सोचना मेरा काम है,
विचारों की अभिव्यक्ति मेरी मानसिक चेतना है।
पसंद या नापसंद
पाठकों के ज्ञान पर,
विचार पर सोच पर निर्भर है।
स्वार्थ -निस्वार्थ
सद्यःफल प्राप्त
मानव को पक्षधर,
निष्पक्ष,
तटस्थ
बना लेता है।
सत्य बोलो -सब मानते हैं।
सद्यःफल,पक्ष वाद ,
एक तो चुप हो जाता है।
भय, लोभ घेर लेता है।
सत्य बोलने से कतराते हैं।
भ्रष्टाचार जानकर भी चुप।
हरिश्चंद्र भी नहीं,
हिरण्यकश्यप भी नहीं।
सिकंदर भी नहीं,
पुरुषोत्तम भी नहीं
आंभी भी नहीं।
नश्वर दुनिया।
कोई भी भूलोक में
शाश्वत नहीं है।
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