कर्म फल हास्य
जब शादी हो गई,
तब मृदंग बन गया।
एक ओर ससुरालवाले
दूसरी ओर माँ
ढोल पीटने लगे।
बेचारी बीवी को
दिलासा देने तैयार।
समर्थन के लिए एक दल।
मैं ही मृदंग बन।
ढोल दोनों तरफ पीटने लगे।।
मैं पुरुष हूँ ,
सहना ही धर्म।
अर्धांगिनी दुविधा में।।
मैं?
ज़माना गुजर गया।
अब बेटा विदेश में,
बहू विदेश में।
आजद प्रेम पक्षी की तरह।।
पोता फोन में बोलता है,
मैं माता पिता यही मेरा परिवार।
पुर्खों का पाप, सांस सुसुर
माँ बाप वृद्धाश्रम में,
कलियुग में दंड तत्काल।
मैं भी छे महीने विलायत में।
जानो समझो वृद्धाश्रम का रहस्य।
कर्म फल निश्चित।
कलियुग धर्म से भरा।।
तत्काल स्वर्ग नरक भूलोक में।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नै।
स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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