Thursday, October 18, 2018

मानव और भक्ति

सबको मेरा प्रणाम।
मानव जीवन -सृष्टि
जीवनारंभ ,सर्वेश्वर की लीला।
मनु अकेला। 
सदा जपता रहा,
न नाते -रिश्ते की चिंता
न जग की चिंता ,
कोई कहता पागल
रूखा -सूखा खाता
न जग के बाह्याडम्बर की चिंता।
नाम जपता। कुछ न कुछ माँगकर खाता।
फुटपाथ पर सोता ,
गर्मी में तपता
सर्दी में काँपता ,
लोग कहते वह है भिखारी।
भक्त सन्यासी।
सनकी !दीवाना !पागल !
भक्त सच्चा है तो
न जग का विकास।
ईश्वर की खोज में
भारत में योंही
भक्ति का प्रचार।
पर भगवान तो अति चतुर।
उससे बड़ा लगनेवाला
काम देवता की रचना की।
खुद फँस गया ,
अर्द्ध नारीश्वर बना
शक्ति न तो शिव नहीं ,
शिव नहीं तो शक्ति नहीं।
नर-नारियों में प्रेम जगाया।
ईश्वर की और कम आकर्षण
कामाग्नि जलाया।
प्रेमाग्नि भटकाया।
नव रसों के मनोविकार
मनो भाव।
मानव मन में चंचलता
श्रृंगार ,वात्सल्य ,स्वार्थता ,लोभ
मद ,क्रोध ,बाह्य आकर्षण
सुन्दर ,असुंदर ,खट्टी -मिट्ठी -कड़ुवी।
षडरस -षडरिपु की बातें।
अमीरी -गरीबी ,स्वस्थ -अस्वस्थ
दीर्घ रोगी -दारिद्री ,
त्यागी ,भोगी ,मोही ,
कितना मनमोहक विषय वासना ,
अब ईश्वर के ध्यान का समय अति कम.
तीन बार नाम लेना ,
बाकी समय जग- कल्याण का कर्तव्य निभाना
वही मानव मानव जीवन।
जवानी ,बुढ़ापा,रोग ,मरण।
सृजन करता का व्यापार
अति सूक्ष्म।
न जानता मनुष्य
जन्म -मरण की बातें।
अपने को छोटा ,
अपने को बड़ा ,
अपने को भाग्यवान
अपने को दुर्भग्यवान
सुखी -दुखी
मान - अपमान
प्यार नफरत।
नाथ -अनाथ .
अपकीर्ति ,अमर , कीर्ति -
खतम मानव जीवन।

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