[12:14 am, 16/04/2024] sanantha.50@gmail.com: एस. अनंत कृष्णन सेतु रामन का नमस्कार।
साहित्य नव कुंभ साहित्य सेवा संस्थान को
प्रणाम।
चित्रलेखा।
शीर्षक --जंग लगी ताला।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार
अपनी शैली भावाभिव्यक्ति
-------++---++++((+((
सुना
उर्वरा भूमि सोना उगलती है,
आश्चर्य जंग लगी ताला में
अंकुर पनप रहा है।
आज वैज्ञानिक युग में,
छत पर गमलों में पेड़-पौधे
खाली फैंके बोतल में भी।
तब चतुर मानव
आलसी न तो भीख नहीं माँगता।
प्रकृति बहुत कुछ देती है
हवा मुफ्त जीने के लिए।
वर्षा मुफ्त।
कृषी प्रधान भारत।
बेकारी नहीं सोच समझकर
बाग बगीचा उद्यान।
जंग लगी ताला में पौधा।
प्रेरित करती, प्रोत्साहन देती।
मानव! खेती करो,
भूमि बोतल भी बन सकता है।
जंग लगी ताला भी।
एस. अनंतकृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति कविता।
[12:16 am, 16/04/2024] sanantha.50@gmail.com: एस. अनंत कृष्णन सेतु रामन का नमस्कार।
साहित्य नव कुंभ साहित्य सेवा संस्थान को
प्रणाम।
चित्रलेखा।
शीर्षक --जंग लगी ताला।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार
अपनी शैली भावाभिव्यक्ति
-------++---++++((+((
सुना
उर्वरा भूमि सोना उगलती है,
आश्चर्य जंग लगी ताला में
अंकुर पनप रहा है।
आज वैज्ञानिक युग में,
छत पर गमलों में पेड़-पौधे
खाली फैंके बोतल में भी।
तब चतुर मानव
आलसी न तो भीख नहीं माँगता।
प्रकृति बहुत कुछ देती है
हवा मुफ्त जीने के लिए।
वर्षा मुफ्त।
कृषी प्रधान भारत।
बेकारी नहीं सोच समझकर
बाग बगीचा उद्यान।
जंग लगी ताला में पौधा।
प्रेरित करती, प्रोत्साहन देती।
मानव! खेती करो,
भूमि बोतल भी बन सकता है।
जंग लगी ताला भी।
एस. अनंतकृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति कविता।
[12:17 am, 16/04/2024] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते वणक्कम्।
साहित्य परिवार भारत को
एस.अनंतकृष्णन का प्रणाम।।
विषय --तमन्ना
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार
अपनी भाषा अपने विचार
अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।
१५-४-२०२४.
तमन्ना क्या है?
आजकल के छात्र से पूछा तो कहा
तमन्ना अभिनेत्री।
बूढ़े से पूछा तो
तमन्ना ? मेरी कामना स्वस्थ तन।
ताज़े स्नातक से पूछा,
नौकरी।
युवति के पिता से पूछा
बेटी की शादी योग्य वर से।
शादी के बाद सुंदर बच्चे की तमन्ना।
हर कोई की तमन्ना/ख्वाहिश/इच्छा/
उम्र के अनुसार बदलती है तमन्ना।
भारतीय आध्यात्मिक जीवन
तमन्ना रहित जीना।
चाह गई चिंता मिटी,
जानें कछु न चाहिए
वही शाहँशाह।।
इच्छा नहीं,
ऊँची अभिलाषा आकांक्षा नहीं
तो ज्ञान नहीं, जिज्ञासा नहीं तो
खोज नहीं, क्रिया नहीं।
लौकिक ख्वाहिशें अलक।
अलौकिक ख्वाहिशें अलग।
साहित्यकार की तम…
[7:58 am, 16/04/2024] sanantha.50@gmail.com: लिखा है हिंदी में,
लिखूँगा हिंदी में
लिख रहा हूँ हिंदी में।
अनिवार्य दोहा
लिखने के प्रयत्न
फिर भी राय दोहे की विधा नहीं।
कोशिश करके छोड़ दिया।
कवि बनना ईश्वरीय वरदान।
विधा है
अपनी भाषा अपनी हिंदी अपने विचार
अपनी शैली भावभिव्यकति।
छंद बंद रखना,
विचारों की धारा मैं बाँध बनाना।
दोहे लिखना आसान।
पर न १३,११ मात्राएँ
सही नहीं बैठता।
अनिवार्य दोहा शैली।
प्राचीनता की रक्षा।
न पैदल चलतै हैं,
न घुड सवार,
न बैलगाड़ी
न घोड़ा गाड़ी
न पैर गाड़ी
न हिंदी भारतीय माध्यम पाठशालाएँ
न गुरु कुल, न चोटी न धोती।
न राजतंत्र न दीवान।
लोकतंत्र न ईमानदारी
भ्रष्टाचारी अपराधी ३०% सांसद विधायक।
२०% विपक्षी दल,१०% गिरगिट दल
२०%प्रधान दल
मतदाता में ३०% मत नहीं देते७०% में
पैसे लेकर खोट देने वाले।
अपने दल के नेता
अपराध करें फिर भु समर्थन।
देश की चिंता सच…
[2:22 am, 18/04/2024] sanantha.50@gmail.com: कलम बोलती है साहित्य मंच को एस अनंतकृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक का प्रणाम वणक्कम।
विषय --सपनों की दुनिया
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार
अपनी शैली भावाभिव्यक्ति
18-4-24.
