Monday, December 31, 2018

अलविदा 2018(मु )

सब को  नमस्कार!
आज 2018 साल का अंतिम दिन.
 हमारे देश में ही नहीं
विश्व भर मनाने तैयार
2019 का नव वर्ष.
 तैयारियाँ सितारे होटल में,
अनुशासन, चरित्र  निभाना है,
चरित्र निर्माण  करना है तो सही.
पर मधुशाला का लाभ  बढाना,
अर्द्ध  नग्न नाच, अश्लील गाने
बलात्कार नशामग्न इतना ताज़ी खबरें
नव साल नहीं नरक समाज का स्वागत करना.
मनाइए,पर  अनुशासन. चरित्र,
अभिभावक वंदना, बडों से आशीषें
ऐसी भारतीयकरण याद रखिए.
ईश्वरीय वंदना कीजिए.
बोतल से दूर रहना.

Saturday, December 29, 2018

आण्डाल रचित तिरुप्पावै --१५

  सबको  नमस्कार

आण्डाळ रचित तिरुप्पावै -१५,

मार्गशीर्ष महीने की सर्दी में तड़के उठकर नहाना ,
भगवान का यशोगान करना स्वाथ्य और ज्ञानार्जन का मुख्य नियम है.

आज पन्द्रहवाँ दिन.
तिरुप्पावै --१५.

सो रही सखी को जगाने आयी सखियाँ ,
आज कटु शब्दों से गाने लगी ------
उठो ! आज बहुत देर सो रही हो ,यह सही नहीं है.
सखी कहती है --अभी आयी .
अन्य सखियाँ चिढ चिढ़ाती है --
बिस्तर से उठती हुयी सखी कहती हैं कि
आप तो वाक्पटु रहिये ; मुझे ठगी ही मान लीजिये।
सखियों ने कहा--सब के सब आ गयीं ;तुम ही सो रही हो ;
ऐसी निद्र्रा क्यों ?हमें पहले ही जागकर तुम्हारी प्रतीक्षा में
खड़ी हैं ;तुम क्या बड़ी हो हम से ?ऐसी क्या विशेषता है तुममें ?
सखी ने अंदर से पूछा -क्या मैं ही सो रही हूँ ?
क्या सब के सब आ गयी हैं ?
सखियों ने जोर से कहा -उठो ,बाहर आओ ;
सब के सब आ गयीं ;
गिनकर देखो।
कुवलय पीठ हाथी के वधिक ,
दुष्ट -संहारक माया कृष्ण की प्रार्थना करने
यशो गान करने जल्दी आओ।

Friday, December 28, 2018

आंडाल तिरुप्पावै.. 14

आंडाल  रचित तिरुप्पावै.. 14.

 सखियाँ   तडकें जाग चुकीं.
आज जाने की बारी की सखी
मीठी नींद में हैं.
उनको जाती हुई गाती है:-
 तुमने अपना वादा पूरा नहीं किया.
हमारे जागने के पहले तुमको जागकर
हमें जगाने की बारी  है और वादा है.
तुम कोअपना  वादा न निभाने केलिए
शर्मिंदा होना चाहिए.  बेशरम सो रहे हो.  तुम्हारे घर के पीछे के तालाब में
फूल  खिल गए.
गेरुआ कपडे  पहने साधुसंत
नारायण का भजन करते करते जा रहे हैं.
तुम तो ऐसा सो रही हो.
अनसुनी नींद से जागो.
शंख चक्रधारी, कमल नयन भगवान को भूलकर
सोना सही नहीं है.

नव वर्ष (मु )

आज  का विषय नव वर्ष.
नव वर्ष    की चर्चा
भारतीयों  के लिए
 नव वर्ष कब?
चैत महीना,
मुगल वर्ष
जनवरी
सनातन धर्म विश्वासी
वसुदेव कुटुंबकम्
 सर्वे जना सुखाने भवंतु
आदर्श सिद्धांतवादी,
अगजग को भाई बहन समझनेवाले
अहिंसा के महान बुद्ध,
विश्व के दिया प्रेम सेवा संदेश.
महावीर का अहिंसा
 कपडे तक त्यागा
मोर पुच्छ  से
  चींटी के प्राण तक
बचाकर चलना,
कितना  उदार भारतीय.
विदेशी आये मंदिर तोडे.
विदेशी आये, भाषा बदली.
विदेशी आये पहनावा बदली
विदेशी आये अभिवादन
शैलियाँ बदलीं.
मधुशाला बढी,
तलाक /डैवर्स शबद,
बहिरंग आलिंगन चुंबन
बहिरंग चुंबन के लिए
जुलुस-आंदोलन.
अर्द्ध  खुले अंग-वस्त्र.
शिक्षा  महाविद्यालय में
प्रेम प्रधान, संयम नहीं,
गुरु शिष्य के प्रेम लीला,
नव वर्ष के नाम अर्द्ध  रात्रि में
नशा चढाकर नाच.
ज़रा  विचार करके देखो,
भारतीय  चिंतन, विचार  बदले,
अनुशासन में भंग, चरित्रहीनता,
भारतीय बनो, नव वर्ष  सनातन भारतीय ढंग से मनाओ.
भारतीय बनो, भारतीय  भाषाओं  को
जीविकोपार्जन  का साधन बनाओ.
जितेंद्र  बनो,अजयी बनो.
 सोचो समझो,
भारतीय नव वर्ष मनाओ.
संयम सीखो,, अग जग का विजयी बनो.
 स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन द्वारा  स्वरचित


Thursday, December 27, 2018

आण्डाल कृत तिरुप्पावै --१३

आण्डाल कृत  तिरुप्पावै -१३.

    आंडाल  दक्षिण की मीरा।

मार्गशीर्षः महीने की सर्दी में
अपनी सखी को जगाने ,
विष्णु भगवान के यशोगान करने
तड़के उठकर
 अपनी  सखियों सहित
  नहाने जाती हैं।
सोनेवाली सखियों को जगाने के लिए
 ये गीत गाती  हैं।
      आज के गीत में
 गोपियाँ कृष्ण को ही चाहती हैं ,
पर आज विवाद शुरू हो गया --
श्री कृष्ण बड़े हैं या राम ?
*****
 आइये !१३ वां  गीत के भाव पर ध्यान देंगी :-
     मनको मधुर श्री कृष्ण है  या राम
     सुनिए !आण्डाल  का विवाद :-
 कृष्ण के पक्ष में एक दल  :-
देखो! बगुले के आकार के
बगुलासुर के मुख फोड़कर
श्री कृष्ण ने  वध किया है.
राम के पक्ष में गाया --
  दुष्ट राक्षस रावण के सर को
घास की तरह उखाड़ फेंका  है   राम ।
     इनके बीच एक सखी सोती हुई  सखी को
जगाने अंदर गयी , और कहा , जागो !चन्द्रास्त होकर सूर्योदय के पहले ही  कुछ सखियाँ  उठकर व्रत रखने चली गयीं।
तब सोती सखी ने विवाद किया कि  इनको कैसे मालूम  ----
गुरु ,शुक्र ग्रहों का अस्त होना ?
तब सखी ने कहा -
क्या तुम्हें पक्षियों का कलरव्
सुनायी नहीं पड़ा?
फिर उसको छूकर जगाने अंदर जाती है।
सखी इसके आते देख
 और गहरी नींद का अभिनय करती हैं.
सखी उसको जगाती हुयी कहती हैं -
सखी !उठो!
अभी सूर्य नहीं निकला ;
 शीतल पानी में नहाना आनंद प्रद  है।
यही सुसमय है!
तेरी नींद का अभिनय छोडो।
यह तो नींद चोरी नींद।  जागो !
जगन्नाथ के यशोगान में
सखियों सहित लग जाओ।

आंडाल कृत तिरुप्पावै... 12

आज मार्गशीर्ष 
महीने का
12वाँ दिन.
सबेरे ओस कण  गिर रहे हैं!
एक सखी सो  रही है.
उसके घर की गाएँ
भूखे बछडों की आवाजें सुनकर
अपने आप स्तन से दूध निकाल रही है.
सखी को करके सामने दूध से भीगी कीचड.
सखियाँ  उसको भी नहाकर पूजा करने ले
जाने की चिंता में हैं.  अतः उसके जगाने गाती हैं.

तिरुप्पावै.. 12
आंडाल दक्षिण  की मीरा कृत.


