Tuesday, March 27, 2018

प्रेम पत्र

प्रेम  पत्र
भगवान  के नाम
माता पिता के नाम
कोई किसी पर नहीं शिकायत.
पड़ोसिन पडोसी  के नाम
पत्र कितना  भाव, कितना मनोविकार.
प्रेम पत्र गुस्सा  होने के लिए नहीं,
प्यार पाने को लिए,
चंद घडी के लिए  नहीं,
शाश्वत बंधन के लिए.
न मुझे ऐसा मौका न मिला,
माँ बाप द्वारा वह वैवाहिक आनंद.
किया सचमुच  प्रे म पत्र के बंधन में है,
पता नहीं.
माता पिता द्वारा बंधन,
कितने नाते रिश्ते
कितने प्यार, कितना  अाशीरिवाद.
पर प्रेम पत्र  विवाह  कितनों. का निंदा,
बडों की वेदना, बददुआ,
कैसे मिलेगी शांति, संतोष, आनंद.

Thursday, March 22, 2018

महावीर जयहिंद चेंबगारामन

 तमिलनाडु के   महावीर चेंबगारमण    पिल्लै


 भारत की स्वतंत्रता संग्राम में  तमिलनाडू आगे रहा. तत्कालीन स्वतंत्रता सेनानियों का  परिचय देना हर
भारतीय देश भक्त का  कर्तव्य है. देश की आजादी  आसानी से नहीं मिली. कई लोगों ने अपने  प्राण त्यागे.

देश की  आजादी ही उनका प्रधान लक्ष्य रहा. ऐसे शहीदों  में जय हिन्द चेन्बगारमन ,महावीर चेंबगारामन से


प्रसिद्ध  शहीद की जानकारी  देना ही इस लेख का  उद्देश्य है, जिसे लिखने की प्रेरणा  निस्वार्थ सेवक श्री


तमिलनाडु   हिन्दी अकादमी  के अध्यक्ष ,जैन विद्या शोध  प्रतिष्ठान के महासचिव डा . श्री एस .कृष्णचंद चोरडिया
द्वारा मिली.  उनके प्रति मैं  आभारी हूँ.


      चेन्बगरामन    विदेश में रहते हुए   भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में ठोस काम  किया था. आपका जन्म १५ सितम्बर १८९१ ई.  में तिरुवनन्दपुरम के निकट पुत्तन विल्लै नामक गाँव में हुआ .आपके पिता  का नाम चिन्न स्वामी पिल्लै था और माता का नाम नगम्माल था.उनके पिता पुलिस  विभाग में चौकीदार थे.

चेन्बगम  पिल्लै  बचपन से ही लाठी चलाना (शिलाम्बम ) और  तलवार चलाने में सिद्धहस्त निकले.

उनकी पाठशाला की शिक्षा   तिरुअनंतपुर के राजा कालेन में  और उच्च शिक्षा इत्ताली और जर्मन में हुईं.
वे  यूरोप के कई भाषाओं के  पंडित थे. बर्लिन कालेज  में इन्जनीरिंग की पढाई की.

जब वे   छठवीं फार्म  (आज कल की दसवीं कक्षा ) पढ़ रहे थे , तब  बालगंगाधर तिलक, महाकवि भारती ,व.उ .


चिदबम्बरम   पिल्लै आदि नेताओं ने जोर दार से भारतीय  आजादी की क्रांती शुरू कर दी. उन सब के प्रोत्साहन   

के  द्वारा   चेंबगारामन  ने भारत माता युवक  संघ की स्थापना की .वन्देमातरम का नारा लगाया.
उन्होंने  ही पहली बार  “जय हिन्द “ का  नारा लगाया. अंग्रेज़ी सरकार  की जांच नज़र उनपर पडी.

उस समय  सर वाल्टर विल्लियम   नामक जर्मनी जासूसी भारत आये.  उनसे मिलकर अंग्रेजों की कार्रवाई  पर ध्यान देने लगे| वाल्टर विल्लियम  की सहायता से वे जर्मन चले गए.

जब   चेंबगारामन स्विट्ज़रलैंड  में छात्र थे, तभी उन्होंने वहाँ   प्रवासी भारतीयों को इकट्ठा करके
अंग्रेजों के अत्याचार की व्याख्या की. रूस .चीन  आदि देशों की यात्रा करके वहां के भारतीयों में
आजादी के महत्त्व को समझाया.

