हिंदी प्रचार (मु )
हम ने पढी है हिंदी,
दादा, नाना, नानी, दादी
जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में
सक्रिय भाग लिया,
और गाँधीजी की हर बात को
अक्षरशः पालन किया.
आजादी के बाद को नेता
अंग्रेज़ी के पटु, प्रवीण,
विलायत की डिग्रियाँ,
हिंदी विरोध,
इन्होंने हिंदी के विकास के लिए
आम जनता में प्रचार करने
कुछ नहीं किया,
तमिलनाडु के प्रचारक
जीविकोपार्जन में पैसा कमाने
स्वेच्छा से हिंदी प्रचार में लगे हैं
जिनसे हिंदी परीक्षार्थी संख्या बढी.
पर केंद्र राज्य सरकार का समर्थन नहीं.
केंद्र सरकार के हिंदी अधिकारियों के वेतन
और तमिलनाडु के प्रचारक का त्याग
किसी को पता नहीं.
आजादी के सत्तर साल में
प्रतीकों द्वारा ही हिंदी का विकास हुआ.
प्रबोध, प्रज्ञा, प्रवीण के द्वारा
कितने हिंदी कर्मचारी पता नहीं,
कई लाख करोड आराम से पानेवाला वर्ग.
पर प्रचारक
चालीस छात्रों को परीक्षा में बिठाने
कितना कष्ट उठाये हैं,
खुद दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के
चुनाव जीते प्रतिनिधि नहीं जानते.
वे आमदनी बढाना बी. एड, एम. यह,
अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल मांगी ध्यान देने लगे हैं
प्रचारक को प्रोत्साहन देते
कमिशन एजंट का,
उनसे, छात्रों से वसूल कर 100 करोड की इमारतें,
न पंरचारकों के जीविकोपार्जन या आर्थिक सहायता के लिए 10 करोड की पूँजी.
इस पर सवाल किया तो
मुझपर व्यंग्य.
सोचिए, और सेवा सच्चे प्रचारकों को
कमिशन एजंट न बनाना.
यह हिंदी प्रचार पवित्र क्षेत्र
अपवित्रीकरण में न लगना.
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