भूख से पीडित अपने   बछडो के

शोर से मज़बूर  गायों के स्तन से दूध
अपने आप  निकला,
दूध के निकलने से वहाँ की भूमि
कीचड़ से भर गई. 
अतः गेपिकाएँ जरा
दूर से खडे होकर 
अपनी  सोती हुई सखी को
जगाने ज़ोर से गाने लगी.
हे सखी! उठो!
 हम सिर पर गिरनेवाले ओस कणों पर बिना ध्यान दिये तुम्हारे  घर के द्वार पर खडी हैं.

सीता के अपहरण से दुखित
 क्रोधित रामवतार में आए

नारायण  के यशोगान  करने निकली हैं.
तुम तो निश्चिंत सो रही हो.
सब घरों  की अहीर गोपिकाएँ
  जाग चुकी है.
 केवल तुम सो रही हो. उठो.
सब .मिलकर भगवान के कीर्तन करेंगी.
अनुवाद. मतिनंत.

Wednesday, December 26, 2018

आण्डाल कृत तिरुप्पावै -११.

आण्डाल कृत तिरुप्पावै -११.
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सनातन धर्म का कटु सन्देश /उपदेश
जिनका पालन करना अति मुश्किल है ,
पर पालन करने से ज्ञानी बन सकते हैं.
वह है तड़के उठना।

आण्डाल के तीस पद्य सूर्योदय के पहले उठकर
वह भी मार्ग शीर्ष महीने की सर्दी में
ईश्वर का यशोगान करके उस जगन्नाथ को
मन में बिठाना सांसारिक जीवन को सुखी बनाना।
--
आज आण्डाल का ग्यारहवाँ पद्य :
सभी गोपिकाएँ उठकर
भगवान का यशोगान करने निकलीं।
और मार्ग पर एक अहीर की बेटी गहरी नींद में मग्न थी.
उनको जगाने आण्डाल कृत यह पद्य।
यह सखी के घर में असंख्य गोधन ,
जिनको गिनकर इतना ही कहना मुश्किल है.
उनमें गाये बछड़े में ही दूध देने लगी है.
गायों के स्तन दर्द से बचाने उसके पिता जल्दी दूध दुह लेते।
वे श्री कृष्ण के इतने बड़े भक्त थे कि कृष्ण के शत्रुओं को
अपना ही शत्रु मानकर उनको मिटाने में लग जाते।
उन अहीरों को कोई चिंता नहीं , फिर भी
कृष्ण के वैरियों को अपना ही मानकर चलते।
ये गोपालक अपने कर्तव्य मार्ग से कभी नहीं हटते।
ये कायरों को छोड़कर शक्तिशाली शत्रुओं पर ही हथियार चलाते।
ऐसे कृष्ण भक्त अहीर के घर में जन्म लेकर
पूजा और कृष्ण के यशोगान के लिए न उठकर
सोनेवाली सखी को जगाती है.
हे स्वर्णलता!तुम्हारी कमर सर्प घुसने के बिल-सी पतली है।
तुम्हारे केश मयूर पुच्छ की तरह सुन्दर आभूषण की तरह है.
श्री कृष्ण की प्रिय बालिका हो.तुम्हारी भक्ति बड़ी है.
आज इस प्रकार सोना उचित है क्या ?
तुम्हारे सभी सखियाँ नाते रिश्ते सहित आँगन में
खड़ी होकर श्री कृष्ण का यशोगान कर रही हैं.
कृष्ण के यशोगान में कितना असीम आनंद!
तुम तो अनसुनी होकर चुपचाप सोना
भक्ता का लक्षण है क्या ?
तुम्हारी नींद का अर्थ क्या है ? तुम उठो ;
गोपियों की पुकार सुनकर वह उठी;
अन्य सखियों के साथ श्री कृष्ण के
यशोगान में तन्मय हो गयी.

Tuesday, December 25, 2018

इरादे को बदलकर देखो. (मु )


इरादों को  मकसद बनाकर देखो 

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सादर प्रणाम।

विचारों को अपने मूल उद्देश्य बनाकर देखो ,
असीम आनंद का शिकार बन जाओगे।
उद्देश्य तक पहुँचने तक
बीच के माया मोह इरादों को बदल देगा।
मूल उद्देश्य /मकसद के बीच
उप लक्ष्य  मूल उद्देश्य  का बाधा बन जाएगा।
मोहिनी आएगी /सूर्पनखा आएगी /ऊर्वशी -रम्भा आएगी।
यू ट्यूब के नज़ारे आएँगे ,
पड़ोसी -पड़ोसिन  के जवान बेटा / बेटी
खिडकी खोल चुंबक बनेगा /बनेगी।
पद ,धन  का लोभ चमकेगा।
हमारे  मूल उद्देश्य के मार्ग  पर आँधी  ,
गर्मी ,सर्दी, पतझड़ वर्षा बेवक्त बेखबर
अड़चनें बन रोकेंगे।
सामना करना ही होगा।
इसमें कामयाबी मिलेगी क्या सबको
जिनको मिलती उसके सर पर मणी होती।
शूल पर चढ़ा ,उद्देश्य न छोड़ा ,पूजनीय बना.
पत्थर का मार सहा ,बचने भागा ,पैगम्बर बना।
कोमल कुसुम प्यार पत्नी -मासूम शिशु -राजमहल का सुख-वैभव तजा
एशिया की ज्योति महात्मा बुद्ध बना.
सोचो ,समझो ,विचारो
इरादे को मकसद बनाने में
केवल आगे देखना है ,
हरे भाई ,
ज़रा  देखते चलो ,
ऊपर भी नहीं,नीचे भी ,
दाए भी नहीं बाएँ  भी ,
यह गाना लागू नहीं ,
उद्देश्य /मकसद के शिखर पर
चमकते  भाग्यवानों को।
बीच  में    मधुशाला ,मधुबाला अपना रंग दिखाएगी।
इरादे का मकसद मात्र ले चलना ,
सफलता की चोटी  पर
खुद खड़े हो जाओगे।
बीच के ताल -तलैया ,
उद्यान नंदन वन  कुछ न देखना
यह अनंत अपने अनुभव से कह रहा है
दुनिया के अज़ब  बाज़ार पर नज़र न डालना।
सिर्फ आगे बढ़ना ,
मुड़कर कभी न देखना।
इरादे अपने आप मकसद बन
विश्व वन्द्य बना देगा।
कितने लालची मार्ग छोड़
बाए हटे ,पीछे हटे ,फिसले गए पड़े.
वह फौलाद औलाद  आगे बड़ा ,
मकसद के एवेरेस्ट पर झंडा फैलाया।

स्वचिंतक स्वरचित -यस. अनंतकृष्णन

इरादे इश्क का बदलकर मकसद देखो. (मु )

इरादे इश्क का बदलकर मकसद देखो. 


श्क निभाना कैसे ,
आजकल इश्क इश्क शब्द सी
समाज संयम खो बैठी है।
मुहब्बत निभाने पति पत्नी को मार देता।
पत्नी पति को।
ज़रा समाज में बलात्कार रोकने
मुहब्बत निभाना तज
कर्तव्य निभाने पर जोर देना
राष्ट्र हितैषी लेखकों का संकल्प।
फिर रीति काल में चलेंगे तो
अन्य शक्ति का बेगार बनेंगे।
तलाक के मुकद्दमे बढ़ते जाएंगे
इरादे मकसद को मुहब्बत से
राष्ट्र -समाज सुधार में लगाकर देखो।
स्वरचित -स्वचिंतक -यस. अनंतकृष्णन (तमिलनाडु-हिंदी प्रचारक )

Monday, December 24, 2018

ஆண்டாள் ---आण्डाल दक्षिण की मीरा -तिरुप्पावै --९ौर 9-10

ஆண்டாள் ---आण्डाल  दक्षिण की मीरा -तिरुप्पावै --९ौर १०।
तिरुप्पावै आंडाल..कृत . 9
अपनी मामा की पुत्री को जगाती हुई
गोपिका गाती है.
पवित्र हीरे पन्नों से जडे महल में, 
सुगंध भरे सुगंधित द्रव्य,
और चारों ओर दीपों से अलंकृत महल में
 कोमल शय्या पर सोनेवाली
मेरे मामा की सुपुत्री उठो.
दरवाजा खोलो.
मामीजी! क्या आपकी बेटी बहरी है?
 हम ऊँची आवाज़ से जगा रही है.
 क्या आलसी है?
आप जगाइए.
हम विष्णु के प्रसिद्ध हजारों नामों से
    उनके गुणगान करेंगी.
आपकी बेटी इसका महसूस करके उठी तो
सब मिलकर व्रत ऱखेंगी.

