Friday, October 6, 2017

देश प्रेमी

प्रेमी हूँ मैं देश का ,
भारतीय संस्कृति और
त्यागमय जीवन का.
भोग माय जीवन , यथार्थता
के आधार पर बने पाश्चात्य सभ्यता,
उनमें कंचन की इच्छा नहीं ,
बच्चे भी महसूस करते हैं
मृतयु निश्चित ,
पतिव्रता के आड़ में अफवाहें
उनके लिए ला परवाही,
न छोड़ते पत्नी को जंगल में ,
न पीटते -मारते ,कष्ट देते जोरू को
जोरू राक्षशी हो तो उसके इच्छानुसार छोड़
अपने मन पसंद से जीवन बिताना
तीन -तीन शादियाँ , पारिवारिक कलह
धर्म युद्ध के नाम से ,
अपने बदले चुकाने अधर्म -धर्म की बात नहीं ,
जिओ खुशी से आदाम -एवाल के एक ही संतानें हम .
पाश्चात्य दृष्टिकोण में जीवन का वह आदर्श नहीं.
एक गुण मुझे वहाँ का पसंद हैं ,
आत्म निर्भरता. क्षमता का सम्मान. कौशल की प्रशंसा.
धार्मिक आडम्बर कम , धर्म के नाम लूटना कम.
जादू -टोंका , मन्त्र-तंत्र , हवन -यज्ञ नहीं ,
आविष्कार, जाना-कल्याण ,
यहाँ के मंदिरों के उत्सवों में बदमाशों के दल का जबरदस्त वसूल.
धर्म कर्म के नाम लुटेरों का , पियक्कड़ों के अश्लील नाच -गान
ईश्वर के जुलूस पर सब के हाथ में लाठी -हथियार,
मनमाना अश्लीली संकेत , यह धर्म बाह्य अश्लीली
भारतीय धार्मिक आचरण मुझे ज़रा भी पसंद नहीं .



Tuesday, October 3, 2017

विमान मन मान स)

मन पंख लगाकर विमान सा उड रहा है,
अनंत आकाश, असीम गहरा सागर,
तीनों लोक की कलपनामें गोता लगा रहा है,
पर मनुष्य मन की गहराई तक जाना
असंभव -सा लग रहा है,
हर मनुष्य का चित्त डांवाडोल,
स्वार्थ सिद्ध करने मौन तमाशा
धर्म युद्घ कुरूक्षेत्र में भी
अधर्म की चर्चा चल रही है,
क्या करें मन को हवा महल बाँध
आकाश में हवाई जहाज -सा
ऊपर ही उड रहा है, अतः
भू पर अन्याय हो रहा है.
न्याय तो कभी कभी चमकता है,
पर न्याय का यशोगान दिन दिन हो रहा है.
मन तो आकाश विमान में उड रहा है.

उसे जाते देखा है.

अपनी आँखों से उसे दूर जाते देखा है, 
शीर्षक उसे माने क्या? 
सुंदर प्रेमी या प्रेमिका या मित्र 
विमान, कार जाने कितनी कविताएँ.

मैं जब छोटा था, मुझे कितनों का प्यार मिला

बडा बना तो उसे दूर होते देखा.

कम कमाई, पर नाते रिश्ते के आना जाना

खुशी से मिलना दुलारना,
उन सब को

अधिक कमाई ,
बडा घर पर नाते रिश्ते की 

आना जाना मिलना जुलना
सब को   
अब बंद होना देखा था.


गुरु जन मुफ्त सिखाते,
अब बोलने के लिए तैयार 
पैसे
गुरु शिष्य वात्सल्य मिलते देखा. 


हर बात हर सेवा नेताओं का त्याग 
सब दूर कर्तव्यपरायणता सब मिटते
दूर होते  देख रहा हूँ,
क्या  करूँ? 

स्वच्छ जल की नदियाँ ,
जल भरे मंदिर के तालाब 

उन सबके दूर होते देख रहा हूँ.
क्या करूँ? 

