तमिलनाडु तो
प्रशिद्ध हैं ,
भक्ति के लिए.
शिव भगवान की दैविक क्रीडाएं ,
शिव भक्तों के चमत्कारी
आत्म समर्पण.
श्री गणेश जी कर रहा हूँ ,
तेरे चरण स्पर्श , श्री गणेश .
उन तिरसठ नायन मार ,
अर्थात शिव भक्त की जीवनियाँ .
निर्विघ्न पूरा करने चाहिए तेरा अनुग्रह.
१, सुन्दरमूर्ति नायनार.
शिव -दास , शिव और तमिल के उत्तम सेवक.
शिव से तर्क कर नाम पाए , वाणी कठोर सेवक.
अपने जीवन काल में दिखाए कई चमत्कार.
नाम है सुन्दरमूर्ति नायनार.
सर्वेश्वर अनुग्रह प्राप्त करके ,
सर्व संपन्न देश है तिरुमुनैप्पाडि I
नृसिंह मुनैयार नृप के सुशासन देश ,
समुरुद्धि में न कोई कमी.
नामी नगर के एक दिव्य-दम्पति ,
नगर में रहा करते थे .
नाम थे सदैयनार -इसैग्यानियार.
इन्के दिव्य पुत्र हुए नाम्बियारूरार .
जिनके नाम सुन्दरर भी है.
नरसिंह मुनैयार नृप एक दिन ,
इरैयानार के यहाँ आ पहुंचे .
एक विनती की , आप के पुत्र को
आम पुत्र बनाकर शहर को देना,
राजा के प्रिय निवेदन कैसे करते ठुकरा.
बिना कुछ बोले भेज दिया ,
प्रिय सुत को प्यारे नृप के साथ.
बालक खेल रहा था राजमहल के
आँगन में अति आनंद से .
बचपन टिकेगा कैसे?
नाम्बियारूरार बना जवान .
अति सुन्दर युवक बन गया विवाहोग्य.
पुत्तूर के प्रसिद्ध सदंगावी शिवाचारियर
उनकी इकलौती पुत्री से शादी पक्की हुयी.
विवाह के दिन, मंडप की व्यवस्था अति चमत्कार .
अति सुंदर. सुन्दर्नायिनार की शादी.
ऐन वक्त नृप नरसिम्ह नायनार आ पहुंचे.
तभी हुई वह आघात घटना.
पूर्व जन्म एक वर से भगवान शिव ,
साधू सन्यासी के वेश में आ गए.
मुहूर्त के दिन ही सुन्दर को अपने अधीन
करने का उचित दिन तय किया.
शादी मंडप के पास आये नृप .
सब उठ नृप की की वंदना.
तभी सन्यासी शिव के मुख से
जलन भरे शब्द निकले.
विवाह का प्रबंध तो अति संतोष.
पर मेरा अपना है एक शिकायत.
यह सुन्दर तो एक दास .
उसके स्वामी की अनुमति और आज्ञा बिन
कैसे कर सकता है यह विवाह.
सुन्दर तो दास है मेरा.
पूछ- ताछ करना है ,
उसके निजी जीवन के बारे में.
नगर के प्रबंध एक क्षण अवाक खड़े रहे.
फिर बोले, शादी होने दो ,
बाद में बोलेंगे बाकी बात.
सन्यासी अति क्रोध से बोले ,
बात तो पक्की, प्रमाण भी मैं लाया हूँ साथ.
कमर में रखे एक ताड़ के पत्ते ,
ले दिखाया तो सुन्दरर अवाक खड़े रहे.
कहा- क्या है नयी कहानी?
सन्यासी ने कहा , नहीं है यह कहानी .
सत्य बात है तेरे वसाज सब के सब मेरे दास.
इतने में ताड़ के पत्ते छीन ,
टुकड़े टुकड़े करके , यज्ञ कुंड में
डालकर सुन्दरर बोले अब कहाँ है प्रमाण.
