अगजग देखो,
जागकर देखो
जहा अच्छा है या बुरा।
ईशवर की रीतिनीति देखो।
इस जग को देखो।
हिरन सा साधु।
साँप सा विषैला।
बडी मछलियाँ
छोटी मछलियाँ
मकडियाँ
छिपकलियाँ
जोंघु
न जाने
विषैली पेड पौधे
आरोग्यप्रद जटिबूटियाँ.
इन सबों को मिलाकर
ईश्वर ने बनाया
अहं ब्रह्मास्मि का
अहंकारी मनुष्य।
दंड मृत्यु दंड तय करके।
मरता है.मारता है।
जो भी भला बुरा करता है
नाटक का मंच
दृश्य बदलता रहता है।
Thursday, November 26, 2015
जागो
Wednesday, November 18, 2015
परेशानी ही होगी परेशानी.
Tuesday, November 17, 2015
पाप।
ईश्वर की करुणा अपूर्व।
बचपन जवानी बुढापा मृत्यु
रीति बनाई।
अवनी को नश्वर बनाया।
फिर भी मनुष्य कर रहा है
अन्याय।भ्रष्टाचार। रिश्वतखोर।
चुनाव में मनमाना।करोडों का खर्च ।
खर्च कमाने मनमाना।
देशद्रोह। कलंकित पापी आत्मा।
न पुण्य न धर्म न पाप।
न भय ईश्वर का।
न भय नरक का।
मारने मरवाने मजदूरी सेना।
धर्म के नाम वध करने की सेना।
आत्म हत्या की सेना।
न जाने मनुष्यता कहाँ गईः
Saturday, October 31, 2015
तिरुक्कुरल
பழித்தது ஒழித்து விடின்.
यही अनुशासन ईशवर प्रिय।
दाडी जटा बढाना बाह्याडंबर।
ऐसा रहें तो सर मुंडन या दाडी जटा बढाने की जरूरत नहीं।
Tuesday, October 20, 2015
राष्ट्रहित की योजना
जग तो भला ही है।
पर रोज़ दैनिक समाचार पत्रों में अच्छी खबरों को छोटे अक्षरों में कहीं कोने में
बुरी खबरों को चोरी डकैती हत्या बलात्कार भ्रष्टाचार आदि ख़बरों को बड़े अक्षरों में छापते हैं;
अभिनेता और अभिनेत्री सम्बन्धी खबरे भी मोटे अक्षरों में;
न जाने संसार की भलाई करने वालों को जल्दी दंड
बुराई करनेवालों के पक्ष में बड़े बड़े लोग
उनकी रिहाई के लिए तैयार;
हाल ही में एक किताब पढ़ी है ;
संसार को बुराई की ओर धकेलनेवाले केवल बीस परिवार है;
उनके ही निर्देशों के कारण बुरी खबरों को प्रधानता दी जाती हैं ;
भारत में तो कई हज़ारों सालों के पहले ही असुरों- दानवों का ही शासन था;
उनके अत्याचारों से देव भी डरते थे;
संसार संकट से कभी बचकर नहीं रहा;
सुशासक तो त्यागी रहे; राम राज्य बोलते हैं ; तो खुद राम को कष्ट झेलना पड़ा;
पत्नी की तलाश में जाना पड़ा ; भयंकर संग्राम के बाद लाई पत्नी को जंगल में छोड़ना पड़ा;
धनियों के संतान नहीं थे ; राजा एक राजकुमारी के लिए हज़ारों को पतिहीन बनाकर अंतपुर भर रहे थे;
शिवाजी को छिपकर ही वार करना पड़ा;
मुगलों की निर्दयता और नादिरशाह का कत्ले आम तो जगविदित कहानी है;
संक्षेप में कहें तो जनकल्याण चाहक शासक कम थे ;
वे सार्वजनिक भलाई ,गरीबों की भलाई से यादगारों में अधिक खर्च करते थे;कर रहे हैं ;
पटेल की शिला ठीक हैं तो उनसे राष्ट्र की भलाई करने की योजना नदियों का राष्ट्रीयकरण उससे बढ़कर प्राथमिकता देने का विषय है;
ऐसे राष्ट्रहित की योजना में ध्यान देंगे तो भारत विश्व आगे बढ़ेगा;
आध्यात्मिक भारत कैसा है?
