Tuesday, December 31, 2019

अधूरी ख़्वाहिशें ज़िन्दगी की.

विषय.. अधूरी ख़्वाहिशें ज़िन्दगी की.
१-१-२०२०

सबको नमस्कार।
चाह गई चिंता मिटी ,कहा कबीर ने।
अरमान न तो आशा नहीं ,क्रिया नहीं।
ख्वाहिशें ख़्वाब को पूरी करती।
अभिलाषा न तो ज्ञान नहीं।
ज्ञान नहीं तो क्रिया नहीं।
इच्छा शक्ति ज्ञान शक्ति क्रिया शक्ति
तीनों का महत्त्व आध्यात्मिक ध्यान।
हमारे साधू संतों ने मूर्ति रखीं मंदिरों में.
ख्वाहिशें निराकार ख़्वाबों को साकार बनाती।
संयम रहित कामांधकार ख्वाहिश नहीं।
लड़कियों के पीछे जाना ,
कुत्ते कुतिया के पीछे जाना दोनों बराबर।
इंसान हो तो इंसानियत जितेंद्र की ख्वाहिशें चाहिए।
स्वरचित स्वचिंतक यस.अनंतकृष्णन।

उसी को छोडकर सब कुछ दिखाई देता है

नमस्ते।
उसी को छोडकर
  सब कुछ दिखाई  देता  है ।क्यों?
माया महा ठगनी,
हठयोगी कबीर की वाणी।
नाम जपता , पर मन शैतान  की ओर।
लक्सिमी चंचला की ओर।
चाँदी की चिडिया का फडफडाना।
शैतानों का बाह्याडम्बर।
एक लाख  गणेश  की मूर्ति
विसर्जन  के नाम अपमान।
 उसी को (पर ब्राह्म) को छोड़
सब कुछ दिखाई  देता है।
हम अपने अच्छे  सांसद विधायक  को भी चाँदी की चिडिया के फड़फड़ाता
चुनते नहीं  हम अपने अधिकार
 खो बैठते हैं।
 ईश्वरानुग्रह का रास्ता भूल जाते हैं।
उसी को छोडकर
 सब कुछ दिखाई देता है ।
स्वचिंतक स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम

Friday, December 27, 2019

ईश्वरीय शक्ति

आदी काल से आज तक ,
फिर भी न्यायप्रिय लोग ,
तटस्थ लोग जीते हैं।
जग में तो ईश्वरीय शक्ति साथ देती है.
 गरीबों को भी जीने का रास्ता।
 कूड़े उठानेनेवाले ,
भार उठानेवाले ,
गड्ढा खोदनेवाले ,
खेती करनेवाले ,
न हो तो अतः ईश्वरीय सृष्टि में
धन ही प्रधान नहीं ,
अंत में शव ही नाम।

दिल -दिमाग

संचालक सदस्य संयोजक चाहक रसिक पाठक सबको तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम। ।
शीर्षक : दिल -दिमाग।
आँखें माया के वश।

कान माया के वश।
शरीर चरित्रहीन काम वश।
इन सब को अनुशासित
करनेवाला दिमाग।।
दिमाग अनुशासित न करें तो
मनुष्य मनुष्य नहीं,
खूँख्वार जानवर समान।
देशाटन दिमागवाला।
कामांधकारी अहंकारी
उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई।
बदनाम का पात्र बना।
कैकेई मंदीरा के कारण
बुद्धिभ्रष्टाचार हो गई ।
आँखें कहती यह बढिया।
ऊपर मन कहता उठाकर अपनाओ।
अंतर मन कहता बदनाम होगा।
दिमाग रोकना चाहता।
दिल दुविधा में पड जाता।
दिमाग भ्रष्ट हो जाता।
जितेन्द्र बनता नहीं ,
दिल का धड़कन बनने नहीं देता।
दिल को काबू में रखो,
दिमाग में सुकर्म करने की
बुद्धि ईश्वर देगा।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम

Monday, December 23, 2019

धूप छाँव

मंच  के संचालक सदस्य संयोजक चाहक रसिक पाठक सबको
तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक
 यस -अनंतकृष्णन का प्रणाम।
 आनंद कृष्णन। मतिनंत।

 शीर्षक:   धूप-छाँव।
 जिंदगी  सहर्ष  जीने के लिए।
पानी चाहिए। बिन पानी सब सून।
पानी चाहिए  तो भाप बनना है।
काले बादल  छा जाना है।
तब धूप  चाहिए।
धूप  न तो वर्षा  नहीं।
वर्षा न तो हर्ष  नहीं।
हरियाली  नहीं।
छाया नहीं  सांसारिक माया नहीं।
 पंचतत्वों से बने जीव में
आग नहीं  तो शरीर ठंड
पड जाएगा तो मानव शवयान में।
ज्वर बढ जाएँ  तो  ठंडे कपडे माथे पर।
बिलकुल ठंड होने न देते।
प्रकृति के संतुलन में
गरम  तो आग।
आग बुझाने  पानी।
बिलकुल  बुझा न पाए तब
वर्षा। पानी।हवा ।पतझड।
पनपना यही।
धूप छाँव  की जिंदगी।
माया -छाया मन माया जिंदगी।
 छाया का महत्व गर्मी  मैं।
केवल छाया तो पनप नहीं।
अतः धूप में चुस्ती,छाँव में सुस्ती।
यही है मानव जीवन।
पाश्चात्य देशों  में  ठंड अधिक।
परिश्रम अधिक।
भारत देश में सब बराबर।
दिगंबर महावीर की आराधना।
अघोरी दर्शन ठंड  में नंगा।
सिकंदर हार गया  ठंड में  नंगे पडे।
स्वर्ण  से मुँह फेर साधु देख।
गर्मी  शीत  बराबरी
भारत महान।
स्वचिंतक स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन  आनंद कृष्णन।
जीवन में  गरम अधिक ठंड कम।
बिलकुल ठंड जीवन का अंत।

धूप -छांव

मंच  के संचालक सदस्य संयोजक चाहक रसिक पाठक सबको
तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक
 यस -अनंतकृष्णन का प्रणाम।
 आनंद कृष्णन। मतिनंत।

 शीर्षक:   धूप-छाँव।
 जिंदगी  सहर्ष  जीने के लिए।
पानी चाहिए। बिन पानी सब सून।
पानी चाहिए  तो भाप बनना है।
काले बादल  छा जाना है।
तब धूप  चाहिए।
धूप  न तो वर्षा  नहीं।
वर्षा न तो हर्ष  नहीं।
हरियाली  नहीं।
छाया नहीं  सांसारिक माया नहीं।
 पंचतत्वों से बने जीव में
आग नहीं  तो शरीर ठंड
पड जाएगा तो मानव शवयान में।
ज्वर बढ जाएँ  तो  ठंडे कपडे माथे पर।
बिलकुल ठंड होने न देते।
प्रकृति के संतुलन में
गरम  तो आग।
आग बुझाने  पानी।
बिलकुल  बुझा न पाए तब
वर्षा। पानी।हवा ।पतझड।
पनपना यही।
धूप छाँव  की जिंदगी।
माया -छाया मन माया जिंदगी।
 छाया का महत्व गर्मी  मैं।
केवल छाया तो पनप नहीं।
अतः धूप में चुस्ती,छाँव में सुस्ती।
यही है मानव जीवन।
पाश्चात्य देशों  में  ठंड अधिक।
परिश्रम अधिक।
भारत देश में सब बराबर।
दिगंबर महावीर की आराधना।
अघोरी दर्शन ठंड  में नंगा।
सिकंदर हार गया  ठंड में  नंगे पडे।
स्वर्ण  से मुँह फेर साधु देख।
गर्मी  शीत  बराबरी
भारत महान।
स्वचिंतक स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन  आनंद कृष्णन।
जीवन में  गरम अधिक ठंड कम।
बिलकुल ठंड जीवन का अंत।

दिल

नमस्ते।
दिल बचाने का हुनर बताना।
दिल चुराने अलग।
दिल में वास करना अलग।
दिल से दौडना अलग।
दिल से भागना अलग।
दिल से भगाना अलग।
दिल में  भय खाना अलग।
दिल स्थिर रखना ही अलख जगाना।
चंचल  मन माया।
अचंचल मन ध्यान  में।
एकाग्र  चित्त एकांत  में।
 तप में  ध्यान  में।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम।

Saturday, December 21, 2019

तन्हाई

संयोजक चाहक रसिक पाठक सबको तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम।
  शीर्षक:  यादें  तन्हाइयां 22-12-19।
 बचपन से अब तक  की यादें
कितना परिवर्तन।
सामाजिक  परिवर्तन।
वैज्ञानिक आविष्कार  में  परिवर्तन।
शिक्षा के माध्यम  में  परिवर्तन।
अध्यापक की इज्ज़त में परिवर्तन।
टट्टी के आकार में  परिवर्तन।
भोजन पोशाक पोशाक में  परिवर्तन।
वर्दी में  परिवर्तन।
कुछ अच्छे कुछ बुरे।
संतोष असंतोष  परिवर्तन।
सत्तर साल की आजादी के बाद भी
सरकारी सार्वजनिक संपत्ति
रेल बस जलाना सरकार
  कानून चुप रहना ।
पटरियाँ  उखाड़े देख।
एंबुलेंस को भी रोकते देख
सार्वजनिक  स्थानों  की थूक।
कूडे की बद्बू महसूस  कर
दुख  ही दुख होता है मन में।
नदियों  की चौड़ाई कम।
सार्वजनिक कुएँ सूख गए।
हजारों  झील नदारद  हो गए।
मातृभाषा माध्यम  केवल  नाम मात्र।
मातृभाषा में  बोलना अपमान की बातें।
स्नातक स्नातकोत्तर  शिक्षित समुदाय।
साफ सुथरे मंदिरों की दीवार पर।
ताजमहल जैसे सुंदर यादगारों में
ऐ रिव्यू लिखना, अनुशासन हीन शिक्षा।
पैसे  के लिए  अध्यापक  छात्रों  का गुलाम  बनना,शासकों के बेगार पुलिस।
न्यायालय  तो अन्याय निलय।
मंदिर  वाणिज्य  केंद्र।
तन्हाई में  बहुत  विचार  आते हैं।
 अंत में  सांत्वना  दिलासा
निश्चिंतता तुलसीदास जी का पद
सबहिं नचावत राम गोसाई।
भले-बुरे  आँधी-तूफान  की सृजन कर्ता
खट्टे -मिट्ठे फल की सृष्टि कर्ता।
सुंदर  असुंदर खुशबू-बदबू के
रचनाकार  का दायित्व।
ध्यान मग्न हो बैठ जाना ।
देश की भलाई  भगवान के भरोसे पर।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन का प्रणाम

सामाजिक सद्भाव

प्रणाम।
सामाजिक  सद्भाव। 21-12-19।
  जगाना आसान,
 जो सचमुच  सोते हैं।
 पर भारतीय लोग वीरगाथा  काल से
 आज तक जागा नहीं। सोते भी नहीं।
अशिक्षित  समुदाय  सैनिक,
अपनी पत्नियों  की सिंदूर  मिटाने,
अपने बच्चों  को अनाथ बनाने
 मर मिटते।  किसके लिए।
केवल  राजा और राजकुमारी के प्रेम मिलन और शादी के लिए।
यों ही देश मुगलों  का गुलाम  बना।
वीरों  की वीरता
 राजा के सुख  के लिए।
बेकार।
मुगल आये:
भक्ति काल  में  शांति।
तब रीतिकाल  में 
फिर सोये।मस्ती  में  लगे।
अंग्रेज़ी  आये।
इन विदेशियों  के आगमन के
कारण विदेश  नहीं।
भारत में  देश  भक्ति  की कमी।
स्वार्थी देश  द्रोही  साँपों  का
विषैले  विचार  अनेक।
तुरंत  अपनी मातृभाषा  भूल गये।
 अंग्रेज़ी  सीखी।
मातृभाषा  बोलनेवालों  को बुद्धू माना।
भारतीय पोशाकों  को छोड़  धोती छोड
चोटी  छोड  बिलकुल  अंग्रेज़ बने।
 एक थप्पड़  के मार से
एक भारतीय  जागा।
सबको जगाया।
महात्मा  विश्ववंद्य  बना।
आजादी  के बाद देशोन्नति  हुई।
पर वे नेता  निस्वार्थ  स्वर्गसिधारे।
अपने वंश तक बदले लोग शासक बने।
विदेशी  खून मिले लोग  विदेशों  में  संपत्ति  जोडे।
भारतीय  प्रमुख धंधा खेतबाड़ी।
प्रोत्साहन  न देकर,
चैन नगर के चार बेकार  की तरह
भारतीय  मेहनती भूखों  मरने लगे।
भारतीय  ठंडे पेय की जगह
विदेशी  पेय।विदेशी कला।
हर बात  में भारतीय मिट गयी।
कई झील नदारद।
पवित्र गंगा  प्रदूषित।
उर्वर खेत कारखाने बस्ती बने।
मातृभाषा माध्यम स्कूल बंद।
गरीब  रेखा  के नीचे  लोग
मातृभाषा माध्यम।
अमीरों  के लिए  अंग्रेज़ी माध्यम।
 सांसद  विधायक  अरबों करोड़ पति
बनने वोट  बेचने वाले मतदाता ।
नेता  के शोषण भ्रष्टाचार  जान समझ
वोट  देनेवाले  मत दाता 30•/•।
वोट  न देनेवाले व्यस्त  40•/•।
अब थोक व्यापार  जीतना एक दल के नाम पर समर्थन  विपक्षी पक्ष को।
 जागना जगाना जवान जगाना कैसे?
अब इन सब के बाद  भी
भारतीय  न जागें  तो चिंता नहीं
सबहिं नचावत राम गोसाई।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन ।