आवाज में था परिहास.
संयासी आग बबूला होकर बोले,
देख ! इसका झूठा व्यवहार.
जो पत्ता दिया वह है नकली.
मूल मेरे पास है देख! कह
दूसरा पत्ता दिखाया वह.
नगर प्रबंधक लेकर पढ़ा तो
सन्यासी की शिकायत सच निकला.
पंचायत तो सन्यासी के साथ
जाने का अपना न्याय कह सुनाया.
विवश हो , सुन्दरर गया,
राजमहल के सुविधा में सुन्दरर को जाना
लगा अति मुश्किल.
इतने में पहुँचे,तिरुवेन्ने नल्लूर.
शिव का प्रसिद्द शिव स्थल.
सन्यासी तेज़ी से चला मंदिर के अन्दर.
देखते -देखते ओझल हो गए!.
सन्यासी! सुन्दर ने पुकारा!
इतने में देखा , ऋषभ वाहन में
उमामहेश्वर अमा के साथ दर्शन दे रहे थे.
हर्षोल्लास में सुन्दर ने की प्रार्थना.
इस घटना की सूक्ष्मता जान ली .
पुत्तूर दुल्हन चिंतित खडी रही.
सुन्दरर ने कहा, आगे मेरे मन में
और किसी को स्थान नहीं.
ऋषभ वाहन को नमस्कार किया,
निकला कैलाश की और.
तिरु वेन्ने नल्लूर से निकलकर,
चिदंबरम स्थल पहुंचा.
वहां नटराज का नृत्य देखा.
वहाँ से तिरुवतिकै की और निकले।
वीरटटनेश्वर तिरुनावुक्कारासर नामक अन्य
शिव भक्त मंदिर की सेवा करते थे.
वे मंदिर छोड़ चित्तवट नामक मठ में ठहरे।
रात के वक्त भगवान शिव
एक बूढ़े के रूप में ,
मठ में पधारे।
सुंदरर के सर पर बूढ़े के पैर पड़े.
सुन्दरर ने बूढ़े से कहा --
आपके चरण मेरे सर स्पर्श कर रहा है
ज़रा हटना, वृद्ध ने कहा--
मैं बूढा हूँ; तुम्हीं हटकर लेटना.
सुन्दरर ने मान लिया;
मीठी नींद सोते वक्त ,
फिर चरण सर पर लगा.
गुस्सेमें भक्त ने चिल्लाकर पुछा --
कौन है तू?
भगवान शिव ने हंसकर पूछा--
क्या तू नहीं जानता है मैं कौन?
तू तो भक्त है मेरा.
भक्त को अपनी गलतियाँ मालूम हुईं.
सुबह के होते ही ,
केटिल नदी में स्नान कर,
विराटटेश्वर की प्रार्थना करके ,
तिरुमान कुली की भी वंदना करके,
तिरुनेलवेली की ओर गए.
भक्त ने कीर्तन गाया,
तभी उसके कानों पर एक आकाशवाणी पडी--
आरूर आवो.
आरूर जाकर वाहान विराजमान
शिव की
प्रार्थना कर
शीर्काली तीर्थस्थान गया.
वह तो ज्ञान्सम्बंध नामक
शिव भक्त का जन्मस्थान.
वह शहर की परिक्रमा करके
आगे बढ़ा तो
विश्वनाथ उमादेवी सहित
सामने दर्शन दिए .
शिव भक्त सुन्दरार को
तम्बिरान का सखा कहकर
उनको प्यार से बुलाने लगे.
पिछले जन्म में कैलाश में रहते समय
कमलिनी से सुन्दरर ने प्यार किया.
वही कमलिनी आज परवैयार नामक
सुन्दरी के रूप में आरूर में
पुनः जन्म लिया.
सुन्दरर की नज़र उस पर पडी.
पूर्व जन्म की विधि
दोनों में प्रेम बंधन गया.
