Tuesday, October 30, 2018

सरदार पटेल की मूर्ति भारतीय भाषा अंग्रेज़ी

स्टेट्यू ऑफ़ यूनिटी /ஸ்டேட்யு ஆப்
யூனிட்டி அதுவும் தமிழில் தவறாக.

खेद की बात है सरदार पटेल की मूर्ति में
अंग्रेज़ी को ही भारतीय भाषाओं में स्टेट्यू ऑफ़ यूनिटी लिखा है.
अंग्रेज़ी ही है आगे भारतीय भाषा .
एकता की मूर्ति या एकता की शिला लिखना है।
धीरे धीरे भारत की भाषा सिर्फ अंग्रेज़ी।
एकता की मूर्ति नहीं लिखी।




சர்தார் படேல் சிலையில் இந்திய மொழி ஆங்கிலம் தான் .எழுத்துக்கள் மட்டுமே இந்தியமொழி .
statue of unity என்றே இந்திய மொழிகளில்
மொழிகளில் எழுதப்பட்டுள்ளது.
நாட்டு மொழி ஆங்கிலமே .
மோடி அரசு ஆங்கிலமே இந்தியாவில்
என்று வையகத்திற்கு அறிவித்துள்ளது.
ஹிந்தி தமிழ்
ஒற்றுமையின் சிலை /ஏக்தா கீ மூர்த்தி / என்று எழுதவில்லை .

स्टेट्यू ऑफ़ यूनिटी /ஸ்டேட்யு ஆப்
யூனிட்டி அதுவும் தமிழில் தவறாக.

दुविधा

सादर प्रणाम।

 सर्वेश्वर  की कृपा से सुखी हैं सब ।
लौकिकता में  सत्यवानों को
चाहते हैं  और उनको मौका भी देते हैं.
उनके भ्रष्टता में  साथ दें  और  मिल जायें।
वह मौका आर्थिक प्रलोभन ,
पद प्रलोभन ,
नाते -रिश्ते - इष्ट मित्रों के कल्याण
आधुनिक वैज्ञानिक सुविधाएँ ,
बाह्याडम्बर पूर्ण जीवन ,
अमीरी जीवन ,नौकर -चाकर
स्वार्थमय  भ्रष्टाचारी ,रिश्वत ,
झूठ ,अवैध काम  यही लौकिक बंधन।
इन से बचकर जीना पागलपन।
अतः   जितने भी आदर्श सत्यवादी
अकेले गरीबी में जीता है.
हरिश्चंद्र समान  जीवन में अनंत कष्ट
उठाना पड़ता है.
जितना मनुष्य भ्रष्टाचार का साथ देता है
उतनी प्रशंसा का पात्र बनता है.
न जाने मनुष्येत्तर शक्ति भी
सत्यवानों को नाना प्रकार के कष्ट देती है।
जिससे  सत्यके पालन में लोग  हिचकते हैं.
सत्यवान  अलग रह जाता है।
फिर भी सत्य की ,
धर्म की ,न्याय की प्रशंसा
सब करते हैं.
 सत्यवानों की तारीफ  जब तक जिन्दा रहते हैं ,
तब तक कोई करने तैयार नहीं।
मृत्यु के बाद ही तारीफ का पुल बांधते हैं.
शिला प्रतिष्ठा करते हैं.
यही सांसारिकता है.
ईश्वरीय शक्ति भी भ्रष्टाचारियों को
अंत तक साथ देकर
बदनाम की  मृत्यु देती है ,
जिसे पहचानना ,जानना ,समझना जागना
अधिकांश लौकिक पसंद लोगों से असंभव है.
उनको अकेले  बैठने पर 
तिल भर भी शान्ति नहीं ; संतोष नहीं ;
आत्मवेदना के आंसू बहते संसार छोड़ चलते है.
इसमें किसी को छूट   नहीं। अपवाद नहीं।
भले ही राम हो या कृष्ण।
आज मन में उठे विचार।