Friday, December 20, 2019

फल

मंच  को नमस्कार।
उड़ान  उड़ना हवाई जहाज मात्र नहीं।
पक्षी  मात्र नहीं।
प्राण पखेरू उड़ चला  भी है।
पुनर्जन्म भी है।
नमस्ते।  வணக்கம்.
प्रणाम।
कली विकसित फूल।  மொட்டுக்கள்மலர்ந்தபூக்கள்
फूल विकसित कच्चा फल। பூக்கள் வளர்ச்சி காய்கள்
कच्चा फल विकसित फल। காய்கள்வளர்ந்துபழங்கள்.
फल कुछ  मिट्ठे, பழங்களின் சில இனிப்பு
फल कुछ खट्टे। பழங்களில் சில புளிப்பு.
मिट्ठे-खट्टे फल सही। இனிப்பு புளிப்பு பழங்கள்சரி.
विषैले फल भी होते हैं। விஷம்நிறைந்த பாகங்களும் இருக்கின்றன.
कली फूलों  से कहती।மொட்டுகள் பூக்களிடம் சொல்கின்றன 
कल हमारी बारी। நாளை நம்முடைய முறை.
कली फूल फल  में  மொட்டுகள்,பூக்கள்,பழங்களில்
कितना फरक।எவ்வளவு  வேறுபாடுகள்.
फल बीज  पेड हरे पत्ते।பழம் விதை பசுமையான இலைகள்.
फूल तितलियाँ  मकरंद केसर।பூக்கள் வண்ணத்துப்பூச்சிகள் மகரந்தகேசரம்
एक आकर्षण दूसरे आकर्षित का आहार।
ஒன்று  கவர்ச்சி மற்றொன்று கவரப்பட்டவனுக்கு ஆகாரம்.
परिणाम  बीज। बीज से पेड। பலன் விதைகள்.விதைகளில் இருந்து மரங்கள்
ईश्वरीय सृष्टि  के सामने, கடவுளின்  படைப்பிற்கு முன்
मानव ज्ञान  बेकार। மனித அறிவு வீண்.
மரணம்.मृत्यु।
 மறுபிறவி पुनर्जन्म।
 குழந்தை  शिशु
முதுமை बुढापा।
இதுவே சுழற்சி. यही घुमाव।
सबहिं नचावत राम गोसाई। ।
எல்லோரையும்  ஆட்டிப்படைப்பவன்
ஆண்டவன்.

स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन ।
சுய சிந்தனையாளர்.
சுயமாக எழுதிய கவிதை
எஸ்.அனந்தகிருஷ்ணன்.
மதினந்த்

उड़ान

संचालक सदस्य संयोजक चाहक रसिक पाठक सबको तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक 
यस अनंतकृष्णन का प्रणाम।
 शीर्षक  :उडान।
 चिडिया उड़ती है।
पक्षी उडते हैं।
उड़ान की जरूरत
उनको नहीं।
ईश्वर ने पंख दिये हैं।
तमाशा  देखिए!
मुर्गा मुर्गी   मोर आदि  की
उड़ने की तेज
ऊँचाई   
बाज गरुड की तेज
 ऊँचाई
कितनी  ।
जहाज की पंछी
सूर ने कहा
जहाज में  ही आ जाता।
सूर का उड़ान सर्वत्र उडकर
श्री कृष्ण में  ही बस जाता।
ईश्वर  की सृष्टियों  में मानव श्रेष्ठ।
उनकी शक्ति  ईश्वर की देन।
उड़ान की ऊँचाई 
कल्पना का साकार
ऊँचे विचार निम्न विचार।
 पक्षी  अभयारण्य के  अध्ययन में
पक्षी  देश विदेश  हज़ारो मील उडकर
मौसम पर उड़ान भरते हैं।
देशांतरन की  शक्ति
न पास पोर्ट न विसा।
मानव की कल्पना
उड़ान में  बाधा नहीं  पर
कार्यान्वित करने में
उड़ान में बाधा।
मानव की कल्पना उड़ान की
ऊँचाई  ईश्वरीय देन।
मुर्गी बराबर उडते  कुछ।
बाज बराबर  उडते कुछ  लोग।
उल्लू की शक्ति   अंधेरे में
सबकुछ  दीख पडता।
कल्पना  के उड़ान में
अधिक  ऊँचाई नापना।
ऊँचाई  से पाताल के कीड़े पकडना।
एवरेस्ट तक पहुँचना।
ईश्वरीय देन।
अपना अपना भाग्य विशेष।
सबहिं  नचावत उडावत राम गोसाई।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

संयोग वियोग

नमस्ते।
संयोग वियोग।
कल्पना  करने समय कहाँ?
प्रेम प्रेमिका के मिलन कहाँ?
रीति काल के कवियों  के समान
बेकार लोग  कोई  नहीं आजकल।
स्नातक शिक्षित समाज में
पति नैट ड्य्टी पत्नी डे ड्यूटी
दिन दिन संयोग वियोग  ।
आधुनिक समाज  में।
बात बात में गुस्सा।
रोज पति-पत्नी में मन मुटाव।
बिस्तर दक्षिण  उत्तर ध्रुव।
दिमागी काम भारी मन।
संयोग वियोग  दिन दिन।
दादी से पूछा  आपका जमाना कैसा?
दादी ने कहा हम पढी लिखी  नहीं।
दस साल  की उम्र में  शादी।
बडा सम्मिलित परिवार।
न ग्रैंडर।न वाशिंग मिशन न मिक्शी।
आजकल  के समान  अलग अलग
शयनाघर नहीं, थक कर रात
 ग्यारह बारह बजे सोने जाते।
पति पत्नी बोलते नहीं।
पर चार घंटे  की नींद।
हर साल एक बच्चा।
हम न जानते संयोग वियोग।
ये कल्पना राजकुमारी  राजकुमार।
दरिद्र बेकार कवियों  के काम।
युवकों  को सोचने समय नहीं।
विदेश में  नौकरी। नेट में  मिलन।
संयोग  वियोग  के चिंतन का समय नहीं।
संयोग में  बात बात की लडाई।
अलग परिवार हम दो ।तलाक की बातें।
संयोग  वियोग की बातें पटकथा में।
बेकार  लोगों  की कल्पना।
घर का हर काम यंत्र करता।
यंत्र  के कर्जा चुकाने पति पत्नी
यंत्रवत जीवन ।
बच्चे केलिए किराया माता।
 शादी  की देरी निस्संतान की चिंता।
संयोग  वियोग के वर्णन करते
बेकार लोग।
यंत्र वत व्यस्त जीवन में
संयोग वियोग न जानते लोग।
स्वचिंतक स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

जन्नत

नमस्कार।
प्रणाम।
  शीर्षक: जन्नत।
  जन्नत  कहाँ  हैं?
कामांधकारों के लिए,
नारी ही स्वर्ग।
तब तो स्वर्ग  उसके लिए
यह धरती  ही स्वर्ग  है।
पियक्कडों के लिए
 मधुशाला स्वर्ग।
पर्यटकों  के लिए
प्राकृतिक दर्शन स्वर्ग।
कवियों  के लिए उनकी
 रचना स्वर्ग ।
चित्रकारों  के लिए
चित्र खींचने में स्वर्ग।
हर एक यहीं  स्वर्ग का
अनुभव  करते हैं  तो
और कहीं  स्वर्ग  नहीं।
जहन्नुम  यहीं  दीर्घ रोगी।
दीर्घ दरिद्री, लूले लंगड़े,अंधे,बहरे।
 कइयों  को देखते हैं  यहाँ।
जन्नत  अलग नहीं  जहन्नुम अलग नहीं।
सब के सब यहीं।

स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

Thursday, December 19, 2019

आत्मनिर्भर

संचालक सदस्य संयोजक चाहक रसिक पाठक सबको
 तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी
 हिन्दी प्रचारक यस-अनंतकृष्णन   का प्रणाम।
 शीर्षक  : आत्मनिर्भर  दि:191219
कलियुग में एक बात
 अच्छी लगती।
काश!आत्मावलंबन।
 राजा के तीन बेटे।
बडा बेटा राजा बनने का हक।
बाकी दो की जिम्मेदारी कम।
सम्मिलित परिवार बडा बेटा
जिम्मेदारी,बाकी  का दायित्व कम।
पितृतर्पण भी बडे बेटे  कर्ता।
बाकी  निश्चिंतव गैर जिम्मेदार।
कलियुग  में  परिवार  के सब के सब
आत्मनिर्भर/आतामावलंबित।
परिवार  अलग  अलग।
नौकरी दूर  दूर।
एक ही संतान।
वह भी विदेश में ।
आत्मनिर्भरता अनिवार्य।
तीन साल  का बच्चा।
माँ-बाप दोनों  करते नौकरी।
वह बच्चा  खुद  खाता।
प्यार से घंटों  खिलाने समय नहीं।
आत्मनिर्भर बनाने में
कलियुग  का महत्व  अधिक।
राजनीति में  माँ,बाप ,बेटे ,बेटी
अलग अलग चुनाव  लडना।
आत्मसामर्थ्य  आत्मबल से
आत्मनिर्भर होकर जीतना है।
आत्मानंद आत्मसुख आत्मसंतोष
आत्म सम्मान  स्वाभिमान जिंदगी
जीने आत्म निर्भरता अतिआवश्यक।
आयकर बचाना है तो
एक ही व्यापार  चार बेटों  के लिए
अलग अलग दूकान।
आत्मनिर्भरता आय कर बचा लेता।
 आत्मनिर्भरता अति लाभ  प्रद।
पिता कांग्रेस माता भाजपा
पोता शिव सेना  मामा कम्युनिस्ट
चाचा एक छोटा  -जाति संप्रदाय 
प्रांतीय दल।
आत्मनिर्भरता से जीने की कला।
एक ही परिवार  भिन्न दल।
आत्मनिर्भरता में सत्ता
अपनों  के हाथ  में ।
यहाँ  शकुनि ,मंथरा आदि बेकार नहीं।
हर एक अपने अपने काम में व्यस्त।
नाते रिश्ते मित्रों के लिए
आत्मनिर्भर होकर जीने में
आत्मानंद  वही परमानंद।
स्वचिंतक स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

Monday, December 16, 2019

-सपनों से भरे नैना।


कहानी शीर्षक :--सपनों से भरे नैना।
जब राम बच्चा था ,तब से आध्यात्मिक चमत्कार की बातें सुना करता था.

उसके दिमाग में अष्टसिद्धियाँ पाने की इच्छा के अंकुर फूटने लगे.कालिदास की कहानी सुनकर काली माता का ध्यान करता था. भक्तों को सद्यः वर देने वाले शिव का भक्त बनकर ॐ नमः शिवाय की तपस्या में लगा। सपनों से भरे नैना अष्टसिद्धि की कल्पना ,लघु रू से विराट रूप इस सपने में ही आदर्श भक्त बन गया.उसके मन से लौकिक विचार हट गए, तुलसी दास की कहानी से शारीर सड़नेवाली की बात आदि सुनकर साधू सिद्धपुरुष बन गया.उसको एक दिव्य शक्ति मिल गयी.वह आरादनीय व्यक्ति बन गया.यही आत्मसंयम का हिन्दू धर्म। सपनों से भरे नैना

Sunday, December 15, 2019

ईश्वरीय कानून।

परिवार  दल - कलम की यात्रा।  குடும்பங்கள்.பேனாவின்பயணம்.
नमस्ते। वणक्कम।
வணக்கம்.
சுய சிந்தனையாளர் சுயமாக இயற்றியது.
स्वचिंतक स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।
शीर्षक: सच्चाई। தலைப்பு: உண்மை.

வரம் தா கலைமகளே!
விவாதங்களில் சத்திய த்தின்  வெற்றி.
அசத்தியத்தின் தோல்வி கிட்டட்டும்.