अब मेरी जवानी मिट
दूर होते देख रहा हूँ. 

हृष्ट पृष्ट शरीर में झुर्रियां
देख रहा हूँ. 

उसे दूर जाते देखा है,

अस्थायी जग में सब के सब
दूर जाते देखा है.

Saturday, September 30, 2017

रावण के चित्र पर कुछ लिखने "उड़ान " ने कहा तो मेरे विचार,

रावण लोगों के ग्ञाता, 
वीर सूर अहंकारी, 
तभी हमें एक सीख दी, 
काषाय पहने सब दया और दानी के पात्र नहीं, 
लकीर लाँघना, वचन छोडना, सीता की गल्ती. 
वहाँ रावण उठाकर ले गया, पर
न उनके पतिव्रता का भंग किया.
विभीषण कुल कलंक, भाई छोड,
राम की साथ दिया, पर वह राम अग्नि में
नहाकर अपने पतिव्रता धर्म रक्षिका सीता को
जंगल में छोड आया़. दो बच्चे एक असली,
दूसरा नकली. कुश तोडना ये जन्मा.
भीष्म पितामह जिसे कह करते हैं मर्यादा.
तीन राजकुमारियों को जबरदस्त उठा ले आया.
वह भा नाम था विचित्र वीर्य,
जो वैवाहिक जीवन का अयोग्य.
उन तीनों के पुत्र अवैध, पतिव्रता है नहीं.
कुंती के तीन पुत्र उसके नहीं.
विदुर को रखा दूर, यह तो धर्म नहीं,
अब सोचो विचारे राम से रावण निर्दयी नहीं.

Thursday, September 21, 2017

तिरसठ नायनमार --- शिवभक्त

तमिलनाडु  तो
  प्रशिद्ध  हैं ,
भक्ति  के लिए.
 शिव भगवान की दैविक क्रीडाएं ,
 शिव भक्तों के  चमत्कारी
आत्म समर्पण.
श्री गणेश  जी   कर रहा  हूँ ,
तेरे चरण स्पर्श , श्री गणेश .
उन तिरसठ    नायन मार ,
अर्थात शिव भक्त   की जीवनियाँ .
निर्विघ्न   पूरा करने  चाहिए तेरा अनुग्रह.


१, सुन्दरमूर्ति नायनार.

     
   शिव -दास  , शिव और  तमिल के उत्तम सेवक.
   शिव से तर्क कर नाम पाए ,  वाणी कठोर सेवक.
  अपने जीवन काल  में  दिखाए  कई चमत्कार.
  नाम है  सुन्दरमूर्ति नायनार.
       सर्वेश्वर अनुग्रह   प्राप्त  करके ,
       सर्व संपन्न    देश  है  तिरुमुनैप्पाडि  I
       नृसिंह   मुनैयार नृप   के सुशासन   देश ,
         समुरुद्धि  में न कोई कमी.
नामी नगर के एक दिव्य-दम्पति ,
नगर में रहा करते थे .
नाम  थे  सदैयनार -इसैग्यानियार.

इन्के दिव्य पुत्र हुए  नाम्बियारूरार .
जिनके नाम सुन्दरर  भी  है.

नरसिंह  मुनैयार    नृप  एक दिन ,
इरैयानार  के   यहाँ  आ पहुंचे .
 एक विनती की , आप के  पुत्र को
आम पुत्र  बनाकर शहर को देना,
राजा के प्रिय निवेदन कैसे करते ठुकरा.
बिना कुछ बोले भेज दिया ,
प्रिय सुत को  प्यारे नृप के साथ.

   बालक  खेल रहा  था  राजमहल के
   आँगन में  अति आनंद से .
   बचपन  टिकेगा   कैसे?
   नाम्बियारूरार   बना जवान .
   अति सुन्दर युवक बन गया  विवाहोग्य.

