Thursday, August 31, 2023

भारत

 नमस्ते वणक्कम।

 मैं इतिहास का छात्र हूँ।

हिंदी साहित्य का छात्र हूँ।

 एक सुमंत्री का कर्तव्य है,

देश के सर्वांगीण विकास के लिए

 राजा को प्रोत्साहन करना।

पर वीरगाथाकाल में सुंदर 

 राजकुमारी के अंग देखने हजारों 

सिपाहियों को प्राण देने पड़े।

 सिपाहियों ने की पत्नियां विधवाएँ बन गईं। बच्चे हो गये अनाथ।

 निर्दयता की चरम सीमा जवहरव्रत।जिंदा जलती आग में कूद पड़ना। यह त्याग पतिव्रता की रक्षा के लिए।

यह देश भक्ति नहीं,

इसकी प्रशंसा कवियों ने खूब की हैं। कवि की स्वार्थता जिसका खाना उसका खाना।

 बड़े बड़े राजमहल,

अंतःपुर की सुंदरियाँ

बस,राजा कामान्धकारी।

परिणाम देश में मुगलों ने का शासन।

उनका लूटना, मंदिर तोड़ना,

 सब के साथ थे सद्यःफल भोगनेवाले देश वंचक देश द्रोही।।

हत्याएँ, अत्याचार ख़त्म। 

 भक्ति काल में आश्रयदाता 

 राजा नहीं,राजा को दर-दर भटकना पड़ा। कविगणों को 

खाने पीने ठहरने कोई सुविधा नहीं। अतः उनका ध्यान भक्ति यह की ओर गया।

त्याग मय जीवन बिताने लगे।

भगवान के दर्शन के लिए

 दो मार्ग ,दो मार्ग से

दो -दो उप-शाखाएंँ, परिणाम

मानव मानव में भेद।

 अपने अपने मार्ग पर 

दृढ़ता।  मानव की एकता 

भक्ति द्वारा भी नहीं हुई।

जैसा भी हो भक्ति मार्ग ने सिखा ही द गई दिया। जगत मिथ्या, ब्रह्म सत्यं। संसार में मानव ही नहीं 80हजार योनियों की सृष्टियाँ

शाश्वत नहीं। मृत्यु या नाश निश्चित है।

भक्ति काल की शांति भी अस्थाई रही। सुखी जीवन में भगवान का प्रेम भोग प्रेम में बदल गया। राधा कृष्ण का दिव्यवर्णन अश्लीलता में बदल गया। ऐश आराम,जुआ,नशा , भोग-विलास में बदल गया।  अंग्रेज़ी मेहमान बनकर आये। सत्ताधारी बन गये।

 भारतीय शिक्षा, भारतीय भाषाओं की शिक्षा अंग्रेज़ी भाषा माध्यम में बदल गया। परिणाम यह हुआ कि गुमाश्ता, वकील, डाक्टर बनने  बुद्धि जीवी अंग्रेज़ी के पारंगत बन गये। भारतीय भाषा बोलना गँवार मानने लगे।

भारतीय जनता भी अंग्रेज़ी पढ़े लिखे आदमी को ही ज्ञानी मानने लगे। 

आज़ादी ज्ञके 76वर्ष में देश भर में चालीस हजार CBSE पाठशालाएँ खुल गई। हर साल संख्या बढ़ती जा रही है।

 शासकों की सौपत्तियाँ बढ़ती रही।

 76साल में गरीबों की बस्ती ज्यों के त्यों हैं। फुटपाथ वासियों को गरीबी रेखाओं की सुविधाएं देकर 

चुनाव के समय वोट के लिए ज्यों का त्यों रखते हैं जिनके ओट से सांसद, विधायक बनकर अगले चुनाव को सौ करोड़ रुपये चुनाव के लिए खर्च करने तैयार हो जाते हैं।

शिक्षा न्याय पुलिस विभाग सत्ताधारी अमीरों की कठपुतलियांँ बन जाते हैं।यही आधुनिक चित्रपट के कथानक।

जय भारत। जय लोकतंत्र।

वंदेमातरम्।

Tuesday, August 29, 2023

बाल श्रमिकों को कहा से रोकना

 नाम- -एस. अनंतकृष्णन।

साहित्य बोध नई दिल्ली के संस्थापक संयोजक समन्वयक और सदस्यों को नमस्कार।

30-8-22023.

शीर्षक --बाल श्रम जागरुकता।

   आज का बालक कल का नागरिक है।वे देश को आगे बढ़ाने वाले हैं। वे देश के रक्षक है।वे देश के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले हैं।

होनहार बिरवान के होते चिकने पात।

पाँच साल की उम्र से उनको उचित शिक्षा देनी चाहिए।

मानव के तन,मन,धन  के बल ईश्वर की देन है।

मानव अपने प्रयासों से अपनी तरक्की कर सकता है।

 अच्छे विचार, संस्कार,शिक्षा आदि संगति का फल होता है।   सामूहिक विकास के लिए अभिभावक, समाज,नाते,रिश्ते, सरकारी प्रशासन सबके सम्मिलित शक्ति की आवश्यकता होती हैं।

 सब को समान। मौका देना चाहिए तो सबकी बुद्धि लब्धि, आर्थिक व्यवस्था , शारीरिक बल एक समान होना चाहिए।

 यह तो ईश्वरीय सृष्टि दोष है। चंद्रगुप्त को चाणक्य मिल गया।वे सम्राट बन गये। एक में बल दूसरे में बुद्धि बल।

शारीरिक बल और बुद्धि बल एक साथ मिलने पर भी आर्थिक बल ही प्रधानता है। कर्ण को दुर्योधन  साथ नहीं देता तो उसका शौर्य और दानवीरता प्रकट नहीं होती।

   आजकल सर्वशिक्षा अभियान है। सरकारी पाठशालाएँ हैं। सबको समान शिक्षा का अधिकार हैं। पाठशाला अनेक प्रकार के होते हैं। एक उच्चतम अमीरों के लिए,

  एक उच्च मध्यवर्गीय लोगों के लिए, मध्यवर्ग के लिए।

 इनमें बुद्धि लब्धि हो या न हो पढ़ने का अवसर सबको मिलता है। पढ़ें या न पढें अमीर मालिक बन जाता है।

 सांसद, मंत्री बन जाता है।

यह जन्म जात अमीरी ओर बुद्धि लब्धि के भेद भाव प्रकृति या ईश्वरीय देन को बदलना बुद्धिजीवियों के या सत्ताधारियों के वश में नहीं हैं।

  मानव मानव में समानता कानून रूप हो जाता है।

व्यवहार में यह संभव नहीं है।

 आज भी बच्चों को लेकर भीख माँगनेवाले हैं।

 बाल संन्यासी होते हैं। बाल कलाकार होते हैं।

 सरकार नियम के अनुसार बालक को चौदह साल तक ही

शिक्षा अनिवार्य है।  पंद्रह साल में वह मज़दूर बनने का अधिकार पाता है।

 हम तो बाल श्रमिकों के विरुद्ध ज़ोरदार भाषण दे सकते हैं। बड़े बड़े निबंध लिख सकते हैं। लालबहादुर शास्त्री तैरकर पाठशाला जाते थे। राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम अखबार वितरण का काम करते थे। आजके विश्वविख्यात प्रधानमंत्री क्षी नरेंद्र मोदी जी चाय की दूकान में।

 भूखा भजन न गोपाल।

 बाल श्रमिकों को दूर करना है तो जन्मजात बच्चों को लेकर भीख माँगने का दृश्य नजर न आना चाहिए।

 साहित्य समाज का दर्पण है।

आजकल अधिकांश चित्र पट का कथानक

ईमानदारी अधिकारियों को बदमाश सपरिवार हत्या कर देता है। उनके शिशु को दयावश पालकर सद्भाव बना देता है। वह बद्माश डाका डालता है।चोरी करता है। अंतराल के बाद वही बद्माश अधिकारियों को मारता है, कानून अपने हाथ में लेकर आम लोगों को बचाता है। 

