Wednesday, January 9, 2019

क्या सच्ची भक्ति है? (मु)

चिंतन.

भारतीय क्यों दुखी,

विधर्म का विकास  कैसे?

विचारे सोचे बदल लों.

सर्वेश्वर  ही सब सुख और दुख के मूल में है.

जग में जगन्नाथ,
 यह अज्ञात  शक्ति,
अग जग में कई अपूर्व  बातें ,

मनुष्य बुद्धि  से बडी अमानुषीय शक्ति,
मनुष्य  जीवन का अध्ययन  करना है.
 सद्यःफल प्राप्त  करने मनुष्य को
अन्याय को देखकर,
समझकर ,जानकर भी
चुप ही रहना पड़ा है.
परिवार के सदस्य,
नाते  रिश्तों के लोग,
अपने ही दोस्त,
कोई अपराध करें तो
दुर्बल असहाय है  तो
तुरंत अखबारों में फोटो छपवाते हैं.

कोई मंत्री, कोई नामी अभिनेता, अमीर राजनीतिज्ञ  के
अपराध  मुकद्दमें के बहाने कैद कर फिर
जमानत में छोड़ देते हैं,
वे सुखी जीवन बिताते हैं.
अठारह साल, बारह साल तक मुकद्दमा  चलता रहता है.
बिना सिफारिश के मंदिर प्रवेश
 और भगवान की मूर्ति को निकट से
देखना संभव है?
मंदिरों के आसपास की दुकानें में
कितना ठगते हैं .
नकली रुद्राक्ष,
नकली चंदन की लकडी,
 मनमाना दाम
समझ में न आ रहा है,
तीर्थ स्थलों में
ठगों के बारे में स्थानीय पुलिस,
 निवासी, मंदिर के अधिकारी,
मंदिर के अंदर बाहर अन्यायों को
जानकर भी  चुप रहते हैं  यह क्यों?

धर्म परिवर्तन  के मूल में
सच्चे भारतीय चुप रहे.
विदेशी धर्मों के देवालयों की संख्या बढरहे हैं.
जनता, सरकार सब चुप.
 कारण सहन शीलता नहीं,
मंदिर संपत्ति  का अपहरण  ,
पहाडों को चूर्ण करना,
झीलें को मैदान बनाकर छोटा करना
और कई बातें हैं,
जो समाज की बुद्धि  को भ्रष्ट  कर देती.

 यही समाज भारत में.
सहनशील लोग .
पर विदेशी चालाक.
किसी मसजिद के बाहर अंदर
पेशाब का  दुर्गंध नहीं,

 पर  मंदिरों  में कूडा कचरा
पेशाब का दुर्गंध,
न टट्टी.
तमिलनाडु  का प्रसिद्ध  मंदिर,
 आय में बालाजी मंदिर  के बाद
अधिक आयवाले मंदिर पलनी.
वहाँ के बस स्टैंड  पर उतरते ही
बदबू. नाक बंद कर  चलना पड़ता है.

बालाजी मंदिर मेंदर्शन
 दो सेकंड,
बाकी बाजार  का  चक्कर।

त्रिकंबेश्वर गया तो नकली रुद्राक्ष
 कई आकार में असली रुद्राक्ष  कह बेचने को
स्थानीय लोग जानकर भी
पुलिस जानकर भी  चुप.

अतः भारतीय आध्यात्मिकता में

ईश्वर का भय नहीं..

स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

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