Sunday, June 25, 2023

 हम हैं तमिलनाडु के प्रेमी ,

न हमें स्थाई आय हिंदी द्वारा।
हिंदी की दूकानों खोलते हैं,
इच्छुक ग्राहक हिंदी ज्ञान लेने आते हैं।।
ये दूकान विज्ञापन रहित सहित चलती हैं।
प्रचारकों की काबिलियत के मुताबिक
हिंदी ग्राहक आते हैं।
उनमें नौकरी की आशा नहीं,
हर एक को अपनी अपनी चाहें होती हैं।
उत्तर भारत की यात्रा के लिए कुछ लोग।
व्यापारिक व्यवहारिक चालू हिंदी
जानने कुछ लोग।
अनुवादक बनने कुछ लोग।
प्रचारक बनकर जेब खर्च कमाने कुछ लोग।
आन लयन हिंदी सिखाने कुछ लोग।
हिंदी की दूकानों छोटे मोटे व्यापारियों की तरह।।
सब को कुछ अतिरिक्त आय का मार्ग।
न राज्य सरकार का समर्थन ,
न केंद्र सरकार का समर्थन।
न राष्ट्रीय , प्रांतीय दलों का
मंचीय समर्थन।।
हिंदी की दुूकानें १००%
जनता के समर्थन से चलती हैं।
हिंदी की दुूकानें खोलने की
प्रेरणा गुजराती नेता के द्वारा,
राजाराम मोहन राय द्वारा
मोटूरी सत्यनारायण द्वारा
अहींदी भाषियों के द्वारा ज़ोर पकड़ी है।
स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक ,
सौहार्द सम्मान प्राप्त।

Saturday, June 24, 2023

- परीक्षा।।

 नमस्ते वणक्कम।

सभी साहित्य संगम संस्थान और साहित्य कारों को समर्पण।
शीर्षक -- परीक्षा।।
मानव के लिए परीक्षाएँ अनेक।।
परीक्षा परिणाम भी विचित्र।।
आजकल तीन साल के बच्चे से परीक्षा शुरू।।
बुद्धि मान कमाने में खासकर बाह्यडंबरता
दिखाकर आकर्षित करने में अति चालाक।।
शिशु विद्यालय पूर्व बाल वर्ग 3से4उम्र
परीक्षा फल, पदवी दान समारोह,छाया चित्र।।
अतिरिक्त शुल्क एक हज़ार।
अभिभावक देने तैयार। कुल एक लाख।
अदा करने में अभिभावक की परीक्षा परिश्रम।।
मातृभाषा भूलने एक लाख खर्च।
मातृभाषा बोलना गँवार की प्रशिक्षण परीक्षा।।
तब से तेईस साल तक अग्नि परीक्षा।।
चित्र पट, हस्त दूर भाष संयम की परीक्षा।।
प्रेमी-प्रेमिका मिलने मिलाने मिलवाने की परीक्षा।
प्रेम करने मजहबी, जातीय अंतर्जातीय, अंतर्राष्ट्रीय
प्रेम में बाधाओं में जीतने की परीक्षा।।
सुहागरात की परीक्षा, सम्मिलित परिवार की परीक्षा।।
विदेशी नोकरी पास पोर्ट , विसा की परीक्षा।।
कदम कदम पर परीक्षा जय पराजय।।
आतंक वादी , स्वार्थ राजनीति, रिश्वत, भ्रष्टाचारी।
इन परीक्षाओं के बीच जीने की कामयाबी।।
परीक्षा ही जीवन सत्य असत्य जीवन।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।

निद्रादेवि

 निद्रादेवि कहीं छोड चली, वह छली.

कल्पना देवि रूठ चली.
वह छली.
कल्पना घोडा तेज़ चली.
भाग गया.
भारत देश उन्नति की ओर.
विदेशी पत्नी मायके के मोह.
विदेशी पति खान छोड.
चार्स छोड
गांधी जोडना
कहाँ तक सार्थक पता नहीं.

Friday, June 23, 2023

 सबको मेरा प्रणाम ।

 सार्थक है हिंदी प्रचार।

अर्थ की अवनति,

अर्थ पूर्ण जिंदगी,

 हिंदी प्रचार  में।

 अनर्थ नहीं, 

सार्थक है हिंदी प्रचार।

 नागरी लिपि सीखने 

 क्यों तमिलनाडु में संकोच?

पता नहीं, 

द्रमुक दल का प्रचार है

 गजब, घझढधब  के उच्चारण में

 पेप्टिक अलसर की संभावना।

 द्राविड़ पार्टी छोड़ दें,

 यहाँ के विप्र भी न जानते नागरी।

 क1क2क3क4 तमिल में वेद मंत्र की किताबें।

 पता नहीं, तमिलनाडु की वेदपाठ शालाओं में  देवनागरी लिपि सिखाते हैं कि नहीं।

    यकीनन  अर्थ की कमी,

   सार्थक जीवन 

  तमिलनाडु के 

   प्रचारकों का।।

  कोई भी प्रचारक 

 अपनी युवा पीढ़ियों को

 जीविकोपार्जन के लिए

 हिंदी पढ़ का

 समर्थन न करते जान।

 परिस्थिति ऐसी है तो

 हिंदी का  विकास 

 न होगा जान।।

 करोड़ों का खर्च,पर

 सरकार की जवान पत्नी है अंग्रेज़ी।।

 दशरथ चुप कारण जवान कैकेई।।

 सरकार चुप कारण अंग्रेज़ी।

 

 