+++++++++
सपना कितने-कितने किस्म के।
दिवा सपना,जो साकार नहीं होता।
ब्रह्म मुहूर्त में सपना कहते हैं
जरूर सत्य है, फल मिलेगा।
जागते जागते सपना,
बड़े उद्योगपति बनने का।
नेता बनने का।
वैज्ञानिक बनने का।
जिसको कीर्तवान
चतुर होशियार
नामी धनी देखते हैं
वैसा ही बन जाने का।
जादूगर बनने का।
अभिनेता बनने का।
जागते जागते सपना।
वह तो सपना सपना सपना ही ।
तमिल के शिव भक्त 64 थे।
उनको कहते नायन्मार।
उनमें एकते पूसलार।
गरीब भक्त।
शिव के मंदिर बनाने का सपना।
कल्पना में ही मंदिर बन गये।
दिव्य मंदिर।
कल्पना में ही कुंभाभिषेक।।
शिव भगवान की लीला देखिए।।
राजा के स्वप्न में …
[6:43 am, 20/04/2024] sanantha.50@gmail.com: साहित्य बोध प्रमुख इकाई को एस.अनंतकृष्णन का प्रणाम।वणक्कम।
बढ़ गया प्यास का एहसास दरिया देखकर।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार
अपनी शैली भावाभिव्यक्ति 20-4-24.
------------_------
प्यास,
बुझाने
पानी की आवश्यकता।
प्यास प्राकृतिक उद्वेग।
प्यास प्यार का,
प्यास ईश्वर भक्ति का
प्यास ज्ञान प्राप्त करने का
ज्ञान पिपासा।
प्यास आम भावना ,
सब को मानव, पशु-पक्षी, वनस्पति।
पर मानव को मात्रा
सांसारिक जीवन में
दरिया प्यास का बुझता नहीं।
विविध प्यास, विविध परिस्थितियों में।
तृष्णा नाम प्राप्त करने का।
ये भी ईश्वर प्रेरित।
कविता सुनने में का आम तृष्णा।
कवि ही बनने की तृष्णा
उनका प्यास बुझता नहीं।
देश की सुरक्षा सब की चाह।
सेना में भर्ती होकर
जान त्यागने की पिपासा।।
नेता को देखकर नेता बनने का
अध्यापक देख अध्यापक बनने का।
अभिनेता , अभिनेत्री बनने का।
ये तो प्रपंच का आकर्षण।
वैज्ञानिक बनने का प्यास
व्यक्ति गत क्षमता ,कौशल
ईश्वर की देन, वह तो बुझता नहीं।
प्यास, पिपासा, तृष्णा।
विविध प्राकृतिक विशेषताएँ।
सांसारिक दरिया में
जन्म पर्यंत ज्ञान पिपासा बढ़ता है,
बढ़ रहा है, बढ़ेगा ही,
मानव बुद्धि जीवी,
न पशु-पक्षी वनस्पति समान
पानी मात्र पीना,बढना,मरना।
मानव का ज्ञान पिपासा
जिज्ञासा बढ़ गया संसार की दरिया देखकर।।
प्यार, ज्ञान, भक्ति तीनों अति विस्तार।
बढ़ गया प्यास का एहसास दरिया देखकर।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
[4:01 pm, 21/04/2024] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते वणक्कम् एस.अनंतकृष्णन का
साहित्य बोध महाराष्ट्र इकाई को।
विषय -जख्म कहीं नासूर न बन जाए।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार
अपनी शैली भावाभिव्यक्ति
२२-४-९०२४.
शब्द कया है?
