधान बीच
इसकाहैअपनाविशेषअलग.
विचारप्रकट करनेमें नरोक
अश्लीलता हटाने-मिटाने
हर एक का अपना अधिकार.
मनुष्य है,पशुनहीं
कुत्तोंसागलीमें पीछा करने.
साहित्य हैसंयम सिखाने.
साहित्यहैं अनुशासन सिखाने.
साहित्य हैइश्कसिखाने.
साहित्यहै दान-धर्म सिखाने.
सुखान्तहै साहित्य.
मोहान्ध मिटाने साहित्य.
अहंकारमिटाने साहित्य.
आनंद देने साहित्य.
काम-क्रोध-लोभमिटानेसाहित्य.
नश्वरजगतमेंअनश्वर दिखानासाहित्य.
दानव कोमानवबनानासाहित्य.
इनसबका महत्त्व जनकहैं साहित्यकार.
लौकिकता मेंअलौकिकतालाना
साहित्योद्देश्य.
सुप्तगँवार जनताको
जगाता आदर्श साहित्य.
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