Monday, October 29, 2018

इंसानियत या मनुष्यता ही प्रधान।

नमस्कार।
प्यार की नीति निभाना
प्रेमी जानता है या प्रेमिका।
प्रेम एक पक्षीय या द्वि पक्षीय।
प्रेम तंग गली या बड़ा रास्ता।
प्रेम में लग जाते चंद दिन
चाँदी की चिड़िया के लिए.
प्रेम में लग जाते ,रूप-मोह में
धन सुख ,तन सुख ,स्वार्थ भोग।
ऐसे भी कई प्रेम निभाते
धन ,तन ,मन परायों के लिए।
कहानियाँ सच्ची हो या काल्पनिक ,
आदर्श हो यथार्थ ,प्रेम अति स्वार्थ।
मीरा का प्रेम या आण्डाल का प्रेम
ईश्वर के दिल में वास ;
अपने दिल में ईश्वर ,ईश्वर के दिल में वे.
वहाँ परायों का स्थान नहीं।
नायक -नायिका प्रेम ,
खलनायक -खलनायिका बीच में
यह दैविक कहानियों में हैं ,
है मानव कहानियों में।
प्रेम श्रद्धा - भक्ति में बदल जाएँ तो
अनासक्ति ;फिर न लोक की चिंता ,
न अपनी चिंता;
सर्वश्व सर्वेश्वर संभालेगा ;
सबहीं नचावत राम गोसाई
ऐसे चुप भगवान रहने न देता।
विश्व कल्याण की भावना जगाता।
देश प्रेम संकुचित ,
प्रशासन प्रेम संकुचित।
विश्व कल्याण भाव अति विस्तृत।
सर्वे जनसुखीनो भवन्तु।
देशप्रेम ,मातृ-भाषा प्रेम ,
प्रेम शब्द ही संकुचित।
ताजमहल प्रेम का चिन्ह
उस कहानी में निर्दयता /बेरहमी की चरम सीमा।
मुमताज के पति की हत्या।
ताजाहल के कारीगरों के हाथ काटना
ऐसे आदर्श यथार्थ प्रेम बलात्कार का मूल.
सच्चे प्रेमी वही जिनके लगन से
जग की भलाई हो;
सब की भलाई हो;
चंद्र -सा, सूर्य -सा ,हवा -सी ,जल-सा ,भूमि-सा
ये तटस्थ ,
न मुसलमान ,न हिन्दू ,न सिख , न बौद्ध ,न ईसाई
इंसानियत या मनुष्यता ही प्रधान।

Sunday, October 28, 2018

माया

नमस्कार. 
दुनिया क्या शाश्वत है?
हमारी याद रहेगी ? 
हमारा नाम रहेगा. 
सोचिए.. 
हमारी प्राचीन प्रसिद्ध
यादगारें समुद्र केअतलपाताल में.
हमारे वेद हम में से अधिकांश न जानते.
क्यों?
लोगों में ज्ञान की बात हैं.
चित्रपट के इस युग में
माया -शैतान-ठग के विचार और पद
सहर्ष सादर मान्य है.
गोरस गली गली बिकै.
स्वस्थ बातों को गली गली घर घर
ले जाना है, पर एक सरकार
हर राज्य की आमदनी गोरस से नहीं, अतः
गोमाता की रक्षा के लिए हम चिंतित हैं,
शराब की दूकान में भीड अधिक.
ठंड प्रदेश के अंग्रेज़ , महिलाओं के साथ
मधु प्याला हाथ में रख
नाचने की मायाके सामने
 दिव्य शक्ति
गोरस फीका
 पल पड जाता है.
यही संसार है.
स्वचिंतक स्वरचित :अनंत कृष्णन. यस.

