ऊपरवाले जाति भेद नहीं देखता । काम जाति नहीं देखता । तमिल गाा है - रात्री में शास्त्र नही । सोचा राहू काल यमकंड रात्री में नहींं । ज्ञानी विदुर का जन्म हुआ। नौकरानी द्वारा ।इंदिरा खान इंदिरा गाँधी-(बनिया) बनगया। खान वंश गाँधी वंश बनगया। राजव वंश ईसाई बन गया । भारत में अंतर्राष्ट्रीय खून चंद्रगुपत के यूनानी मिलन से हो गया । वसुधैव कुटुंबकम् सार्थक हो गया । अतः हममें सहनशीलता है । भारत धर्म निरपेक्षिय राज्य है। पर मंदिर के लिए यूनिट रुपये आठ। मसजिद -चर्च केलिए कम. जय संविधान के सामने भेद भाव की।
Monday, July 31, 2023
संविधान
Saturday, July 29, 2023
KADUM VIMARSANANGAL. VISHNU वडकलै या तेंकलै?
KADUM VIMARSANANGAL. VISHNU वडकलै या तेंकलै?
Friday, July 28, 2023
भाग्य परिश्रम ईश्वर अन्योन्याश्रित।
नमस्ते वणक्कम।
मानव का जन्म ही
भाग्य पर निर्भर।
अमीर के यहाँ जन्म।
गरीब के तहाँ जन्म।
उद्योग पति के यहाँ जन्म।
मजदूर के यहाँ जन्म।
भिखारिन के यहाँ जन्म।
स्वस्थ शरीर। अस्वस्थ शरीर।
बहरा,गूंगा,अंधा,
प्रतिभाशाली,औसत,मंद बुद्धि।।
कर्मफल या भाग्य पर निर्भर।।
संगीत का मधुर स्वर
अभ्यास से नहीं मिलता।
अभिनय कला,चित्रकला
प्रयत्न से नहीं,भाग्य पर ही नहीं,
ईश्वरीय वरदान।।
नायक,नेता बनने के प्रयत्न में
भाग्य रेखा, ईश्वरीय शक्ति
अत्यंत आवश्यक।।
देखा,समझा, अनुभव किया।
पता चला भाग्य, प्रयत्न,ईश्वर
तीनों ही अनयोन्याश्रित।।
भिखारिन का मधुर स्वर,
बड़े संगीतज्ञ के छात्र को नहीं।
अर्जुन का भाग्य
एकलव्य को नहीं।
कुंती के पुत्र में कर्ण अभागा।।
यह ईश्वरीय शक्ति की सूक्ष्मता।
रावण की बूद्धइ का भ्रष्ट होना
पढ़ा,देखा,समझा
निष्कर्ष पर पहुँचा
भाग्य, परिश्रम, ईश्वर तीनों ही
अन्योन्याश्रित।।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।
स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
Sunday, July 23, 2023
अशाश्वत
सोचना मेरा काम है,
विचारों की अभिव्यक्ति मेरी मानसिक चेतना है।
पसंद या नापसंद
पाठकों के ज्ञान पर,
विचार पर सोच पर निर्भर है।
स्वार्थ -निस्वार्थ
सद्यःफल प्राप्त
मानव को पक्षधर,
निष्पक्ष,
तटस्थ
बना लेता है।
सत्य बोलो -सब मानते हैं।
सद्यःफल,पक्ष वाद ,
एक तो चुप हो जाता है।
भय, लोभ घेर लेता है।
सत्य बोलने से कतराते हैं।
भ्रष्टाचार जानकर भी चुप।
हरिश्चंद्र भी नहीं,
हिरण्यकश्यप भी नहीं।
सिकंदर भी नहीं,
पुरुषोत्तम भी नहीं
आंभी भी नहीं।
नश्वर दुनिया।
कोई भी भूलोक में
शाश्वत नहीं है।
Wednesday, July 19, 2023
जग में जीना,जग में जीना,
जग में जीना,जग में जीना,
जगन्नाथ का अनुग्रह।।हमारी चाहें अपने आप
पूरी होती।
कोशिशें भी
ईश्वरानुग्रह के बगैर
कामयाबी दुर्लभ।
यही मेरा अनुभव।।
सद्यःफल धनाधार।।
स्थाई फल ईश्वरीय अनुकंपा।।
मैंने दूसरे को चुना।
मनोकामना पूरी होती
ज़रा विलंब ही सही।
वह स्थाई और संतोषजनक।।
ॐॐ ॐॐ ॐॐ ॐॐ ॐॐ
Sunday, July 16, 2023
हिंदी खर्च बेकार
नमस्ते नमस्ते वणक्कम।
मानव दुखी क्यों?
दुखी ?!!!
