Thursday, March 30, 2023

-स्वतंत्र.

 स्वतंत्र. 

  स्वरचित  लेख.

एस. अनंतकृष्णन , स्वरचनाकार, स्वचिंतक, अनुवादक. तमिल नाडु का हिंदी  प्रचारक. 

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शीर्षक ---स्वतंत्र. 

लेख. ३१-३-२०२३.

  अलग जग में कई प्रकार  के तंत्र हैं! राजतंत्र,लोक तंत्र  मंत्र तंत्र  .

वह क्या स्वतंत्र!  बहुत सोचता हूँ!  चकित रहता हूँ!  उन्मुक्त गगन के पक्षी स्वतंत्र है?  जंगल का राजा स्वतंत्र है?  क्या मच्छर स्वतंत्र है?  मधुमक्खी  स्वतंत्र  है? चिंता  भूलने पीनेवाला पियक्कड़  स्वतंत्र  है?  गंगा जैसी जीव नदियाँ स्वतंत्र हैं ? क्या  मैं लेखक स्वतंत्र हूँ? 

अपनी शैली   में  अपने विचार  लिख सकता हूँ? देश का प्रधानमंत्री हूँ । बिना अंगरक्षक के ज

स्वतंत्र. 

  स्वरचित  लेख.

एस. अनंतकृष्णन , स्वरचनाकार, स्वचिंतक, अनुवादक. तमिल नाडु का हिंदी  प्रचारक. 

+++++++++++++++++++++

शीर्षक ---स्वतंत्र. 

लेख. ३१-३-२०२३.

  अग जग में कई प्रकार  के तंत्र हैं! राजतंत्र,लोक तंत्र  मंत्र तंत्र  .

वह क्या स्वतंत्र!  बहुत सोचता हूँ!  चकित रहता हूँ!  

उन्मुक्त गगन के पक्षी स्वतंत्र है? 

 जंगल का राजा स्वतंत्र है? 

 क्या मच्छर स्वतंत्र है? 

 मधुमक्खी  स्वतंत्र  है? 

चिंता  भूलने पीनेवाला पियक्कड़  स्वतंत्र  है?  

गंगा जैसी जीव नदियाँ स्वतंत्र हैं ? 

क्या  मैं लेखक स्वतंत्र हूँ? 

अपनी शैली   में  अपने विचार  लिख सकता हूँ? 

देश का प्रधानमंत्री हूँ । 

बिना अंगरक्षक के  जा नहीं सकता। 

अभिनेता,अभिनेत्री है.

सार्वजनिक स्थानों में घूम नहीं सकता।

 ईमानदार जिलादेश है , कठोर  कार्रवाई लेने का अधिकार है, पर कर्तव्य करने नहीं देते। तबादला करते रहते हैं ।

मेरा स्वर कर्ण कठोर है , मधुर गायकों के मंच पर  गाने नहीं देते ।

छंद अलंकार रस रहित कविता  लिखने पढने  मंच पर स्थान नहीं ।

हर प्रकार का कर चुकाता हूँ.  बगैर  टिकट के  ,रेल विमान में यात्रा न करते।

विद्यालय में अपनी मातृभाषा मात्र सीखने नहीं देते.   सिर्फ मातृ भाषा माध्यम पढकर  नौकरी पा नहींं सकता।

स्वतंत्र कहीं  भी नहीं.

Monday, March 27, 2023

समय के साथ समाज,साहित्य बदलता है

 सबको अनंतकृष्णन ,तमलनडु ,चेन्नैै का सविनय वणक्कम्.नमस्कार।

स्वचिंतन से स्वरचित रचना । ----------------------------- विधा--अपनी भाषा,अपनी शैली। --------------------------------------- शीर्षक--समय के साथ समाज,साहित्य बदलता है --------------------------------------- दिनांक---27-3-2023 ----------------------- मानव की बुद्धि -विकास, ज्ञान-विज्ञान की वृद्‌धि, वैज्ञानिक आविष्कार, तेज आवागमन के साधन, राष्ट्रीय-अंतर्राष्टरीय संपर्क समय के अनुसार सामाजिक साहित्यिक परिवर्तन के बुनियाद मेंं। नंगे मानव का वस्त्र परिवर्तन् । कच्चे माँस,कच्ची तरकारी खानेवाले पशु -समान असभ्य मानव । पाषाण अस्त्र-शस्त्र वाले मानव, आज के भयंकर अणुबम तक कितना वैज्ञानिक परिवर्तन। आध्यात्मिक विचारों कितना परवर्तन। भगवान शिव के कितने संप्रदाय, शैव,वीर शैव,लिंगायत आदि। वैष्णव संप्रदाय-राम.कृष्ण , दक्षिण कला,उत्तर कला. तिलक धारण में कितने अंतर। जैन धर्म के दिगंबर,स्वेतांबर भेद। बौद्ध धर्म के हीनयान-महायान. मुगलधर्म में सिया,सुन्नी,लब्बे, ईसाई धर्म के पुराने-नये टेस्टामंट् कथोलिक,प्रोटोस्टंट,सेवंत डे अडवेंटिस्ट. मजहबी विचारों में कितने भेद-परिवर्तन. राज सत्ता में राजा,महाराजा,स्वेच्छाधिकारी,
सर्वाधिकारी,अत्याचारी,लोकतंत्र। भाषाा तो बहता नीर । मैथिली,अवधि,व्रज,खिचडी, खडीबोली हिंदी का विकास. प्रेमचंद की उर्दु मिश्रित भाषा, प्रसाद की संस्कृत छंद-अलंकार मेंकितने परिवर्तन। रहस्यवाद,छायावाद,प्रगतिवाद ,हालावाद. अकविता,नव कविता,हैकू. समय के अनुसार खान-पान,रहन-सहन,खुराक-पोशाक, रसोई में मिक्सि,ग्रैंडर,वाशिंगमिशन, गेसस्टव,इलक्ट्रानिक कुक्कर . कितनेे परिवर्तन. साहित्य समाज का दर्पण है. अशाशवत संसार में परिवर्तन ही शाश्वत है। एस.अनंतकृष्णन,

Friday, March 24, 2023

भक्ति विचार धारा

 


नमस्ते --वणक्कम्
अर्द्धनारीश्वर को प्रणाम्।
आनंद तांडव को नमस्कार ।
इह-पर सुख दाता को नमस्कार ।
ईश्वर-परमेश्वर -परमेश्वरी को नमस्कार ।
उत्तमोत्तम गुणी को नमस्कार।
ऊर्द्धव तांडव मूर्ति को नमस्कार
एक-अनेक को नमस्कार.
ऐश्वर्य दाता को नमस्कार.
ओंकर नाथ को नमस्कार ।
औषध दाता वैद्य नाथ को नमस्कार.
ऍस.अनंतकृष्णन, चेन्नै.
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नमस्ते. वणक्कम्.
सागर से घेरे अगजग में शांति चाहिए ।
असाध्य रोग मिट जाना चाहिए.
घर घर में नाम जप करना चाहिए।
देश भर में धर्म नीति की समृद्धि चाहिए।
वेदश्रेणी हिंदु धर्म परिपालन संगठन,चेननै-४२.
हिंदु धर्म के छे बडे भाग--
१.शैव२.२.साख्त ३.वैष्णव ४.गाणाप्य ५.कैमारय ६.सौरम
शैव--शिव
साख्त--पराशक्ति
वैष्णव--विषणु
गणापत्य- अष्ट गणपति
कौमार्य--कार्तिक
सौरम्--सूर्य
कुल शिव मंदिर--२८३. इनमें तमिलनाडु में मात्र २७६ हैं ।
वैष्णव मंदिर--१०८. इनमें ९६ तमिलनाडु में हैं ।
कार्तिक मंदिर -२१ हैं,१८ तमिलनाडु में हैं ।
गणपति के सब मंदिर तमाडु में हैं ।
भूमि,जल, अग्नि्. वायु,आकाश के पंच तत्व मंदिर तमिलनाडु में ही हैं।
अनुवाद सार --ऍस. अनंतकृष्णन

Tuesday, March 21, 2023

तमिल साहित्य में विज्ञान

 


तमिल  साहित्य में आधुनिक  वैज्ञानिक बातें

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शोध सार —-

संस्कृत और तमिल साहित्य दोनों तीन हजार सालों से अति प्राचीन है।

इन दोनों भाषाओं में बडे बडे।   त्रिकाल दर्शी थे।
उनमें  पंच -तत्वों  का ज्ञान था। तमिल सघं साहित्य  में खनिज धातुओं। के विवरण,  भू -गर्भ  शास्त्र, कणुविज्ञान,जलशास्त्र,
चिकित्सा, आयुर्वेद  सभी शास्त्रों का आधार प्रमाण  सहित लिखना ही शोध सार है।


बीज शब्द:--जीवशास्त्र,कुरुंतोकै  तमिल ग्रंथ, ऐंकुरु नूरु। खगोलशास्त्र, चिरुंपाणाट्रुप्पडै ,नेडुनेलवाडै, पट्टिनप्पालै आदि ग्रंथ के आधार-पद्यों का भावार्थ.

इस लेख का उद्देश्य दो हजार साल पहले तमिल कवि यों के वैज्ञानिक  ज्ञान का परिचय देना था ।तमिल की विशि ष्टता की अभिव्यक्ति ही मेरा  मंजिल है।


  सघं काल का वैज्ञानिक योगदान पाश्चात्य वैज्ञानिक योगदान से बढकर है।

उसपर प्रकाश डालना भारतीयों के सम्मान को एवरेस्ट पर चढाना है।


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तमिऴ भारत की प्राचीनतम  भाषा  है। तमिऴ साहित्य में। आध्यात्मिक,

वैज्ञानि क,दार्शनिक  ग्रंथों की कमी नहीं है।तमिल के प्रसिद्ध पचं महाकव्य जैन और बौद्धों की देन है। कंबरामायण मूल

वाल्मीकि की रामायण की  तुल्ना में  तमिल  संस्कृति  के अनसुार है। चेन्नै  कंबर कळकम   के   संस्थापक न्यायाधीश  मु . मु .इस्माइल है। मजहबी एकता का नमूना है। तमिल के संघ काल के साहित्य में  से तमिळ कवियों के  वैज्ञानिक  ज्ञान की विेशेषताओं

का पता लगता है।उनमें खनिज धातुओं  के विवरण, भू गर्भ  शास्त्र,


कणुवाद   ,जल शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, आयुर्वेद शास्त्र आदि वैज्ञानिक ज्ञान का प्रमाण मिलता है।इस लेख का उद्देश्य इन सब की संक्षिप्त जानकारी देना है!


जीवशास्त्र —

प्राचीन तमिल लोग जीव शास्त्र के गहरे ज्ञानी थे।  किल्ली मंगलकिलार नामक कवि ने अपने पद्य में नायिका की मनोदशा में  कछुए


की जीवन  शैली  का परिचय दिया है।

पद्य सख्ं या 152–ग्रंथ का नाम कुरुंतोकै–


नायिका से शादी करने नायक विलबं कर रहा है। इस सदंर्भ में  नायिका को सखी दिलासा देती है।तब कछुए  कीजीवन प्रणाली का उल्लेख करती  हुई नायिका कहती है—-


यावतुमअरि किलर् कलरुवोरे

तायिन मुट्टै  पोल उट्किडंतु सायिन अल्लतु पिरितुवेनडुत्तै , यामैप्पार्पिनन्न  कामगं कातलर् कैयरविडिने।


भावार्थ—माँ के  चेहरे देखकर बढनेवालेकछुए के बच्चे के समान ,काम   भी  नायक के चेहरे देख-देखकर बढता रहेगा ।वह हमें छोड देगा तो मातृ  हीन  अंडे के समान काम भी मन में  ही रहकर शरीर दुबला-पतला हो जाएगा। नाश हो जाएगा ।माता रहित  अंडे माता की


सुरक्षा नहीं तो मिट जाएगा । वैसे ही नायक के कारण जो काम की इच्छा बढ रही है,उसके

न रहनेसे,न मिलने से काम बेकार हो जाएगा ।


पत्नी को छोडकर वेश्या के घर में ही रहनेवाले पति के बारे में जीवन बितानेवाले पति के

बारे में नायिका जो कहती है,उसमें मगर मच्छ के गुण का वर्णन   ऐंकुरुनूरु ग्रंथ में मिलता है।


मगर मच्छ का स्वभाव अपने ही  अंडों  से निकलनेवाले  बच्चों को अपना आहार बनाना था। वैसे तालाबों के नगर में वह रहनेवाला है।मेरे स्वर्ण शरीर को तजकर अन्य नारियों के साथ जीनेवाला वैसे   ही मगर मच्छ की तरह रहेगा ।नायिका नायक को पुनः