    पुत्तूर   के   प्रसिद्ध    सदंगावी शिवाचारियर
   उनकी  इकलौती    पुत्री  से  शादी पक्की हुयी.
    विवाह के दिन, मंडप की व्यवस्था अति चमत्कार .
    अति सुंदर.    सुन्दर्नायिनार की शादी.
 
    ऐन  वक्त नृप नरसिम्ह नायनार आ पहुंचे.
     तभी हुई  वह  आघात घटना.
    पूर्व जन्म    एक  वर  से  भगवान शिव ,
    साधू सन्यासी के  वेश  में आ  गए.
   मुहूर्त के     दिन  ही  सुन्दर को अपने अधीन
   करने  का  उचित दिन तय किया.
    शादी   मंडप  के पास आये नृप .
     सब उठ नृप   की की वंदना.
      तभी सन्यासी शिव  के मुख से
      जलन  भरे    शब्द  निकले.
        विवाह का  प्रबंध तो  अति संतोष.
       पर  मेरा  अपना है  एक शिकायत.
       यह  सुन्दर तो एक  दास .
       उसके स्वामी  की अनुमति और आज्ञा बिन
        कैसे कर  सकता है  यह  विवाह.
           सुन्दर तो दास  है  मेरा.
            पूछ- ताछ करना  है ,
            उसके निजी जीवन  के   बारे    में.
             नगर के  प्रबंध एक क्षण अवाक खड़े रहे.
          फिर बोले, शादी होने दो ,
          बाद में बोलेंगे   बाकी बात.
          सन्यासी अति क्रोध से  बोले ,
          बात तो पक्की, प्रमाण भी मैं लाया हूँ साथ.
          कमर में रखे एक ताड़ के पत्ते ,
          ले  दिखाया  तो सुन्दरर  अवाक खड़े रहे.
           कहा- क्या है नयी कहानी?
           सन्यासी ने कहा , नहीं है यह  कहानी .
           सत्य बात है तेरे वसाज सब के सब मेरे दास.
          इतने  में ताड़ के पत्ते छीन ,
          टुकड़े टुकड़े   करके , यज्ञ कुंड  में
         डालकर  सुन्दरर  बोले अब कहाँ है प्रमाण.
         आवाज  में था  परिहास.
          संयासी आग बबूला होकर  बोले,
          देख !  इसका झूठा  व्यवहार.
           जो पत्ता दिया वह  है  नकली.
           मूल   मेरे  पास  है  देख! कह
           दूसरा पत्ता दिखाया  वह.
            नगर प्रबंधक लेकर पढ़ा तो
            सन्यासी की शिकायत सच  निकला.
               पंचायत  तो सन्यासी के  साथ
              जाने  का अपना न्याय  कह  सुनाया.
              विवश  हो , सुन्दरर  गया,
              राजमहल   के  सुविधा में सुन्दरर  को जाना
                 लगा  अति  मुश्किल.
             इतने  में पहुँचे,तिरुवेन्ने  नल्लूर.
             शिव का  प्रसिद्द शिव स्थल.
            सन्यासी तेज़ी से चला मंदिर  के  अन्दर.
             देखते -देखते ओझल हो गए!.
              सन्यासी! सुन्दर  ने पुकारा!
                इतने  में  देखा , ऋषभ   वाहन में
                उमामहेश्वर अमा के  साथ दर्शन दे  रहे थे.
                 हर्षोल्लास में  सुन्दर ने की प्रार्थना.
                 इस  घटना की सूक्ष्मता  जान  ली .
                 पुत्तूर दुल्हन चिंतित खडी  रही.
                 सुन्दरर  ने कहा, आगे मेरे  मन  में
                 और किसी को स्थान   नहीं.
                     ऋषभ  वाहन को नमस्कार  किया,
                     निकला  कैलाश  की और.
                  तिरु वेन्ने  नल्लूर से निकलकर,
                 चिदंबरम  स्थल पहुंचा.
                 वहां नटराज  का  नृत्य देखा. 
             