  अर्थ नहीं,पर है सार्थक जीवन।

  भाग्यवश जो हिंदी प्राध्यापक ,

  सरकारी अध्यापक, हिंदी अधिकारी, बने,

हिंदी विकास की प्रशंसा बढ़ा-चढ़ाकर बोलते।

  ऐलान करने का दिल नहीं,

 सिर्फ हिंदी राज भाषा।

वास्तव में  स्वतंत्रता संग्राम की 

एकता अंग्रेज़ों के थप्पड़ से

 विदेश में  शुरु।

 गोखले, मोहनदास करमचंद गाँधी, आधुनिक गाँधी परिवार, नेहरु ,पटेल ,तिलक, लाल,बाल,पाल अंग्रेज़ी में  पारंगत। 

  अंग्रेज़ी सीखने के बाद

 भारतीय भाषाएँ सीखना

 अति मुश्किल जान।

तमिलनाडु की युवा पीढ़ी,

 40000/+2छात्र  तमिल भाषा में अनुत्तीर्ण ।।

 कर्ड रैस,  लेमन रैस,  ओयइट चटनी,
रेड चट्नी ग्रीन चट्नी

जिन्हें हम  जवानी में कहते 

नारियल चट्नी, तक्काली चट्नी, पुदीना /कोत्तमल्लि चट्नी।

 अंग्रेज़ी मगर मच्छर निगल रहा है

 तमिल भाषा को।।
भारतीय भाषाओं को ।




   नागरी लिपि और भारतीय भाषाओं के  विकास में  अद्भुत शक्ति रही।  
भगवान  की सृष्टियों में कमी रहित सृष्टि नहीं है.
मानव मानव में रंग भेद,आकार भेद, गुण भेद ,उच्चारण में भेद।
जब भाषाओं में लिपि भेद है ,तो कोई भी लिपि  मानक नही है ।
भारत में लिपि सहित भाषाएँ  और लिपि रहित  बोलियाँ हैं ।
देवनागरी लिपि को अति वैज्ञानिक लिपि कहते हैं । लेकिन तमिल भाषा के ऍ,ओॅ  ध्वनियाँ नहीं हैं ।
पर आजकल ए के ऊपर शशिकला लगाकर वह कमी दूर किया जा रहा है । 
तमिल में तीन ल हैं । ल,ल, ल,दो रा है । देवनागरी में ल, ल है, ल के नीचे बिंदु लगाकर तीसरे ल की कमी  दूर हो गयी ।
र, र है,र के  पहले र्   आने पर   मुट्रम ट्  लगाते  हैं ।
तमिल में  ट-ण, त-न, र -न   तीन न है । 
 कर्ण,सुंदर, मन.तब देवनागरी में एक न की कमी है । 
आ सेतु पर्यावरण में भेद --
 कश्मीर से  कन्याकुमरी तक प्राकृतिक विविधता है । कश्मीर के फल दक्षिण में नहीं मिलते ।
पहाडी पेड,पौधे, जडी बूटियाँ  मैदान में नहीं मिलते ।उत्तर में ऊँचे हिमालय पहाड है तो तीन समुद्रों का संगम् 
हिंदु महासगर है। जलवायु, पैदावर के अनुसार  पोशाक,भोजन में भेद होते हैं । 
विचारों की एकता में सत्य,दान,धर्म,परोपकार सर्वमान्य है. बाकी  राजनीति,मजहब,भाषा,अभिवादन प्रणालियाँ आदि में
भिन्नताएँ हैं ।
 सिवा तमिऴ के अन्य सभी भाषाओं  में अल्पप्राण,महाप्राण ,अंतस्त,ऊष्म  वर्णमाला है । पर तमिल में क,च,ट,त,प,
य,र,ल,व, ल,ल,ल,र ,र, न,ड.,ञ,ण,न,न,म है ।
   १९६५ में तमिलनाडू में हिंदी राजभाषा की घोषणा के विरुद्ध  बहुत बडा आंदोलन चला । तब के द्राविड दल के नेता ,
भाषण कला में पटु थे. वे ऐसे मोहक आवाज में जोरदार भाषण देते कि महाप्राण अक्षरों के उच्चारण  लगातार करोगे तो पेट में अलसर हो जाएगा । हिंदी आएगी तो तमिल की मृत्यु हो जाएगी । हिंदी  के प्रति नफरत जगाना ही द्राविड दलों की राजनीति है ।
तमिल प्रांत के लोग तो जान-समझ चुके हैं  कि भारत भर  के संपर्क के लिए हिंदी आवश्यक है । फिर भी सत्ता हासिल करने के लिए हिंदी विरोध को अस्त्र- शस्त्र  के रूप में  प्रयोग  करते हैं । हिंदी के पक्ष में जो नेता थे, वे भी हिंदी का विरोध करने लगे । चक्रवर्ति  १९३७ में मद्रास प्राविन्स के मुख्य मंत्री थे,तब स्कूलें में हिंदी को अनिवार्य भाषा बनायी ।तब  जस्टिस पार्टि के  ई.वे. रामसामी नायक्कर ने हिंदी के विरोध में आंदोलन चलाया।  १९६५ ई. में लालबहादूर शास्त्री ने राजभाषा घोषित की तो हिंदी विरोध में बहुत बडी क्रांति शुरु हो गई । रेल -बस जलाने लगे । हिंदी अक्षरों को रेलवे स्टेशन,डाक- घर में मिटाने लगे। लगभग सौ लोग पुलिस की  गोलियों के शिकार हो गये ।  अण्णादुरै  ,करुणानिधि,राजाजी और बडे बडे लोग हिंदी के विरोध में नारा लगाने लगेे । परिणाम स्वरूप कांग्रस हार गया। १९६७ से आज तक तमिलनाडु में प्रांतीय दल का हिंदी विरोध शासन चल रहा है । अंग्रेजी माध्यम स्कूल की संख्या बढने लगी।तमिल माध्यम स्कूल बंद  होने लगे । लोग तो हिंदी सीखना चाहते हैं,पर हिंदी को राजभाषा बनाना नहीं चाहते ।
  मैं पचास साल से तमिलनाडू का हिंदी प्रचारक हूँ। हर छात्र से साक्षात्कार करता हूँ। वे तो हिंदी पढना चाहते हैं । पर राजभाषा कहते ही नफरत के शिखर पर पहुँच जाते। हिंदी ही नहीं अपनी मातृभाषा तमिल को भी नहीं चाहते । तमिल तो लिखित तमिल अलग ,बोलचाल की तमिल अलग है । आप आइए--बोलचाल तमिल में नींग वांग काफी है । लिखित तमिल में नींगल वारुंगल। 
अंग्रेजी माध्यम के  बढते  बढते भारतीय भाषाएँ पढना मुश्किल  हो जाते हैं । 
मैंने पूछा -आप को अपनी मातृभाषा तमिल क्यों कठिन लगता है .
छात्रों ने कहा-   सभी सर्वनामों के लिए    रोट.wrote.पर तमिल में  तो  नान  एलुतिनेन । नी एलुतिनाय. अवन एलुतिनान .
नांगल एलुतिनोम  नींगल एलुतुकिरीरकलअवर एलुतिनार .  अवरकल एलुतिनारकल ।क्रिया के  इतने परिवर्तन । wrote .
 अंग्रेजी माध्यम पढनेवालों को देवनागरी लिपी भी मुश्किल  लगता है ।