तिरुप्पावै --१०
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सबेरे सखियाँ सब व्रत रखने जा रही है.
 जो सो रही है ,उनको जगाने
कुम्भकर्ण की याद दिला रही हैं।
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अपनी सखी सो रही  है।
उनको जगाती हुयी ईश्वर  की महिमा  गाती  हैं।
पूर्व जन्म में सर्वेश्वर  नारायण  के ध्यान में मग्न रहने से
और व्रत रखने के परिणाम स्वरूप अब
स्वर्गीय  सुख भोगनेवाली सखी !
तुम तो अपने गृह द्वार खोलती नहीं हो ;
द्वार  न खोलने पर भी क्यों नहीं बोलती ?
सुगन्धित तुलसी को सर पर धारण किये
नारायण का यशोगान करें तो
उस व्रत का फल तुरंत मिल जाएगा।
 पहले निद्रा के उदाहरण में
कुम्भकर्ण का नाम लेंगे।
 तुम्हारी नींद देखने पर ऐसा लगता है कि
तुम कुंभ कर्ण  को हरा देगी।

आलसी के तिलक !
वह भी दुर्लभ आभूषण ही है।
किसी प्रकार के हिचक के बिना
 दरवाज़ा खोलकर
 बाहर आओ।

Saturday, December 22, 2018

आंडाल तिरुप्पावै 8


आंडाल तिरुप्पावै  8
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सब को मेरा प्रणाम.
आज मार्गशीर्ष  महीने का
आठवाँ  दिन है

आंडाल कृत  तिरुप्पावै  के तीस पद्यों में
यह आठवाँ  हैं.

हमारे पूर्वजों ने भक्ति के द्वारा
हमारी आलसी दूर करने की पद्धति  अपनायी है

हर बात में ईश्वर  के भय मिलाकर
अनुशासन बद्ध जीवन जीने का मार्ग दिखाया है.
विदेशी आक्रमण और शासन हमारे चरित्र को
बिगाड चुका है.
आजादी के बाद भी  नेहरू , करमचंद गाँधी जैसे
पाश्चात्य  रंग में रंगे नेता
धर्म निरपेक्षता और अल्प संख्या
अधिकार द्वारा
 भारतीय जितेंद्रिय  सिद्धांतों को
अवहेलना कर  अनुशासन और संयम रहित
समाज को बढावा दे चुके हैं.
आइये.

आंडाल तिरुप्पावै  पर विचार  करेंगे.
मार्गशीर्ष  महीना कठोर सर्दी का महीना है.
सबको तडके उठना मुश्किल है.
ऐसी हालत में चुस्त बनाने
 व्रत रखने का संदेश है.
सुप्तावस्था  की सखी को जाती हुई
लखिया गाती हैं.

पूर्व दिशा में सूर्योदय के कारण
उज्ज्वल  हो रहा है.
भैंसें  दूध दुहनेके पहले
हरी घास चरने लगी हैं,
ये सब बिना देखे सोे रही हो.
हम कन्या व्रत के लिए
निकल रही हैं,
हे सखी!  तुमको जगाने  रुक गयी है.
जागो,उठो,नहाकर भगवान  का यशोगान करेंगी.
पहले सात पद्यों का प्रकाशित किया है.
आज आठवाँ.
देर से सोेनेवाली सखी को अन्य सखियाँजगा रही है.

विषय युक्त रचना (मु )

सब दोस्तों को,
सादर प्रणाम.
संचालक  कुसुम त्रिवेदी को
विशेष प्रणाम.

विषय मुक्त  रचनाएं,

मुख पुस्तिका  से परिचित मुक्त
शीर्षक समिति में.
मुक्त या मुक्ति  फिर कैसी  रचना
किसके लिए? क्यों?
विषय स्वतंत्र, जीवन मुक्त, पर
मर्यादा का बंधन,
भावों का बंधन
बंधित  शैली,
बंधन मुक्त  न हो तो
विषय मुक्त कैसे?
रचनाकारों तो बंधित विषय पर जाना.
मर्यादा की सीमा न लांघना,
संयम सीखना, जितेंद्र  बनना,
देश प्रेम, अनुशासन, सत्य,
कर्तव्य  पालन,परोपकार
आदी से मुक्त
 प्रेम  का अश्लील  वर्णन.
आजकल समाज बिगाडना का विषय.
दुर्दर्शन बच्चों का कार्यक्रम तमिल में,
तीन साल की बच्ची से सवाल:
कालेज जाकर क्या करेगी?
बच्ची का उत्तर   अच्छे लडके  से
प्रेम करूंगी,
अभिभावक, दर्शक की तालियाँ.
यही आजकल,
सुपर सिंगर लडके लड़कियों से
 अश्लीले  अभिनय के गीत.
अंंग अभिनय वासना सहित
मनोरंजन, पैसे समाज बिगाडने.
कैसे विषय मुक्त  रचना
विषय बंधन युक्त.

स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

Friday, December 21, 2018

आंडाल कृत तिरुप्पावै. 7

तडके न उठी
 सखी को जगाती हुई सखी गाती है...
 बुद्धि हीन  सखी!
क्या  गौरैया का चहचहाना नहीं सुना?
 उन चिडियों की बोली न   सुनी है क्या?
सुगंधित केशवाली अहीर औरतों के गले के मंगल सूत्र,
उनके दही के मथने से
आवाज़ उठाती हैं.
 वह ध्वनी भी नहीं कानों पर पड़ी है?
तुमने कहा कि  तुम्हारे  नेतृत्व  में आज लेे चलोगी.
हम श्री  नारायण  ,केशव के यशोगान  कर रही हैं. 
वह भी तुम्हारे कानों पर नहीं पड रही हैं.
 तुम्हारे न जागने का रहस्य क्या है?
. कांतिमय  चेहरेवाली सखी!
तेरा दरवाजा खोलो, जागो.,

Thursday, December 20, 2018

आण्डाल रचित तिरुप्पावै -६


तिरुप्पावै --६. आण्डाल

  मार्गशीर्ष महीने के आज छठवाँ  दिन :-

अपनी सखियों को जगाती हुईं गोपियाँ  गाती  हैं :---

   सखी !सो रही हो ,जागो।
  तुमने न सुना पक्षियों के कलरव।
  न सुना विश्वरक्षक विष्णु के मंदिर में सफेद शंख नाद!
  अनुभव हीन  सखी! जल्दी उठो।
   गरुड़ वाहन के विष्णु !
  जगत रचयिता!जगत रक्षक!
  अपनी शिशु अवस्था में ही
  कृष्ण ने  राक्षसी भूतकी के स्तनपान करके
  उनका  खून चूसकर वध किया है.
 शकटासुर चक्र बन आया तो
 उसका लात मारकर वध किया है.
 दुग्ध सागर में शेष नाग पर
 अनंत शयन में रहकर
 योग निद्रा करते करते
 सप्तलोकों के जीव जंतु के रक्षक हैं ,
जड़ -चेतन ,नर नारी और सभी जीव राशियों में
परमात्मा वास करते हैं।
साधू -संत-ऋषी -मुनि  सब के सब
उनका यशोगान कर रहे हैं।
उनके पवित्र नाम जपने की अभिलाषा
हमारे मन को शीतल कर रही हैं !
सखी उठो! जागो !सुबह हो गया।
हम नहाएँगी !व्रत रखकर वह माया भरे
कृष्ण का यशोगान करेंगी।

Wednesday, December 19, 2018

तिरुप्पावै -५ आण्डाल (दक्षिण की मीरा )

तिरुप्पावै -५ आण्डाल (दक्षिण की मीरा )

   मायारूपी  ईश्वरीय गुणी ,
   उत्तर मथुरा में जन्मे
    पुण्य जल की पवित्र यमुनातटवासी ,
     देवकी  को  सम्मान  देकर
     अहीर कुल में जन्मे
     यशोधा   के बंधन में संतोष प्रद
      श्री कृष्ण को मन में रखकर ,
     खुशबूदार फूलों को चढाने पर ,
     उसका यशोगान करने पर
     पूर्व जन्म के ,
   ज्ञात -अज्ञात किये पाप
   रूई सम  जलजायेंगे।
   अतः सदा उनके चिन्तन में रहने में
     भला ही भला है।

Tuesday, December 18, 2018

திருப்பாவை -3 तिरुप्पावै

तिरुप्पावै 3
वामनावतार लेकर विष्णु ने तीन पग जमीन महाबली चक्रवर्ती से मांगी. 
दान के लेते ही विराटावतार लेकर एक पद से सारी धर्ता ले ली, दूसरे पद से पाताल, तीसरे पग बली न दे सके. 
और अपने को ही सौंपा. तीसरा पग विष्णु ने चक्रवर्ती का सिर पर रखकर पाताल भेज दिया. 
इसमें गेपिकाएँ विराटावतार का यशोगान करती हैं. 
कहती हैं कि ऐसे विश्व नापे ईश्वर के गुणगान गाने से
महीने में तीन बार वर्षा होगी.
देश संपन्न हो गा. अकाल दूर होगा.
चारों ओर संतोष और शांति का साम्राज्य होगा.
अतः जगन्नाथ का यशोगान करते करते तडके उठकर नहाएँगे. विष्णु की यशोगान करेंगे.