               वहाँ    से   तिरुवतिकै  की और निकले।
                  वीरटटनेश्वर   तिरुनावुक्कारासर नामक अन्य
                  शिव भक्त मंदिर की सेवा करते थे.
                  वे मंदिर छोड़  चित्तवट   नामक मठ में ठहरे।

                   रात के वक्त  भगवान शिव
                  एक  बूढ़े के रूप  में ,
                    मठ  में पधारे।
                    सुंदरर   के सर पर बूढ़े के  पैर पड़े.
                            सुन्दरर  ने  बूढ़े  से  कहा --

                             आपके चरण मेरे सर स्पर्श कर  रहा  है
                              ज़रा   हटना,  वृद्ध ने  कहा--
                               मैं  बूढा हूँ; तुम्हीं  हटकर लेटना.
                               सुन्दरर  ने   मान  लिया;
मीठी नींद सोते वक्त ,
फिर चरण सर पर लगा.
गुस्सेमें   भक्त  ने चिल्लाकर पुछा --
कौन  है  तू?  
  भगवान  शिव ने  हंसकर पूछा--
क्या तू नहीं जानता है  मैं  कौन?

तू तो भक्त  है  मेरा.
भक्त  को  अपनी गलतियाँ  मालूम हुईं.   
सुबह के  होते  ही ,
केटिल  नदी  में  स्नान  कर,
विराटटेश्वर  की  प्रार्थना करके ,
तिरुमान कुली की भी वंदना   करके,
 तिरुनेलवेली  की ओर  गए.
भक्त ने कीर्तन  गाया,
तभी उसके कानों पर एक आकाशवाणी पडी--
आरूर आवो.
आरूर जाकर वाहान विराजमान
शिव  की
प्रार्थना कर
शीर्काली तीर्थस्थान  गया.
वह  तो ज्ञान्सम्बंध नामक
शिव भक्त  का जन्मस्थान.
वह शहर की परिक्रमा  करके
आगे बढ़ा  तो
विश्वनाथ उमादेवी   सहित
सामने दर्शन  दिए .
शिव भक्त सुन्दरार  को
तम्बिरान का  सखा  कहकर
उनको प्यार से बुलाने लगे.

पिछले  जन्म  में   कैलाश    में  रहते  समय

कमलिनी से  सुन्दरर ने प्यार   किया.

वही कमलिनी आज  परवैयार नामक
सुन्दरी  के  रूप    में    आरूर  में
पुनः  जन्म  लिया.

सुन्दरर  की नज़र    उस  पर  पडी.
पूर्व जन्म की विधि
दोनों में  प्रेम    बंधन   गया.

