Thursday, November 26, 2015

जागो

अगजग देखो,
जागकर देखो
जहा अच्छा है या बुरा।
ईशवर की रीतिनीति देखो।
इस जग को देखो।
हिरन सा साधु।
साँप सा विषैला।
बडी मछलियाँ
छोटी मछलियाँ
मकडियाँ
छिपकलियाँ
जोंघु
न जाने
विषैली पेड पौधे
आरोग्यप्रद जटिबूटियाँ.
इन सबों को मिलाकर
ईश्वर ने बनाया
अहं ब्रह्मास्मि का
अहंकारी मनुष्य।
दंड मृत्यु दंड तय करके।
मरता है.मारता है।
जो भी भला बुरा करता है
नाटक का मंच
दृश्य बदलता रहता है।

Wednesday, November 18, 2015

परेशानी ही होगी परेशानी.

विश्व के व्यवहार देखो ;

धन  ही धन  जीनेवाले ,

निर्धनी सा सुखी नहीं ;

निर्धनी का विचार है 

धनी ही सुखी. 

धन जोड़कर देखो ;
धनी बनकर सुखी बनो ;

बाह्याडम्बर  के चक्कर में 

आधुनिक सुख सुविधाओं ओ भोगकर देखो ;

पैदल चलना भारी हो जाएगा;

ज़रा सा सर्दी ,ज़रा सी गर्मी सहना मुश्किल 
हो जाएगा; 
बिजली का पंखा ,
वातानुकूल कमरा 
सुख झेलकर एक दिन भी 
उनके बिना मीठी नींद सोना 
दुर्लभ हो जाएगा। 

कृत्रिम वातावरण में पलने से शरीर 
साथ न देगा ;
पानी तक फूँक फूंककर पीना पडेगा;
साँस  लेना दुर्लभ हो जाएगा;

रोग रहित गोली रहित सुविधा रहित जीवन 

नरक तुल्य बन जाएगा;

निर्धनी सा मीठी नींद ,
निर्मल हँसी  ,
मिलना जुलना असंभव हो जाएगा;
नौकर चाकर का आदर मिलेगा;
दिली मुहब्बत मिलना दूभर हो जाएगा;
नाते रिश्ते भी 
ऐंठकर रहेंगे;
ऊँचे  पर पहुँच जाओ 
सुरक्षा दल  के बिना चलना बाज़ार में 
बेचैन हो जाएगा. 
चाय की दूकान  से प्रधान बने मोदीजी ,
स्वयं सेवक मोदीजी ,
अभिनेता कंडक्टर से बने रजिनी जी 
तब जैसे आम जगहों में स्वच्छंद घुमते ,
अब सुरक्षा दल सहित चलना पड़ता है;

धनी और उच्च पद पर देखो 
बेचैनी ही बचेगी ज्यादा;
हर शब्द हर चाल में ज़रा सी असावधानी 
चर्चा बन जाएगी;
कपडे पहनो उसके दाम की चर्चा;

लड़की से हाथ मिलाओ चर्चा ;
चर्च जाओ चर्चा ;मस्जिद जाओ चर्चा ;
न जाओ तो नास्तिक;
जाओ तो धार्मिक ;
अमुक धर्म का अनुयायी ;
अमुक धर्म से फिसलकर विधर्मी का समर्थक;
जो  करो अखबार में आलोचना;
धनि और उच्च पद पर पहुंचकर देखो 
परेशानी ही होगी परेशानी. 






Tuesday, November 17, 2015

पाप।

ईश्वर  की करुणा अपूर्व।
बचपन  जवानी बुढापा मृत्यु
रीति बनाई।
अवनी को नश्वर बनाया।
फिर भी मनुष्य कर रहा है
अन्याय।भ्रष्टाचार। रिश्वतखोर।
चुनाव में मनमाना।करोडों का खर्च ।
खर्च कमाने मनमाना।

देशद्रोह। कलंकित पापी आत्मा।
न पुण्य न धर्म न पाप।
न भय ईश्वर का।
न भय नरक का।
मारने मरवाने मजदूरी सेना।
धर्म के नाम वध करने की सेना।
आत्म हत्या की सेना।
न जाने मनुष्यता कहाँ गईः

Saturday, October 31, 2015

तिरुक्कुरल

குறள் 280:
    மழித்தலும் நீட்டலும் வேண்டா உலகம்
    பழித்தது ஒழித்து விடின்.
अगजग की निंदा के कर्म न कर।
यही अनुशासन ईशवर प्रिय।
दाडी जटा बढाना बाह्याडंबर।
  अपयश के कर्म  न करना।
ऐसा रहें तो सर मुंडन या दाडी जटा बढाने की जरूरत नहीं।

Tuesday, October 20, 2015

राष्ट्रहित की योजना

मैं  बहुत सोचता रहता हूँ  कि  जग भला है  या बुरा ?
जग तो भला ही है।

पर रोज़ दैनिक समाचार पत्रों में अच्छी खबरों को छोटे अक्षरों में कहीं कोने में

बुरी खबरों को चोरी डकैती हत्या बलात्कार भ्रष्टाचार आदि ख़बरों को बड़े अक्षरों में छापते हैं;