ईश्वर की सहज देन से संतुष्ट नहीं।
लौकिक सुख भोगने धन प्रधान।
धनियों में बड़ा धनी,
अति आनंद से जी रहा है।
सांसारिक सभी सुखों का भागीदार है।
ऐसी माया मानव मन में छा जाता है।
तुरत पैसा मिलना है।
जिस स्थान से जुड़े हैं
उससे नाम लेना है।
सद्यःफल शाश्वत फल नहीं है।
आजकल सम्मान ,माला,पदक, प्रमाण पत्र का लोभ दिखाकर
कमाने और अपनों को महान
दिखाने के लिए पंजीकरण शुल्क।
कविता कहानी,शोध ग्रंथ लिखो,
कवि सम्मेलन में भाग लो।
पंजीकरण शुल्क,सदस्यता शुल्क भरो।
ठीक है अर्थ नहीं तो जीवन अनर्थ।
ऐसे देश भक्त,भाषा भक्त,
ऐसी संस्धशथाएँ क्यों न सोचती,
करोड़ों करोड़ चुनाव में
खर्च करनेवाले राजनैतिक दल,
चुनाव में जीतने रिश्वत मतदाताओं को देनेवाले राजनैतिक दल,
क्यों भारतीय भाषाओं की प्रगति के लिए एक पैसा भी खर्च नहीं करते।
विश्वविद्यालयों की बढ़ती देखते हैं, परिणाम भारतीय भाषाएंँ
जीविकोपार्जन के लिए लायक नहीं।
आज़ादी के पच्हत्तर साल में
घर घर, गली गली गाँव गाँव
अंग्रेज़ी माध्यम के विकास।
कारण धन लाभ।
साक्स, शू,टै व्यापार जो
हमारे भारत की जलवायु के लिए
अनुचित है, स्वास्थ्य बिगाड़ने का कारण।
शिथिल वस्त्र नहीं, कारण
सद्यःफल देनेवाला कमिशन।
पैसे प्रधान है तो अनुशासन प्रधान है कि नहीं।
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की छात्र संख्या बढ़ती हैं तो
अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों के कारण।
आजकल सरकार मधुशालाएँ ही
आमदनी का प्रमुख संसाधन मानकर खोल रही है।
वास्तव में यह बड़ा अन्याय है।
सरकार की आमदनी कइयों के
जीवन में गरीबी आती है तो
वह आमदनी बाढ़, सुनामी, अकाल, संक्रामक रोग, विष शराब की मृत्यु ऐसा ही होता है।
पानी के पैसे पानी में,दूध के पैसे ही सही उपयोग में।
हिंदी के विकास के लिए
करोड़ों के खर्च।
पर हिंदी विरोध के कारण जानकर दूर करने,
हिंदी के प्रति प्रेम बढ़ाने के बदले
अल्पसंख्या के लिए खर्च कर रही है।
परिणाम दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की प्रमुख आमदनी
अंग्रेज़ी माध्यम का स्कूल।
मातृभाषा माध्यम बंद।
निजी सीबीएस सी स्कूल में
अध्यापक बेगार।
सरकारी स्कूलों में अध्यापक की नियुक्ति।
पर मनमाना छुट्टी लेने अध्यापक को अधिकार।
हिंदी के विकास के लिए खर्च बेकार।
क्यों तमिलनाडु के भाषा विरोध
कर्नाटक में भी गूंजने लगा है।
केंद्रीय हिंदी निदेशालय है,
वहाँ विश्वविद्यालय के डाक्ट्रेट को ही करोड़ों खर्च करने की योजना है।
आम जनता में लाखों के हिंदी प्रेमी उत्पन्न करनेवाले
सभा की उपाधि धारों की आर्थिक दशा की प्रगति करने ,
केवल हिंदी के आधार पर जीने देने कोई योजना नहीं।
कारण तमिलनाडु की जनता हिंदी विरोध करती है।
जनता नहीं, प्रांतीय दल।
सांसद में कांग्रेस के समर्थन के लिए प्रांतीय दलों के विकास में साथ देना।
राष्ट्रीय शिक्षा का विरोध, हिंदी का विरोध।
अब थोड़े दिनों में तमिल भाषा के प्रति नफ़रत बढ़ेगी। केवल अंग्रेज़ी। न तो हिंदी ही आएगी।
हिंदीवाले दक्षिण के हिंदी को नहीं चाहते।
विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषियों की नियुक्ति होती हैं।
अधिकांश हिंदी प्राध्यापकों की मातृभाषा तमिल नहीं है।
सभा के उच्च शिक्षा विभाग में भी यही हालत है।
जब अंग्रेज़ी भाषा के लिए
भारतीयों में योग्यता है तब भारतीयों में हिंदी भाषा में योग्यता क्यों नहीं।
हमारे देश की राजनीति संस्कृत को दूर रखी। अब भारतीय भाषाओं के विकास में ध्यान न देती।
केवल तमिल माध्यम ही तमिलनाडु सरकार की नियुक्ति के लिए काफी है, ऐसा प्रस्ताव लेना चाहिए। ऐसे हर एक प्रांत में।
वैसे ही केंद्र सरकार केवल हिंदी में और भारतीय भाषाओं में प्रतियोगिता परीक्षाएं चलानी चाहिए।
अंग्रेज़ी माध्यम चलाने की अनुमति रद्द कर देनी चाहिए।
नहीं तो हिंदी ही के विकास के करोड़ों रुपयों का खर्च हिंदी विरोध को बढ़ाएगा ही।
1937ई. से हिंदी विरोध तमिलनाडु में।
आज़ादी के पच्हत्तर साल के बाद भी बढ़ रहा है,यही खेद की बात है।
Saturday, July 15, 2023
मनोवेग
नमस्ते। वणक्कम्.
मन अति चंचल,
मनोवेग पहाड को
राई बनाएगा ।
राई को पहाड ।
चंचल मनोवेग,
कल्पना का घोडा,
उद्धि की गहराइयों में,
ऊँचे आसमान पर,
उत्तुंग शिखर पर ,
तेज चलेगा ।
नायक बनेगा,
खल नायक बनेगा.