अतिथि देवो भव

नमस्कार !
अनजान मुख -पुस्तिका के साथियों को
बधाई देते हैं ;रोज़ कुछ न कुछ
सन्देश देते हैं ;पाते हैं;
पर अतिथि जो घर आते हैं
ज़रूर कोई न कोई जानते ही हैं ;
बच्चे ,आधुनिक युवक "है " कह
हस्त-दूर भाष में ऐक्य हो जाते हैं
अतिथि तुम कब जाओगे ?
ऐसा ही लगता है।
अतिथि देवो भव के देश में
द्वेष भरी नज़र कैसे ?
शिक्षा रिश्तों को जोड़ती नहीं ,
दूर हटाती जाती हैं।
अनपढ़ देश में कुल -पेशा में ही
कुल परिवार लग जाता।
रूखा-सूखा खाता ,
चैन से जीता।
अब स्नातक -स्नातकोत्तर
महाविद्यालय के साक्षात्कार में ही
नौकरी मिल जाते सुदूर या विदेश।
अतिथि देवो भाव नहीं ,
बन जाते भव् बाधा ..
तिथी बताकर ,
ठहरने का दिन बताकर
अनुमति लेकर जाना हैं।
यह -नाते रिश्तों का दोष नहीं ,
उच्च शिक्षा का दोष है ,
दोनों नौकरी करते हैं ,
कर्जा बढ़ाने सरकार की योजना।
बैंक की महिलाओं का मधुर पुकार;
टूटी -फूटी अंग्रेज़ी ,
युवक तो ताज़ी नौकरी ,
हर चीज़ ताजी लेना चाहता।
रूपये पुरानी हज़ार ,
भले ही अच्छा हो देना
बत्तीस हज़ार में लेना
मीयाद भरना ,
हर चीज़ कर्जा ,
तब अतिथि ?
अतिथि सेवा बेचारा भला कर्जदार कैसे करता।
सब के सब सरकारी नौकरी भी नहीं
कबीर के जमाने में यम -तलवार सर पर.
अब एम्.डी., ज़रा आँखें दिखाएँगे तो ,बस
नौकरी की न गैरंटी ,न वारंटी।
अतिथि कोई भी न आ न सकता ,
अचानक आना पड़ें तो ठहर नहीं सकता।
आने का सवाल ही नहीं उठता।
शिशु विद्यालय के तीन साल का शिशु
विद्यालय में अनुपस्थित हो जाता तो
निकाला जाता तो मंत्री की सिफारिश से मिली भर्ती ,
स्कूल से निकला जाता तो
अतिथि भला कैसे आता।
अब सवाल उठता ही नहीं ,
अतिथि तुम जाओगे कब ?

स्वतंत्र लेखन

स्वतंत्र लेखन

स्वतंत्र चिंतन चाहिए देश में 
सच्चाई को समझना चाहिए। 
सही अधिकार :
विचार प्रकट करने का
 अधिकार मिला है ;

ख़ान को गॉंधी कहे तो 
कहने का अधिकार। 
पर मानकर चलने का अधिकार 
खोकर मान बैठे हम.
सिंधु को हिन्दू कहा तो 
हमारे सनातन धर्म सागर को 
हिंदू शब्द से तंग गली बना दिया।
सनातन धर्म सागर ,
भले -बुरे ,गंध -दुर्गन्ध अपनाकर 
उठाकर लहरें न होता स्थिर।
ईश्वर वंदना लोक गीत में 
उच्च वर्ग की शिष्टित भाषा 
देव भाषा देवनागरी लिपि की भाषा।
अपने अपने कर्तव्य खूब निभाते,
यह ज्ञान भूमि में पला 
लोक-नृत्य,लोक कला,
पर हम अपने को भूल ,
विदेशी माया में आज भी 
अपने को भूल अंधानुकरण कर रहे हैं। 
स्वतंत्र लेखन कैसे ?
ज्ञान की बातें लिखूं ,
वह भी राजनीती;
सोचने की बात लिखूँ ,
वह भी राजनीती। 
आकार -निराकार परब्रह्म कहूँ ,
वह भी राजनीती। 
स्वतंत्र लेखन क्या लिखूँ ?

Saturday, October 27, 2018

छली आत्माएं

भाग्यवान पद पाते हैं ;पर
पद पाकर सद्यः फल के लिए
भ्रष्टाचार करनेवालों को
न्याय के पक्ष न रहनेवालों को
भगवान के प्रति न भय।
देश के प्रति न भक्ति।

समाज के प्रति ,
अपनी भावी परंपरा के प्रति
न कोई प्रेम।
अशाश्वत पद ,
नश्वर दुनिया
जान -पहचान कर भी
धन जोड़ फिर तन छोड़
आत्माएँ
देखेंगी अपनी पीढ़ियों के
सुख -दुःख
छली आत्माएँ
देखेंगी अपनी पीढ़ियों के
संकटमय स्तिथि।
आज मेरे मन में उठे विचार।