जर्मन भी अपने स्वार्थ के कारण  चेंबगारामन की सहायता की . चेंबगारामन  ने काबुल में अंग्रेजों के विरुद्ध

अपने  राज्य चलाने  की योज़ना बनायी.   राजा महेंद्र प्रताप को  अधिपति बनाया और मौलाना बरकत को  राजा बनाया. खुद वे विदेशी मंत्री  बन गए.

प्रथम विश्व युद्ध  में जर्मन ने एमिटन  नामक पनडुब्बी का इस्तेमाल किया. इसका जहाज अभियंता  चेंबगारामन ही थे .
हिटलर  और चेंबगारामन का  निकट संपर्क था. एक बार  हिटलर ने कहा --भारतीय गुलामी  में रहने ही लायक

है. भारतीयों  में शासन करने की क्षमता नहीं. यह  सुनकर देश भक्त चेंबगारामन क्रोधित  होकर बड़ी कुशलता से हिटलर से तर्क किया.  अंत में हिटलर ने माफी माँगी. हिटलर के सामने बोलने सब  लोग डरते थे.
चेंबगारामन की साहसी से  सब हैरान थे.

नाजिक  लोगों को  अपने नेता का  माफी माँगना अच्छा न लगा. उन्होंने चेंबगाराम  ओ विष पिलाकर मारने की कोशिश की. चंद दिनों के  इलाज के बाद जरा चंगा हुए तो नाज़िकों ने मरकर घायल किया. फिर  शय्याशायी होकर २६ मई 1९३४ सदा के लिए आँखें बंद कर लीं.

उन्होंने अपने  वसीयत में लिखा  था-- उनकी म्र्य्तु के  बाद उनके भस्म को अपनी माँ   के भस्म विसर्जन की नदी जो तिरुवानान्दपुरम  में बहती है ,वही विसर्जन करना चाहिए. बाकी भस्म को   नान्जिल देश के खेतों में छिड़क देना चाहिए.

उनकी पत्नी झांसी  ने तीस साल तक उस भस्म को सुरक्षित रखा. जब वह भारत  आयी ,तब १९६६ को अपने पति की विरासत के अनुसार विसर्जन किया  और खेतों पर छिडकाया.

 आज शहीदों  का दिन २३ मार्च है. उस दिन में उनकी श्रद्धांजलियाँ  समर्पित हैं.
ऐसे  शहीदों  की जीवनी पढना, उनका अनुयायी बनना ही  उनके प्रति हमारी श्रद्धा होगी.

प्रार्थना

मेरी प्रार्थनाएँ
  सुनो भगवान!
भाग्यवानों  को
 सब कुछ  देते हो.
ऐसी बात नहीं,
पापियों के भी
जीने का अवसर देते हो.
मेरी बुद्धि  तूने जो दी,
 समाज से दूर से चलती.
सत्य मानते हैं दिल से,
पर कटु सत्य कहते हैं.
सत्य में भी मधुर कटु
सद्यः फल  मिलना
सत्य जावकर भी तालमेल बिठाना.
सदा फल मिलने,
कटु सत्य ही संतोष प्रद.
शांतिप्रद.
अतः लौ किकता  छोड,
अलौकिकता  अपनाकर
तेरे आश्रय में मन लगाकर
बैठा हूँ, आश्रयदाता  तू है.
जैसा चाहो, वैसा नचाओ.
 मैं हूँ  तेरी सृष्टि. तेरी संतान.






दी जाए

दी जा जाए
पुरखों  के लिए
उनके त्याग और मार्ग दर्शन  केलिए
श्रद्धांजलियाँ  दी जाए.
आजादी की  लडाई में
सर्वस्व  तन मन धन दिये
देशभक्तों  को   उनकी
आत्म शांति के लिए
त्यागमय जीवन
 जीने का शपथ दी जाए .
 देश की एकता के विरुद्ध  कहीं
एक छोटी चिनगारी  दुख पडे
क्रोध  भरा तिल तर्पण कर
समूल नष्ट कर दी जाए.
भ्रष्टाचारी  सांसद, विधायक  को
पुनः वोट न देने का
प्रतिज्ञा  पत्र दी जाए .
स्वच्छ  भारत के निर्माण  में
तनमनधन  दी जाए.
आतंकवादी  दुख पडे कहीं
तुरंत पुलिस को सूचना दी जाए.
देश की एकता, तरक्की  के लिए
तन मन धन देने का वचन दी जाए.

