Monday, January 28, 2019

अज्ञानी!? (मु )



लिखो।  कुछ न कुछ।


नमस्ते। वणक्कम !
लिखो।  कुछ न कुछ।
वह कुछ का कुछ हो जाएगा।
  कुछ और    अर्थ निकलेगा ,
और और लोगों तक फैलेगा
कुछ और संदेश मिलेंगे।
और कुछ कल्पनाएँ  बढ़ेंगी।
कल्पना  सपना बनेंगी
सपना साकार होंगे।
और कुछ करेंगे
समाज हित राष्ट हित ,
पहुँचाएँगी उन सब में बाधाएँ
मज़हबी  नफरत और लड़ाइयाँ।
लड़ाई ईश्वर के नाम
कलह ,मानवता मर जाएंगी।
ईश्वर हैं ,पर   ईश्वर के नाम लेकर
लड़ाना भिड़ाना  बेचैनी का मार्ग।
ज्ञान चक्षु प्राप्त मनुष्य
ईश्वर को समझने में हो जाता
अज्ञानी अंधा।

        
             केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान  
                                  (picture )

                  CENTRAL INSTITUTE OF CLASSICAL TAMIL

                             ----सूक्ष्म ज्ञान जानना ज्ञान -------


                                     वार्षिक प्रतिवेदन
                            २०१६ (2016 )----२०१७ (२०१७ )


     केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान  
(मानव संस्थान  मंत्रालय , ,भारत सरकार के अंतर्गत के  विकास व उच्च शिक्षा विभाग का एक स्वायत्त संस्थान )
संख्या -४० ,(40 ),१०० (100 )फुट रोड ,तरमणि ,चेन्नई ,तमिलनाडु ,भारत -६०००१३ (600013 ). page -2 page -3 :-        केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान
           वार्षिक प्रतिवेदन   २०१६ (2016 )----२०१७ (२०१७ ) दृष्टि :- शास्त्रीय तमिल के विकास की सभी संभावित खोज अनुसरण के मार्ग का सेवा केंद्र। उत्पत्ति :

    केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान  मानव संस्थान  मंत्रालय ,भारत सरकार के अंतर्गत के  विकास व उच्च शिक्षा विभाग का एक स्वायत्त संस्थान है। भारत सरकार की निम्नलिखित प्रतिबद्धता के अधीन राष्ट्रीय न्यूनतम साझा कार्यक्रम के अंतर्गत तमिल को राष्ट्रीय मान्यता शास्त्रीय भाषा के नाम से भारत सरकार के गृह-मंत्रालय की संदर्भित सूचना सं. iv -१४०१४/७ /२००४-N १ -११ दिनांक १२-१०-२००४ द्वारा दी गयी है। शास्त्रीय तमिल को वृद्धि करने के लिए किये गए उत्तरोत्तर प्रयत्न के परिणाम स्वरुप मानव संसाधन विकास मंत्रालय के "केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान ,चेन्नै में स्थापित करने के प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्री मंडल ने ३०-१-१९ की बैठक में स्वीकृत दी है। तत्पश्चात मंत्री मंडल ने २० .२ .२००८ दिनांक को सन्देश -निर्णय की सूचना दी कि चेन्नै में केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की जाएँ। भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा पूरी तरह से वित्त पोषित स्वायत्त केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान का चेन्नै कार्यालय कामकाज करने शरू किया गया है। केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान का उद्देश्य केवल शास्त्रीय स्थिति ( शुरुआती समय से ६०० ई। पू। से ) पर ध्यान केंद्रित करना ,अत्यावश्यक मुद्दे उठाना ,पुरातन काल की विशिष्टता पर ध्यान केंद्रित करना आदि। शास्त्रीय तमिल और साहित्य पर अनुसंधान करने ,प्रमाण प्रस्तुत करने ,परिरक्षित करने ,शास्त्रीय तमिल के प्रलेखीकरण आदि के लिए सिवा चेन्नई के और कोई संस्था तमिलनाडु में या विश्व भर में नहीं है।

Sunday, January 27, 2019

भाषण (मु)