भाग्यवान और भगवान।

भाग्यवान और भगवान

भगवान संसार का है बागवान।
वह बागवान के बाग  अद्भुत।
कंटीले पौधे  सुगन्धित कुसुम।
प्राण लेवा विषैले पौधे
प्राण रक्षक रोग निवारण की
जड़ी बूटियाँ ,खट्टे-मिट्ठे फल.
कडुवी पत्ते -फल उसे लेने नहीं तैयार।
वही  रोग हरनेवाला।
अब कडुवी औषधियों को
मीठी आवरण की गोलियां
सद्यः फल निवारण ,अन्य रोगों के मूल.
गुरु वचन को भी अब मधुर बोली में
नतीजा न अनुशासन ,न गुरु का आदर.
गुरु अध्यापक के नाम से
गुरु गिरिवर से गिरपडा।
परिणाम छात्र हत्यारा बन रहा है.
अध्यापक कामांधकार ;
पवित्र रिश्ता  हो रहा हैं अश्लील रिश्ता।
जमाना बदल गया;
विदेशों ने विषैले विचारों के रक्त
संचरित  कर क़ानून पढ़ाकर  चले गए.
परपुरुष -पारा स्त्री सम्बन्ध को
न्याय मान हक़ अदालत ने दे दिया।
तलाक का दरवाजा खुला पड़ा है.
युवक भयभीत हैं ,
युवतियाँ  भयभीत है
क्या होगा जग शांति।
जब न शांति परिवार में।
आज मेरे मन में उठे विचार।
स्वयंचिन्तक -स्वरचित -यस.अनंतकृष्णन।

Friday, October 26, 2018

वधु मिलना मुश्किल।

नारी नहीं होती तो 
दुःख कहाँ ?नर को ;सुख कहाँ ? 
संतान भाग्य नहीं होता तो 
तुतली बोली की मधुरिमा कहाँ ?
नर से पीड़ित नारी में 
दया ,ममता ,सेवा के भाव नहीं होते तो
पौरुष नहीं होता जान.
कर्म फल पुरुष को भोगने का
अब आ गया ;
सीता अब होती तो
राम को ही फिर वनवास।
पुरुष रक्षक संघ की ज़रुरत आ पडी।
थीं बूढी कन्याएँ ,पर अब बूढ़े हैं , वधु मिलना मुश्किल।

Thursday, October 25, 2018

भक्ति

 भक्ति  क्या है ?
  ठीक मार्गदर्शक  मिलने  की खोज में
 कई भटकते हैं।
किसीने निश्चित मार्ग नहीं दिखाया।
किसी ने ज्ञान ही भक्ति बताया।
किसीने  प्रेम को ही भक्ति  बताया।
 किसीने कहा -गरीबी की हँसी  में  हैं भगवान।
परोपकार ,दान धर्म  ,यज्ञ -हवन द्वारा
ईश्वर के अनुग्रह पाने का मार्ग बताया।
आकार -निराकार स्वरुप भगवान।
नवग्रहों में भगवान।
प्रकाश ही भगवान।
 ऐसे  भगवान के मार्ग-दर्शक
मनुष्य को  दुविधा  में डालने
आगे आचार्यों ने तर्क युक्त
सन्देश ही देकर
मानव -मानव में ऐक्य भाव
इंसानियत  का सही मार्ग दिखाया।
पूरब की दिशा में ईश्वर कहा तो
दुसरे ने बताया  पश्चिम।
इत्र-तत्र -सर्वत्र विद्यमान ईश्वर  के
मार्ग दर्शक विज्ञान की तरह
एक निश्चित रूप देने में असमर्थ ,अज्ञान ही रहे.
सब को नचानेवाले ईश्वर ,
राजा के पद दिया तो
अहंकार भी दे दिया।
खुद राम के अवतार में राम
अपने   शत्रु  को पहचानने
अपने अधिकार जमाने
अश्वमेध यज्ञ किया तो
जिन्दा पत्नी के रहते सोने की सीता बनायी।
यह तो  मानव के चंचल मन में
नाना प्रकार के विचार ,शक ,तर्क-वितर्क।
सूक्ष्मता से विचार करें तो
राम का आदर्श  अनपढ़ धोबी द्वारा
दिल्लगी  का  कारण बना.
राम कहानी सुनाना का मतलब ही
रोना और संकट पूर्ण दशा का जिक्र करना हो गया.
रामायण कहानी अधूरी रह गयी.
राम के पुत्रों को क्या हुआ ?
इतिहास ने नहीं बताया।
कृष्णावतार की कहानी सुनाकर
गलत मार्ग पर जाने के उदहारण ज्यादा है.
धर्म की विजय कदम -कदम पर
अधर्म के षडयंत्र  द्वारा।
लौकिक कर्म में ईश्वर ने अमुक व्यक्ति के द्वारा
विश्व कल्याण विश्व को स्वर्ग तुल्य बनवा रहा हैं.
 अब सोचिये -
 व्यक्ति -व्यक्ति  में
आकार भेद ,रंग भेद ,बुद्धि भेद ,
अमीर -गरीब ,रोग -नीरोग ,
जन्म-रोग ,असाध्य रोग ,साध्य रोग ,
गर्भच्छेद ,शिशु मरण ,
मृत्यु के लिए निश्चित उम्र किसीने न बताया।
यों   ही कई बातें मानव के समझ के  बाहर।
   भगवान एक हैं।
 सर्व शक्तिमान।
सभी जीवों में  मनुष्य को ज्ञान दिया।
वह ज्ञानी यहाँ  तक कहने में समर्थ हो गया.
अपने अनुयाइयों की संख्या बढ़ाने की शक्ति मिली।
वह ज्ञान शक्ति अद्वैत भावना -अहम् ब्रह्मास्मी।