  तमिऴ अति प्राचीनतम भाषा है। तमिऴ भाषा में आ सेतु हिमाचल   के आम शब्द पाये जाते हैं। शुद्ध को चुत्तम् कहते हैं।

आध्यात्मिक क्षेत्र में  पूजा,अर्चना, ध्यान,अष्टमा सिद्धि, प्राणायाम ,योगा  सहस्रनाम,अष्टोत्तरी आदि शब्द पाये जाते हैं।

अधिकांश व्यक्तिवाचक संज्ञा भारत भर के चालू शब्द हैं।

तमिऴ नाम रखना नहीं चाहते।  श्याम, श्वेता, श्रेया, सरोजा,

कमला,जलजा नीरजा,पद्मा, निर्मला, कमला,विमला,लक्ष्मी,प्रेमा,मीनलोचनी,सुलोचना,विजया,

कामाक्षी,अजित,रजनी,सत्यराज,राजकुमार,कामराज, वीरास्वामी,पुरुषोत्तम, षण्मुखम्, आरोग्त सामी, ये नाम भारत भर में चालू है।  हिंदी सिखाते समय इन नंद नामों का तमिल अर्थ बताएँगे तो हिंदी आसान हो जाएगी। भारत भर में बोलनेवाले आम शब्द हजारों तमिऴ में मिलते हैं। निर्वाह, निवारण, परिवर्तन,प्रयत्न, प्रयास, सहायक, व्यापार, विरोध,द्रोह,लाभ-नष्ट, बंद,घेरो,तीर्थ यात्रा, विश्वास, वर, उपयोग,

जैसे हजारों शब्द  आ सेतु हिमालय में व्यवहार में हैं।

नगर, ग्राम, ग्राम पंचायत, अधिकारी , जन्म,मरण,पाप,पुण्य,

दरिद्र, रोग, चिकित्सा, प्रायश्चित ।

ऐसे भारत भर के आम शब्द के कारण  भारतीय भाषाओं की एकता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

  आचार्य विनोबा भावे के भूदान यज्ञ में तमिलनाडु के गाँव गाँव में हिंदी गूँज उठी है। हमें उनके देवनागरी लिपि 

सिद्धांत  के अनुसार भारतीय सभी भाषाओं को देवनागरी लिपी द्वारा सिखाना चाहिए। मैंने तमिल सीखिए किताब को हिंदी देवनागरी लिपी में ही लिखा है। उसकी pdf भी  नागरी लिपि परिषद  , हिंदी गौरव सम्मान, मेरे ब्लाग तमिल हिंदी संपर्क में भेजा है।

तमिल के प्रसिद्ध चित्रपट के कवि सम्राट कण्णदआसन ने भाषाई एकता की कविता में लिखा है "हिंदी मोर नाचो नाचो, धीरे-धीरे , मातृभूमि तुमको अपनाएगा।

हिंदी और देवनागरी लिपि की सरलता को युवकों को समझाने का प्रयत्न करना चाहिए। मातृभाषा माध्यम के छात्रों को ही सरकारी कार्यालयों में नियुक्त करना चाहिए। भारतीय भाषा माध्यम पाठशालाओं की ओर जनता को खींचना चाहिए।पर आज़ादी के पच्हत्तर साल के बाद भी  अंग्रेज़ी का मोह बढ़ रहा है तो अंग्रेज़ी ही जीविकोपार्जन की भाषा है।

१९५७ की स्वतंत्रता भारतीय भाषाओं के विकास के लिए, पर

अंग्रेज़ी माध्यम पाठशालाएँ बढ़ रही है। भारतीय भाषा माध्यम की पाठशाला केवल गरीब वर्ग  का हो रहा है। सांसद,वि नंद आयकर, जिलादेश ही नहीं सरकारी स्कूल के अध्यापक भी निजी स्कूलों में ही अपने बच्चों को भर्ती कर रहे हैं जहाँ मातृभाषा बोलने पर जुर्माना लगाते हैं। सोचिए, कितना खेद का  विषय है। 

धन्यवाद।

जय हिन्द। जय हिन्दी।

 








 




  



  











  










 

Monday, June 19, 2023

मानव मन

 मानव मन

मानव  मन  की लहरें,
उठती रहती हैं .
विचारों की तरंगें
ज्वार -भाटा ,
मन ज्वालामुखी ।
मन भूकंप ,
मन आँधी तूफान
मन आसक्त-मन अनासक्त
मन लोभी,मन क्रोधी,
मन लैकिक- मन अलौकिक
मन वीर-मन कायर
मन प्रेम,मन शत्रु ,
मन विजयी,मन कायर,
मन भोगी,मन त्यागी.
मन स्वर्ग.मन नरक.
मन चंचल,मन अचंचल.
मन चंगा तो कटौती में गंगा ।
मनोवांछित फल
मनोकामना
मन चतुर,मन चालाक ,
मन बुद्धिमान,मन बेवकूफ,
मन ज्ञानी ।