देव दर्शन कर परवैयार दुसरे मार्ग पर
चली     तो   सुन्दरार  वाल्मीकिनाथ की
प्रार्थना  कर  आगे  बढ़ा  तो
परवैयार  की   तलाश  की.
विरह  ताप  से  दोनों  भक्त .
आधी रात को
शिव भक्तों के  स्वप्न में
शिव   ने   कहा --  सुन्दरर  है  मेरा  भक्त.
परवैयार और  सुन्दरार दोनों  करते  हैं प्यार .
उन  दोनों  की  शादी कराना.
   शिव भक्तों ने   दोनों    की शादी  कराई.
 वैवाहिक    दाम्पत्य जीवन शुरू किया  तो
सुन्दरर    दरिद्रता से  पीड़ित .
 कुंडैयूर    के   शिव  भक्त बूढा
शिव की प्रार्थना कर
जरा सोने    लगे  तो उनके स्वप्न  में
शिव  प्रकट  होकर  कहा
सुन्दरार    को  हमने   धान दिया है
जल्दी उन्हें  सुन्दरार के घर  पहुंचाना.
बूढा  जागा  तो  चकित रह  गया.
गली भर धान  ही  धान.
बूढ़े से धान उठाना मुश्किल लगा  तो
सुन्दरार    को  सन्देश  भेजा.
सुन्दरार    आया  तो उसने  शिव से  ही
नौकर भेजने   की  प्रार्थना  की .
शिव  ने     अपने  भूतगण  भेजे.
शिव  के      दिए   दान  को
दम्पतियों     ने    सब   को  बाँटा.
कोत्पुलियार  नामक धनी   ने   अपनी
दोनों  पुत्रियों को     सुन्दर  से विवाह  कराने  तैयार .
तब  शिव      के   अधीन  सुन्दरर ने  कहा-
आपकी  पुत्रियाँ आपको जैसी हैं ,
वैसी  ही    मेरी.
फाल्गुन     महीने   का उत्सव ,
परवैयर ने    देखा   ,
घर में  एक कौड़ी भी नहीं,
अपने  पतिदेव  सुन्दर    कहा-
सोने  के    सिक्के  हो  तो
उदारता से   त्यौहार  मना  सकते  हैं.
सुन्दरर      कहा --मेरे  परिचित भी शिव,
मेरी दशा    के  ज्ञाता  भी वही  है,
माँगें  तो  न मना  करेगा  वह.
यों  ही सोचकर  मंदिर    की  ओर  गया.
एक नया  यशोगान   गाया.
थका मांदा    वह ,एक  ईंट को
सिरहानी      बना    मठ  में  ही  सो  गया.
उठा  तो      देखा,
ईंट बदला हुआ  था
सोने  की    ईंट.
ईश्वर ने भक्त को  दिया
यह  स्वर्ण   का   पदक.
तिरुमुतु कुन्रम ,दूसरा शिव स्थल,
शिव के कीर्तन गा,सुन्दरर के  अद्भुत  वक्त ,
ईश्वर  ने बारह हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ  दीं.
 फिर  भी   भक्त  का  अहंकार,
कहा, स्वर्ण मुद्राएँ  देने मुझमें  बल नहीं  है,
आरूर   में   ही देंगे तो
दास करेगा स्वीकार.
 शिव को दी उसने आदेश.
शिव ने कहा --  मुकता  नदी में
स्वर्ण मुद्राओं को बहा दो,
आरूर मंदिर के तालाब  से
निकाल लो  ये  मुद्राएँ.
 नगर -नगर  मंदिर की  तलाश में
घूमने वाले  भक्त को
जब-जब भूख  लगेगा,
तब-तब  दास  का वेश  धारण  कर ,
भोजन खिलाएगा.
शिव स्थल  घूम -घूम ,
ओटरीयूर  आये  सुन्दरर.

वहां एक  शिव भक्त  था ,
उसकी एक बेटी थी s
संगिली  नाम के .
 सुचरित्र  बूढा
ज्ञायिटरु  बूढा  नाम से नामी .
बूढ़े  की एक बेटी
लता सी थी ,संगिली का दूसरा
नाम  था  अन्जुकम .

कोंपल  सी  थी.
सुन्दरर   ने  शिव   से
 अन्जुकम  से अपने प्रेम ,
 प्रकट  किया .
अन्जुकम की मांग  की.

शिव ने  अपने भक्त   की
इच्छा पूर्ती  के    लिए ,
संगिली  के स्वप्न   में ,
शादी  की बातें  कीं .
संगिली को  भी खुश  हुआ  .
पर  उनके  मन  में   दुविधा    हुईं .
सुन्दरर   तो  विवाहित गृहस्त .
अपनी पत्नी की  याद  करके ,
चला जाएगा  तो ....
लम्बी सांस खींची  तो
तब   शिव   ने  इसका प्रमाण  दिया .

    अच्छी बात सोचकर ,
मन्दिर   में   आज्ञा लेने  का निश्चय किया .
सुन्दरर   को  एक उपाय  सूझा .
शिव !मैं  गर्भ गृह    में
सत्य प्रमाण   दूंगा.
 पहली   पत्नी     परवैयार से न  पुनः  मिलने की प्रतिज्ञा ,
मंदिर  में शिव   के  सामने करने  का निश्चय किया गया.
 तब भक्त  ने    शिव  को  आज्ञा    दी ,
आप गर्भ -गृह से   निकल्कर ,
मौलश्री पेड़ में छिप कर  रहना,
शिव ने  भी भक्त  की  माँग  मान   ली.
यह तो   शिव  की    लीला.