 आगे विचार कीजिये -अहम् ब्रह्मास्मि  ,
क्या मनुष्य सर्वज्ञानी हैं ?
तब तो एक चांडाल के द्वारा मनुष्यता निभाने की अनुभूति मिली।
मंडनमिश्र के साथ के तर्क में
कामकला  जानने  के लिए
 मृत्यु राजा के शरीर  में आत्मा गयी.
 तभी जीत सके.
तब आत्मा-परमात्मा कैसे एक ?
फिर द्वैत्व भाव।
आत्मा- परमात्मा अलग।
सब बन सकते हैं भक्त।
सब मिल सकते हैं परमात्मा से।
ॐ  हरी नारायणा मन्त्र।

  क्या किसीने ईश्वर का सही रूप दिया।
मुहम्मद  नबी  ने अल्ला का सन्देश दिया।
पर  अनुयायी ऐसे निकले दिल उदार नहीं;
अन्यों को सताने आतंकवादी  अल्ला के नाम को
बदनाम करने में लगे हैं ; उनके कुरआन के सिवा
लौकिक राजा,देश ,राष्ट्रगीत किसीका आदर करने तैयार नहीं।
अमीरों के देश ,पर न चैन। न संतोष।
आतंक कब कौन सा आतंकवादी बम फेंकेगा।बन्दूक चलाएगा।
 फिर ईसा मसीह ने प्यार ,सेवा, भ्रातृत्व का सन्देश दिया।
ये  अपने गुरु के संदेश के प्रचार के लिए पहले
दुनिया की भाषाएँ सीखी;
 दीन -दुखियों की सेवा  में  लगे.
बाइबिल का अनुवाद किया।
हर देश की मातृभाषा में भाषण दिया।
 पर किसीने  हमारे देश का सन्देश
वासुदेव कुटुम्बकम ,
सर्वेजना  सुखिनो भवन्तु।
पर कहीं भी मानव प्रेम ,एकता ,
मनुष्यता के लक्षण दीख नहीं पड़ते।






Wednesday, October 24, 2018

करते गहरे घाव

मानी है मित्रता ,
कुछ लिखने का हौसला दिया है
मेरी शैली अपनी ,
न रूढ़िगत।
न छंद न लय।
न रस ,न अलंकार
न यगण मगण तगण की चिंता।
ऐसी चिंता में लग जाऊँ तो
न अभिव्यक्ति कला व्यापक विस्तार।
दोहा से अकविता तक न विकास।
परम्पराएँ हैं बदलती ,
परिवर्तन ही विकास।
पैदल चले आदमी
पैदल ही चलूँगा तो वह पागल।
दिमागी हिसाबी कालकुलेटर न करेगा तो
संगणक का उपयोग न करेगा तो
हौसला फरार।
ज़रा क्षमा करना,
भाव प्रधान बन गया संसार।
you तीन अक्षर u एक अक्षर युवक चाहता।
ऐ एल यू ही लिखता।
अणु में सागर भरना
लेखकों का काम.
वन्देमातरम एक शब्द
जय जवान जय जवान एक शब्द
कितना काम ,कितना जोश ,
स्वच्छ भारत आजादी के सत्तर साल बाद.
न रोका किसी ने सड़क पर थूकने को।
क्रांति एक शब्द में
करो या मरो।
करो पहले ,कहो बाद।
मन चंगा तो कटौती गंगा।
कहने में छोटे लगे ,
करते गहरे घाव ,

