भाषण
सबको सादर प्रणाम.
सबको सादर प्रणाम.
भगवान को धन्यवाद,
जिनकी कृपा से आज
आप के सामने बोलने का अवसर,
शब्द शक्ति मिली है.
जिनकी कृपा से आज
आप के सामने बोलने का अवसर,
शब्द शक्ति मिली है.
जीवन तो अर्थपूर्ण होना चाहिए.
अर्थ,यश,मान,अपमान,सम्मान तो
अर्थ,यश,मान,अपमान,सम्मान तो
खोजकर जाने में जितना आनंद है,
उससे सौगुनी आनंद अपने आप से मिलने में है.
उससे सौगुनी आनंद अपने आप से मिलने में है.
इस मंच पर आप सब से मिलकर विचार प्रकट करने के मूल में
मोहनदास करमचंद गांधी जी का भविष्य वाणी है.
उनके पहले राजाराम मोहनराय, दयानंद सरस्वती आदि
महानों ने भी हिंदी को अपनाया.
मोहनदास करमचंद गांधी जी का भविष्य वाणी है.
उनके पहले राजाराम मोहनराय, दयानंद सरस्वती आदि
महानों ने भी हिंदी को अपनाया.
इनमें गाँधीजी के पक्के अनुयायी
आचार्य विनोबा ने हिंदी प्रचार के कार्य को
इतना महत्व दिया कि उनके सर्वोदय यज्ञ, भूदान यज्ञ
को लागू करने भारत भर के पद यात्रा में
हिंदी को ही अपनाया.
जहाँ भी वे भाषण देने जाते
जहाँ भी वे भाषण देने जाते
हिंदी को ही अपनाया.
उनके शिष्य भी पैदल यात्रा की आम सभाओं में
हिंदी में ही भाषण देते.
दूरदर्शी विनोबा ने कहा कि भारत की सभी भाषाओं की लिपि
एक होनी चाहिए.
वह देवनागरी लिपि होगी.
उनके शिष्य भी पैदल यात्रा की आम सभाओं में
हिंदी में ही भाषण देते.
दूरदर्शी विनोबा ने कहा कि भारत की सभी भाषाओं की लिपि
एक होनी चाहिए.
वह देवनागरी लिपि होगी.
लिपि ज्ञान एक हो तो पढना आ जाएगा.
सीखना आसान होगा.भारतीयों को एक करने में,
आध्यात्मिक साहित्य के आदान प्रदान में
हजारों साल पहले संस्कृत ही संपर्क भाषा रही.
अतः कई हजार संस्कृत शब्द आ सेतु हिमाचल तक
की भाषाओं में प्रचलित है.
अतः भारतीय साहित्य के विकास के मूल में
संस्कृत साहित्य प्रधान रहा.
तमिऴ साहित्य में नीति ग्रंथ की कई बातें
संस्कृत के नीति ग्रंथ के समान ही है.
संस्कृत के नीति ग्रंथ के समान ही है.
तमिळ के पंच महाकाव्य के नाम सब संस्कृत शब्द हैं
जैसे शिल्प+ अधिकार =शिलप्पधिकारम्,
जैसे शिल्प+ अधिकार =शिलप्पधिकारम्,
मणिमेखला मणिमेखलै जीवक चिंतामणि, कुंडल केशी, वळैयापति
सब के सब संस्कृत.
सब के सब संस्कृत.
तिरुक्कुरळ के प्रथम कुरळ में अकरम, आदी ,भगवान
तीन शब्द हिंदी में भी है.
तीन शब्द हिंदी में भी है.
मैं इस चर्चा पर जाना नहीं चाहता
संस्कृत या तमिल.
पर दोनों भाषाओं में
संस्कृत या तमिल.
पर दोनों भाषाओं में
समान अर्थ में हजारों शब्द
व्यवहार में आज भी है.
व्यवहार में आज भी है.
दिनकर, उदय सूर्य, रवि, भास्कर, जय, विजय, लता, ललिता, पंकज, सरोता, नीरजी, प्रेम, प्रेमा अजित
ऐसे ही संज्ञाएँ सब आ सेतु हिमाचल चल तक व्यवहार में है.
ऐसे ही संज्ञाएँ सब आ सेतु हिमाचल चल तक व्यवहार में है.
बंद, घेरो,पताका,तोरण,विवाह,निर्वाह,निवारण, समाचार,
यों ही हम कहते सोचते जाएंगे तो
मोहनदास करमचंद की दूरदर्शिता के समान अन्यत्र
मोहनदास करमचंद की दूरदर्शिता के समान अन्यत्र
नेता नहीं है जिन्होंने भारतीय संपर्क केलिए
हिंदी को माना, सुदृढ प्रचार के लिए
हिंदी को माना, सुदृढ प्रचार के लिए
हिंदी विरोध प्रांत की राजधानी चेन्नई को चुना.
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार की स्थापना की.
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार की स्थापना की.
आज हम सब यहाँ एकत्रित हुए हैं तो
मूल में हिंदी, हिंदी प्रचार में हमारी लगन.
मूल में हिंदी, हिंदी प्रचार में हमारी लगन.
यों ही मेरा भाषण होगा.
फरवरी महीने की सभा में
मुझे शीर्षक मुक्त भाषण देने को बुलाया है.
मन माना शीर्षक,मनमानी बात नहीं करनी है.
मौका दिया ,धन्यवाद जी.
ऐसी ही सोचते विचार करते
एक घंटे अपने विचार अभिव्यक्ति करके
एक घंटे अपने विचार अभिव्यक्ति करके
आप ने बुलाया है तो अपना कर्तव्य निभाऊँगा.
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