Saturday, January 5, 2019

तिरुप्पावै. 21

तिरुप्पावै --२१

आण्डाल  रचित

--     श्री कृष्ण को जगाती हुई  आण्डाल  गाती  है -

  नन्द महाराज के यहाँ   गो  धन असंख्य हैं ;
 गायें  दानी हैं।
स्वतः बर्तन  भर दूध देती हैं।
 ऐसे गोधनी   नन्द के पुत्र 
श्री कृष्ण!
नींद से जागो।
 वेदों ने तुम्हारे यशोगान गाये हैं।
 तुम परमेश्वर हो ;
हमारी पहुँच तुम तक नहीं  हो सकती ।
 जग को दर्शन देने तुम्हारा अवतार हुआ है।
तुम ज्योति स्वरुप हो ;जागो ;
जैसे शत्रु अहंकार छोड़कर ,
तेरे चरण में शरणार्थी बनते हैं ,
वैसे ही हम तेरे शरणार्थी बनेंगे।
हम भी तेरे यशोगान करने आयी हैं।
जागो ;दर्शन दो।
श्री विप्रनारायण  जी के तमिल व्याख्या का हिंदी अनुवाद ;
धन्यवाद महोदय !

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