Sunday, June 18, 2023

कबीर

 मैं चलता हूँ।

  मेरा मन पसंद दोहा  सोलह साल की उम्र से पालन कर रहा हूँ।

 जाको राखै साइयाँ,

 मारी और सके कोई।

बाल न बाँका करी सके,

जो जग वैरी होय ।।

 

 अग जग के लोग  सब के सब मेरे  दुश्मन है। मैं अकेला हूँ। मेरे रक्षक है  सर्वेश्वर। 

अनपढ़ कबीर  , अब वाणी के डिक्टेटर का कहना है  ,ईश्वर के हिफाजत साथ है तो बाल तक उखाड़ नहीं सकते। हम यही सिखाते हैं ज़रा सी हानि तक पहुँचा नहीं सकते। 

तमिल में कहना है कि मयइरैक्कूड पिडुंगमुडियातु।।

  यही मैं पालन कर रहा हूँ। 

 किसी का खुशामद या चापलूसी नहीं करता।

 मैं हूँ ईश्वर का शरणार्थी ।

उत्थान हो या पतन    ईश्वर पर निर्भर ।


 


 जननी जन्म सौख्यानां वर्धनी कुल सम्पदां । पदवी पूर्व पुण्यानां लेखन्यते जन्म पत्रिका .

पुरनानूरु -गीत-१९२.

 पुरनानूरु -गीत-१९२.

कवि--कणियन पूंकुन्रनार.
सर्वत्र हमारे गाँव हैं ।
अच्छाई या बुराई ,
दूसरों के कारण नहीं आतीं।
दुख  और दुख दूर होना ,
हमारे कर्मानुसार ही ।
मरना तो जन्म के दिन में ही पक्का निर्णय है ।
जिंदगी में आनंद और दुख स्थाई नहीं है ।
आकाश गर्मी भी देगा और वर्षा भी ।
जिंदगी भी वैसा ही दुख भी देगी,सुख भी ।
बडी नदी में चट्टानों से टकराकर,
डाँवाडोल नाव-सम,
विधि की विडंबना के अनुसार 
मानव जीवन चलेगा ।
बडों को देखकर भौंचक्का होना,
छोटों को देखकर अपमानित करना ,
दोनों ही सही नहीं है ।
 यह गेय गीत की रचना दो हजार साल के पहले हुई हैं ।
अनुवादक--एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै.

Monday, June 12, 2023

धर्म अलग है। संप्रदाय,मत/मजहब अलग है।

 धर्म अलग है। संप्रदाय,मत/मजहब अलग है।


  आधुनिक भारतीय विदेशी भाषा अंग्रेज़ी में जीविकोपार्जन के द्वार अष्टदिक में खुले हैं। बगैर अंग्रेज़ी के भारत में भी नौकरी असंभव है। मातृभाषा माध्यम के स्कूल में न जिलादेश का बच्चा, न सरकारी स्कूलों के अध्यापक के बच्चे न सांसद विधायक के बच्चे।
न मंत्री के बच्चे।
जय मातृभाषा–चुनाव के समय का ऐलान। कोने कोने में हर गाँव में अंग्रेज़ी स्कूल की चमक ।
अशोक गिरी के पूरुषोत्तम टंडन के विचार श्रेष्ठ है। पर हिंदी में एक लिखकर प्रकाशन के लिए पंजीकरण शुल्क 500से 1500तक। अमीर लेखकों की भाषा बन रही है हिंदी।भूखा भजन न गोपाल।
धर्म अलग है। संप्रदाय,मत/मजहब अलग है। धर्म तटस्थ हैं । संप्रदाय में /मजहब में मानव मानव में भेद ,नफरत शिव बड़ा है या राम बड़ा है या कृष्ण बडा है या अल्लाह बड़ा है? ईसा बड़ा है? इन संप्रदाय या मजहब में मानवता नहीं है।
यह पशुत्व है।
मानव मानव में लड़वाकर स्वार्थ मजहबी राजनीति है।
मजहब या संप्रदाय ही शैतान है या माया। इनसे बचाने उद्धव के निराकार परप्रह्म की उपासना करनी चाहिए।
सनातनवादी जनता को पागल बनाने सोनिया गांधीजी को मंदिर बनवाता है। तब कांग्रेस मंदिर।
खुशबू को मंदिर बनवाया है, वह अभिनेत्री चाहक मंदिर। मोदीजी को मंदिर बनवाया है, वह भाजपा दल के मंदिर। जयललिता व एम जी आर का मंदिर । वह अण्णा द्रमुकवालों का मंदिर। मेरे गाँव में किसी ने अपने लिए मंदिर बनवाया है।
चेन्नै मैलापूर में अप्पर स्वामिकळ जीव समाधी के ऊपर शिवलिंग है।
अहम् ब्रह्मास्मी “मैं भगवान हूँ”
तब करोड़ों मंदिर।

दुई जगदीस कहाँ ते आया, कहु कवने भरमाया।

अल्लह राम करीमा केसो, हजरत नाम धराया॥

गहना एक कनक तें गढ़ना, इनि महँ भाव न दूजा।

कहन सुनन को दुर करि पापिन, इक निमाज इक पूजा॥

वही महादेव वही महंमद, ब्रह्मा−आदम कहिये।

को हिन्दू को तुरुक कहावै, एक जिमीं पर रहिये॥

बेद कितेब पढ़े वे कुतुबा, वे मोंलना वे पाँडे।

बेगरि बेगरि नाम धराये, एक मटिया के भाँडे॥

कहँहि कबीर वे दूनौं भूले, रामहिं किनहुँ न पाया।

वे खस्सी वे गाय कटावैं, बादहिं जन्म गँवाया॥
यही कबीर हठयोगी की एकता की सीख।।

Sunday, June 11, 2023

सार्थक है हिंदी प्रचार।

 सार्थक है हिंदी प्रचार।

अर्थ की अवनति,

अर्थ पूर्ण जिंदगी,

 हिंदी प्रचार  में।

 अनर्थ नहीं, 

सार्थक है हिंदी प्रचार।

 नागरी लिपि सीखने 

 क्यों तमिलनाडु में संकोच?