भाषण 
 सबको सादर  प्रणाम. 
 भगवान को धन्यवाद,
जिनकी कृपा से आज
आप के सामने बोलने का अवसर,
शब्द  शक्ति मिली है. 
जीवन तो  अर्थपूर्ण होना चाहिए.
अर्थ,यश,मान,अपमान,सम्मान तो
खोजकर जाने में जितना आनंद है,
 उससे सौगुनी आनंद अपने आप से मिलने में है.
 इस मंच पर आप  सब से मिलकर विचार प्रकट करने के मूल में
मोहनदास  करमचंद गांधी जी का  भविष्य वाणी है. 
उनके पहले राजाराम मोहनराय, दयानंद सरस्वती आदि
महानों ने भी हिंदी को  अपनाया. 
इनमें गाँधीजी  के पक्के अनुयायी 
आचार्य विनोबा ने हिंदी प्रचार के कार्य को
इतना महत्व दिया कि उनके सर्वोदय यज्ञ, भूदान यज्ञ
को लागू करने भारत भर के पद यात्रा में 
हिंदी को ही अपनाया. 
जहाँ भी वे भाषण देने जाते
हिंदी को  ही अपनाया.
उनके शिष्य भी पैदल यात्रा की आम सभाओं में
 हिंदी में ही भाषण देते.
दूरदर्शी   विनोबा ने   कहा कि  भारत की सभी भाषाओं की लिपि
एक होनी चाहिए.
वह देवनागरी लिपि होगी. 
लिपि ज्ञान एक हो तो पढना आ जाएगा.
सीखना आसान होगा.भारतीयों को एक करने में, 
आध्यात्मिक  साहित्य के आदान प्रदान में 
हजारों साल पहले संस्कृत ही संपर्क भाषा  रही. 
अतः कई हजार संस्कृत  शब्द  आ सेतु हिमाचल तक 
की भाषाओं में प्रचलित है. 
अतः भारतीय साहित्य के विकास  के मूल में 
संस्कृत  साहित्य  प्रधान रहा. 
तमिऴ साहित्य में  नीति ग्रंथ  की कई बातें 
संस्कृत के नीति ग्रंथ  के समान ही है. 
तमिळ के पंच महाकाव्य के नाम सब संस्कृत  शब्द हैं 
जैसे शिल्प+ अधिकार =शिलप्पधिकारम्, 
मणिमेखला मणिमेखलै जीवक चिंतामणि, कुंडल केशी, वळैयापति
 सब के सब संस्कृत. 
तिरुक्कुरळ के प्रथम कुरळ  में अकरम,  आदी  ,भगवान
तीन शब्द हिंदी में भी है. 
मैं इस चर्चा पर जाना नहीं चाहता
संस्कृत  या तमिल.
पर दोनों भाषाओं  में
समान अर्थ  में  हजारों  शब्द
 व्यवहार  में आज भी है. 
दिनकर, उदय सूर्य,  रवि, भास्कर, जय, विजय,  लता, ललिता, पंकज, सरोता, नीरजी, प्रेम, प्रेमा अजित
ऐसे ही संज्ञाएँ सब आ सेतु हिमाचल चल तक व्यवहार में है. 
बंद, घेरो,पताका,तोरण,विवाह,निर्वाह,निवारण, समाचार, 
यों ही हम कहते सोचते जाएंगे तो
मोहनदास करमचंद की दूरदर्शिता के समान अन्यत्र 
नेता नहीं है जिन्होंने भारतीय संपर्क  केलिए
हिंदी को माना, सुदृढ प्रचार  के लिए 
हिंदी विरोध प्रांत  की राजधानी  चेन्नई को चुना.
दक्षिण  भारत  हिंदी प्रचार  की स्थापना की. 
आज हम सब यहाँ एकत्रित हुए हैं तो
मूल में हिंदी, हिंदी  प्रचार में हमारी लगन. 
  यों ही मेरा भाषण होगा. 
  फरवरी महीने की सभा में  
 मुझे शीर्षक मुक्त भाषण  देने को बुलाया है. 
मन माना   शीर्षक,मनमानी बात नहीं करनी है. 
मौका दिया  ,धन्यवाद जी. 
ऐसी ही सोचते विचार करते
एक घंटे अपने  विचार  अभिव्यक्ति  करके
आप ने बुलाया है तो  अपना कर्तव्य  निभाऊँगा. 








.


Wednesday, January 23, 2019

खलनायक न हो तो... (मु )

खलनायक   न हो तो...
हमारा जन्म  केवल धन कमाने,
जमा करने, मर जाने के उद्देश्य  से नहीं हुआ,
कुछ राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय  विस्तृत काम के लिए  हुआ है.
 हम अपने नाते रिश्ते परिवार के लिए  ही जीना चाहते हैं.
परिवार  के लिए  जीना चाहते हैं.
कुछ लूटने के लिए  जीना चाहते  हैं.

 हमारा दिल संकीर्ण  हो जाता है.
   दुनिया की गतिविधियों  के देखने पर मुझे
 संसार में रहकर दूर एकांत में रहना अच्छा  लगता है.
 ईमानदारी  100प्रतिशत
ईमानदारी  केवल हरिश्चंद्र की

कहानी में हैं.
 रामावतार में नहीं, 
कृष्णावतार में नहीं,
कुरूक्षेत्र युद्ध धर्म युद्ध कहना
उचित है ही नहीं.

क्यों?   रामायण  की कहानी कैसी है?
 राम का व्यक्तिगत जीवन  में अशांति  के काले बादल.
कृष्ण को अपने प्राण बचाने की चिंता.
कुरु क्षेत्र  युद्ध  कर्ण   को कुंती
 प्रथम मिलन में ही

अपना परिचय  कर्ण को देती तो
महाभारत  कथा है ही नहीं  .
लडकियों को उठा  लाना  लाकर   शादी,

अवैध  संबंध,
बच्चे फेंकना,
नवजात शिशु  के साथ

निर्दय व्यवहार, 
कबीर तालाब के किनारे तो सीता भूमि के अंदर,
तुलसी की अशुभ नक्षत्र,
सीता का त्याग,
रावण का सीता मोह
संसार में खलनायकों का प्रभाव.

हिरण्य कश्यप का 
अपने पुत्र के साथ की गई क्रूरता..

खलनायक न तो संसार नहीं.
 आज मन में कई बातें.
..मुझे संसार  से बहुत दूर एकांत ही ओर ले जा रही है.

समाज के व्यवहार  देखना ही नाटक है.
चित्रपट  है.

अंत में यही निष्कर्ष 
सबहीं नचावत राम गोसाई.

तूफान (मु )

तूफान (मु )
तूफान केवल तेज वायु,
अति वर्षा  ही नहीं,बल्कि
विचारों की क्रांति भी
तूफान है,
हमारे मत,
हमारे कारण पद
हमारो कारण कर,
हमारे प्रतिनिधि  सांसद
हमारे प्रतिनिधि  वैधानिक
जब वादा पूरा नहीं करते,
पिछले चुनाव की वचन न पालन करते
वही वादा  फिर करते हैं नयी सी
उनके वाग्जाल  में न फँसना, फँसाना की क्रांति भी तूफान.
भारतीय  जब चुनाव के बाह्याडंबर
रिश्वत, काले धन, भ्रष्टाचार  को
जडमूल नष्ट करने की
क्रांति का तूफान न करते,  करवाते
तब तक दस लोगों के यहाँ
खोज  फल खबर के अनुसार
भारत की गरीबी  दूर होती.
सोचो विचारो गरीब, मध्य वर्ग के
वोट ही शासक का निर्णय करते.
विचारों का तूफान की जरूरत है.
स्वरचित स्वचिंचक यस. अनंतकृष्णन जी.