Sunday, December 16, 2018

तिरुप्पावै --आण्डाल दक्षिण मीरा कृत।


तिरुप्पावै

तमिल साहित्य भक्तिकाल की मीरा समभक्ता
 आण्डाल का ग्रन्थ तिरुप्पावै का प्रथम
गीत का गद्यानुवाद।
कुल तीस गीत हैं ,
रोज़ मार्गशीर्ष महीने में तड़के उठकर
लड़कियाँ  गाती हैं ; सहेलियों को
भगवान की कृपा पाने का मार्ग दिखाती हैं।
आण्डाल द्वारा रचित तमिल ग्रन्थ अपूर्व हैं.
सरल हिंदी में गद्य शैली में  अनुवाद कर रहा हूँ।

                      १.
सुन्दर आभूषणों से सज्जित कन्याओ !
आप तो विशिष्ट नामी शहर में रहती हैं ,
जहाँ अहीरों की संख्या अधिक हैं।
आज मार्गशीष महीने का पूर्णिमा का दिन है.
. आइये ,अब नहाने जाएँगीं !
तेज़ शूल हाथ में धरकर नन्द गोपाल ,
अपूर्व रक्षक का धंधा कर रहे हैं।
सुलोचनी यशोधा के श्याम रंग के सिंह समान बेटा ,
सूर्य -सा तेजोमय चेहरेवाले कन्हैया ,
जो नारायण का अंश है ,
हम पर कृपा कटाक्ष करने सन्नद्ध है ,
जिनका यशोगान करें तो अग -जग हमें आशीषें देगा।
आइये! उनका यशोगान गाते-गाते स्नान करने जाएँगीं.
ஆண்டாள் आण्डाल रचित तिरुप्पावै -१ का गद्यानुवाद।
मार्ग शीर्ष महीने में हर दिन गाया जाता है।

              २.

विष्णु अवतार क्षेत्र व्रज भूमि में जन्में बालिकाओं !
सांसारिक बंधन छोड़ ,
ईश्वर के चरण प्राप्त करने ,
जो व्रत -पद्धतियाँ  हैं ,उन्हें सुनिए :-
घी ,दूध  हम न लेंगी।
तड़के उठकर नहाएँगीं।
आँखों में काजल नहीं लगाएँगीं।
सर पर फूल नहीं धारण करेंगी।
बुरी बातों को मन में नहीं सोंचेंगीं।
दूसरों पर चुगलखोरी नहीं करेंगी।
साधू ,संतों और ज्ञानियों को
इतना दान -धर्म करेंगी ,
वे खुद कहने लगेंगी दान पर्याप्त है.

Friday, December 7, 2018

प्रकृति (मु )

चाँद -सी चंद लोग.
सूर्योदय -सूर्यास्त की लालिमा सा चंद लोग.
दोपहर की तपती धूप सी चंद लोग.
तारे से अति दूर से अपने
अस्तित्व  दिखाते कुछ लोग.
  समुद्र का तरंगों  जैसे बहु विचारवाले,
चंचल मन वाले, बीच समुद्र सा शांति प्रद.
उनमें कितने जीवन जंतु,
विषैले,आदमखोर,आहार प्रद, आय प्रद
अपूर्व, अनूठा जल पशु,
क्रूर, शांत, रंगीले,मन मोहक, घृणाप्रद,
 समुद्रतट की शीतल हवा,
समुद्र विसर्जन की अस्तियाँ,
गणेश की मूर्तियाँ, पाखाना,
आत्म हत्या या आनंदविभोर लहरों द्वारा आत्मसात,
 शोकमय, आनंदमय जीवात्माएँ.
कितनी कल्पनाएँ आकाश सा अनंत सीमाहीन,
सागर सा गहरा, गहरे सागर में परिचित अपरिचित
लाखों अंडज पिंडज, हैरान हो  मनुष्य को
सृजनहार सर्वेश्वर  का शरणार्थी  बन
चंद पल, ध्यान मग्न होना,
शरणागतवत्सल की कृपा पाने का मूल.

Saturday, December 1, 2018

सिरो रेखा (मु )

हस्त रेखा ,
सिरों रेखा
जन्म कुंडली
नव गृह
मुख्याध्यायन
सामुद्रिका  लक्षण
हस्ताक्षर  अध्ययन
अंग्रेज़ी  अक्षर परिवर्तन
कितने लोग ,
कितने ढंग
किसीको भगवान पर दृढ़
विश्वास   नहीं।
नकली रेखा ज्योतिष ,
नकली  नकली नकली
पुरोहित ,प्रायश्चित लोभी ,
 कोई दृढ़ भरोसा नहीं रखता
."सबहीं  नचावत  राम गोसाई ".

साहित्य (मु )

तस्वीर   में लेटी औरत.
 ओढने किताबों के पन्ने.
हाँ, मनुष्यता जब पशुता  को अपना बनाता है,
तब कोई  कवि लेखक या नारा
जन मानस को  सुप्त भावावेश  को
ऐसा जगा देता है ,
नारा लगाता है
करो या मरो .
जिओ और जीने दो
वंदेमातरम
यह नारा, साहित्य, गीत
रहता है "सारे जहाँ से अच्छा,
           हिंदुस्तान  हमारा हमारा!

नर हो, न निराश  करो मन को
कुछ काम करो कुछ नाम करो.

 देखो, साहित्य का प्रभाव!
मान-मर्यादा  की रक्षा
चित्र का किताबी आवरण
करत करत अभ्यास करत
जड़मति होत सुजान.
 किताब में छपी विषय
मान रक्षक
देश रक्षक
मूर्ख को आशाजनक
साहित्य समाज और राष्ट्र  उद्धारक.

Friday, November 30, 2018

भुर कुस निकालना (मु )

भुर कुस निकालना
तब होता है जब भृकुटि चढ़ता है
जब भृकुटि चढ़ता है ,तब भ्रष्ट होता है बुद्धि।
जब भ्रष्ट होता है बुद्धि ,तब बुरा समय आता है
तब हमारे पैर ही ठोकर खाता है
,जब बुरा समय आता है ,
जीभ से प्रकटी बात ,तीर सा चुभता है
तब क्रोधी पात्र भुरकुस निकालने लगता है।
आँखें लाल होती हैं
तब मज़हबी की गाली निकलती है या खानदान की।
वह इंसानियत को नष्ट कर ,
भुरकुस निकालकर
खानदानी ,जाति -संप्रदाय ,मजहबी
दलीय ,ग्रामीण महाभारत कुरुक्षेत्र।
भुरकुस निकालना स्थायी दुश्मनी मोल लेती है.
डा.रजनी कान्त द्वारा नए मुहावरा ,
इंसानियत की भूलें , नयी कल्पना ,
नया जागरण , मनुष्यता जगाना
तू तू मैं मैं से बचना ,
इतनी सीख ,
समझो ,सोचो ,जागो ,
भुरकुस निकालो कभी नहीं।

Thursday, November 29, 2018

pyar(मु )

मोहब्बत  मोह में हो तो
वह इश्क नहीं।
वह तन सुख।
धन से मुहब्बत हो तो
मन से प्यार नहीं
तो कभी न मिलेगा चैन।

Wednesday, November 28, 2018

जागो संकल्प करो (मु )

कुटुंब  दल
अगजग भारतीय  एक परिवार
 बनाने का दल.
फूल दल सा
हमें नहीं बिखरने देना.
हमें एकता चाहिए,

पैसे के या पद के या लोभ के या भयवश

देशद्रोही  के पक्ष न लेना.

देश की शक्ति जान
अगजग के लोग लूटे खूब.
फिर भी हम सिर ऊँचा कर
चल रहे हैं जान.

विदेशों को साथ देकर
विदेशों को सिंहासन पर
बिठाई विदेशी शक्ति को
कई स्वार्थी  देश द्रोही,
आंबी सा, वह तो लंबी सूची.

आज भी इत्र तत्र  कुछ द्रोही
देश को टुकडे करने में लगे हैं.