अभिनेता और अभिनेत्री सम्बन्धी खबरे भी मोटे अक्षरों में;
न जाने संसार की भलाई करने वालों को जल्दी दंड
बुराई करनेवालों के पक्ष में बड़े बड़े लोग

उनकी रिहाई के लिए तैयार;
हाल ही में एक  किताब पढ़ी है ;
 संसार को बुराई की ओर  धकेलनेवाले केवल बीस परिवार है;
उनके ही निर्देशों के कारण बुरी खबरों को प्रधानता दी जाती हैं ;

भारत में तो कई हज़ारों सालों के पहले ही असुरों- दानवों  का ही शासन था;
उनके अत्याचारों से देव भी डरते थे;
 संसार  संकट  से कभी बचकर नहीं रहा;
सुशासक तो त्यागी रहे; राम राज्य बोलते हैं ; तो खुद राम को कष्ट झेलना पड़ा;
पत्नी की तलाश में जाना पड़ा ; भयंकर संग्राम के बाद लाई पत्नी को जंगल में छोड़ना पड़ा;
धनियों  के संतान नहीं थे ; राजा एक राजकुमारी के लिए हज़ारों को पतिहीन बनाकर अंतपुर भर रहे थे;
शिवाजी को छिपकर ही वार करना पड़ा;
मुगलों की निर्दयता और नादिरशाह का कत्ले आम तो जगविदित  कहानी है;

संक्षेप में कहें तो जनकल्याण चाहक शासक कम थे ;

वे सार्वजनिक  भलाई ,गरीबों की भलाई से यादगारों में अधिक खर्च करते थे;कर रहे हैं ;

पटेल की शिला  ठीक हैं तो उनसे राष्ट्र की भलाई करने की योजना  नदियों का राष्ट्रीयकरण उससे बढ़कर प्राथमिकता देने का विषय है;
ऐसे राष्ट्रहित की योजना में ध्यान देंगे तो भारत विश्व  आगे बढ़ेगा;




आध्यात्मिक भारत कैसा है?

हम बहुत सोचते है।
ईश्वर के बारे में।
क्या हमने ईश्वर को सही ढंग से
जाना पहचाना।
पहचानने की सूक्ष्मता सचमुच हममें है

है तो पूजा अर्चना के बाह्याडंबर को हम
बिलकुल तोड देंगे।
पर  दिन ब दिन बाह्याडंबर बढ रहा  है।
मानव मन में यह बात बस गयी  कि
बिना धन के ईश्वर संतुष्ट न होंगे।
ऐसे विचार बढते रहेंगे तो
आध्यात्मिकता केवल धनियों की हो जाएगी जैसै आदी काल से चालू है। भक्ति एक खास व्यक्ति या खास जाति की ही हो जाएगी।

Wednesday, September 30, 2015

we   are in  need of  money .

no money we can not   enjoy any thing  in the world.

why  all are not  having  enough money  or equal money .?

why all are not having  good strength.?

every thing in this  world  differs.

in  this diversity  human only  making unity themselves.

but  language differs ,religion differs ,dress  and  food differs 

अग जग को विस्मित कर के श्रद्धा पैदा कर रहा है.

भारत में सनातन धर्म जो है ,धर्म नहीं आचरण का विज्ञान है। 
सर्वशक्तिमान ईश्वर के भय से आधारित यह आचार  ऋषि-मुनियों के द्वारा  सब को मार्ग दिखाने सूक्ष्म ज्ञान के दर्शन है.

  मनुष्य को शिष्टाचार और पारिवारिक आचरण पर ध्यान दें तो सभी भगवान की पत्नी या द्वि-पत्नियाँ  होती हैं;
 धार्मिक होम यज्ञ आदि के अवसर पर पति के साथ पत्नी का रहना शुभ -लक्षण माना जाता है. 
     प्राचीन मंदिर के नियम अति स्वच्छता के आधार पर हुआ था. 

जातियों का उतना महत्त्व नहीं ,जितना ज्ञान का. 

जन्म रहस्य ऋषिमुनियों के जीवन में कहा गया कि ऋषिमूल और नदी  मूल  न देखना चाहिए. 
रामायण काल के जाति -भेद  मिटाने गुह -शबरी के पात्र हैं तो 
महाभारत में जन्म सम्बन्धी -तर्क तो आचार -विचार -और तर्क से 
कलंकित ही हैं. खासकर भीष्म के अपहरण और विचित्रवीर्य की संतानोत्पत्ति की असमर्थता, कुंती द्वारा जन्म कारण का जन्म ,
इतना होते हुए भी संयम और पतिव्रता और पत्नी व्रत का अपना भारतीय धर्म की महानता और अन्य धर्म में नहीं दर्शाया गया है. 

 मन को वश में रखने और संयम के महत्त्व  पर  ज़ोर  ,फिसलने पर 
स्वर्ग-नरक ,कर्म-फल का प्रलोभ ,भय मनुष्य को न्याय और सत्य पथ पर से खिसकने  न देते. 

     सेक्स एजुकेशन की जो चर्चा और सीख पर आजकल विचार कर रहे हैं ,उससे सौ गुणी  महत्त्व भारतीय सनातन धर्म ने ध्यान दिया है. 