देव दर्शन कर परवैयार दुसरे मार्ग पर
चली तो सुन्दरार वाल्मीकिनाथ की
प्रार्थना कर आगे बढ़ा तो
परवैयार की तलाश की.
विरह ताप से दोनों भक्त .
आधी रात को
शिव भक्तों के स्वप्न में
शिव ने कहा -- सुन्दरर है मेरा भक्त.
परवैयार और सुन्दरार दोनों करते हैं प्यार .
उन दोनों की शादी कराना.
शिव भक्तों ने दोनों की शादी कराई.
वैवाहिक दाम्पत्य जीवन शुरू किया तो
सुन्दरर दरिद्रता से पीड़ित .
कुंडैयूर के शिव भक्त बूढा
शिव की प्रार्थना कर
जरा सोने लगे तो उनके स्वप्न में
शिव प्रकट होकर कहा
सुन्दरार को हमने धान दिया है
जल्दी उन्हें सुन्दरार के घर पहुंचाना.
बूढा जागा तो चकित रह गया.
गली भर धान ही धान.
बूढ़े से धान उठाना मुश्किल लगा तो
सुन्दरार को सन्देश भेजा.
सुन्दरार आया तो उसने शिव से ही
नौकर भेजने की प्रार्थना की .
शिव ने अपने भूतगण भेजे.
शिव के दिए दान को
दम्पतियों ने सब को बाँटा.
कोत्पुलियार नामक धनी ने अपनी
दोनों पुत्रियों को सुन्दर से विवाह कराने तैयार .
तब शिव के अधीन सुन्दरर ने कहा-
आपकी पुत्रियाँ आपको जैसी हैं ,
वैसी ही मेरी.
फाल्गुन महीने का उत्सव ,
परवैयर ने देखा ,
घर में एक कौड़ी भी नहीं,
अपने पतिदेव सुन्दर कहा-
सोने के सिक्के हो तो
उदारता से त्यौहार मना सकते हैं.
सुन्दरर कहा --मेरे परिचित भी शिव,
मेरी दशा के ज्ञाता भी वही है,
माँगें तो न मना करेगा वह.
यों ही सोचकर मंदिर की ओर गया.
एक नया यशोगान गाया.
थका मांदा वह ,एक ईंट को
सिरहानी बना मठ में ही सो गया.
उठा तो देखा,
ईंट बदला हुआ था
सोने की ईंट.
ईश्वर ने भक्त को दिया
यह स्वर्ण का पदक.
तिरुमुतु कुन्रम ,दूसरा शिव स्थल,
शिव के कीर्तन गा,सुन्दरर के अद्भुत वक्त ,
ईश्वर ने बारह हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ दीं.
फिर भी भक्त का अहंकार,
कहा, स्वर्ण मुद्राएँ देने मुझमें बल नहीं है,
आरूर में ही देंगे तो
दास करेगा स्वीकार.
शिव को दी उसने आदेश.
शिव ने कहा -- मुकता नदी में
स्वर्ण मुद्राओं को बहा दो,
आरूर मंदिर के तालाब से
निकाल लो ये मुद्राएँ.
नगर -नगर मंदिर की तलाश में
घूमने वाले भक्त को
जब-जब भूख लगेगा,
तब-तब दास का वेश धारण कर ,
भोजन खिलाएगा.
शिव स्थल घूम -घूम ,
ओटरीयूर आये सुन्दरर.
वहां एक शिव भक्त था ,
उसकी एक बेटी थी s
संगिली नाम के .
सुचरित्र बूढा
ज्ञायिटरु बूढा नाम से नामी .
बूढ़े की एक बेटी
लता सी थी ,संगिली का दूसरा
नाम था अन्जुकम .
कोंपल सी थी.
सुन्दरर ने शिव से
अन्जुकम से अपने प्रेम ,
प्रकट किया .
अन्जुकम की मांग की.
शिव ने अपने भक्त की
इच्छा पूर्ती के लिए ,
संगिली के स्वप्न में ,
शादी की बातें कीं .