पता नहीं, 

द्रमुक दल का प्रचार है

 गजब, घझढधब  के उच्चारण में

 पेप्टिक अवसर की संभावना।

 द्राविड़ पार्टी छोड़ दें,

 यहाँ के विप्र भी न जानते नागरी।

 क1क2क3क4 तमिल में वेद मंत्र की किताबें।

 पता नहीं, तमिलनाडु की वेदपाठ शालाओं में  देवनागरी लिपि सिखाते हैं कि नहीं।

    यकीनन  अर्थ की कमी,

   सार्थक जीवन 

  तमिलनाडु के 

   प्रचारकों का।।

  कोई भी प्रचारक 

 अपनी युवा पीढ़ियों को

 जीविकोपार्जन के लिए

 हिंदी पढ़ का

 समर्थन न करते जान।

 परिस्थिति ऐसी है तो

 हिंदी का  विकास 

 न होगा जान।।

 करोड़ों का खर्च,पर

 अंग्रेज़ी सरकार की जवान पत्नी।

 दशरथ चुप कारण जवान कैकेई।।

 सरकार चुप कारण अंग्रेज़ी।

 

 एस.अनंतकृष्णन, तमिलनाडु हिंदी प्रचारक।

  अर्थ नहीं,पर है सार्थक जीवन।

  भाग्यवश जो हिंदी प्राध्यापक ,

  सरकारी अध्यापक, हिंदी अधिकारी, बने,

हिंदी विकास की प्रशंसा बढ़ा-चढ़ाकर बोलते।

  ऐलान करने का दिल नहीं,

 सिर्फ हिंदी राज भाषा।

वास्तव में  स्वतंत्रता संग्राम की 

एकता अंग्रेज़ों के थप्पड़ से

 विदेश में  शुरु।

 गोखले, गाँधी, आधुनिक गाँधी परिवार, नेहरु ,पटेल ,तिलक, लाल,बाल,पाल अंग्रेज़ी में के पारंगत। 

  अंग्रेज़ी सीखने के बाद

 भारतीय भाषाएँ सीखना

 अति मुश्किल जान।

तमिलनाडु की युवा पीढ़ी,

 40000/+2छात्र  तमिल भाषा में अनुत्तीर्ण ।।

 कर्ड रैस,  लेमन रैस,  ओयइट चटनी,
रेड चट्नी ग्रीन चट्नी

जिन्हें हम  जवानी में कहते 

नारियल चट्नी, तक्काली चट्नी, पुदीना /कोत्तमल्लि चट्नी।

 अंग्रेज़ी मगर मच्छर निगल रहा है

 तमिल भाषा को।।
भारतीय भाषाओं को ।




एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

हिंदी प्रचारक।

Saturday, June 10, 2023

शिव भोग सार — अनुवाद.



 “அவரவர் வினைவழி அவரவர் வந்தனர் अवरवर विनै वलि  अवरवर वंदनर

அவரவர் வினைவழி அவரவர் அனுபவம் अवरवर विनै वलि अवरवर अनुभव
எவரெவர்க் குதவினர் எவரெவர்க் குதவிலர் ऍवरेवर्क्कु उतविनर ऍवरेवर्क्कुतविलर
தவரவர் நினைவது தமையுணர் வதுவே “. तवरवर निनैवतु तमैयुणर्वतुवे ।

“நீதியிலா மன்னர் இராச்சியமும் நெற்றியிலே  नीतियिला मन्नर इराच्चियमुम् नेट्रियिले
பூதியிலார் செய்தவமும் பூரணமாஞ் – சோதி भूतियिलार चेय तवमुम् पूरणमांच -जोति
கழலறியா ஆசானுங் கற்பிலருஞ் சுத்தकललरिया आसानुंग कर्पिलरुंच चुत्त
விழலெனவே நீத்து விடு “.         विललेनवे नीत्तुविडु.

शिव भोग सार — अनुवाद
मानव या हर जीव राशियों का जन्म अपने अपने  अपने कर्म , अपने पूर्वजों के पाप -पुण्य के अनुसार होता है । अपने अपने कर्म फल के अनुसार सुख-दुख  अपने विडंबना के अनुसार  भोगना पडता है। हर व्यक्ति सुख-दुख  में इसका अनुभव करता है ।
विधि की विडंबना  अच्छे-बुरे, कृतज्ञ या कृतघ्न ,उपकारी-अनुपकारी,दयालू-निर्दयी आदि नहीं देखती ।
प्रायश्चित्त,होम-यज्ञ  से कोई अपने कर्म फल के दंड से बच नहीं सकता ।भाग्य का फल भोगना ही पडेगा।
इस शिव भोग सार के मुक्त गीत पढने के बाद   हमारी पौराणिक  कहानियों के  नायक  राम,कृष्ण ,
महाराज दशरथ ,भीष्म  और खलनायक रावण ,नल ,शकुंतला कोई भी विधि के दंड से बच नहीं सका।