 इसी  ईश्वर -ईश्वरी के बिना मंदिर नहीं है; हर मंदिर में देवी और देव की मूर्तियां  हैं. 
गोपुर और स्तम्भों में ईश्वरीय प्राकृतिक उद्वेग की सेक्स सम्बन्धी मूर्तियां हैं तो आत्म संयम के लिए माया भरी संसार  पाश से बचने के लिए    संयम बुद्धि का प्रयोग अस्थायी संसार ,अशाश्वत जिंदगी ,अस्थिर संपत्ति रोग बुढ़ापा आदि के द्वारा सद्व्यवहार की सीख पर बल दिया गया है. 
थोड़े में कहें तो मनुष्यता निभाने का मार्ग  धर्म  विशिष्ट है,इसीलिये 
प्रलोभन ,डराने  धमकाने के अन्य धार्मिक हमलों के बाद भी सनातन धर्म की  अपनी  विशेष प्रगति अग जग को विस्मित कर के श्रद्धा पैदा कर रहा  है. 

Sunday, September 27, 2015

lead life peacefully.

where is God?  simple reply

 from a child ---in temple.

from parents  --family God.

home guard God-

village God 

nativeGOd -- --


forest guard god --

shaivate God -

vaishnavite God -

common God -

creating God 

protecting God 

life taking God 

God for medicine ,
God for Eye treatment 
God for summer 
when you Got wisdom --God is shapeless 
  it is the   greatness of hindu  religion .
we cannot  say or guide  this is a god to remove all distress.

 In university  many departments.

in the earth water taste differs .

soil differs. 

one mango but variety of mangoes  and taste.

holy places are having herbals and trees  which  differ from each pilgrim centre.

think,--the hindu religion, a scientific religion ,  it cures scientifically 
   all mental ,physical ,social  and many problems  in day to day life.
it is a occean who dives deeply they get pearls ,gems  of thoughts to lead life peacefully.




मेरा तनिक भी मन नहीं लगता।

ईश्वर के नाम तोड़ फ़ोड़  करनेवाले इन्सान  नहीं,
इंसान के नाम के शैतान है  वह.
 
 
मनुष्यता नहीं हैं इसलिए मारता है मनुष्य को निर्दयता से  मज़हब के नाम से। 
 
 
बीस हज़ार  तीस हज़ार की मूर्ति बनाकर  समुद्र में विसर्जन करता हैं;
 
ज़रा सोचो ; मार् कर ईश्वर को अगले साल के लिए बुलाता है;
 
कितने भूखे नंगे अनाथ लोग है संसार में ,
 
उनकी चिंता तो हमें  नहीं,
 
एकता  दिखाते हैं  करोड़ों रुपयों के बुत  बनाकर फेंकने में ;
 
दया नहीं ,ममता नहीं ,मायाभरी भक्ति ,इसमें मेरा तनिक भी मन नहीं लगता। 
 

 
 
 

ज़रूर तो दंड मिलगा ही।

धर्म  या मज़हब  या इंसान  यहाँ  मनुष्यता निभाने के लिए.

गलती जो भी करें उन पर कीचड उछालना मनुष्यता या इंसानियत  नहीं हैं ;

आम क़त्ल करनेवाले नन्हे नन्हे मदरसे के बच्चों को बेरहमी से बन्दूक का शिकार करनेवाले


दूसरे  की पत्नी मारकर ताजमहल बनानेवाले


ताजमहल बनवानेवाले को जेल में डालकर बादशाह भाइयों को मारकर बननेवाले

इस्लाम धर्म में है तो

 हिन्दू धर्म में आम्भी ,विभीषण ,कुंती जैसे पात्र

सभी धर्मों में जो दोष है  उसे निकालकर दुश्मनी बढ़ाना मनुष्यता नहीं ,

हिन्दू धर्म की कई गलतियों को  या इस्लाम धर्म की कमियों को


ईश्वर या खुदा देख रहा है उत्तरखंड में एक है तो खिल्ली उड़ानेवालों का जवाब आज मक्का में.

यो. ही झगड़ा बढ़ाने पर दुश्मनी बढ़ेगी तो इंसानियत न रहेगी.

इन नकली साधू संत  या मौलवी  या पादरी  ईश्वर या खुदा की देखरेखं  में हैं

ज़रूर तो दंड मिलेगा ही। 

देशाटन और तीर्थाटन ;

भक्ति में मुक्ति बताया ;

मुक्ति  की भक्ति में

पुरोहित ने बताया --मंदिर का परिक्रमा करो ;

नारियल तोड़ो; पाप  मुक्ति; नरक से मुक्ति;
नारियल के लिए पैसे चाहिए;
एक राजनैतिक नेता से मिला;

उन्होंने कहा --मैं तो सिफारिश  पत्र  ही दिया करता हूँ,

मंदिर में जाओ'; नारियल देंगे ;
वहाँ  गया तो लम्बी कतार;
पूछा --नेता आ रहे है;

उनके दर्शन के बाद सब गरीबों को देंगे नारियल;

 खड़े रहे  न नेता आये;

