भक्ति ही मनुष्य की
अपनी व्यक्तिगत
मनोकामना पूरी
करने का साधन है.
भक्त के एकांत साधना,
ध्यान, प्रार्थनाएँ,
उनकी सादगी ,सरलता,
सत्यवचन के कारण
विजयेंद्र बनता है.
पर सांसारिक शैतानियत
मनुष्य को भक्ति,
ध्यान, योग में
रहने न देती.
बुद्धि क्यों भगवान ने दी?
भ्रष्टाचार करने के लिए?
रिश्वत के धन से जीने के लिए?
कर्तव्य न कर छुट्टी लेकर घूमने के लिए.
सोचिए.
विचार कीजिए.
मनुष्य क्यों धन पाकर भी
असंतुष्ट है? अस्वस्थ है?
पद, अधिकार, धन,, राजपद,
दल -बल का कोई प्रयोजन नहीं.
काल अंगरक्षक के रूप में भी
आ सकता है.
सोचिए.
रोज पाँच मिनट ध्यान कीजिए.
आपका मन स्वस्थ ,
अचंचल बन जाएगा.
लौकिक इच्छाएँ
अपने आप कम होगी.
सत्य का आधार ही
आपको शांति देगी.
कर्तव्य निस्वार्थी से निभाना है.
अपनी व्यक्तिगत
मनोकामना पूरी
करने का साधन है.
भक्त के एकांत साधना,
ध्यान, प्रार्थनाएँ,
उनकी सादगी ,सरलता,
सत्यवचन के कारण
विजयेंद्र बनता है.
पर सांसारिक शैतानियत
मनुष्य को भक्ति,
ध्यान, योग में
रहने न देती.
बुद्धि क्यों भगवान ने दी?
भ्रष्टाचार करने के लिए?
रिश्वत के धन से जीने के लिए?
कर्तव्य न कर छुट्टी लेकर घूमने के लिए.
सोचिए.
विचार कीजिए.
मनुष्य क्यों धन पाकर भी
असंतुष्ट है? अस्वस्थ है?
पद, अधिकार, धन,, राजपद,
दल -बल का कोई प्रयोजन नहीं.
काल अंगरक्षक के रूप में भी
आ सकता है.
सोचिए.
रोज पाँच मिनट ध्यान कीजिए.
आपका मन स्वस्थ ,
अचंचल बन जाएगा.
लौकिक इच्छाएँ
अपने आप कम होगी.
सत्य का आधार ही
आपको शांति देगी.
कर्तव्य निस्वार्थी से निभाना है.