अपनाना नहीं चाहती।

तन पार्पुत्तिन्नुम। अन्बुयिल  मुतलैयोडु वेणपूम पोयकैत्तु अवनूर  एन्प अतनाल तन चोललि


खगोलशास्त्र
तमि ल सघं कालीन कवियों में खगोलीय गहरा ज्ञान था।वे ग्रहों और नक्षत्रों को कोल,मीन कहतेहैं।इस के कई प्रमाण

चिरुपाणाट्रप्पडै ,नेडुनेल्वाडै ,पट्टिणप्पालै ,अकनानरु,कुरुंतोकै,पुरनानरु  नट्रिणै,पतिट्रुप्पत्तु आदि ग्रंथों  में मिलते हैं।


चिरुबाणाट्रुु प्पडै–२४२-२४३.


दो हजार -तीन हजार साल पहले  रचि  तमिल ग्रंथ चिरुपाणाट्रुप्पडै  में गेलक्षी अर्थात

तारक मडंल का विस्तार से वर्णन  मिलता है ।

वाल   निरर विसुंबिन कोल मीन चूल्न्त इलकंतिर  ञायिरु ऍल्लुम तोट्रत्तु  विलंगु पोरकलत्तिल   विरुंबुवन पेणी,आना विरुप्पिन्,
तान्निन्र ऊट्टि .


(गीत २३८ से२४५)

भावार्थ — बडे स्वर्ण थाल में भोजन है।उस थाल में कई व्यजंन,चट्नि ,अचार के प्याले

रखे गये हैं। यह तो सरल वर्णन र्है।आगेकवि की बात कवि के खगोलीय ज्ञान की

अभि व्यक्ति प्रकट होती है।सूर्य को  घेरकर जैसे  ग्रह और नक्षत्र जैसे  हैं तरकारियों के व्यजंनों,चट्नि और अचारों के प्याले ।


वर्षा की गति - बादल की गति –

मुल्लैप्पाट्टु (१-६)-- समुद्र के पानी लेकर बादल बनते हैं।ठंडी हवा के बहते ही पानीबरसता है.

भूमध्य सागर के निकट जो लोग रहतेथे, वे सूर्य

गति को उत्तरायण,भूमध्य सागर के बीच में रहनेवाले द्राविड लोग इन अयनों को सही नाप-तोल करके दाईउद्गम ,बाई उद्गम  सूर्य के उत्तर दिशा की ओर चलना ,दक्षिण दि शा की ओर चलना  आदि  जानकारियाँ  जानते थे ।

ठीक बीच तराजू  बनाकर छाया घडी का तराजू  बनाकर छाया की   लंबाई  के आधार पर समय का निर्धारण करते थे।
इसका चित्रण नेडुनलवाडै ग्रंथ में  मिलता है। नेडुनेलवाडै-७२-७८.

 माति रम 

विरिकतिर परप्पिय वियलवाय ,मंडिलम   इरु  कोल कुऱि निलै  वलुक्कातु कुडुक्क  एर्पु ओरु  ति ऱम  सारा  अरै नाल  अमैयत्तु  

नूल अऱि पुलवर नुण्णितिन कयिरु इट्टु.




चद्रंमा और बारह राशियाँ  पश्चिम  से  पूरब को पार करती हैं। यहाँ  डिग्री 27 सम भागों में विभाजित करके एक एक ग्रह को
अश्विन, भरणि ऐसे 27 नक्षत्रों का वर्णन  मिलता है।

नेडुनेलवाडै(160) तिण्निलै   मरुप्पिन आडुतलै याक

विण ऊर्बु  तिरितरुम  वींग चेल्ल मंडिलत्तु मुरण मिकुचिरप्पिन चेलवनोडु


निलैइय उरोगिणि  निनैवनल   नोक्कि  नेडुतु उयिरा,


इस पद्य में मेष राशि ,रोगिणि नक्षत्र का उल्लेख मिलता है।

राजा अपने राजमहल के छत पर खडे होकर गगन मडंल  देखता है । 
 वसैयियिल  पुकल  वयंगुवेण्मीन ,दिसै। तिरिन्तु  तेर्कुे एकिनुम


तऱपाडिय तनि उणविन। पुलतेंबिप  पुयल मारि वान पोय्प्पिनुम  तानपोय्या मलत्तैलय कटर्काविरि ।

हवा–सघं काल के साहित्य में हवा के आने की दिशा। और उसी दिशा के अनुसार नाम का

भी उल्लेख मिलता है। पूरब की दिशा की हवा कोंडल  कही जाती है।

उत्तर दिशा से आनेवाली हवा वाडै कही जाती है।

वलि हवा का आम नाम है.

वर्षा के साथ बहनेवाली हवा है–काल.्


नट्रिनै ग्रंथ में वर्षा के नाम खगोलीय शास्त्र के जैसै  ही उल्लेख हुए हैं।


इडि मलै –तुलुंगु  कुरल एरोडु

मुलंगी .(नट्रिनै -7


अग्नि नक्षत्र –-कूडलकिलार नामक् कवि पुरनानूरु २२९ में   कनैएरि परप्पक्काल येतिर्प्पु  पोंगी ओरु मीन विलुन्तेन्राल  विसुं

बिनाने के पद्य में    -नक्षत्र के गिरने का उल्लेख करते हैं।


सूर्य —तमिल साहित्य में सूर्योदय ,सूर्यास्त का वर्णन  पूरब  तट के लोग करते हैं ।


मुन्नीर   मूमिसैप्पुलवर   तोलन्तोन्रि –(नट्रि नै-283-6)

अर्थ —ऊँची-ऊँची लहरों के समुद्र  से  सूर्यो का निकलना सूर्य  अपने मुख दिखाने  के लिए ।

अकनानूरु (378)— चुडुर केलु मडिलम पटकूर मालैयुम। --शाम को सूर्यार्यास्त होना.


वसै े ही चद्रं मा,नक्षत्र का वर्णनर्ण भी मि लतेहैं।

चिकित्सा –सघं साहित्य में प्रसव चिकित्सा,शल्य चिकित्सा, गर्भ महिला के स्वाद आदि  का जिक्र मिलता है।
कुरुंतोकै -ऐंकुरुनूरु-51

पिरर्मण  उण्णुम चेम्मल । निन नाट्टु  वयवुरु मकलिर वेट्टुउणिन,अल्लतु पकैवर

उण्णार  अरु मण्णि नैये  । - इसमें  गर्भिन  महिलाओंका  मिट्टी खाने का चित्रण है।

वैसे ही घायल वीरों की चिकित्सा का वर्णन  भी मिलता है ।

पशुनेय कूर्न्त मेन्मैयाक्कै( नट्रि नैग्रंथ 40-6-8)घायल वीरों को गाय घी सेभी कोमल दवा लगाने का वर्णन र्है ।

जिंदा  रहने,शारीरिक विकास के लिए आहार का भी वर्णनर्  संघ काल के साहित्य में मिलता है।

अरुणगिरि नाथर 1450 C.E के कवि  ने भी  लिखा है कि ईश्वर भक्ति के सामने ग्रह फल और गति कुछ नहीं बिगाड सकता हैं।

औवयार   भी तिरुक्कुरल की प्रशंसा मेंकहतेहैं कि अणुको छेदकर उसमें सात समद्रु के पानी भरने के समान है
डेढ  पंक्क्तियों का तिरुक्कुरल.


तमिल के सिद्ध पुरुषों की रचनाओं में भी आधुनिक वैज्ञानिक विषयों की बातें ऐसी है, ताजी सी लगती हैं।


सदं र्भ ग्रंथ—१.पुर नानूरु  मूलमुम उरैयुम,    लेखक पुलियूर केसिकन् 


२.नट्रिनै


३.अकनानरु


४.कुरुंतोकै


उपर्युक्त  चार ग्रंथों के प्रकाशक हैं   ।Ncbh publishers.

5.सघं इलक्कियक्कट्टुरैकल–प. आ.गरुुमर्तिूर्ति,र्ति मेय्यप्पन पतिप्पकम,   चितंबरम.