 बाल श्रमिक कैसे बनते हैं पता नहीं।

 जेलर रजनीकांत का फिल्म की शिक्षा कानून के द्वारा बदमाश को समूल नष्ट करना असंभव है।

 बालश्रमिकों को रोकने सरकार को   सभी बच्चों की देखरेख ,लालन पालन को खुद अपनाना चाहिए।

अविवाहित पागल स्त्री भी गर्भवती बनती हैं।

अबार्शन को कानूनी मान्य है।

कर्मफल के अनुसार अमीर गरीबी, बुद्धिलब्धी , रोग असाध्य रोग जब तक दूर नहीं होगा,तब तक बालश्रमिकों को 100%दूर करना असंभव है।

 तन बल सब में नहीं। 

धन बल सब में नहीं।

मन बल सद्यःफल के लिए

झुक जाता है,

अपने आदर्श प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट देने पैसे लेनेवाले हैं। ३०%वोट नहीं देते ।वोट देने का कर्तव्य निभाने ३०% विमुख है। २०% स्वार्थी हैं।

 बाल श्रमिकों को रोकना है तो बाल भिखारी , भिखारी बनाने बच्चों की चोरी करनेवाले सबको कठोर दंड देना चाहिए।

 बालक को भीख न देना चाहिए।

 अध्यापक  मज़दूर नहीं,

त्याग मय जीवन बिताना चाहिए।

 प्रैवेट ट्यूशन को रोकना चाहिए।

नीट की चिंग सेंटर की लूट रोकना चाहिए।

 अभीर गरीब पाठशाला के भेद दूर करना चाहिए।

 वर्दी  एक समान पहनने से समान भाव नहीं है।

 वर्दी के कपड़ों के भेद दूर करना चाहिए।

 पाठशाला इमारतों की तुलना कीजिए।

पेय जल नहीं,पट्टी नहीं, प्रयोगशाला नहीं,श्यापट नहीं,खड़िया नहीं ।

 बालश्रमिकों को दूर करने यहाँ से श्री गणेश करना चाहिए।

एस.अनंतकृष्णन द्वारा 

स्वरचित लेख।














Monday, August 28, 2023

मधुर शब्द है औषधि

 

 एस.अनंतकृष्णन, 

चेन्नई का नमस्कार।

शीर्षक -- हम बिक जाते हैं,

             चंद मीठे लफ़्ज़ों  में।।

विधा --- सरस्वती की देन।

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मानव ही नहीं,

दानव ही नहीं,

 पशु-पक्षी भी  नहीं,

 सर्वेश्वर भी  मधुर श्ब्दों  में

 अपने को भूल 

 बिक जाते हैं।

घोर तपस्या वीणावादन

रावण को शक्ति मिली।

हिरण्यकश्यप को  

अनंत शक्ति मिली।

ईश्वर को भूल,

उसी का नाम लेते रहे।

 नानक के सदुपदेशों से

 मानव में मानवता आयी।।

डाकू ने कहा,

 डाका भी डालता  रहूँ।

आत्मा को भी शांति मिलें।

गुरुनानक ने कहा,

सबेरे से शाम तक,

जो निर्दयता पूर्ण 

 काम करते हो,

 उसे लिखते रहना।

शामको मेरे प्रवचन की भरी सभा में पढ़ना।

डाकू सुधर गया।

 अंगुलिमाल निर्दयी लूटता,

लूटने के बाद  उंगलियों की माला पहनता।

 बुद्ध के सामने खड़ा रहा निर्दयी 

बुद्ध  की मधुर वाणी ने

 अंगुलिमाल को  बुद्ध भिक्षु बनाया।

क्रोधी परशुराम को राम की मधुर वाणी ने 

शांत कर दिया।

महाविष्णु को भृगु मुनि ने लात मारा।

 विष्णु की मुस्कुराहट ने 

मुनि को लज्जित किया।

मध्य वचन है औषधि,

खटीक वचन है तीर।

 सोचो, विचारों, जानो, समझो,

 संपेरे के बजाने से साँप भी वश हो जाता।

 मधुर संगीत नाच ने  बड़े बडेतपस्वियों को

 भी हिला दिया है।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

स्वचिंतक स्वरचनाकार अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Saturday, August 26, 2023

साहित्यकार को समझो जानो।

 




नमस्ते। वणक्कम।

  विचारों की अभिव्यक्ति में स्वतंत्रता चाहिए। समाज कल्याण के साहित्यकार धन के लिए नहीं लिखते।

जैसे समाचार पत्र नग्न चित्र अश्लीलता राजनीति अपनाकर धन अर्थ कमाकर अर्थ हीन जीवन बिताते हैं।

 सार्थक जीवन अर्थ प्रधान नहीं, अतः

साहित्यकार अमर बनते हैं। साहित्यकार की जीवनी में भूखे प्यासे  दरिद्र जिंदगी बीतनवाले ही अमर है।

 भक्त त्यागराज कबीर  प्रेमचंद  दरिद्र देते। उनकी ज्ञान धारा में डुबकी लगाकर मोती की सुंदर माला बनाकर बाजार चलानेवाले  डाक्टरेट की उपाधि पाकर प्राध्यापक बनकर रईस जीवन बिता रहे हैं।


समाज में सकारात्मक, नकारात्मक चिंतन की अभिव्यक्ति का अधिकार है।

 सब्रता से सोचना चाहिए कि

 लिखने का केंद्रीय भाव क्या है?

 आसाराम जैसे नकली त्रेता युग में द्वापर युग में कलियुग में तीनों युगों में ढोंगी संन्यासी थे, है, होंगे ही।  जग में ईश्वर ने गुलाब की सृष्टि की हैं। गुलाब के गुण की ही प्रशंसा करना है तो चुभने वाले कांटों की चिंता प्रकट करना गलत माननेवाले  समाज के पढ़े लिखे लोग हैं। गलत हिसाब किताब लिखनेवाले बुद्धि जीवी चार्टर्ड एकाउंटेंट।

अपराधी को बचानेवाले अर्थलोभी मेधावी वकील सोचने के लिए लिखनेवाला भूख से तड़पनेवाला 

साहित्यकार। पदोन्नति केलिए नेता के पैर चाटनेवाले चाटुकार हैं।

 


  अपने नेता के गुण की ही प्रशंसा चाहनेवाले 

उनके दोषों पर भी 

ध्यान देना चाहिए।

 तमिल में नक्कीरन नामक कवि थे। उन्होंने शिव भगवान के गलत विचार का विरोध किया।

 स्त्रियों के बाल में सहज सुगंध है

 ऐसा शिव ने कविता लिखी। 

कवि नक्कीरन ने शिव से कहा

  इसमें अर्थदोष है।

ऐसी वीरता से अपने नेता के गुण दोषों की प्रशंसा और निंदा आवश्यक है।

   हम तमिल नाडु के लोग कलक्टर का प्रयोग नहीं करते।

मावट्ट आट्चियर शब्द का प्रयोग करते हैं।  

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नमस्ते वणक्कम अनंतकृष्णन का!