बगैर कृपा कृपालु की

Anandakrishnan Sethuraman स्वरचित 
यस. 
अनंतकृष्णन. 

नहीं होता 
बिन प्रयत्न. 
प्रयत्न में असफलता. 
प्रयत्न में आलसी. 
प्रयत्न में लालची
प्रयत्न में स्वार्थता. 
प्रयत्न में निस्वार्थता
प्रयत्न में अंधविश्वास 
न होता सफलता. 
प्रयत्न की सफलता 
ईश्वरानुग्रह. 
देखा, महसूस किया. 
जाना समझा पहचाना
सबहीं नचावत राम गोसाई. 
नहीं होता बगैर कृपा कृपालु की. 
स्वरचित यस. अनंतकृष्णन.

सनातन धर्म की देन

आज मन में उठे विचार
स्वयं चिंतक
स्वरचित। ---से .अनंतकृष्णन
पितृभक्ति ,मातृ भक्ति ,
देश भक्ति ,ईश्वर भक्ति ,
भाषा भक्ति ,राज भक्ति
इनमें से
भारतीयों में कौन-सी
भक्ति सुदृढ़ .
सब में कमी हैं।
सब में अस्थिरता है।
सब में दृढ़ता है।
एक ज्योतिष कहता
मैं हूँ हनुमान भक्त।
दूसरा कहता देवी उपासक।
तीसरा कहता शिव
चौथा कहता विष्णु।
पाँचवाँ कहता राम.
छठवाँ कहता कृष्ण।
सातवाँ कहता गणेश।
आठवाँ कहता कार्तिकेय।
नौवाँ कहता दुर्गा उपासक।
दसवाँ कहता लक्ष्मी उपासक।
फिर आश्रम महिमा।
अहम् ब्रह्मास्मि। मैं हूँ भगवान।
मन की लहरें उठती रहती।
सद्यः फल की खोज में
भटकता रहता हिन्दू सनातन धर्मी।
न विश्वास, न एकता,न दृढ़ता।
बिल्लियों की लड़ाई में
बन्दर बना न्यायाधीश।
मिली रोटी को
खुद खा लिया बन्दर।
आपसी लड़ाई तीसरे को फायदा।
तीसरा धनी हो तो
महासंख्यक चुप चुप।
भरा द्रोहियों से ,
न एकता ,न विजय।
देश तो अलग दे दिया ;
बन गया मंदिर तोड़, मस्ज़िद .
राम मंदिर ?
नेता गए रहे हैं
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
आपस में हैं भाई।
महासंख्यक को कोई न हक़.
अल्पसंख्यक को अधिकार सुरक्षा।
कहते अंत में धर्म निरपेक्ष।
मंदिर सरकार के पास.
आय सरकार को.
तत्काल शासक अधिकारी को ,सोना चाँदी .
हिन्दू जा रहा हैं
अपने में कौन बड़ा ?के मुकद्दमा चलाने।
तिलक दक्षिण कला?या उत्तर कला?
तमिल अर्चना या संस्कृत।
तीसरा कुरान की भाषा मूल.
ईसाई बड़े चतुर।
अनुवाद कला में निपुण।
हिंदी प्रार्थना,तेलुगु प्रार्थना ,तमिल प्रार्थना।
आपसी भेद भाव द्वेष हैं ,पर
बाहर प्रकट होने न देते।
फिर भी सनातन धर्म सुरक्षित।
विकसित ,शाश्वत, सशक्त।
जय हो भारत।
लूटने वाले लूटते रहें।
भोगनेवाले भोगते रहें।
पर अंत में वह भी सनातन धर्मी।
मक्का के शिवलिंग।
ईसाई की मूर्ति पूजा ,
मेरी माता की पूजा
सनातन धर्म की देन।