पुछा तो पता चला--वे गए  हैं

मंत्री परिषद में भाग लेने;

नेता के नेता ने उनके भ्रष्टाचार का पता लगाकर दिया  धमकी;

नेता गए हैं प्रायश्चित के लिए देशाटन और तीर्थाटन ;
 

Thursday, September 24, 2015

देवी भक्त कवि अभिरामि भट्टर



(तमिल)  देवी भक्त कवि अभिरामि  भट्टर 
तमिल भाषा में भक्त कवियों की कमी नहीं है। 

वर  कवियों में    सुब्रह्मणीय भारती को  मानते है।  

भक्त कवियों ने खुद ईश्वर के दर्शन किये थे। 

जैसे कालीदास संस्कृत में काली देवी  की कृपा से संस्कृत  के  कवि बने। 

वैसे ही  अरुणगिरी नाथर ,अप्पर ,सुन्दरर ,तिरुनावुक्करसर ,  आंडाल आदि भक्ति में ही तल्लीन हुए  और 
ईश्वर की स्तुति में अमर ग्रंथों  की रचना की। 

अभिरामि  भट्टर  ऐसे ही एक देवी भक्त थे; 
वे हमेशा  देवी मंदिर  में आँखें बंदकर ध्यान मग्न बैठते थे। 

वे पागल थे देवी की भक्ति में। 
एक दिन मंदिर में देवी के सामने ध्यान में विलीन सुधबुध खोकर बैठ रहे थे.

तंजाऊर  के राजा   सरबोजी देवी दर्शन के लिए आये। 
बहत्तर तो  ध्यान मग्न थे; राजा  की ओर  उनका ध्यान  ही  नहीं गया. 

वह अमावश्य का दिन था ; अंधकार था चारों ओर। 
राजा के पूछने पर बहत्तर ने पूर्णिमा तिथि बताया. 

राजा परेशान हो गए ; और राजमहल चले गए। 
राजा के जाने के बाद भट्टर  को अपनी भूल मालूम हो गयी। 
उन्होंने देवी से कहा ,याद में मैंने पूर्णिमा बता दिया। 
तेरे भक्त की बात से तेरा नाम बदनाम न होना है.

उन्होंने आग का एक अग्नि कुण्ड बनाया। 
उस पर सौ रस्सियों की हाँडी  बनायी ;
उसपर बैठकर देवी पर कीर्तन गाने लगे। 
एक गाना गाते और एक रस्सी काटते। 
इस प्रकार  अठहत्तर  रस्सी काटी ;
राजा भी वहां खबर सुनकर आ गए;
वातावरण तनाव पूर्ण था;
सौ  पूर्ण हूँ गए तो कवि  भक्त भट्टर  अग्निकुंड में गिरकर प्राण दे देते. 

देवी उनके अन्तादि से प्रसन्न हो गयी ;
सीधे उनके सामने प्रकट हो गयी ;
अपने कर्णाभूषण तोड़ फेंकी तो आकाश में चंद्रोदय हो गया। 
चारों ओर  रोशनी फैली ;
भट्टर  की आँखों से  आनन्दाश्रु निकले ;
देवी की कृपा से सौ अन्तादि  की रचना की ;
राजा और अन्य लोगों ने भक्त भट्टर  की प्रशंसा की. 
 एक गीत के अंतिम अक्षर से दूर गीत का आरम्भ है ;
इसीलिये यह  अभिरामि  अन्तादि के से प्रसिद्ध  हो गये. 





Friday, September 18, 2015

भगवान के कोप का पात्र हम बन जाएंगे !

ईश्वर की पूजा आराधना 
जग हित  और दान धर्म के लिए ;

आज कल  केवल दिखावे के लिए 

बाह्याडम्बर  से भरी भक्ति 
सोना -चांदी हीरे पन्नों की प्रधानता। 

दूध का अभिषेक गरीबों की भूख निवारण के लिए ;
आज कल  मोरे में बह  रहा है;

चेन्नई शहर में मात्र ३००० गणेश की बड़ी मूर्तियां 
औसत मूल्य ५००० /-
३०००*५००० =१५०००००० लाख रूपये 
अति सुन्दर मूर्तियां 
दस दिनों के बाद समुद्र विसर्जन।

ये रकम न राष्ट्र हित  में , न दीन  दुखियों के कल्याण में, न  उद्योग धंधों के विकास में ,
न शिक्षा के विकास में  न सनातन धर्म की प्रगति में। 
ज़रा सोचिये बाह्याडम्बर की भक्ति से  सब बेकार।

तनाव ;पुलिस न अन्य काम में [

अति सुन्दर मूर्ति की कारीगरी का अपमान। भगवान का छिन्न -भिन्न रूप..


सोचिये !भगवान का ऐसा अपमान आतंकित वातावरण  में धर्म की प्रगति नहीं।
 भगवान के कोप का पात्र हम बन जाएंगे !

Thursday, August 13, 2015

कारैक्कॉल अम्मैयार



कारैक्कॉल अम्मैयार   का असली नाम पुनितवती  है. 

उनके पिता धनन्दा   वैश्य  थे। 

बचपन से ही पुनीतवती शिव भक्ता थी. 