वक्रोक्ति।
तुम तो वैशाखनंद हो,
मैं तो अर्थ नहीं जानता।
नंदकिशोर, नंद गोपाल जैसे
पता चला वैशाखनंद का अर्थ गधा है।
तब मेरी प्रसन्नता अप्रसन्न ।
मेरी तारीफ वाजस्तुति।
एक शब्द है औषधी दूसरा शब्द तीर।
धीमा शब्द कहना,
कुंजरः,ऊंचे स्वर में अश्वत्थामा।
गुरु द्रोणाचार्य का भ्रम।
परिणाम चेले के द्वारा मृत्यु।
भले ही भगवान कृष्ण हो
ज़ख्म तो नासूर ही।
धर्म निंदा नहीं,
अधर्म युद्ध सा चोट।।
क्या करें हम,
चोट तो लगजाती।
मधुर वचन है औषधी,
कटुकी वचन है तीर।
सोचो समझो
ज़ख्म कहीं नासूर न बन जाए।
जिह्वा बावरी कह गया
स्वर्ग पाताल।
खोपड़ी पर चोट।
तिरुवल्लुवर ने कहा,
…
[10:28 pm, 21/04/2024] sanantha.50@gmail.com: मानव मन डरपोक होता,
जब इति भीति दुखी घटना
सोचता ही रहता।
जीवन का सुख भगवान की कृपा
अति आनंद मनाना
वैसे ही दुख में भी मनाना।
दुख भगवान के पास ले जाएगा।
सुख भगवान से
अति दूर भगाएगा।
वेदना तू भली गुप्त जीने लिखा।
नर हो, न निराश करो मन को।
आप क्यों इतना उदास दीख पड़ते हैं।
सुख में दुख में
साथ देनेवाली,
ऊर्जा देनेवाली ऋतुएँ
पतझड़ में सूखे पेड़।
एक पत्ता भी नहीं,
वसंत में पनपते हैं
ताज़े पत्ते, फूल नव वधु समान।
तज चले पक्षु वापस आते।
कोयल कू कू।
मानव में क्या नहीं,
मानव खुद भगवान
अहंब्रह्मास्मी।
शक्ति पुंज।
शरणागत वत्सल।
शरणार्थी बनो।
शक्तिशाली बनोगे।
मूर्ख भी कवि बनता।
वरकवि कालीदास।
वरकवि वाल्मीकि।
आप तो नामी कवि
हमेशा सरोताज़ा रहना।
एस.अनंतकृष्णन
[12:46 pm, 22/04/2024] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते वणक्कम्।
भू लोक
मृत्यु लोक
नश्वर लोक
पर भूमि तो शाश्वत।
भू दिवस चाहिए क्या?
हाँ, आजकल का मानव
वैज्ञानिक मानव,
अपने स्वार्थ के लिए
सद्यःफल के लिए
जंगलों को नगर बना रहे हैं।
प्राकृतिक जलाशयों को
जल रहित बना रहे हैं।
यंत्रीकरण कारखाने
धूएँ, रसायनिक जल,
आवागमन की ध्वनियां,
भू गर्भ के प्राकृतिक संतुलन
बिगाड़ रहे हैं।
तमिलनाडु मदुरै के पास
पहाड़ समतल बना रहा है।
पहाड़ को चूर्ण करने का नतीजा
नदी की चौड़ाई कम,
तालाब हमारे पूर्वजों ने बनाया
कूड़े कचरे डालकर
नदारद है।
भू को पवित्र रखने
सनातन धर्म में वन महोत्सव,
होम हवन पर आजकल
भूतल जल प्रदूषित,
विषैले वायु भोपाल दुर्घटनाएँ।
इन सब बातों को ध्यान दिलाने
दुबाई बाढ़ अप्रतीक्षित वर्षा
सतर्क करने पृथ्वी दिवस/धर्ती दिवस/भू दिवस
मनाना चाहिए।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति कविता
स्वरचित
[11:09 pm, 22/04/2024] sanantha.50@gmail.com: साहित्य बोध उत्तर प्रदेश इकाई को एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार वणक्कम।
शीर्षक ---अनुभव ही जीवन का श्रेष्ठ शिक्षक है।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार
अपनी शैली भावाभिव्यक्ति
२३-०४-२०२४
अनुभव से ही मानव
मानव बनता है।
आग के छूने से जलन का अनुभव।
नीचे गिरने से चोट का अनुभव।
गाली सुनने से मनुष्य का स्वभाव।
कदम कदम पर अनुभव।
नवरसों का अनुभव।।
आलंबन आश्रय उद्दीपन से
प्रेम करुणा भय शोक घृणा।
धोखा खाने से अनुभव।