நாலாயிர திவ்ய ப்ரபந்தம் -चार हजार दिव्य प्रबंध

 நாலாயிர திவ்ய ப்ரபந்தம் -चार हजार दिव्य प्रबंध

तमिल भाषा में शैव- वैष्णव संप्रदायों के भक्त
कवियों की संख्या अधिक हैं ।  शिव कवियों में अप्पर,सुंदरर्,
माणिक्कवासकर,तिरुनाउक्करसर आदि प्रसिद्ध हैं ।इनके अलावा तिरुमूलरकृततिरुमंतिरम ग्रंथ व तमिल के सिद्ध कवि भी प्रसिद्ध हैं।
शिव भक्तों में ६३ नायनमार प्रसिद्ध हैं।
वैष्णव भक्त कवियों को आल्वार कहते हैं ,उनसे रचित ग्रंथ हैं -
चार हजार दिव्य प्रबं ,तमिल में नालायिर दिव्य प्रबंधम् कहते हैं ।
यह ग्रंथ चार हजार पद्यों का है,भगवान विष्णु के यशोगान के हैं ।
इसमें विष्णु् के एक सौ आठ  दिव्य क्षेत्रों का अति सुंदर शब्दों में वर्णन मिलते हैं ।  इस ग्रंथ को द्राविड वेद,द्राविड प्रबंधम्,पंचम वेद, तमिल वेद आदि नामों से भी  प्रशंसा करते हैं । 
इस ग्रंथ का रचना काल ई०.६ से९ वीं शताब्दी  है। बारह  वैष्णव भक्तों के द्वारा रचित यह ग्रंथ  दसवीं शताब्दी में विष्णु भक्त श्री नाथमुनि द्वारा संग्रहित किया गया है । इन पद्यों की संख्या ३,८९२ हैं।नाथ मुनियों ने इन पद्यों को चार भागों में वर्गीकृत किया है ।वे हैं  १.मुतलायिरम्,२.तिरुमोलि ३.तिरवाय मोलि ४.इयर्पा.इन वर्गीकरणों को हिंदी में यों अनुवाद कर सकते हैं ।१.प्रथम सह्स्र गीत २ .श्री भाषा ३.श्रीमुख भाषा ४.सहजगीत.
नाथमुनि के बाद श्री मणवाल मुनि ने श्रीरंगम् के श्री रामानुजर के दास कवि अम्दनार रचित रामानुजर  नूट्रंदाति के १०८ गीतों को मिलाकर  चार हजार गीतों का संग्रह बनाया ।ये चार हजार गीत गेय पद है। तमिल  वैष्णव भक्त  राग सहित गाते हैं ।
चार हजार दिव्य प्रबंध  २४ प्रबंधों  में वर्गीकृत हैं ।
१. पेरियालवार कृत तिरुप्पल्लांडु- १२ गीत
२.पेरियाल्वार तिरमोलि-            ४६१ गीत
 3.आंडाल कृत तिरुप्पावै.-   ३०
४.गीत
 नाच्चियार कृत तिरुमोलि-  १४३

५.कुलशेखर आलवार कृत पेरुमाल तिरुमोलि-१०५ 
६. तिरुमलिसै आलवार कृत तिरु छंद विरुत्तम्-१२०
७.तोंडरडिप्पोडिययालवार कृत तिरुमालै - ४५ 
 ८.तिरुप्पललि एलुच्चि-१०

९. तिरुप्पाणन आलवार कृत अमलनादिपिराण-१०
१०.मधुरकवि आलवार कृत कण्णिनुण चिरुत्तांबु     ११
११. तिरुमंगै आलवार कृत पेरिय तिरुमोलि -१०८४ १२.तिरुकुरुंतांडकम्-२० गीत  १३ .तिरुनेडुंतांडकम्-३० गीत
१३.   पोयकै आल्वार कृत मुतल तिरुवंदाति-१००
१४.भूतत्तालवार कृत-इरंडाम् तिरुवंदाति -१०० 
१५. पेयालवार कृत मूनराम् तिरुवंदाति   १००
 १६.  तिरुमलिसै आलवार कृत  नानमुखन तिरुवंदाति-९६
१७. नम्मालवार्  कृत  तिरुविरुत्तम्-१०० .१८. तिरुवांचियम्-७ 
१९.पेरिय तिरुवंदाति-८७

२०.  तिरुमंगैयालवार कृत तिरुऍलु कूट्ररिक्कै -१
२१.सिरिय तिरुमडल-४०
२२.पेरिय तिरुमडल् -७८
२३  तिरुवरंगत्तु अमुनार कृत रामाुजर नूट्रंदाति   -  १०८.
२४.नम्मालवार कृत तिरुवाय मोलि--११०२



  



Wednesday, June 7, 2023

हिंदी

 हिंदी
 हिंदी कोई उद्यान की भाषा नहीं. न बाग की भाषा, न नंदवन की भाषा ।

न माली  की जरूरत, न बागवान की आवश्यक्ता ,

वह तो  घना वन ।

कुछ लोगों के लिए वह जडी-बूटी है,

कुछ लोगों के लिए लाभप्रद पेड हैं,

कुछ लोगों के पहाडी शहद है,

कुछ लोगों के लिए छायादार वट वृक्ष है ।

. वह तो जंगली भाषा है,बगैर जंगल के

न मौसमी हवा,न मौसमी वर्षा,

न मौसमी फल।

जंगल अपने अपने ढंग से स्वविकसित है ।

डेढ  लाख की खडी बोली ,

हिंदुस्तानी, हिंदी का रूप लेकर

तत्सम,तद्भव,देशज,विदेशज,

शब्दों को अपनाकर ,

जंगल सा, बाग सा उद्यान सा नंदवन सा 

माली रहित, माली सहित पनप रही है.

जिन्होने जंगल मिटा दिया, वे खुद जंगल  बनवा रहे हैं ।

बिना जंगल के धरती गरपागरम ।

बगैर  हिंदी के दाल न गलेगा जान।.

स्वरचित स्वचिंतक एस .अनंतकृष्णन.

