Monday, August 29, 2016

मित्रबंधु का दान

मित्र बंधु का दान

मित्र बंधु एक चमार था।



अपने राजा राम से अत्यंत प्यार करता था।

राम विश्वामित्र की यग्ञ -हवन की रक्षा करके 

मिथिला के स्वयं वर जीतकर अयोध्या लौटे।

तब गरीब चमार पर गहरा प्यार
 ,
संकोच के साथ एक जूता काट का दान में दिया।

भगवान राम ने दिल से 

उस भेंट को स्वीकार कर लिया।

जब उनको वनवास की आग्या मिली ,

तब उनका एक मात्र माँग वह जूता

वही पादुका बाद में सिंहासन में स्थान पायी।

भगवान प्यार को ही मानता है,

बहुमूल्य वस्तुओं को नहीं।

सच्चा प्यार भक्ति ही प्रधान है।

पर

पर है तो उडकर मिलूँगा  मित्रों से,
धन  है तो भी उड आ सकूँगा।
मनोवेग से मिलने ,
मिल गई मुख पुस्तिका।
सार्थक हो या निरर्थक,
पसंद हो या न पसंद
वास सुवास हे या बद वास,
सुधारने या बिगाडने
पाठक या न हो,
चाहक हो या न हो,
मन के विचार लिख देता हूँ।
छंद  नियम के बंधन सोचता,तो
क्या लिख -बक सकता हूँ।
कभी नहीं।
  अभिव्यक्ति साहित्य ।
   अक्षर - शब्द गिनकर| लिखूँ।
क्या घनाक्षरी ,मालिनी, दोहा , चौपाई,
ऐसे शब्द   जिनके
अर्थ  समझना ढूँढना अति मुश्किल।
  यों ही सोचता तो अभिव्यक्ति अति दुर्लभ।
  वर कवि ईश्वरीय देन ,
वाल्मीकि ,तुलसी जैसे।
आज  अहं ब्रह्मास्मी  बनना है,
जैसे देवों में भी दुर्देव।
सृष्टियों में शैतानियत।

Saturday, August 27, 2016

मनुष्यता

ईश्वर की लाखों करोडों  सृॉष्टियों में ,

सब को ईश्वर ने दी सुरक्षा की बुद्धी ।

मनुष्य  को तो दी अद्भुत शक्ति।
भले -बुरे गुणों  में ,
सब  अपने को भला ही
प्रदर्शन करना  गौरव मानते ।
  माया भरी संसार में
स्वार्थ, ईर्ष्यालू , असत्य, अहंकारी अति धक।
मनुष्य के कल्याण  एक ही कर सकता है,
बहुत भीड नहीं,
एक  केे सिद्धांत  बहुप्रिय ,लेकप्रिय ।
दृढ अनुयायी उनके वश में।
   कल्याण कारी   समाज को
एक अनुशासित  रूप देकर  चला जाता है।
बाद में  उनके अनुयायियों में
बडे - छोटे के संग्राम।