हम बहुत सोचते है।
ईश्वर के बारे में।
क्या हमने ईश्वर को सही ढंग से
जाना पहचाना।
पहचानने की सूक्ष्मता सचमुच हममें है
है तो पूजा अर्चना के बाह्याडंबर को हम
बिलकुल तोड देंगे।
पर दिन ब दिन बाह्याडंबर बढ रहा है।
मानव मन में यह बात बस गयी कि
बिना धन के ईश्वर संतुष्ट न होंगे।
ऐसे विचार बढते रहेंगे तो
आध्यात्मिकता केवल धनियों की हो जाएगी जैसै आदी काल से चालू है। भक्ति एक खास व्यक्ति या खास जाति की ही हो जाएगी।
Wednesday, September 30, 2015
no money we can not enjoy any thing in the world.
why all are not having enough money or equal money .?
why all are not having good strength.?
every thing in this world differs.
in this diversity human only making unity themselves.
but language differs ,religion differs ,dress and food differs
अग जग को विस्मित कर के श्रद्धा पैदा कर रहा है.
Sunday, September 27, 2015
lead life peacefully.
मेरा तनिक भी मन नहीं लगता।
ज़रूर तो दंड मिलगा ही।
गलती जो भी करें उन पर कीचड उछालना मनुष्यता या इंसानियत नहीं हैं ;
आम क़त्ल करनेवाले नन्हे नन्हे मदरसे के बच्चों को बेरहमी से बन्दूक का शिकार करनेवाले
दूसरे की पत्नी मारकर ताजमहल बनानेवाले
ताजमहल बनवानेवाले को जेल में डालकर बादशाह भाइयों को मारकर बननेवाले
इस्लाम धर्म में है तो
हिन्दू धर्म में आम्भी ,विभीषण ,कुंती जैसे पात्र
सभी धर्मों में जो दोष है उसे निकालकर दुश्मनी बढ़ाना मनुष्यता नहीं ,
हिन्दू धर्म की कई गलतियों को या इस्लाम धर्म की कमियों को
ईश्वर या खुदा देख रहा है उत्तरखंड में एक है तो खिल्ली उड़ानेवालों का जवाब आज मक्का में.
यो. ही झगड़ा बढ़ाने पर दुश्मनी बढ़ेगी तो इंसानियत न रहेगी.
इन नकली साधू संत या मौलवी या पादरी ईश्वर या खुदा की देखरेखं में हैं
ज़रूर तो दंड मिलेगा ही।
देशाटन और तीर्थाटन ;
मुक्ति की भक्ति में
पुरोहित ने बताया --मंदिर का परिक्रमा करो ;
नारियल तोड़ो; पाप मुक्ति; नरक से मुक्ति;
नारियल के लिए पैसे चाहिए;
एक राजनैतिक नेता से मिला;
उन्होंने कहा --मैं तो सिफारिश पत्र ही दिया करता हूँ,
मंदिर में जाओ'; नारियल देंगे ;
वहाँ गया तो लम्बी कतार;
पूछा --नेता आ रहे है;
उनके दर्शन के बाद सब गरीबों को देंगे नारियल;
खड़े रहे न नेता आये;
पुछा तो पता चला--वे गए हैं
मंत्री परिषद में भाग लेने;
नेता के नेता ने उनके भ्रष्टाचार का पता लगाकर दिया धमकी;
नेता गए हैं प्रायश्चित के लिए देशाटन और तीर्थाटन ;
Thursday, September 24, 2015
देवी भक्त कवि अभिरामि भट्टर
Friday, September 18, 2015
भगवान के कोप का पात्र हम बन जाएंगे !
तनाव ;पुलिस न अन्य काम में [
अति सुन्दर मूर्ति की कारीगरी का अपमान। भगवान का छिन्न -भिन्न रूप..
सोचिये !भगवान का ऐसा अपमान आतंकित वातावरण में धर्म की प्रगति नहीं।
भगवान के कोप का पात्र हम बन जाएंगे !
Thursday, August 13, 2015
कारैक्कॉल अम्मैयार
Tuesday, August 11, 2015
जग में तेरी लीला है अद्भुत.
जहाँ अंग्रेज़ी पारंगत चांदी चम्मच श्री श्रीनिवास शास्त्री
Sunday, July 26, 2015
देखो समझो करो उचित
परिवर्तन शील दुनिया
अशाश्वत दुनिया
अशाश्वत जीवन
पहाड़ भी चूर्ण
बर्फ भी है पिघलते
नदी भी सूख जाती।
सोना तपने तपाने पर
होते परिवर्तन मंद चमक
तेज़ चमक होते।
परिवर्तन है सब कुछ जग में
पर लोभी का दुःख नहीं होता परिवर्तन।
पापी के दंड में नहीं परिवर्तन
अमीर या गरीब की मृत्यु में नहीं परिवर्तन
ईश्वरीय सजा और सृजन में न परिवर्तन।
देखो समझो करो उचित
Tuesday, July 7, 2015
रहेगी जानता सब कुछ सहकर चुप ;चुप; चुप।
Sunday, July 5, 2015
खुद आते हैं खुदा /ईश्वर।
Saturday, May 30, 2015
सच है साहित्य समाज का है दर्पण।
न्याय कम और अन्याय अधिक।
बलात्कार -बालापराध अधिक।
अवैध सम्बन्ध और हत्या अधिक।
पुलिस नालायक /मंत्री भ्रष्टाचारी
सरकारी अधिकारी रिश्वतखोरी।
बदमाश आवारा बनता नायक
मारता है पुलिस को ,
अनपढ़ नायक के पीछे
नायिका पागल.