निदेशक बनेगा,
जादूगर बनेगा ।
मंत्रवादी बनेगा,
ऋषि बनेगा ।
सन्यासी साधु संत बनेगा।
महाराजा बनेगा,
उपन्यास सम्राट बनेगा ।
वीर बनेगा,
कायर बनेगा ।
वीरंगना ,
वारांगना बनेगा ।
त्यागी बनेगा,
भोगी बनेगा ।
हवा महल बनाएगा ।
मन की कल्पना ,
मानव की अभिलाषा,
काल्पनिक सपना,
साकार होगा या निराकार,
चंचल मन लक्ष्य उपलक्ष्य के पीछे
दैडेगा,भागेगा,भोगेगा नहीं ।
चंचल मन मान भंग करेगा.
संयम् खोकर मान मर्यादा खो बैठेगा ।
जो मन को जीतेगा,महान बनेगा ।
काम,क्रोध,मद,लोभ से बचेगा ।
ज्ञानी बनेगा, बुद्ध बनेगा ।
युग युगों तक चमकता रहेगा ।
जितेंद्र बनेगा,संसार जीतेगा ।
एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै.
स्वचिंतक,स्वरचनाकार,सौहार्द सम्मान सम्मानकार,
तमिलनाडू का हिंदी प्रेमी,प्रचारक.
Friday, July 14, 2023
उसने कहा था
அவள் சொன்னாள்.
उसने कहा था।
राम समान मर्यादा पुरुषोत्तम था करुप्पन । वह अपने नाम तमिल भाषा में होने से अपने को निम्न मानकर दुखी होता था।
उसका दोस्त कृष्ण था। कृष्ण का अर्थ काला था। तमिल में एक गाना है ,कौए के काले पंख में तेरा काला रूप दिखता है नंदलाला।
पर श्याम नाम आदरणीय है।
करुप्पन नाम शुद्ध तमिल होने पर भी सूचित अनुसूचित जातियों का भाव आ जाता है।
कुछ तमिल के अति प्रेमी
तमिल का नाम रखते हैं, फिर भी
तामरै जिसको कमल,सरोजा,पद्मा,नीरजा, पंकजा जलजा कहते हैं, वही नाम सुनने में आता है,तामरै तमिल शब्द कम।
करुप्पन बहुत चिंतित था।
प्रेम जो है मनुष्य में अनजान में हो जाता है। नौकरी के साक्षात्कार के समय, दूकान में, यात्रा में।करुप्पन को भी एक प्रेस मिटा मिल गयी। उसका नाम तो पुष्पलता। तमिल के कुछ लोग पूंकोडि नाम रखते हैं।
आजकल तो अंग्रेज़ी का माहौल है न? सब पुष्पलता को पुष पुष कहते हैं। उसकी सहेलियाँ पुष पुष पुकारते थे। पुष्पलता को अपना नाम पसंद नहीं था। करुप्पन को उसके नाम से घुटन था व पुष्पलता को अपने नाम से।
इत्तिफाक से दोनों एक कंपनी के साक्षात्कार के समय मिले।
प्रेम कैसे ? कब? किससे होगा पता नहीं। दो ही मिनट की मुलाकात में दोनों में स्वर्ग पाताल की बातें हुई। व्यक्तिगत बातें भी।
तब पता लग चला कि करुप्पन को अपने नाम से नफ़रत है।
पुष्पलता को अपने नाम से।
पुष्पलता न जाने करुप्पन नाम से प्रभावित थी।
तभी दोनों में भाषा की चर्चा हुई। तब तमिल के प्रति की क्रांति की बातें हुई।
तमिल के बड़े बड़े भक्तों ने अपने संस्कृत नाम को शुद्ध तमिल में बदल दिया।
ये अपने को पच्चैत्तमिऴन कहते हैं। अर्थात हरा तमिऴन। Ever green तमिऴ भाषी।
पुष्पलता ने कहा --"करुप्पन, तेरा नाम संस्कृत में कृष्णन, श्याम है। पर मुझे तो करुप्पन ही पसंद है।
तब मजाक में करुप्पन ने कहा--करुप्पाई। करुप्पाई।
न जाने पुष्पलता को यह करुप्पाई शब्द अति पसंद आ गयी। भगवान विष्णु के मंदिर के आगे पतिनेट्टाम् करुप्पाई मंदिर प्रसिद्ध है।
पुष्पलता ने कहा --हमआरआ कुल देवता पतिनेट्टाम् पड़ा करुप्पाई है।
आहा! मेरे घरवाले करुप्पणसामी को कुल देवता कहते हैं।
हर साल हम अपने कुल देवता की आराधना करते हैं।
हमारी शादी हुई तो पुष!
तुरंत पुष्पलता ने कहा --पउष, पुष मत कहो। मुझे पुष करोगे । नहीं, करुप्पाई पुकारो। करुप्पाई में आत्मीयता है।
तब दोनों एक साथ कहने लगे --"करुप्पन, करुप्पाई।
यह नयी क्रांति नहीं,नाम को तमिल में बदलना।
दोनों अपने अपने घर चले।
पुष्पलता अकेली बैठे अपने प्रेमी की आवाज़ की याद आयी ऐसा लगा --करुप्पन पुकार रहा है --"करुप्पाई करुप्पाई।".
