घर आ गया।
मैं जवानी से बुढ़ापे तक भटकता रहा.
बच्चे हुए ,न पूरे नाम की याद।
न जन्म दिन की याद ;
न नक्षत्र की याद.
बच्चोको पालना है,
बच्चों को अच्छी शिक्षा देना है.
बच्चों को पत्नी को सुखी रखना है.
अब घर वापस आगया।
जवानी ें दौड़ घूप।
अब बुढ़ापा आगया।
शरीर शिथिल।
विचार शिथिल।
घर आया तो बच्चे विदेश में.
बेटी ससुराल में.
पत्नी बुढ़ापे में ,
वही रसोई घर।
धोबिन ,रसोइया ,धाय।
अब मैं और वह
बुढ़ापा आगया।
जवानी में दोनों अकेले मिलने
बहुत कष्ट उठाते ;
माँ -बाप -बहन -भाई।
आते -जाते रिश्तेदार।
अब भी वैसा ही प्यार।
कोई नहीं घर में ;
एकांत हमारा राज्य ;पर
दिल में पुत्र -पुत्री।
पोते -पोती की तस्वीरें जमाकर
अकेले बूढ़े-बूढ़ी
एक दुसरे को गोली देकर
आशा निराशा काल की याद में
नन्हें नन्हें बच्चों की याद में
दिन कटा रहें हैं ,
मैं आ गया घर.
मैं जवानी से बुढ़ापे तक भटकता रहा.
बच्चे हुए ,न पूरे नाम की याद।
न जन्म दिन की याद ;
न नक्षत्र की याद.
बच्चोको पालना है,
बच्चों को अच्छी शिक्षा देना है.
बच्चों को पत्नी को सुखी रखना है.
अब घर वापस आगया।
जवानी ें दौड़ घूप।
अब बुढ़ापा आगया।
शरीर शिथिल।
विचार शिथिल।
घर आया तो बच्चे विदेश में.
बेटी ससुराल में.
पत्नी बुढ़ापे में ,
वही रसोई घर।
धोबिन ,रसोइया ,धाय।
अब मैं और वह
बुढ़ापा आगया।
जवानी में दोनों अकेले मिलने
बहुत कष्ट उठाते ;
माँ -बाप -बहन -भाई।
आते -जाते रिश्तेदार।
अब भी वैसा ही प्यार।
कोई नहीं घर में ;
एकांत हमारा राज्य ;पर
दिल में पुत्र -पुत्री।
पोते -पोती की तस्वीरें जमाकर
अकेले बूढ़े-बूढ़ी
एक दुसरे को गोली देकर
आशा निराशा काल की याद में
नन्हें नन्हें बच्चों की याद में
दिन कटा रहें हैं ,
मैं आ गया घर.
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