संगिली को भी खुश हुआ .
पर उनके मन में दुविधा हुईं .
सुन्दरर तो विवाहित गृहस्त .
अपनी पत्नी की याद करके ,
चला जाएगा तो ....
लम्बी सांस खींची तो
तब शिव ने इसका प्रमाण दिया .
अच्छी बात सोचकर ,
मन्दिर में आज्ञा लेने का निश्चय किया .
सुन्दरर को एक उपाय सूझा .
शिव !मैं गर्भ गृह में
सत्य प्रमाण दूंगा.
पहली पत्नी परवैयार से न पुनः मिलने की प्रतिज्ञा ,
मंदिर में शिव के सामने करने का निश्चय किया गया.
तब भक्त ने शिव को आज्ञा दी ,
आप गर्भ -गृह से निकल्कर ,
मौलश्री पेड़ में छिप कर रहना,
शिव ने भी भक्त की माँग मान ली.
यह तो शिव की लीला.
पर वधु की सहेली ने सलाह दी ,
गर्भ गृह तो उचित स्थान नहीं ,
मौलश्री पेड़ के नीचे ही करना .
वही वधुने मान आग्रह किया.
तभी मोह से सुन्दरर को छूट मिली.
प्रतिज्ञा छोड़ने से अंधे हो गया सुन्दरर.
अंधे भक्त को शिव भगवान ने
सहारे के लिए एक लकड़ी दी.
भक्ति यात्रा आगे बढ़ी .
कांची एकाम्बर की प्रार्थना की
एक आँख को देखने की शक्ति मिली.
वहाँ से तिरुप्पोंदुरुत्ती गए तो
दूसरी आँख को भी देखने की शक्ति मिली .
दृष्टि के मिलते ही वह पहली पत्नी
परवै से मिलने गया.
परवे से मिलने से रोका शिव ने ,
तब भक्त ने निवेदन किया ,
आप ही जाइए दूत बन ,
और परवै को मनाइए .
लीलेश्वर हैरान हुए.
भक्त की प्रार्थना मान ,
संत के वेश में परवैयार
गृह की ओर चले.
परवैयार ने दृढ़ता से कहा ,
खुद सूरज के आने पर भी ,
न स्वीकार करूँगी उन्हें.
संत विवश होकर
लौटे और भक्त से कहा --
तेरा गृहस्त हुआ अंत.
भक्त ने आपे से बाहर हो
कहा- परवैयार के संग जोड़ने भेजा था ,
तूने यह क्या कहा?
भक्त की इच्छा पूर्ती के लिए
फिर एक बार दूत बन
परवैयार से मिला.
परैवैयार ने शिव को पहचान लिया.
सुन्दरार से मिलकर रहने हो गयी तैयार.
कलिकामन नामक दूसरे भक्त को
सुन्दरर का ऐसा ईश्वर को ही दूत भेजना
कतई पसंद नहीं.
उसने चुनौती दी --
मैं हो गया सुन्दरर का दुश्मन.
तब शिव को क्रोध हुआ
और कलिकामन को कोढी बना दिया.
और स्वस्थ होने का उपाय सुन्दरर के पास ही बता दिया.
कलिकामन और सुन्दरर फिर बन गये दोस्त.
भक्त की महिमा जगत में दिखाने ,
अपूर्व शक्ति देते है ईश्वर.
भक्त तिरुक्कोलियुर क्षेत्र गए तो
वहां एक परिवार के लोग
शोक मग्न रो रहे थे .
तब सुन्दरर को पता चला एक मगर मच्छ ने
घर के इकलौते बच्चे को
निगल लिया.
तब सुन्दरर ने बच्चे को जिन्दा लाने
शिव पर कीर्तन गाया.
ईश्वर के अनुग्रह से बच्चा जिन्दा गया.
सुन्दरार की भक्ति-महिमा प्रसिद्ध हुयी
चारों और फैली.