यहाँ करुप्पन अकेले आनंद विभोर हो रहा था ,पुष्पलता को करुप्पन पसंद आ गया और करुप्पाई भी।
यह वह दोनों सोच रहे थे -"उसने कहा था।
स्वरचित कहानी।
स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक
एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई।
ஆசாரக் கோவை---आचार संग्रह - तमिल ग्रंथ
ஆசாரக் கோவை---आचार संग्रह - तमिल ग्रंथ
तमिल संघ काल के अंधे काल अर्थात संघ काल के परिवर्थित अंतिम समय में कई ग्रंथों की रचनाएँ लिखी गयी हैं ।
उस समय के ग्रंथों में कवि कयत्तूर पेरुवायन् मुल्लियार रचित 'आचारक्कॊवै' अर्थात "आचार संग्रह"मानव जीवन में मानवता लाने अति श्रेष्ठ ग्रंथ है ।इनमें इन्सान में इन्सानियत लाने,इन्सान में ईश्वरत्व लाने के संपूर्ण गुणों का जिक्र किया गया है ।
अच्छी चालचलन और अनुशासन बनाये रखने का मार्गदर्शन मिलता है ।
ஆரோயின் மூன்றுமழித்தானடி யேத்தி
யாரிடத்துத்தானறிஈ்தமாத்தரெயானாசாரம்
யாருமதியவறனாயமற்றவற்றை
யாசாரக்கோவையெனத்தொகுச்தான்றீராத்
இருவாயிலாயஇிரல்வண்கயச் நூர்ப் *
பெருவாயின்முள்ளியென்பான .
आरोयिन मून्रुमलितंतानडि येत्ति यारिडत्तुत्तानऱि ईतमात्तरेयानाचारम्
यारुमतिनायमट्रमट्रवट्रै याचारक्कोवैयेनत्तोकुच्चान्ऱीरात्
तिरुवायिलायतिऱल्वन कयत्तूर्प पेरुवायन मुल्लियेन्बान्।.
भावार्थ ----ः भगवान शिव ने शत्रुओं के लिए दुर्लभ तीन दीवारों को (अहंकार,काम,लोभ ) को अपनी हँसी में ही चूर्ण कर दिया ।ऐसे भक्तवत्सल के चरण-कमलों को वंदना करके आचार संहिता में जितनी बातों का मेरा ज्ञान है,उन सभी को संग्रह करके आचारक्कोवै
नामक ग्रंथ को एकत्रित करके तिरुवण् कयत्तूर वासी पेरुायन मुल्लियार ने लिखा है ।
----------------------------------------------------------------------
ग्रंथ कविताएँ --१.
बडों के द्वारा बताये गये आठ आचरण
१. दूसरों के द्वारा हमको किए गए उपकार को समझना ,कृतज्ञता से जीना ।
२. दूसरों के द्वारा प्राप्त बुराइयों को सह लेना व भूल जाना
३.मधुर सुखप्रद शब्द बोलना ४.जीवों को बुराई न करना ५.शिक्षा में सुजान की बातें सीख लेना,ज्ञान ग्रहण करना
६.सत्संग में रहना ७.जग व्यवहार के साथ चलना ,परोपकार करना ८.ज्ञान संपत्ति बढाना आदि आठ अच्छे आचरण बढाने के मूल कारण स्वरूप होते हैं ।
-----------
२. अपने आचरण अनुशासन को जो अक्षरसः पालन करते हैं,उनको निम्नलिखित आठ सुख साधन मिल जाते हैं ----
१.उच्च भद्र कुल में जन्म लेना २.दीर्घ आयु पाना ३.धनी बनना ४.सुंदर रूप प्राप्त करना ५.भू संपत्तियाँ पाना ६.वाणी की कृपा
७.आदर्श उच्च शिक्षा ८. नीरोग काया --आदि.
-------००००००००------------------
३. कवि पेरुवायन किल्लियार का कहना है कि बडों को दक्षिणा देना,यज्ञ करना,तप करना,शिक्षा प्राप्त करना आदि सुचारू रूप से
नियमानुसार करना चाहिए।नहीं करेंगे तो धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष नहीं मिलेगा।
४.ज्ञानियों ने सुजीवन जीने के लिए निम्न आचार -व्यवहार का अनुसरण करने के नियम बताये हैं--
१.ब्रह्म मुहूर्त में उठना, २.दूसरे दिन के दान-धर्म कार्यों को सोचना, ३.आय बढाने के कर्म कार्यों पर सोच -विचार करना ,४.माता-पिता का नमस्कार करना आदि ।
५.धर्म निष्ठावान गाय, ब्राह्मण,आग,देव,उच्च सिर आदि को स्पर्श न करेंगे ।
६. माँस,चंद्,सूर्य ,कुत्ते आदि देखना वर्जित हैं ।
Thursday, July 13, 2023
திருவள்ளுவர் திருக்குறள்.तिरुक्कुरल
ஈன்ற பொழுதில் பெரிதுவக்கும் தன் மகனைச் சான்றோன் எனக் கேட்ட தாய்.
तमिऴ विच्छेद और हिंदी अर्थ _
ईन्र पोऴुतिल --जन्म लेते समय
पेरितुवक्कुम --अति प्रसन्न होनेवाली
तन मकनै --अपने बेटे को
चान्रोन् -- पंडित, विद्वान,शिक्षित।
केट्ट --सुनी
ताय--माँ। திருவள்ளுவர் திருக்குறள்.