Tuesday, January 22, 2019

भक्ति के कारण (मु )

भक्ति के कारण (मु )

भक्ति तो अमीरों को लिए
बाह्याडंबर.
नास्तिकों के लिए
प्रदर्शनी.
भक्तों के लिए   अलौकिकता.
दुखियों के लिए आशा.
 भिखारियों के लिए पेशा.
चलते फिरते फेरी वालों के लिए
जीविकोपार्जन  .
आश्रम आचार्यों  के लिए  स्वरण सिंहासन.
राजनीतिज्ञों के लिए  मनोरंजन.
आदर्श  विज्ञान  ग्ञानियों के लिए
निस्पृह  जीवन.
आशा, शांति, संतोष के केंद्र.
स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन 

Sunday, January 20, 2019

नई ज़िंदगी (मु )


नई ज़िंदगी (मु )
नई सी जिंदगी घुलना लगी,
हाँ, प्यार, सेवा, जन कल्याण.
हिंसा का अवतार अशोक,
कलिंग के निर्दय युद्ध  के बाद
क्रूर अशोक  की जिंदगी में
 नई सी जिंदगी घुलना लगी.
 सिद्धार्थ  सुखी सिद्धार्थ
रोगी, शव, कोढी देख
दुखी   त्यागी संन्यासी  राजकुमार,
जिंदगी में इक नई-सी
जिंदगी घने लगी.
सिद्धार्थ  बुद्ध  बन
भारत के चार चाँद बन
जिंदगी में इक ऩई. सी जिंदगी
अगजग में चमककर घुलना लगी.
 थप्पड पडा दक्षिण  ईपत्रिका में
वह मोहनदास की जिंदगी में इक
नई सी जिंदगी  घुलने लगी.
बना विश्ववंद्य  महात्मा.
गांधी बनिया भूल
सब अपने नाम के साथ
खान  हो या ब्राह्मण  गांधी जोड
गांधी वंश को  छिपा जिंदगी में
 इक नई सी ज़िंदगी घुलना लगी .
नश्वर जग में रत्नाकर वाल्मीकि  बन
जिंदगी में इक नई सी रामायण
जिंदगी घुलना लगी.
जिंदगी नहीं हाडमाँस के तनसे
लिपटकर रहना, वह तो नश्वर
आँखें  लाल हुई पत्नी को वचन
तुससीदास को अवधि के शशि बनाया.
 महानों की  जिंदगी के अध्ययन  से
कइयों की जिंदगी  में
इक नई जिंदगी घुलना लगी.
स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन 

छंदबद्ध कविता -निकली यह सांत्वना.(मु )

सब मित्रों  को सप्रेम प्रणाम.
सब को बहुत बहुत धन्यवाद.
कविता नियमानुसार  कुछ
लिखने के प्रयास में
निकली  यह सांत्वना.
**************
छंदबद्ध  कविता -निकली  यह सांत्वना.(मु ) मात्रा गिना ,
शब्द खोजा ,
समय तो हुआ
 बेकार.
मन के विचार 
प्रकट में
छंदबद्ध 
खोजना बेकार.

दोहा  ,चौपाई शब्द
कोई स्नातकोत्तर,  शोधार्थी  न करते.

मन लगाता नव कविता  है कूँ में.

ईश्वरीय  देन कविता,
जैसे आदी कवि, तुलसी, कबीर
तपस्वी, अनपढ की रचना,सतसंग
बने अमर सूर सूर तुलसी शशि.

 पढ बन जाते स्नातक स्नातकोत्तर.

तमिल कवि कण्णदासन, वर कवि भारती सम
न कवि बना स्नातक स्नातकोत्तर  डाक्टरेट.

उपाधियां पाना अन्यों की रचना खा ,
कै करना .
जग विख्यात  कोई आविष्कर्ता,
 धनी  आदि ने न पायी
उपाधी.
चायवाले  की चतुराई  न स्नातकोत्तर  को.

तमिलनाडु  के शिक्षा  मंत्री एम. ए.,
मुख्य मंत्री करूणा, यम.जी.आर,जया  न स्नातक.
सोचते विचारे पता चलता
सबहीं  नचावत राम गोसाई.
  माफ करना  मैं हूँ
 अधजल गगरी छलकत जाय.
  वेतन पाने पाया एम. ए,
 वेदना में सांत्वना ऐसा बकना -संभलना.
स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

Saturday, January 19, 2019

प्रेम प्रस्ताव. (मु )

सबको नमस्कार.
संचालक  को नमस्कार.

शीर्षक :-
प्रेम प्रस्ताव :
जब मैं बच्चा था
 तभी लड़कियों से
बोलना मना ू.
दादाजी कहते,
लडका लडकी
बात करना मना.

आज प्रेम  प्रस्ताव  के लिए
न कबूतर, न हंस.
सीधे मिलना,  प्रस्ताव  रखना,
न मना तो उच्छवास.
पत्र लिखना पुराना हो गया.
मोबाइल है सीधे मुख देखने भय है
तो मोबाइल में बुलाना.
सरलतम प्रेम प्रस्ताव.
जूतों का मार सहज.
गाली तो मधुर.
अंग्रेज़ी  शिक्षा,  लव लौ  .
केवल प्रस्ताव  रखने साहस चाहिए.
मोबिल चाहिए.
अमीरी का प्रस्ताव
गरीबी का प्रस्ताव
सब कुछ  आसान.
स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

खुदा की परेशानी (मु )

खुदा  की परेशानी (मु )

रहम बेरहम के लोग.
अगजग में  हैं तो
किसका कसर.
खुदा?
मनुष्य  को   बुद्धि  देकर
खुदा खुद  परेशानी में.

Thursday, January 17, 2019

हिंदी प्रचार (मु )