मानव मन में सकारात्मक और नकारात्मक विचार उठते हैं।

 समाज कल्याण के साहित्यकार सकारात्मक और नकारात्मक   विचार प्रकट करते हैं तो सोचना चाहिए कि ईश्वर के सृजन में 

गुण भी हैं और दोष भी है।। 

ईश्वर की सृष्टि में केवल गुलाब का ही प्रशंसा करना है तो काँटों का वर्णन करनेवाले दोषी कैसे?अपने बच्चों के गुणों के लिए पुरस्कार के साथ अवगुणों का दंड देना चाहिए। 

 तभी वह आदर्श बनेगा।

अपने नेता के गुणों की प्रशंसा और भ्रष्टाचार की निंदा ही

 सार्वजनिक कल्याण करेगा।

 अपने नेता का अंधानुकरण सही    नहीं हैं। भारत में अंधानुकरण नहीं करते। अतः सनातन धर्म में ढोंगियों के द्वारा अनाचार बढ़ा तो

बौद्ध,जैन धर्म का उदय हुआ।

 यहाँ के ज्ञानी  दिगंबर को श्वेतांबर बनाया। दोनों  को माननेवाले हैं।

हीनयान,महायान बनाया।

हिंदू सनातन धर्म है।

 अगजग का धर्म है।

 सर्व जगत के जयजयकार करनेवाला है। वसुधैव कुटुंबकम् ,

सर्वेजनार्नः सुखिनो भवन्तु की विचारधारा बहती है।

 आजकल  राजनैतिक दलों में

 पद नहीं मिलें तो

 अलग-अलग दलों का आरंभ करते हैं।

पुराना कांग्रेस, इंदिरा कांग्रेस।

 जनता दल, जनसंघ, भारतीय जनता।

 द्राविड़ कऴकम्, द्राविड़ मुन्नेट्र कऴकम् ,अण्णा द्राविड़ मुन्नेट्र कऴकम् ‌ दल एक  नेता एक  सिद्धांत वही।

 अनुयायी अलग अलग । 

तब देश की चिंता नहीं।

 अपने अपने दलों की चिंता।

 अपने अपने दलों की 

सत्ता की चिंता।

 चुनाव के लिए पैसे जोड़ने की चिंता।

 भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की चिंता।

 परिणाम सब दलों में भ्रष्टाचार।

 एक दूसरे पर कीचड उछालना।

 निंदा करना।

 हास्य की बात हैं कि सुबह जो दल भ्रष्टाचार की निंदा का पात्र रहा, 

शाम को प्रशंसा का पात्र।

 पैसे, स्वार्थता की चरम सीमा।

 गिरगिट से तेज़ रंग बदलनेवाले।

   अजीबोगरीब स्थिति है कि विश्वपटल पर भारत की प्रगति

प्रशंसनीय है।

 भिन्न भिन्न भगवान, भिन्न-भिन्न जलवयु, भिन्न-भिन्न मजहब, भिन्न-भिन्न पोशाक,भोजन पर

 आध्यात्मिक एकता 

आ सेतु हिमाचल तक 

एक ही है।

 भक्ति द्राविड़ उपजी।

 पर भक्ति के भगवान गणेश, कार्तिकेय,शिव,विष्णु उत्तर के।

 कार्तिकेय जिसको तमिल में मुरुगा कहते हैं, जिनका झंडा मुर्गा है,

उसे तमिऴ भगवान कहते हैं, पर नाम है दंडपाणी। कौपीन धारी।

 कोदंड पानी राम है।

 आ सेतु हिमाचल में ‌शिव, विष्णु, ब्रह्मा  पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती की आराधना है।

 यह आध्यात्मिक शक्ति ऐसी है जहाँ कबीर का दोहा चिरस्मरणीय है

 भगवान जिसको चाहता है, जिसकी रक्षा करने सन्नद्ध हैं,

वह अकेला होने पर भी ,सारे विश्व के  शत्रु होने पर भी, उसके बाल तक बिगाड़ नहीं सकता।

"जाको राखे साइयां ,मारी न सके कोय ! 

बाल न बांका करि सके , जो जग वैरी होय।।"

 भारत एक आध्यात्मिक भूमि है।

अतिथि देवो भव मानता है।

 विदेशी लुटेरों को लूटने देता है।

 जब अत्याचार चर्म सीमा पार करता है,तब एक दिव्य शक्ति का अवतार होता हैं, तभी हम देश की एकता दिखाते हैं तो विश्व के अन्य देश नत्मस्तक हो जाते हैं।

अहिंसा,सत्य, त्याग, दान,धर्म, परोपकार, जगत मिथ्या, सहनशीलता ,मानवता आदि शाश्वत सिद्धांत भारत को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचा रहे हैं।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

Friday, August 25, 2023

पूर्वजों का कर्म

कर्म फल  हास्य  

जब शादी हो गई,

तब मृदंग बन गया।

 एक ओर ससुरालवाले

 दूसरी ओर माँ

 ढोल पीटने लगे।

 बेचारी बीवी को 

दिलासा देने तैयार।

 समर्थन के लिए  एक दल।

 मैं ही मृदंग  बन।

 ढोल दोनों तरफ पीटने लगे।।

मैं पुरुष हूँ ,

सहना ही धर्म।

 अर्धांगिनी दुविधा में।।

 मैं?

 ज़माना गुजर गया।

अब बेटा विदेश में,

 बहू विदेश में।

आजद प्रेम पक्षी की तरह।।

 पोता फोन में बोलता है,

 मैं माता पिता यही मेरा परिवार।

 पुर्खों का पाप, सांस सुसुर 

 माँ बाप वृद्धाश्रम में,

 कलियुग में दंड तत्काल।

मैं भी छे महीने विलायत में।

 जानो समझो वृद्धाश्रम  का रहस्य।

 कर्म फल निश्चित।

 कलियुग धर्म से भरा।।

तत्काल स्वर्ग नरक भूलोक में।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नै।

 स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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सोचो समझो जानो पहचानो।

 