+++++++++++++++++
एक माँ अपने पुत्र को जन्म लेते समय अधिक खुश होती है।
उस से तब अधिक खुश होती है,
जब लोग कहते हैं कि वह बहुत बड़ा विद्वान हैं।
अनुवादक ----एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।
Monday, July 10, 2023
दान तो गुप्त दान होना चाहिए।
दान तो गुप्त दान होना चाहिए।
यह दान किसके लिए उपयोगी होगा।
कलियुग में बहुत बड़ा पाप निजी संस्थाओं को, निजी मंदिरों को दान देना, भिखारियों को भीख देना एक भ्रष्टाचारी समाज का विकास करना है।
राजनैतिक दलों को दान किसलिए देते हैं?
जयललिता ने सोने का घड़ा दान दिया।
क्या हुआ?
चक्रवर्ती दशरथ ने बड़ा यज्ञ किया। चारों पुत्र उनके नहीं।
पुत्र शोक में मृत्यु।
तीन राजकुमारियों को जबर्दस्त ले आकर विचित्र वीर्य से शादी रचाया। उस भीष्म पितामह का अंत कैसे हुआ।
एकलव्य का अंगूठा कटवाकर द्रोण ने गुरु धर्म तोड़ा छोड़ा।
जिस शिष्य की तरक्की के लिए
अन्याय किया, वही शिष्य निहत्थे गुरु का वध किया।
एकलव्य को अंगूठा ही,
अधर्मी गुरू का सिर अर्जुन द्वारा।
कर्म के कारण देवताओं का नाम कलंक।
भिखारी करोड़पति ।
भिखारिन अचानक जगत प्रिय गायिका।
ईश्वरीय दंड व्यवस्था अति सूक्ष्म।
एस.अनंतकृष्णन,
स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक।
मैं तो साधारण हिंदी अध्यापक।
मालामाल व्यापारी या सांसद विधायक मंत्री नहीं।
अम्मा जयललिता का हवन यज्ञ बेकार।
यही व्यवहारिक बात।
मेरे विचार तरंगें
सादर।
विनम्र।
सविनय।
नमस्ते।
चरण कमल छूकर नमस्कार।
इन नमस्कार में
चम्मचागिरी नमस्कार।
स्वार्थ के लिए।
सार्वजनिक हित के लिए।
आशीषों के लिए।
इन सब में बड़ा नमस्कार
मत के लिए।
पैसे देकर चरण छूकर।
इन राजनैतिक दलों के नमस्कार
एक ही बात हर चुनाव में
पर न उस वचन का पालन।
फिर नये रूप में पेय जल व्यवस्था।
सड़क ,मोरे बनाना।
आज़ादी होकर १५ आम चुनाव।
समस्या न हल।
ऐसे राजनैतिक सलाम
एक अद्भुत कला।
इस में जो पटू वहीं विधायक /सांसद।।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।
स्वरचनाकार, स्वचिंतक, अनुवादक।
मानव मन चिंतित,
वह अवश्य भी,
अनावश्य भी।
पालतू कुत्ता मर गया,
पालनहार दुखी।
पड़ोसी के लिए
अनावश्यक।
मेरे गुलाबी पौधा
सूख गया।
मेरे लिए वह सारे
सुखों को ले गया।
दुखी था,
मेरे परिवार के सदस्यों के लिए
अनावश्यक ही।
सब को यह है
अनावश्यक।
आवश्यक क्या?
अनावश्यक क्या?
अपनी अपनी चाहें।
चाह गयी चिंता मिटी मनुआ बेपरवाह।
जाको कछु न चाहिए,
वही शाहँशाह।। कबीर।
यह जक्की वासुदेव के लिए
पसंद नहीं,
उनका कहना सब को चाहो।।
अहं ब्रह्मास्मी शंकर का है तो
आत्मा परमात्मा अलग अलग।
श्री रामानुजाचार्य का।।
जितेंद्रियता भारतीय संतों की बात।
मिठाई खाना आवश्यक।
एक के लिए लड्डू अनावश्यक।
मैंने पूछा-लड्डू नहीं खाते?!!
लड्डू तो अति पसंद।
क्या करूँ, काशी गया,
पंडित ने कहा मन पसंद
खाद्य पदार्थ तजना है।
लड्डू अति मन पसंद।
खाना छोड़ दिया।
यह आवश्यक त्याग या अनावश्यक।
पंडित जी को यही कहना
कि काशी आये हो,
भ्रष्टाचारी छोड़ देने का
शपथ लो।।
रिश्वतखोरी न लेने का शपथ लो।
झूठ बोलना तज दो।
यही मेरे लिए आवश्यक है कसमें।
खाद्य-पदार्थ तजना अनावश्यक।
आवश्यक अनावश्यक
व्यक्ति व्यक्ति में भिन्न भिन्न।।
मेरा लिखना आवश्यक या अनावश्यक
बुद्धि पूर्ण या मूर्खता,
पाठकों को की अपनी अपनी मर्जी।
आवश्यक अनावश्यक
तमिल में अवसियम् अनावसियम् ।
बुद्धि और मूर्खता
तमिल में भी।
यह तुलना आवश्यक या अनावश्यक।
भारतीय एकता समझाने आवश्यक।
भाषा भेद में एकता दिखाना आवश्यक।
एस.अनंतकृष्णन ,
स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक।
दान तो गुप्त दान होना चाहिए।
यह दान किसके लिए उपयोगी होगा।
कलियुग में बहुत बड़ा पाप निजी संस्थाओं को, निजी मंदिरों को दान देना, भिखारियों को भीख देना एक भ्रष्टाचारी समाज का विकास करना है।
राजनैतिक दलों को दान किसलिए देते हैं?
