पुदुच्चेरी में पुदुच्चेरी हिंदी साहित्य अकादमी ,
केन्द्रीय निदेशालय दोनों
मिलकर नव लेखक शिबिर का प्रबंध किया.
उसमें भाग लेने का सुअवसर मिला.
यह मेरे लिए पहला शिबिर था.
मैं सोच रहा था कि ६८ साल की उम्र का
दिलतल का युवक मैं ही हूँगा.
पर वहां श्रीमती चेल्लं, चंद्रा ,वासुदेवन , कल्याणी जैसे
मुझसे बड़े बहनों का , वासुदेवन जैसे साठ साल के छोटे भाई का
मधुर मिलन हुआ.
आये नवयुवकों में से श्रीमती चेल्लम जी, चंद्राजी के सक्रिय भाग ,
परिश्रम ,उत्साह देख मुझे लगा , मैं तो निष्क्रिय हूँ.
उन्होंने हिंदी किताब आर्थिक लाभार्थ नहीं ,
साधक के रूप में प्रकाशित किया है.
मेरे ब्लॉग लेखन का उन्हें पता ही नहीं.
शिबिर की प्रतिक्रिया :-
भला मेरी उम्र बड़ी ,
मन में जो विचार आते,
जिन्हें मेरा मन माना ,
उन्हें अपनी हिंदी ,अपनी शैली , अपने विचार
अपना स्वतंत्र प्रकाशन
यों ही लेखनी दौडाई.
उनमें कितनों ने प्रशंसा की ,
कितनों निंदा की ,
कित्नोने ने समझा पागल ,
कितनों ने समझा चतुर
पता नहीं ,
मेरे ब्लॉग नव भारत टाइम्स में
आ सेतु हिमाचल, मतिनंत के नाम से ,
राम्क्री सेतुक्री.ब्लॉग स्पॉट के नाम से ,
तमिल- हिंदी संपर्क ,anandgomu.ब्लॉग स्पॉट .कॉम
स्पीकिंग ट्री इण्डिया टाइम्स में
अनूदित, स्वरचित ,नकल की रचनाएँ
लिखता रहा हूँ ,
किसी का बंधन नहीं ,
विश्व भर के एक लाख लोग
न जाने सरसरी नजर से देख रहे हैं ,
या पढ़ रहें हैं पता नहीं ,
चाहक की संख्या से ,
संतुष्ट रहा,
११-५- १८ से १८.५ .१८ तक के आठों दिनों में
मेरे अष्ट वक्र विचार,
लेखन शैली में ,
कितनी गलतियां हैं ,
कितनी श्रद्धा हीनता है,
यह सोचकर लज्जित हूँ.
शिबिर की प्रक्रिया जो कहूं ,
जितना भाई चारा बंधुत्व मिला,
जितनी अधिक प्रेरणा मिली ,
प्रोत्साहन मिला ,
वे वर्णनातीत और शब्दों से परे
अनुभूतियात्मक हैं.
पुदुच्चेरी हिंदी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष
श्री श्रीनिवास गुप्त जी, ,श्री जयशंकर बापू जी , सचिव चेंदिलकुमरन जी ,
व्यवस्थापिका समिति के सदस्या मुरली जी , राधिकाजी
केन्द्रीय निदेशालय के निदेशक अश्विनी कुमार जी ,
सहायक निदेशक
गांधारी पांके जी, , मार्गदर्शक त्रिदेव डाक्टर श्यामसुंदर पांडे जी ,
प्रत्युष गुलेरी जी ,डाक्टर राधाकृष्णन जी आदि का मार्ग दर्शन मिला.
शिबिर की यादें हमेशा हरा रहेगा,
मैंने कहा -- यह हरियाली हमेशा हरी रहेगी .
तब -गुलेरीजी ने कहा -- घरवाली ,
मैंने कहा -
वसंत वसंत है सदा ,
सताने की गर्मी है कभी -कभी ,
वर्षा है , शीतल है, पतझड़ है ,
छह ऋ तुओं का चक्कर है
सुनकर पांडे जी ने कहा ,
यह तो यह कविता बन गयी.
इन मधुर स्मृतियों के साथ
चेन्नई पहुंचा. सधन्यवाद.