हिंदी प्रचार (मु )
हम ने पढी है हिंदी, 
दादा, नाना, नानी, दादी
जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में
सक्रिय भाग लिया, 
और गाँधीजी की हर बात को
अक्षरशः पालन किया. 
आजादी के बाद को नेता
अंग्रेज़ी के पटु, प्रवीण, 
विलायत की डिग्रियाँ,
हिंदी विरोध, 
इन्होंने हिंदी के विकास के लिए 
आम जनता में प्रचार करने 
कुछ नहीं किया, 
तमिलनाडु के प्रचारक 
जीविकोपार्जन में पैसा कमाने 
स्वेच्छा से हिंदी प्रचार में लगे हैं 
जिनसे हिंदी परीक्षार्थी संख्या बढी. 
पर केंद्र राज्य सरकार का समर्थन नहीं. 
केंद्र सरकार के हिंदी अधिकारियों के वेतन 
और तमिलनाडु के प्रचारक का त्याग 
किसी को पता नहीं. 
आजादी के सत्तर साल में 
प्रतीकों द्वारा ही हिंदी का विकास हुआ. 
प्रबोध, प्रज्ञा, प्रवीण के द्वारा 
कितने हिंदी कर्मचारी पता नहीं, 
कई लाख करोड आराम से पानेवाला वर्ग. 
पर प्रचारक 
चालीस छात्रों को परीक्षा में बिठाने
कितना कष्ट उठाये हैं, 
खुद दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के 
चुनाव जीते प्रतिनिधि नहीं जानते. 
वे आमदनी बढाना बी. एड, एम. यह, 
अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल मांगी ध्यान देने लगे हैं
प्रचारक को प्रोत्साहन देते
कमिशन एजंट का, 
उनसे, छात्रों से वसूल कर 100 करोड की इमारतें, 
न पंरचारकों के जीविकोपार्जन या आर्थिक सहायता के लिए 10 करोड की पूँजी. 
इस पर सवाल किया तो 
मुझपर व्यंग्य. 
सोचिए, और सेवा सच्चे प्रचारकों को 
कमिशन एजंट न बनाना. 
यह हिंदी प्रचार पवित्र क्षेत्र 
अपवित्रीकरण में न लगना.

Saturday, January 12, 2019

सबहीं नचावत रामगोसाई (मु)

सबको सविनय सादर प्रणाम।

आज के चिंतन
आस्तिक चिंतन
भगवान के बारे में कितने विचार ?
है कि नहीं ?
प्रत्यक्ष दिखा सकते हैं ?
सचमुच भगवान दयालू है ?
हीरे के मुकुट पहनानेवाले
भाग्यवानों के साथ है तो
दुखी लोगों के साथ कौन है ?
उनकी सृष्टियों में भेद भाव क्यों ?
अमीर के यहाँ जन्म लेने से
मानव सुखी है क्या ?
गुरु दक्षिणा देने से ज्ञान मिल जाता है क्या ?
ज्ञानी सब अमीर है क्या ?
गुरु के स्मरण और अभ्यास से
अंगूठा दान देने का छल-कपट।
राजकुमार सिद्धार्थ दुखी ,
सर्वस्व त्यागकर अमीरी।
धन ,नौकर चाकर पद
आदि से सुख नहीं।
महाराज दशरथ दुखी ,
कर्म फल पुत्र शोक।

गरीब के यहाँ जन्म लेने से दुखी है क्या ?
मैं कभी कभी देखता हूँ
फुट पात का बच्चा
अंतर और बाह्य मन से
पवित्र हँसी हँसते हैं।
अमीर के बच्चे केवल हँसने के लिए
डरता है , हँसने बराबरी देखता है.
मान -अपमान की चिंता करता हैं।
स्वस्थ शारीर के गरीब
दीर्घ रोगी के अमीर
बुद्धि के गरीब ,
दिल से गरीब ,
आचार व्यवहार में गरीब ,
मान-सम्मान में गरीब
सभी में गरीबी ही देखते हैं।

धन बिन बड़े पद ,
धनी के पद का
प्रयत्न असफल।
चुप कोने में पागल सा बैठे
चिथड़े के सिद्ध पुरुष का सम्मान।
अमानवीय अपूर्व सृष्टियाँ
हर बात मानव ज्ञान से पारकर
घटनाएँ ,देख समझ ,
अंतिम काल में
भगवान को नास्तिक भी
मान ही लेता है.
भेद भाव की सृष्टि कर
तमाशा देखने में सानंद होते सर्वेश्वर।
उनको समझने के ही प्रयत्न में
बिना समझे ही हो जाता जीवन अंत.
सार्थक -निरर्थक जीवन में
मनुष्य का प्रयत्न कम।
सर्वेश्वर का हाथ बड़ा.
स्वरचित ,स्वचिंतक यस.अनंतकृष्णन

विवाह का विवाद (मु )

तमिलनाडु  में तो विवाह के दिन,
मंगल सूत्र  दामाद वधु के गले में
बाँधते  तक तनाव ही तनाव।

दहेज का बोझ,
दो दिन की  शादी
अवकाश ग्रहण करने के बाद भी
कर्जा चुकाने  दौड धूप।

विवाह कितना  कौतूहल
उतना मध्य वर्ग  के लिए  नहीं।

मैं बाहरी हँसी,
भीतरी रुदन
अभी याद आती,
रीढकी हड्डी।

कुर्सी  की तरह खरीदना.

कितनी  प्रौढ कन्याएँ,

जवहरव्रत का देश

कितने प्रौढ वर.

विवाह का आनंद
अंबानी को भी नहीं
बेटी की विदा में बहे आँसू.

बहू की बिदा अलग कहानी.
विवाह की बातें
नकारात्मक  सकारात्मक
सम लिंग विवाह की भी चर्चा.

न्यायानुसार फैसले के मुताबिक
पर पुरूष पर नारी गमन
अपराध नहीं,
अब सीता होती तो राम जेल में.

एक विषय को छानबीन करें तो
फल दुःष्फल  दोनों पर विवाद.


यही विवाह दस साल की उम्र मे होता तो   ..

अब एक महिला डाक्टर ने बताया
शादी मेरी क्या हुई,
पैंतालीस  साल की उम्र में

केवल आनंद पक्ष कितने लोग,
दुखद पक्ष  के कितने लोग.

Friday, January 11, 2019

विवाह गीत (मु )

Anandakrishnan Sethuraman

 विवाह गीत 

सब शीर्षक समिति के मित्रों को नमस्कार। 

संचालक --कौशल वंदना जी 
शीर्षक --विवाह गीत 

विवाह गीत कुतूहूल ,
मार्ग दर्शक , ज्ञान प्रद 
धर्म प्रद रहा एक समय। 
स्नातक स्नातकोत्तर के अंग्रेज़ी ज्ञान ,
वैवाहिक गीत को केवल तन सबंध 


तलाक सबंध ,धन सबंध बना दिया।


विवाह के पुनित मन्त्र के समय 


इतना बोलते तब अपशब्द भी बोलते। 


यह भूल जाते लोग ,


एक ऐसा भगवान है 

तदास्तु कह कर देगा चौपट।


ब्राह्मण के मन्त्र से दूर 


प्रेम विवाह ,अंतर जातीय विवाह ,


अंतर मज़हबी विवाह 

मिलकर रहना,

 पसंद न तो छोड़कर जाना ,
ऐसा भी विवाह है चित्रपट पर 


एक साल /दो साल का ठेका विवाह 
क्या गाऊँ ?
विवाह गीत ,

अमेरिका गया ,
-पड़ोसिन ने साश्चर्य से पूछा -

चालीस साल से एक ही पत्नी ,
एक ही पति। 

अँगरेज़ी प्रभाव भारतीय विवाहों में 
सुनते हैं आज कल.
 भद्र कुल में भी तलाक समस्या।
क्या विवाह गीत गाऊँ ,

वैवाहिक सुधार -संयम गीत ज़रूरी है.