जयललिता ने सोने का घड़ा दान दिया।
क्या हुआ?
चक्रवर्ती दशरथ ने बड़ा यज्ञ किया। चारों पुत्र उनके नहीं।
पुत्र शोक में मृत्यु।
तीन राजकुमारियों को जबर्दस्त ले आकर विचित्र वीर्य से शादी रचाया। उस भीष्म पितामह का अंत कैसे हुआ।
एकलव्य का अंगूठा कटवाकर द्रोण ने गुरु धर्म तोड़ा छोड़ा।
जिस शिष्य की तरक्की के लिए
अन्याय किया, वही शिष्य निहत्थे गुरु का वध किया।
एकलव्य को अंगूठा ही,
अधर्मी गुरू का सिर अर्जुन द्वारा।
कर्म के कारण देवताओं का नाम कलंक।
भिखारी करोड़पति ।
भिखारिन अचानक जगत प्रिय गायिका।
ईश्वरीय दंड व्यवस्था अति सूक्ष्म।
एस.अनंतकृष्णन,
स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक।
मैं तो साधारण हिंदी अध्यापक।
मालामाल व्यापारी या सांसद विधायक मंत्री नहीं।
अम्मा जयललिता का हवन यज्ञ बेकार।
यही व्यवहारिक बात।
Saturday, July 8, 2023
अंग्रेजी माध्यम भारतीय भाषाओं को पनपने न देगी
केवल हिंदी कैसे?
केवल तमिल?
यह तो कोलै वेरी.
ओय दिस कोलै वेरी?
जब तक केवल तमिल या
केवल हिंदी जीविकोपार्जन का
आधार न बनेगी,
तब तक भारतीय भाषाओं का
एक मात्र प्रयोग कैसे संभव।
हिंदी प्रचार सभा का आजकल
प्रमुख आय अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल।।
पैंतालीस मिनट हिंदी,
बाकी सवा पाँच घंटे अंग्रेज़ी।
मैं स्नातकोत्तर
हिंदी अध्यापक था,
चार हजार की छात्र संख्या,
केवल १०० हिंदी छात्र।।
यही आ सेतु हिमाचल की दशा।
वह भी भारतीय आज़ादी के बाद।
मैं केवल हिंदी प्रचार में
भूखा प्यासा रहा।
अंग्रेज़ी माध्यम न तो
हिंदी ही नहीं तमिलनाडु में।।
दो हजार तमिल माध्यम स्कूल बंद।
एक गाँव में एक तमिल माध्यम बंद।
वहाँ पाँच अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल।
अंग्रेज़ी में लगाव नहीं,
आमदनी से लगाव।
भारतीय ब्राम्हण संस्कृत तजकर
अंग्रेज़ी के वकील डाक्टर बने।
आज़ादी के बाद उन्हीं का मंत्री मंडल।
अंग्रेज़ी माध्यम के छात्रों को
मातृभाषा कठिन लगती है।
ऐ,यूं,ही,शी, इट, दे --गेव।
Gave.
मैं ने दिया।नान कोडुत्तेन।
तुमने दिया। नई कोडुत्ताय।
उसने दिया। अवन कोडुत्तान।
अवळ कोडुत्ताळ।
अवर कोडुत्तार।
अवर्कळ कोडुत्तारकळ।
क्रिया का भूतकालिकक रूप।
Gave one word for all pronouns.
What a difficulty in Tamil.
मैं ने नहीं कहा! +२ के तमिल भाषी छात्र का कथन।
वह तीन साल की उम्र से अंग्रेज़ी माध्यम।
सरकार की नीति तमिल या हिंदी में तीस अंक। सी.बी.यस.सी स्कूल में।
बस शिक्षा नीति।
सोचिए।
मैं खुल्लमखुल्ला लिखता हूँ।
एस. अनंत कृष्णन।
स्वरचनाकार, स्वचिंतक,
मातृभाषा प्रेमी।
हिंदी और तमिलनाडु
हिंदी में दिव्य शक्ति,
भारतेंदु काल की खड़ी बोली।
आज बन गयी हिंदी।
संस्कृत की बेटी,
अब न रही तुलसी की भाषा।
न रही सूर की,मीरा की व्रज माधुरी।
दिल्ली,मेरठ,आख्या की डेढ़ लाख की बोली,
उसकी उम्र केवल 135.