उनकी शादी परमदत्त नामक वैश्य से हुई। 

एक दिन परमदत्त ने दो आम घर को भेजे  थे। 

तब  एक  शिव भक्त आये. पुनीतवती ने एक आम दे दिया था.

दुपहर परदत्त   घर आये तो पहले एक आम खाया।  वह स्वादिष्ट था। 
दूसरी आम  की माँग  की थी. 

पुनीतवती ने  शिव की प्रार्थना की तो दूसरा फल मिला. 

परमदत्त को वह फल अमृत सामान  था. 

उनको संदेह हुआ.  पुनीतवती से पुछा तो उसने सारी घटना बताई. 

पति को पत्नी पर का विशवास टूट गया. 

पुनीतवती ने उनके सामने ही प्रार्थना की तो तीसरा  फल किसी ने दिया।

थोड़ी देर में फल गायब हो गया.

परम दत्त ने पत्नी को देवी माना। 

अपने रिश्तेदारों से भी यह बताई. 
परमदत्त शहर छोड़कर अपनी दूसरी पत्नी के यहाँ पांडिय देश चला गया। 


पुनीतवती ने भगवान  शिव से प्रार्थना की और अपने रूप को बूढ़ी  के  रूप में बदल दिया. 

वह शिव के   दर्शन  के लिए कैलाश निकली. 

कैलाश पवित्र स्थान  हैं।  अतः सिर  के बल पर कैलाश गयी. 
उनकी भक्ति से शिव और पार्वती भी  प्रसन्न हो गये. 
शिव ने पुनीत वति  से   वार मांगने के लिए   कहा  तो 
उसने  अपनी इच्छा प्रकट की  क़ि  मुझे आपके नाच निकट से देखना है. 
शिव ने कहा कि  तुम तिरुवेलंगाडु  जाओ वहाँ  मैं तुम्हारी कामना पूरी करूँगी। 

तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के पास है तिरुवेलंगाडु। 

पुनीतवती वहाँ  गयी। 
शिव  ने उसको शिव के  यशोगान गाने का वर  भी दिया. 
शिव   खुद  तिरुवेलंगाडु  आये और नाचने लगे. 

पुनीतवती का नाम कारैक्कॉल अम्मैयार  के नाम से प्रसिद्द हो गया। 


Tuesday, August 11, 2015

जग में तेरी लीला है अद्भुत.

Read full blog मैं  हूँ  कौन ?मुफ्त की सेवा से पीड़ित माँ
मैं हूँ कौन ?
सोचा पता नहीं ;
कैसा होगा मेरा जीवन ?
हिन्दी विरोध के समय 
हिन्दी प्रचार में लगा तमिलनाडु में 
.तभी 18 साल में हिन्दी अध्यापक  की नियुक्ति ;
नौकरी मिली ;
सहपाठी सब बेकार ; 
चकित रह गये;
Image result for sri venkatachalapathy imagesघाट घाट का पानी पीकर आया हूँ
कहते थे ; सुना हैं ;
मैं हूँ पी.यु.सि. मदुरै विश्वविद्यालय में;
 बी.ए ; .दिल्ली विश्वविद्यालय में ;
एम.ये. वेंकटेश्वरा विश्वविद्यालय में ;
. तो बी.एड ; कामराज मदुरै विश्वविद्यालय में ;
एम.एड. हिमाचल प्रदेश में ;
 सब के सब हिंदी माध्यम; पत्राचार। 
हिन्दी माध्यम है  सब ; बी. एड ;तमिल माध्यम। 
 उत्तर भारत गया ही नहीं ;
हिन्दी ने मुझे स्नातकोत्तर हिन्दी अध्यापक बनाया;

जहाँ अंग्रेज़ी पारंगत चांदी चम्मच श्री श्रीनिवास शास्त्री
 प्रधानाध्यापक थे ,
वहाँ एक हिदी अध्यापक प्रधान अध्यापक बना
 तो
  ईश्वर तेरा मेरा सम्बंध सान्निध्य अधिक ;
मुझपर तेरी कृपा आत्मीय ;
तेरा मेरा सम्बंध आदर्श है ;
जग में तेरी लीला है अद्भुत.

Sunday, July 26, 2015

देखो समझो करो उचित

अस्थिर संसार ,

परिवर्तन शील दुनिया

अशाश्वत   दुनिया
अशाश्वत जीवन
पहाड़ भी चूर्ण
बर्फ भी है पिघलते
नदी भी सूख जाती।
सोना तपने तपाने पर
होते परिवर्तन  मंद चमक
तेज़ चमक  होते।
परिवर्तन है सब कुछ जग में
पर  लोभी का दुःख नहीं होता परिवर्तन।
पापी के  दंड में नहीं परिवर्तन
अमीर या गरीब   की मृत्यु में नहीं परिवर्तन

ईश्वरीय  सजा और सृजन  में  न परिवर्तन।

देखो समझो करो उचित 

Tuesday, July 7, 2015

रहेगी जानता सब कुछ सहकर चुप ;चुप; चुप।

भारतीय न्यायालय  और  क़ानून    ,
अमीरों के अन्ययाय को 
वकीलों द्वारा ,वायदे के द्वारा 
बचाने  के लिए. 

