चित्र..
द्वार पर लडकी,
सडक पर साईकिल सवारी युवक.
आज शीर्षक साहित्य विचार.
देखा,
तुरंत आये मन के विचार।
खिड़की में से लडकी देखती,
लडका देखता दूर से.
राम खडा था नीचे,
सीता खडी थी ऊपर.
दोनों की आँखें हुई चार.
कुंती भूलोक से देखती
सूर्य सुदूर से देखता कर्ण का जन्म.
मेरी कहाँ देखी पता नहीं ,
ईसा का जन्म.
सीता, आंडाल अनाथ मिली.
सनाथ तो सर्वेश्वर.
यह प्यार,
यह आकर्षण
आज साहस लेकर द्वार पर ही
साईकिल की घंटी से हो जाता.
पर देखिए ,
जमाने के अनुकूल
उड़ी चूम,दूर से.
मंदिर या बाग में छिपकर
मिलना अब तो दूर.
खुल्लमखुल्ला प्यार करेंगे
हम दोनों.
इस दुनिया से न डरेंगे
हम दोनों.
स्नातक स्नातकोत्तर के बढते बढते
पशु तुल्य आलिंगन चुंबन बहिरंग
आम जगहों में,
शिक्षा संयम के बदले
जितेंद्रिय के बदले
असंयम, अनियंत्रण पर
यह तो राष्ट्र, समाज, व्यक्तिगत जीवन
सब को कर देते बेचैन.
स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन
द्वार पर लडकी,
सडक पर साईकिल सवारी युवक.
आज शीर्षक साहित्य विचार.
देखा,
तुरंत आये मन के विचार।
खिड़की में से लडकी देखती,
लडका देखता दूर से.
राम खडा था नीचे,
सीता खडी थी ऊपर.
दोनों की आँखें हुई चार.
कुंती भूलोक से देखती
सूर्य सुदूर से देखता कर्ण का जन्म.
मेरी कहाँ देखी पता नहीं ,
ईसा का जन्म.
सीता, आंडाल अनाथ मिली.
सनाथ तो सर्वेश्वर.
यह प्यार,
यह आकर्षण
आज साहस लेकर द्वार पर ही
साईकिल की घंटी से हो जाता.
पर देखिए ,
जमाने के अनुकूल
उड़ी चूम,दूर से.
मंदिर या बाग में छिपकर
मिलना अब तो दूर.
खुल्लमखुल्ला प्यार करेंगे
हम दोनों.
इस दुनिया से न डरेंगे
हम दोनों.
स्नातक स्नातकोत्तर के बढते बढते
पशु तुल्य आलिंगन चुंबन बहिरंग
आम जगहों में,
शिक्षा संयम के बदले
जितेंद्रिय के बदले
असंयम, अनियंत्रण पर
यह तो राष्ट्र, समाज, व्यक्तिगत जीवन
सब को कर देते बेचैन.
स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन
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