अंकुर से ही समूल
ऐसी द्रोही शक्तियों को
बढने न देना केवल सरकार को ही
नहीं हर देशभक्त  का अटल संकल्प.

जागना जगाना
हमारे फेमिली ग्रूप
कदम उठाना.
युवा शक्ति को जागना.
मिली विदेशी बहु शक्ति को
पनपने  न देना.
स्वरचित स्वचिंतक :यस.अनंतकृष्णन 

मज़हबी स्वार्थी तजो। (मु )

भगवान भगवान बोलते हैं ,
नहीं रखते भगवान पर विश्वास। 
प्रायश्चित करने मंदिर जाते हैं 
मंदिर की मूर्ती सजी 
सोने के कवच से ,
चमकी हीरे के मुकुट से। 
मंदिर बना लूट के पैसे से। 
कवच मुकुट दिए हैं 
भ्रष्टाचार के मंत्री। 
काले धन हुंडी में 
काले व्यापारी हाथ से 
मंदिर सजा है 
जैसे हिरण्य कश्यप जैसे 
सोचो समझो 
बनो प्रह्लाद। 
जागो जगाओ 
बनो भक्त ध्रुव। 
लौकिकता प्रायश्चित 
वे ही करते वे ही कराते 
जो धनी लालची हो 
धनी ही बच सकते हैं तो 
गरीबों पर भगवान की दया नहीं। 
सोचा विचारा अनुभूति मिली 
लुटेरे ही करते यज्ञ हवन। 
दशरत के यज्ञ फल 
उनको शोक मृत्यु। 
राम का अश्वमेध यज्ञ 
सीता का शोक -विरह।
ब्राह्मणो !यज्ञ करो ,
देखता हूँ भ्रष्टाचारियों के हार हो.
करोड़ों रूपये का खर्च करते 
सांसद -विधायक ,
पैसे लेकर खून करनेवाले 
मज़दूरी खूनी ,
मतदेनेवाले मतदाता ,
भ्रष्टाचारी नेता को 
आँखें मूँदकर उम्मीद करने वाले 
३०% दल के सेवक रहते 
कैसे हारते। 
जिन्होंने मंदिर तोड़े 
बगैर उनके कांग्रेस नहीं जीत सकता।

भगवान पर विशवास नहीं ,
बाह्याडम्बर पर विशवास ,
भगवान को छिन्न-भिन्न कर 
कहते हैं पुण्य मिलेगा। 
भक्त त्यागराज , भक्त रैदास ,
भक्त प्रह्लाद बनो ,
तजो -बाह्याडम्बर भक्ति .
तभी होगी देश की भलाई।
दान धर्म करो 
मजहबी स्वार्थी तजो.

Saturday, November 24, 2018

आध्यात्मिक बातें( मु )

सोचो ,समझो ,विचारो ,
संसार क्यों सुखी ?
संसार क्यों दुखी ?
गरीबी के कारण ?
बेकारी के कारण ?
जन्म के कारण ?
बचपन के कारण ?
जवानी के कारण ?
सम्भोग के कारण ?
प्रेम के कारण ?
नफरत के कारण ?
शिक्षा के कारण ?
अशिक्षा के कारण ?
साध्य रोग के कारण ?
असाध्य रोग के कारण ?
संतान के कारण ?
संतान भाग्य न होने के कारण ?
सत्य के कारण ?
असत्य के कारण ?
चाह के कारण ?
लोभ के कारण ?
क्रोध के कारण ?
अहंकार के कारण ?
हिंसा के कारण ?
अहिंसा के कारण ?
दुर्घटना के कारण ?
अल्प आयु की  मृत्यु के कारण ?
बुढ़ापे के कारण ?
पति के कारण ?
पत्नी के कारण ?
सालों के कारण ?
सालियों के कारण ?
ननद के कारण ?
ननदोई के कारण ?
भाई के कारण ?
बहनों के कारण ?
पिता के कारण ?
चाचा -चाची ,काका काकी के कारण ?
शासकों के कारण ?
शासितों के कारण ?
भक्ति के नाम ठगने के कारण ?
बाह्याडम्बर के कारण ?
दोस्तों के कारण ?
दोस्ती निभाने के कारन ?
कृतज्ञता के कारण ?
कृतघ्नता के कारण ?
भोग के कारण ?
त्याग के कारण ?
गृहस्थी के कारण ?
सन्यास के कारण ?
देश भक्ति के कारण ?
देश द्रोही के कारण ?
आतंकवादी के कारण ?
शान्ति वादियों के कारण ?
जंगली पशुओं के कारण ?
पालतू पशुओं के कारण ?
अकाल के कारण ?
अभाव  के कारण ?
परिवार के कारण ?
परंपरा के कारण ?
पाप कर्म के कारण ?
पुण्य कर्म के कारण ?
दान - धर्म के कारण ?
कंजूसी के कारण ?
हर अच्छे या बुरे कारण से
दुखियों की संख्या अधिक ?
या दुखियों की संख्या अधिक ?
सोचो ,विचारो ,समझो ,समझाओ ,
जागो ,जगाओ ,

भ्रष्टाचार -रिश्वत के कारण ?
प्राकृतिक कोप के कारण ?
आधुनिक कृत्रिम साधनों के कारण ?
कारण जो भी हो
उपर्युक्त कारणों में से
एक मानव को दुखी बना रहा है।
अस्थायी संसार ,
अस्थायी जीवन
अस्थायी नाते -रिश्ते ,
चंचल मन ,चंचल धन
सबहीं  नचावत राम गोसाई।
धन-लाभ की ओर  बढ़ते चरण
अपनी क्षमता जानने में भूल.
अपनी योग्यता जानने में भूल।
अपनी भूलों को पहचानने में भूल।
अपने को भूल ,
परायों के पीछे चलने की भूल।
अपने पर विचारो
अपनी योग्यता पर सोचो
अपनी शक्ति पर विचार करो।
हर कोई नाग नहीं बन सकता।
हर कोई बाघ न बन सकता।
हर कोई सिंह नहीं बन सकता ?
हर कोई सियार या भेड़िया बन नहीं सकता।
हर कोई खुशबूदार फूल नहीं बन सकता।
मिश्रित गुणी मानव के भाग्य में
जन्म के पहले ही भाग्य लिखित
विधि की विडम्बना कोई ताल नहीं सकता।
यह मानव बुद्धि धिक्कार।




Thursday, November 22, 2018

समाज (मु )

समाज भारतीय समाज ,
स्वार्थमय या निस्वार्थ मय
विचित्र  व्यवहार समाज में
भ्रष्टाचार और रिश्वत
समर्थन ही करने तैयार।
न्यायालय  में मुकद्दमा
सालों चलके न्याय नहीं मिलते।
सब को मालूम है  सब रजिस्ट्ररर के
कार्यालय में ,घरबनवाने की योजना अनुमति में
मेट्रोवाटर ,बिजली कनेक्शन में
l .k .G  भर्ती में  हर क्षेत्र में
लेन -देन  की बात सर्वमान्य।
आदी  ऐसे हो गए ,आवेदन पत्र  के साथ
पैसे  देने की बात  मनपसंद।
पैसे लेकर वोट देना,
मनमाना लूटने भ्रष्टाचारियों को
पुनः पुनः चुनना आनंद विषय बन गया.
सड़कें नहीं ,फुटपात पर दुकानें ,
अवैध   तरीके अति सहज.
सिकंदर के आक्रमण से  आज तक
देश द्रोहियों  का विषैला प्रभाव
अभी  तक  कम  नहीं हुआ.

भक्ति ध्यान यह प्रेरित शक्ति (मु )

मन है तो यादों की बारात
स्मरण पटल पर
निकला करती है.
बचपन की यादें,
जवानी की यादें
मेरी यादें
गरीबी का आनंद
अमीरी की वेदनाएँ.
ईश्वरीय अनुभूतियाँ
दोस्तों की मदद.
मेंने उपकार किया या नहीं
अनेकों ने मेरी मदद की है.
धीरे धीरे मेरी तरक्की हुई.
हर स्नातक पत्राचार द्वारा.
29की उम्र में यम. ए.,
सस्ता विश्व विद्यालय.
एक सौ रुपये में स्नातकोत्तर।
श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुप्पति.
ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन और कृपा कटाक्ष।
परीक्षा प्रथम साल लिखकर
तिरुमलै पहाड पर पहली यात्रा.
बडी भीड, राजगोपुर गया तो
विश्व विद्यालय के प्रवेश पत्र
दिखाकर सीधे दर्शन बिना कतार पर खडे।
द्वितीय साल की परीक्षा देने गया
फिर दर्शन के लिए ऊपर गया तो
प्रवेश पत्र दिखाया तो न जाने दिया.
भीड में राजद्वार पर मैं
तभी किसने मुझसे कहा,
वी. ऐ. पी पास है,
आइए मेरे साथ.
सीधे दर्शन दिव्य दर्शन.
दर्शन के बाद उससे नाम पूछा
तो कहा,
नाम है वेंकटाचलपति.
सब का अन्न दाता.
मैं अवाक खडा रहा.
वह नदारद.
यह ब्रह्मानंद
केवल महसूस ही कर सकता.
गूँगा गुडखाइकै के समान।
यादें हमेशा हरी भरी।
हिंदी विरोध तमिलनाडु में
स्नातकोत्तर बनते ही
स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक.
यह ईश्वरानुभूति
अपूर्व आनंद की यादें
चिर स्मरणीय और अनुकरणीय.
भक्ति ध्यान यह प्रेरित शक्ति.