अपराधी को जमाँनत   के   नाम से 
 स्वतंत्रता से चलने फिरने के लिए 

गरीब का छोटा -सा  अपराध बन जाएगा हिमालय बराबर. 

बड़ों के मंत्रियों के ,नामी अभिनेत्रियों   के हिमालय बराबर
 देश द्रोही केसाथ  मिलने पर भी  तिल बराबर का 

वायदे पर वायदा ,फाइलों का नदारद  होना ,

दफ्तरों का  जलना ,जलाना ,गवाहों की हत्या 

सब  पूछ -ताछ  के नाम से वर्षों बीतते रहेंगे 
न फैंसला सुनायेंगे.  न  मुकद्दमों का  अंत होगा ;न अपराधी अमीर हैं तो दंड न भोगेगा. 
आत्महत्या करनेवालों  के प्रोत्साहित करने तीन लाख देंगे. 
भय  के नाम से  या स्वार्थ के आधार पर 
रहेगी जानता सब कुछ सहकर चुप  ;चुप; चुप। 



Sunday, July 5, 2015

खुद आते हैं खुदा /ईश्वर।

ईश्वर की कृपा और स्वस्थता प्राप्त करने 

आध्यात्मिक मार्ग /भक्तिमार्ग  पर चलने 

सनातन धर्म के मार्ग अनेक। 
पर लक्ष्य एक। 
बोधिवृक्ष के नीचे  बैठो ,
ज्ञान मिलेगा। 
सहज मार्ग ,आँखे बंद करो ;
मन को नियंत्रण पर रखो। 
बस बाह्याडम्बर की नहीं आवश्यकता। 
दूसरा हैं पाप मिटाने ,
सुख पाने ,नौकरी मिलने 
संपत्ति मिलने , धर्म गुरु से मिलो। 
यन्त्र लो। 
अमुक पन्ने  की अंगूठी लो। ,
अमुक संत से मिलो। 
,अमुक मंदिर जाकर प्रायश्चित करो। 
यह एक भक्ति मार्ग चलाने वाले 
जीविकोपार्जन करनेवाले कहते  हैं 
यज्ञ में दूध की नदी बहाओ,
रेशम की साड़ी डालो।
सिक्के डालो। 
हज़ारों की खर्च करो.
 यह एक स्वार्थ मार्ग। 
हीरे का मुकुट पहनाओ। 
 सिंहासन पर बिठाओ ;
आलीशान  मठ  बनाओ ;
यह एक अपना अलग मार्ग 
तीसरा मार्ग अन्नदान करो ,
वस्त्रदान करो 
जिओ परोपकार के लिए ,
कर्त्तव्य निभाओ ,कर्म मार्ग अपनाओ 
 काम करो ,जो कुछ मिलता है ,
उससे संतोष प्राप्त करो 
सत्य को अपनाओ ;
धर्म पथ पर चलो. 
सभी मार्ग में भीड़ ;
राजनैतिक नेता अनेक ;
उनके अनुयायी पैसे के आधार पर;
देव अनेक ; 
जहां रूपये की वर्षा हो 
वहाँ   भीड़ अधिक;
पर जो  धर्म मार्ग के जनक हैं 
शंकर हो ,रामानुज हो , बुद्धा हो ,महावीर हो ,
तुलसी हो, कबीर हो 
अल्ला के पैगम्बर मुहम्मद हो ,
ईसामसीह हो 
सब सादगी की मूर्ती ,बाह्याडम्बर से दूर 
पर उनके नाम पर जाने वाले विपरीत ;
भगवान शिव तो श्मशान के विभूति धारी 
विष्णु तो लक्ष्मी पति 
न जाने कौनसा मार्गशांति प्रद ,
सरल सहज मार्ग अपनी आत्मा जीवात्मा में 
परमात्मा बिठाकर जप -ध्यान में लग्न जैसे 
भक्त ध्रुव ,प्रह्लाद ने किया हो /
धन ,सोना चांदी ,हीरे पन्ने वाले भाग्यवान 
बाकी लोग सच्चे भक्त वही धार्मिक। 
सोचो समझो उचित मार्ग अपनाओ 
व्यर्थ भगवान की कृपा के लिए पैसे की चिन्ता 
वही सच्चा भक्त ,
जिसकी तलाश में
 खुद आते हैं खुदा /ईश्वर। 

Saturday, May 30, 2015

सच है साहित्य समाज का है दर्पण।

देश में    न्याय  -अन्याय   दोनों में

न्याय कम   और  अन्याय   अधिक।

बलात्कार -बालापराध  अधिक।

अवैध सम्बन्ध और हत्या  अधिक।

पुलिस नालायक  /मंत्री भ्रष्टाचारी
सरकारी अधिकारी रिश्वतखोरी।

बदमाश आवारा बनता नायक

मारता   है  पुलिस  को ,
अनपढ़ नायक  के पीछे
नायिका पागल.
वही अमीर ,मनमाना करनेवाला हीरो
जो करता है स्मगलिंग। कालेधन /और कालाबाज़ारी /मालामाल.

