नारी नहीं होती तो
दुःख कहाँ ?नर को ;सुख कहाँ ?
संतान भाग्य नहीं होता तो
तुतली बोली की मधुरिमा कहाँ ?
नर से पीड़ित नारी में
दया ,ममता ,सेवा के भाव नहीं होते तो
पौरुष नहीं होता जान.
कर्म फल पुरुष को भोगने का
अब आ गया ;
सीता अब होती तो
राम को ही फिर वनवास।
पुरुष रक्षक संघ की ज़रुरत आ पडी।
थीं बूढी कन्याएँ ,पर अब बूढ़े हैं , वधु मिलना मुश्किल।
दुःख कहाँ ?नर को ;सुख कहाँ ?
संतान भाग्य नहीं होता तो
तुतली बोली की मधुरिमा कहाँ ?
नर से पीड़ित नारी में
दया ,ममता ,सेवा के भाव नहीं होते तो
पौरुष नहीं होता जान.
कर्म फल पुरुष को भोगने का
अब आ गया ;
सीता अब होती तो
राम को ही फिर वनवास।
पुरुष रक्षक संघ की ज़रुरत आ पडी।
थीं बूढी कन्याएँ ,पर अब बूढ़े हैं , वधु मिलना मुश्किल।
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