स्वयंचिन्तक  यस.अनंतकृष्णन  द्वारा स्वरचित। 

उमंग/खुशी(मु )

उमंग न तो
प्रयत्न नहीं,
प्रयत्न न तो
सफलता नहीं,
सफलता न तो
खुशी  नहीं.
खुशी नहीं तो उमंग नहीं.
नीरोग काया,
न तो दौड धूप  कैसे?
भारतीयों ने हजारों सालों
पहले मंदिरों में
गर्भ गृह के तीनों ओर
तीन शक्तियों की मूर्तियाँ  रखी हैं,
वे हैं  इच्छा  शक्ति,
ज्ञान शक्ति,
क्रिया शक्ति
तीनों नहीं तो
जिंदगी बेकार.
उमंग नहीं, खुशी नहीं.

स्वचिंतक  स्वरचित :-यस। अनंतकृष्णन 

Thursday, January 10, 2019

पाप-पुण्य (मु )

पाप -पुण्य पर विचार करो।

पापी  के लिए पाप कार्य में संतोष।

पुण्यात्मा  के लिए पाप कर्म से असंतोष।

भगवान की सृष्टियों  का अध्ययन किया  तो

बाघ  के  हिरन का शिकार
 उसके लिए
ईश्वरीय  देन।

इसे देख पछताते हुए
बकरी का  माँस  खरीदने जाने वाला
बुद्धि  जीवी मनुष्य  का काम
पाप  है  या पुण्य ?

सोचिये !
 अभिमन्यु का वध पाप है  तो
 छल से जयद्रध का  वध पुण्य कैसे ?
कर्ण  का वध  पाप है  या  पुण्य ?

नरसिंहावतार   पुण्य है ,
वध भी स्वीकार्य है।

द्रोण  का वध ?
यही निष्कर्ष पाप या पुण्य
सब के मूल में एक  अज्ञात शक्ति।

तभी कहते हैं ऋषी मूल ,
 नदी मूल न देखना।

सबहीं  नचावत  राम गोसाई।

इसमें पाप क्या ? पुण्य क्या ?

पैसे लेकर वोट देना पाप।
भ्रष्टाचारियों को वोट देना पाप।
भ्रष्टाचारियों को सांसद बनना -बनाना
सिरोरेखा  या  भाग्यवाद पता नहीं।

समझ में  नहीं आता
पाप क्या ?पुण्य क्या?

पाप -पुण्य
दोनों की सृष्टि का दोष
किसका है  ?
अनजाने में दुर्घटनाएं ,
मृत्यु ,रोग ,असाध्य रोग
पाप -पुण्य  का फल कहते ;
पर महानों की मृत्यु  अल्प  आयु में ?
बोलिये पाप क्या ?पुण्य क्या ?

स्वरचित ,स्वचिंतक :   यस. अनंतकृष्णन


Wednesday, January 9, 2019

आंडाल कृत तिरुप्पावै. 25,26(आ )

तिरुप्पावै... 25
आंडाल कृत  (दक्षिण  की मीरा.)
सरल भावार्थ.

एक के गर्भ में जन्म लेकर,(देवकी )

दूसरे के पुत्र  बन पले श्री  कृष्ण!(यशोधा)

कंस से छिपकर ही
उसके रखा भयभीत!
तेरेअनुग्रह   मिलें तो
तेरा यशोगान  करेंगी.
तेरी वीरता की प्रशंसा  में
गाती नहीं थकती.
तेरा दर्शन से
हमारे दुख भी होगा दूर.
हम आनंद मनाएँगे.

हिंदी अनुवाद  आंडाल तिरुप्पावै. 26.

हे कृष्ण  भक्तवत्सल!
नील पन्ने रंग के  तन,
दया पूर्ण मन!
 बोधि पत्ते पर शयनित  कृष्ण!
  मार्गशीर्ष
महीने के व्रत के लिए
जग विधारकशंख ध्वनी बजाओ।

हमें
 बजने  ढोल,
वाम तिरची  शंख,

तेरे प्रशंसक के साधु
मंगल दीप,
तोरण प्रदान कर अनुग्रह  कर.

यस. अनंतकृष्णन ,सरल  अनुवादक 

शिक्षित. पशु तुल्य जीवन (मु )

चित्र..
द्वार पर लडकी,
सडक पर साईकिल सवारी युवक.
आज शीर्षक  साहित्य विचार.

देखा,
तुरंत आये मन के विचार।


खिड़की  में से लडकी देखती,
लडका देखता दूर से.
राम खडा था नीचे,
सीता खडी  थी  ऊपर.

दोनों  की आँखें  हुई चार.

कुंती  भूलोक से देखती

सूर्य सुदूर से देखता कर्ण का जन्म.

मेरी कहाँ देखी पता नहीं ,
ईसा का जन्म.

सीता, आंडाल अनाथ मिली.
सनाथ तो सर्वेश्वर.

यह प्यार,
 यह आकर्षण
आज साहस लेकर द्वार पर ही
साईकिल की घंटी से हो जाता.
पर देखिए ,
जमाने के  अनुकूल
उड़ी चूम,दूर से.

 मंदिर या बाग में छिपकर
  मिलना अब तो दूर.

खुल्लमखुल्ला प्यार  करेंगे
हम दोनों.
इस दुनिया से न डरेंगे
हम दोनों.