पर वधु की सहेली  ने सलाह  दी ,
गर्भ गृह तो उचित स्थान  नहीं ,
मौलश्री पेड़  के   नीचे  ही करना .
वही वधुने   मान  आग्रह  किया.
तभी मोह से  सुन्दरर  को छूट मिली.
प्रतिज्ञा छोड़ने से अंधे हो गया    सुन्दरर.

अंधे भक्त को शिव भगवान  ने
सहारे   के  लिए  एक लकड़ी  दी.
 भक्ति  यात्रा   आगे  बढ़ी .
 कांची एकाम्बर  की प्रार्थना की
एक आँख को देखने  की शक्ति मिली.

वहाँ    से  तिरुप्पोंदुरुत्ती    गए तो
दूसरी   आँख को  भी देखने  की शक्ति  मिली .

दृष्टि  के  मिलते ही  वह पहली पत्नी
परवै   से   मिलने गया.
परवे  से  मिलने से  रोका शिव  ने ,
तब भक्त  ने  निवेदन किया ,
आप ही जाइए दूत बन ,
और परवै  को मनाइए .
लीलेश्वर हैरान हुए.
भक्त की प्रार्थना मान ,
संत के  वेश  में  परवैयार
गृह की ओर  चले.
 परवैयार ने  दृढ़ता से कहा ,
खुद  सूरज के  आने  पर  भी ,
न स्वीकार करूँगी  उन्हें.
संत विवश होकर
लौटे  और भक्त से  कहा --
तेरा गृहस्त हुआ  अंत.
 भक्त ने आपे से बाहर हो
कहा- परवैयार के संग जोड़ने  भेजा  था ,
तूने  यह क्या  कहा?

भक्त की इच्छा पूर्ती के लिए
फिर एक  बार दूत बन
परवैयार  से  मिला.
परैवैयार ने शिव को पहचान  लिया.
सुन्दरार से मिलकर रहने हो गयी तैयार.
कलिकामन  नामक दूसरे भक्त को
सुन्दरर  का ऐसा ईश्वर को ही दूत   भेजना
कतई पसंद  नहीं.
उसने चुनौती दी --
मैं  हो गया सुन्दरर  का  दुश्मन.
तब शिव को क्रोध हुआ
और कलिकामन को कोढी बना  दिया.
और स्वस्थ होने का उपाय सुन्दरर    के  पास  ही बता दिया.
कलिकामन और सुन्दरर फिर  बन गये   दोस्त.

 भक्त की महिमा जगत में  दिखाने ,
अपूर्व   शक्ति  देते  है ईश्वर.
 भक्त तिरुक्कोलियुर क्षेत्र  गए  तो
वहां एक परिवार के लोग
शोक मग्न रो रहे थे .
तब सुन्दरर को  पता चला एक मगर मच्छ ने
घर के इकलौते बच्चे को
निगल लिया.
तब सुन्दरर  ने बच्चे को जिन्दा लाने
शिव पर कीर्तन   गाया.
ईश्वर के  अनुग्रह  से बच्चा  जिन्दा   गया.
सुन्दरार की भक्ति-महिमा  प्रसिद्ध हुयी
चारों और  फैली. 

