Tuesday, November 18, 2014

ईश्वर की कृपा.

मनुष्य   जीवन  में  ईश्वर की कृपाकटाक्ष 


जप -तप से नहीं ,नाम जप से नहीं 

इनसे बढ़कर   एक चीज़ है 

कर्तव्य पालन.

मनुष्य को ईश्वर ने दिया ज्ञान .

ज्ञान ही नहीं ,उसे क्रियान्वित करने का कौशल है.
वही गीता का कर्म मार्ग.
यह मार्ग  निष्काम  मार्ग .
अपने कर्म जितने  ईमानदार पूर्वक  होगा,
उतना ही फल ईश्वर प्रदान  करेगा;

एक मजदूर को बड़े गद्दे, खोदने की शक्ति है.

एक बड़े स्नातकोत्तर   व्यक्ति को  तैरने में डर होता है.

उसको नदी पार करना हो तो 
एक अनपढ़ को  ईश्वर ने  तैरने ,
नाव खेने कीशक्ति  दी है.
इसी प्रकार   समाज में बराबरी और एक दुसरे की माँग 

मनुष्य में बड़ा -छोटा  भेद नहीं  होता.

वेद अध्ययन की क्षमता  ,वेदोच्चारण की मार्मिक ध्वनि 
सब में बराबर नहीं. 
अतः  ईश्वर को संतुष्ट करके 
हमारी मनोकामना  पूरी होनी है  तो 
ईमानदारी से भगवान से दिए कर्म -कौशल को 
  सही रूप से करेंगे तो 
 भगवान की   पूरी  कृपा मिलेगी.

जीवन की सार्थकता होगी.




Tuesday, November 4, 2014

आज कल भारत के हिन्दू लोगों में यह सवाल और व्यथा है कि हिन्दू जनता अपनी धार्मिक एकता केलिये या अपने धर्म के अपमान के वक्त एक ही आवाज क्यों नहीं उठाते. मूर्ति पूजा के पक्षवादी हिन्दू लोग गणेश चतुर्थी की पूजा और ईश्वरीय आह्वान और पूजा के बाद उस सुन्दर मनमोहक कठोर मेहनत और पांच हज़ार रुपये के खर्च में बनाई मूर्ति को समुद या नदी में फेंककर खण्ड -खण्ड करने केलिये फेंकते हैन.वह मनमोहक रूप समुद्र की ल्हरों की चोट खाकर किनारे पर लगती है्. सिर् कॅया टुकड़ा , सूंड़, हाथ पेर अलग- अलग. क्या ऐसी कोई संस्कार वेद या उपनिषद में हैं? यह तो स्वतंत्रता संग्राममें अंग्रेज़ों की नज़र बचाने शहीद बॉल गंगाधर तिलक ने जुलूस निकाला था. इसका अंधानुकरण आजादी के बाद भी हो रहाहै. चेन्नई में मात्र 6,500 मूर्तियाँ समुद्र में फेंकी गयीं हैं. उनका मूल्य एक करोड़ से ज्यादा. अलावा इसके पुलिस की सुरक्षा, भय-आतंक,मार-पीट अशान्ति अलग. कैसे एक स्वर हिन्दू उठाएंगे.?