Wednesday, July 6, 2016

वीरों को सलाम

वीरों  को  कैसा  हो  वसंत - एक कविता  
  मैंने बचपन में  पढी।  
वसंत हमारे  जीवन में  है जरूर।
हम सुरक्षित है  जरूर।
पर उन देश भक्त वीरों की प्रशंसा  में,
कविताएँ  यशोगान अति  कम।
कितनी सरदी,बरफ की तूफान।
आतंकियों का  हमला,
बाढ का  हमला,
शत्रुओं  का  हमला,
  सब समय तो हमारा है वसंत।
वीरों    को? जरा सोचो?
बमें ऊपर से गिरेंगी या भूमि के अंदर  से फटेंगी।
पता  नहीं।  हर क्षण जान  खतरे में।
छद्मवेशी  भारतीय सैनिक - सा  भी।
खतरा, खतरा, खतरा, चारों ओर ।

हम  है  सुखी जीवन बितानेवालै।
सद्यः रक्षक वीरों को  सलाम।
वीर शहीदों  को श्रद्धांजलियाँ ।।

Tuesday, July 5, 2016

वही शान्ति -सत्य -परोपकार ,सहानुभूति।

 सांसारिक    लीला  अदभुत।

जग   लीला   चमत्कार।

ईश्वर    की   लीला  विचित्र।

न   जाना   कोई  मर्मज्ञ ,

चल  रहा    हैं   जो   कुछ

न  जाना  मर्म   कोई  सर्वज्ञ।

जातियों   की   बातें   करते  हैं ,

न  जानते   कोई क्या  है  आदी   -जाति।

कई  बातें    अस्पष्ट , न  कोई  बातें स्पष्ट।

अधिक  पूछो   तो  यही  उत्तर ,

नदी  मूल -ऋषि  मूल  जानना  मुश्किल.

भाषाएँ   इतनी  कहाँ  से  आयी    पता  नहीं.
 
जहाँ   भी  रहें  ,घर  की  बोली बिना  सिखाये  आ  जाती।
जहाँ   भी  रहें  ,वहाँ   की  गली  की  बोली  आ  जाती.
हर  देश  के   जलवायु    अलग.
हर  देश   के  पैदावार   अलग.
मौसमी  फल   अलग।
विचार  अलग  अलग.
वेश-भूषा  अलग  अलग
ईश्वर  के  नाम   अलग -अलग.
ईश्वर  के रूप   अलग  अलग.

 मनुष्य     के  रूप -रंग  में  भी अलग -अलग.

चकित   करने  की  बात  है  मनुष्यता.

वही  शान्ति -सत्य -परोपकार   ,सहानुभूति।


Monday, July 4, 2016

मन चंगा तो कटौती में गंगा



सबहीं नचावत राम गोसाई,

नाचते हैं नर-नारी अहम् की नाच.

सोलह साल से श्री गणेश बुद्धीहीन-बुद्धी सहित क्रियाएं,

कर्म-फल भोगता मनुष्य कलियुग में ज़िंदा ही,

बुढापे में हैं भूला-भटका यादों की गली में,

इतना समझाना है जग को, पहले हीकईमहान

समझा चुके हैं, कई दोहराकर समझा रहे हैं,

नेक का फल नेक, बद का फल बद.

कलियुग की बात नहीं सभी युग की बात.

कर्म -फल भोगते आनेवाली पीढियां.

देश हमारा आसुरी और देव शक्ति से भरा.

आसुरी नाश में नाचती तो देवी बचाती ;

नाश की निशानी देखकर भी,

बिना सोचे विचारे भ्रष्टाचार-काले धन के

साथी बनते, जिन्दगी में कालिमा छा जाती.

सोचना ,जागना, कर्म करना , भला होगा;

न तो होगा बुरा फल, मिलेगी ईश्वर कृपा.

ब्रह्मानंद की अनुभूति कर्तव्य-कर्मफल पर निर्भर.

न धन से, न यज्ञ -हवन से, न पूजा-पाठ से.

मन चंगा तो कटौतीमें गंगा जान.

मन चंगा तो कटौती में गंगा

विनोद कुमार जैन---नियति नटी का नर्तन. की मानसिकप्रतिक्रिया

सबहीं नचावत राम गोसाई,

नाचते हैं नर-नारी अहम् की नाच.

सोलह साल से श्री गणेश बुद्धीहीन-बुद्धी सहित क्रियाएं,

कर्म-फल भोगता मनुष्य कलियुग में ज़िंदा ही,

बुढापे में हैं भूला-भटका यादों की गली में,

इतना समझाना है जग को, पहले हीकईमहान

समझा चुके हैं, कई दोहराकर समझा रहे हैं,

नेक का फल नेक, बद का फल बद.

कलियुग की बात नहीं सभी युग की बात.

कर्म -फल भोगते आनेवाली पीढियां.

देश हमारा आसुरी और देव शक्ति से भरा.

आसुरी नाश में नाचती तो देवी बचाती ;

नाश की निशानी देखकर भी,

बिना सोचे विचारे भ्रष्टाचार-काले धन के

साथी बनते, जिन्दगी में कालिमा छा जाती.

सोचना ,जागना, कर्म करना , भला होगा;

न तो होगा बुरा फल, मिलेगी ईश्वर कृपा.

ब्रह्मानंद की अनुभूति कर्तव्य-कर्मफल पर निर्भर.