स्नातक स्नातकोत्तर  के बढते बढते
पशु तुल्य आलिंगन चुंबन बहिरंग
आम जगहों में,
शिक्षा  संयम के बदले
जितेंद्रिय  के बदले
असंयम, अनियंत्रण पर
यह तो राष्ट्र, समाज, व्यक्तिगत  जीवन
सब को कर देते  बेचैन.
स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

क्या सच्ची भक्ति है? (मु)

चिंतन.

भारतीय क्यों दुखी,

विधर्म का विकास  कैसे?

विचारे सोचे बदल लों.

सर्वेश्वर  ही सब सुख और दुख के मूल में है.

जग में जगन्नाथ,
 यह अज्ञात  शक्ति,
अग जग में कई अपूर्व  बातें ,

मनुष्य बुद्धि  से बडी अमानुषीय शक्ति,
मनुष्य  जीवन का अध्ययन  करना है.
 सद्यःफल प्राप्त  करने मनुष्य को
अन्याय को देखकर,
समझकर ,जानकर भी
चुप ही रहना पड़ा है.
परिवार के सदस्य,
नाते  रिश्तों के लोग,
अपने ही दोस्त,
कोई अपराध करें तो
दुर्बल असहाय है  तो
तुरंत अखबारों में फोटो छपवाते हैं.

कोई मंत्री, कोई नामी अभिनेता, अमीर राजनीतिज्ञ  के
अपराध  मुकद्दमें के बहाने कैद कर फिर
जमानत में छोड़ देते हैं,
वे सुखी जीवन बिताते हैं.
अठारह साल, बारह साल तक मुकद्दमा  चलता रहता है.
बिना सिफारिश के मंदिर प्रवेश
 और भगवान की मूर्ति को निकट से
देखना संभव है?
मंदिरों के आसपास की दुकानें में
कितना ठगते हैं .
नकली रुद्राक्ष,
नकली चंदन की लकडी,
 मनमाना दाम
समझ में न आ रहा है,
तीर्थ स्थलों में
ठगों के बारे में स्थानीय पुलिस,
 निवासी, मंदिर के अधिकारी,
मंदिर के अंदर बाहर अन्यायों को
जानकर भी  चुप रहते हैं  यह क्यों?

धर्म परिवर्तन  के मूल में
सच्चे भारतीय चुप रहे.
विदेशी धर्मों के देवालयों की संख्या बढरहे हैं.
जनता, सरकार सब चुप.
 कारण सहन शीलता नहीं,
मंदिर संपत्ति  का अपहरण  ,
पहाडों को चूर्ण करना,
झीलें को मैदान बनाकर छोटा करना
और कई बातें हैं,
जो समाज की बुद्धि  को भ्रष्ट  कर देती.

 यही समाज भारत में.
सहनशील लोग .
पर विदेशी चालाक.
किसी मसजिद के बाहर अंदर
पेशाब का  दुर्गंध नहीं,

 पर  मंदिरों  में कूडा कचरा
पेशाब का दुर्गंध,
न टट्टी.
तमिलनाडु  का प्रसिद्ध  मंदिर,
 आय में बालाजी मंदिर  के बाद
अधिक आयवाले मंदिर पलनी.
वहाँ के बस स्टैंड  पर उतरते ही
बदबू. नाक बंद कर  चलना पड़ता है.

बालाजी मंदिर मेंदर्शन
 दो सेकंड,
बाकी बाजार  का  चक्कर।

त्रिकंबेश्वर गया तो नकली रुद्राक्ष
 कई आकार में असली रुद्राक्ष  कह बेचने को
स्थानीय लोग जानकर भी
पुलिस जानकर भी  चुप.

अतः भारतीय आध्यात्मिकता में

ईश्वर का भय नहीं..

स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

ईश्वर है या नहीं (मु )

चिंतन.

भारतीय क्यों दुखी,
विधर्म का विकास  कैसे?

विचारो सोचो बदल लों.

सर्वेश्वर  ही सब सुख और दुख के मूल में है.
जग में जगन्नाथ यह अज्ञात  शक्ति,
अग जग में कई अपूर्व  बातें होती हैं.
मनुष्य बुद्धि  से बडी अमानुषीय शक्ति,
मनुष्य  जीवन का अध्ययन  करना है.
 सद्यःफल प्राप्त  करने मनुष्य
अन्याय के देखकर, समझकर भी
चुप ही रहना पड़ा है.
परिवार के सदस्य, नाते  रिश्तों के लोग,
अपने ही दोस्त, कोई अपराध करें तो
दुर्बल असहाय है  तो
तुरंत अखबारों में फोटो छपवाते हैं.
कोई मंत्री, कोई नामी अभिनेता, अमीर राजनीतिज्ञ  के
अपराध  मुकद्दमें के बहाने कैद कर फिर
जमानत में छोड़ा देते हैं,
वे सुखी जीवन बिताते हैं.
अठारह साल, बारह साल तक मुकद्दमा  चलता रहता है.
बिना सिफारिश के मंदिर प्रवेश  और भगवान की मूर्ति को निकट से देखना संभव है?
मंदिरों के आसपास की दुकानें में कितना ठगने हैं
नकली रुद्राक्ष, नकली चंदन की लकडी, मनमाना दाम
समझ में न आ रहा है, तीर्थ स्थलों में
ठगों के बारे में स्थानीय पुलिस, निवासी, मंदिर के अधिकारी,  मंदिर के अंदर बाहर अन्यायों को
जानकर भी  चुप रहते हैं  यह क्यों?
धर्म परिवर्तन  के मूल में सच्चे भारतीय तप रहे.
विदेशी धर्मों के देवालयों की संख्या बन रहे हैं.
जनता, सरकार सब चुप. कारण सहन शीलता नहीं,
मंदिर संपत्ति  का अपहरण  ,पहाडों को चूर्ण करना,
झीलें को मैदान बनाकर छोटा करना और कई बातें हैं,
जो समाज की बुद्धि  भ्रष्ट  कर देती.

