Wednesday, June 7, 2023

वजह से

 र्षक   :-- वजह तुम हो।

        अग जग में प्राकृतिक  सुंदरता,

         हरियाली मरुभूमि, 

         विविध फल, विविध रंग, 

          विविध भाषाएँ,

          हे  तुम सूक्ष्म शक्ति हो, 

           वजह तुम  ही हो।

          मेरी सृष्टि हिंदी विरोध,तमिलनाडु में।

           मेरी माँ हिंदी प्रचारिका  

           मैं भी हिंदी प्रचारक।‌

            हे सर्वेश्वर !  तेरे अनुग्रह से,

             हिंदी में स्नातकोत्तर!

            हिंदी में ही जीविकोपार्जन।।

            विधि की विडंबना,

             परमेश्वर की लीला,

             अति सूक्ष्म। 

               सबहिं नचावत राम गोसाईं।

         एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई, 

     स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक।

नाम --एस.अनंतकृष्णन,

A7, Archana Usha Square

4-5, Kubernagar IV Cross Street 

Madippakkam, Chennai 600091.

Mobile 8610128658

जीवन

 नमस्ते वणक्कम।

साहित्य संगम संस्थान राजस्थान।

7-6-2021

विषय --जीवन

 विधा  मौलिक रचना मौलिक विधा।


जन्म -मरण के बीच की जिंदगी है जीवन।

 धनी भी आनंद ,

  गरीब भी आनंद।

   अघोरी भी आनंद।

   भिखारी भी आनंद।।

    सभी के जीवन 

    अपने     अपने 

     दायरे में आनंद।।

     कभी कभी मैं देखता हूँ,

     रईस  की तुलना में,

     रंक का जीवन 

अति  आनंद।।

  मच्छरों के बीच मधुर नींद।

  पियक्कड़ का जीवन,

 मक्खियाँ भिन भिनाती।

 मध्य नींद है उसका।।

 रोज़ खून का निदान।

शक्कर बढ़ता-घटता।।

 तनाव ही तनाव 

अमीरी जीवन।

 धन की रक्षा,पद की तरक्की।।

  भगवान जितना देता,

   उतना ही आनंद।।

 जीवन जीने प्रयत्न।

  मृत्यु आ जाती अपने आप।

  जीवनानंद 

जीवन अंत बराबर।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

चाह

 न नाम की चाह,न दाम की चाह।

चाह है सर्वेश्वर  की।

सर्वेश्वर  चाहें  तो सुनाम,कुनाम।

दाम-बदनाम।सुनाम।

 दानी कर्ण,संगति के फल से नहीं,

 ।निर्दयी माता के बदचलन के कारण।


 कर्म फल,ईश्वरानुग्रह  ।

राम को दुखी,कृष्ण  को षडयंत्रकारी, 

वाली वध में  बदनाम।द्रोण वध से कलंकित कृष्ण।

 ।जग माया,जग में  असुरों  को,

भ्रष्टाचारियों  का शासन।

यही  भूलोक नीति।

कर्म भूमि। तपोनिष्ठ  भूमि।

अच्छों  के कारण  समय समय पर,

पुनः  स्थापित कर स्वर्ग  बन रहा है भूमि।

अनुभव से शिक्षित दीक्षित हूँ  मैं। 

सुधारने कुछ कहा लिखा  तो

पत्थर फेंकते लोग।

श्री पर चढाये लोग। 

खुल्लम-खुल्ला  बोलते ,

कर्म कर, सत्य बोल,सेवा कर।

स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्ण की प्रार्थनाएं। 

भ्रष्टाचार  को बढाने देते मत।


 स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्णन।

Tuesday, June 6, 2023

असली आनंद

  नमस्ते वणक्कम।

 मानव जीवन में का 

असली आनंद

 तन पर

मन पर

धन पर

परिवार पर

मित्र मंडली पर

सुंदर रूप पर

सुंदरी पर

सुविचार पर

 भक्ति पर

 ज्ञान पर

त्याग पर 

भोग पर

मानव पर 

 मर्यादा पर

 कर्तव्य परायण पर,

 सुकर्म पर 

दुष्कर्म पर

 नशीली चीजों पर


 किस पर निर्भर  है?

