मनुष्य और जानवर में कोई फर्क नहीं है। पर मनुष्य बहुत सोचता है। वर्तमान से उसको भविष्य की चिंता सताती है। जो कुछ उसको मिलता है, उससे संतुष्ट नहीं होता। इसी प्रवृत्ति के कारण वह सभ्य बनता जा रहा है;
सभ्य मनुष्य असभ्य मनुष्य से ज्यादा दुखी है। वह कम् परिश्रम पर ज्यादा से ज्यादा सुख अनुभव करना चाहता ही रहता है।उसकी कल्पनाएँ साकार होती जा रही है।उन सुखों को भोगना सब के वश में नहीं है।उसके लिए धन की जरूरत होती है।क्या धन काफी है। नहीं।स्वास्थ्य की जरूरत है।क्या स्वस्थ्य ठीक होना पर्याप्त है। नहीं।फिर,ज्ञान की खोज में लगता है। बेवकूफ भी धन और बल प्राप्त कर सकता है; पर ज्ञान। तभी समस्या उठती है।
मनुष्य में भेद-भाव उत्पन्न होते है।धन -बल का सहीप्रयोग बुद्धि के आधार पर ही होता है। धन और बल आसुरी प्रवृत्ति है। वह अशाश्वत संसार को शाश्वत मानती है।बड़ेबड़े ज्ञानि को भी धन और बल के बिना जीना दुश्वार हो जाता है। पहले भूख की समस्या।फिर कपडे ;फिर मकान। आहार तो आकार बढाने के लिए नहीं,जिन्दा रहने के लिए आवश्यक है।वह प्राकृतिक है। सूक्ष्मता से सोचने पर व्यस्त आदमी पेट की चिंता नहीं करता;वह काममें ही लगा रहता है।जब आराम मिलता है,तब थोडा खालेता है। खाने-पीने की चिंता रखनेवालों से दुनिया बनती नहीं है। जितने भी संत शाश्वत सत्य छोड़कर गए हैं, वे तपस्वी हैं। वे खान-पान छोड़कर विश्व हित के ज्ञान -कोष
छोड़ गए है। उस ज्ञान कोष की आलोचना और प्रति आलोचना करके स्नातक बन्ने वाले ,धन जोड़नेवाले लालच में पड़कर मनुष्य में फूट डालकर आपस में लडवाकर अपने को अगुवा अगुवा स्थापित करके अपने ही स्वार्थ लाभ के तरीके में संसारको अलग अलग कर लेते है।इसी को सभ्य मानते है। बुद्धिबल मानते हैं। दूसरों को भिडाकर,दूसरों को बलि देकर जीनेवाले अहंकारी के कारण इंसानियत नष्ट हो जाता है।कई सम्प्रदाय,कई राजनैतिक दल,लडाई -झगडा
के मूल में सिवा स्वार्थ के अहम् के कुछ नहीं है। इसे सोचकर आम जनता चलेगी तो स्वार्थ,लोभी नेता चमक नहीं सकते। एक नेता के जीने के लिए हज़ारों मरते है;नेता अच्छे ,ईमानदार हो तो ठीक हैं,आजकल भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए ईमानदारी अधिकारियों को ही सजा मिलती है।यहाँ तक कि अपने हत्याचार और भ्रष्टाचार छिपाने हत्याएं भे करते हैं।ऐसे स्वार्थ नेता या अधिकारी के मानसिक परिवर्तन और जन हित के कार्य में लगाने -लगवाने के लिए ही मृत्यु है।रोग है।सत्य एक न एक दिन प्रकट होगा ही।
के मूल में सिवा स्वार्थ के अहम् के कुछ नहीं है। इसे सोचकर आम जनता चलेगी तो स्वार्थ,लोभी नेता चमक नहीं सकते। एक नेता के जीने के लिए हज़ारों मरते है;नेता अच्छे ,ईमानदार हो तो ठीक हैं,आजकल भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए ईमानदारी अधिकारियों को ही सजा मिलती है।यहाँ तक कि अपने हत्याचार और भ्रष्टाचार छिपाने हत्याएं भे करते हैं।ऐसे स्वार्थ नेता या अधिकारी के मानसिक परिवर्तन और जन हित के कार्य में लगाने -लगवाने के लिए ही मृत्यु है।रोग है।सत्य एक न एक दिन प्रकट होगा ही।