बन गयी विश्व की दूसरी भाषा।।
तमिल कवि सम्राट कण्णदआसन ने
अपनी भारतीय भाषाओं की प्रशंसा में हिंदी के बारे में लिखा है--
हिंदी मोर नाचो,नाचो।
घमंड रहित नाचो।
भारत देश अपनाएगी।
कवि की बातें सत्य होगी ही।।
जनता में जागृति आ गई।
केंद्र सरकार उन्हीं है को प्राथमिकता देनी चाहिए जिसमें
सामान्य योग्यता के साथ हिंदी का प्रमाण पत्र हो।
जागना जगाना जगवाना हमारा काम है।
आज़ादी है के बाद ही अंग्रेज़ी मोह बढ़ रहा है।
यही चिंताजनक है।
जनता में जागृति आ गई।
केंद्र सरकार उन्हीं है को प्राथमिकता देनी चाहिए जिसमें
सामान्य योग्यता के साथ हिंदी का प्रमाण पत्र हो।
जागना जगाना जगवाना हमारा काम है।
आज़ादी है के बाद ही अंग्रेज़ी मोह बढ़ रहा है।
यही चिंताजनक है।
बढ़िया है।पर हिंदी जीविकोपार्जन भाषा तमिलनाडु में नहीं है।
भारत भर में अंग्रेज़ी का ही महत्व है। ऐ.टि। क्षेत्र में हिंदी प्रधान नहीं है। निजी संस्थाओं में अंग्रेज़ी का ही महत्व है। अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में ही हिंदी है। वेतन घर का किराया भी नहीं दे सकते।
तमिल की भी ऐसी ही गति हैं ,2000से ज्यादा तमिल माध्यम स्कूल बंद।
शिक्षा का पहला उद्देश्य जीविकोपार्जन।
इसीलिए अंग्रेज़ी सीखने लगे।
आजकल ब्राह्मण भी संस्कृत नहीं सीखते। अंग्रेज़ों के शासन काल में ही नौकरी के लिए लोग संस्कृत छोड़कर वकील क्लर्क बने। यह परिस्थिति आजतक चालू हैं। बीस अन्य विषयों के अंग्रेज़ी पारंगत काम करते हैं।
एक दो हिंदी अध्यापक।
हिंदी का विरोध अब कर्नाटक में भी शुरू हो गया है।
उच्च शिक्षा उच्च क्षय नौकरी जब तक भारतीय भाषाओं को नहीं मिलेगी, हिंदी की प्रगति नाम मात्र के लिए।
Friday, July 7, 2023
सुप्रभात ! ईश्वर सब की भला करें
सुप्रभात ! ईश्वर सब की भला करें । हिंदी प्रचारक अपनी कल्पना से कोई कहानी,कविता,लिखिए। जितना हो सके अपने सह प्रचारकों से हिंदी में बोलिए ।
ऐसी हिंदी का व्यवहारिक ज्ञान मिलने पर साहित्य दलों में या ब्लाग बनाकर लिखिए. अपनी हिंदी,अपनी शैली,अपना विधा । अपने प्रयत्न में भगवान की कृपा साथ दें ।
अपने मार्ग की रुकावटें दूर होने अमानुष्य शक्ति पर विश्वास रखिए ।
कबीर का यह दोहा याद रखिए---
जाको राखै साइयाँ,मारी न सकै कोय। बाल न बांका करि सकै जो जग वैरी होय ।
अपना कर्तव्य निभाइए । सद्यःफल के लिए अधर्म से बचिए ।
अधर्मियों को भगवान देख लेगा । हर सृष्टि ईश्वर की है तो धर्म और अधर्म भी ईश्वर की लीला है ।ज्ञानी मनुष्य को यथासंभव धर्म मार्ग पर ही चलना है ।
एस. अनंतकृष्णन.
Wednesday, July 5, 2023
नागरी लिपि परिषद
महोदय,
नागरी लिपि परिषद का आीवन सदस्य डाक्टर श्रीमती राजलक्ष्मी कृष्णन की प्रेरणा से बना।परिणाम स्वरूप पहली बार श्री हरिपाल सिंह जी के प्रोत्साहन से विशाखपट्टणम की दो दिवसीय संगोष्ठी में पहली बार भाग लेने का स्वर्ण अवसर मिला । पहली बार विषयांतर रहित संगोषठी में भाग लेने का अवसर मिला।
अतिथिसत्कार में आवास,खानपान,मंच सम्मान, प्रति भागियों के नाम लिखित बोर्ड संयोजकों के श्रद्धा की प्रत्यक्ष झांकी देखी ।
२६-६-२७ के दिन ठीक ९.३० बजे सबेरे सबको श्री गोपालजी,राजभाषा प्रशासन सहायक ने आदर पूर्वक यथास्थान बिठाया।
साढे दस बजे निर्धारित समय पर स्वागताध्यक्ष श्री ललन कुमार ,राजभाषा महाप्रबंधक ने सरस्वति वंदना केबाद सबका स्वागत भाषण दिया । फिर मुख्य अतिथि श्री अतुल भट्टजी,अध्यक्ष ,सह प्रबंध निदेशक आर.ए.यन.यल ने नागरी लिपि दो दिवसीय संगोष्ठियों के उद्देश्य और नागरी लिपि के महतव को समझाया।
मान्य अतिथि प्रो.पूर्ण सिंह डबास ,पूर्व आचार्य बीजिंग विश्व विद्यालय .चीन ने चित्रलिपि की तुलना में नागरी लिपि की वैज्ञानिकता बताकर विश्व की सारी भाषाओं को सही उच्चारण सहित लिखने का सामार्थ्य नागरी लिपि में ही है। विशेष अतिथि श्री सुरेश चंद्र पांडे निदेशक ,कार्मिक ने भी संगोषठी के लक्ष्य और राजभाषा के महत्व पर जोर दिया ।श्री हरिसिंह पालजी ,महामंत्री ,नागरी लिपि परिषद ,नई दिल्ली ने