न धन से, न यज्ञ -हवन से, न पूजा-पाठ से.

मन चंगा तो कटौतीमें गंगा जान.

Sunday, July 3, 2016

तिल - दिल

मन के घौडे का  लगाम है अति मुश्किल।
कनपटी लगाओ, फिर भी  मनमाना दौडता है।
उस दौड में कितने टेढे - मेढे  रास्ते,
कितने शिखर, कितनी घाटियाँ।
कितने झरने, कितने  दरिया ,कितने सागर।
कितने  पोखर,कितने मोरे।
कितनी हरियालियाँ, कितने पतझड।

कितने मंदिर, कितनी मूर्तियाँ ।
कितने हिंसक ,कितने अहिंसक ।
कितने  दौड, कितने भाग।
कितना घना, कितना गहरा।
कितना चंचल , कितनी आँधियाँ।
कितना हलचल।
मन के घोडे में कितने दौड।
न रोक सकता लगाम।
न  कनपटी चलता  तंग मार्ग।
न पता तंग भी कैसे बनता विशाल।
ताड  का तिल बनाना,तल का ताड बनाना,
दिल  की विशिष्टता  या  विनाश ।
वह तो साँस की  गति  समान।
दिल की गति रुकती तब,
जब रुकता दिल का धडकन।

दुख

मन में दुख के कारण| है अनेक।
मातृभाषा  के विकास रुक जानै सै दुखी।
मातृ भाषा में न  बोलने सै दुखी।
दुख के तारण है अनेक।
एकाध  छूट गया तो लिखिए।

न  चाह , न राय| तो दुख।
दुख है, दुख ही  है  संसार।

इस जिंदगी में जीना खुशी कैसे /
मनुष्य  कौन  है  ?

जिसमें   मनुष्यता  है  वही  मनुष्य है.

मनुष्य   सुखी है ?

नहीं।  संसार में कोई भी मनुष्य  सुखी नहीं है।

हर  मनुष्य  दुखी हैं।

पारिवारिक दशा से दुखी ,

सामाजिक  उत्थान  पतन  से दुखी

देश  के आतंकवाद से दुखी

शासकों के भ्रष्टाचारों से दुखी

अधिकारियों  के रिश्वत से दुखी

भूख  से दुखी ,नौकरी न मिलने से दुखी

पति से दुखी ,पत्नी से दुखी

नाते रिश्ते ,दोस्तों  के कारण  दुखी

रोग से दुखी ,

किसी की मृत्यु से दुखी,

प्रियतम  प्रियतमा से दुखी

पति के गलत रिश्ते से दुखी

पत्नी के गलत व्यवहार से दुखी

अमीरी से दुखी ,गरीबी से दुखी

संतान से दुखी ,निस्संतान से दुखी

प्यार से दुखी ,नफरत  से दुखी

स्वर्ग के मिलने से दुखी

नरक के डर से दुखी

और न जाने दुखी कितने ?

दुःख के प्रकार कितने /?

कार न होने से दुखी

कार न  सं भालने से  दुखी

ड्राइविंग न जानने से दुखी

योग्य ड्राइवर न  मिलने से दुखी

दुःख के कारण अनेक ;

सुख  के कारण  कम.

यही जिंदगी  अस्थिर फिर भी चिंता अधिक।

रोग  साध्य रोग ,असाध्य रोग

मृत्यु।

इस जिंदगी में जीना खुशी  कैसे /?

अत्याचारी  शासकों  से दुखी,।

बलात्कारियों  से  दुखी।
किसानों  की आत्म हत्या  से दुखी।
चितिरपट की कथा से दुखी।
अश्लीलता आचरण से दुखी,
बेकारी से दुखी, अर्द्ध नग्न दृश्यों से दुखी।
न| जाने  कितने लोग  काल्पनिक
भूत - पिशाच से होते  हैं दुखी।
किसी कै दुख देख दुखी।
दूसरों के दुख देख कर दुखी।
लोभियों  को  तो हमेशा दुखी ।
देख दुखियों  के दुख।

Saturday, July 2, 2016

संयम सीखो , शान्ति पाओ.

ख्यालों की दुनिया , ख़्वाबों की दुनिया, नशीली दुनिया, शैतानीदुनिया,

हो जाती है शोभा के नशे की इश्क की दुनिया.

आदी काल से आज तक इश्क के नाम मरते हैं इंसान.

लडाइयां होती हैं इश्क के नाम.

हत्याएँ --आत्महत्याएं , अनाथ बच्चे, गर्भपात सब शैतानियत होते हैं

इश्क के नाम, कितने मजनूयें ,कितनी लैलायें, कितने पागल,


रावणसीता ले गया,कितनेहज़ार मरे गलत इश्क का परिणाम.

इशक -इश्क-इश्क भूल जाता है इंसान अपना कर्तव्य,

भूल जाता है इंसानियत ,तमिलनाडु की हृदयविदारक घटना,

एक तरफा इश्क, लडकी ने नमाना, कर दिया हत्या.

शैतानियत इश्क जहा में न हो मनुष्यजीवन में न बेचैनियाँ.

सनातन धर्म की सीख संयम ,आत्म नियंत्रण, ईश्वर ध्यान,

आयुर्वेद कहता है शुक्ल नियंत्रण , शुक्लपतन ही दुर्बलता
.
सोचो,विचारों बनो आत्मसंयमी. संयम सीखो , शान्ति पाओ .