हर अनुभव ही शिक्षक।
विद्यालय में अनुभव।
महाविद्यालय में अनुभव।
मैदान में अनुभव।
परिवारवालों से अनुभव ,
समाज में , यात्रा में
पढ़ने सुनने में
प्रेम के मिलन में,
प्यार के कारण
मधुर अनुभव,कटु अनुभव।
धनी, निर्धनी का अनुभव।
नौकरी साक्षात्कार में
नौकरी मिलने न मिलने के अनुभव।
वाणिज्य में लाभ नष्ट के अनुभव।
बाढ़ सुनामी भूकंप के अनुभव में
हर अनुभव के सुपरिणाम, कुपरिणाम।
शिक्षक बनता है।
संक्रामक रोग के अनुभव तो बड़ा शिक्षक।
प्रदूषण के अनुभव भी शिक्षक।
चित्रपट में विचार प्रदूषण।
सोचो समझो जानो अनुभव ही शिक्षक।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
[9:39 am, 23/04/2024] sanantha.50@gmail.com: कुएं सूखा नहीं,
प्रकृति का क्रोध बढ़ रहा है
आहिस्ते-आहिस्ते।
समृद्ध भारत कृषि प्रधान भारत
नगर विस्तार नगरीकरण
भावी पीढ़ी के लिए नरकीकरण।
कह रहे हैं प्रकृति प्रेमी।
सद्यःफल विज्ञान मधुशाला की तरह।
गोरी गली-गली बिकै।
जीना मरना
दुख भूलने पूर्वजों का
आध्यात्मिक ध्यान में परिवर्तन।
मधुशाला की ओर आकर्षण।
स्थाई सुख ईश्वर ध्यान।
अस्थाई सुख बाह्य माया।
स्नातक स्नातकोत्तर महाविद्यालय के
बढते बढते भ्रष्टाचार रिश्वतखोर का
बढना, मुगलों के आने के पहले
भारतीय विकास बाद के आधुनिक विकास
आनन्द किस में?
Kiss में , चुंबन स्वतंत्रता क्रांति।
सोचो, समझो,
धन
झूठे हिसाब किताब लिखने में
धन
अपराधियों को बचाने में
धन
अश्लील गाना लिखने में
अश्लील दृश्य दिखाने में।
धन धन धन
देखो ,ज़रा तन परिवर्तन
तन की शिथिलता
तेरा धन कुछ काम का नहीं
जवानी न …
[9:39 am, 23/04/2024] sanantha.50@gmail.com: मन मान मर्यादा
तीनों शब्द
आ सेतु हिमाचल तक।
मनम् मानम् मरियादै
तमिल में।
धन धनम् तमिल में
धन के लिए
मन बदलना,
मान-मर्यादा छोड़ना
मातृभाषा के लिए कब्र खोदना,
अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल की अनुमति
सद्यःफल आय।
देश भक्ति , संस्कृति भूलना
ईश्वरीय अपमान
मानव सदा दुखी।
देश की प्रगति में बाधक।
एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
[4:43 pm, 23/04/2024] sanantha.50@gmail.com: नमस्ते वणक्कम्।
परिवार दल को,
किसका प्रणाम?
एस., अनंतकृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक का।
विषय
अनेकता में एकता।
विधा
अपनी भाषा अपनी हिंदी अपने विचार अपनी सोच
अपनी शैली भावाभिव्यक्ति
+++++++++++++++++++
एक सफेद सूत,
रंग-बिरंगे धागा।
एकता में विविधता।
अब विविध रंग।
विविध रंगों का एक कपड़ा।
भगवान एक,
सृष्टियांँ विविध।
बुद्धिहीन पशु-पक्षी,
हड्डी हीन कीड़े मकोड़े।
मानव में कितने रंग।
विचारों में कितने रंग भंग।
फिर मानव में एकता का ज्ञान।
प्रेम देश प्रेम, विविधता भूलकर एकता।
धर्म-कर्म गुण दान वीर।
पर मज़हब तो अनेक।।
मजहब में ईश्वर अनेक।
पंचभूत नहीं देखता
विविधता।
प्यास , प्रेम, आत्मज्ञान न तो
मानव पशु समान।
मानवीय गुण,
नवरस
दया, ममता, करुणा, अहिंसा,
ईश्वरीय कानून मृत्यु
विविध गुण वाले मानव में
एकता के कारण बनते।
एस.अनंतकृष्णन,
चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति।