Monday, August 7, 2023

भाषाएँ

 भाषाएँ

अंतर्राष्ट्रीय  उपलब्धियाँ

 अंग्रेज़ी या हिंदी नहीं,

 बुद्धि लब्धि फिर भी

कदम कदम पर चाहिए 

धन धन धन। 

धन न तो न सम्मान।

 पंजीकरण शुल्क,

 सहयोग राशि।

 हम लेखक घंटों बैठकर 

 सोच समझकर 

ईश्वरीय वरदान से 

लिखते हैं,

 योग्यता के आधार पर 

 प्रकाशक प्रकाशन करके

 लेखक को देंगे पैसे।

 पाठकों की संख्यानुसार।।

 अब लिखना भी है 

पैसा भी देना है

 फिर भी बगैर पैसे दिए

 मिले हैं सम्मान पत्र।

 उन महापुरूषों को

 दिल से प्रमाण।।

 भारतीय भाषाओं पर 

 धनियों का प्रेम चाहिए।

 शासकों का प्रोत्साहन चाहिए।

 भारतीय भाषाओं में 

जीविकोपार्जन की ऊर्जा चाहिए।

 केवल अनुवाद के लिए करोड़ों रुपए, 

 अनूदित किताबें गोदामों में,

 अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों की संख्या

 मातृभाषा माध्यम बंद।

 जनता वही चाहेंगी,

 जैसे प्रकाशन के लिए 

पंजीकरण शुल्क।

 शोध निबंध  लिखने  शुल्क।

 आमदनी का ही मार्ग नहीं,

 कदम रखने पैसे,

 पर जीविकोपार्जन असंभव।

750साल की आजादी 

आधुनिक समाज

 भात भूल गया,rice .

 समय भूल गया time.

चित्र भूल गया picture.

  भारतीय भाषाएँ धीरे धीरे ओझल।


एस. अनंत कृष्णन।

 स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

[08/08, 10:08 am] sanantha 50: भारतीय भाषाएँ हज़ारों नदारद।

 संस्कृत   जातीय नफ़रत।

 अंग्रेज़ी गुमाश्ते धन के लिए

 संस्कृत को पढ़ना लिखना भूल गये।

 सिखाना पाप समझा,

 अब 75साल आज़ादी के बाद

 विकास जारी।

 तमिलनाडु में नफ़रत फ़ैलाना जारी।

 जय अंग्रेज़ी, लक्ष्मी देवी।।

 लाखों करोड़ों की नौकरी। 

आज़ादी के 75साल ,

 हिंदी के विकास में कई लाख करोड़।।

 पर करोड़ों के नफ़रत का पात्र हिंदी।

 तमिलनाडु में अमूल्य प्राण त्यागने तैयार।।

 यह व्यर्थ का खर्च।

 हर साल सरकार अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल खोलने देती अनुमति।

 पता चला सरकारी स्कूल में 65हजार वेतन अध्यापक का।

 निजी स्कूलों में एक अध्यापक का वार्षिक वेतन तन 65हजार।

 अध्यापक बेगार।

 Increment नहीं, तब नौकरी से निकाल देते।

 अंग्रेज़ी स्कूल खोलने लाखों का रिश्वत।।

 अधिकारी मालामाल।

  एल.के.जी के लिए 50हजार से 7लाख तक दान।।

 सरकारी स्कूलों में  शौचालय नहीं।

देवालय हूंगी में मंत्री डालता लाखों रुपये।

 हीरे का मुकुट,सोने का कवच।

  जय भगवान।

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