Wednesday, November 21, 2018

मानव जगत (मु )

देव जगत की कल्पना में ,
दानव जगत की क्रूरता में
विधि की विडम्बना में
विधिवत दिव्य तत्व को न जान्ने से
मानव जगत सुख दुःख के चक्रमें।
हर कोई न बन सकता आविष्कारक।
आविष्कारक एक उपभोगता जग -मानव।
खोज करता एक ,आनन्दानुभव जग.
शासक एक ,सुख -दुःख भोगता राष्ट्र।
आसुरी शक्ति  के सामने ,
दिव्य शक्ति का घुटने टेकना,
एक दिव्य शक्ति का उदय ,
आसुरी शक्ति का अंत
मजहब की दुनिया में
राम कहानी ही अधिक।
मुहम्मद ने पत्थरों का मार खाया।
ईसा ने शूली का कष्ट भोगा।
राम आजीवन मन में रोता  रहा.
कृष्ण को तो माँ  का गोद  न  मिला।
हरिश्चंद्र की कहानी हरिश्चंद्र सम हरिश्चंद्र।
सांसद -विधायक कठपुतलियाँ
  अपने नेता  के इशारे की।
मानव जगत अति स्वार्थ ,
मानव जगत अति परार्थ।
मानव जगत अति भोगी।
मानव जगत अति त्यागी।
स्वार्थों की सूची स्मरण में नहीं ,
वह तो अति लम्बी।
भोगियों की सूचियाँ अगणित।
त्यागियों की सूची सगणित।
मानव जग सोचो ,जानो ,खोज करो
अति गहरा ,अति सूक्ष्म ,अति निराला।
अतः मानवों के गन की तुलना पशु -वनस्पति जगत से.
जड़-सा खड़ा,लकड़ी सा लेटा ,
बगुला भगत ,सियार चालाकी ,
सिंह चाल ,बाघ सा दबना ,
हिरन नयन ,काल चरण ,गुलाबी गाल.
मानव जगत मानव जगत नहीं ,
पशु गुणों का ,वनस्पति गुणों का मिश्रण।




Monday, November 19, 2018

सर्वेश्वर को प्रणाम।(मु )

இனிய காலை வணக்கம் நண்பர்களே!
मधुर प्रात:कालीन प्रणाम।
Good morning friends।
 ईश्वरीय लीला अद्भुत।
 इंसान को  संतुलन में  रखने
बुद्धि दी, आचार्य से जीने,
आनंद से जीने ,
पशु पक्षियों मनुष्य को
भूख-प्यास, काम,नींद,
बराबर बांटे गए।
केवल मनुष्य को जितेंद्रिय बनाया ।
सनातन ,धर्म के प्रधान भगवान को
दो पत्नियां दी, पर ब्रह्मा -सरस्वती   एक
ज्ञान एक, चिंतन अनेक।
शक्ति ज्ञान, क्षमताओं में
बराबरी नहीं,पागलों,पंडितों,
नायक, खलनायक,
क्रोधी, कामुक,लोभी, न्यायी,अन्यायी,
दयालू-निर्दयी, पापात्मा, पुण्यात्मा,
बल दुर्बल गुण अवगुण,
मां अपमान  जगमंच को
एक अभिनय मंच बनाकर
अपने को सर्व श्रेष्ठ  सिद्ध की
जो शक्ति नचा रही है,
उस शक्ति को प्रणाम।

और किसी प्रकार से बदल नहीं सकते।(मु )

ज़रा देखें ,
जग के मंच को 
धनी सुखी या निर्धन सुखी 
गली के कुत्ते खुशी या बंगला के श्रृंखला बंध बहुमूल्य कुत्ते। 
फुटपात पर पीपल के पेड़ के गणेश की शक्ति अधिक या 
हीरे सोना चांदी से भरे पहरेदार के देख रेख के गणेश की शक्ति अधिक।
खाली हाथ के भक्त सन्यासी भक्त बड़ा या
भ्रष्टाचार के मंत्री के हीरे के मुकुट धारण करना बड़ा.
कल्पित भगवानों से आदी भगवान ही बड़ा ,
जो तटस्थ , अटल क़ानून ,समान दंड
बचपन ,जवानी ,बुढ़ापा , रोग, मृत्यु।
अमीर हो या भिखारी।
वह फैसला पद ,धन ,अधिकार ,भय
और किसी प्रकार से बदल नहीं सकते।

न मानव जीवन चैनप्रद ।(मु )

कल की बात
आज की बात
कल होने की बात
खल के कारण ।
खल पात्र न तो
असुर न तो ,
मंथरा, रावण,शकुनी
खल विचार न तो
न ऐतिहासिक ग्रंथ
न वेद पुराण।
रोग खल न तो
प्राकृतिक क्रोध खल
काम खल
लोभ खल
ये खल न तो
खलनायक न तो
न रोचक जानकारी
न साहसी घट ना
बेरहमी से धरती न खोदें तो
न सोना न हीरा न चांदी।
मांसाहारी न तो
मच्छर वध न तो
न मानव जीवन चैनप्रद ।

Saturday, November 17, 2018

मातृत्व नेतृत्व (मु )

माँ ममता मयी
जब तक जिंदा  रहती
तब तक उनकी बात न मानते बच्चे.
उनकी मानसिक दशा,
शारीरिक रोग किसी पर न देता ध्यान.
वह   तो अपनी संतानों  के दुख दूर करने
चिंतित रहती.
सुख मेंंब्रह्मानंद का अनुभव करती.
सब उनकी मृत्यु के बाद ही सोचते हैं
ज़िंदा रहते उन पर ध्यान  नहीं देते.
यहीमानव जीवन.
राम भी कैकेयी के लिए  वन गया.
कौशल्या  दशरथ की मनोदशा न जाना.
सीता को संताप दिया,
पत्नी  की मनः स्थिति न महसूस की.
आदी काल से आजकल भारतीय कथाएँ
नारी को भोग और सेविका ही मानती.
परिणाम सोनिया खान
 सोनिया गांधी नाम धर
गांधी वंश बन गयी.
माँ का नाम आद्यक्षर  का कानून बन गया
माँ  के इशारे पर ही पता चलता
पिता कौन?
माँ के बगैर संकेत के
ईसा, कबीर,  सीता के पिता का पता नहीं.
यही वास्तव में ईश्वर की महा शक्ति.
किसी को पता नहीं पांडवों के असली पिता,
राम के असली पिता.
माँ अत्यंत सूक्ष्म  सृष्टि
ईसा के पिता का पता नहीं.
स्वरचित  स्वचिंतक :यस. अनंत कृष्णन 

Friday, November 16, 2018

सुख कहां?(मु )

सत्य असत्य
ईमानदारी बेईमानी
न्याय अन्याय
पाप पुण्य
शुभ अशुभ
भला बुरा
सब जानकर
समझकर भी
अमृत विष मिलाकर
सुकर्म दुष्कर्म
तटस्थ ता से
विपरीत कर्म में लगे मानव जीवन में
सुख  कहां?

Thursday, November 15, 2018

विजय (मु )

सत्य असत्य
ईमानदारी बेईमानी
न्याय अन्याय
पाप पुण्य
शुभ अशुभ
भला बुरा
सब जानकर
समझकर भी
अमृत विष मिलाकर
सुकर्म दुष्कर्म
तटस्थ ता से
विपरीत कर्म में लगे मानव जीवन में
सुख  कहां?