कौन  हित्चिंतकों में  बडा,
अपने गुरु ,अपने नेता ,अपने अनुसंधान ,
अपने इष्टदेव   से कौन   आगे अगुआ ?
तब कई शाखाएँ, कई लुटेरे, कई चोर ,
परिणाम  अशाश्वत, अस्थिर,  लौकिक इच्छाएँ,
लौकिक माया, मूल को भूल,
  बढने  लगते हैं ।
शाखाएँ काटी जाती हैं,
मूल जड,
नयी शाखाएँ  देने में समर्थ।
जड हम नहीं देखते ।
शाखाएँ हम नहीं देखते ,
फल  मात्र चाहते हैं।
  नये फलों में कितने भेद।
नये फलों  में खट्टे - मीठे, कडुए ,
सडे हुए, बढिया ,घटिया, कीडे-मकोडों से पीडित
वैसे ही मनुषय समाज  बन जाता है।
भगवान एक।
नेता एक।
आविष्कारक एक।
मूल ग्रंथ एक।
पैगंबर एक।
पर   कालांतर में किते परिवर्तन।
कितनी कल्पनाएँ,
कितनी माया ,
कितने जाल ,
कितना प्रवाह।
    कितनी उन्नतियाँ।
    अवनति कितनी ।
      नया रूप,
नयी भाषा ,
नये वस्त्र ,
नये भोजन।
जितना भी हो, पर
ईश्वरीय  न्याय व्यवस्था अपरिवर्तनशील।
हम मूल सिद्धांतों में 
मूल आविष्कार में,
मूल ईश्वरीय शक्ति में
अस्त्र-शस्त्र ,वस्त्र , भाषा,
सब में परिवर्तन लाते हैं।
पर ईश्वरीय परिवर्तन स्थाई ।
जन्म, शिशु, बचपन, लडकपन, जवानी,
प्रौढ, बुढापा, अंग शिथिलता , मृत्यु।
यह याद रखें तो होगा
विश्व में  शांति, संतोष, आनंद -मंगल ।

 


Thursday, August 25, 2016

ईश्वर का अवतार

कृष्ण  जयंती।
धर्म रक्षा के लिए  कृष्ण  का अवतार।
    सच है   ईश्वर का अवतार क्यों ?
बगैर  अवतार के  धर्म रक्षा  संभव नहीं।

  भूलोक में   अधर्म कीे चरम सीमा  के अवसर पर

हर देश में सद्बुद्धि देने धर्म की स्थापना हुई।
पर  भारत में  एक ओर वेद , उपनिषद  , साधु ,संतों के
ग्रंथों   की   रचना हुई।
कितने असुर  देव लोक के देव गिडगिडाने लगे।
देवों की रक्षा के लिए दधिची मुनी की रीढ  की हड्डी की आवश्यकता हुई।
  समाज जब मनुष्यता खो बैठी, तभी  इसलाम धर्म का उदय हुआ । वैसे ही ईसाई धर्म का।
भारत में ही  हिंदु ,जैन ,बुद्ध   ,सिक्ख धर्म चार धर्म और एकता।
इसलाम में तो अब  भी बेरहमी बढ रही है।
  अतः कृष्णावतार  मानव को शांति और कर्तव्य मार्ग  की अनिवार्यता के लिए   हुई।

कृष्ण मंत्र (टाइम्स ऑफ़ इंडिया स्पीकिंग ट्री से आभार )

பணமும் எல்லாசித்தியும் பெற ஸ்ரீ கிருஷ்ண மந்திரங்கள்

1.कृम कृष्णाय नमः.


2. “ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा”


3. “गोवल्लभाय स्वाहा”
.


4. “गोकुल नाथाय नमः”



5. “क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलांगाय नमः”



6. “ॐ नमो भगवते श्रीगोविन्दाय”.




7. “ऐं क्लीं कृष्णाय ह्रीं गोविंदाय श्रीं गोपीजनवल्लभाय


स्वाहा ह्र्सो”


.
8. “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन


वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री”


9. “ॐ नमो भगवते नन्दपुत्राय आनन्दवपुषे


गोपीजनवल्लभाय स्वाहा”


10. “लीलादंड गोपीजनसंसक्तदोर्दण्ड बालरूप


मेघश्याम भगवन विष्णो स्वाहा”.

.
11. “नन्दपुत्राय श्यामलांगाय बालवपुषे कृष्णाय

गोविन्दाय जनवल्लभाय स्वाहा”

12. “ॐ कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद मे।


रमारमण विद्येश विद्यामाशु प्रयच्छ मे”


