Thursday, October 11, 2018

सच्चा भक्त

कहते हैं  सब
  मैं हूँ भक्त।
कैसे ?पूछा
मैंने  तो सौ  लिटर  दूध का
किया  अभिषेक।
ठीक ! और कौन भक्त हैं ?
आगे सवाल किया ?
वह व्यापारी बड़ा भक्त हैं।
कैसे मेरे सवाल जारी रहा.
कहा -वह व्यापारी दस लाख रूपये दान में दिया।
वह नेता दस करोड़ के  हीरे के मुकुट दान में दिया।
वह मंत्री श्रेष्ठ  सौ  किलो का सोना दान में दिया।
मैंने और नया सवाल किया--
पर भक्तों की सूची  में न  नेता का नाम.
न वह व्यापारी का नाम।
न वह मंत्री का नाम।
वाल्मीकि का नाम तभी प्रसिद्ध
जब वह सर्वत्र त्याग राम नाम को रटने लगा।
एशिया  की ज्योति बुद्ध का नाम
सर्वत्र त्यागकर भिक्षुक बनने के बाद ही
भक्तों की सूचि  में जुड़ा।
यों  ही भर्तुगिरि ,पट्टीणत्तार  ,तुलसी ,
अरुणगिरि ,रैदास ,कबीर ,
भक्त त्यागराज ,रमण  महर्षि  और
हज़ारों के नाम आज भी अमीर है.
श्रद्धा भक्ति से सब के सब नाम लेते हैं ;
उनकी कृतियाँ पढ़कर आज भी सब के सब
ईश्वर के दर्शन की अनुभूति करते हैं।
आण्डाल ,मीरा का तो अनुपम भकताओं में।
भक्त कौन ?धनी ? उसको धन कैसे आया ?
सोचा कभी ?!
अब बोलो -भक्त कौन ?
स्वरचित -अनंतकृष्णन
आज मेरे मन में उठे विचार।

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