धर्म और मजहब।


मानव को ठगना आसान।

 ऐसे हैं अंध भक्त।

 गेरुआ कपड़ा पहनो,

 संन्यासी के छद्मवेश धारण करो।

 श्रीराम जयराम की पत्नी भी

 रेखा पार कर चलती,

रावण उठाकर ले सकता,

वह भी शिव का अनन्य भक्त।।

देवों का राजा इंद्र अहिल्या से

 कर सकता है बलात्कार,

 फिर भी वह देवेंद्र।

 कलियुग में आसान

 आसानी से स्त्रियों,

 आसाम राम की साथ दे सकती।

 नकली पाखंडी त्रेता युग में भी।

 भले ही कुरु क्षेत्र धर्म क्षेत्र।

 पर कुंती का कर्ण तजना,

 कृष्ण का जल,

एकलव्य का गुरु दक्षिणा,पर

ग्रंथ धर्म ग्रंथ।

 गुहन,शबरी की मित्रता

 अछूत छूत भेद मिटाना।

 त्रेता युग, द्वापर युग में कलियुग

 तीनों युगों में बलात्कार।

 जनसंख्या के अनुसार 

अपराधी अधिक।

 कलियुग में चित्रपट, मोबाइल,

 फ़ेसबुक यूट्यूब सब में

 शैतानियत अधिक।

 देवत्व कम।

वैज्ञानिक देन अभिशाप भी वरदान भी।

 शैक्षणिक पाठ्यक्रम 

धन कमाने की ओर। 

न धर्म करने की ओर।

सोचो समझो जानो पहचानो।

 अधर्म कर्म से अशांति,बेचैनी।

 धर्म कर्म में शांति चैन संतोष।

 अच्छाई अपनाओ,

बुराई तजो।

 दानवता छोड़ ,

मानवता अपनाओ।

 भगवान के नाम पर

 धोखा ही ज्यादा।

ढोंगियों अधिक।

 संतान भाग्य का अभाव,

 सर्प दोष नहीं,

गर्भपात दोष।।

 जितना गर्भछेद करोगे,

उतना फे्र्टिलिटि केंद्र।

 पुत्र शाप दशरथ को भी था तो

  एक हजार में गर्भविच्छेद 

डाक्टर की गति क्या होगी।।

सोचो समझो जानो

 मजहबी मत मतांतर संप्रदाय धोखा।

 धर्म पथ अगजग  की आम नीति।

मजहबी मंदिर पर मानव का बँटवारा,

अतः हरिवंश को लिखना पड़ा

 मदिरालय में एकता,

 मंदिरों में भेद अनेकता।

 दस रुपये में,होम यज्ञ में

पुण्य मिलता तो 

चक्रवर्ती दशरथ रोते रोते

 पुत्र शोक में न मरते।

 राम कनक  जानकी रख

 अश्वमेध यज्ञ न करते।।

महाभारत में कृष्ण अधर्म वध न करते।

भारत पुण्य भूमि ही सही,

 पापों के बढ़ते बढ़ते

 जैन,बौद्ध,सिक्ख न होते।

 पाप बढ़ेगा तो पुण्य पुरुषोत्तमों का जन्म।

 भारत में बार बार पुण्य पुरुष।

अद्वैत्व एक दल।

 द्वैतवन एकदल।

विशिष्टात्वैत्व एक दल।

शिव संप्रदाय एक दल,

वैष्णव संप्रदाय एक दल।

 तिलक लगाने में भेद।

 नाम जप में भेद।

 अभिवादन प्रणालियों में भेद।

 कर्पूर थाली दिखाने में 

विभिन्न नाच।।

 इनमें एकता कब होगी,

 अमानुष्य शक्ति भी नहीं जानती।

 इन भेदों के कारण एक गली में

 चार जातीय मंदिर।

 धन वसूलने का भक्ति मार्ग।

 तुलसीदास, रैदास, सूरदास

 भक्त राम दास के दास बने ईश्वर।

 हीरे का मुकुट, स्वर्ण सिंहासन

 गुरु दीक्षा पाने एक लाख।

   पाखंडी लालची आश्रम 

 वहाँ धन न तो प्रवेश निषेध।

 धनियों के लिए भगवान।

भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरी

 हीरे-जवाहरात चढ़ाते,

उनको प्रथम  दर्शन।

   सच्चे आराधक कौन?

 मन चंगा तो कठौती में गंगा।

 सच्चे ईश्वर भक्त न आडंबर आश्रमों में।

 तमाशा देखिए

 तमिलनाडु के नित्यानंद का पता नहीं।

  कर्नाटक, तमिलनाडु सब के 

 पुलिस अधिकारी, जासूसी,

 सब असमर्थ।।

 जयललिता का  फैंसला स्थगित

 धन अधिकार स्वार्थ  राजनीति की चरम सीमा।।

 आज भी श्रीलंका के प्रभाकर का जय घोष।

 कांग्रेस  द्रमुक दल में एकता।

 सोचो समझो जानो पहचानो।

स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

एस. अनंत कृष्णन।

 

 






 






Wednesday, August 23, 2023

हास्य

 हास्य  

जब शादी हो गई,

तब मृदंग बन गया।

 एक ओर ससुरालवाले

 दूसरी ओर माँ

 ढोल पीटने लगे।

 बेचारी बीवी को 

दिलासा देने तैयार।

 समर्थन के लिए  एक दल।

 मैं ही मृदंग  बन।

 ढोल दोनों तरफ पीटने लगे।।

मैं पुरुष हूँ ,

सहना ही धर्म।

 अर्धांगिनी दुविधा में।।

 मैं?

 ज़माना गुजर गया।

अब बेटा विदेश में,

 बहू विदेश में।

आजद प्रेम पक्षी की तरह।।

 पोता फोन में बोलता है,

 मैं माता पिता यही मेरा परिवार।

 पुर्खों का पाप, सांस सुसुर 

 माँ बाप वृद्धाश्रम में,

 कलियुग में दंड तत्काल।

मैं भी छे महीने विलायत में।

 जानो समझो वृद्धाश्रम  का रहस्य।

 कर्म फल निश्चित।

 कलियुग धर्म से भरा।।

तत्काल स्वर्ग नरक भूलोक में।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नै।

 स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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Monday, August 21, 2023

जान समझ चल

 नमस्ते वणक्कम

 एस . अनंत कृष्णन का।


 शीर्षक ----जान समझ चल।



पढूँ,लिखूँ, सुनूँ,सुनाऊँ,

समझूँ,समझाऊँ

 एक ही बात।

 नश्वर दुनिया।

नश्वर शरीर।

 जगत मिथ्या।

 जन्म अमीर के यहाँ,

 जन्म गरीब के यहाँ,

भिखारी के यहाँ,

 राजमहल में,

 रंक की झोंपड़ी में।

स्वस्थ काया,

 अस्वस्थ काया।

 लंबा शरीर,नाटा शरीर।

 मधुर स्वर, कर्ण कठोर स्वर।

बुद्धियुक्त,बुद्धि हीनता।।

 पहलवान शरीर,

दुर्बल शरीर।

दिव्य शक्ति,

आसुरी शक्ति।

सम्मानित जीवन

अपमानित जीवन।

 कदम कदम पर मर्यादा।

कदम कदम पर अवमर्यादा।।

खिला हुआ चेहरा,

कुम्हलाया चेहरा,

 आनंदमय जीवन,

संताप भरा जीवन,

 ईश्वरीय देन जान मान।।

अपराधी को राजपद।।

निरपराधी को फाँसी की सजा।

 ये सब अगजग में,

 अघों के कारण जान-मान।।

कर्मफल का परिमाण ।

 स्वर्ग नरक और कहीं नहीं,

 भूलोक ही जान!

 संतान हीन संताप।

 संतान से ही संताप।

 पालित पुत्र से सुख।

 स्व आनंद से सृष्टित

 संतान से असीम वेदनाएँ।

नौकरी मिली, पर वातावरण नरक तुल्य।।

नौकरी मिली, स्वर्ग सुख।

 वैवाहिक जीवन आनंद भरा

 वैवाहिक जीवन दुख भरा।।

  ये ही है ईश्वर सृष्टित  भूतल पर।

  अति सूक्ष्म शरीर धारण।

 अति सूक्ष्म लीला दाम।

दुनिया अजब बाजार है,

फूँक फूँककर कदम रखो।।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

 स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Friday, August 18, 2023

अमर शहीदों को प्रणाम

 अमर शहीदों को प्रणाम।

हमारा   आनंद ,

हमारा आतंकरहित जीवन

  हमारा  जीता जागता 

 प्रत्यक्ष देव।

देश के लिए अपने 

 प्राण न्योछावर कर

 शहीद हो गए ।।

 उन शहीदों  को
हम प्राण  दे नहीं सकते।

 प्रत्यक्ष देव भगवान का सृजन।

 देवेन मनुष्य रूपेण का 

  प्रत्यक्ष प्रमाण।

 हमारे सैनिक,

हमारे स्वतंत्रता संग्राम के शहीद।

 हमारे स्वतंत्र भारत की खुशियों की  पक्की आधार शिला नींव।

लाल बाल पाल,

 सुखदेव भगत सिंह खुद राम, नेताजी सुभाष,  

वीर पांडिय कट्टबोम्मन।

वीर वांचिनाथ, तिरुप्पूर कुमरन।

कल्लूरी सीताराम राजू,

गांधीजी, नेहरू पटेल,

 नेता के नाम लेते हैं,

इन सबके इशारे पर

लाठी के मार सहे,

जेल की यातनाएँ सहे,

कोल्हू  बैल बन खींचे।

तन मन धन प्राण 

अपना सर्वस्व 

 भारत माता की हर कड़ी 

 जंजीर तोड़ने अर्पण किया।।

उन सभी  शहीदों को,

 आत्म बलिदानी त्यागियों को

कोटि कोटि प्रणाम।

जय भारत।

एस. अनंत कृष्णन,

चेन्नई 

 स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक 

तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Thursday, August 17, 2023

हमारा देश और प्रशासन।।

 एस. अनंत कृष्णन, तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक का

सादर प्रणाम।

 नमस्ते वणक्कम।

 हमारा देश और प्रशासन।।


     लोकतंत्रात्मक प्रशासन में 

     जनकल्याण  के खर्च,

    गरीबों के कल्याण के खर्च,

    गरीबों की शिक्षा का खर्च

    फुटपाथ वासियों के  मोरे नाले       के पास को साफ करना

  आदि पर ध्यान ही देते नहीं।

 कब्र समाधी बनाने के करोड़ों रुपये,

    सामान्य जनता की सेवा के लिए नहीं करते।

 राशन की दुूकानें  

10*10इंच की जगह पर ।

 गरीबों को धूप पर लंबे कतार।

 सरकारी स्कूलों में

 शौचालय नहीं,

 श्यापट नहीं, 

खड़िया नहीं,

 पेय जल  नहीं, 

 निजी स्कूलों में सब सुविधाएँ,

 अध्यापक बेगार।।

 वेतन कम एक सरकारी स्कूल अध्यापक का वेतन चार 

 अध्यापकों को।

 एल.के.जी.दान शुल्क 

पचास हजार से सात लाख तक।

एक छात्र का दान शुल्क 

 एक अध्यापिका का वार्षिक वेतन।

 सरकारी अध्यापक प्रशिक्षित,

 पर उनको छुट्टियाँ लेने की

 मनमानी छूट।

 कुल वर्ष में काम के दिन

  200 . 165 दिन छुट्टी।

 काम के दिनों में

  पढ़ाई के सिवा अन्यान्य कार्यों में लगना।

 अंग्रेज़ी माध्यम के निजी 

 स्कूलों में  नौवीं फेल  या पास टी .सी।

 शिक्षा अधिकारी निजी स्कूलों की करते प्रशंसा।।

  सरकारी स्कूलों में नौवीं तक पास अंक 20या 25.

दसवीं सरकारी आम परीक्षा

लेने हैं 35%

 केंद्र सरकार के स्कूलों में

 भारतीय भाषाओं में 30% काफी।

 अंग्रेज़ी माध्यम का ही सम्मान।

  नवोदय विद्यालय तमिलनाडु में विरोध।

 केंद्रीय सी बी एस सी स्कूल खोलने की अनुमति।

 शिक्षा का व्यापार खूब।

 आज नहीं आदी काल  में

जातीय शिक्षा, आधुनिक काल में धनीय शिक्षा।

 जय हो भारतीय शिक्षा नीति।।

सोचना है, विचार करना है,

  राष्ट्रीय शिक्षा को अनिवार्य बनाना है।

जननी जन्म भूमि

 तीन रंगों का झंडा,

हमें हैं जान से प्यारा।

 जननी जन्मभूमि का

 विकास करना,

‌हमारा कर्तव्य प्यारा।।

आ सेतु हिमाचल की सुरक्षा

 स्थल, वायु,जल सेना को

 हार्दिक प्रणाम।

 आसानी से नहीं मिली आज़ादी।

 आ सेतु हिमाचल के नागरिक

 धर्म अर्थ काम मोक्ष का धाम।

आध्यात्मिक भूमि,आराध्य भूमि।

 स्वर्ग से श्रेष्ठ भारत।।

 संत ऋषियों-मुनियों की भूमि,

  जीव नदियों की हरियाली,

   शिव, विष्णु की अवतार भूमि।

 माँ भारती को चरण स्पर्श वंदन।


एस.अनंतकृष्णन,

 स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

खुद को पहचानो

 खुदा की अधोगती देखो

खुद को पहचानो।

 नबी को पत्थरों से मारा।

ईसा को  शूली पर चढ़ाया।

 सभी देवों को कारवास में डाला।

 आजके स्नातकोत्तर जमाने में

 युवक कहता है,

कंस ने बहन और बहनोई के  

शारीरिक सुख को प्रधानता दी।

अलग अलग रखता तो 

आठवें पुत्र जन्म नहीं होता।

 महाभारत नहीं कथा।

 कलियुग में दुराचार,

 वहीं बलात्कार त्रेता युग

 द्वापर युग की कथाओं में है 

साहित्य समाज का दर्पण है तो

जानो, समझो, सावधान रहो।।


स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन।

चेन्नै। तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

स्वरचनाकार ।

अपना अपना  नसीब। 

नसीब के मुताबिक नुकसान फायदा।

 क्रिकेट जुआ, वहाँ भीड़।।

भ्रष्टाचार दल उनकी कामयाबी।।

अंक देनेवाले उस्ताद गुरु

 अंग देनेवाली रंडिया

 इनके साथ  ही पद, अधिकार,धन लक्ष्मी।।

  दुनिया अजीबोगरीब।

 जानो समझो मन को अटल रखो।

 पूर्व चतुर होशियारों ने बताया है,

दुनिया अजब बाजार है,

फूँक -फूँककर कदम रखो।

एस. अनंत कृष्णन।

रचना ईश्वरीय देन का रचनाकार।

Monday, August 14, 2023

संकलप कर लो

 स्वतंत्रता स्वतः नहीं मिली।

सुप्त जनता को जगाया

 स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार नारा।

 विदेश कपड़ों का बहिष्कार।

 वंदेमातरम्।

जय हिन्द।।

  युवकों हमेशा उन प्रेरणादायक

 नेताओं को स्मरण रखो,

 उन कवियों को याद रखो

 उन करोड़ों त्यागियों की याद रखो।

 उन के प्रति हमारी श्रद्धांजलि

 भारतीय बनना।

 भारतीय भाषाओं को महत्व देना।

 नागरी लिपि द्वारा भारतीय भाषाओं को सिखाना।

 सर्वोदय मार्ग को अपनाना ‌।।

सर्वहित का काम करना।

 स्वदेशी वस्तुओं को ही अपनाना।

 भारतीय एकता कायम रखना।

 जय भारत!जय हिन्दी। जय नागरी लिपि।

 देश हमारा, कच्चा माल हमारे।

 तैयारी माल हमारे।

 विदेशी भाषा हमारी नहीं,

 ७६वाँ स्वतंत्रता दिवस में

 संकल्प कर लो

 भारतीय भाषाओं को उत्थान की ओर ले चलेंगे।।

जय भारत।

Saturday, August 12, 2023

धर्म कर्म

 धर्म-कर्म को जान लो,

 वह मत मतांतर संप्रदाय/मजहब-सा

  संकीर्ण मार्ग नहीं जान, मान।

  सब की भलाई, 

  भेद रहित,

  वही धर्म कर्म।

  सूर्य की ,चंद्र की रोशनी समान।

  शीतल हवा समान, 

 पेय जल समान

 पशु, पक्षी, वनस्पति जगत, मानव

सब को भेद-भाव रहित ।

यही धर्म-कर्म।

शिशु का धर्म,रोना,पीना, सोना।

छात्र जीवन में विद्यार्जन,

 अनुशासन पालन, अच्छी चालचलन सीखना।

 मानव पशु से मानवता सीख 

मनीषी बनना।

गृहस्थ धर्म का पालन।

अमानुष्य का पहचान।।

सत्य का पालन, परोपकार,

दान -धर्म, निस्वार्थ जीवन,तटस्थता।

यही धर्म-कर्म जान।।

स्वरचित एस.अनंतकृष्णन।

तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।



आज़ादी

 आज़ादी आसानी से नहीं मिली।

हम स्वतंत्रता हवा की साँस लेते हैं।1947-2023.

