Monday, December 24, 2018

ஆண்டாள் ---आण्डाल दक्षिण की मीरा -तिरुप्पावै --९ौर 9-10

ஆண்டாள் ---आण्डाल  दक्षिण की मीरा -तिरुप्पावै --९ौर १०।
तिरुप्पावै आंडाल..कृत . 9
अपनी मामा की पुत्री को जगाती हुई
गोपिका गाती है.
पवित्र हीरे पन्नों से जडे महल में, 
सुगंध भरे सुगंधित द्रव्य,
और चारों ओर दीपों से अलंकृत महल में
 कोमल शय्या पर सोनेवाली
मेरे मामा की सुपुत्री उठो.
दरवाजा खोलो.
मामीजी! क्या आपकी बेटी बहरी है?
 हम ऊँची आवाज़ से जगा रही है.
 क्या आलसी है?
आप जगाइए.
हम विष्णु के प्रसिद्ध हजारों नामों से
    उनके गुणगान करेंगी.
आपकी बेटी इसका महसूस करके उठी तो
सब मिलकर व्रत ऱखेंगी.

तिरुप्पावै --१०
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सबेरे सखियाँ सब व्रत रखने जा रही है.
 जो सो रही है ,उनको जगाने
कुम्भकर्ण की याद दिला रही हैं।
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अपनी सखी सो रही  है।
उनको जगाती हुयी ईश्वर  की महिमा  गाती  हैं।
पूर्व जन्म में सर्वेश्वर  नारायण  के ध्यान में मग्न रहने से
और व्रत रखने के परिणाम स्वरूप अब
स्वर्गीय  सुख भोगनेवाली सखी !
तुम तो अपने गृह द्वार खोलती नहीं हो ;
द्वार  न खोलने पर भी क्यों नहीं बोलती ?
सुगन्धित तुलसी को सर पर धारण किये
नारायण का यशोगान करें तो
उस व्रत का फल तुरंत मिल जाएगा।
 पहले निद्रा के उदाहरण में
कुम्भकर्ण का नाम लेंगे।
 तुम्हारी नींद देखने पर ऐसा लगता है कि
तुम कुंभ कर्ण  को हरा देगी।

आलसी के तिलक !
वह भी दुर्लभ आभूषण ही है।
किसी प्रकार के हिचक के बिना
 दरवाज़ा खोलकर
 बाहर आओ।

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