Friday, September 8, 2017

युग की परिपाठी


दक्षिण  भारत  हिंदी प्रचार
राष्ट्रीय  उन्नति एक ओर, 
त्याग मय प्रचारक एक ओर. 
जग में हमेशा स्वार्थ 
निस्वार्थ का संग्राम. 
आज केवल तमिलनाडु  के हिंदी
 प्रचारक. स्वेच्छा ये  पढने वाले  हिंदी प्रेमियों को
प्रमाण पत्र का लोभ दिखाकर 

दस साल में ही प्रवीण. 
यह तो आंकडे दिखाने की तरीका. 
हिंदी के प्रति रुचि कैसे? 
कारण समाज के संचार साधन 
उसी को नायक बनाता  है, 
जो बदमाश, खूनी, बलात्कारी, 
पुलिस के मारनेवला,  लडकी वश सुधरनेवाला, 
मैं सोचा यह कलियुग  की बात. 
पर छानबीन  कर देखा तो 
बदमाश ही लुटेरा ही  वालमीकी बन 
रामायण  की   ृृजन की. 
तुलसी स्त्रीलोलुप 
रामचरितमानस  की रचना की. 
वेश्यागमन ही अपने  जीवन समझ चलनेवाला
अरुणगिरीनाथ  ने तिरुप्पुकळ की रचना की. 
क्रूर अशोक अशोक सम्राट महान बना. 
 विचित्र लगता है मुझे ईश्वर की लीला. 


Friday, September 1, 2017

साध्य नहीं है


सुप्रभात.
मनुष्य को अपने को
अति शक्तिशाली
 सोचना गलत है.
बिना भगवान की कृपा  से
कुछ भी कोई भी
साध्य नहीं  है.
प्रयत्न ये न होगा.
बार ही पडेगा.
करुणानिधि  के अत्यंत प्रयत्न,
उनके स्वयंसेवक  के प्रयत्न
सब कुछ होने के बाद भी
जयललिता की जीत. उनके  पैरों पर पडे.
फिर शशिकला  के पैरोंपर.
दिनकर का प्रयत्न.
पन्नीर शेल्वम का पतन.
खान वंश का गांधी वंश बनना.
सीता की जंगल में जाना.
प्रबल सन्यासी पर कलंक,
ऐसे सब को नचानेवाले भगवान की कृपा
और रक्षा पाने प्रार्थना  करेंगे.
 अल्ला ईसा, शिव विष्णु शक्ति को
 पूर्ण रूप में समझकर, जानकर,

स्पष्टता प्राप्तकर्ता मनुष्यता,
 सत्य, ईमानदारी के मार्ग पर
कर्तव्यनिष्ठ होकर जो मनुष्य चलता  है,
 उसके आत्म संतोष,
अात्म आनंद ,
आत्म शांति,
  सब मिलते हैं.

மனி தன் தன் னை  மி கவு ம் ஆற்றல
மி க்கவன் என்று  நி னை ப் ப து  தவறு.
இறைவ னி ன்
அரு ளி ன் றி  எதுவும்
சா தி க்க மு டி யா து .
முயற்சியா ல் மு டி யா து
தோல்வி யே.
கரு ணா நி தி  அவர்கள் மு யன் று ம்
ஆழ் மன தொண்டர்கள் முயன்று ம்
அம்மா  வெ ற்றி.
கா லி ல்  வி ழு த்தர்கள்
சி ன்னம் மா   காலி ல்.
சின்னம்மா  சிறை யி ல்.
தி னகரன்  மு யற்சி
பன் னீ ர் வீ ழ்ச் சி.
பி ரபல சா மி யா ர்  களங்கம்
அனி தா  தற்கொலை
கா ன் காந்தி  ஆனது
சீ தை  கா னகம்
என எல் லோ ரை யு ம்
ஆட்டு  வி க்கு ம்  ஆண்டவன்
 அரு ள் பெற  வணங்கு வோம்.
அல்லா  என்றா ல்
ஏசு  என்றா ல்
சி வன் வி ஷ் ணு
சக்தி  என்றா ல் மு ழு மை யா க
அறி ந்து  தெரி ந் து    பு ரி ந்து
தெ ளி ந்து  மனி த நே யத் து டன்
சத் தி ய வழி யி ல் கடமை ஆற்றும்
மனி தர் ளு க்கு  மன நி றை வு,
மன மகிழ்ச்சி  மன அமை தி  நி ச்சயம்.