.உண்மையில் மனிதனுக்கு
 துன்பங்கள் ஏன்?
இன்று  உண்மை வெளிப்பட
 ஞானம் கொடு.
உன்னுடைய லீலைகள் மிக நுண்ணியமானது.
ஊழல்வாதிகளின்
செழிப்பான வாழ்க்கை.
லஞ்ச அதிகாரிகளின் 
வாழ்க்கை
ஆணவ ஆட்சியாளர்களின்
 வாழ்க்கை
அறிவுக்கண் பெற்ற மனிதன்
அறிந்து  படிப்பதில்லை.
சிந்திப்பதில்லை.
உண்மையான வாழ்க்கை
சுகமானதே.
இந்தியப் பிரதமர்கள்
அம்மாவும்  மகனும்
புகழத்தக்க ஆட்சி  நடத்தினார்கள்.
இருவரின்  முடிவும்  எதிர்பாராதது.
அவர்கள் ஆட்சியில்
மடிந்தவர்கள் எத்தனை?
தொலைபேசியில் பேசி
வங்கியில்  பணம்.
சான்றளித்து
 நகர்வாலா மரணம்.
காவல் அதிகாரிகள் மரணம்.
அமைச்சர் மிஸ்ரா மரணம்.
பலன் அம்மாவின் புத்திர சோகம்.
அம்ருதசரில் மாநிலக் கட்சி
பொற்கோவிலில் ஆயுதங்கள்.
உண்மை  தெரியவில்லை.
மெய்காப்பாளரால் அம்மாவின்
இரக்கமற்ற  கொலை. மெய்க்காப்பாளர்மரணம்.
உண்மையும்  உன் நுண்ணிய
 லீலைகளும்  புரியவில்லை .
எத்தனை  அதிகாரிகள்
முதுமையில் தன் இளமை
லஞ்சத்தால்
வஞ்சகத்தால்
அல்லல் படுகிறார்கள்.
எத்தனை அதிகாரிகளுக்கு
தசரதன் போல் புத்திர சோகம்.
முதியோர் இல்லத்தில்
துடிக்கும் வாழ்க்கை.
எத்தனை  அரச பரம்பரை
வாரிசுகள் வறுமைக் கோட்டிற்கு கீழ் .
பெற்றோர்களின் நல்ல
தீய கர்மபலன்.
எத்தனை  நடிகைகள்
இறுதி நாட்களில்
நரகவேதனை.
அக்கம் பக்கம் உற்றார் உறவினர்கள்
வாழ்க்கையைப்  படித்தால்
இன்ப- துன்பங்களில்
ஆணிவேர் தெரியும்.
ஏரிகள் மறைகின்றன.
ஆறுகள் மாசுபடுகின்றன.
ஆற்றுமணல் கொள்ளை அடிக்கப்படுகிறது.
ப்ளாஸ்டிக் குப்பை  குன்றாகிறது.
இரக்கமற்ற  பசுவதை.
நாணயமற்ற நடத்தைகள்
இதன் தீய விளைவுகள்
நரகவேதனை வேதனைகள்.
தனியான சுவர்க்கம் நகரம் இல்லை.
இந்த பூமிதான் இந்த  இரண்டுமே.
இந்த  நுண்ணிய தண்டணை
 நீதிதான்இறைவனுடையது.
நரகமும் சுவர்க்கமும்
  தவறுகளால்தான் தான்.
நிகழ் கால தலைமுறையின்
 கர்மபலன்  எதிர்கால
தலைமுறையின்
சுவர்க்க நரக வாழ்க்கை.
தீரும் நோய்கள்  தீரா நோய்கள்.
நோயின் வேதனை.
உண்மையாக யோசித்துப் பாருங்கள்.
தங்கள்  வாழ்க்கை நடைமுறையில்
வெளி ஆடம்பரத்தைத்
தவிர்த்து  விடுங்கள்.
கடவுளின் பெயரால்
நாணயமுள்ளவர்களாக
இருங்கள்.
இதுதான்  பரிசு- தண்டனை  என்ற
கடவுளின்  சட்டம். நீதி.
அனந்தகிருஷ்ணன் மொழிபெயர்ப்பு
மூலம்  ஹிந்தி  கவிஞர்  அனந்தகிருஷ்ணன்.
*************************************

 वर दे वीणा  वादिनी  वर दे।
वाद विवाद  में
 सत्य की विजय।
असत्य की असफलता
मिल जाएँ।
वास्तव  में 
मानव दुखी  क्यों?
आज सच्चाई प्रकट करने का
 ज्ञान दे।
तेरी  लीलाएँ अति सूक्ष्म।
भ्रष्टाचारियों  का संपन्न जीवन
रिश्वतखोर अफसरों का जीवन।
अहंकारी  शासकों  का जीवन।
ज्ञान चक्षु प्राप्त मनुष्य 
अध्ययन
करता ही नहीं,
सोचता भी नहीं।
सुखी जीवन सच्चाई  में।
 भारत  के प्रधानमंत्री  माँ और बेटे
दोनों  का शासन प्रशंसनीय रहा।
दोनों  का अंत  अति अप्रत्याशित।
कितने मरे उनके शासन काल में।
फोन द्वारा  बोल पैसे  लिये।
आवाज़ की मिमिक्री ,प्रमाणित किया।
वह नगरवाला, उस केस के अधिकारी
मंत्री  मिश्रा सब एक साथ  मारे गये।
नतीजा  माँ पुत्र शोक । अमृतसर में
प्रांतीय दलों के विकास,मंदिर  में
अस्त्र-शस्त्र  कैसे पहुँचे
सच्चाई का पता नहीं ।
अंग रक्षक ने प्राण  लिये।प्राण दिए।
वास्तविकता तेरे सूक्ष्मता न समझा हम।
पुत्र शोक में  दशरथ जैसे
कितने वृद्ध  अधिकारी
कितने अधिकारियों के पुत्र अल्पायु।
वृद्धाश्रम  में  तडपता जीवन।
करोडों की संपत्ति  कितने राजपरिवार
आजकल  भूखे प्यासे।
कारण
माता पिता के सतकर्म -बद्कर्म फल।
कितनी अभिनेत्रियाँ जीवन के
अंतिम काल में  नरक वेदना।
अडोस पड़ोस  अपने जीवन,
नाते रिश्ते मित्रों  के जीवन का
अध्ययन से पता चलेगा
जीवन की सच्चाइयाँ  और
 दुखों का मूल।
झील  गायब  ,नदी प्रदूषण,
रेत की चोरी ,
प्लास्टिक कूडे
गोवध निर्दय
 बेईमानदार व्यवहार
इन सब का नरक वेदना
दुष्परिणाम
यही धरती पर ।
न अलग स्वर्ग-नरक।
यही सच्चाई
सूक्ष्म दंड  नीति ईश्वर की।
नरक -स्वर्ग  भूलों में ही।
सच्चाई यही भावी पीढी  का
स्वर्ग-नरक
वर्तमान  पीढ़ी  के कर्म पर।
ईश्वरीय  दंड  से धरती  ही स्वर्ग  नरक।
साध्य रोग ,
असाध्य  रोग।
रोग की पीडा,
यकीनन सोचिए।
अपनी जीवन शैली  में
बाह्याडम्बर  को स्थान  न देना।
ईश्वर के नाम लेकर
 ईमानदारी अपनाइए।
यही है पुरस्कार-दंड  का
ईश्वरीय  कानून।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

Friday, December 13, 2019

बेमौसम

नमस्कार। नमस्ते। वणक्कम।
शीर्षक: बेमौसम के ख्याल।
मौसमी फल -फूल सस्ते।

बेमौसमी में महँगे।
मौसमी सर्दी, गर्मी,
वर्षा,वसंत
आनंदप्रद।
बेमौसमी में उल्टा
परिणाम।
ठीक है,
पर बेमौसमी के ख्यालात।
बालकपन में नौकरी।
जवानी में दरिद्रता।
बुढापे में जवान
लडकी से शादी।
जवानी में कुमारी कुमार
अविवाहित ।
बलातकार,
भ्रष्टाचार,
रिश्वत।
अधिकार का दुष्प्रयोग।
ये सब बेमौसमी ख्यालात।
एक संक्रामक रोग।
मानव मन में अकाल।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

Thursday, December 12, 2019

आने का बंदीश

नमस्कार। नमस्ते। वणक्कम।
  आने का बंदीश।
उपदेश दिलाने
पाठ सिखाने
स्कूल में  भर्ती  कराने
माता-पिता,
अभिभावक  तैयार।
नौकरी दिलाने,
शादी कराने तक
दायित्व  माता -पिता।
माता पिता के प्रति
पुत्र पुत्रियों का दायित्व  अलग।
निभाने तैयार हो तो सपूत।
निभाने  तैयार  नहीं  तो कुपूत।
पथ दिखाने में  सनातन  धर्म  न चूका।
अंग्रेज़ी  शिक्षण-प्रशिक्षण
इस सनातन प्रवृत्ति  को
मिटाने सनूनद्ध।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

Tuesday, December 10, 2019

प्रयत्न/कोशिश/चेष्टा।

नमस्कार। वणक्कम।
संचालक सदस्य नमस्कार। वणक्कम।
संचालक सदस्य संयोजक चाहक
रसिक पाठक सबको नमस्कार।
कलम की यात्रा  का 11-12-19
का शीर्षक--- "कोशिश "

कोशिश  /प्रयत्न/चेष्टा।
कोशिश  करो ।
पता चलेगा  भाग्य बडा है या प्रयत्न।
बडे भाई साहब कहानी,
सदा हाथ में  ग्रंथ।
परीक्षा  में असफल।
बडे भाई साहब की हालत।
छोटा भाई सदा खेलता-कूदता।
वर्ग में अव्वल
 बडे भाई  का सहपाठी बना।।
तिलक नयी पीढी
 भूल गई होगी,
बाल गंगाधर तिलक।
लाल बाल पाल  तीनों
स्वतंत्रता संग्राम  के सेनानी।
याद  दिलाता हूँ,
तभी युवा पीढी
देश  की परतंत्रता
की यातनाएँ याद कलेगी।
याद  होगी।
यह भी एक कोशिश।
युवा  पीढी  के चरित्र गठन में।
लाल लाला लजपतिराय।
बाल गंगाधर तिलक
पाल विपिनचंद्रपाल।
तिलक वर्ग  में कुछ नहीं लिखते।
एक बार अध्यापक ने पूछा-
बिना लिखे चुपचाप बैठे हो?
तुरंत  तिलक ने कहा-लिख लिया।
कहाँ  लिखा।
तिलक ने सिर पर हाथ रख
कहाँ-यहाँ।
अध्यापक आप से बाहर आ गये।
तिलक ने  अध्यापक  ने जो कुछ
लिखाया अक्षरशः बता दिया।
 आवाक रह गये गुरु वर।
 पढने की कोशिश में
भगवान का अनुग्रह चाहिए।
औसत बुद्धिवाले
 मोहनदास करमचंद गाँधी  को
 छात्रवृत्ति मिली।
सौराष्ट्र प्रांत के आरक्षित छात्रवृत्ति।
एक ही छात्र थे गाँधी जी।
ईश्वर का महत्व
अप्रयत्न  छात्रवृत्ति।
विमान चालक राजीव,
अचानक  प्रधान मंत्री।
उनके बडे भाई  का
अकाल मृत्यु।
मानव कोशिश करता रहताहै।
सफलता  की चोटी पर
पहुँचाने वाले  सर्वेश्वर।
सुबुद्धि  कुबुद्धि देनेवाले ईश्वर।
 तमिलनाडु  के प्रसिद्ध मुख्यमंत्री
एम-जी-आर मर गये,
उनकी पत्नी जानकी,
राजनीति  ही न जानती।
घर से बाहर  कभी नहीं  निकली।
राजनीति  भाषण मंच पर न चढी।
पर मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बैठी।
लुटेरा वाल्मीकि आदी कवि बना।
पत्नी  के साथ सदा चिपककर रहनेवाले
तुलसीदास हिंदी साहित्य
गगन के चांद बने।
 इन सब को याद दिलाने की कोशिश में
भक्ति धारा संयम सिखाने
ईश्वर ने लिखने की प्रेरणा दी।
कोशिश करना मानव धर्म।
कोशिश  करना  एक राजा ने
मकडी के जाल बुनने से सीखा।
हार कर निराश  बैठे राजा को
आशा बंदी।
कोशिश और सफलता में
ईश्वरानुग्रह  चाहिए।
भक्ति भाव जगाने  की कोशिश में
आज कोशिश की कविता।
भक्ति  चंचलता मिटाती।
भक्ति एकाग्रता देती।
शांत संतोष चित्त
सत्य-अहिंसा-दान-धर्म ,
ईमानदारी  पुण्य के विचार  देता।
 पराजय में  विजय की आशा।
चिकित्सक ऊपर हाथ दिखाकर
अपना हाथ  छोड़  देता।
तब भक्ति ही आशा का मूल।
बचाने की कोशिश में  ध्यान।
सबहिं नचावत राम गोसाई।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।शिश "

कोशिश  /प्रयत्न/चेष्टा।
कोशिश  करो ।
पता चलेगा  भाग्य बडा है या प्रयत्न।
बडे भाई साहब कहानी,
सदा हाथ में  ग्रंथ।
परीक्षा  में असफल।
बडे भाई साहब की हालत।
छोटा भाई सदा खेलता-कूदता।
वर्ग में अव्वल
 बडे भाई  का सहपाठी बना।।
तिलक नयी पीढी
 भूल गई होगी,
बाल गंगाधर तिलक।
लाल बाल पाल  तीनों
स्वतंत्रता संग्राम  के सेनानी।
याद  दिलाता हूँ,
तभी युवा पीढी
देश  की परतंत्रता
की यातनाएँ याद कलेगी।
याद  होगी।
यह भी एक कोशिश।
युवा  पीढी  के चरित्र गठन में।
लाल लाला लजपतिराय।
बाल गंगाधर तिलक
पाल विपिनचंद्रपाल।
तिलक वर्ग  में कुछ नहीं लिखते।
एक बार अध्यापक ने पूछा-
बिना लिखे चुपचाप बैठे हो?
तुरंत  तिलक ने कहा-लिख लिया।
कहाँ  लिखा।
तिलक ने सिर पर हाथ रख
कहाँ-यहाँ।
अध्यापक आप से बाहर आ गये।
तिलक ने  अध्यापक  ने जो कुछ
लिखाया अक्षरशः बता दिया।
 आवाक रह गये गुरु वर।
 पढने की कोशिश में
भगवान का अनुग्रह चाहिए।
औसत बुद्धिवाले
 मोहनदास करमचंद गाँधी  को
 छात्रवृत्ति मिली।
सौराष्ट्र प्रांत के आरक्षित छात्रवृत्ति।
एक ही छात्र थे गाँधी जी।
ईश्वर का महत्व
अप्रयत्न  छात्रवृत्ति।
विमान चालक राजीव,
अचानक  प्रधान मंत्री।
उनके बडे भाई  का
अकाल मृत्यु।
मानव कोशिश करता रहताहै।
सफलता  की चोटी पर
पहुँचाने वाले  सर्वेश्वर।
सुबुद्धि  कुबुद्धि देनेवाले ईश्वर।
 तमिलनाडु  के प्रसिद्ध मुख्यमंत्री
एम-जी-आर मर गये,
उनकी पत्नी जानकी,
राजनीति  ही न जानती।
घर से बाहर  कभी नहीं  निकली।
राजनीति  भाषण मंच पर न चढी।
पर मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बैठी।
लुटेरा वाल्मीकि आदी कवि बना।
पत्नी  के साथ सदा चिपककर रहनेवाले
तुलसीदास हिंदी साहित्य
गगन के चांद बने।
 इन सब को याद दिलाने की कोशिश में
भक्ति धारा संयम सिखाने
ईश्वर ने लिखने की प्रेरणा दी।
कोशिश करना मानव धर्म।
कोशिश  करना  एक राजा ने
मकडी के जाल बुनने से सीखा।
हार कर निराश  बैठे राजा को
आशा बंदी।
कोशिश और सफलता में
ईश्वरानुग्रह  चाहिए।
भक्ति भाव जगाने  की कोशिश में
आज कोशिश की कविता।
भक्ति  चंचलता मिटाती।
भक्ति एकाग्रता देती।
शांत संतोष चित्त
सत्य-अहिंसा-दान-धर्म ,
ईमानदारी  पुण्य के विचार  देता।
 पराजय में  विजय की आशा।
चिकित्सक ऊपर हाथ दिखाकर
अपना हाथ  छोड़  देता।
तब भक्ति ही आशा का मूल।
बचाने की कोशिश में  ध्यान।
सबहिं नचावत राम गोसाई।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

Sunday, December 8, 2019

निशाचर

नमस्कार  परिवार दल के मित्रों।
नमस्कार।
शीर्षक  रात -रजनी।
निम्न  पर्यायवाची  शब्द।

रजनी  रात | निशा | निशि | तमा | रात्रि | अमाँ | अमावस्या | कादंबरी | क्षपा | क्षणदा | तमस्विनी | तमिस्रा | त्रियामा | दोषा | निशीथ | निशीथिनी | यामिनी | राका | रैन | विभावरी | शर्वरी |
  2,30 बजे सबेरे सोमवार।
  नींद टूटी। वणक्कम।
शीर्षक  देखा-- रात रजनी।
समानार्थी दो शब्द।
रात सोने का समय।
तमा अंधकार।
नवदंपतियों को नींद कहाँ ?!
वंश वृद्धि  का ईश्वरीय देन।
कामेच्छा। कामाक्षी।
कामेश्वर।कामेश्वरी।
रात आधी रात  भारत का
भाग्य  खुला।
न जाने कितने
आजादी  का आनंद  मनाया।
कितने जागे, कितने उछले।
कितने स्वार्थ  में  सोये।
करोडों  सत्याग्रहियों के
कठोर परिश्रम।
कारावास  का कठोरतम दंड।
कइयों ने प्राण त्यागे।
कइयों ने तन सुख त्यागा।
पद त्यागा।धन त्यागा।
मन में भावी भारत वासियों की चिंता।
गुलामी-बेगारी भगाने  की चिंता।
उनका सपना आधी रात में साकार।
पर जो स्वार्थ थे:कामांध थे।
अपने  अपने सुख में  भग्न नग्न  नींद में।
दिन में जागे पद अधिकार में
ये ही शासक बने।भ्रष्टाचार  बढा।
आदर्श त्यागी दिन में  सो गये।
स्वार्थ   जाग गये।खान वंशज बनिया बना।
ठेकेदार बने। आधी रात जो  जाग
आनंद  मना रहे थे, सो गये।
 वतन की तरक्की  में  कुछ लोग,
अपनी तरक्की  में  कुछ लोग।
भारतीय  भाषा भूल गये।
भारतीय कला भूल गये।
जितेंद्रियता भूल गये।
 बिना अंग्रेज़ के दिवा नहीं
 के प्रचार में लगे।
परिणाम  तमा।तम छा गये।
बलातकार प्यार मनमाना।
बदमाश  नायक बन जाता  है।
शासक पुलिस अधिकारी खलनायक।
यही माया छायापट चित्र कथा।
न्यायधीश  अवकाश के बाद
खुल्लम-खुल्ला ऐलान  करता है
न्यायालय के  न्यायधीश को
 स्वतंत्रता नहीं ।
 पता नहीं,आजादी के बाद
हम रात में  है या दिन  में।
रात के पर्यायवाची शब्द  में
निशा में  चर जोड़  देखा तो
देश में  निशाचर नशाचर चोर डाकू
बलातकारी बढ  रहे हैं।
फिर भी देश तरक्की  के शिखर पर।
सबहिं नचावत राम गोसाई।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

Saturday, December 7, 2019

दुष्कर्म का अंत

मंच को प्रणाम।
वणक्कम।
 दुष्कर्मियों को  वध ही प्रधान।
शिव का काम वर देना।
विष्णु  का काम वध करना।
वध करने का काम ही
अत्याचार कर्मियों  का अंत।
भस्मासुर  को शिव ने वर दिया।
कौन सा वर अतिकर्ण कठोर।
निर्यात की चरम सीमा पर।
जिसके सिर पर वह हाथ रखता।
उसके सिर फट बिखर जाना।
भगवान ने वर दिया।
लोक संचारी नारद ने
विश्व कल्याण  के लिए
भस्मासुर  से कहा-
वर के सत्यापन  की जाँच
शिव के सिर पर हाथ  रख देख।
भस्मासुर शिव के सर पर हाथ रखने
शिव डरकर भागने लगा तो
वह असुर छोडने तैयार  नहीं ।
विष्णु  ने  लिया मोहिनी अवतार।
असुर ने शादी की इच्छा प्रकट की।
विष्णु  ने कहा मेरे जैसे नाचो।
तुरत करूँगी शादी।
नाचते-गाते नाचते-गाते सर पर हाथ रखा
तो असुर  ने  भी हाथ रखा।
असुर का सर चकनाचूर।
अत्याचार  बलात्कारी वर लेकर  आते हैं
अतः भ्रष्टाचार  ही बनजाते
सांसद। वैधानिक ।
वर देते जनता।
उनके अत्याचार अंत करने
 युगावतार का अंत चाहिए।
वध ही सही अतः
 मुगल दंड नीति बेहतर।
आँख तक मारने न होगा साहस।

स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

Friday, December 6, 2019

जीवन


संचालक सदस्य संयोजक
चाहक रसिक पाठक
परिवार  दल जिंदगी।
जिंदा है जिंदगी।
जी गुरु ,मन।
वन में  जडी बूटियाँ।
झाडियाँ।
आदमखोर  जानवर।
विषैले साँप।
ऋषि,मुनि,जंगल वासी।
जी गुरु  +वन
जी मन।
मन में जी है तो
जीवन नंदन वन।
नंद गोपाल चरने आता।
जी में  आनंद।
जीवन में  परमानंद।
जिंदा  शरीर।
आएगी जिंदगी।
जी की कृपा।
बाग बन जाता  वन।
जड़ी-बूटियों का पता चल जाता।
शरीर स्वस्थ: जी स्वस्थ।
जी परमानंद। ब्रह्मानंद।
जीवन दीर्घावधि जिंदा रहता।
जिंदगी में  गीताचार्य बस जाता।
वन की हरियाली  ,
जी में सदा बहार।
जीवन में सदा बहार।
जीवनानंद जिंदगी।
आज परिवार दल के कारण।
जी रूपी मन में  वन में
रंग बिरंगी कविताएँ।
जी मन में  मंगल।
जंगल  की रक्षा।
जीवन में सदा बहार।
समय पर वर्षा।
 जी वन में  मन माना विचार।
जिंदा मुर्दा जिंदगी में
आशा संचार।
जी  वन में जिंदगी का बहार।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।


Wednesday, December 4, 2019

सबके नचावत राम गोसाई।



सबके नचावत राम गोसाई।

भीड़ के दौर में
रास्ता कौन दें।
शीर्षक तो सरलतम या
कठिनतम पता नहीं।
भीड़ हो या बाढ़ हो ,
डूबते जहाज हो या गिरते विमान हो
जलते जंगल हो ,या भूकंप हो।
ज्वालामुखी हो ,बंम मारी हो
रास्ता कौन देगा ,वह तो सृजनहार प्रभु।
रंक को राजा ,राजा को रंक।
लंगड़े को चोटी तक ले जानेवाले ,
अंधे को आँखें प्रदान करनेवाले ,
जन्म से अंधे ,जन्म से रोगी ,
जन्म से अमीरी ,जन्म से गरीबी ,
जन्म से पौरुष ,जन्म से नपुंसक
सृजनहार प्रभु ,देगा रास्ता।

सबके नचावत राम गोसाई।



Monday, December 2, 2019

फूल

फूल 


अनंतकृष्णन  का
 विनम्र नमस्कार।
वणक्कम।
 हे ईश्वर।
 तेरी रचनाएँ
अति अद्भुत।

पर सब के सब
अस्थिर।
अस्थायी।

फूल  रंगबिरंगे।
नारी रूप  के फूल।
योनि रूप  के फूल।
पंक जल में  खिले पंकज।
हर फूल के रूप अलग।
सुगंध  अलग।
अति अल्प  आयु ।
कली के रूप में
चमेली तोडी जाती।
पारीजात बिना
 तोडे झर जाते।
गुलाब अति सुन्दर
  अनेक रंग।
गुलाबी रंग  के फूल
 सुगंधित।
अल्प आयु  के फूल।
खिलते हैं  झरते हैं।
मुरझाते हैं।

ईश्वर  का सजाना।
 सुहाग रात कमरा
 सजाना।
शव सजाना।
एक भक्ति।
दूसरा आनंद।
तीसरा शोक।
भक्ति,   सृजन,  मुक्ति ।
तेरे उपयोग  प्रेम में।
खिले:
महके ,
चल बसे।

मनुष्य  जीवन।
नश्वर जगत

  दार्शनिक
 तत्व का प्रतीक

स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

Sunday, December 1, 2019

रिश्ते

नमस्ते।
रिश्ते  शीर्षक  पर लिखा।
गायब।फिर  लिख रहा  हूँ।
वंशज वंशगत  रिश्ते  गायब।
क्यों? सब स्नातक-स्नातकोत्तर।
अंतर्जातीय विवाह,
अंतर्राष्ट्रीय विवाह।
खान वंश  भी गाँधी वंश।
चार्ल्स  भी गाँधी।
मेनका भी गाँधी।
चंद्र गुप्त यूनानी शादी।
राजीव  इटली शादी।
एंग्लो इंडियन वर्ग।
भारतीय रिश्ते  अति विस्तृत।
नतीजा  तलाक के मुकद्दमें  जारी।
खान - इंदिरागांधी समान
विवाहित कुमारी कुमार।
रिश्ते  नाते अद्भुत।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन


नमस्ते।
रिश्ते  शीर्षक  पर लिखा।
गायब।फिर  लिख रहा  हूँ।
वंशज वंशगत  रिश्ते  गायब।
क्यों? सब स्नातक-स्नातकोत्तर।
अंतर्जातीय विवाह,
अंतर्राष्ट्रीय विवाह।
खान वंश  भी गाँधी वंश।
चार्ल्स  भी गाँधी।
मेनका भी गाँधी।
चंद्र गुप्त यूनानी शादी।
राजीव  इटली शादी।
एंग्लो इंडियन वर्ग।
भारतीय रिश्ते  अति विस्तृत।
नतीजा  तलाक के मुकद्दमें  जारी।
खान - इंदिरागांधी समान
विवाहित कुमारी कुमार।
रिश्ते  नाते अद्भुत।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

Saturday, November 30, 2019

इतनी शक्ति हमें देना

ईश्वर  वंदना,
इतनी शक्ति  हमें  देना।
ईश्वरीय  स्मरण में
मन लग जाएँ।
हर कार्य  में
ईमानदारी  चमक जाएँ।
सत्य के फूल  खिल जाएँ।
धर्म  की महक मोहित  करें।
जितेन्द्र बन जीत सके संसार।
माया महा ठगनी से बच सकें।
संसार  में सुखी जीवन जीने
सब को सुबुद्धि मिलें।
पापियों  को भय दिखाना।
धर्म  के पक्ष के लोगों  को
खुश रखना,
असुरों  को वर देकर
 अवतार  न लेना।
खुद  कष्ट  न उठाना।
सीता का अग्निप्रवेश
सीता का त्याग
संतानों  से लड़ना
ईश्वरत्व करुणा  की शोभा नहीं।
भ्रष्टाचारियों को दंड  से बचाना।
अत्याचार की चरम सीमा  पर
अवतार लेना, भक्तों   को सताने
तेरे भक्तवत्सलता पर काला धब्बा।
क्षमा करना,  तेरी लीला सूक्ष्म  न जान
तेरी दी हुई  बुद्धि  से कर  रहा हूँ
विनम्र  प्रार्थना, उद्धार करना।
भक्तवत्सल  हो, दीनबंधु  हो।
अनाथ रक्षक हो, आश्रदाता।
मेरी सृष्टि  करता हो।
मैं  क्या माँगूँ।
जानता हूँ  सबहिं  नचावत  राम गोसाई।
हर हर शंकर , जय जय शंकर हर हर शंकर ।




Friday, November 29, 2019

परिवार

प्रणाम।  वणक्कम।
अनंतकृष्णन का।
शीर्षक : परिवार।
परमानंद
रिश्ते  के साथ
वास।
रक्षक
एक दूसरे का।
सहायक एक दूसरे का।
सुख दुख के सम भागी।
खून का रिश्ता।
सह उदर का रिश्ता।
रामायण में  भिन्न उदर।
पर भाइयों का प्रेम अभिन्न।
महाभारत पांडव के
भिन्न  पिता , पर प्रेम की कमी नहीं।
कौरव सौ,एक अंधे पिता।
पर
स्वभाव अच्छे  नहीं।
परिवार  में  प्रेम  ।
ईश्वर की देन।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

बंधन

प्रणाम। वणक्कम।
शीर्षक:  बंधन।
बंधन युक्त जग।
बंधन मुक्त जग कहाँ?
साधु-संत ईश्वर के बंधन  में।
भक्तों  के बंधन में ईश्वर।
 पदों  के बंधन  में  स्तुति।
मुख-स्तुति  के बंधन में  जनता।
जनता के बंधन में शासक।
घुटबंधन में  चुनाव जीत।
पैसे के बंधन  में  जग व्यवहार।
पाप के दंड भय से पुणय।
सुवर्ण  के बंधन  में शब्द।
स्वर्ण के बंधन में  नारी।
नारी के बंधन  में नर।
नर के बंधन  में  नारी।
प्रेम बंधन  में प्रेयसी।
शरीर के बंधन में तुलसीदास।
शरीर सुख का बंधन  छोडा तो
राम नाम का बंधन।
शरीर का बंधन
प्राण छोडा तो
राम  भी लाश का नाम।
बंधन  रहित  मानव का अंतिम रूप।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।
(मतिनंत)

करुण रस

प्रणाम। नमस्कार। वणक्कम।
 करुण  रस।
 ईश्वर  को कहते हैं
करुणा मूर्ति। करुणा सागर।
करुण भाव न तो
मानव जीवन पशु तुल्य।
ईश्वर  की करुणा  से
ईश्वरेत्तर  मनुष्य  जीवन।
दयालु और करुणामूर्ति में
मनुष्यता और ईश्वरत्व का अंतर।
किसी तत्काल प्रभाव से दया।
करुणा  मनोभाव।
एक उत्पन्न  एक सहज।
अनजान के दुख
देख,
दया।
ऐसा होगा सोचना  तो
 सहज करुण।
दया बाहरी।
करुणा  अंतःस्थापित।
दया मनुष्यत्व।
करुणा ईश्वरत्व।
 घायल शत्रु  देख
दया नहीं।
 घायल मित्र देख दया।
अतः मनुष्यत्व।
बगैर भेद  के करुणा।
महावीर,बुद्ध,महादेव करुणामूर्ति।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।
(मतिनंत)

Thursday, November 28, 2019

मुक्ति

वणक्कम। प्रणाम।
 मुक्ति   शीर्षक।
प्रेरक है कुछ लिखने  का।
कुछ प्रशंसा पाने का।
कुछ नये आकर्षक
नये विषय प्रस्तुत  करने का
कैसे सांसारिक  बंधन से मुक्ति।
न प्यास से मुक्ति,न भूख से मुक्ति।
न रक्त संचार  से मुक्ति।
मुक्ति  के लिए करते हैं  प्रार्थना।
समाज  की भलाई  के लिए  सोचते हैं।
राष्ट्र  के भ्रष्टाचार  के बारे में,
शिक्षा की महँगा पर,प्याज के दाम पर।
कितना सोचते हैं?
मुक्ति  कहाँ?
मन की ज्वार भाटा।
मन का पंख फैलाकर आकाश तक
उड़ना,आकाश  पाताल तक
जानने का जिज्ञासा।
वेंटिलेटर में  डाक्टर  भेजने के बाद भी
एक महीने  तक तड़पनेवाला बूढ़ा  बूढी।
कैसी मुक्ति?
जब तक आशतब तक साँस।
हम न विवेकानंद हम न आदी शंकर।
न गणितज्ञ  रामानुजम।
ईश्वर के हिसाब  की जिंदगी।
पाँच  मिनट मन निश्चल  तो
तभी मुक्ति।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन। (मतिनंत  )
29-11-19।
मुक्ति शब्द  पारिवारिक दल तो
चाहें बढती हैं, कैसे  मुक्ति।

Wednesday, November 27, 2019

घर परिवार

प्रणाम। वणक्कम।
 सब परिवार को नहीं जानते।
सम्मिलित परिवार  नहीं जानते।
परिवार  की सहनशीलता नहीं समझते।
बात बात  पर झगडा।
तलाक।
माता पिता के रहते
कितने ही बच्चे अनाथ।
घर हीन फुटपाथ के परिवार  अच्छे।
 खुली हँसी ,
 मीठी नींद।
पर  बडे घर,
निस्संतान दंपति।
तलाक  की बातें।
एक दुखी खामोशी।
संतानों  की शिक्षा की परेशानी।
तीन साल का बच्चा।
यल।के।जी दो  लाख।
घर एक करोड़,
 पर न जमीन
उनके अपनी ।
 न दीवार
 अपना।
त्रिशंकु  घर।
कमाते  अधिक।
पर  खर्च  कर्जा चुकाने काफ़ी नहीं।
घर का मैनटनन्स चार्ज
 स्कोयर फुट दस रुपये ।
 जिम स्विमिंग पुल,
विभिन्न मैदानी
 खेल के मैदान।
पर न समय
वहाँ  जाने का।
घर परिवार
 मिलकर खाना।
मिलकर जाना।
एकसाथ मंदिर  जाने,
परिवार  एक नहीं।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

Tuesday, November 26, 2019

बदनाम

प्रणाम।
न जाने दोस्तों।
आज लिख रहा हूँ
कई दिनों  के बाद
लिख रहा हूँ।
हम हुए  बदनाम
 आखिर किसलिए?
सच बोले।
ईमानदार  से रहे।
कमाते किसी को
धोखा नहीं  किया।
फिर भी बदनाम।
किसलिए?
भ्रष्टाचारियों  के
मुखौटे  खोले।
दोस्त  न देखा,
रिश्ते  न देखा।
तटस्थ  रहा।
हमारे नेता  कामराज हार गए।
उनके बाद के नेता ,
लाखों  करोड़ों  के अधिपति।
हर वोट दो हज़ार।
 करोड़  पति जिताने
मतदाता तैयार।
सांसद बन
दल बदलने तैयार।
वोट के लिए  पैसा देना।
रीटैल व्यापार।
साँसद  बनकर ,
करोडों   के लिए
दल बदलना,
थोक व्यापार।
हम बदनाम  हुए।
आखिर  किसलिए?
राजनीति लिखना मना।
लोगों  को जगाना मना।
लिखो  तो प्रेम  पत्र लिखो।
नीलपरिधान बीच,
अधखुला अंग।
विरह वेदना,
प्रेम  मिलन
चुंबन  लिखना।
धड़कन तडप लिखना
कविता।
 गरीबों  की दशा।
भिखारी  की हालत
लिखना कविता।
हम हुए  बदनाम ।
आखिर  किसलिए?
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

प्रणाम।
न जाने दोस्तों।
आज लिख रहा हूँ
कई दिनों  के बाद
लिख रहा हूँ।
हम हुए  बदनाम
 आखिर किसलिए?
सच बोले।
ईमानदार  से रहे।
कमाते किसी को
धोखा नहीं  किया।
फिर भी बदनाम।
किसलिए?
भ्रष्टाचारियों  के
मुखौटे  खोले।
दोस्त  न देखा,
रिश्ते  न देखा।
तटस्थ  रहा।
हमारे नेता  कामराज हार गए।
उनके बाद के नेता ,
लाखों  करोड़ों  के अधिपति।
हर वोट दो हज़ार।
 करोड़  पति जिताने
मतदाता तैयार।
सांसद बन
दल बदलने तैयार।
वोट के लिए  पैसा देना।
रीटैल व्यापार।
साँसद  बनकर ,
करोडों   के लिए
दल बदलना,
थोक व्यापार।
हम बदनाम  हुए।
आखिर  किसलिए?
राजनीति लिखना मना।
लोगों  को जगाना मना।
लिखो  तो प्रेम  पत्र लिखो।
नीलपरिधान बीच,
अधखुला अंग।
विरह वेदना,
प्रेम  मिलन
चुंबन  लिखना।
धड़कन तडप लिखना
कविता।
 गरीबों  की दशा।
भिखारी  की हालत
लिखना कविता।
हम हुए  बदनाम ।
आखिर  किसलिए?
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।


मन

वणक्कम।
एल्लोरुक्कुम्।
प्रणाम।
सबको।
 शीर्षक  =मन।
मन चंचला।
रहीम ने कहा-
बूढे के पति लक्ष्मी
चंचला।
मन तो लक्ष्मी के विपरीत
जवानी में  अधिक  च॔चला।
दादी  माँ  ने कहा ,
दुर्गा  शक्ति शालिनी।
तब मामा ने कहा ---
हनुमान  महान बलवान।
नाना ने कहा - शिव।
गली में  गया तो
ईसा मसीह
आप के पाप मिटाने
रक्त बहाते हैं।
पापियों  आइए।
भक्ति  क्षेत्र में   मन डाँवाडोल।
पाठशाला  समाप्त
पिता  ने उच्च  शिक्षा  के लिए
एक विषय कहा तो
अध्यापक  ने दूसरा विषय।
दोस्तों  ने एक विषय।
विषय ज्ञान
 रहित नानी ने कहा
पडोसी को तुरंत
 नौकरी मिली
वही पढना।

भक्ति  में  चंचल।
पढाई  में चंचल।
पढने के माध्यम  में धंचल।
 जवान को लडकियों को
 देखकर चंचल।
जवान युवतियों  को
दूसरों  की साड़ियां।
आभूषण  देखकर चंचल।

 मन में  विचारों  की लहरें।
ज्वार  भाटा।
काबू में लाने
 योगा वर्ग गया तो
पतंजलि योग,
दत्त क्रिया योग।
और अनेक  योगा।
मन  सलाहें
  सुन सुन चंचल।
इतने बुढापा।
मन चंचल
 तन में  न शक्ति।
मन में  राम नाम।
मन शांत।
 तन शांत।
 सीता  ले जाकर
रावण चंचल।
सीता खोकर
पाकर राम चंचल।
 तब  मामूली मनुष्य
मन की चंचलता का
कैसे कर सकते बखान।

  स्वरचित स्वचिंतक
 यस अनंतकृष्णन।
(मतिनंत)

Sunday, November 24, 2019

सुख किसमें

प्रणाम।  वणक्कम।
परम सुख परमानंद ब्रह्मानंद
त्याग  में  या भोग में।
माया तजनेवाले ज्ञानी
परम सुख परमानंद ब्रह्मानंद की खोज में
आध्यात्मिक मार्ग अपनाता है।
शैतान के चंगुल  में
अस्थायी  आनंद  में  लौकिक भोगी।
आरंभ  से अंत तक ब्रह्मानंद  प्राप्त ज्ञानी
जीत लेता मन की चंचलता।
मन निश्चल  निश्छल तो
परमानंद।
अलौकिक  काया,
अति स्वस्थ
तन ,मन से ।
धन की तो उन्हें चिंता नहीं।
न शारीरिक भूख,
न  लौकिक  चाह।
न लोभ, न काम।
 माया / शैतान उन से अति दूर।
 नाम जपना  पर्याप्त।
 तुलसी , वाल्मीकि, भर्तृहरि
लौकिक  काम , क्रोध, लोभ तज
आज ईश्वर तुल्य  आराधनीय।
बार- बार याद  दिलाते हैं।
आगे अनुसरण आप पर निर्भर।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन।

Saturday, November 23, 2019

साहित्य

वणक्कम। प्रणाम।
  समाज  में  साहित्य
   संयम सिखाता नहीं,
जितेन्द्र  बनाता नहीं।
प्रेम एक लडके के प्रति।
प्रेम  एक लडकी के प्रति
इश्क के  लिए  कविता।
इश्क  न तो कविता  नहीं।
 नख सिक्ख वर्णन कविता।
तब तो नीति के दोहे
रचना , रटना  मुश्किल।
वही लड़का सिनेमा गीत
बगैर एक शब्द  राग ताल के दोष के
गाता और तालियाँ  पाता।
वही एक दोहे न रट सका
गाली और मार खाता।
भला से बुरा आसानी  से।
मच्छर  अधिक, मेंढक अधिक।
पर एक कोयल की आवाज़ सुन
मनुष्य  अपने सुध बुध खो जाता।
हानियाँ  संक्रामक  रोग।
हित तो स्थाई चंद  लोगों  का साधन।
 साहित्य  समाज  कल्याण  के लिए ।
कबीर  के दोहे  सुनिए।तो
उसका सही उपयोग  उसका पालन
हर कोई  करेगा तो समाज  कल्याण।
 जाति न पूछो साधु  की, पूछ लीजिए  ज्ञान।
सोचने पर जातिवाद  का समूल नष्ट।
बुरा जो देख न मैं  गया,तोबुरा न मिलिया कोय।
  तुम खुद  अपने कोपहचान लो।
ऐसा हर कोई  सोचकर अपने को सुधार लेगा तो
विश्व में  न रहेगा  कोई  बुरा।
साहित्य  संसार  की भलाई।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन। (मतिनंत)

यादें पुरानी

यादें  पुरानी।
नमस्ते।प्रणाम।
पुरानी यादें।
दो बातें  सिखाती :-
1ऐसा न करना है।
2.ऐसा ही करना है।
दो भाव मन में
1.हर्ष 2.दुख
 दो कर्म करने,
1. प्रोत्साहित 2।हतोत्साहित।
यादें  मीठी कड़वी।
चैन देनेवाली बेचैन करनेवाली।
मिलने में  मिलाने में
सुख प्रद दुख प्रद।
संतोषप्रद असंतोषप्रद।
मानवीय अमानुष।
मानव जीवन यादों  की बारात  में
डाँवा डोल।
अपनी प्रेमिका
दूसरे की पत्नी बन।
कमर में एक हाथ में  एक
पेट में  एक सामने निकलती तो
पुरानी  यादें दोनों  को
कितना कष्ट प्रद? वर्णनातीत।
स्वरचित स्वचिंतक
यस। अनंतकृष्णन। (मतिनंत)

परिवर्तन

प्रणाम।
परिवर्तन भगवान का
स्थाई नियम है।
अस्थायी   जगत में
मौसमी परिवर्तन।
पाषाण युग  से आज तक
कितने परिवर्तन।
सभ्यता  के विकास  में
गुण परिवर्तन।
विचार  परिवर्तन।
चिकित्सा  में  परिवर्तन।
जडी-बेटियों  की दवा।
कडुवी दवा।
अब मीठी गोलियाँ।
खेती  में  परिवर्तन।
पाली ,अपभ्रंश, संस्कृत,खडीबोली,
हिंदी।  अंग्रेज़ी मिश्रित  हिंदी।
मंदिरों  में  बिजली की घंटी।
 मज़हब  में  शाखाएँ-उपशाखाएँ।
  शुद्ध सोना एक
  आभूषण मिलावट अनेक।
 सफेद रूई, रंग बिरंगे कपडे।
विभिन्न  आकार-प्रकार के वस्त्र  रूप।
टंकण  का स्थान  संगणक ने लिया।
कैमरा,रेडियो, हाथ की घड़ी, कैलकुलेटर ,संगणक
सब एक ही मोबयिल  में।
श्मशान में   जलन पाँच  मिनट।
गड्ढा  खोदने  यंत्र।
पेड़  को जड से उखाड़कर
पेड़  लगाने का यंत्र।
सब में क्रांतिकारी परिवर्तन।
साहित्य  की भाषा शैली
पद्य से गद्य , छंद बद्ध से मुक्त
नव कविता, हैकू।
अपरिवर्तनशील  साहित्य  की गूँज।
  स्वरचित। स्वचिंतक
यस। अनंतकृष्णन। (मतिनंत)

Wednesday, November 20, 2019

स्वतंत्रता की सीमा

नमस्ते। नमस्कार। प्रणाम।
  स्वतंत्र  लेखन।
 स्वतंत्र  भाषण।
मूल अधिकार।
स्वतंत्रता देश में
भ्रष्टाचार की खबरें।
पंद्रह  मिनट  में
सारे हिंदुओं  को
 कत्ल करने का भाषण।
राष्ट्र गीत व राष्ट्र झंडे को
अनादर अपमानित  खबरे।
 अल्पसंख्यक  अधिकार में
हिंदु धर्म प्रार्थना मना।
पर अल्प मज़हब पाठशाला  में
मजहबी प्रार्थना  मना नहीं।
नब्बे  प्रतिशत अंक  सही उम्र
पर उच्च शिक्षा  में 
उच्च जाति के छात्र  को
प्रवेश मना है पर
सूचित जाति कम अंक,
अधिक  उम्र 
प्रवेश में
प्राथमिकता।
माया भरी शासन में
सिर काट दूँगा,
पैर तोड दूँगा।
प्रांत के अंदर  आने न दूँगा।
हत्या  करने मजदूरी सेना।
परीक्षा  में  नकल,
परीक्षार्थी नकल।
पैसे हो तो बारह वर्ष तक
मुकद्दमा, गवाही नदारद।
अपराधी  मुक्त।
स्वतंत्रता  का दुरुपयोग।
स्वतंत्र  लेखन  भाषण।
तमिलनाडु  में
न चाहिए  हिंदु मज़हब के ओट।
ब्राह्मण को जीने न देंगे।
चुनाव  चिन्ह  का नाम  संस्कृत
"उदयसूर्य" पर संस्कृत का विरोध।
अंग्रेज़ी  स्कूल :शुल्क  लूट समर्थन।
मातृभाषा  माध्यम  स्कूल बंद
स्वतंत्रता भारतीयता मिटाने
युवकों! सोचिये,
भावी भारत आपके हाथ।
 राष्ट्रीयता  विरोध , मजहबी परिवर्तन प्रचार  स्वतंत्रता
 देश  की एकता में   बाधा।
जागना जगाना
भारत की एकता बनाये रखने
अति आवश्यक  काम।
 स्वतंत्रता की भी एक सीमा।
मूल अधिकारों  की भी सीमा
कर्तव्य  हमारा, जिम्मेदारियाँ हमारी
भारत की एकता का प्रचार।
 स्वचिंतक  स्वरचित
यस,अनंतकृष्णन (मतिनंत)

Tuesday, November 19, 2019

जान पहचान

नमस्ते। प्रणाम। वणक्कम।
  जान-पहचान।
  मनुष्य  जीवन में,
जान -पहचान के बिना जीना,
 जानवर-तुल्य  जीवन
कहना गलत है या सही,
पता नहीं ,पर पशु वर्ग भी
अपने वर्ग  को जान पहचानकर
साथ चलता है, अपने झुंड  से
अलग होकर दुखी होता है।
मनुष्यों  में  पशु की तुलना में,
शक्ति  अधिक नहीं,
पर बुद्धि बल अधिक।
जान पहचान भी पहले सीमित।
ज्ञान  विज्ञान  के बढते बढते,
 जान पहचान के बढते बढते
मनुष्य  का विकास  होता है।
अकेलेपन  में  स्वार्थ।
मिलकर रहने में आनंद।
इसमें  ईश्वर  की तमाशा देखिए,
जान पहचान  नाते रिश्ते
बनाए रखने  में बाधाएँ अनेक।
प्रधान होते हैं भाव या मनोविकार।
प्रेम,नफरत,ईर्ष्या, क्रोध,करुणा,शोक।
 संकुचित  विकसित  स्वार्थ-परार्थ।
जान पहचान में  दरार।
बचपन का जान पहचान अलग।
जवानी में  अलग।
पेशे के कारण।
वैवाहिक  रिश्तों  के कारण।
बुढापे में  जान पहचान
एक एक करके एकांत अनुभव।
सर्वेश्वर  की याद  तभी।
बचपन से ही जान पहचान
ईश्वर  से हो जाए तो उत्तम जीवन।
 वाणी के डिक्टेटर 
कबीर  के अनुसार,
सुख में भी ईश्वर का पहचान
सदा शांति-संतोष  का पहचान।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन

साहित्य वसुधा

वणक्कम-प्रणाम।
वसुधा  साहित्य  का
अति चमत्कार।
रवि जहाँ  पहुँच  नहीं  सकता,
वहाँ  कवि पहुँचता हैं।
साहित्य  वसुधा
सात लोकों  का ज्ञान देती हैं।
नयी कल्पनाएँ,
मानसिक  परिवर्तन,
संस्कृति  सभ्यता  का विकास।
रूढ़ि वादी सिद्धांतों  में  परिवर्तन।
  संकुचित  विचारों  में,
 विस्तृत जानकारी।
निर्दयी का दयालु बनना।
दयालु को कंजूस बनाना।
मिट्टी  को स्वर्ण,
स्वर्ण  को मिट्टी  बनाना,
कामुक को भक्त:
भक्त  को कामुक
अली-कली-फूल का वर्णन।
ये सब साहित्य  पर निर्भर।
ये सब साहित्य वसुधा पर निर्भर।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन।

Monday, November 18, 2019

भाग्य

जन्म  और मृत्यु।
अमीर घर में  जन्म। वह बच्चा पागल।
फुटपाथ  का बच्चा   स्वस्थ।
प्रयत्न तो सब करते हैं
अपने सफेद  बाल गूंजे सिर
बुढापा  कोई  बचा  नहीं  पाता।
लौह महिला  जय ललिता  और इंदिरा मृत्यु  जान। 
सांप का विष प्राकृतिक।
मेंढक का टर टर स्वाभाविक।
साँप का आहार  ईश्वरीय  सृष्टि।
संगीताचार्य  के पास रोज भागीरथ  प्रयत्न।
फुटपाथ  की भिखारिन
मधुर स्वर। आज विश्वविख्यात।
 भाग्योदय की देरी।
सबहिं नचावत राम गोसाई।
  हिंदी  सीखी न नौकरी की संभावना।
पर मिली नौकरी।
हिंदी  अध्यापक  तमिलनाडु  में
दो ही बने प्रधान अध्यापक।
दो में  एक मैं।
अब आराम  से जिंदगी।

सबहिं  नचावत  राम गोसाई।
 आपकी प्रेरणा  से ।
अपनी विचारधारा।
किसी प्रमाणित भी किया,
मैं  श्रेष्ठ  रचनाकार।
घर से न निकला  पर ईश्वर ने बुद्धि  दी।
मेरी रचनाएँ  लाखों  तक पहुँचती।
न मेरी मातृभाषा  हिंदी।
सबहिं नचावत राम गोसाई।

इंदिरागांधी

प्रणाम।
 एक नेता  राम सा हो तो
 पत्नी को आदर्श  के लिए
जंगल  में  भेज  देता।
एक नेत्री लौह महिला,
 गाँधी  का अर्थ  बनिया
पर अपने खान वंश को
गाँधी  (बनिया) वंश में  बदल दिया।
व्यक्तिगत जीवन का प्रभाव
समाज पर पडता है।
ब्राह्मण भी गाँधी बन गये।
परिणाम  सांसद  बनने
बनने के बाद  दल बदलने
घुड़दौड़ व्यापार।
  इंदिरागांधी  विश्व विख्यात,
पर देश की एकता
अखंडता की
दूरदर्शिता  नहीं।
प्रांतीय दलों को
गठबंधन  के नाम
बढावा दिया।
परिणाम  तमिलनाडु  में
राष्ट्रीयता कम हो गई।
बावन साल के बाद भी
राष्ट्रीय  दल के योग्य नेता बन सके।
भाजपा में  नेता  नियुक्त  करने में  देरी।
 जो भी हो वीर महिला
उत्तम प्रशासक  उनको सलाम।

नारी की तरक्की  हुई  हैं
पर प्रौढ़ पुरुषों  की संख्या
वैवाहिक  पुरुष
ब्रह्मचारियों की संख्या
बढ गई।

स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन

भलें

प्रणाम। वणक्कम।
 भूलें  होंगी  जरूर।
मनुष्य  जीवन में।
भूलारोपित मनुष्य  ही
 सब के सब।
ऐसा कहना सत्य।
क्यों?
दस महीने अंधेरे  में।
सूक्ष्म  बिंदुओं  के मेल से
शिशुरूप।
जुड़ने के पहले न रूप-  रंग ।
अब कहिए
 बगैर भूलों  के
मनुष्य  जीवन है नहीं।
रामावतार में  भूल।
कृष्णाअवतार में
धर्म के नाम भूल।
वामन अवतार में
भूल ही भूल।
ज़रा  सोचिए-
अर्धरात्रि पत्नी और शिशु को
छोड कर जाना बडी भूल।
करतल भिक्षा तरुवर वासा
सीख भी भूल।
भूलों  से सुधारना ही मनुष्य  जीवन।
मनुष्य  को परिश्रमी  बननी है।
अपने पैरों  पर खडा होना हैं।
स्वाभिमानी  से जीना है।
बेकार मन शैतान  का कारखाना।
कर्तव्य  करना ही भक्ति  है।
कर्तव्य  भूल तब राम नाप
जपना भक्ति  नहीं ।
हमारे पूर्वजों  की भूल।
आज साफ मंदिर  की दीवारों  पर
परीक्षाअर्थी अपनी पंजीकृत नंबर लिख
गंदी करना भक्ति  मान रहा है।
यह तो बडी भूल।
सुधरना
सुधारना
हमारा काम।
आजादी  के सत्तर 
साल के बाद
स्वच्छ भारत की गूँज।
अपनी गली में
सुदूर  शहर -गाँव  की
गलियों  में  कूडे के ढेर 
देख आज कहता है
मोदी ने साफ नहीं  किया।
ऐसी गैर जिम्मेदारियों को
उनकी भूलें  समझानी हैं।
 स्वचिंतक स्वरचित
यस-अनंतकृष्णन।

Saturday, November 16, 2019

फ़र्ज

मेरे प्रेरक हिंदी  प्रेमियों  को
नमस्कार।
प्रणाम।
 कलम की यात्रा के संचालकों को
जो मुझे प्रोत्साहित कर रहे हैं,
उन सब को प्रणाम।

    कर्तव्य  /फ़र्ज
 गीताकार श्री कृष्ण  की कृपा मिलें।
  कर्तव्य  करो,
फल की प्रतीक्षा  न करो।
 भगवान का उपदेश।
मनुष्य  तो सद्य:फल चाहक.
मन तो संचल।
मन चंगा तो कटौती में गंगा  मान
मन नियंत्रित नहीं  करता।
आजकल  के शासक,प्रशासक,
अधिकारी, कर्मचारी , भक्त
फल मिलने पर ही
कर्तव्य निभाते हैं।
मेवा पहले,सेवा बाद में।
तत्काल लाभ धर्म बदल जाते।
मातृभूमि तजना,
प्रवासी नागरिक बनना,
मज़हब बदलना,
कर्तव्य  बाद  में।
सरकारी  संस्थाओं  के कर्मचारी
निजी संस्थाओं  के कर्मचारी
पहले के चेहरे  में  उतना तेज नहीं।
दूसरे के चेहरे  में  तेज अधिक।
वजह?
पहले को कर्तव्य  करें  या न करें
मेवा मिलता जरूर।
दूसरे  को कर्तव्य  न करें  तो
मेवा न मिलता कभी।
सरकारी  अध्यापक /निजी अध्यापक
कर्तव्य  करने में  फरक।
नतीजा  सरकारी स्कूल  बंद।
निजी  स्कूल की संख्या  अधिक।
गरीबों  की  शिक्षा अपमानित।
अमीरों  की शिक्षा  सम्मानित।
कर्तव्य  चूकना अतःपतन का मूल।
स्वचिंतक स्वरचित
यस।अनंतकृष्णन।

दिल धड़कन

तुम मेरा दिल
मैं तेरा धड़कन।
  परिवार दल के संगठक व  संयोजक, सदस्य-मित्र
सब को नमस्कार।
  दिल अलग धड़कन अलग तो
जीना दुर्लभ।
दिल धडकता है मेरा तो
तेरे ही कारण।
न तो धड़कन बन्द ।
मेरे दिल का धड़कन
 तुम पर निर्भर।
साँस चलता है तो
हवा तेरी,
 बाहर से आती।
प्यास बुझना है तो
तेरे प्रेम का पानी ।
अवाज निकलती है तो
तेरी करुण  ध्वनी।
हे ईश्वर! तेरा अनुग्रह न तो
धड़कन बन्द।
साँस बन्द!
प्यासा ही सब अन्त।
  स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंत कृष्णन

Thursday, November 14, 2019

प्रेम और तपस्या

नमस्ते।वणक्कम।
प्रेम स्थाई या अस्थाई
पर व्यस्त ,
तपस्या का उददेश्य
प्रेम  लक्ष्य।
तपस्या करने
गुरु चाहिए।
प्रेम स्वत:सिद्ध।
राम नाम उपदेश तपस्या।
बगैर उपदेश प्रेम।
क्षणिक प्रेम।
स्थाई प्रेम
तन प्रेम।
धन प्रेम
मन प्रेम।
देश प्रेम।
स्वार्थ प्रेम
निस्वार्थ प्रेम।
लेन देन प्रेम।
एक पक्ष प्रेम।
द्वि पक्ष प्रेम।
त्याग्मय प्रेम भोगमय प्रेम ।
तपस्या कहीं अन्धेरे में।
ईश्वर साक्षात्कार के लिए।
प्रेम की कथा प्रचलित।
तपस्वियों की कथा अप्रचलित।
प्रेम संकीर्ण फिर भी मोहक।
तपस्या जग कल्याण
  पर मोहता सोहता नहीं।
लाली मेरे लाल की
जित देखो तित लाल।
पर तपस्या आँखें  मूंद।
प्रेम क्रिया प्रधान।
तपस्या  में
अकेलापन /एकान्त।
प्रेम संकीर्ण।
ऋषी गण पर प्रेमगण  नहीं।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंतकृष्णन

बाल दिवस

प्रणाम।
बाल दिवस।
आज के बालक
भविष्य के शासक,
प्रशासक,
अभियंता,
चिकित्सक,
देश के रक्षक
देश के निर्माता
अत:चाचा नेहरू ,
अब्दुल कलाम
कर्मवीर काला गाँधी कामराज
आदि दूरदर्शी नेताओं का ध्यान
बच्चों की प्रगति केंद्रित।
आजकल चित्रपट प्रधान
अश्लील नाच
उत्तर भारत कैसा है
स्कूल के वार्षिकोत्सव पता नहीं
तमिलनाडू में चित्रपट गीत  नाच।
स्कूल-कालेज के कार्यक्रमों में
चित्रपट के संवाद।
मूल उद्देश्य भूल
अनुशासन हीन  शिक्षा।
बाल दिवस बालों की उन्नति  के लिए
चरित्र अनुशासन की प्राथमिकता।
पैसे को ही शिक्षा
पैसे दिखाओ  शिक्षक दास।
नकली छात्र परीक्षा देने
खेद के समाचार।
शिक्षक को मारना,
शिक्षक का अपमान।
शिक्षकों का बद व्यवहार।
आज के बाल दिवस ऐसा
मनाना जिससे बालकों की
चाल चलन सुधर जाएं ।
अनुशासन हीन समचार न प्रकाशित हो
बालकों को सुभाशीष।

Monday, November 11, 2019

बचपन

प्रणाम।वणक्कम

पचपन
बचपन सा खेल कूद नहीं।
बचपन के लोगों से चर्चा  नहीं।
बडे  हो बढ बढ़ाना नहीं।
बुढापा का पहला सोपान।
तनाव,अवकाश होने तीन साल।
बेटी की शादी,लडके की पढाई नौकरी।
शक्कर,प्रेशर,न जाने वह है या नहीं
चेकप करने दोस्तों का आग्रह।
बचपन का मस्त खुशी पचपन में नदारद।
न धन,न पद,न अधिकार
वापस न देता जवानी।
ईश्वरीय नियम दंड पचपन।
यस।अनंतकृष्णन।

Friday, November 8, 2019

अभिमान की बात

चार आदमी
आज चार चक्र
 एक आदमी।
शव उठाने काल परिवर्तन ।
 कन्धा देने
कन्धा बदलने की
जरूरत नहीं।
सम्मिलत परिवार नहीं,
सोचते हैं पर वानप्रस्थ,
सन्यासी जीवन हैं  हमारा।
 ऐसी परम्परागत विचार में,
वृद्धाश्रम तो बढिया।
वह सन्तान
 बहु, बेटी, प्रशंसा के पात्र हैं ,

जो अपने वृद्ध माता -पिता को
वृद्धाश्रम में  छोडकर
 मासिक शुल्क अदा करके
कभी कभी मिलने आते हैं।
घर में रखकर सताने से
यह तो वृद्धों के लिए
अभिमान की बात ।

अभिमान

प्रणाम।
भगवान से प्रार्थना।
भवसागर  पार करने
भगवान का अनुग्रह चाहिए।
जन्म,जीवन,मरण ।
अभिमान क्या है?
स्वाभिमान !⁹
मनुष्य का सक्रिय जीवन
साठ  साल तक।
सब में  अपवाद हैं।
हज़ोरों में दस-बीस अपने बुढापे भी
सक्रिय रह्ते हैं।
जीवन में बीस साल
ज्ञानार्जन में बीत जाता हैं।
इस काल में
आत्म संयम,आत्मानुशासन ,
जितेंद्रियता अत्यंत आवश्यक हैं।

  आधुनिक वैज्ञानिक मनोरंजन के साधन
भलाई बुराई मिश्रित चित्रण में,
बुराई ज्यादा,भलाई कम ।

तब मनुष्य स्वभाव
बुराई को आसान से
पकड लेता है।
तब चरित्र निर्माण में बाधाएं होती हैं।
25 साल में ही युवा युवती अपनी
शक्ति खो बैठते हैं।
तीस साल की शादी में
अतृप्त गृहस्थ जीवन
गैर कानूनी  सम्बंध रखने में विवश।
तलाक के मुकद्दमे बढते जाते हैं।
हत्या,आत्महत्या,तेजाब फेंकना आदि
खबरें निकलती रह्ती हैं।
  शासक,आश्रमके आचार्य,शिक्षक,शिक्षार्थी
सब में आत्म संयम की कमी के
समाचार निकलते रहते हैं।
ये सब त्रेतयग,
द्वापर युग,
कलियुग तीनों में
पाते हैं।
पर कलियुग में संख्या ज्यादा हो रही हैं ।
रावण सीता को ले जाना - रामायण।
शिव,विष्णु,कार्तिक का प्रेम विवाह पुराण,
भीष्म का तीन राज्कुमारियो को
 जबर्दस्त उठालाना महाभारत।
आधुनिक काल में
ऐसी बातें रोज समाचार पत्र में।
  अस्थिर जीवन,नश्वर दुनिया, मरण निश्चित जीवन।
सबहिं नचावत राम गोसाई।
अपना अपना भाग्य
यही मानव जीवन।
 आज सुबह मन में उठे विचार।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंत कृष्णन।