वही अमीर ,मनमाना करनेवाला हीरो
जो करता है स्मगलिंग। कालेधन /और कालाबाज़ारी /मालामाल.
यही है कहानी चित्र पट की।
सच है साहित्य समाज का है दर्पण।
Tuesday, May 26, 2015
सब ही नचावत राम गोसाई।
Monday, May 25, 2015
अच्छों के साथ रहे;
Sunday, May 24, 2015
लाता है बेचैन.
Tuesday, May 5, 2015
आदर्श देश -भक्त हो तो
Saturday, April 25, 2015
श्री शंकराचार्य और विषय वासना -मनुष्य दशा -
गुण के बारें में अपने
"विवेक चूडामणि " ग्रन्थ में
विषय गुण की निंदा करते हैं.
हर एक जीव के एक स्वाभाविक गुण
प्रेम और आसक्त होता है I
उस जीव के अंत या धोखे के कारण बनते हैं.
ये विषय वासना हैं --
विषयवासना में एक से प्रेम होने पर
उसका अंत निश्चय हैं I
हाथी स्पर्श के कारण ,
उसको पाँचों विषय वासानायें आकर्षक हैं I
उस संगीत के मोह से हिरन को पकड़ लेता है.
मछली काँटे में फँस जाती है.
पाँचों विषयों में मोहित हो जाता है.
Friday, April 10, 2015
भारत की न्याय व्यवस्था मर रहीं है.
Tuesday, April 7, 2015
भगवान है या नहीं.भगवान खुद नाराज.
है तो अपराध क्यों ?
है तो भ्रष्टाचार क्यों ?
हैं तो भगवान के दर्शन में धनी-निर्धनी का भेद क्यों ?
क्यों मनुष्य गुण में फरक?
भेद /अंतर /फरक /डिफरेंट इतने शब्द क्यों ?एक ही
अर्थ के लिए.
बैल गाडी से जेट तक वाहन.
गोरे /काले .सुन्दर -भद्दे लम्बे -नाटे
काँटे-फूल इतने फरक .
सूर्य -चन्द्र तारे पानी हवा सब जीने का आधार एक.
भगवान एक . उनकी सृष्टि में अंतर.
दस हज़ार देने पर दस लोगों को
एक घंटे में खर्च करता है एक,
एक तो दस को बीस हज़ार बनाने में चतुर.
एक तो दान -धर्म ,फिर खाली हाथ.
दस हज़ार तो बराबर बांटे गए.
एक बन गया करोडपति
,
एक पीकर अर्द्ध नग्न फुट पात पर,
इसमें दाता का दोष क्या?
यों ही मनुष्य की सृष्टि तो बराबर ;
पर उनके कर्म फल को ईश्वर नहीं बनेगा जिम्मेदार.
देखो मनुष्य का करतूत ;
वह खुद भगवान बनाकर कर दिया छिन्न-भिन्न
.
पैसे का सदुपयोग करके अपने धर्म का विकास न करके ,
कुकर्म से करना चाहता एकता
.
भगवान खुद हो जाता नाराज .
भगवान सोचता ,मेरी ही हालत ऐसी तो
कितना अधर्मी -पापी मनुष्य
;
जुलुस निकलता उस दिन छा जाता आतंक -भय भीत.
मेरे नाम पर कलंक ; करोड़ों का बर्बादी
.
नहीं हुआ कोई विकास;
आजाद भारत में मेरी स्तिथि
कई लोग गरीबी में ,
बोलता है पैसे लेकर बन जाता हिन्दू विधर्मी .
हिन्दू तो क्या करता गरीबों के विकास में.
धन आश्रमों में मंदिरों में
,
दान दिए खेत हदापते अधिकारी या राजनीतिज्ञ ;
सोना -चाँदी लूटते
,
भगवान के दर्शन के लिए टिकट.
तहखानों में जो सोना -चाँदी धीरे धीरे नदारद.
अपराधी की प्रार्थना उसके काले धन से
करूंगा क्या इनकी भलाई ;
भगवान खुद नाराज.