मातृभाषाओं का विकास आज़ादी के पहले अधिक था। आज़ादी के बाद अंग्रेज़ी का ही महत्व है।

मैकाले की योजना सफल।

आज़ादी के बाद मेट्रिक सीबीएससी, ऐसी-ऐसी स्कूल ही गाँवों तक। तमिल माध्यम स्कूल बंद।गरीबी रेखा के नीचे तमिल माध्यम।

 स्वतंत्र भारत की प्रगति, इसमें कोई शक नहीं है।

लेकिन भारतीय भाषाओं में 

नौकरी नहीं मिलना ,

भारतीय भाषाओं की महत्व हीनता,वेदना देने के ही बात है।

स्वतंत्रता दिवस

 नमस्ते वणक्कम।

स्वतंत्रता दिवस।

टुकड़े टुकड़े देश।

अलग अलग है वंशज।

आपसी लड़ाई।

एक राजकुमारी अपनाने 

 हजारों वीरों की पत्नियाँ

 विधवाएँ  , बच्चे अनाथ।।

 अंतःपुर में रानियों की संख्या।

  न सबको मंदिर दर्शन,

 न सर्वशिक्षा अभियान।।

 पर देश  की अद्भुत उन्नति।।

 साहित्य ,कला, ज्योतिष शास्त्र,

 वास्तुकला,चित्रकला, संगीत कला

 सब अदाओं में पारंगत भारत।।

 आ सेतु हिमाचल की आध्यात्मिक एकता।

 समृद्धिशाली देश।

 रसोई विज्ञान में ही स्वास्थ्य प्रधानता।।

 भारतीय भोगी नहीं त्यागी।।

 मंदिरों में भगवान की शक्ति।

 सोने चांदी हीरे-जवाहरात का खान।।

दक्षिण के चेर,चोऴ,पांडियन देश।।

 आपस में लगते मरते।

 पर तमिल भाषा के विकास करते।।

उत्तर की भाषाएँ, बोलियाँ असंख्य।।

 ऐसे सर्वसंपन्न देश पर

 विदेशी आक्रमणकारी की कुदृष्टि पड़ी।।

चढ़ाई करते,लूटते ,चले जाते।।

वीर राजाओं की वीरता के सामने टिक न सके।।

 आपसी ईर्ष्या में  विदेशियों के साथ देने लगे।

 परिणाम मुगलों का शासन।

राणा प्रताप सिंह, वीर शिवाजी

मुगलों  को चैन से रहने न दिया।

मुगलों का पतन, अंग्रेज़ों का आगमन।

उनकी चालाकी, षड्यंत्र,प्यार भरा धोखा।

बुद्धि जीवी संस्कृत वेद मंत्र सब तज,

 अंग्रेज़ी सीख, वकील, गुमाश्ता बने।।

अंग्रेज़ी शासन की प्रशंसक आज भी विद्यमान।।

 स्वतंत्रता लड़ाई में जितने नेता थे,

सब के सब अंग्रेज़ी भाषा में पारंगत।।

 आज़ादी  के  बाद की बड़ी भूल,

 राष्ट्रीय शिक्षा न होकर प्रांतीय शिक्षा।

 भारतीय भाषाओं से अंग्रेज़ी की प्रधानता।।

 उच्च शिक्षा केवल अंग्रेज़ी में।

अमीरों का अंग्रेजी पाठशाला,

 गरीबों तक बढ़ी।।

अब अभिभावक अंग्रेज़ी माध्यम के चाहक।।

अंग्रेज़ी जीविकोपार्जन का साधन।।

 तन पालने धन की प्रधानता।

 तब  आज सर्वत्र अंग्रेज़ी ही अंग्रेज़ी।।

ऐ टी क्षेत्र की नौकरी,

बस, अंग्रेज़ी । हिंदी के सरकारी खर्च बेकार ही।।

 अनूदित किताबें गोदामों में।।

  जय भारत। अंग्रेज़ी माध्यम की सरकारी अनुमति क्यों?

 एस.अनंतकृष्णन।

प्रकृति

 प्रकृति और हम शीर्षक पर

एस.अनंत कृष्णन, 

चेन्नई की रचना।

++++++ 

प्रकृति प्यार करेंगी तो

 हमारा जीवन शांति पूर्ण।।

 प्रकृति कुपित है तो अशांति ।।

 कारण है हम मानव।।

नदियों में, झीलों में 

 मोरों का पानी।

  पहाड़ों पर  इमारतों की संख्या।

झीलों में मिट्टी भरकर   इमारतें।

  कारखानों  में धुएँ,

 वाहनों में धूएँ।

वायु प्रदूषण।

चित्र पट के संवाद,

मोबाइल में  अश्लील चित्र गीत।

प्रकृति का प्रदूषण ,

 विचारों का प्रदूषण।

परिणाम  स्वरूप

 प्रकृति कुपित

सुनामी,कैराना,भूकंप,

संक्रामक कीटाणुओं का आक्रमण।

गंगा जल पवित्र है,

पर किनारे पर मिनरल वाटर बोतल।

 हर वस्तु में मिलावट।

प्रकृति बनाती हमें।

 प्रकृति बिगाडती हमें।।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।


स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 





 

 