Wednesday, March 21, 2018

हिंदी प्रचार

कहते हैं
मैं समाज के साथ
नहीं देता.
मैं हूँ जीने लायक नहीं ,
आदमी.
मैं हूँ पागल.
अन्याय को बारे में,
स्वार्थ लोगों के बारे में
लिखता हूँ,
दोषारोपण करता हूँ.

सोलह वर्ष की आयु में
हिंदी प्रचार में लगा.
देखता हूँ हिंदी प्रचार प्रसार के लिए
करोडों के खर्च,
पर केवल
कैसे हिंदी का विकास करना?
आज भी वही सवाल.
कितने लाख करोड़ .

सत्तर साल के बाद भी
राष्ट्रीयता कम होकर
इत्र-तत्र-सर्वत्र अलग प्रांत,
अंग्रेज़ी का यशोगान .
इसका कोई प्रयत्न नहीं ,
प्रचारकों को गलत मार्ग दिखाने तैयार.
हिन्दी छात्र को उत्तीर्ण करना
कराना , करवाना .
यही सरकारी स्कूल में भी .
आरक्षण में ओहदे के अयोग्य भी योग्य .
मातृभाषा माध्यम का अवहेलना.
अंग्रेज़ी माध्यम का आदर.

आजादी के सत्तर साल हो गये,
मधुशाला के आय से सरकार चलती है,

हिंदी प्रचार सभा, तिरुच्ची, चेननै के अहाते में

अंग्रेजीं माध्यम स्कूल,
मोहनदास करमचंद ,विनोबा और सर्वोदय यज्ञ
आदि के नेता की आत्माएं
आँसू बहाएँगी.

उसके द्वारा आय.

स्टालिन ,जयललिता केवल
ओट लेने तमिल तमिल कहते हैं
चलाते हैं अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल.
द्रमुख पार्टी के शासन के बाद
हिंदी के विरोध में
हर गाँव में अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल.
धन लूटने -कमाने का आसान तरीका.
मातृभाषा माध्यम से आजीविका नहीं
सत्तर साल की स्वतंत्रता के बाद
समाज का अटल विशवास.
सूट-टै-शू -वर्दी -सब की बिक्री स्थल.
शिक्षा को भी .

मतदाता पैसेवाले को ओट देता ,
भ्रष्टाचारी शासन करता ,
सरकारी स्कूल के अध्यापक
केवल वेतन लेने अध्यापक.
बाकी मेहनत अपने आप की वृद्धि के लिए.
जो सच्चे- आदर्श अध्यापक
उनका कोई नहीं महत्त्व.
वही अध्यापक आदर पाते -धनाधन बनते
जो प्रश्न पत्र देते, अच्छे अंक दिलवाते ,
प्रमाण पत्र दिलाते दिलवाते.

सरकारी अधिकारी
शासक दल के बेगार.
सबहीं नचावत राम गोसाई
कह जी रहे हैं
निस्वार्थ सेवक त्यागमय जीवन
स्वार्थ दुनिया,
स्वार्थ धन लोभी, बलात्कारी,
स्वर्ग तुल्य भारत को नरक तुल्य बना रहे हैं.

सत्तर साल के बाद भी
अखंड भारत में शिक्षा ,
आज केवल अमीरों को आरक्षित

योग्यता हो या न हो,
उम्र में, अंकों में सब में ढिलाई
भर्ती में प्राथमिकता.

कहने पर ,लिखने पर कहते हैं
मैं पागल, समाज के साथ नहीं चलता.

