Search This Blog

Sunday, October 7, 2018

कब तक नाचूँ पता नहीं?

मुझे  मालूम नहीं जीने की कला.
जग जीवन में जीने की सबेरा नहीं मिली.
नकारात्मक विचार सकरात्मकिता से अति तीव्र.
सामाजिक गलतियों के साथ
काल मेल बिछाकर
खुशामदी जीवन जीना
असंभव नहीं,
तीन बार यम के दरबार जाकर लौटा हूँ,
अन्याय के साथ रहा तो
अच्छा   ही रहा,
न्याय का दीवाना बना तो
 अकेला पन ही जँचता है.
भगवान मुझे नचा  रहा है.
नाच रहा हूँ
कब तक नाचूँ  पता नहीं?

No comments:

Post a Comment