 यही समाज भारत में. सहनशील लोग पर विदेशी चालाक.
किसी मसजिद के बाहर अंदर पेशाब का  दुर्गंध नहीं, पर नंदिकेश में कूडा कचरा पेशाब का दुर्गंध, न टट्टी, तमिलनाडु  की प्रसिद्ध  मंदिर आय में बालटी के बाद अधिक आयवाले मंदिर पानी. वहाँ के बस स्टैंड  से उतरते ही बदबू. नाक बंदर चलना पड़ता है.
बालाजी मंदिर मेंदर्शन दो सेकंड, बाकी बाजार,.
त्रिकंबेश्वर गया तो नकली रुद्राक्ष  कई आकार में असली रुद्राक्ष  कह बेचने को स्थानीय लोग जानकर भी पुलिस जानकर भी  चुप.
अतः भारतीय आध्यात्मिकता मेंईश्वर का भय नहीं..
स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

Monday, January 7, 2019

तिरुप्पावै. 24(आंडाल )

दक्षिण  की मीरा आंडाल कृत तिरुप्पावै. 24
हिंदी में
 तीन पग में
दुनिया को नापा,
विकट रूप धरहर.
तेरा कमल पदों पर वंदना.
वामनावतार के चरणों की वंदना.
रामावतार चरणों की वंदना.
दक्षिण  श्री लंका के रावणासुर के संहारक,सीता के रक्षक,श्री राम को प्रणाम. तेरी वीरता को नमस्कार.
चक्रासुरके वधिक  को प्रणाम.
वत्सासुर वत्स के रूप में  आया तो
उसके लाठी बनाकर,
उसको कपित्तासुर पर फेंककर
संहार किये, ईश्वरावतार को प्रणाम.
तगोवर्धन  धारी श्री  कृष्ण  को प्रणाम.
तेरे हाथ के शूल को वंदन.
तुम्हारे  यशोगान  करने आये हैं,
दर्शन देन पधारकर,
अनुग्रह  की वर्षा करना.
तेरा चरण कमल में वंदन.

Saturday, January 5, 2019

तिरुप्पावै. 21

तिरुप्पावै --२१

आण्डाल  रचित

--     श्री कृष्ण को जगाती हुई  आण्डाल  गाती  है -

  नन्द महाराज के यहाँ   गो  धन असंख्य हैं ;
 गायें  दानी हैं।
स्वतः बर्तन  भर दूध देती हैं।
 ऐसे गोधनी   नन्द के पुत्र 
श्री कृष्ण!
नींद से जागो।
 वेदों ने तुम्हारे यशोगान गाये हैं।
 तुम परमेश्वर हो ;
हमारी पहुँच तुम तक नहीं  हो सकती ।
 जग को दर्शन देने तुम्हारा अवतार हुआ है।
तुम ज्योति स्वरुप हो ;जागो ;
जैसे शत्रु अहंकार छोड़कर ,
तेरे चरण में शरणार्थी बनते हैं ,
वैसे ही हम तेरे शरणार्थी बनेंगे।
हम भी तेरे यशोगान करने आयी हैं।
जागो ;दर्शन दो।
श्री विप्रनारायण  जी के तमिल व्याख्या का हिंदी अनुवाद ;
धन्यवाद महोदय !

अष्ट सिद्धि नव निधि की ज़रूरत.(मु)

नमस्ते जी.
आज के चिंतन.
जग देखा,
जग का व्यवहार देखा,
सत्य को दबकर ही रहना है,
नहीं तो दबाकर ही जीना है.
जगत मिथ्या है,
जग सच्चा नही.
सत्य का बाह्याधार,
आंतरिक जीत
सत्य से मिलना
अति कठिन.
सरसरी नज़र से रामायण काल से
आधुनिक काल तक अध्ययन  में
धर्म, सत्य स्थिर शांति.
बाकी सब अस्थायी सुख.
सद्य फल  का प्राप्ति में
मानसिक शांति, व्यक्तिगत  शांति
खो बैठता हैं मनुष्य समाज.
 धन के सामने ही सब झुकते.
पद के सामने ही झुकते
पद-और धन का संबंध
 धर्म को जाते पर
ईश्वरीय  शक्ति तमाशा देखती रहती.
सत्य धर्म ईमानदारी  की रक्षा
अपनी प्राकृतिक  देन से करती रहती.
सत्य धर्म को  रो रोकर
पनपने सादर जीने त्यागना का उपदेश  देती.
सत्य धर्म न्याय के बोली में आदर,
शक्ति में विपरीत.
बल को शक्ति को अष्ट सिद्धि  नव निधि की ज़रूरत.
न तोकोई महत्व नहीं जग में.

सिद्ध पुरुष --तमिल के सिद्ध पुरुष (मु )

सिद्ध पुरुष --तमिल के सिद्ध पुरुष के गीत
*******************************

 अभिभावक से रखा
 दुलारा नाम भी
"शव "लाश " के नाम से
बदल जाता है।
 मन पसंद खरीदे कपडे भी
"जीर्ण वस्त्र "का नाम  पाता।
कठोर परिश्रम से बचाये
दौलत भी
वारीश ही भोगते।
मिलकर रही पत्नी या पति भी
साथ ही नहीं मर जाते।
कठोर दौड़ धुप
 किये शरीर
 प्राण खोकर पड़ा है।
प्यार की बातें जिसने  की ,
जान तक तजने की बात किसने की ,
वह आज गूंगा बन खड़ा है  या खड़ी है.
जिसे तुमने अपना नाता -रिश्ता माना ,
वह दूर खड़ा है.
तुम जिस जग  से आये ,
वह शरीर ईश्वर  की देन  है ,
तुम  तो चंद  दिनों का राह गीर हो।

Friday, January 4, 2019

आज के चिंतन (मु )

आज के चिंतन.
विभिन्न  मिट्टी,
विविध गुण.
रेगिस्तान  के पौधे, जीव जंतु,
पहाडी जडी  बूटियाँ,
दक्षिण के धान,
उ त्तर के गेहूँ,
पाश्चात्य  वनस्पतियाँ.
वह भूमिगत गुण.
भारतीय  त्यागी आलसी,
बैठे राम नाम जपो,मिलेगा खाना.
संपन्न समृद्धभूमि.
लगभग विश्व के सभी देश आये,
खूब लूट, मंदिर की मूर्तियाँ  ले गये,
अपनी भाषा, अपने धर्म तोपे,
बेगार गुलाम बनाये, सब सहा,
फिर भी देश की अमीरी, मंदिर का खजाना,
स्वर्ण  कलश, स्वर्ण  कवच,
हीरो का मुकुट, अमूल्य हीरे पन्नों से भरे गोदाम.
ईश्वर रक्षित मेरी मातृभूमि स्वर्ग  तुल्य.
जय हिंद. जय जवान जय किसान.
त्याग में आनंद, भोग में दुख.
यही भारतीय  गुण,
अर्द्ध नग्न साधु बदला सुंदर का गुण.
सही ईश्वरीय शक्ति.