वजह से

 र्षक   :-- वजह तुम हो।

        अग जग में प्राकृतिक  सुंदरता,

         हरियाली मरुभूमि, 

         विविध फल, विविध रंग, 

          विविध भाषाएँ,

          हे  तुम सूक्ष्म शक्ति हो, 

           वजह तुम  ही हो।

          मेरी सृष्टि हिंदी विरोध,तमिलनाडु में।

           मेरी माँ हिंदी प्रचारिका  

           मैं भी हिंदी प्रचारक।‌

            हे सर्वेश्वर !  तेरे अनुग्रह से,

             हिंदी में स्नातकोत्तर!

            हिंदी में ही जीविकोपार्जन।।

            विधि की विडंबना,

             परमेश्वर की लीला,

             अति सूक्ष्म। 

               सबहिं नचावत राम गोसाईं।

         एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई, 

     स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक।

नाम --एस.अनंतकृष्णन,

A7, Archana Usha Square

4-5, Kubernagar IV Cross Street 

Madippakkam, Chennai 600091.

Mobile 8610128658

जीवन

 नमस्ते वणक्कम।

साहित्य संगम संस्थान राजस्थान।

7-6-2021

विषय --जीवन

 विधा  मौलिक रचना मौलिक विधा।


जन्म -मरण के बीच की जिंदगी है जीवन।

 धनी भी आनंद ,

  गरीब भी आनंद।

   अघोरी भी आनंद।

   भिखारी भी आनंद।।

    सभी के जीवन 

    अपने     अपने 

     दायरे में आनंद।।

     कभी कभी मैं देखता हूँ,

     रईस  की तुलना में,

     रंक का जीवन 

अति  आनंद।।

  मच्छरों के बीच मधुर नींद।

  पियक्कड़ का जीवन,

 मक्खियाँ भिन भिनाती।

 मध्य नींद है उसका।।

 रोज़ खून का निदान।

शक्कर बढ़ता-घटता।।

 तनाव ही तनाव 

अमीरी जीवन।

 धन की रक्षा,पद की तरक्की।।

  भगवान जितना देता,

   उतना ही आनंद।।

 जीवन जीने प्रयत्न।

  मृत्यु आ जाती अपने आप।

  जीवनानंद 

जीवन अंत बराबर।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

चाह

 न नाम की चाह,न दाम की चाह।

चाह है सर्वेश्वर  की।

सर्वेश्वर  चाहें  तो सुनाम,कुनाम।

दाम-बदनाम।सुनाम।

 दानी कर्ण,संगति के फल से नहीं,

 ।निर्दयी माता के बदचलन के कारण।


 कर्म फल,ईश्वरानुग्रह  ।

राम को दुखी,कृष्ण  को षडयंत्रकारी, 

वाली वध में  बदनाम।द्रोण वध से कलंकित कृष्ण।

 ।जग माया,जग में  असुरों  को,

भ्रष्टाचारियों  का शासन।

यही  भूलोक नीति।

कर्म भूमि। तपोनिष्ठ  भूमि।

अच्छों  के कारण  समय समय पर,

पुनः  स्थापित कर स्वर्ग  बन रहा है भूमि।

अनुभव से शिक्षित दीक्षित हूँ  मैं। 

सुधारने कुछ कहा लिखा  तो

पत्थर फेंकते लोग।

श्री पर चढाये लोग। 

खुल्लम-खुल्ला  बोलते ,

कर्म कर, सत्य बोल,सेवा कर।

स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्ण की प्रार्थनाएं। 

भ्रष्टाचार  को बढाने देते मत।


 स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्णन।

Tuesday, June 6, 2023

असली आनंद

  नमस्ते वणक्कम।

 मानव जीवन में का 

असली आनंद

 तन पर

मन पर

धन पर

परिवार पर

मित्र मंडली पर

सुंदर रूप पर

सुंदरी पर

सुविचार पर

 भक्ति पर

 ज्ञान पर

त्याग पर 

भोग पर

मानव पर 

 मर्यादा पर

 कर्तव्य परायण पर,

 सुकर्म पर 

दुष्कर्म पर

 नशीली चीजों पर


 किस पर निर्भर  है?

पता नहीं,

मोह माया के आकर्षण 

भिन्न भिन्न।

नायक पर मुग्ध

खल नायक पर 

मानव के रूप भिन्न

विचार भिन्न

  स्वार्थी मानव।

 निस्वार्थ मानव

 चलता मानव 

 कोई लोभी 

कोई शांत

कोई संतुष्ट

कोई असंतुष्ट।

कोई स्वस्थ

कोई अस्वस्थ।

थोड़े में कहें तो

 मानव मानव में

 सुखानुभूति ही  अलग-अलग।।

दुखानुभूति अलग अलग।


स्वचिंतक, स्वरचनाकार, अनुवादक

एस. अनंतकृष्णन , चेन्नई।


 


इश्क

 शीर्षक पसंद है।

सभी साहित्यकारों को समर्पण।

नमस्ते। वणक्कम।

निज रचना,निज शैली।

मौलिक रचना मौलिक विधा।

+++++++++++

 मुहब्बत हमारी अमर हो गई।

 मन पसंद सुंदरी,

 भले ही दूसरी की पत्नी हो,

उसके पति को मारकर,

  उसे अपनी बेगम बनाकर

ताज महल बनवाने से

 मेरी मुहब्बत अमर हो गयी।

 पड़ोसी देश की राजकुमारी,

  अति सुन्दर, मैं तो राजा

 मेरी सेना के हजारों सिपाहियों की पत्नियों को 

 विधवा बनाकर,

उनके बच्चों को अनाथ बनाकर  

 मेरी मुहब्बत पद्मावती काव्य बन  अमर हो गई।

 मंत्री मेरे तीन पत्नियाँ,

 असंख्य रखैल मेरी मुहब्बत व

 रखैल की कहानियां अमर हो गई।

 शकुंतला की अंगूठी खोने से

 शाप के कारण भुलक्कड़ बन

  शाप विमोचन याद आना

 मेरी मुहब्बत अमर हो गई।।

 भले ही प्रेम एक पक्ष का हो,

बलात्कार अपनाने से

  धन पद अधिकार के बल

 मुहब्बत  अमर हो गई।।

 लैला मजनू दुखांत कथा अमर हो गई।

 बच्चे आदर्श प्रेम रंक है तो

 रंग हीन हो जाता।।

  किसी कवि ने लिखा,

काश! मैं भी शाहंशाह होता तो

 ताजमहल बनवाता।

 यह अमर महल गरीबों के

 आदर्श प्रेम की हँसी उडा रहाहै।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

