Tuesday, December 26, 2017

सबहीं नचावत राम गोसाई.

हम में हर कोई चाहता है 
सुखी जीवन. 
सुखांत जीवन. 
प्रयत्न हर कोई लगातार 
जारी रखता है,
कोई कामयाबी के शिखर पर
कोई असफलता की घाटी में
कोई संतुष्ट तो कोई असंतुष्ट
को ई धनी, कोई नामी,
कोई दानी, कोई धर्मी,
कोई रूपवान, कोई कुरूप.
अंत में निष्कर्ष यही
सब के नचावत राम गोसाई.

स्थायी कोहरा

स्थाई कोहरा
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जिससे अस्पष्ट
दीख पडता
सब कुछ.
देवालय के,
शिक्षालयों के
न्यायालयों के
न जाने और
सरकारी कार्यालयों में
राजनैतिक नेताओं के
सब के भ्रष्टाचार में
कोहरा स्थाई बन गया है.

ब्रह्मानंद

मन का घोडा, 
अति तेज. 
रोकना रुकाना अति दुर्लभ. 
कितने विचार 
कितनी कल्पना 
कितने हवा महल.
कितनी माया
कितना आकर्षण.
कितना आनंद,
कितनी पीडा.
कितनी आशाएँ
कितनी निराशाएँ.
यह मन होता तो
मनुष्य मन शांत
ब्रह्मानंद.

गाँव का नाला ,बचपन की यादें

पुराणी यादें ,
खेलते निर्भय ,
किसी ने न कहा,
संक्रामक रोग फैलेगा.
किसीने न कहा ,
कीटाणुओं का शिकार बनोगे .
किसीने न कहा
जल प्रढूषण.
आजकल वही गाँव ,
वही नाला,
चालीस साल शहरी वातावरण
पर पैर भिगोने डर लगता है,
उस समय के घासों का सुगंध नहीं ,
नाले में मोरे का गंदा पानी,
नाले की चौडाई कम .
कीचड से भरा,
भारतीय सरकार
ग्राम राज्य को भी
पैसे के लालच में
शहरी वातावरण बना रखा है.
खेतों में अधिकांश
इमारतें ,कारखाने ,
लोभी अंग्रेज़ी माध्यम पाठशालाएं,
केवल स्वार्थ धनियों के लिए.
वे पढ़कर डाक्टर बनते ,
धनलाभ के लालच में ,
जितने शिक्षा दान दिया ,
उतने लूटने.
जितना चुनाव खर्च किया
उतना लूटने.
स्वर्गीय सुख के नालें में

अंधरे उजाले में.

अन्धेरा खतरनाक , नेकों के लिए ,
दिन दहाड़े लूटनेवालों को नहीं ,
चोरों को नहीं, तस्करी लोगों को
अपराधी बुद्धिवालों को ,
निशाचरों को ,उल्लुवों को
जग में देखा सुना अनुभव किया
अच्छों को जो खतरा है,
जिस कर्म में पाप का भय हैं ,
बदों के लिए वहीं अच्छा लगते हैं.
खाली कागज़ में अंक देना
धन लोलुपों के लिए अच्छा ही .
अंग खोल कमाना रंडियों के लिए
वेश्या गमन के पुरुषों के लिए
खतरा नहीं हैं ,
मूर्तियों की चोरी ,

पर अँधेरे को चाहनेवाले ,
उजाले में सर नहीं दिखा सकते ,
वह ज़माना अब नहीं ,
अपराधियों को
नेता -नेत्री मान
माला पहनानेवाले
भ्रष्टाचारी ,रिश्वत-खोरियों के
समर्थक प्रत्यक्षा देखा
राधा-कृष्ण के मिलन नगर में .  बिल कुल ठंड पड जाएँ तो 
अवसाद के सिवा कुछ नहीं. 
पंच भूत तत्व शरीरा. 

उष्ण प्रधान जान. 
अंडे के लिए गर्मी. 
शारीरिक संबंध में गर्मी. 
गर्मी नहीं तो तन ठंड
मन ठंड चारों ओर रुदन. 
गर्मी तू बलि, भली.

स्वार्थ -निस्वार्थ

प्रेम ही जीवन है तो
प्रेम क्यों तंग दिली है?
पगडंडी क्यों ?
स्वार्थ क्यों ?
तीसरे को स्थान क्यों नहीं?
तब तो प्रेम होते हैं
स्वार्थ -निस्वार्थ .
अपने दल -अपने शासन -अपने लाभ
स्वार्थ प्रेम.
देश के लिए दल -देश के लिए शासन -देश के लाभ.
निस्वार्थ प्रेम .
स्वार्थ प्रेम में जलन-लोभ -क्रोध .माया आदि
शैतान का केंद्र.
अपने परिवार सुखी रहें ,
आरक्षण पीढी दर पीढी मिलता रहें
चाहें घर में डाक्टर ,इन्जनीयर आदि दल
कम अंक अधिक संख्या में हो.
जनेऊ पहने प्रतिभाशाली ,
भले ही भूखों मर जाएँ ,
आ रक्षण नीति सत्तर साल की आजादी के बाद भी
स्वार्थ राजनीती का ,पक्षपात नीति का
स्वार्थ लक्षण ,आरक्षण का.
सत्तर साल के बाद आरक्षण मिटाना
निस्वार्थ प्रेमार्थ शासन विधान.

Monday, December 25, 2017

अंधकार से प्रकाश

मनुष्य  माँ के गर्भ के अंधकार में
सूक्ष्म  बिंदु में जुडकर
 तम में पलता
दस महीने में
प्रकाश में आता .
फिर जीने के लिए
 ग्ञानांधकार से
छूट संसार को पहचाना.
 तभी
अंधे कानून, अंधे हिसाब, सब में
अमीरों को विजयांधकार,
ममकार अंधकार,
प्रेमांध,  कितने  अंधकार से
मनुष्य को प्रकाश   की ओर
लाना  कितना आसान,
 कितना मुश्किल .
जनतंत्र अंधकार,
 मत केलिए धन.
धनांधकार,
 पदांधकार,
अधिकारांधकार,
इन सब से छूटने पर
सच्चे भक्तों के दर्शन में
ज्योति स्वरूप  ईश्वर के
योग ग्ञान
ब्रह्मानंद  प्रकाश.

प्रह्लाद सूरज के प्रकाश
हरियाली तन मन में.
अंकुर के फूटना भी भूमि
गर्भ के अंधकार से,.