13. ॥ कृष्णःकर्षति आकर्षति सर्वान जीवान्‌ इति


कृष्णः॥


14. ॥ ओम्‌ वेदाः वेतं पुरुषः महंतां देवानुजं प्रतिरंत


जीव से

Wednesday, August 24, 2016

याद

सुबह उठा,
  मन उछल मचल ।
  कितना सोचता  है।
   बचपन से अडसठ साल के जीवन में।
क्या पाया, कितना खोया।
कितना न्याय, कितना अन्याय।
अपने लिए याअपने  दोस्तों के लिए।
अपने नातों के लिए, अपने रिश्तों के लिए।
कितना भला ,कितना बुरा।
मुझको कितना न्याय-,अन्याय मिला।
कितनों ने अच्छा किया?
कितना स्वार्थ। कितना निस्वार्थ।
कितनी भक्ति , कितनी सेवा,
कितना दान -कितना धर्म।
  अंत में यही याद,
कबीर की  नसीहत।
बुरा जे देखन मैं गया बुरा न मिलिया कोय।
दूसरा दोहा-  
जो तू को काँटा बुवै, तू उसको बुओ फूल
तुझको फूल ही फूल है,उसको है त्री शूल।
  बिगडी  बातें बनै नहीं ,लाख करै किन होय।
बिगडै माथै दूध को, तिन माते मक्खन होय।
साहित्य में कितनी बातें,  हम न करते याद।
न करते पालन।

Saturday, August 20, 2016

भक्ति क्षेत्र

कलियुग कहते हैं .

कष्टमयजीवन् ,

दुराचार अनाचारमय जीवन

छल रहा है संसार.

छल का श्रीगणेश होता है कहाँ से?

न्यायधर्मपूजाअरचना भक्ति श्रद्धा बढ़तीजा रही है ,

मंदिरों में भीड़, हुंडी भर जाते हैं ,

दान धर्म करतेहै तो

एक बेकारी भीड़

काम नहीं तप जप नहीं लेते नहीं भगवान के नाम

पेट पर मारते माँ-जी दुखीआवाज उनकोदेते हैंभीख ,

उनकोरोनेरुलाने चीखने चिल्लाने मेक अप करने कराने एक बास भी होता है

चलता है उसकी भी जिंदगी .

धर्म अर्थ काम मोक्षदान धर्म योग ध्यान केआश्रम

वहाँ भी भीड़ जा जाती हैं, पता नहीं ,

ईश्वर खुद्वहांवीरजमान करोड़ों की संपत्ती ,

इनका काम ध्यानमें ,प्राणायाम में ,योग में लगाना ,

पुण्य कर्म अपनाना ,कर्तव्य निभाना सत्पथ पर लेचलना ,

ईश्वरसेमिलना मिलाना भारतीय धन संपत्ती कोअपनाकार आलीशान आश्रम भक्त

जो देता है दान ,त्यागीभक्त बनाना

स्वर्णासंस्वर्ण मुकुट चाँदी स्वर्णमय बर्तन .

हज़ारों करोड़ो भक्त सदयहफल कीआशा

सद्यः फल किसको सोचती नहीं भक्तमंडली .

इतने भक्ति पूर्ण वातावरण ,

पग पग पर मंदिर

कदम कदम पर आश्रम ,

पाप -पुण्य का प्रचार .

सबेरे अखबार ,दूरदर्शन समाचार भ्रष्टाचार के नाम अमुक मंत्री पर आरोप

तीन साल की बच्ची पर साठ साल के बूढ़े का बलात्कार

अध्यापक के बदव्यवहार ,

पुलिस के बदव्यवहार

पंचायत में जंगल में सड़कों पर छेड़छाड़

रिश्वत भ्रष्टाचार अन्याय हत्या बम फेंकना

एआश्रम एमंदिर देवाल्‍य मस्जिद रोज़ नये नये जितना बनते हैं ,बनाते हैं ,

उसका नतीज़ा संसार निभय शान्तिमय होना है

पर रामायण काल से   आज तक संसार है आतंक मय.

स्वतः सुधार ह होता कहाँ ?

चोरी बलात्कार अशांत मय जीवन ,

आतंक मय जीवन.

भगवान भी चाहते हैं यही क्या/ ?!!

यह भी लीला जगत का साधु संतभक्त जंगल में ,

सोचो समझो सुधारो.