Wednesday, November 14, 2018

मानव अवलंबित(.मु )

फूल खिले तो
खुशबू .
मन मोहक
नेत्रानंद.
पर वह भी अस्थाई. 
पैसे अचल संपत्ति
पर प्राण ज़िंदा रहना
अनिश्चित.
पद, पदोन्नति , पर जवानी
अस्थाई.
अस्थाई जगत में
आनंद परमानंद से जीना है तो
सत्याचरण, कर्तव्य परायण
आत्मानंद अति आवश्यक.
सहज मिला तो दूध सम.
न पशु पक्षी माँगना किसी से
मानव तो जन्म से दूसरों पर निर्भर.
बछडा खडा है जन्म लेते ही
बच्चा लेटा है माँ की गोद में.
मानव को ज्ञान देकर भी
मानव अवलंबित.

Thursday, November 8, 2018

लक्ष्मी तू हार गयी (मु )

लक्ष्मी के नाम पत्र ,
देवी! चरण वंदन।
तेरी महिमा जन्म विदित है ,
सर्वत्र तेरे गुणगान।
चुनाव में जीतना ,
स्नातक -स्नातकोत्तर की उपाधियाँ पाना
व्यापार करना ,
रिश्ते-नाते दोस्तों के  भीड़ में मज़ा लेना ,
कारखाने ,माल के मालिक बनना
चित्र पट  के निर्माता - निदेशक बनना ,
चित्रपट -घर बनाना ,
संगणिक -अंतरजाल -यात्रा -सपर्क सब के मूल में
लक्ष्मी प्रधान।
जितना भी बल तुझमें हैं ,पर
तेरे अवहेलना करने का एक पल
हर एक के जीवन में अवश्य।
पहाड़ को चूर चूर भले करो।
धर्म -अधर्म कीजीत -हार तुम पर निर्भर।
अपार शक्ति तुझ में ,
तेरे वश में सब कुछ ,सभी प्रकार का आनंद सोच
न्याय -अन्याय तेरे अधीन।
भगवान की महिमा भी हीरे के मुकुट ,
सोने के कवच में.
इतना होने  पर भी न जाने
तुझ से दूर न करनेवाले
कई विषय है संसार  में.
करोड़पति के यहाँ असाध्य रोगी ,
डाक्टर  के यहाँ  पागल बच्चे,
करोड़पति के पुत्र का अकाल मृत्यु।
करोड़ों के खर्च कर चुनाव में हार.
गधे का स्वर संगीत प्रिय को।
जन्म से अंधे, निस्संतान दम्पति
कई विषय ऐसे संसार में
तुम्हारे अधीन  नहीं।
रेगिस्तान को उपजाऊँ  भूमि न बना सकती तू.
दक्षिण ध्रुव को गरम प्रदेश नहीं बना सकती तू.
जन्म से मंद बुद्धि को प्रतिभाशाली न बना सकती तू.
फिर   भी  यह पागल दुनिया ,
तेरे पीछे पागल।
हँसी  आती है ,मुझे कई करोड़पति की आत्महत्या देख.
लक्ष्मी तू हार गयी.



Tuesday, November 6, 2018

निर्भर जान.(मु )

बहुत हैं  दुनिया में सुख ,
बहुत है दुनिया के दुःख।
ज्ञानी मनुष्य के कर्म में
चुनने छोड़ने में ,सोचने में
पसंद करने में मदद करने में ठगने में
सुख दुःख निर्भर जान.

Monday, November 5, 2018

सब को दीपावली की शुभ-कामनाएँ

Saturday, November 3, 2018

साई राम महाराजाधिराज की जय

सत्य साई राम.
शाश्वत सत्य प्रमाण.
सांसारिक एकता का मूल.
मानवता के प्रचार में
न मज़हबी भेद

स्वार्थ मज़हबी यही सिखाते
अल्ला  बडा,ईसा बडा, हिंदु बडा,
सिक्ख बडा,बौद्ध बडा, जैन बडा.
साई राम  तो  यही कहते
मानव धर्म मनुष्यता बडा.
भजन में मिलाते
अल्ला साई  ईसा साई शिव साई विष्णु साई
सिक्ख साई, बौद्ध  साई जैन साई.
मानो सब मत-संप्रदाय  यही सिखाते
सत्य  पथ पर चल.
प्रेम मत पर चल.
नेक पथ पर चल.
कर्तव्य पथ  पर चल.
सेवा पथ पर चल.
मनुष्य मनुष्य भेद कर
अशांति हिंसा ठग निर्दयता,
अहंकार, क्रोध काम, लोभ स्वार्थ
सब तज, संसार है मिथ्या, अशाश्वत.
यही सब मजहब की सीख.
सोना एक, मिट्टी  एक ,चाँदी एक
बर्तन, आभूषण, रूप अनेक.
वैसे ही भगवान एक.
दीन दुखियों की सेवा में
बढती  संपत्ति.
भगवान रहेगा तेरा दिल में.
महान सत्य साई को नमन.

.

माँ माता अम्मा.

माँ, माता, अम्मा,
जगतजननी शक्ति स्वरूप,
देवी का नाम सुना है,
 पर न देखा ,अनुभूति मिली.
  माँ जिसके गर्भ में पला,
दिमाग, आँख, कान, हड्डियाँ, माँस,
हाथ, पैर, सर्वस्व  पूर्ण नर रूप
प्राप्त कर  पृथ्वी  पर आयी,
वह जननी जन्म भूमि,  मेरी.
दस महीने बिंदु  स्वरूप अति
सूक्ष्म रूप को अपना खून देकर
दर्द सहकर  पाला वह  देवी प्रत्यक्ष  शक्ति.
माँ रस  गो रस से श्रेष्ठ,
माँ, प्रत्यक्ष  ज़िंदा दिव्य रूप.
माँ गुरु आइन,  माँ सेविका, माँ मार्गदर्शिका,
माँ शक्ति  दात्री, ममता मयी,
दयामयी, त्याग  का प्रतिबिंब,
हैरान की बात है, सृजनहार ने
सब सृष्टियों में गुण अवगुण,
माँ में भी कई होती  निर्दयी,
कुंती सी,कैकेई सी,
काला धब्बा किसमेंनहीं.

माँ सम माँ न तो मैं नहीं, नरवर्ग नहीं
माँ को सविनय सादर नमस्कार.

Thursday, November 1, 2018

उपहार -उपकार

उपहार -उपकार 
उपहार देने से 
उप कार्य होता है 
उपहार  हार को जीत में बदलता है। 
उप कार्य  प्रधान कार्य बन जाता हैं 
उपहार कभी कभी लापरवाह बन जाता है 
मुफ़्त का उपहार लोभ बढ़ाता है। 
उपहार के बिना काम करना रुक जाता है.
उपहार के इंतज़ार ठगने का कारण। 
ऐसे भी देखा अमीरी गरीबी के लक्षण। 
उसने सस्ता दिया मैंने महँगा दिया ,
मानसिक कटुता और हीनता ग्रंथी के कारण 
मान -अपमान की सूचना भी.
भगवान को हीरे का उपहार देने से
 क्या सद्यःफल मिलता है.
अफसर को तो कठिनतम भी सरलतम

Tuesday, October 30, 2018

सरदार पटेल की मूर्ति भारतीय भाषा अंग्रेज़ी

स्टेट्यू ऑफ़ यूनिटी /ஸ்டேட்யு ஆப்
யூனிட்டி அதுவும் தமிழில் தவறாக.

खेद की बात है सरदार पटेल की मूर्ति में
अंग्रेज़ी को ही भारतीय भाषाओं में स्टेट्यू ऑफ़ यूनिटी लिखा है.
अंग्रेज़ी ही है आगे भारतीय भाषा .
एकता की मूर्ति या एकता की शिला लिखना है।
धीरे धीरे भारत की भाषा सिर्फ अंग्रेज़ी।
एकता की मूर्ति नहीं लिखी।




சர்தார் படேல் சிலையில் இந்திய மொழி ஆங்கிலம் தான் .எழுத்துக்கள் மட்டுமே இந்தியமொழி .
statue of unity என்றே இந்திய மொழிகளில்
மொழிகளில் எழுதப்பட்டுள்ளது.
நாட்டு மொழி ஆங்கிலமே .
மோடி அரசு ஆங்கிலமே இந்தியாவில்
என்று வையகத்திற்கு அறிவித்துள்ளது.
ஹிந்தி தமிழ்
ஒற்றுமையின் சிலை /ஏக்தா கீ மூர்த்தி / என்று எழுதவில்லை .

स्टेट्यू ऑफ़ यूनिटी /ஸ்டேட்யு ஆப்
யூனிட்டி அதுவும் தமிழில் தவறாக.

