Tuesday, August 29, 2023

बाल श्रमिकों को कहा से रोकना

 नाम- -एस. अनंतकृष्णन।

साहित्य बोध नई दिल्ली के संस्थापक संयोजक समन्वयक और सदस्यों को नमस्कार।

30-8-22023.

शीर्षक --बाल श्रम जागरुकता।

   आज का बालक कल का नागरिक है।वे देश को आगे बढ़ाने वाले हैं। वे देश के रक्षक है।वे देश के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले हैं।

होनहार बिरवान के होते चिकने पात।

पाँच साल की उम्र से उनको उचित शिक्षा देनी चाहिए।

मानव के तन,मन,धन  के बल ईश्वर की देन है।

मानव अपने प्रयासों से अपनी तरक्की कर सकता है।

 अच्छे विचार, संस्कार,शिक्षा आदि संगति का फल होता है।   सामूहिक विकास के लिए अभिभावक, समाज,नाते,रिश्ते, सरकारी प्रशासन सबके सम्मिलित शक्ति की आवश्यकता होती हैं।

 सब को समान। मौका देना चाहिए तो सबकी बुद्धि लब्धि, आर्थिक व्यवस्था , शारीरिक बल एक समान होना चाहिए।

 यह तो ईश्वरीय सृष्टि दोष है। चंद्रगुप्त को चाणक्य मिल गया।वे सम्राट बन गये। एक में बल दूसरे में बुद्धि बल।

शारीरिक बल और बुद्धि बल एक साथ मिलने पर भी आर्थिक बल ही प्रधानता है। कर्ण को दुर्योधन  साथ नहीं देता तो उसका शौर्य और दानवीरता प्रकट नहीं होती।

   आजकल सर्वशिक्षा अभियान है। सरकारी पाठशालाएँ हैं। सबको समान शिक्षा का अधिकार हैं। पाठशाला अनेक प्रकार के होते हैं। एक उच्चतम अमीरों के लिए,

  एक उच्च मध्यवर्गीय लोगों के लिए, मध्यवर्ग के लिए।

 इनमें बुद्धि लब्धि हो या न हो पढ़ने का अवसर सबको मिलता है। पढ़ें या न पढें अमीर मालिक बन जाता है।

 सांसद, मंत्री बन जाता है।

यह जन्म जात अमीरी ओर बुद्धि लब्धि के भेद भाव प्रकृति या ईश्वरीय देन को बदलना बुद्धिजीवियों के या सत्ताधारियों के वश में नहीं हैं।

  मानव मानव में समानता कानून रूप हो जाता है।

व्यवहार में यह संभव नहीं है।

 आज भी बच्चों को लेकर भीख माँगनेवाले हैं।

 बाल संन्यासी होते हैं। बाल कलाकार होते हैं।

 सरकार नियम के अनुसार बालक को चौदह साल तक ही

शिक्षा अनिवार्य है।  पंद्रह साल में वह मज़दूर बनने का अधिकार पाता है।

 हम तो बाल श्रमिकों के विरुद्ध ज़ोरदार भाषण दे सकते हैं। बड़े बड़े निबंध लिख सकते हैं। लालबहादुर शास्त्री तैरकर पाठशाला जाते थे। राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम अखबार वितरण का काम करते थे। आजके विश्वविख्यात प्रधानमंत्री क्षी नरेंद्र मोदी जी चाय की दूकान में।

 भूखा भजन न गोपाल।

 बाल श्रमिकों को दूर करना है तो जन्मजात बच्चों को लेकर भीख माँगने का दृश्य नजर न आना चाहिए।

 साहित्य समाज का दर्पण है।

आजकल अधिकांश चित्र पट का कथानक

ईमानदारी अधिकारियों को बदमाश सपरिवार हत्या कर देता है। उनके शिशु को दयावश पालकर सद्भाव बना देता है। वह बद्माश डाका डालता है।चोरी करता है। अंतराल के बाद वही बद्माश अधिकारियों को मारता है, कानून अपने हाथ में लेकर आम लोगों को बचाता है। 

 बाल श्रमिक कैसे बनते हैं पता नहीं।

 जेलर रजनीकांत का फिल्म की शिक्षा कानून के द्वारा बदमाश को समूल नष्ट करना असंभव है।

 बालश्रमिकों को रोकने सरकार को   सभी बच्चों की देखरेख ,लालन पालन को खुद अपनाना चाहिए।

अविवाहित पागल स्त्री भी गर्भवती बनती हैं।

अबार्शन को कानूनी मान्य है।

कर्मफल के अनुसार अमीर गरीबी, बुद्धिलब्धी , रोग असाध्य रोग जब तक दूर नहीं होगा,तब तक बालश्रमिकों को 100%दूर करना असंभव है।

 तन बल सब में नहीं। 

धन बल सब में नहीं।

मन बल सद्यःफल के लिए

झुक जाता है,

अपने आदर्श प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट देने पैसे लेनेवाले हैं। ३०%वोट नहीं देते ।वोट देने का कर्तव्य निभाने ३०% विमुख है। २०% स्वार्थी हैं।

 बाल श्रमिकों को रोकना है तो बाल भिखारी , भिखारी बनाने बच्चों की चोरी करनेवाले सबको कठोर दंड देना चाहिए।

 बालक को भीख न देना चाहिए।

 अध्यापक  मज़दूर नहीं,

त्याग मय जीवन बिताना चाहिए।

 प्रैवेट ट्यूशन को रोकना चाहिए।

नीट की चिंग सेंटर की लूट रोकना चाहिए।

 अभीर गरीब पाठशाला के भेद दूर करना चाहिए।

 वर्दी  एक समान पहनने से समान भाव नहीं है।

 वर्दी के कपड़ों के भेद दूर करना चाहिए।

 पाठशाला इमारतों की तुलना कीजिए।

पेय जल नहीं,पट्टी नहीं, प्रयोगशाला नहीं,श्यापट नहीं,खड़िया नहीं ।

 बालश्रमिकों को दूर करने यहाँ से श्री गणेश करना चाहिए।

एस.अनंतकृष्णन द्वारा 

स्वरचित लेख।














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