Sunday, June 18, 2023

पुरनानूरु -गीत-१९२.

 पुरनानूरु -गीत-१९२.

कवि--कणियन पूंकुन्रनार.
सर्वत्र हमारे गाँव हैं ।
अच्छाई या बुराई ,
दूसरों के कारण नहीं आतीं।
दुख  और दुख दूर होना ,
हमारे कर्मानुसार ही ।
मरना तो जन्म के दिन में ही पक्का निर्णय है ।
जिंदगी में आनंद और दुख स्थाई नहीं है ।
आकाश गर्मी भी देगा और वर्षा भी ।
जिंदगी भी वैसा ही दुख भी देगी,सुख भी ।
बडी नदी में चट्टानों से टकराकर,
डाँवाडोल नाव-सम,
विधि की विडंबना के अनुसार 
मानव जीवन चलेगा ।
बडों को देखकर भौंचक्का होना,
छोटों को देखकर अपमानित करना ,
दोनों ही सही नहीं है ।
 यह गेय गीत की रचना दो हजार साल के पहले हुई हैं ।
अनुवादक--एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै.

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