यही  है कहानी  चित्र पट  की।

सच है साहित्य समाज  का है दर्पण।


Tuesday, May 26, 2015

सब ही नचावत राम गोसाई।

 चाहें  बड़ी बड़ी 
मांगें बड़ी बड़ी 
भाग्य भला तो भला 
भले ही कोशिशें बड़ी बड़ी हो 
भले ही सिफारिशें बड़ी बड़ी हो 
भगवान की कृपा ही सबसे बड़ी। 
कहा है --लिखा है हर दाने पर 
दाने दाने पर खानेवाले का नाम. 
पानेवाले का नाम. 
देनेवाले का  नाम. 
हम सोचते हैं हम ही हम है 
अपराधी बचता है
 निरपराधी फँसता है 
फंसने फंसाने 
बचने बचानेवाले 
भगवान होते हैं। 
राजा का रंक  बनना 
रंक  का राजा बनना 
सब ही नचावत राम  गोसाई। 

Monday, May 25, 2015

अच्छों के साथ रहे;


वंदना करता हूँ ,

विघ्नेश्वर   को ,

मूलेश्वर को 

आदिमूल  गज  वदना  को. 

दन्त तोड़कर लिखा महाभारत। 

मूषिक वाहन
 ,
मुक्ति प्रद ,

संतोषप्रद 
आनंदप्रद 
पार्वती प्रिय नंदन 
शिवकुमार 

ज्ञानप्रद 
ज्ञान विनायक 
निवेदन है उनसे 
कामना है उनसे 
अच्छों के साथ रहे;
सबों को करें रक्षा। 



Sunday, May 24, 2015

लाता है बेचैन.

ॐ  शान्ति ! ॐ  शान्ति ॐ !ॐ  शान्ति !

मनुष्य जीवन  में चैन कहाँ ?

गोल्ड चेइन की आशा में 
खो देते हैं  चैन. 

नौकरी की आशा में खो देते हैं चैन। 
नौकरी  मिलने पर भी चैन नहीं 
पदोन्नति की प्रतीक्षा  में । 

योग्य सुन्दर मनपसंद पति या पत्नी की आकांक्षा में. 

कदम कदम पर बढ़ते बढ़ते 
नयी मांगें ,नयी चाहें ,नयी उमंगें 
लाता  है  बेचैन. 

Tuesday, May 5, 2015

आदर्श देश -भक्त हो तो

आज   जुगलकिशोर गुप्ता जी  की शायरी पढ़ी ,

माता  ,पिता ,बेटा ,बेटी ,बहु ,सास के लक्षण  लिखा हैं 

जिससे पारिवारिक शान्ति  भंग न हो. 

यदि देश के प्रति भक्ति हो तो 

आदर्श देश -भक्त हो तो 

ऐसा  काम  करने मन में स्थान न दें  
जिससे देश के नाम कलंकित हो. 

संयमित  नियंत्रित  जीवन  

बलात्कार  को स्थान  न दें ;

काले धन ,भ्रष्टाचार ,रिश्वत क्या है 

इसका  पता न हो. 

भ्रष्टाचारी ,कालधनी ,रिश्वतखोरी को कठोरतम दंड मिले. 

चुनाव में योग्य देश सेवको को ओट दें 
पैसे लेकर  ओट देना  बंद हो. 
मनुष्य -मनुष्य में प्रेम हो ,
मनुष्यता प्रधान हो। 
देश  भक्ति में त्याग  और सेवा प्रधान हो. 


Saturday, April 25, 2015

श्री शंकराचार्य और विषय वासना -मनुष्य दशा -

    मनुष्य और स्वभाव गुण


आचार्य  श्री  शंकराचार्य  सहज स्वाभाविक
 गुण  के बारें में   अपने  

"विवेक चूडामणि " ग्रन्थ में 

विषय गुण  की निंदा करते हैं. 

 हर एक जीव के एक स्वाभाविक  गुण
 प्रेम और आसक्त होता है I 

यह स्वाभाविक आकर्षण ही 

उस जीव के अंत या धोखे के कारण बनते हैं.

ये विषय वासना हैं --

नाद ,स्पर्श ,रूप ,रस ,गंध आदि  

 विषयवासना  में एक   से   प्रेम होने पर
उसका अंत निश्चय हैं I

हिरन  नाद के प्रेम में फँस जाता  हैं तो
 हाथी स्पर्श के   कारण ,

पतंग रूप आकर्षण के कारण ,

मछली स्वाद रस के कारण ,

भ्रमर  सुगंध  के  कारण  

अपने -अपने प्राण तक त्याग देते हैं I 

 एक एक स्वाद  या विषय वासना वाले जंतु -पशु  को 

अपने  जीवन - प्राण संकट  में   डालना पड़ता हैं  तो 

मनुष्य की गति पर  विचार कीजिये  I 

 उसको पाँचों विषय वासानायें आकर्षक   हैं I 

वे  विषय -वासना  के गुलाम  या बेगार भी हो जाते हैं I

उसकी गति कैसी होगी ?

विषय वासना से बचिए I

एक शिकारी  बाजा बजाकर
 उस  संगीत के मोह से हिरन को पकड़ लेता है.

हथिनी  की खोज  में हाथी हड्डे  में गिर जाता है .