पता नहीं,

मोह माया के आकर्षण 

भिन्न भिन्न।

नायक पर मुग्ध

खल नायक पर 

मानव के रूप भिन्न

विचार भिन्न

  स्वार्थी मानव।

 निस्वार्थ मानव

 चलता मानव 

 कोई लोभी 

कोई शांत

कोई संतुष्ट

कोई असंतुष्ट।

कोई स्वस्थ

कोई अस्वस्थ।

थोड़े में कहें तो

 मानव मानव में

 सुखानुभूति ही  अलग-अलग।।

दुखानुभूति अलग अलग।


स्वचिंतक, स्वरचनाकार, अनुवादक

एस. अनंतकृष्णन , चेन्नई।


 


इश्क

 शीर्षक पसंद है।

सभी साहित्यकारों को समर्पण।

नमस्ते। वणक्कम।

निज रचना,निज शैली।

मौलिक रचना मौलिक विधा।

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 मुहब्बत हमारी अमर हो गई।

 मन पसंद सुंदरी,

 भले ही दूसरी की पत्नी हो,

उसके पति को मारकर,

  उसे अपनी बेगम बनाकर

ताज महल बनवाने से

 मेरी मुहब्बत अमर हो गयी।

 पड़ोसी देश की राजकुमारी,

  अति सुन्दर, मैं तो राजा

 मेरी सेना के हजारों सिपाहियों की पत्नियों को 

 विधवा बनाकर,

उनके बच्चों को अनाथ बनाकर  

 मेरी मुहब्बत पद्मावती काव्य बन  अमर हो गई।

 मंत्री मेरे तीन पत्नियाँ,

 असंख्य रखैल मेरी मुहब्बत व

 रखैल की कहानियां अमर हो गई।

 शकुंतला की अंगूठी खोने से

 शाप के कारण भुलक्कड़ बन

  शाप विमोचन याद आना

 मेरी मुहब्बत अमर हो गई।।

 भले ही प्रेम एक पक्ष का हो,

बलात्कार अपनाने से

  धन पद अधिकार के बल

 मुहब्बत  अमर हो गई।।

 लैला मजनू दुखांत कथा अमर हो गई।

 बच्चे आदर्श प्रेम रंक है तो

 रंग हीन हो जाता।।

  किसी कवि ने लिखा,

काश! मैं भी शाहंशाह होता तो

 ताजमहल बनवाता।

 यह अमर महल गरीबों के

 आदर्श प्रेम की हँसी उडा रहाहै।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

  (यह मत लिखना उल्लिखित उदाहरण  के कारण यह कविता

निजी नहीं है।)

जी वन

 नमस्ते वणक्कम।

साहित्य संगम संस्थान राजस्थान।

7-6-2021

विषय --जीवन

 विधा  मौलिक रचना मौलिक विधा।


जन्म -मरण के बीच की जिंदगी है जीवन।

 धनी भी आनंद ,

  गरीब भी आनंद।

   अघोरी भी आनंद।

   भिखारी भी आनंद।।

    सभी के जीवन 

    अपने     अपने 

     दायरे में आनंद।।

     कभी कभी मैं देखता हूँ,

     रईस  की तुलना में,

     रंक का जीवन 

अति  आनंद।।

  मच्छरों के बीच मधुर नींद।

  पियक्कड़ का जीवन,

 मक्खियाँ भिन भिनाती।

 मध्य नींद है उसका।।

 रोज़ खून का निदान।

शक्कर बढ़ता-घटता।।

 तनाव ही तनाव 

अमीरी जीवन।

 धन की रक्षा,पद की तरक्की।।

  भगवान जितना देता,

   उतना ही आनंद।।

 जीवन जीने प्रयत्न।

  मृत्यु आ जाती अपने आप।

  जीवनानंद 

जीवन अंत बराबर।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Sunday, June 4, 2023

तितली

 तितली फूल फल का रस चूस,

मकरंद मिलाने का 

अपूर्व काम भी करती।

सूक्ष्म सृष्टि उसके पलने में

 कीड़े का पर्व 

सभी पेडों  के पत्ते खाना।

पौधों को नाश करना।

मानव ज्ञान न समझ सकता।

स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।