५२ साल के प्रांतीय दलों के शासन में डीएम के और एडिएम के दोनों की घोषणा हिंदी विरोध के संबंध में यही है कि दोनों दुनाली बंदूक बनकर हिंदी का विरोध करेंगे.
उनका बयान है कि हम हिंदी सीखने का विरोध नहीं करते; पर राज भाषा के रूप में हिंदी को न मानेंगे.
तमिलनाडु में हिंदी विरोध नेता ई.वे. रा. के घर में ही ईरोड में हिंदी का प्रचार शुरु हुआ. श्री चक्रवर्ती राजगोपालचार्य ,ईवेरा अण्णातुरै सब मिलकर हिंदी का कठोर विरोध किया!
इंदिरा गांधी जी ने प्रांतीय दलों को प्रोत्साहित किया! 1967 के बाद तमिळ नाडू में राष्ट्रीय दलों में कोई भी जनप्रिय नेता का उदय न हुआ!
राष्ट्रीय दलों में दिल नहीं कि अकेले चुनाव लडें या तमिळननाडू के मतदाता राष्ट्रीय दलों के समर्थन में नहीं.
कांग्रेस डीएम के दल जुडकर चुनाव लडते हैं पर मंत्री मंडल में कांग्रस मंत्र पद की माँग नहीं करती!
देव विरोध, हिंदू विरोध, हिंदी विरोध, ब्राह्मण विरोध ही द्रमुख दलों की प्रमुख चुनाव घोषणाएँ हैं.
दोनों दलों के कुल मत २५+२५ 50%. .बाकी जातीय दल से मिलकर चुनाव जीतते हैं. ३०% मत देते नहीं.
४०-४५% दलों का शासन 55% जनता पर.
मैनारिटी विचारों का, सिद्धांतों का लागू 55% नागरिकों पर।
मेरा विचार है कि भारत भर यही दशा है।
ममता बैनर्जी, केजरीवाल की बात तो अलग है।
चुनाव में खर्च न करनेवाले जीत नहीं सकते। चुना में दल बदलने के नमकहरामी रोकने न कानून न संविधान।
स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक एस. अनंतकृष्णन चेन्नई ।
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