पतंग  दीप के शिखर की रोशनी  में गिर जाते है 

कीड़े खाने के मोह के कारण  तो 

 मछली काँटे में फँस जाती है.

फूल के सुगंध अली  कली में कैद हो जाता है.

ये पाँचों जीवों को एक ही विषय वासना हैं .

इक  वासना एक एक को संकट  में डाल देता है.

मनुष्य  में ये पाँचों विषय वासनाएँ सम्मिश्रित हैं.

वह नाद ,स्पर्श ,रूप ,रस ,गंध आदि
 पाँचों विषयों में मोहित हो जाता है.

उसकी दशा -दुर्दशा कैसे  रहेगी .

देखिये  -मूल  श्लोक :--

शंदादिभिः पञ्चभिरेव  पञ्च   

पंचात्व्मापु: स्वगुणैन  बद्धाः I

कुरंग्मातान्ग्पतन्ग्मीन -

भृंगा नरः  पंच्भिरंचितः  किम I






             

Friday, April 10, 2015

भारत की न्याय व्यवस्था मर रहीं है.

क़ानून  भारत  में  ,अमीरों को  सजा  स्थगित रखता है;
गरीबों  को और गरीब  बनाता है;

पियक्क  अभिनेता का  मुकद्दमा सालों चला ,

अभी एक ड्राईवर का गवाह  हैं गाडी मैंने चलाई;

मुख्य मंत्री का  मुकद्दमा  सालों चला,

न्याय सुनाने के बाद अपील में  कहते हैं 

अठारह साल पहले   दाम कम ,

सजा क्या सुनायेंगे पता नहीं.

अभी आंध्रा में बीस तमिलनाडु  के 

चन्दन पेड़ काटनेवाले अपराधियों को 

पुलिस  ने गोली चलाकर  मार डाला.

वे अपराधी है या नहीं  पता नहीं ,
पर तमिलनाडु सरकार ने  का दिया  

हर  गोली  के शिकार  हुए लोगों  को 

तीन लाख सरकार देगी.

छे  ही अपराधी नहीं ,लेकिन सब को तीन  लाख.

आत्महत्या करने वालों को कई लाख ,

यह तो आत्म हत्याके लिए प्रोत्साहन.
अपराधियों के लिए प्रोत्साहन ,

दिल्ली  में तो बलात्कारियों को साक्षात्कार और रूपये.

भारत  की न्याय व्यवस्था  मर रहीं है.


Tuesday, April 7, 2015

भगवान है या नहीं.भगवान खुद नाराज.

आज  भी चर्चा है  --भगवान  है या  नहीं.

है तो  अपराध क्यों ?

है तो भ्रष्टाचार क्यों ?

हैं तो भगवान के दर्शन में धनी-निर्धनी का भेद  क्यों ?

क्यों  मनुष्य गुण में फरक?

भेद /अंतर /फरक /डिफरेंट इतने शब्द   क्यों ?एक ही 


अर्थ के लिए.

बैल गाडी से जेट  तक वाहन.

गोरे /काले .सुन्दर -भद्दे लम्बे -नाटे 


काँटे-फूल  इतने फरक .


सूर्य -चन्द्र तारे  पानी हवा  सब जीने का आधार एक.


भगवान  एक . उनकी सृष्टि  में अंतर.


दस हज़ार देने पर   दस लोगों को 




एक घंटे में खर्च करता है एक,

एक तो  दस को बीस हज़ार बनाने में चतुर.


एक तो दान -धर्म ,फिर खाली हाथ.


दस हज़ार तो बराबर बांटे गए.



एक बन  गया करोडपति 

,
एक पीकर अर्द्ध नग्न फुट पात पर,


इसमें  दाता का दोष क्या?

यों ही मनुष्य की  सृष्टि तो बराबर ;

पर  उनके कर्म फल  को ईश्वर नहीं बनेगा जिम्मेदार.



देखो मनुष्य का करतूत ;


वह खुद भगवान बनाकर  कर दिया छिन्न-भिन्न 


.
पैसे का सदुपयोग करके अपने धर्म का विकास न करके ,
कुकर्म से करना चाहता एकता

.
भगवान खुद हो जाता नाराज .


भगवान सोचता ,मेरी ही हालत ऐसी तो




कितना  अधर्मी -पापी मनुष्य

 ;
जुलुस निकलता उस दिन छा जाता आतंक -भय भीत.

मेरे नाम पर कलंक ; करोड़ों का  बर्बादी 

.

नहीं हुआ कोई विकास;




आजाद भारत में  मेरी स्तिथि 

कई लोग गरीबी में ,


बोलता है पैसे लेकर बन जाता  हिन्दू विधर्मी .


हिन्दू तो  क्या करता गरीबों के विकास में.


धन आश्रमों में मंदिरों में 

,
दान दिए खेत हदापते अधिकारी या राजनीतिज्ञ ;


सोना -चाँदी लूटते 

,
भगवान के दर्शन के लिए टिकट.


तहखानों में जो सोना -चाँदी  धीरे धीरे नदारद.


अपराधी की प्रार्थना उसके काले धन से 


करूंगा क्या इनकी भलाई ;



भगवान खुद नाराज.