दुविधा

सादर प्रणाम।

 सर्वेश्वर  की कृपा से सुखी हैं सब ।
लौकिकता में  सत्यवानों को
चाहते हैं  और उनको मौका भी देते हैं.
उनके भ्रष्टता में  साथ दें  और  मिल जायें।
वह मौका आर्थिक प्रलोभन ,
पद प्रलोभन ,
नाते -रिश्ते - इष्ट मित्रों के कल्याण
आधुनिक वैज्ञानिक सुविधाएँ ,
बाह्याडम्बर पूर्ण जीवन ,
अमीरी जीवन ,नौकर -चाकर
स्वार्थमय  भ्रष्टाचारी ,रिश्वत ,
झूठ ,अवैध काम  यही लौकिक बंधन।
इन से बचकर जीना पागलपन।
अतः   जितने भी आदर्श सत्यवादी
अकेले गरीबी में जीता है.
हरिश्चंद्र समान  जीवन में अनंत कष्ट
उठाना पड़ता है.
जितना मनुष्य भ्रष्टाचार का साथ देता है
उतनी प्रशंसा का पात्र बनता है.
न जाने मनुष्येत्तर शक्ति भी
सत्यवानों को नाना प्रकार के कष्ट देती है।
जिससे  सत्यके पालन में लोग  हिचकते हैं.
सत्यवान  अलग रह जाता है।
फिर भी सत्य की ,
धर्म की ,न्याय की प्रशंसा
सब करते हैं.
 सत्यवानों की तारीफ  जब तक जिन्दा रहते हैं ,
तब तक कोई करने तैयार नहीं।
मृत्यु के बाद ही तारीफ का पुल बांधते हैं.
शिला प्रतिष्ठा करते हैं.
यही सांसारिकता है.
ईश्वरीय शक्ति भी भ्रष्टाचारियों को
अंत तक साथ देकर
बदनाम की  मृत्यु देती है ,
जिसे पहचानना ,जानना ,समझना जागना
अधिकांश लौकिक पसंद लोगों से असंभव है.
उनको अकेले  बैठने पर 
तिल भर भी शान्ति नहीं ; संतोष नहीं ;
आत्मवेदना के आंसू बहते संसार छोड़ चलते है.
इसमें किसी को छूट   नहीं। अपवाद नहीं।
भले ही राम हो या कृष्ण।
आज मन में उठे विचार।

Monday, October 29, 2018

इंसानियत या मनुष्यता ही प्रधान।

नमस्कार।
प्यार की नीति निभाना
प्रेमी जानता है या प्रेमिका।
प्रेम एक पक्षीय या द्वि पक्षीय।
प्रेम तंग गली या बड़ा रास्ता।
प्रेम में लग जाते चंद दिन
चाँदी की चिड़िया के लिए.
प्रेम में लग जाते ,रूप-मोह में
धन सुख ,तन सुख ,स्वार्थ भोग।
ऐसे भी कई प्रेम निभाते
धन ,तन ,मन परायों के लिए।
कहानियाँ सच्ची हो या काल्पनिक ,
आदर्श हो यथार्थ ,प्रेम अति स्वार्थ।
मीरा का प्रेम या आण्डाल का प्रेम
ईश्वर के दिल में वास ;
अपने दिल में ईश्वर ,ईश्वर के दिल में वे.
वहाँ परायों का स्थान नहीं।
नायक -नायिका प्रेम ,
खलनायक -खलनायिका बीच में
यह दैविक कहानियों में हैं ,
है मानव कहानियों में।
प्रेम श्रद्धा - भक्ति में बदल जाएँ तो
अनासक्ति ;फिर न लोक की चिंता ,
न अपनी चिंता;
सर्वश्व सर्वेश्वर संभालेगा ;
सबहीं नचावत राम गोसाई
ऐसे चुप भगवान रहने न देता।
विश्व कल्याण की भावना जगाता।
देश प्रेम संकुचित ,
प्रशासन प्रेम संकुचित।
विश्व कल्याण भाव अति विस्तृत।
सर्वे जनसुखीनो भवन्तु।
देशप्रेम ,मातृ-भाषा प्रेम ,
प्रेम शब्द ही संकुचित।
ताजमहल प्रेम का चिन्ह
उस कहानी में निर्दयता /बेरहमी की चरम सीमा।
मुमताज के पति की हत्या।
ताजाहल के कारीगरों के हाथ काटना
ऐसे आदर्श यथार्थ प्रेम बलात्कार का मूल.
सच्चे प्रेमी वही जिनके लगन से
जग की भलाई हो;
सब की भलाई हो;
चंद्र -सा, सूर्य -सा ,हवा -सी ,जल-सा ,भूमि-सा
ये तटस्थ ,
न मुसलमान ,न हिन्दू ,न सिख , न बौद्ध ,न ईसाई
इंसानियत या मनुष्यता ही प्रधान।

Sunday, October 28, 2018

माया

नमस्कार. 
दुनिया क्या शाश्वत है?
हमारी याद रहेगी ? 
हमारा नाम रहेगा. 
सोचिए.. 
हमारी प्राचीन प्रसिद्ध
यादगारें समुद्र केअतलपाताल में.
हमारे वेद हम में से अधिकांश न जानते.
क्यों?
लोगों में ज्ञान की बात हैं.
चित्रपट के इस युग में
माया -शैतान-ठग के विचार और पद
सहर्ष सादर मान्य है.
गोरस गली गली बिकै.
स्वस्थ बातों को गली गली घर घर
ले जाना है, पर एक सरकार
हर राज्य की आमदनी गोरस से नहीं, अतः
गोमाता की रक्षा के लिए हम चिंतित हैं,
शराब की दूकान में भीड अधिक.
ठंड प्रदेश के अंग्रेज़ , महिलाओं के साथ
मधु प्याला हाथ में रख
नाचने की मायाके सामने
 दिव्य शक्ति
गोरस फीका
 पल पड जाता है.
यही संसार है.
स्वचिंतक स्वरचित :अनंत कृष्णन. यस.

अतिथि देवो भव

नमस्कार !
अनजान मुख -पुस्तिका के साथियों को
बधाई देते हैं ;रोज़ कुछ न कुछ
सन्देश देते हैं ;पाते हैं;
पर अतिथि जो घर आते हैं
ज़रूर कोई न कोई जानते ही हैं ;
बच्चे ,आधुनिक युवक "है " कह
हस्त-दूर भाष में ऐक्य हो जाते हैं
अतिथि तुम कब जाओगे ?
ऐसा ही लगता है।
अतिथि देवो भव के देश में
द्वेष भरी नज़र कैसे ?
शिक्षा रिश्तों को जोड़ती नहीं ,
दूर हटाती जाती हैं।
अनपढ़ देश में कुल -पेशा में ही
कुल परिवार लग जाता।
रूखा-सूखा खाता ,
चैन से जीता।
अब स्नातक -स्नातकोत्तर
महाविद्यालय के साक्षात्कार में ही
नौकरी मिल जाते सुदूर या विदेश।
अतिथि देवो भाव नहीं ,
बन जाते भव् बाधा ..
तिथी बताकर ,
ठहरने का दिन बताकर
अनुमति लेकर जाना हैं।
यह -नाते रिश्तों का दोष नहीं ,
उच्च शिक्षा का दोष है ,
दोनों नौकरी करते हैं ,
कर्जा बढ़ाने सरकार की योजना।
बैंक की महिलाओं का मधुर पुकार;
टूटी -फूटी अंग्रेज़ी ,
युवक तो ताज़ी नौकरी ,
हर चीज़ ताजी लेना चाहता।
रूपये पुरानी हज़ार ,
भले ही अच्छा हो देना
बत्तीस हज़ार में लेना
मीयाद भरना ,
हर चीज़ कर्जा ,
तब अतिथि ?
अतिथि सेवा बेचारा भला कर्जदार कैसे करता।
सब के सब सरकारी नौकरी भी नहीं
कबीर के जमाने में यम -तलवार सर पर.
अब एम्.डी., ज़रा आँखें दिखाएँगे तो ,बस
नौकरी की न गैरंटी ,न वारंटी।
अतिथि कोई भी न आ न सकता ,
अचानक आना पड़ें तो ठहर नहीं सकता।
आने का सवाल ही नहीं उठता।
शिशु विद्यालय के तीन साल का शिशु
विद्यालय में अनुपस्थित हो जाता तो
निकाला जाता तो मंत्री की सिफारिश से मिली भर्ती ,
स्कूल से निकला जाता तो
अतिथि भला कैसे आता।
अब सवाल उठता ही नहीं ,
अतिथि तुम जाओगे कब ?