 तिरंगा झंडा भारत ही का।

दिल से प्यारा, जान से  प्यारा।।

त्याग है केसरिया,

 स्वतंत्रता संग्राम के शहीद स्मारक।

तन,मन,धन,प्राण अपना सर्वस्व 

 तजकर  शहीदों ने  आज़ादी दिलायी।।

 सफेद है शांति का , 

समझौता का

 संधि का चिन्ह।

 चक्र है प्रगति का ,

 आगे बढ़ने का,

 विस्तृत मार्ग चलने का।

हरियाली का,समृद्धि का।

 झंडा है हमारा तिरंगा,

जान से प्यारा।।

 एस.अनंतकृष्णन।

तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।।

Friday, August 11, 2023

प्रकृति और हम

 प्रकृति और हम शीर्षक पर

एस.अनंत कृष्णन, 

चेन्नई की रचना।

++++++ 

प्रकृति प्यार करेंगी तो

 हमारा जीवन शांति पूर्ण।।

 प्रकृति कुपित है तो अशांति ।।

 कारण है हम मानव।।

नदियों में, झीलों में 

 मोरों का पानी।

  पहाड़ों पर  इमारतों की संख्या।

झीलों में मिट्टी भरकर   इमारतें।

  कारखानों  में धुएँ,

 वाहनों में धूएँ।

वायु प्रदूषण।

चित्र पट के संवाद,

मोबाइल में  अश्लील चित्र गीत।

प्रकृति का प्रदूषण ,

 विचारों का प्रदूषण।

परिणाम  स्वरूप

 प्रकृति कुपित

सुनामी,कैराना,भूकंप,

संक्रामक कीटाणुओं का आक्रमण।

गंगा जल पवित्र है,

पर किनारे पर मिनरल वाटर बोतल।

 हर वस्तु में मिलावट।

प्रकृति बनाती हमें।

 प्रकृति बिगाडती हमें।।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।


स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 

कलम

 नमस्ते वणक्कम।

 विषय --कलम।


 विधा --अपने विचार, अपनी अभिव्यक्ति,अपनी शैली अपनी भाषा।

+++++++++++++++

 कलम,

 खबर लिखने,

 अपने विचारों को 

 स्थाई रूप देने,

अपनी सोच फ़ैलाने

 एक साधन कलम।।

कागज का पता लगा तो

 कलम का उपयोग अधिक।।

मोर पंख स्याही में छूकर लिखना।

कलम में स्याही भरकर लिखना।

 कलम में  पानी खींचकर लिखना।

कलम के विभिन्न रूप।।

 अब तो स्याही का उपयोग नहीं।

बाल प्रिंट पेना।

 हमारे काल में

अप्रैल पहली तारीख,

हम स्कूल को जाते

 गंदे कुर्ता पहनकर।

 एक दूसरे पर कलम से 

स्याही डालते।

 कलम विचार 

अभिव्यक्ति का साधन।

चित्र कला के साधन।।

कलम के सिपाही

 कलह पैदा कर सकते हैं।

 कलह शांत कर सकते हैं।।

क्रांति जगा सकते हैं।

  स्वतंत्रता संग्राम में 

कलम के सिपाही ने

 सुप्त जनता को जगाया।।

 अंग्रेज़ी थरथराने लगे।।

   देश भक्त कवियों को 

   जेल में डाला। 

 कलम की क्रांति का

 मूल्यांकन अधिक।

  स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

Thursday, August 10, 2023

भारतीय भाषा विचार धारा

 भारतीय भाषा विचारधारा।

नमस्ते ।वणक्कम्।
सोचो,समझो ,अपने को सुदृढ बनाओ ।
पहले हिंदुओं का बल केवल ईश्वरीय देन ,
भाग्य पर विश्वास ।
हिंदू भक्त त्यागी भोगी नहीं ।
नंगे भक्त,कौपीन धारी,अर्द्ध नग्न भक्त ।
अनासक्त,अलौकिक आध्यात्मिक विचार ।
राजपद तजकर तपमें लीन ।
अधिकार का कल्याण अस्थिर.
जगत्मिथ्या ब्रह्म सत्यम् ।
मृत्यु लोक जन्म अस्थाई जीवन मरण ।.
साधु संत ऋषि मुनि का जीवन
करतल भिक्षा करतल वासा ।
तरु तले तपस्या,लौकिक चाह रहित जीवन।
भारत तो भूलोक स्वर्ग।
जीव नदियाँ,झील,
हरियाली घाटियाँ.
एक बडी कमी,
आत्म निर्भरता कम्,
परावलंबि अधिक ।
तुलसीदास का कथन ---
आलसी ही देव देव पुकारा ।
कर्म मार्ग कर्तव्य मार्ग ।
मालिक बन जिम्मेदारियाँ उठाने से
नौकरी बन जीना अति पसंद।
अंग्रेजी आये प्रतिभा शाली पंडित
संस्कृत वेद मंत्र तज, संस्कृत छोड
सद्यः फल के लिए अपनी परंपागत
पोशाक,खान -पान छोड
वकील बन विलायत जाने लगे ।
खेद और अपमान की बात
भारतीय अंग्रेजों के सैनिक बन,
भारतीयों को ही मारने लगे।
साहित्य के वीरगाथा काल से
आज तक जिसका खाना,उसका गाना ।
नारायणय नमः तजकर, हिरण्याय नमः
केवल प्रह्लाद के सिवा बाकी डर रहे थे ।
आसुरी शक्ति बढी, देव काँप रहे थे ।
आज भी सांसद और विधान सभा में अपराधी अधिक ।
सौ करोड रुपये खर्च,
मतदता पाँच हजार रुपये लेते देते
भ्रष्टाचारी,रिश्त खोरी बन जाते सांसद विधायक ।
सरकारी अधिकारी बन जाते कठपुत्लियाँ ।
न सोचती जनता,
सब के सब ईश्वर की सूक्ष्म लीला ।
यों चलना सही नहीं,
चित्रपट गाना, जिसका अभिनेता युवकों के प्राण प्रिय नेता
पियक्कड बन गाता है,
शासक जो भी बने ,राम या रावण
मेरी कोई चिंता नहीं ।.
दूसरे कवि का गाना --
बच्चों को जन्म लेकर शादी करेंगे या साथ जीवन बगैर शादी के बिताएँगे.
अनुशासन भंग,संस्कार संस्कृति भंग ।
हिंदू ही परिवार नियोजन, हिंदू ही गर्भ विच्छेद.गर्भ पतन ।.
मुगल , ईसाई ग्रंथों में महा पाप।.
उनकी जन संख्या बढ रही है ।
उनकी क्रांति अपने मजहबी लोगों की संख्या बढाना ।
हमें जागना है, जगना है.जागृति आवश्यक है ।
साहित्याकारों को धन नहीं,
धनियों को साहित्यकारों के प्रोत्साह देने मन नहीं।
भारतीय भाषाओं के माध्यम नौकरी नहीं ।
बगैर भारतीय भाषा ज्ञान के जीना संभव.
बगैर अंग्रेजी के जीना असंभव।
एस. अनंतकृष्णन,
स्वचिंतक,स्वरचनाकार,अनुवादक,तमिलनडू का हिंदी प्रेमी प्रचारक ।

जीवन की यात्रा शब्दों में

 एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई का नमस्कार। वणक्कम।।


  जीवन की यात्रा  शब्दों में।

  शब्द  की उत्पत्ति 

कैसी हुई ?

 पता नहीं।

 दिव्योत्पत्तियों के 

चमत्कारों में 

भाषोत्पत्ति 

अति अद्भुत।।

 संकेत से 

 मनोभाव कैसे?

 संकेत से पानी माँगना,

 खाना माँगना, 

 हाथ जोड़कर 

नमस्कार,  

आँखों का इशारा 

प्यार का संकेत।

आसान।

 शब्द का तो अपना 

विशिष्ट महत्व है।

  मीठे शब्द ,कठोर शब्द।

 दोस्ती बनानेवाले शब्द।।

जन्म वैरी बनानेवाले शब्द।

 आशीषों के शब्द।

 प्रशंसा के शब्द 

निंदा के शब्द  ।

  घृणा प्रद शब्द।

  तिरुवल्लुवर तमिल के विश्वविख्यात कवि,

 उनके ग्रंथ तिरुक्कुरळ में

कहा है ---

आग की चोट जल्दी भरेगी।

 जीभ की चोट कभी न भरेगी।।

 रहीम ने कहा --   


रहिमन जिहा बावरी, 

कहि गइ सरग पताल।

आपु तो कहि भीतर रही,

 जूती खात  कपाल।।

 शब्दों में ही जीवन की यात्रा है।

पाप-पुण्य,स्वर्ग -नरक,

 जन्म -मरण, सुख-दुख,

सच- झूठ, नास्तिक -आस्तिक

 लौकिक --अलौकिक

 जीवन यात्रा शब्दों में।।

 स्वरचित भावाभिव्यक्ति।

एस.अनंतकृष्णन।

 स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Tuesday, August 8, 2023

विसर्जन यहां पाप।

 भक्ति माने धर्म काम! न फेंको ईश्वर की मूर्ति।।

 ईश्वर की मूर्ति विसर्जन में,

 करोड़ों रूपये व्यर्थ।।

  विसर्जन  विघ्नेश्वर  का  अपमान।

अपमानित  गणपति कुपित।

 जैसे मूर्ति बिखेरती,वैसे ही हिंदू बिखरेंगे।।

शाप का परिणाम एकता की कमी।

  ईश्वर वंदनीय है, विसर्जन निंदनीय जान।

 न करो ऐसा दुष्कर्म।।

 शास्त्रों में वेदों में

 दान धर्म का संदेश।।

 तीस हजार रूपयों की मूर्ति,

 लहरों के थप्पड़ से छिन्न-भिन्न।

 यह तो मूर्ख अंध भक्ति  समझना।।

करोड़ों के विसर्जन रूपये,

 गरीबों के देश के शिक्षा के 

 विकास में करना ही बुद्धिमानी।।

सोचो, समझो, जानो पहचानो

करो भक्ति का पैसों का सदुपयोग।।

  एस. अनंतकृष्णन,

स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Monday, August 7, 2023

भाषाएँ

 भाषाएँ

अंतर्राष्ट्रीय  उपलब्धियाँ

 अंग्रेज़ी या हिंदी नहीं,

 बुद्धि लब्धि फिर भी

कदम कदम पर चाहिए 

धन धन धन। 

धन न तो न सम्मान।

 पंजीकरण शुल्क,

 सहयोग राशि।

 हम लेखक घंटों बैठकर 

 सोच समझकर 

ईश्वरीय वरदान से 

लिखते हैं,

 योग्यता के आधार पर 

 प्रकाशक प्रकाशन करके

 लेखक को देंगे पैसे।

 पाठकों की संख्यानुसार।।

 अब लिखना भी है 

पैसा भी देना है

 फिर भी बगैर पैसे दिए

 मिले हैं सम्मान पत्र।

 उन महापुरूषों को

 दिल से प्रमाण।।

 भारतीय भाषाओं पर 

 धनियों का प्रेम चाहिए।

 शासकों का प्रोत्साहन चाहिए।

 भारतीय भाषाओं में 

जीविकोपार्जन की ऊर्जा चाहिए।

 केवल अनुवाद के लिए करोड़ों रुपए, 

 अनूदित किताबें गोदामों में,

 अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों की संख्या

 मातृभाषा माध्यम बंद।

 जनता वही चाहेंगी,

 जैसे प्रकाशन के लिए 

पंजीकरण शुल्क।

 शोध निबंध  लिखने  शुल्क।

 आमदनी का ही मार्ग नहीं,

 कदम रखने पैसे,

 पर जीविकोपार्जन असंभव।

750साल की आजादी 

आधुनिक समाज

 भात भूल गया,rice .