तिरुक्कुरल  में  विज्ञान



तिरुक्कुरल में 133 अध्याय हैं और उसके तीन भाग हैं।

धर्म,  अर्थ , काम । हर अध्याय में दस कुरल हैं।
कुल 1330 कुरळ हैं। दो हज़ार वर्ष पुराने ग्रथं में  वैज्ञानिक बातों की कमी नहीं है।
आधनिुनिक आविष्कार के नोबल पुरस्कार की बातें
दो हज़ार साल की प्राचीनतम तिरुक्कुरल में है।

वर्षा का महत्व समझाने वळ्ळुवर कहतेहैं कि वर्षा न बरसने पर समद्रु में भी पानी सूख जाएगा।

"नेडुंकुरलुम तन नीर्मै कुन्रमु  तडिन्तोऴिलुम ्

तान नलकाताकि विडुम"--कुरल 17.

भावार्थ --सागर अनतं विस्तृत जल से भरा है।

सूरज सागर के पानी को भाप बनाकर काले बादल बनकर

पानी नहीं बरसाता तो समद्रु का पानी भी सूख जाएगा।

यह पानी सबंधित विचार वल्लवुर  के  वैज्ञानिक   विचार का प्रमाण है।

रोग के मूल कारण भोजन है।



भोजन की मात्रा जानकर खाना चाहिए। भोजन -पचने के बाद,

जब भूख लगती है,तभी खाना अच्छा है।

"अट्राल अळवरिंदु उण्क  अहतुडंबु 

पेट्रान नेडितुय्क्कुमारु।।943

भावार्थ --पहले जो खाना खाया है,

उसके पचने के बाद ही खाना चाहिए।

वह भी भोजन की मात्रा जानकर खाना

चाहिए।  तभी मानव दीर्घ काल जी सकता है।

मानव के रोग के कारण वाद,पित्त,बलगम आदि हैं।
इन तीनों में एक के बढ़ने पर या घटने पर शरीर बीमार काकेंद्र बन जाएगा।

" मिकिनुम   कुऱैयिनुम् नोय   सेय्युम  नूलोर

वळि मतुला एण्णिय मून्रु(941).

शत्रु पर  विश्वास नहीं करना चाहिए। महात्मा मोहनदास गांधी जी को गोटसे ने प्रार्थना  करते हुए मारा था।

ऐसे ही शत्रु होंगे। इस मानव षड्यत्रं को वल्लवुर  ने  दो हजार साल पहले ही बताया है।

"तोऴुत कै युळ्ळुम पडैयोडुं गुम्  ओन्नार 

अळुत कण्णीरुम  अनैत्तु  ।ु। 828.

रोते  बिलखते शत्रुको देखकर दया न करना चाहिए। रोते हुए दया की भीख

माँगनेवाले शत्रु पर भरोसा नहीं रखना  चाहिए।
वे आक्रमण करने कोई हथियार भी छिपाकर आ सकतेहैं।

यह मानव मनोविज्ञान की बात है।

वळ्ळुवर गणित को प्राथमिकता देते हैं ।

एक मनुष्य के लिए गणित और अक्षर ज्ञान प्रधान हैं।

इनमें  गिनती को प्रधानता देते हैं।

न्यटून की हर क्रिया की प्रति क्रिया पर भी तिरुक्कुरल में  उल्लेख मिलता है।

भारतीय कर्म फल की प्रति क्रिया  पाप पुण्य  है। यही न्यटून की प्रक्रिया सिद्धांत है।

पानी के परिमाण के अनुसार पानी पौधों की लंबाई रहेगी।

इसका भी वल्लवुर ने उल्लेख किया है।

इसकी तुलना मानव मन से करते हैं।

मन के विचार के अनुसार ही मानव का महत्व बढ़ता  घटता है।

ऐसी कई   वैज्ञानिक बातें भारतीय  भाषाओं में हैं।

संस्कृत और तमिल के कवियों ने भूगोल खगोल स्वास्थ्य

रसायन आदि की बातें समझायी हैं।

विदेशी शासन और अंग्रेज़ी के प्रभाव ने तमिल और संस्कृत के महत्व पर पर्दा डाल दिया।

फिर उन सबका उजागर करना आजाद भारत के शिक्षा विभाग का कर्तव्य है।

तिरुवल्लवु र के सागर की चदं बूंदें  हैं।

शिक्षा क्षेत्र के पाठ्य-क्रम  में भारतीय भाषाओं के 
ऐसे प्राचीनतम कवियों के  वैज्ञानिक ज्ञान को जोड़ने से

आधनिुनिक शिक्षा में भारतीय भाषाओंका महत्व बढ़ेगा ।