नागरि लिपि परिषद के उद्देश्य,अगजग में उस लिपि को अपनाने की संभानाओं की राहे बतायी ।
नागरी लिपि परिषद द्वारा प्रकाशित किताब का लोकार्पण किया ।
चाय विरम के बाद प्रो.शहाबुद्दीन शेख नियाज ,पूर्व आचार्य,पूणे विश्व विद्यालय की अध्यक्षता में डा. कृष्णबाबू ने भारतीय लेखन पद्धति के विककास पर कहा कि बौद्ध धर्म के प्रचार -प्रसार में ब्रह्मी, प्राकृत लिपि के शिलालेख मिलते हैं । कृष्ण बाबू ने दर्शकों से अंतर्क्रियाओं से दर्शकों से सवाल करके समझाया । ब्राह्मणों द्वारा नागरीी लिपि का विकास हुआ ।डा.सी.एच. निर्मला नेवी चिल्ड्रन स्कूल ब्रह्मी लिपि ,खरोष्टि,प्राकृत ,कुटिल लिपियों का परिचय देकर नागरी लिपि का महत्व समझाया।
भोजन विराम के बाद श्री हरिराम पंसारी ,सेवा निवृत्ति राजभाषा अधिकारी,भुवनेश्वर,प्रो.नागनाथ शंकर राव,कर्नाटक,श्री चवाकुल रामकृष्ण राव,दराबद करनाटक नागरी लिपि और तेलंगाना नागरी लिपि के विकास की संभावना पर प्रकाश डाले ।
तीसरा सत्र डाॅ. पूर्ण् सिंह डडबास ,दिल्ली की अध्यक्षता में काव्य गोष्ठी और सांस्कृतिक सध्या अति रचक ढग से हुई ।इसमें कविगण डा. पुष्पा पालल ,दिल्ली, श्री मोहन द्वि वेदी ,गजियाबाद,श्री जे.एस. यादव,श्रीमती सुधाकुमारी जुही ,विशाखपटटणम ,आदि ने अपने मधुर स्वर में कविता सुनाई ।
इंटर पास,गाँववाले उदासी, जेब भरा है तो सब सकारात्मक मोहन द्विवेदी की कविताएँ शिक्षा प्रद रही।
२८-६-२३ के द्वितीय दिवस केकार्य-क्रम डाॅ. हरिपाल सिंह,महासचिव,नागरी लिपि परिषद की अध्यक्षता में ठीक नौ बजे प्रारंभ हुआ । अध्यक्षीय भाषण में श्री हरिसिंह पाल ने कहा कि नागरी लिपि विश्व मान्य लिपि में परिणत हो रही है। अध्यक्ष भाषण के बाद श्री प्रभाकर मनोहर दिवेचा जी ,आरईयनयल ने यूनिकोड के महत्व और प्रयोग की विधियाँ बताई और कहा ज्ञात भाषा हो या अज्ञात भाषा अंग्रेजी में टंकण करने पर वह उसी भाषा के रूप में प्रकट होगा । यह यूनिकोड की विशेषता है।
फिर श्री गोपालजी ने अपने वक्तृत्व में कहा कि हिंदी के विकास में प्रांतीय भाषाओं के तत्सम और तद्भव शब्दों का योगदान है । तमिलनाडु में जो भी आते हैं ,वे तमिल भाषी बन जाते हैं । तिरुक्कुल, तिरिकटुकम्,विवेक चिंतामणि और कई ग्रंथ जैन मुनियों की देन है । तेलुगु और कन्नड भाषियों के शासन काल में भी तमिल साहित्य समृद्ध बनी । संस्कृत के विरोध दिखानेवाले शासक दल का चिन्ह उदय सूर्य है।
तमिलनाडु की राजनीति स्वार्थ है,पर जनता हिंदी पढना चाहती है।
चाय विराम के बाद श्री ललन कुमार ,राजभाषा महाप्रबंधक की अध्यक्षता में पंचम सत्र शुरु हुआ ।प्रशासनिक क्षेत्र में हिंदी प्रयोग, हिंदी पत्रों के जवाब हिंदी में ही देने की अनिवार्यता का उल्लेख किया गया ।
श्री हरिराम पंसारी ,राजभाषा अधिकरी (सेवा निवृतत)ने कहा कि देवनगी लिपि का उपयोग दिन दूनी रात चौगुनी गति से जटिलता से सरलता की ओर बढ रहा है। श्री रिजवान पाशा ,राजभाषा वरिष्ट प्रबंधक
ने कहा कि राजभाषा कार्यान्वयन अपनी अपनी मानसिकता पर निर्भर है ।
चवाकुल नरसिंह मूर्ति राष्ट्रीय नागरी सम्मान और नकद एक हजार से नागरी लिपि के सेवक और कविगणोको सम्मानित किया गया ।
अंत में खुला मंच श्री परन डबास की अध्यक्षता में कविगण डाँ.श्वेतारानी, दिल्ली पब्लिक स्कूल,उक्कुनगरम्, श्रीमती अपराजिता शर्मा ,कवि मोहन द्विवेदी के संगीत महफिल के हर्षोल्लास और प्रतिभागी प्रमाण पत्र विसर्जन के साथ सभा विसर्जित हुई।
दो दिवसीय कार्यक्रम मे आन लयन में १३५ प्रतिभागियों ने भाग लेकर अपने वक्तव्य और सेवा निष्ठा का परिचय दिया ।
डाॅ. अनिल शर्मा जोशी ,उपाध्यक्ष हिंदी शिक्षण संस्था,आग्रा ने अपने व्यस्त कार्य क्रमों के बीच आनलयन में अपने विचारों की अभिव्यक्ति करके नागरी लिपि और राजभाषा विकास पर प्रकाश डाला।डाॅ.Knlv .श्री कृष्णवेणी जी ,राजभाषा प्रशासन सहायक ने सब को धन्यवाद ज्ञापन प्रकट किया।