 समय भूल गया time.

चित्र भूल गया picture.

  भारतीय भाषाएँ धीरे धीरे ओझल।


एस. अनंत कृष्णन।

 स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

[08/08, 10:08 am] sanantha 50: भारतीय भाषाएँ हज़ारों नदारद।

 संस्कृत   जातीय नफ़रत।

 अंग्रेज़ी गुमाश्ते धन के लिए

 संस्कृत को पढ़ना लिखना भूल गये।

 सिखाना पाप समझा,

 अब 75साल आज़ादी के बाद

 विकास जारी।

 तमिलनाडु में नफ़रत फ़ैलाना जारी।

 जय अंग्रेज़ी, लक्ष्मी देवी।।

 लाखों करोड़ों की नौकरी। 

आज़ादी के 75साल ,

 हिंदी के विकास में कई लाख करोड़।।

 पर करोड़ों के नफ़रत का पात्र हिंदी।

 तमिलनाडु में अमूल्य प्राण त्यागने तैयार।।

 यह व्यर्थ का खर्च।

 हर साल सरकार अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल खोलने देती अनुमति।

 पता चला सरकारी स्कूल में 65हजार वेतन अध्यापक का।

 निजी स्कूलों में एक अध्यापक का वार्षिक वेतन तन 65हजार।

 अध्यापक बेगार।

 Increment नहीं, तब नौकरी से निकाल देते।

 अंग्रेज़ी स्कूल खोलने लाखों का रिश्वत।।

 अधिकारी मालामाल।

  एल.के.जी के लिए 50हजार से 7लाख तक दान।।

 सरकारी स्कूलों में  शौचालय नहीं।

देवालय हूंगी में मंत्री डालता लाखों रुपये।

 हीरे का मुकुट,सोने का कवच।

  जय भगवान।

Sunday, August 6, 2023

मानवता

 


नमस्ते वणक्कम 

एस.अनंतकृष्णन का।

मैं तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी

 प्रचारक और लेखक अनुवादक।

अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक, स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक,  उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान,लखनू द्वारा

सौहार्द सम्मान प्राप्त हिंदी सेवक

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मानवता न तो मानव पशु समान।

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मन है तो मान है मान।

मान -सम्मान चाहिए तो

मानव को चाहिए मानवता।।

मानवता या इन्सानियत

 मानव को सम्मान ही नहीं

 मानवेतर चमत्कार का अधिकारी

 बना देता है।

 मानवता  ही  पाषाण युग के

पशु तुल्य  मानव को,

 मानव बनाया मान।।

 नंगे शिकारी जीवन,

हरा माँस खानेवाला,

 पेड़ के खोखले में रहनेवाला,

जंगली पशु ही मानव।।

मानव का जीवन अस्थिर था।

ईश्वर ने बुद्धि बल दिया तो 

मानव में स्थिरता आती।।

आग , चक्र,खेती का पता लगाया।

 स्थिरता आयी, स्थिरता में संस्कार।

संस्कार में सभ्यता,

मन में उच्च विचार।।

 परोपकार की भावना।

 दान धर्म का अपनाना,

धन जोड़ना तन छोड़ने के दिन

न आएगा काम।

काम, क्रोध,मद,लोभ,ईर्ष्या ,

मानव को पशु ही बना देता है जान।।

मानवता ही मानव की मर्यादा।।

पुण्य काम करने की प्रेरणा,

 मित्रता निभाने का आधार।

माता-पिता गुरुजनों को देवतुल्य मानना।

 मन में आदर्श विचार लाना,

जीने और जीने देने की सोच।।

 कर्तव्य निभाना, काल की याद रखना।।

जानो मानो मानव का मान प्राप्त करने

मनुष्यता या इन्सानियत या मानवता निभाना।।

स्वरचित एस.अनंतकृष्णन, चेन्नै।।

प्रधान अध्यापक, अवकाश प्राप्त।

स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 












 

 







 

 

 








Saturday, August 5, 2023

मानवता न तो मानव

 मानवता न तो मानव मानव नहीं दानव, पशु समान 

स्‌नातक स्नातकोत्तर, पर तलाक का मुकद्दमा अधिक.

आत्मसंयम कम,अवैध संबंध की खबरें अधिक।

आधुनिक शिक्षा में धर्म नहीं,अनुशासन नहीं ।

केवल स्नातक । विश्वविद्यालयों की संख्या अधिक।.

माता -पिता बुढापे में वृद्धाश्रम में। 

नये नाते के बंधन में, आदी नाथा बंद ।

त्यागमय जीवन नहीं,भोगमय जीवन ।

मानवता का,भारतीय संस्कृति का ,

संयम की सीख,अत्यंत है आवश्यक ।

एस.अनंतकृष्णन,तमिलनाडु चेन्नै .

आसान

 नमस्ते। वणक्कम।

एस.अनंतकृष्णन का।

शीर्षक ,--आसान नहीं होता गृहिणी होना।

 विधा --अपनी भाषा अपनी शैली अपने विचार।

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 मैं  गृहिणी ,

अब मेरी बेटी,

गृहिणी होनेवाली है।

कहा, बेटी! तेरी शादी होनेवाली है।

 गृहिणी होना आसान नहीं है,

  यहाँ का कुलदेव अलग,

  प्रार्थना का ढंग अलग।

  खान-पान बनाना अलग।

 मिठाई का भेद भी अलग।

 वहाँ का आबोहवा भी अलग।।

 पहाड़ से घाटी की ओर।

वहाँ गर्मी अधिक।

 सास-ससुर  का स्वाद अलग।

 देवर -देवरानी  का पसंद अलग।

 घर की सफाई भी अलग।

 पानी  का स्वाद भी अलग।

खाद्य-पदार्थों में घी ,

तेल डालना भी अलग-अलग।।

आगबबूला होना भी अलग-अलग।

फूँक फूँककर चलना है,

कदम कदम पर, पल पल।।

सावधान रहना।‌

 बेटी ने कहा - हमारा खाना

 बिज्जा,बर्गर,नान।

ये फोन रखने पर आएगा।

 मैं भी दफ्तर, वह भी दफ़्तर।

 सास ससुर   भी दफ़्तर ।

 हम हैं नयी गृहिणी।।

 स्नातक स्नातकोत्तर।

 हमारे वेतन ठंडा बना देगी सब को।।

एस.अनंतकृष्णन।

स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक

Tuesday, August 1, 2023

भारत

 नमस्ते वणक्कम।

  एस.अनंतकृष्णन  का।

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कलंकित भारत,

मणिपुर मात्र नहीं,

इत्र तत्र सर्वत्र।।

 आज कल की बात नहीं,

 रामायण,महाभारत काल  से

 आज तक।।

यह का अपराध शासक,

धनी, उच्च वर्ग के कारण।

 रामायण के शुरु करते ही 

यही कहते हैं दशरथ के तीन रानियाँ।

महाभारत के शुरुआत में ही कहते हैं

 वीर पुरुष भीष्म ने तीन राजकुमारियों को

जबर्दस्त ले आया।

ये लड़कियों पर का अत्याचार

राजाओं की वीरता,

अंतःपुर  की रानियों की संख्या से ही

आंकी जाती हैं।

  आजकल के चित्रपट के गीत,

   अनुशासन नीतिग्रंथ रहित  पाठ्यक्रम।

    अनुशासन रहित खबरों की नींव।

स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक एस.अनंतकृष्णन।