जरा सोचना अन्याय के विरुद्ध लिखने से

लिखना समाज, दोस्त, नाते रिश्ते
पागल मान भले ही मुझे दूर रखें, पर

एक न एक दिन कोई न कोई कहेगा ही
हममें भी कोई था
वह चिनगारी में हवा फूँक क्रांति करता.
आजादी की लडा ई में
कितनों ने प्राण दिये,
मैं तो केवल दूर समाज से,
नाते रिश्तों से, स्वार्थ लाभ के दोस्तों से,
मेरी दोस्ती का लाभ उठाकर
कितना अन्याय किया,
| दोस्ती निभाने चुप रहा.
हिंदी छात्र संख्या घटती रही.
मातृभाषा माध्यम भारत भर बंद.
आज भगवान राम की मूर्ति पर
चप्पल मारने की राजनीति.
जय हो भारत महान|

Monday, March 19, 2018

आजादी के बाद हिंदी प्रचार


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Anandakrishnan Sethuraman was live.
46 mins

खर्च, पर न कोई शुभ परिणाम.
कविता वाचन में अपने प्रिय मित्रों को
जितना समय देते हैं,
उच्च अधिकारियों के
खुशामद में कितना बोलते हैं,
उनको कितना पैसे देते हैं,
अहिंदी प्रांत के सच्चे हिंदी प्रचारक के
व्यवहारिक हिंदी प्रचार की बातें,
मैदानी समस्याओं, विरोध, इन सब के बीच,
हिंदी प्रचार के संकटकाल में,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की नींव
हिल रही थी, संख्या घट रही थी,
तब रात दिन एक करके,
हिंदी प्रचार में लगे प्रचारकों को
कोई प्रोत्साहन नहीं,
वृद्ध प्रचारकों को सम्मान,
आहा, उ़न प्रचारकों से 600 /- रुपये सम्मान लेकर,
डेढ रुपये के खर्च लेकर,
इस सम्मान देने जो मुख्य अतिथि अाते हैं,
उनको बहुमूल्य वस्त्र, यशोगान,
बिसनस क्लास वायुयान की खर्च,
मैं दिन रात करके हिंदी के असल प्रचार में,
मेरे रुपये, मेरे खरच,
मेरे प्रयत्न हिन्दी प्रचार की बातें सुनने कोई नहीं,
हर एक के भाषण में स्वार्थ की चरम सीमा ऐसे लूटने की संगोष्ठी को दूर से सलाम,
स्वार्थ मय हिंदी के नाम, जीने वाले हिंदी अधिकारी,
हिंदी प्रचार सभा के अहाते में
धन लूटने का अंग्रेजी माध्यम स्कूल,
इनके समर्थक की बुद्धि धिक्कार, मधुशाला के समर्थक, अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल के
समर्थक दोनों ही देश के
संक्रामक रोग फैलाने वाले कीट समान,
हाल ही में कडप्पा संगोष्ठी कितना स्वार्थ ,तमिलनाडु से आये तीन लोगों में कितना अपमान.
ऐसे स्वारथ के रहते
न होगा देशी भाषाओं की विकास.
स्वार्थ मय हिंदी अधिकारी, का चमचा गिरी छोड समाज की, देश की भलाई के ध्यान ही श्रेष्ठ.

Thursday, March 15, 2018

शरणागति

भगवान से प्रार्थना
सुना, देखा, भोगा,
अनु भव किया,
अनुभूति मिली,
तू है भक्तवत्सल,
तू है  शरणागतवत्सल,
लौकिक माया मोह,
तुझसे हमें दूर ही रखते हैं,
परिणाम हम भोगते हैं दुख.
लौकिकता  में  कांचन, कामिनी,
पद, अधिकार, अहंकार, लोभ, क्रोध,
मनुष्यता के कुचलना,
मद मस्त हाथी समान,
उठाकर बार बार फेंक देते.
तेरे शरण में आने नहीं देते.
ईश्वर! तू तो अति चतुर,
रोग,  बुढापा, मृत्यु अटल नियम,
सब दुर्भावना मिटाकर,
अंतिम समय प्रायश्चित्त रूप
तेरे चरण में लाने विवश कर देते.
मैं तो  किसी की चिंता न करता.
तेरे नाम लेता रहता,
अतः मेरी अपनी कोई चिंता नहीं
जानता हूँ मैं जग में,
सब हीं नचावत राम गोसाई.
ऊँ गणेशाय नमः ऊँ कार्तिकेयाय नमः ऊँ नमः शिवाय ओम दुर्गयैा नमः