Thursday, January 3, 2019

पाठशाला,मधुशाला (मु )

सब को सादर प्रणाम.
वणक्कम.
भारतीयता, भारतीय  भाषाओं  को भारतीय  नहीं चाहते.
विदेशी चाहते हैं.
विदेशी  सब  को चाहते हैं,
सनातन धर्म को चाहते हैं,
अमेरिका चर्च तोडकर नहीं,
100करोड डालर में खरीदकर
मंदिर बनवा रहे हैं.
इंग्लैंड  के राजकुमार  हिंदु धर्म को
इतना चाहते  हैं कि चंदन तिलक फूल माला पहनाकर,
अगले जन्म हो तो हिंदू परिवार में जन्म लेना चाहते हैं.
  मगर भारतीय अर्धनग्न वस्त्र,
जनवरी पहली तारीख को नशे में नाचना,
तलाक मुकद्दमा, बलात्कार का समर्थन,
आदी में लगे हैं, 
चेन्नई  में मात्र सात नव वर्ष मनाने में मर गये, 270 घायल.

 अजब की बात है
तमिल हमारी जान, प्रेमिका, कन्या, माता ऐसे 
दुलारनेवाले नेता, संस्कृत के विरोधी  के देश में
तमिल माध्यम के स्कूल में पढने  नहीं आते.
विद्यार्थी  संख्या कम होने से सरकारी स्कूल बंद हो रहा है,
वहाँ तीन चार निजी अंग्रेजी  स्कूल खुल रहा है.
यल. के़जी  दान पचास हजार लेते हैं.
चार छात्र दान से भी कम
एक अध्यापक  का एक साल वेतन.
वह भी कई शर्त लगाकर.

 मातृभाषा  माध्यम स्कूल बंद, पर
मधुशाला अधिक.
जैसे मातृभाषा  माध्यम को

जनता बंद करने में सफल है तो
जनता मधुशाला की ओर न जाने पर
मधुशाला बंद हो जाएगी.
 जनता करेगी क्या?
 पैसेवालों को ही चुनाव जीत का
 मेरी मातृभूमि  में मेरा स्वप्न
दिवा या करके का पता नहीं.

तिरुप्पावै. 19,20

आंडाल रचित तिरुप्पावै. 19.
 भगवान होने पर
उनको भी लौकिक आनंद और नींद   जाने न देता.
आंडाल  कृष्ण के जगाती है...
 दीपस्तंभ  जल रहे हैं,
 हाथी दाँत के पलंग पर कोमल
 शय्या  पर
सो रहे हैं.
नप्पिननै के स्तनभार पर सिर रख लेटे हुए
प्रफुल्लित  छाती वाले कृष्ण  जागो.
 काजल लगाई नप्पिननै!  कब तक अपने पति को
सोने दोगी.पल पर भी कृष्ण  के संग से हटना न चाहती.
यह धर्म नहीं है. सहक्रिया भी नहीं है.
उनको  जगाने दो. हमको  भी दर्शन करने दो .

तिरुप्पावै  आंडाल 20
श्री  कृष्ण!  तुम कलियुग के देव हो.  तीन  तीस करोड दोनों के होम पर भी भक्तों के दुख दूर करने त्वरत गति से आकर रहनेवाले हरी!  जल्दी जागो.
तुम सशक्त हो., नेक हों, शतृको भयभीत करनेवाले हो, पवित्र हो. जाहो. स्वर्ण कलश सम स्तन, पतली कमर, मँगाया रंग के ओंठवाली नप्पिन्नै! तुम लक्ष्मी सम हो. तुमभी जागो.
  तुम हमें  चूडियाँ, पंखा, दर्पण आदि देकर तुम्हारे पति कृष्ण तो भी देकर, अनुग्रह  की वर्षा करो.
 पति पत्नी दोनों को प्रशंसा कर जगाना आँडाल की चतुराई भक्ति श्रद्धा स्तुत्य है

Wednesday, January 2, 2019

तिरुप्पावै.. 16, 17

तिरुप्पावै... 16.17

आंडाल अपनी  सभी सखियों को जगाने  के बाद  स्नान करके 
नंद के महल पहुँची. 
द्वार पालक से महल में प्रवेश  करने की  प्रार्थना  करती हैं. 
सुंदर तोरण वाले महल के द्वार रक्षक! 
हम ग्वाल बालिकाओं के लिए दरवाजा खोलो.

श्यामवर्ण के कृष्ण  ने हमें छोटा ढोल देने का वचन दिया है. उसे लेने के लिए  स्नान करके आयी हैं. उनको जगाने गीत गानेवाली  हैं. हमें अंदर जाने से मना न करना. महल का द्वार खेलकर हमें अंदर जाने दो.
आंडाल तिरुप्पावै.. 17.

पंद्रह गीत तक आंडाल 
सखियों को जगाती रही. 
सब नही चुकी हैं. 
श्री कृष्ण से मिलने महल के द्वार 
पहुँचकर नंद, यशोधा,श्री कृष्ण 
आदि को जगाती है... 
हमारे दानशील, नेता नंद जी! जागिए.
आपको वस्त्र, खाना, नीर आदि को 
दूसरों को इतना देते हैं, सब का मन संतोष हो जाता है.  आप उठाए. 
लता  सी कमर वाली 
हमारी  नेत्री यशोधाजी, 
मंगलदायक दीप सा उज़्ज़्वल  सूरतवाली  !आप उठिए! 
 आकाश फाड़कर  जग नापे 
देवों के नेता  श्री कृष्ण जागो.
स्वर्ण घुंघुरु पहने लक्ष्मी 
पुत्र बलराम जागो. 
तुम और  तुम्हारा  भाई  दोनों उठकर

हमको दर्शन दीजिए.