Thursday, November 7, 2019

फुल और काँटा

प्रणाम।
फूल और काँटा।
पुष्पलता अतिसुंदर।
पुष्प काँटा अति दर्द।
यही है जीवन का सुख -दुख।
ईस्वरीय सृष्टियों में
कोमल एक है तो कठोर अधिक।
छिपकली एक कीडे अनेक।
 एक बूंद शहद एक चम्मच कडुवीदवा।
सुख दुख में  सुख एक फूल।
दुख असंख्य है मानव जीवन में।
सहना सामना करना
सावधानी से तोड़ना,जोडना
तभी आनन्द असीम।
स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन

Wednesday, November 6, 2019

भारतीयता अपनाना

प्रणाम ।
प्रात:काल की प्रार्थना।
शुभ-कामना।
विदेशी तोडे मन्दिर।
अद्भूत शिल्पकला
निर्दयी तोडे हजारों मन्दिर।
अलग देश माँगकर ही छोडा।
आजादी के बाद के भारतीय शासक
भारतीयता छिपाने,
भारतीय भाषाओं को मिटाने,
विदेशी मजहब की  जनसंख्या बढाने
कितने अन्याय किये?
सत्तर साल में भारतियों के दिल में
यह भाव जम गया,
बगैर अंग्रेजी के
 तरक्की नहीं
 अपनी
और देश की।
भूल गये इतिहास।
अद्भूत किले,
चमत्कार मन्दिर
अजंता,एल्लोरा,
मदुरै,चिदंबरम,तिरनेलवेली,श्रीरंगमन्दिर।
कर्नाटक के मन्दिर,
कश्मीर की हस्तकलाएँ ,
बनरशी रेशम साड़ियाँ।
काली मिर्च,इलायची,लवन्ग और जडी बूटियाँ।
पकवान के कितने प्रकार।
कल्कत्ता रस्गुल्ला,तिरुप्पती लड्डू,
पलनी पंचामृत,विष्णु मन्दिर के स्वादिष्ट इमली भात।
कच्चे मांस खाए पश्चिमी परदेशी के शàन में
हम भी कच्चे-अधपकके हो गये।
आहार में भी  आ गये परिवर्तन।
भारतीय महत्व के प्रचार में न लगे शासक।
वैज्ञानिक साधन की तरक्की,विदेशी दिमाग,
भारत को बना दिया,
चेन नगर के चार बेकार।
मेहनती,सच्चे,ईमानदारी भूखों मरते हैं,
आलसी  भ्रष्टाचारी  सुखी मालामाल।
सोचिये भारत्वादीयों!जागिये।
अपने निजित्व का शान मानिये।
भारत भारतीयता अपनाकर आगे बढें ।
विदेशी पूंजी,विदेशी मालिक,विदेशों को लाभ।
भारतीय केवल नौकर यह रीति नीति बदल जायें।
करोडों की सम्पत्ति हमारे युवक -युवतियाँ।
 स्वचिंतक स्वरचित
यस।अनंतकृष्णन।वणक्कम

देशोन्नति

संगम के साथियों को ,
सबेरे एक बजे का वणक्कम।
प्रणाम।
प्रात:काल की प्रार्थना।
भारत देश की रक्षा
भारत की प्रगति,
देश -भक्त और देशद्रोहियों के साथ,
तब तो  भारतोन्नति तो भगवद शक्ति से।
क्या इस में कोई शक?
आध्यात्मिकदेश,
आदी भगवान
शिव का देश।
त्रि शक्तियों का देश।

शोधार्ती विश्व के मानते हैं,
रूस के नास्तिक मानते हैं
यज्ञ -हवन धुएँ  का महत्व।
तमिलनाडू  से उत्तरकाण्ड तक के
 सीधी रेखा केशिव मन्दिर का महत्व।
तमिलनाडू के चिदंबरम मन्दिर,
भूमि का केंद्र बिन्दु।
तिरु नल्लारु शिव मन्दिर का महत्व।
हर मन्दिर की कलात्मक्ता में वैज्ञानिक्ता।
चेन्गिस्खां से अंग्रेजों तक
कितने आक्रमण,
कितने देश द्रोही।
हिमाचल से कुमारी अंतरिप तक
कितनी प्राकृतिक भिन्नताएँ ?
कितनी भाषाएँ ?
गोरे -काले लोग ,
प्रान्तीय- क्षेत्रीय जोश।
एकता तो गणेश -कार्तिक
 शिव-विष्णु,के कारण।
रामायण,महाभारत के कारण।
माया,शैतान,माया की शक्ति
लौकिक मानव में न हो तो
धनलक्ष्मी का मोह न हो तो
सदय:फल की ओर
विदेशी धारा में न  बहें तो
स्वार्थ राजनीति न हो तो
स्वर्ग तुल्य भारत।
 स्वरचित स्वचिंतक
यस-अनंतकृष्णन।

पचपन/बचपन

प्रणाम।वणक्कम
बचपन
शिशु को किसीने कहा ,
नन्हा मेहमान।
पत्नी का सारा  प्यार,
चुंबन आलिंगन शिशु की ओर।
शिशु बच्चा,तब बचपन।
पाठशाला गमन,
खेलकूद,गिल्ली ठंडा,
गोली खेलना,कबडी
न चित्रपट,न दूरदर्शन न मोबाइल।
न ट्युसन,न क्रीकट कोच,
न की बोर्ड,न कराते।
खल खेल में पढाई।
आज दो साल में प्रि के जी,
किस के लिए?
मातृभाषा भूलने के लिए।
तब से टियुसण।
हमारा बचपन पैदल चल,
पेड  की  छाया में,
दौड धूप में आँख मिचौनी में बीता।
आज के जल्दी जल्दी
 किताबों की बोझ पीठ में ढोते,
 स्कूल बस के आते ही दौडना,
ज़रा भी आजाद नहीं,
वैसे ही बचपन गुलाम सा,
बेगार सा,न माँ  का प्यार,
न दादा दादी की आशीषें,
न हँसी,न खेल कूद,
बीत  जाता  बचपन।
स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन
पचपन
बचपन सा खेल कूद नहीं।
बचपन के लोगों से चर्चा  नहीं।
बडे  हो बढ बढ़ाना नहीं।
बुढापा का पहला सोपान।
तनाव,अवकाश होने तीन साल।
बेटी की शादी,लडके की पढाई नौकरी।
शक्कर,प्रेशर,न जाने वह है या नहीं
चेकप करने दोस्तों का आग्रह।
बचपन का मस्त खुशी पचपन में नदारद।
न धन,न पद,न अधिकार
वापस न देता जवानी।
ईश्वरीय नियम दंड पचपन।
यस।अनंतकृष्णन।

Tuesday, October 15, 2019

भाग्य बल

प्रणाम। नमस्कार। वणक्कम।
कल्पना का साकार
सपना का साकार
ज्ञान बल से
लगातार  कोशिश  से
मित्र  बल से ,
आर्थिक  बल से,
परंपरागत देन से
भाग्य बल से
पूर्व जन्म फल से
 सोचा ,देखा,
समाज  और राष्ट्र के जीवन का
अध्ययन  किया,
भाग्य  ही बडा लगता है।
यह तो ईश्वरीय देन है।

Thursday, October 10, 2019

हनीट्रिप

प्रणाम। नमस्ते।
शीर्षक :--शहद यात्रा (हनी ट्रिप )
माया महा ठगनी कहा कबीर ने।
शहद यात्रा ,मीठी यात्रा ,शारीरिक मिलान यात्रा।
अंग्रेज़ी की देन।
जब मेरी शादी हुई ,तब हनीमून कहना अश्लील।
अर्द्धांगिनी के साथ केवल सोने का समय.
फिर न मीठी यात्रा की सोच.
न वातानुकूलित कमरा। न गद्देदार बिस्तर। न पंखा।
आश्चर्य की बात ,एकांत शयन नहीं ,हर साल
जनसंख्या बढ़ने में योगदान।
न आर्थिक सुविधा,घर में कोलाहाल की कमी नहीं।
आजकल शहद यात्रा ,
छत्ता टूट मक्खियों को डंकन
एकांत वातानुकूल कमरा ,
एक दिन का किराया ५०००/-रूपये।
पर न हुआ बच्चा।
शहद यात्रा ,हानि ट्रिप ,
ह के पास खड़ी रेखा।
हनी हानि होगया।
हमारे जमाने का सार्वजानिक बिस्तर ,
रात को ११ बजव ,चार बजे उठना ,
नहाना ,कीर्तन भजन।
संतानलक्ष्मी का उदार अनुग्रह।
उधार हनीमून /शाद यात्रा में
हैं कि नहीं ,पर खिले चेहरे मुक्त नहीं।
स्वरचित ,स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन।

Tuesday, October 8, 2019

--रावण अब तक जीवित है ,वज़ह कौन ?

.नमस्ते। वणक्कम। प्रणाम।
शीर्षक :--रावण अब तक जीवित है ,वज़ह कौन ?
हर साल रावण लीला मनाना ,
राम द्वारा उसके यशोगान का चित्र।

राम द्वारा अग्निप्रवेश सीता को जंगल भेजना।
भीष्म के राजकुमारियों का अपकरण।
वीरगाताकाल में एक राजकुमारी  के लिए
 अनेक सैनिकों की पत्नियों का विधवापन ,बच्चों का अनाथ,

शाहजहां ने शेर शाह को मारकर मुमताज अपहरण ,
इंदिरा गांधी का फिरोज नाम का त्याग गांधीजी नाम जोड़ना।
सेल्यु कस का चन्द्रगुप्त से वैवाहिक सम्बन्ध
 न जाने और ऐतिहासिक घटनाएँ रावण को जीवित रखा है।

दशानन का अहं अब राम बन संहार करना है.

दशानन का अहं अब राम बन संहार करना है.
अहं कैसे राम बनेगा ?
रावण का अहं राम बनेगा तो राम राज्य नहीं
रावण का ही राज्य होगा
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।।
मिसरा गिनना अहं ब्रह्मास्मि समान
विचार अभिव्यक्ति आसान।
आज धनाहं राम का संहार कर रहा है.
रावण का अहम् अब राम बननेपर भी
रूपये का अहम् रावण ही बनेगा बेशक।स्वरचित स्वचिंतक एस। अनंतकृष्णन

Saturday, October 5, 2019

ashtami

प्रणाम। वणक्कम !

अष्टमी।
अष्टमी के दिन
कार्य करने पर असफलता गए लगाती है.
न जाने अष्टमी तिथि में
भगवान कृष्ण का जन्म हुआ।
कृष्ण बने
लोक्रंचक और
लोकरक्षक !
देखा कितने लोग अष्टमी व्रत रख
अपनी मनोकामनाएँ पूरी कर लेते हैं.
आपको मालूम है जिनको
मालूम नहीं उन के लिए
अपनी मनो कामनाएँ पूरी होती हैं ,
भाव बाधाएँ मिट जाती हैं।
अहोई अष्टमी ,
दुर्गाष्टमी ,
शीतला अष्टमी
जन्माष्टमी।
हम भी सनातन परिपाटी अपनाएंगे
देवियों की कृपा पात्र बनेंगे।
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Anandakrishnan Sethuraman
Anandakrishnan Sethuraman प्रणाम।
विषय मुक्त /विधा मुक्त रचनाएँ
आज सरस्वती पूजा शामको और कल।
विद्या की देवी ,वीणावादिनी !
विश्व की प्रगति तेरे अनुग्रह से।
प्रकृति की विजय !
रोग की मुक्ति !
अंतरिक्ष की यात्रा।
आसमान का उड़ान !
आवागमन की तेज़ी।
वातानुकूल सुविधा ,
चाहते तो गरम हवा !
चाहते तो ठण्ड हवा।
आयु की वृद्धि।
हे सरस्वती देवी !तेरी कृपा!
विनम्र प्रार्थना !ज्ञान दो
जगत कल्याण का.
सद्बुद्धि दो ,
जगत में भ्रष्टाचार न हो !
हत्या,आत्महत्या ,काम ,क्रोध ,लोभ
घृणा आदि दुर्भाव न हो।
दान -धर्म ,परोपकार ,सहानुभूति आदि
सद्भावों भरकर मनुष्यता निभाने की
सद्बुद्धि दो !
माँ सरस्वती !आतंकवाद न रहें !
शासकों के दिल से स्वार्थता दूर करो.
दोस्ती बढ़ाने दुश्मनी दूर करने
आत्मसंयम जितेंद्र बनने की दृढ़ ज्ञान दो.
स्वरचित ,स्वचिंतक
यस। अनंतकृष्णन ,तमिलनाडु।
वणक्कम