  (यह मत लिखना उल्लिखित उदाहरण  के कारण यह कविता

निजी नहीं है।)

जी वन

 नमस्ते वणक्कम।

साहित्य संगम संस्थान राजस्थान।

7-6-2021

विषय --जीवन

 विधा  मौलिक रचना मौलिक विधा।


जन्म -मरण के बीच की जिंदगी है जीवन।

 धनी भी आनंद ,

  गरीब भी आनंद।

   अघोरी भी आनंद।

   भिखारी भी आनंद।।

    सभी के जीवन 

    अपने     अपने 

     दायरे में आनंद।।

     कभी कभी मैं देखता हूँ,

     रईस  की तुलना में,

     रंक का जीवन 

अति  आनंद।।

  मच्छरों के बीच मधुर नींद।

  पियक्कड़ का जीवन,

 मक्खियाँ भिन भिनाती।

 मध्य नींद है उसका।।

 रोज़ खून का निदान।

शक्कर बढ़ता-घटता।।

 तनाव ही तनाव 

अमीरी जीवन।

 धन की रक्षा,पद की तरक्की।।

  भगवान जितना देता,

   उतना ही आनंद।।

 जीवन जीने प्रयत्न।

  मृत्यु आ जाती अपने आप।

  जीवनानंद 

जीवन अंत बराबर।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Sunday, June 4, 2023

तितली

 तितली फूल फल का रस चूस,

मकरंद मिलाने का 

अपूर्व काम भी करती।

सूक्ष्म सृष्टि उसके पलने में

 कीड़े का पर्व 

सभी पेडों  के पत्ते खाना।

पौधों को नाश करना।

मानव ज्ञान न समझ सकता।

स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।


 

सृष्टि भगवान की

 नमस्ते वणक्कम।

 भगवान की सृष्टियों में

 आदम खोर जानवर भी है,

पालतू जानवर भी है,

 लाखों करोड़ मछलियाँ,

 अग जग की भूख मिटाने

 अति चंचल हैं,

 बकरियाँ तैयार खड़ी हैं।

 सब को खानेवाला मानव,

स्वार्थी हैं, निस्वार्थी है,

ईमानदार है, बेईमानी हैं।

 लोभी हैं,  कामी हैं, क्रोधी है।

 दानी हैं, लुटेरे हैं।

धर्मी हैं ,अधर्मी हैं।

  दोष मानव का है या 

सृष्टि कर्ता का है,

पता नहीं,  सृजनहार की सूक्ष्मता  सुनामी, रेल की दुर्घटना,

 आँधी, तूफान, बाढ़, भूकंप

ईश्वर के क्रोध की घंटी।

 जान समझ कर्म करना ।

 लोग,बुढ़ापा, मृत्यु

  शाश्वत दंड ईश्वर का।

 नहीं कर सकते पुनरावेदन।।


स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

Saturday, June 3, 2023

हिंदी


मेरा जन्म आजाद  भारत में हुआ।

स्वतंत्रता संग्राम  के प्रबल दल कांग्रेस  का सत्ता आरंभ हुआ। तब के नेता अंग्रेजी को ही महत्व देते थे। सब के सब अंग्रेज़ी  भाषा के निपुण थे।

 उन सबका विचार  था कि 

भारतीय भाषाओं  में  वैज्ञानिक  बातें नहीं है।

 विचित्र बात थी कि भारत के उच्च वर्ग   के लोग भी अंग्रेज़ी सीखकर अपने को महान मानने लगे।  भारतीय  भाषाएँ  जो बोलते हैं,उनको बुद्धिहीन मानने लगे।  खेद की बात है कि प्रतिभाशाली  उच्च वर्ग के  संस्कृत  विद्वान  भी संस्कृत  को छोडकर अंग्रेजों  के गुमाश्ते बन गये । और भी विचित्र बात है कि कुछ अंधविश्वासी  ज्योतिषों ने कहा विदेशी शासन ईश्वरीय  देन है।

 संस्कृत  के ज्ञाता भी गायत्री मंत्र , संध्यावंदन तजकर अपना संस्कार 

में भूल करने लगे। परिणाम   उनका ईश्वरीय  महत्व  में कमी हुई।

आज तो तमिलनाडु  में  ब्राह्मणों की बस्ती  खाली। संतान न होने पर सर्प दोष कहते हैं पर गर्भच्छेद का बडा पाप। इसका मुगल और ईसाई लाभ उठा रहे हैं। उन मजहबों में अबार्शन तो पाप है। पर हिंदुओं के लिए सर्प दोष पाप है।  अबार्शन पाप नहीं।

 भारतीय  भाषाएँ  नालायक।

सत्तर साल के बाद भी बगैर  अंग्रेज़ी   के उच्च शिक्षा  असंभव ।

तमिलनाडु  में तीन हजार तमिल माध्यम   स्कूल बंद। जहाँ एक स्कूल बंद,वहाँ पाँच अंग्रेज़ी  माध्यम निजी स्कूल। वहाँ तीन साल के बच्चे के लिए 

किताबें आठ हजार। दान एक लाख।

 तमिल बोलने पर अपराध का जुर्माना  अलग।। 

 जय भारत।